यह PDF आपको विभिन्न प्रकार की राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ को समझने में मदद करेगा, जिनमें राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, जातिवाद, और भाषावाद शामिल हैं।
विषयों की सूची:
- राष्ट्रीय एकता: एकजुट राष्ट्र की अवधारणा, महत्व, चुनौतियां, और इसे मजबूत करने के लिए रणनीतियां।
- क्षेत्रीयता: क्षेत्रीय पहचान, असमान विकास, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी के कारणों पर चर्चा।
- सांप्रदायिकता: धार्मिक विभाजन, सांप्रदायिक हिंसा, और धर्मनिरपेक्षता के खतरों का विश्लेषण।
- जातिवाद: जाति व्यवस्था, सामाजिक भेदभाव, और जातिवाद उन्मूलन के लिए रणनीतियां।
- भाषावाद: बहुभाषी समाज, भाषा विवाद, और राष्ट्रीय भाषा नीति।
यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।
Table of Contents
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science 2nd book |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
राजनीति विज्ञान अध्याय-1: राष्ट्र-निर्माण की चुनौतिया
भारत की आजादी 15 अगस्त 1947 को हुई थी, जिसने लगभग 200 साल के ब्रिटिश शासन का अंत किया।
संविधान सभा के विशेष सत्र में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘भाग्यवधु से चिर-प्रतीक्षित भेंट या ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से अपना ऐतिहासिक भाषण दिया। इस समय के लड़ाई में दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर जनता का समर्थन था:
- आजादी के बाद, देश का प्रशासन लोकतंत्र से चलाया जाएगा, जिससे नागरिकों को सकारात्मक भूमिका मिले।
- सरकार को समाज के सभी वर्गों के हित में कार्य करना था, ताकि समृद्धि सभी के लिए हो।
यह सुनिश्चित करने का समय है कि हम इस ऐतिहासिक प्रक्रिया के महत्वपूर्ण संदेशों को सुनहरे शब्दों में प्रस्तुत करें, ताकि यह अनुभव नई पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए सार्थक और प्रभावी हो।
आजाद भारत की नए राष्ट्र की चुनौतियाँ
Challenges of the new nation of independent India
1.एकता एवं अखड़ता की चुनौती:
- भारत, अपने विशाल आकार और अत्यंत विविध सांस्कृतिक विरासत के साथ, एक समृद्ध और एकत्रित महादेश के समान था। यहाँ अनगिनत भाषाएं, संस्कृतियाँ, और धर्मों के प्रतिनिधित्व में विविधता थी, जिसे एकजुट करना एक महत्वपूर्ण चुनौती थी।
2. लोकतंत्र की स्थापना:
- भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया है। यहाँ सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों और मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है, जो राष्ट्र के सभी वर्गों की भागीदारी में सुनिश्चित करता है।
3. समानता पर आधारित विकास:
- समृद्धि का विकास ऐसा होना चाहिए जिससे समस्त समाज को लाभ हो, न कि केवल किसी एक वर्ग का। इसका अर्थ है कि समाज के सभी वर्गों के साथ समानता के सिद्धांत पर आधारित विकास होना चाहिए और समाजिक रूप से पिड़ित वर्गों और अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जानी चाहिए।
इन चुनौतियों का सामना करते हुए, आजाद भारत ने एक नए राष्ट्र की नींवें रखी है जो समृद्धि, सामरिक समानता, और एकता की दिशा में प्रगट हो रहा है।
द्वि – राष्ट्र सिद्धांत / Two-nation theory
द्वि-राष्ट्र सिद्धांत यह मानता है कि भारत ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ नामक दो अलग-अलग कौमों का देश है। इसी सिद्धांत के आधार पर, मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश ‘पाकिस्तान’ की मांग की थी।
यह सिद्धांत भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और विभाजन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
इसके मुख्य पहलू:
- भारत को दो अलग-अलग कौमों का देश माना जाता है।
- मुसलमानों के लिए अलग देश ‘पाकिस्तान’ की मांग।
- विभाजन और सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया।
चुनौतियाँ:
- साम्प्रदायिक विभाजन और हिंसा।
- राष्ट्रीय एकता और सामंजस्य को कमजोर करता है।
- विभिन्न समुदायों के बीच समझौते और समर्थन की आवश्यकता।
भारत का विभाजन / Division of India
मुस्लिम लीग और ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’:
- मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ को अपनाने के लिए तर्क दिया कि भारत न किसी एक कौम का देश है, बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ नामक दो कौमों का देश है, और इस कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश, पाकिस्तान, की मांग की।
भारत के विभाजन का आधार:
- भारत के विभाजन का मौद्रिक आधार धार्मिक बहुसंख्या को बनाया गया, जिससे भारत दो अलग राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान, में विभाजित हुआ।
मुस्लिमों की जनसंख्या के आधार पर विभाजन:
- मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए मुसलमानों की जनसंख्या को ध्यान में रखकर पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान को गठित किया, जिसके बीच भारतीय भू-भाग का बड़ा विस्तार रहा।
मुस्लिम बहुल और द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के खिलाफी आंदोलन:
- मुस्लिम बहुल प्रतिष्ठान के नेता खान-अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें ‘सीमांत गांधी’ के नाम से जाना जाता है, ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ के खिलाफ उत्कृष्ट स्थान बनाया।
ब्रिटिश इंडिया के विभाजन का प्रबंधन:
- भारत के विभाजन के समय ब्रिटिश इंडिया में पंजाब और बंगाल में हिन्दू और मुसलमानों के बीच धर्मिक बहुसंख्या के आधार पर विभाजन किया गया, जिससे उच्च स्तरीय प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण हुआ।
विभाजन का धर्मिक परिणाम:
- भारत का विभाजन केवल धर्म के आधार पर हुआ था, जिससे दोनों ओर के अल्पसंख्यक वर्गों में असमंजस में थे, कि वे किस राष्ट्र के नागरिक बनेंगे – पाकिस्तान के या भारत के।
विभाजन की आईं मुख्य समस्या
Main problems faced by partition
अल्पसंख्यकों का विस्थापन:
- भारत-विभाजन की योजना में यह नहीं कहा गया था कि दोनों भागों से अल्पसंख्यकों का विस्थापन भी होगा। विभाजन से पहले ही दोनों देशों के बँटने वाले इलाकों में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे, जिसने लोगों को अधिक मुश्किलों में डाल दिया।
पंजाब के पूर्वी हिस्से का बँटवारा:
- पश्चिमी पंजाब में रहने वाले गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से पूर्वी पंजाब या भारत आना पड़ा, जिससे उन्हें अपना घर-बार, जमीन-जायदाद छोड़कर जान बचानी पड़ी।
भूमि और संपदा का बँटवारा:
- विभाजन की प्रक्रिया में भारत की भूमि का ही बँटवारा नहीं हुआ, बल्कि उससे उत्पन्न हुई सम्पदा की भी बँटवारा हुआ। यह विभाजन के परिणामस्वरूप आजादी और विभाजन के कारण भारत को शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या मिली।
संयमित पुनर्वास:
- लोगों के पुनर्वास को संयम ढंग से व्यावहारिक रूप से प्रदान किया गया, लेकिन इस विभाजन के दुःखद परिणामस्वरूप, शरणार्थियों के पुनर्वास के समय कई सारे संघर्षों का सामना करना पड़ा।
पुनर्वास मंत्रालय:
- शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या को समाधान के लिए सर्वप्रथम एक पुनर्वास मंत्रालय बनाया गया, जिससे समस्याएं सुरक्षित और संवेदनशीलता के साथ हल की जा सकें।
विभाजन के परिणाम / Results of division
अपना घर छोड़ना:
- विभाजन के परिणामस्वरूप, लोगों को मजबूरन अपना घर छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा, जिससे उन्हें अपनी ज़िन्दगी को नए रूप में स्थापित करना पड़ा।
हिंसा का शिकार:
- बड़े स्तर पर हिंसा का शिकार होने के कारण, अमृतसर और कोलकाता में सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसने लोगों को भयंकर दुःख और संघर्ष का सामना करना पड़ा।
शरणार्थी शिविर:
- लोगों को मजबूरन शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा, जहाँ उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान की गई और उन्हें समाज में पुनर्वास के लिए तैयार किया गया।
जबरन शादी:
- अन्यायपूर्ण स्थितियों में, औरतों को जबरन शादी करनी पड़ी और धर्म बदलना पड़ा, जिससे उन्हें अधिक दुःख और बेहतर ज़िन्दगी की उम्मीद के बजाय सांस्कृतिक और सामाजिक परिणामस्वरूप हुआ।
जान गवाने वाले:
- विभाजन के कारण, कई मामलों में लोगों ने अपने परिवार की इज्जत बचाने के लिए खुद घर की बहु बेटियों को मार डाला, जिससे समाज में दुखद एवं निराधार आत्महत्याएं हुईं।
संपदा का बँटवारा:
- विभाजन के परिणामस्वरूप, वित्तीय संपदा के साथ-साथ उपयुक्त सामग्री जैसे टेबल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के भी बँटवारे हुए, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में भूखमरी और असुरक्षा हुई।
सीमा पर आना:
- लगभग 80 लाख लोगों को घर छोड़कर उनके सीमा पर आना पड़ा, जो उनकी ज़िन्दगी को पूरी तरह से बदल दिया।
जान की गवाई:
- विभाजन से 5 से 10 लाख लोगों की जान गई, जिसने देश को मानवता के लिए एक दुखद और यादगार घटना बना दी।
रजवाड़ो का भारत मे विलय
Merger of princely states in India
दो भागों में बँटाई गई भूमि:
- स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले, भारत की भूमि दो भागों में बँटी गई थी – ब्रिटिश भारत और देशी रियासतें, जिनकी संख्या लगभग 565 थी।
सरदार पटेल की भूमिका:
- रियासतों के शासकों को भारतीय संघ में शामिल होने के लिए मनाने और समझाने में सरदार पटेल (गृहमंत्री) ने अद्वितीय भूमिका निभाई। उन्होंने अधिकतर रजवाड़ों को उनके संघ में शामिल होने के लिए राजी किया और इस प्रक्रिया को “समृद्धि से सागर” कहा गया।
एकीकरण की प्रक्रिया:
- इस समय, भारत में एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें विभिन्न रियासतों को एक समृद्धि से बाँधा जा रहा था, ताकि एक एकीकृत राष्ट्र की नींव रखी जा सके।
विलय की सफलता:
- सरदार पटेल के प्रेरणादायक नेतृत्व में, रजवाड़ों का भारत में विलय सफलता पूर्वक हुआ, जिससे देश में एक संघीय और समृद्धि से भरपूर राष्ट्र की नींव रखी गई।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण:
- इस प्रक्रिया ने भारतीय समाज को एक नए और संघीय रूप में मिलकर सामृद्धि की ओर पहुँचाया, जिसने समृद्धि और साहित्यिक विकास की दिशा में एक नया युग आरंभ किया।
रजवाड़ों के विलय में समस्या
Problem in merger of princely states
आजादी के बाद का अभियांत:
- आजादी के तुरंत पहले, अंग्रेजों ने रजवाड़ों को स्वतंत्रता देने का ऐलान किया। राजा अब अपनी मर्ज़ी से चाहे तो भारत में शामिल हो सकते थे, चाहे तो पाकिस्तान में, या फिर स्वतंत्र रह सकते थे।
समस्या का आगामी क्षण:
- यह फैसला राजाओं का होना चाहिए था, लेकिन इसमें जनता की भावनाओं का कोई अद्यतित विचार नहीं था।
देश की एकता की खतरा:
- राजवाड़ों का अलग होने का मांग करना, देश की एकता और अखंडता को खतरे में डाल रहा था। यह सोचने के बावजूद कि राजवाड़े स्वतंत्र रहें या शामिल हों, एक समृद्धि से भरपूर भारतीय राष्ट्र की नींव की स्थापना की जा रही थी।
प्रमुख राजवाड़ों का प्रतिस्थापन:
- त्रावणकोर और हैदराबाद के राजा ने अपने राज्यों को स्वतंत्रता प्राप्त करने का निर्णय लिया, लेकिन कुछ राजा संविधान सभा में शामिल होने से इंकार करते रहे।
समस्याएं और समाधान:
- इस समय, राजवाड़ों के अलग होने की मांग से उत्पन्न समस्याओं का सामना किया गया, जिन्हें समझाने के लिए सरकार ने सकारात्मक दृष्टिकोण और विकसीत समाधान ढूंढने का प्रयास किया।
रजवाड़ों के विलय में पटेल जी की भूमिका
Patel ji’s role in the merger of the princely states
संभावना की संघर्षमय दृष्टि:
- भारत के अस्तित्व के पहले दिनों में, सरकार ने भूमिका निभाई और सुनिश्चित किया कि देश छोटे-बड़े टुकड़ों में नहीं बटेगा। मुस्लिम लीग का विरोध और लोगों की मांग का विरोध करते हुए, सरकार ने एक संघर्षमय दृष्टि को अपनाया।
पटेल जी की चतुराई और सूझबूझ:
- सरदार वल्लभ भाई पटेल, जिन्होंने ‘भारत का लौह पुरुष’ कहलाया, ने इस मुद्दे को सूझबूझ से हल किया। उन्होंने अपनी चतुराई और रणनीति से रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल करने का कारगर तरीका निकाला।
पटेल जी की कड़ी मेहनत और विवेकपूर्ण नेतृत्व:
- सरदार पटेल ने अपने अद्भुत नेतृत्व के माध्यम से राजवाड़ों को मनाने और शामिल करने में सफलता प्राप्त की। उनकी मेहनत, विवेकपूर्ण नेतृत्व, और राष्ट्रीय एकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने देश को एक मजबूत और ऐक्यवादी नागरिक समृद्धि की दिशा में पहल की।
देशी रियासतों के बारे में अहम बातें
Important things about princely states
राजवाड़ों का इरादा:
- अधिकांश राजवाड़े भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे। उन्होंने राष्ट्रीय एकता में योगदान देने का इरादा किया और इसके लिए समर्थ रहे।
जम्मू कश्मीर का विशेष स्थान:
- भारत सरकार ने कुछ इलाकों को स्वायत्तता प्रदान करने के लिए तैयार थी, जैसे कि जम्मू और कश्मीर। इस इलाके को विशेष स्थान प्रदान किया गया और इसके विलय की प्रक्रिया को अद्यतित किया गया।
क्षेत्रीय एकता और अखण्डता का महत्व:
- विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल ने क्षेत्रीय एकता और अखण्डता के महत्वपूर्ण चुनौतियों को सामना करने को मजबूर किया।
सहमति पत्र ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’:
- अधिकांश राजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में शामिल होने की सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए और इसे ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ कहा गया।
रियासतों का विलय:
- जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर, और मणिपुर की रियासतों का विलय अन्य रियासतों की तुलना में कठिन साबित हुआ, लेकिन सभी ने अपने इरादे को पूरा किया और एक एक मिल कर देश की एकता को सबसे ऊपर रखा।
हैदराबाद का विलय
Merger of Hyderabad
निजाम और समझौता:
- हैदराबाद के शासक को ‘निजाम’ कहा जाता था और उन्होंने भारत सरकार के साथ नवंबर 1947 में एक साल के लिए यथास्थिति बहाल रहने का समझौता किया।
किसानों और महिलाओं का आंदोलन:
- कम्युनिस्ट पार्टी और हैदराबाद कांग्रेस के नेतृत्व में किसानों और महिलाओं ने निजाम के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इसका मुख्य उद्देश्य निजाम के त्यागने और हैदराबाद को भारत से मिलाने का था। इस आंदोलन के समर्थन में लोगों ने उत्कृष्ट साहस और समर्पण दिखाया। इसके जवाब में निजाम ने एक अर्द्ध-सैनिकबल (रजाकार) को बनाया, जिसने आंदोलन को दबाने के लिए प्रयास किया।
सैनिक कार्यवाही:
- सितंबर 1948 को भारत सरकार ने हैदराबाद की त्वरित सैनिक कार्यवाही का निर्णय लिया और निजाम को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। इस प्रकार हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय हो गया।
मणिपुर रियासत का विलय
Merger of the princely state of Manipur
सहमति पत्र:
- मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता बनी रहे, इसको लेकर महाराजा बोधचंद्र सिंह व भारत सरकार के बीच विलय के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए।
चुनाव और निर्वाचन:
- जनता के दबाव में निर्वाचन करवाया गया और इस निर्वाचन के फलस्वरूप संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ।
नोट: मणिपुर भारत का पहला भाग है जहाँ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाकर जून 1948 में चुनाव हुए।
राज्यों का पुनर्गठन / Reorganization of states
प्रारंभिक आवश्यकता:
- स्वतंत्र भारत में, राष्ट्र के निर्माण के प्रणालीकरण की मांग के साथ-साथ, भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता के आधार पर राज्यों के गठन की बात हुई। यह मुद्दा पहली बार कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन (1920) में उठाया गया था।
शानदार पुनर्गठन:
- औपनिवेशिक शासन के समय प्रांतों का गठन प्रशासनिक सुविधा के अनुसार किया जाता था, जिससे कि एक सामंजस्यपूर्ण और सुचनात्मक प्रणाली होती थी। हालांकि, स्वतंत्र भारत में भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता के आधार पर राज्यों के गठन की मांग हुई। इस नए परिप्रेक्ष्य में, कई नए राज्यों का निर्माण हुआ और एक नए भूगोलिक और सांस्कृतिक भिन्नता वाले नागरिकों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया।
नागपुर अधिवेशन (1920):
- 1920 में हुए नागपुर अधिवेशन में, कांग्रेस ने पहली बार भाषा के आधार पर प्रांतों के गठन का मुद्दा उठाया। इससे पहले, औपनिवेशिक शासन के कारण प्रांतों की रचना प्रशासनिक सुविधा के अनुसार होती थी। इस अधिवेशन ने भाषाई और सांस्कृतिक संप्रेषण को ध्यान में रखकर नए राज्यों के गठन की बात को पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण बना दिया।
सुधार और नए राज्यों का निर्माण:
- इस आधार पर, भाषाओं के सांस्कृतिक सामंजस्य और लोगों की अधिकांशता की आदर्श भूमिका ने नए राज्यों का निर्माण किया। यह परिप्रेक्ष्य स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संघ के 28 राज्यों की नींव रखने वाले राज्यों के पुनर्गठन की दिशा में बहुत योजनाओं की शुरुआत का कारण बना।
अंतर्राष्ट्रीय सम्बंध:
- भारतीय संघ में भूगोलिक और सांस्कृतिक विविधता एक महत्वपूर्ण संसाधन है जो दुनिया के अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों में नई दिशा देने का कारण बना है।
संसकारण और एकीकरण:
- राज्यों के पुनर्गठन ने भाषाओं, सांस्कृतिक समृद्धि, और विविधता को बढ़ावा दिया है, जिससे सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण का कारण बना है।
समाप्त रूप:
- इस प्रकार, राज्यों के पुनर्गठन ने भारतीय संघ के नागरिकों को समृद्धि, सामरिकता, और सांस्कृतिक सामंजस्य के साथ एक साथ जीने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है।
आंध्र प्रदेश राज्य का निर्माण
Creation of the state of Andhra Pradesh
तेलगुभाषी लोगों की मांग:
- भारतीय स्वतंत्रता के बाद, एक समृद्ध और समरस भारत की दिशा में कदम बढ़ाने के सपने ने तेलगुभाषी लोगों को एक नए राज्य की मांग करने पर आमादा किया। इस समय में मद्रास प्रांत में तेलुगुभाषी इलाकों का सामाजिक और आर्थिक विकास ठंडा पड़ गया था और लोगों ने एक अलग राज्य की मांग की।
पोट्टी श्री रामुलू की मृत्यु:
- इस मांग को हकीकत में बदलने के लिए कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता, पोट्टी श्री रामुलू ने भूख हड़ताल का साहस
- पोट्टी श्री रामुलू एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता थे जिन्होंने आंध्र प्रदेश के लिए अलग राज्य की मांग के समर्थन में 56 दिनों तक भूख हड़ताल की।
- उनकी भूख हड़ताल के मुख्य बिंदु:
- आंध्र प्रदेश के लिए अलग राज्य की मांग: तेलुगु भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य बनाने के लिए उन्होंने आंदोलन शुरू किया।
- 56 दिनों तक चली भूख हड़ताल: उनकी भूख हड़ताल 15 दिसंबर 1952 से 16 फरवरी 1953 तक चली।
- मृत्यु: 16 फरवरी 1953 को उनकी भूख हड़ताल के दौरान मृत्यु हो गई।
- प्रभाव: उनकी मृत्यु ने केंद्र सरकार को आंध्र प्रदेश का गठन करने के लिए मजबूर किया।
राज्य का नामकरण:
- श्री रामुलू की मृत्यु के परिणामस्वरूप, सरकार ने दिसम्बर 1952 में तेलुगुभाषी इलाकों को एक नए राज्य के रूप में अलग करने का ऐलान किया। इस तरह, भारतीय संघ में भाषा के आधार पर पहला राज्य आंध्र प्रदेश गठित हुआ।
- आंध्र प्रदेश का नाम इस राज्य के स्थानीय भाषा तेलुगु से प्राप्त हुआ, जिसे उन्नति, समृद्धि, और सामरिक सामंजस्य की दिशा में एक उदाहरण माना जा सकता है।
इस रूप में, आंध्र प्रदेश राज्य का निर्माण एक अद्वितीय सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन के माध्यम से हुआ और उसने देश में एक समृद्ध और सामरस राष्ट्र की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया।
राज्य पुनर्गठन आयोग ( SRC )
State Reorganization Commission (SRC)
1953 में, भारतीय सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और राज्यों के बीच सीमा बंटवारे के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) की स्थापना की। इस आयोग का उद्देश्य था भारतीय संघ को और सशक्त बनाना, सामाजिक एकता को बढ़ावा देना, और राष्ट्र के समृद्धि के लिए राज्यों के बीच समस्याओं का समाधान करना।
आयोग की प्रमुख सिफारिशे
Major recommendations of the Commission
राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) ने अपने सुझावों के माध्यम से राष्ट्र को एक औरता, सामंजस्यपूर्ण, और विकसित दिशा में बढ़ने की पथराह प्रस्तुत की। इसे आकर्षक और व्यवस्थित रूप से व्यक्त करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए:
त्रिस्तरीय राज्य प्रणाली को समाप्त करें:
- SRC ने प्रस्तुत किया कि त्रिस्तरीय (भाग ABC) राज्य प्रणाली को समाप्त करके एक सरल और एकीकृत राज्य प्रणाली को लागू किया जाए। यह समाधान सामजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में सहारा प्रदान करेगा।
केवल 3 केन्द्रशासित क्षेत्रों को छोड़कर:
- SRC ने सुझाव दिया कि सिर्फ 3 केन्द्रशासित क्षेत्रों को (अंडमान और निकोबार, दिल्ली, मणिपुर) छोड़कर बाकी के केन्द्रशासित क्षेत्रों को उनके नजदीकी राज्यों में मिला दिया जाए, जिससे विकास में सामंजस्य बना रहेगा।
राज्यों की सीमा का निर्धारण भाषा के आधार पर:
- SRC ने सुझाव दिया कि राज्यों की सीमा का निर्धारण उन भाषाओं के आधार पर होना चाहिए जो वहाँ के लोगों की भाषा हैं। इससे सीमा तय करने में सामंजस्य बना रहेगा और लोगों की सहजता होगी।
इन सुझावों के प्रस्तुत करने से, SRC ने एक सामंजस्यपूर्ण भविष्य की दिशा में अग्रसर होने का मार्ग दिखाया और राष्ट्र को एक मजबूत और एकत्रित दृष्टिकोण में साझा करने का समर्थन किया।
परिणाम / Result
राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) की रिपोर्ट के अधार पर, संसद ने 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया, जिससे देश को 14 राज्यों एवं 6 संघ शासित क्षेत्रों में बाँटा गया। इस स्थिति के द्वारा, आयोग ने एक नए और सुदृढ़ भारत की नींव रखी और कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण परिणाम प्राप्त किए:
संघ शासित क्षेत्र जो बाद में राज्य बने
Union territories which later became states
मिजोरम:
- पहले संघ शासित क्षेत्र में स्थित, आज मिजोरम ने अपने अद्वितीय सांस्कृतिक समृद्धि और हिल्स की शान्ति के लिए अपनी पहचान बना ली है।
- इसका राजनैतिक और सांस्कृतिक विरासत मिजोरम को एक विशेष भूभाग बना देता है, जिसमें लोगों का समर्पण अपने स्वदेश के प्रति सुशीलता की एक अद्वितीय रूपरेखा का हिस्सा है।
मणिपुर:
- संघ शासित क्षेत्र से अब एक समृद्धि भरा और सांस्कृतिक धरोहर से भरा हुआ राज्य बन गया है मणिपुर।
- यहां की अनूठी बौद्ध और हिन्दू सांस्कृतिक सृजनात्मकता और विविधता में सुप्रसिद्ध है, जिसने इसे एक सांस्कृतिक केंद्र बना दिया है।
त्रिपुरा:
- जब से इसने संघ शासित क्षेत्र को छोड़कर एक स्वतंत्र राज्य बना, त्रिपुरा ने अपनी आर्थिक विकास और प्राकृतिक सौंदर्य में तेजी से विकसित होने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
- यहां के पुरातात्विक स्थलों और वन्यजन विविधता ने इसे पर्यटन का एक आदर्श स्थान बना दिया है।
गोवा:
- भारतीय समुद्र तट पर स्थित गोवा, संघ शासित क्षेत्र से बाहर निकलकर एक सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल और सांस्कृतिक केंद्र बन गया है।
- यहां की अद्वितीय पोर्चुगीज और हिन्दू सांस्कृतिक भिन्नता ने इसे एक सशक्त और सुरक्षित समुदाय के साथ एकता स्थापित की है।
इस प्रकार, इन राज्यों का संघ शासित क्षेत्र से बाहर निकलकर एक सशक्त, समृद्धि से भरा और सांस्कृतिक विविधता से युक्त भविष्य बना है।
आशा करते है इस पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!
Best Notes & Questions
Class 10 Hindi Model Paper NCERT |CBSE |RBSE | UP Board | MP Board | Bihar Board |Haryana Board कक्षा 10वीं के छात्रों के लिए है.
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Author: NCERT
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