10 Class Science Chapter 2 अम्ल , क्षारक एवं लवण notes in hindi
Class 10 science Chapter 2 अम्ल , क्षारक एवं लवणके notes in hindi. जिसमे हम H⁺ और OH⁻ आयनों की प्रस्तुति के संदर्भ में उनकी परिभाषा, सामान्य गुण, उदाहरण और उपयोग,लिटमस पत्र, PH स्केल की अवधारणा , PH स्केल का रोजमर्रा की जिंदगी में महत्व , अम्ल व क्षार में समानता,सोडियम हाइड्रॉक्साइड, ब्लीचिंग पाउडर, बेकिंग सोडा, वाशिंग सोडा और प्लास्टर ऑफ पेरिस आदि के बारे में जांएगे ।
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | विज्ञान |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | अम्ल , क्षारक एवं लवण |
Category | Class 10 Science Notes |
Medium | Hindi |
अम्ल –
- उत्पति :- अम्ल को अंग्रेजी में एसिड कहते हैं, जो कि लैटिन भाषा के शब्द एसिड्स से बना हैं ।
- स्वाद :- अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं । उदाहरण – नीम्बु, संतरा, इमली ।
- लिटमस पत्र :– अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देता हैं ।
- विलायक क्षमता :- अम्ल की विलायक क्षमता उच्च होती हैं।
- ये जलीय विलयन में H+ आयन देते हैं।
उदाहरण :-
- हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) – अनेक उद्योगों में बॉयलर को अंदर से साफ करने में, सिंक व सेनिटरी को साफ करने में रूप से काम आता हैं ।
- सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) – सेल, कार, बैटरी तथा उद्योगों में काम आता हैं । सल्फ्यूरिक अम्ल को अम्लों का राजा भी कहते हैं।
- नाइट्रिक अम्ल (HNO3) – उर्वरक बनाने व सोने के गहनों को साफ करने में काम आता हैं ।
- ऐसीटिक अम्ल (CH3COOH) – सिरके के रूप में खाद्य पदार्थो को, आचार आदि को संरक्षित करने में, लकड़ी के फर्नीचर आदि को साफ करने में काम आता हैं ।
क्षार –
- उत्पति :- क्षार शब्द की उत्पति एलकली शब्द से हुई जिसका अर्थ ‘पौधे की राख’।
- स्वाद :- यह स्वाद में कड़वा होता हैं। उदाहरण – नीम, बेकिंग सोडा।
- लिटमस पत्र :- क्षार लाल लिटमस को नीला कर देता हैं ये स्पर्श में साबुन जैसा व्यवहार दिखाते हैं ।
- विलायक क्षमता :- क्षार की विलायक क्षमता निम्न होती हैं ।
- ये जलीय विलयन में OH– आयन देते हैं।
- क्षार (Alkali) :- जल में घुलनशील क्षारक को क्षार कहते हैं।
उदाहरण :-
- सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) – प्रबल क्षारक के रूप में।
- पौटेशियम हाइड्रोक्साइड (KOH) – प्रबल क्षारक के रूप में।
- अमोनियम हाइड्रोक्साइड (NH4OH) – खाद्य या उर्वरक में ।
- कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड Ca[OH]2 – मिट्टी की अम्लता को दूर करने में किया जाता हैं।
आप पढ़ रहे है-अध्याय 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण
अम्ल और क्षार में अन्तर
क्र.स. | अम्ल | क्षार |
1. | अम्ल स्वाद में प्राय: खट्टे होते हैं | यह प्राय: स्वाद में कड़वे होते हैं। |
2. | अम्ल जलीय विलयन में H+ आयन प्रदान करते हैं। | क्षार जलीय विलयन में OH– आयन प्रदान करते हैं। |
3. | अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल रंग में परिवर्तित कर देते हैं। | क्षार लाल लिटमस पत्र को नीले रंग में परिवर्तित कर देते हैं। |
4. | उदाहरण :- HCl, H2SO4, HNO3, CH3COOH | उदाहरण :- NaOH, KOH, Ca(OH)2 व NH4OH |
सूचक :–
- सूचक का शाब्दिक अर्थ होता हैं- ‘सूचना देने वाला’।
- परिभाषा :- वे पदार्थ जो विलयन में अम्ल या क्षार की उपस्थिति का पता लगाते हैं, उसे सूचक कहते हैं।
- सूचक मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं।
- i. प्राकृतिक सूचक
- ii. संश्लेषित या कृत्रिम सूचक
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लिटमस :
- –लिटमस विलयन बैंगनी रंग का रंजक होता हैं जो थैलैफ़ाइटा समूह के लिचेन पौधे से निकाला जाता हैं।
अम्ल व क्षारों के रासायनिक गुण :-
a) अम्ल की धातु के साथ अभिक्रिया :-
अम्ल धातु के साथ क्रिया करके हाइड्रोजन गैस (H2) देते हैं। यही कारण है की खट्टे अम्लीय पदार्थ धातु के बर्तनों में नहीं रखे जाते हैं।
जैसे – पीतल के बर्तनों में दही नहीं रखा जाता हैं ।
कारण :- पीतल जो कि धातु हैं जो खट्टे पदार्थ जैसे दही से क्रिया करने पर विषैला लवण का निर्माण होता हैं जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ हैं।
धातु की क्षार के साथ अभिक्रिया से भी लवण व हाइड्रोजन गैस ही बनती हैं परन्तु सभी धातुओं की क्षारों के साथ अभिक्रिया में H2 गैस नहीं बनती हैं ।
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पॉप टेस्ट :-
जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में परखनली से गैस निकलती है तो उसके पास जलती हुई मोमबत्ती ले जाने पर पट-पट की ध्वनि उत्पन्न होती है, इसे पॉप टेस्ट कहा जाता है, अत: निकलने वाली गैस हाइड्रोजन हैं।
धातु की क्षार के साथ अभिक्रिया से भी लवण व हाइड्रोजन गैस ही बनती हैं परन्तु सभी धातुओं की क्षारों के साथ अभिक्रिया में H2 गैस नहीं बनती हैं ।
पॉप टेस्ट :-
- जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में परखनली से गैस निकलती है तो उसके पास जलती हुई मोमबत्ती ले जाने पर पट-पट की ध्वनि उत्पन्न होती है, इसे पॉप टेस्ट कहा जाता है, अत: निकलने वाली गैस हाइड्रोजन हैं।
b) अम्ल की धातु ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया –
- अम्ल धातु ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके लवण और जल देते हैं अत: ये क्षारीय प्रकृति के होते हैं। क्षारों के साथ अधात्विक ऑक्साइड अभिक्रिया करके लवण और जल बनाते है अत: ये अम्लीय प्रकृति के होते हैं ।
अम्लों के साथ धात्विक ऑक्साइडों की अभिक्रिया :-
अम्ल + धातु ऑक्साइड ⟶ लवण + जल
2HCl + CuO ⟶ CuCl2 + H2O
अधात्विक ऑक्साइड की क्षारों के साथ अभिक्रिया :-
अधात्विक ऑक्साइड+ क्षार ⟶ लवण + जल
CO2+Ca[OH]2 ⟶ CaCO3 + H2O
उभयधर्मी ऑक्साइड :-
- ऐसे धातु ऑक्साइड जो अम्लीय व क्षारीय दोनों प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, उसे उभयधर्मी ऑक्साइड कहते हैं। उदाहरण – ZnO, BeO ,Al2O3c)
अम्ल की धातु कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया
– अम्ल धातु कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके लवण, जल तथा कॉर्बनडाई ऑक्साइड देते हैं।
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चूने के पानी का टेस्ट :-
- कार्बनडाई ऑक्साइड को चूने के पानी से प्रवाहित करने पर पानी दूधिया हो जाता है।
- Ca(OH)2(aq) + CO2(g) ⟶ CaCO3 + H2O
CaCO3 के विलयन में CO2 अधिक मात्रा में प्रवाहित करने पर जल की उपस्थिति में घुलनशील व पारदर्शी पदार्थ का निर्माण होता हैं जिस कारण सम्पूर्ण विलयन पारदर्शी बन जाता हैं ।
CaCO3 + H2O + CO2 ⟶ Ca(HCO3)2
(जल में विलयशील)
चूना पत्थर, खडिया एवं संगमरमर, कैल्शियम कार्बोनेट के विविध रूप हैं। सभी धातु कार्बोनेट एवं हाइड्रोजन कार्बोनेट अम्ल के साथ अभिक्रिया करके लवण, जल, कॉर्बनडाई ऑक्साइड बनाते हैं।
अम्ल व क्षार में समानता
हम एक प्रयोग के द्वारा अम्ल व क्षार की समानता का अध्ययन करते हैं-प्रयोग :- ग्लुकोज, ऐल्कोहोल, HCl व NaOH का विलयन लेते हैं। एक कॉर्क पर दो कीलें लगाकर कॉर्क को 100 ml बीकर में रख देते हैं। इन दोनों कीलों को 6 वोल्ट की बैटरी के दोनों सिरों के साथ एक बल्ब व कुंजी (स्विच) के माध्यम से जोड़ देते हैं। अब बीकर में थोड़ा तनु HCl डालकर विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं।
निष्कर्ष:-
1. ग्लुकोज के विलयन में बल्ब नहीं जलता हैं।
2. एल्कोहॉल के विलयन में बल्ब नहीं जलता हैं।
3. हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन में बल्ब जलता हैं।
4. सोडियम हाइड्रॉक्साइड के विलयन में बल्ब जलता हैं।
अत: हम देखते है कि ग्लुकोज व एल्कोहॉल विद्युत का चालन नहीं करते हैं। तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन में H+ आयन उत्पन्न होता हैं तथा सोडियम हाइड्रॉक्साइड के विलयन में OH– आयन उत्पन्न होता हैं।
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आरेनियस संकल्पना :-
- अम्ल व क्षार की परिभाषा सर्वप्रथम 1884 ई. में आरेनियस ने इस प्रकार दी-
- • अम्ल – जो पदार्थ जलीय विलयन में अपघटित होकर हाइड्रोजन आयन देते हैं ‘अम्ल’ कहलाते हैं ।
- • जल की उपस्थिति में HCl में हाइड्रोजन आयन (H+) उत्पन्न होते हैं। जल की अनुपस्थिति में HCl अणुओं से H+ आयन पृथक् नहीं हो सकते हैं।
- HCl + H2O ⟶ H3O+ + Cl–
- • हाइड्रोजन आयन स्वतंत्र रूप में नहीं रह सकते लेकिन जल के अणुओं के साथ मिलकर रहते हैं। इसलिए हाइड्रोजन आयन को H+(aq) या हाइड्रोनियम आयन (H3O+) से दर्शाते हैं।
- H+ + H2O ⟶ H3O+
• क्षार – जो पदार्थ जलीय विलयन में अपघटित होकर हाइड्रॅाक्साइड आयन देते हैं, ‘क्षार’ कहलाते हैं ।
किसी क्षारक को जल में मिलाने पर –
NaOH(s)⟶H2ONa+(aq)+OH−(aq)
KOH(s)⟶H2OK+(aq)+OH−(aq)
अम्ल व क्षार जल में विलेय है।
तनु – विलयन में जल की मात्रा अधिक होती है तो उसे तनु कहते है।
सान्द्र – विलयन में जल की मात्रा कम होती है तो उसे सान्द्र कहा जाता है।
तनुकरण – अम्ल या क्षार में जल मिलाने पर आयन की सान्द्रता में प्रति इकाई आयतन में कमी आ जाती हैं , उसे तनुकरण कहते हैं।
प्रबल अम्ल
- – वे पदार्थ जो जलीय विलयन में H+ आयन अधिक मात्रा में देते हैं उसे प्रबल अम्ल कहा जाता हैं । उदा. HCl, H2SO4 ,HNO3
दुर्बल अम्ल
- – वे पदार्थ जो जलीय विलयन में H+ आयन कम मात्रा में देते हैं उसे दुर्बल अम्ल कहा जाता हैं । उदा. CH3COOH, H2CO3
प्रबल क्षार
- – वे पदार्थ जो जलीय में OH- आयन अधिक मात्रा में देते हैं उसे प्रबल क्षार कहते हैं। उदा. NaOH, KOHदुर्बल क्षार – वे पदार्थ जो जलीय में OH- आयन कम मात्रा में देते हैं उसे दुर्बल क्षार कहते हैं। उदा. NH4OH, Mg[OH]2, Ca[OH]2
जलीय विलयन में अम्ल या क्षारक का क्या होता है?
- जब एक परखनली में सोडियम क्लोराइड (NaCl) तथा सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) की परस्पर क्रिया करवाते है तो हाइड्रोक्लोरिक (HCl) गैस बनती है। इस परखनली पर दो प्रकार के परीक्षण किये जाते है
- 1. शुष्क लिटमस पत्र ले जाने पर उसके रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- 2. आर्द्र नीला लिटमस पत्र ले जाने पर उसका रंग परिवर्तित हो जाता है।
अम्ल एवं क्षारक परस्पर कैसे अभिक्रिया करते है?
• अम्ल व क्षार परस्पर क्रिया करके लवण व जल का निर्माण करते है, उसे उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते है।
• अम्ल व क्षार एक – दूसरे के समस्त गुणों को नष्ट कर देते है, तथा उदासीन हो जाते है।
अम्ल + क्षार ⟶ लवण + जल
HCl + NaOH ⟶ NaCl+ H2O
PH स्केल –
- जैसे तापमान को मापने के लिए थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता हैं उसी प्रकार अम्ल एवं क्षार की सामर्थ्य को मापने के लिए PH स्केल का उपयोग करते हैं। यह स्केल किसी भी विलयन में उपस्थित हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता को मापता हैं। यहाँ P एक जर्मन शब्द हैं जिसका अर्थ पुसांस होता हैं जिसका हिन्दी अर्थ है- शक्ति (Power) ।
- सन् 1909 में सोरेनसन नामक वैज्ञानिक ने PH स्केल बनाई तथा हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता के घातांक को PH कहा गया । अर्थात हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता का ऋणात्मक लागेरिथम PH कहलाता हैं ।
- PH = – log10[H+]
- विलयन में मुक्त H+ आयन नहीं होते हैं, ये जलयोजित होकर [H3O+] हाइड्रोनियम आयन बनाते हैं। अत:
- PH = – log10[H3O+]
- उदासीन जल के लिए [H+] तथा [OH–] आयनों की सान्द्रता 1 x 10-7 मोल /लीटर होता हैं। अत: इसकी PH होगी-
- PH = – log [1 x 10-7]
- PH = 7 log10
- PH = 7
- PH 7 से कम = अम्लीय विलयन
- PH 7 = उदासीन विलयन
- PH 7 से अधिक 14 तक = क्षारीय विलयन
- पदार्थ PHमान
- रक्त 7.4
- जठर रस 1.2
- नींबू का रस 2.2
- शुद्ध जल 7.0
- दूध 6.5
- दही 5.5
- साधारण नमक का विलयन 7.0
- HCl का विलयन 0
- NaOH का विलयन 14
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दैनिक जीवन में PH का महत्व –
1. मिल्क ऑफ मैग्नीशिया Mg[OH]2 :- यह एक दुर्बल क्षारक हैं जिसका PH मान 10 होता हैं। उदर में अम्लता की शिकायत होने पर उदर में जलन व दर्द का अनुभव होता हैं इस समय हमारे उदर में जठर रस जिसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) होता हैं, अधिक मात्रा में बनता हैं, जिससे उदर में जलन और दर्द होता हैं इससे राहत पाने के लिए अर्थात् दुर्बल क्षारकों जैसे मिल्क ऑफ मैग्नीशिया का प्रयोग किया जाता हैं यह उदर में अम्ल की अधिक मात्रा को उदासीन कर देता हैं। ऐन्टेसिड के रूप में उपयोगी होता हैं।
Mg[OH]2 + 2HCl ⟶ MgCl2 + 2H2O2. दंत क्षय :- मुख की PH साधारणतया 6.5 के करीब होती हैं। खाना खाने के पश्चात् मुख में उपस्थित बैक्टीरिया दाँतों में लगे अवशिष्ट भोजन से क्रिया करके अम्ल उत्पन्न करते हैं, जो कि मुख की PH कम कर देते हैं। PH का मान 5.5 से कम होने पर दाँतो के इनैमल का क्षय होने लग जाता हैं। अत: भोजन के बाद दंतमंजन या क्षारीय विलयन से मुख की सफाई अवश्य करनी चाहिए जिससे दंतक्षय पर नियत्रंण पाया जा सके।
3. कीटों का डंक :- मधुमक्खी, चीटीं या मकोडें जैसे किसी भी कीट का डंक में मेथेनोईक अम्ल या फार्मिक अम्ल स्त्रावित करते है, जो हमारी त्वचा के सम्पर्क में आता हैं। उस अम्ल के कारण ही त्वचा पर जलन व दर्द होता हैं। यदि उसी समय क्षारकीय लवणों जैसे सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट या बेकिंग सोडा का प्रयोग उस स्थान पर किया जाए तो अम्लीय प्रभाव उदासीन हो जाएगा।
4. अम्लीय वर्षा :- वह बारिश जिसमें जल का PH मान 5.6 से कम हो तो उसे अम्लीय वर्षा कहते हैं।
यह बारिश वातावरण में SO2, NO2, CO आदि गैसों के कारण होती हैं।
दुष्प्रभाव :-
- फसलों को क्षति होती हैं।
- जलीय जीवों के लिए प्राणघातक सिद्ध होता हैं।
- अम्लीय वर्षा से भूमि की उपजाऊ क्षमता नष्ट हो जाती हैं।
- ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान होता हैं। उदा- आगरा का ताजमहल
5. मृदा की PH :- मृदा की PH का मान ज्ञात करके मिट्टी में बोयी जाने वाली फसलों का चयन किया जा सकता हैं तथा उपर्युक्त उर्वरक का प्रयोग निर्धारित किया जाता हैं जिससे अच्छी फसल की प्राप्ति होती हैं।
उदासीनीकरण अभिक्रिया :-
अम्ल और क्षार परस्पर क्रिया करके लवण और जल का निर्माण करते हैं, उदासीनीकरण अभिक्रिया कहलाती हैं ।
अम्ल + क्षार ⟶ लवण + जल
HCl + NaOH ⟶ NaCl + H2O
यह क्रिया उदासीनीकरण क्रिया भी कहलाती हैं तथा ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया भी कहलाती हैं ।
लवण परिवार
दैनिक जीवन में कुछ उपयोगी यौगिक –
सोडियम क्लोराइड (NaCl)
- इसे साधारण नमक कहते हैं। यह प्रबल अम्ल व प्रबल क्षार का लवण होता हैं। तथा इसकी PH-7 होती हैं। इस कारण उदासीन प्रकृति का होता हैं। सोडियम क्लोराइड व्यापारिक तौर समुद्र के जल या खारे पानी को सुखा कर बनाया जाता हैं इस प्रकार बना हुआ नमक कई अशुद्धिया यथा मैग्नीशियम क्लोराइड, कैल्शियम क्लोराइड से युक्त होता हैं। इसे शुद्ध रूप में प्राप्त करने के लिए NaCl के संतृप्त विलयन से भरी बड़ी-बड़ी टंकियों में हाइड्रोजन क्लोराइड गैस प्रवाहित की जाती हैं। इस प्रकार यहाँ शुद्ध नमक अवक्षेपित हो जाता हैं। शुद्ध अवक्षेपित NaCl को एकत्रित कर लिया जाता हैं।
HCl + NaOH ⟶ NaCl + H2o
गुण :-
- यह श्वेत ठोस पदार्थ हैं।
- उसका गलनांक उच्च 1081 k होता हैं ।
- जल में अत्यधिक विलेय हैं।
- जलीय विलयन में आयनित हो जाता हैं ।
उपयोग :-
- इसका उपयोग साधारण नमक के रूप में भोजन किया जाता हैं।
- खाद्य परिरक्षण में प्रयोग करते हैं ।
- हिमीकरण मिश्रण बनाया जाता हैं।
विरंजक चूर्ण आदि बनाने में कच्चे पदार्थ के रूप में काम में लिया जाता हैं ।
सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH)
इसे कॉस्टिक सोड़ा भी कहते हैं। औद्यौगिक स्तर पर सोडियम हाइड्रॉक्साइड का उत्पादन सोडियम क्लोराइड के विद्युत अपद्यटन द्वारा किया जाता हैं इनमें एनोड पर क्लोरीन गैस तथा कैथोड पर हाइड्रोजन गैस बनती हैं कैथोड पर ही विलयन के रूप में सोडियम हाइड्रॉक्साइड प्राप्त होता हैं।क्लोर-क्षार प्रक्रिया :- सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन में विद्युतधारा प्रवाहित करने पर यह वियोजित होकर सोडियम हाइड्रॉक्साइड उत्पन्न करता है। इस प्रक्रिया को क्लोर-क्षार प्रक्रिया कहते हैं।
ऐनोट पर – Cl2 गैस
कैथोड़ पर – H2 गैस
कैथोड़ के पास – NaOH विलयन बनता है।
गुण :-
- यह श्वेत चिकना ठोस पदार्थ हैं।
- इसका गलनांक 591 K हैं।
- जल में शीघ्र विलेय हो जाता हैं।
- यह प्रबल क्षार हैं।
उपयोग :-
विरजंक चूर्ण :-
इसका रासायनिक नाम कैल्शियम ऑक्सी क्लोराइड हैं। शुष्क बुझे हुए चुने पर क्लोरीन गैस प्रवाहित करके इसका उत्पादन किया जाता हैं। इसका प्रचलित नाम ब्लींचिग पाउडर हैं।
Ca (OH)2 + Cl2 ⟶ CaOCl2 + H2O
गुण :-
- यह पीला तीक्ष्ण गंध वाला ठोस पदार्थ हैं।
- ठंडे जल में विलेय हैं।
- वायु में खुला रखने पर क्लोरीन गैस देता हैं।
- यह तनु अम्लों से क्रिया करके क्लोरीन गैस देता हैं।
CaOCl2 + H2SO4 ⟶ CaSO4 + H2O + Cl2
उपयोग :-
- वस्त्र उद्योग में विरंजक के रूप में।
- कागज उद्योग में विरंजक के रूप में।
- पेयजल को शुद्ध करने में।
- रोगाणुनाशक एवं ऑक्सीकारक के रूप में।
- प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
बेकिंग सोडा (NaHCO3) :-
- बेकिंग सोडा को खाने का सोड़ा भी कहते हैं। इसका रासायनिक नाम सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट हैं। इसे खाद्य पदार्थो में मिलाकर गर्म करने (बेक करने) पर कार्बनडाई ऑक्साइड गैस बुलबुलों के रूप में बाहर निकल जाती हैं। इस प्रकार केक जैसे खाद्य पदार्थ फूलकर हल्के हो जाते हें। और उनमें छिद्र पड़ जाते हैं। NaCl का उपयोग करके बेकिंग सोडा बनाया जाता हैं।
- NaCl + H2O + CO2 + NH3 ⟶ NaHCO3 + NH4Cl
- बेकिंग सोडा अमोनियम क्लोराइड
सोडियम कार्बोनेट के विलयन में कार्बनडाई ऑक्साइड गैस प्रवाहित करके भी इसे बनाया जाता हैं।
Na2CO3 + H2O + CO2 ⟶ 2NaHCO3
गुण :-
- श्वेत क्रिस्टलीय ठोस हैं।
- जल में अल्प विलेय हें।
- जल में इसका विलयन क्षारीय होता हैं।
- इसे गर्म करने पर कार्बनडाई ऑक्साइड गैस निकलती हैं।
2NaHCO3 ⟶ Na2CO3 + H2O + CO2
उपयोग :-
- खाद्य पदार्थो में बेकिंग पाउडर के रूप में । इसका उपयोग केक बनाने व खमीर उठाने में किया जाता हैं।
बेकिंग पाउडर :- बेकिंग सोडा + टार्टरिक अम्ल
- सोडा वाटर तथा सोडा युक्त शीतल पेय बनाने में।
- पेट की अम्लता को दूर करने में ऐन्टेसिड के रूप में।
- अग्निशामक यंत्रों में।
- प्रयोगशाला अभिकर्मक के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
धावन सोडा (Na2CO3.10H2O) :-
इसे कपड़े धोने का सोडा भी कहते हैं। इसका रासायनिक नाम सोडियम कार्बोनेट हैं। इसमें एक सोडियम कार्बोनेट अणु के साथ 10 अणु क्रिस्टलन जल होता हैं। सोडियम कार्बोनेट का साल्वे विधि से निर्माण किया जाता हैं। एक अन्य विधि में बेकिंग सोडा को गर्म करने पर सोडियम कार्बोनेट प्राप्त होता हैं। इसे पुन: क्रिस्टलीकरण करने पर कपड़े धोने का सोडा अर्थात् धावन सोडा प्राप्त होता हैं।
2NaHCO3 ⟶ Na2CO3 + H2O + CO2
Na2CO3 + 10H2O ⟶ Na2CO3 . 10 H2O
गुण :-
- यह सफेद क्रिस्टलीय ठोस हैं।
- जल में विलेय हैं।
- इसका जलीय विलयन क्षारीय होता हैं।
- यह गर्म करने पर क्रिस्टलन जल त्याग कर सोडा एश बनाता हैं।
उपयोग :-
- धुलाई व सफाई में।
- जल की स्थायी कठोरता को दूर करने में।
- कास्टिक सोडा, बेकिंग पाउडर, कॉच, साबुन बोरेक्स के निर्माण में।
- अपमार्जक के रूप में।
- कागज, पेन्ट तथा वस्त्र उद्योग में।
- प्रयोगशाला अभिकर्मक के रूप में।
क्रिस्टलन जल :- लवणों के इकाई सूत्र में उपस्थित जल के अणुओं की संख्या क्रिस्टलन जल कहलाती हैं।
उदाहरण :-
प्लास्टर ऑफ पेरिस (CaSO412H2O)
इसका रासायनिक नाम कैल्शियम सल्फेट का अर्द्धहाइड्रेट हैं। फ्रांस की राजधानी पेरिस में जिप्सम को गर्म करके सबसे पहले बनाया गया था अत: इसका नाम प्लास्टर ऑफ पेरिस रखा गया इसे पी.ओ.पी. भी कहते हैं।
जिप्सम को 393 k ताप पर गर्म करने पर यह प्राप्त होता हैं।
CaSO4+2H2O⟶CaSO4⋅12H2O+112H2O
P.O.P. का और अधिक गर्म करने पर सम्पूर्ण क्रिस्टलन जल निकल जाता हैं और मृत तापित प्लास्टर प्राप्त होता हैं।
CaSO4⋅12H2O+112H2O⟶CaSO4⋅2H2O
गुण :-
- श्वेत ठोस चिकना पदार्थ हैं।
- इसमें जल मिलाने पर 15 से 20 मिनट में जमकर ठोस और कठोर हो जाता हें।
उपयोग :-
- टूटी हुई हडि्डयों को जोडने के लिए प्लास्टर चढाने में।
- भवन निर्माण में।
- दंत चिकित्सा में।
- मूर्तियाँ आदि सजावटी सामानों में।
प्रश्न.1 पीतल एवं ताँबे के बर्तनों में दही एवं खट्टे पदार्थ क्यों नहीं रखने चाहिए?
उत्तर :- पीतल एवं ताँबें के बर्तनों में दही एवं खट्टे पदार्थ इसलिए नहीं रखने चाहिए क्योंकि दही में मौजूद लैक्टिक अम्ल होते हैं जो पीतल एवं ताँबें के बर्तनों से अभिक्रिया करके हानिकारक (विषैला) यौगिक बनाते हैं। जिसके कारणवश ये खाने लायक नहीं रह पाते हैं अर्थात् हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाते है।
अम्ल + धातु ⟶ लवण + हाइड्रोजन
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