NCERT Class 12 Biology नोट्स Chapter 1 – (जीवों में जनन ) Reproduction in Organism

♦ जीवन अवधि (जीवनकाल)

किसी जीव के जन्म से लेकर उसकी प्राकृतिक मृत्यु तक अवधि को उस जीव का जीवनकाल कहते हैं। प्रत्येक जाति के जीवों में जीवन अवधि अलग-अलग होती हैं जो उस जाति का विशिष्ट गुण हैं।

जैसे :-

क्रम संख्याजीवजीवनकाल
1.बरगद का वृक्ष200 वर्ष
2.गेहूँ का पादप6 महिना
3.कछुआ100-150 वर्ष
4.तोता140 वर्ष
5.कौआ15 वर्ष
6.तितली1-2 सप्ताह
7.हाथी75 वर्ष
8.कुत्ता15 वर्ष
  • ⇒ जीवन अवधि चाहे कितनी भी हो परन्तु प्रत्येक जीवन की मृत्यु निश्चित हैं।
  • ⇒ जीवों का जीवनकाल निम्नलिखित क्रमानुसार होता हैं।
  • ⇒ जीवन का जन्म ® वृद्धि तथा विकास ® परिवक्वन ®जनन ® मृत्यु
  • ⇒ कुछ ऐसे भी जीव हैं जिनकी प्राकृतिक मूत्यू नहीं होती है। जैसे – एककोशिकीय जीव (अमीबा व जीवाणु) इन जीवों को अमर कहा जाता है क्योंकि एककोशिकीय जीव की वृद्धि के साथ-साथ विभाजित होकर नए जीवों को जन्म देते हैं।

♦ जनन

  • ⇒ प्रत्येक जाति में अपने ही समान नए जीव उत्पन्न करने की क्षमता पाई जती है, इस प्रक्रिया को जनन कहते हैं।
  • ⇒ सजीवों का प्रमुख लक्षण जनन हैं।
  • ⇒ जनन एक जैविक क्रिया हैं जिसमें एक विकसित जीव अपने ही समान नए जीव को जन्म देता है। विकसित जीव जनक जबकि नया नवीन जीव संतति कहलाती है।

♦ जनन का महत्व –

  • ⇒ जनन से जाति की निरंतरता बनी बेहती है ताकि वह जाति विलुप्त ना हो।
  • ⇒ जनन द्वारा जीव अपने वंश या जाति के अस्तित्व की बनाए रखता है।
  • ⇒ लैंगिक जनन द्वारा जीवों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है जो कि जीवों के विकास में सहायक है।

♦ जनन के प्रकार :-

  • सजीवों में जनन मुख्यतः दो प्रकार का होता हैं।
  • 1. अलैंगिक जनन
  • 2. लौंगिक जनन

1. अलैंगिक जनन – इस जनन में केवल एक ही प्राणी भाग लेता है अर्थात एक कोशिका का योगदान होता हैं।
⇒ इस प्रकार के जनन में सभी समसूत्री विभाजन होते हैं।
⇒ इस प्रकार के जनन में युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन नहीं होता हैं।
⇒ इस प्रकार के जनन में उत्पनन संतति आकार व आनुवांशिक रूप में जनक के समान होती है, जिन्हें ‘क्लोन’ कहते हैं।
⇒ यह जनन तीव्र गति से होता है।
⇒ यह जनन निम्न श्रेणी के जीवों में पाया जाता हैं।
⇒ उच्च कोटि के अकशेरूकी व कशेरूकी प्राणियों में यह जनन नहीं पाया जाता हैं लेकिन उच्च कोटि के पादपों में अलैंगिक जनन की एक विधि पाई जाती है, जिसे कायिक जनन कहते हैं।
⇒ अलैंगिक जनन निम्नलिखित जीवों में पाया जाता हैं।
⇒ जैसे :- जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, शैवाल इत्यादि।

1. विखण्डन (Fission) कोशिका विभाजन:-

  • इसके अन्तर्गत जब जनक कोशिका दो या दो से अधिक समान आकार की संतति कोशिकओं में बंट जाती है तब इस प्रक्रिया को विखण्डन कहते है।
  • विखण्डन दो प्रकार से हो सकता है:-
  • (i) द्विविखण्डन             (ii) बहुविखण्डन

(i) द्विविखण्डन:- इसके अन्तर्गत एक जनक कोशिका दो समान भागों में बँट जाती है जिन्हें संतति कोशिकाऐं कहते है।
प्रत्येक संतति कोशिका पोषण प्राप्त कर आकार में वृद्धि कर पुन: जनक के समान व्यस्क बन जाती है।
उदा:- अमीबा तथा पैरामीशियम।

(ii) बहुविखण्डन:-
इस प्रकार के अलैगिक जनन एक जनक कोशिका द्वारा अनेक संततियों को उत्पन्न किया जाता है।
उदा:- प्लाज्मोडियम।

2. खण्डन

  • इस प्रकार के जनन में जनक कोशिका  दो या दो से अधिक खण्डों में टूट जाती है, ये खण्ड समान या असमान हो सकते हैं।
  • ⇒ प्रत्येक खण्ड द्वारा नए जीव का पुन: निर्माण होता है।
  • ⇒ खण्डन की प्रक्रिया पादप के पुराने भागों के सड़ने गलने व प्राकृतिक मृत्यु के द्वारा होती है।
  • ⇒ जैसे:- ब्रायोफाइटा (रिक्सिया, मार्केन्सीया)
  • ⇒ शैवाल  जैसे:- स्पइरोगाइरा में यांत्रिक क्षति हों जाने से खण्डन की प्रक्रिया शुरु हो जाती है।

3. मुकुलन

  • ⇒ इस प्रकार के अलैंगिक जनन जीवों में छोटी-2 कालिकाएँ या अतिवृद्धि उत्पन्न होती है जिसे मुकुल कहते है। मुकुल बनने की क्रिया, मुकुलन कहलाती है।
  • ⇒ प्रारम्भ में यह मुकुल जनक से जुड़ा रहता है लेकिन बाद में अलग होकर नए जीव का निर्माण करता है। उदा:- हाइड्रा व यीस्ट।
  • ⇒ कई बार एक से अधिक मुकुल एक के ऊपर एक विकसित होते चले जाते है तब इसे टोरूला अवस्था भी कहते है।

मुकुलन दो प्रकार से होता है-
(1) बर्हिजात मुकुलन :- इसके अन्तर्गत मुकुल का निर्माण प्राणी शरीर के बाहर होता है। उदा:- यीस्ट, हाइड्रा, साइफा।

(2) अर्न्तजात मुकुलन :- इसमें मुकुल का निर्माण प्राणी शरीर के अंदर होता है। उदा:- स्पंजिला

4. बीजाणु
अधिकांश कवक तथा शैवालों में विशेष गोलाकार सरंचनाओं के द्वारा अलैंगिक जनन होता है, जिन्हे बीजाणु कहते है।
बीजाणु सूक्ष्म, एककोशिकीय, एककेन्द्रकीय, पतली भित्ति वाली गोलाकार संरचनाएँ होती है।

  • बीजाणु दो प्रकार के होते है:-
  • (1) चल बीजाणु        
  • (2) अचल बीजाणु

चल बीजाणु में कशाभिकाएँ पाई जाती है जो चलन अंग का कार्य करती है।
उदा:- क्लैमिडोमोनास

अचल बीजाणु गतिहीन होते है क्योंकि इसमें कशाभिकाएँ नहीं पाई जाती है।
उदा:- यूलोथ्रिक्स।

बीजाणुओं का निर्माण बीजाणुधानी में होता है।

5.  कोनिडिया


ये कवकसूत्र पर पाए जाने वाले अचल बीजाणु है जो बर्हिजात अवस्था में बनते है।
कवकतन्तु के सिरे पर छोटी-छोटी गोलाकार संरचनाएँ श्रृंखलाओं के रूप में बनती है, जिन्हे कोनिडिया कहते है।
जिस कवकतन्तु पर कोनिडिया बनते है उन्हें कोनिडियमधर कहते है।
वायु द्वारा कोनिडिया वातावरण में बिखर जाते है और अनुकूल परिस्थितियों में यह अंकुरित होकर नए कवक तन्तु का निर्माण करते है।
उदा:- पेनिसीलियम।
जब बीजाणु बीजाणुधानियों में बनते है तब ये अर्न्तजात कहलाते है।
उदा:- म्युकर व राइजोपस।

  • 6. जैम्युल


यह एक प्रकार अर्न्तजात मुकुलन है जो प्रतिकुल परिस्थितियों में होता है।
इसके अन्तर्गत जन्तु शरीर को आध कोशिकाएँ रक्षात्मक खोल के अन्दर छोटे-छोटे पिण्डों में बदल जाती है, जिन्हे जैम्युल कहते है।
जब अनुकूल परिस्थितियाँ आती है तब प्रत्येक जैम्युल से एक युवा प्राणी बनकर (व्हॉल से) खोल से बाहर आता है। उदा:- स्पंजिला।
इस प्रकार एक स्पंजिला प्राणी से कई संख्या में नए जीवों का निर्माण हो जाता है।

NCERT Class 12 Biology Handwritten Notes PDF in Hindi
जीव विज्ञान कक्षा 12 नोट्स pdf RBSE
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 नोट्स
जीव विज्ञान कक्षा 12 नोट्स PDF
Class 12 Biology Chapter 1 Notes in Hindi PDF Download
जीव विज्ञान कक्षा 12 नोट्स 2023 PDF Download
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 नोट्स
बायोलॉजी कक्षा 12 अध्याय 1 PDF

7. कायिक प्रवर्धन

  • पादप के कायिक भाग जैसे जड़, तना, पत्ती, कालिका आदि से नए पादप बनने की क्रिया कायिक प्रवर्धन कहलाती है।
  • कायिक प्रवर्धन दो प्रकार से होता है।
  • (i) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन
  • (ii) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन

(i) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन :- इसके अन्तर्गत पादप शरीर का कोई भी कायिक भाग जब अलग हो जाता है तब यह अनुकूल परिस्थितियों में नए पादप का निर्माण करता है।
पौधों के कायिक भाग को प्रवर्ध कहते है।
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन निम्नलिखित प्रकार से होता है।

1. जड़ो द्वारा :- कुछ पौधों की जड़ो में अपस्थानिक कलिकाओं को उत्पन्न करने की क्षमता पाई जाती है ये कलिकाएँ सक्रिय होकर पुन: नए पौधो को जन्म देती है। 
उदा:- शकरकंद, शतावर, डहेलिया

2. तने द्वारा :- इसके अन्तर्गत पौधो के रूपांतरित तने विकसित होकर नए पौधो को बनाते है।
इन रूपान्तरित तनों पर पाई जाने वाली अपस्थानिक कालिकाएँ तथा पर्व संधियों से नए पादपों का निर्माण होता है।

कुछ रूपान्तरित तने निम्नलिखित है।

  • (1) भूमिगत तना:-
  • A. प्रकन्द :- हल्दी, अदरक।
  • B. कन्द :- आलू।
  • C. शल्ककंद :- प्याज, लहसनु।
  • D.  धनकंद :- जमीकंद, अरबी।
  • (2) अर्द्धवायवीय तने:
  • A. ऊपरी भूस्तारी :- दूबघास।
  • B. अन्त: भूस्तारी:- पोदीना।
  • C. भूस्तारी :- स्ट्रॉबेरी।
  • D.  भूस्तारिका :- जलकुम्भी।

उपरोक्त पादपों की तनों की पर्वसंधियों से मूल विकसित होती है और ऊपरी वायवीय प्ररोह का निर्माण होता है।

  • (3) पत्ती द्वारा :- कुछ पादपों की जैसे:- पत्थरचट्टा (ब्रायोफिलम), बिगोनिया में (ब्रोयोफिलम) पत्तियों के किनारो से जबकि बिगोनिया में पर्ववृन्त तथा शिराओं की सतह सेअपस्थानिक कलिकाएँ निकलती है जो नए पादपों का निर्माण करती है।

(4) पत्रप्रकन्द (बुलबिल) द्वारा 

:- इसके अन्तर्गत पादप में पुष्प की जगह छोटी माँसल कलिकाएँ उत्पन्न हो जाती है। यह भोजन संग्रह करके मोटी होकर फूल जाती है, जिन्हे पत्रप्रकन्द कहते है।
यह कायिक जनन में भाग लेती है।
जब ये पत्रप्रकन्द जनक के पौधे से भूमि पर गिर जाते है तब अपस्थानिक जड़ो का निर्माण कर नया पौधा बनाते है।
उदा:- अगेव।

  • बंगाल का आतंक :-
  • बंगाल का आतंक जलीय पादप जलकुंभी को बताया गया है।
  • जलकुंभी को वॉटर हायसिंथ (आइकार्निया) भी कहते है।
  • यह पादप तेजी से कायिक प्रवर्धन करने की क्षमता रखता है, इस गुण के कारण यह विनाशकारी साबित हुआ है।
  • यह कम समय में पूर्ण जलाशय पर फैल जाता है है व जल की O2 को काम में लेता है, इस कारण जल में O2 की कमी होने लगती है जिससे जल में जलीय जीव मरने लगते है।
  • यह पादप जलमार्गों का अवरूद्ध करके जहाजों के मार्ग में बाधा बन जाते है।
  • उपरोक्त सभी कारणों से इस पादप को “बंगाल का आतंक” कहा जाता है।
  • इसे पहले बंगाल के जलाशयों में सुन्दर फलों के कारण समावेशित किया था लेकिन यह एक हानिकारक जलीय खरपतवार बन गया है जो न केवल बंगाल बल्कि सम्पूर्ण भारत के जलाशयों में भी फैल गया है।

अलैंगिक जनन का महत्त्व:-

  • 1. ऐसे पौधे जिनमें बीज का निर्माण नहीं होता है वे केवल कायिक प्रवर्धन द्वारा ही जनन करते है उदा:- केला, गन्ना, आलू, अनानास।
  • 2. यह जनन की तेज विधि है इस विधि से कम समय में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
  • 3. अलैंगिक जनन द्वारा किसी प्रजाति व वंश को अच्छे लक्षणों को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

लैंगिक जनन :-

  • इस जनन में दो जनक अर्थात् नर व मादा प्राणी का योगदान होता है।
  • इस जनन में दो जनक अर्थात् नर व मादा प्राणी का योगदान होता है।
  • नर में नरयुग्मको व मादा में मादायुग्मको का निर्माण होता है।
  • ये दोनों युग्मक आपस में संयोजित होकर युग्मनज का निर्माण करते है जो विभाजन करके नए जीव का निर्माण करता है।
  • यह जनन अलैगिक जनन की तुलना में जटिल व धीमी गति वाला है।
  • इस प्रकार के जनन में अर्द्धसूत्रण युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन क्रियाएँ होती है।
  • इस जनन में जीन विनिमय की क्रिया से संतति में नए गुणों का विकास होता है। यह संतति अपने जनकों से भिन्न होती है इस प्रकार लैगिक जनन जैव विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अलैंगिक  लैंगिक जनन में अन्तर:-

अलैंगिक जननलैंगिक जनन
इसमें केवलएक ही प्राणी का योगदान होता है।इसमें दो प्राणियों का योगदान होता है।
इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन अनुपस्थित होती है।इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन उपस्थित होता है।
इसमें युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन क्रियाएँ नहीं होती है।इसमें युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन क्रियाएँ होती है।
इसमें संतान आनुवांशिक रूप से जनक के समान है।इसमें संतान आनुवांशिक रूप में जनक से भिन्न होती है।
यह जनन की तेज व सरल विधि है।यह जनन की धीमी व जटिल विधि है।
यह कायिक कोशिका में पाया जाता है।यह जनन कोशिका में पाया जाता है।
  • जीवनचक्र की अवस्थाएँ :-
  • प्रजनन के संबंध में प्राणियों के जीवनचक्र में तीन अवस्थाएँ होती है जो कि निम्न है-
  • 1. किशोर अवस्था
  • 2. प्रजनन अवस्था
  • 3. जीर्णा अवस्था

(i) किशोर अवस्था:-
यह किसी प्राणी के जीवनचक्र का पूर्व प्रजनन काल है। इस काल में प्राणी का तेज गति से विकास होता है। पादप में यह अवस्था कायिक अवस्था कहलाती है। जबकि जन्तु में यह अवस्था किशोर अवस्था कहलाती है।

(ii) प्रजनन अवस्था:-
इसके अन्तर्गत जीव अपनी प्रजनन क्षमता विकसित कर लेता है।
इस अवस्था में जीवों की वृद्धि धीमी गति से होती है।
प्रजनन अवस्था में जीवों में लैंगिक अंगों का विकास होने लगता है व परिपक्वता आती है।
इस अवस्था को दो भागों में बाँटा गया है।
I. प्रादप प्रजनन
II. जन्तु प्रजनन

I. प्रादप प्रजनन:-
लैंगिक दृष्टि से दो प्रकार के पुष्पधारी पादप होते है।
1. मानोकर्पिक              2. पॉलीकर्पिक

  • 1. मोनोकार्पिक:-
  • इस प्रकार के पादप के जीवनकाल में एक बार पुष्प आते है। फूल आने के पश्चात् फल बनता है। फल बनने के बाद इनकी मृत्यु हो जाती है।
  • उदा:- चावल, गेहूँ, गाजर, मूली
  • कुछ बहुवर्षिय पादप भी मोनोकर्पिक हो सकते है।
  • जैसे:- (A) कुछ बास की प्रजातिया।
  • जैसे:- मेलोकाना बेम्बसाइडी 48 से 100 वर्ष तक कायिक अवस्था में रहती है तथा एक बार पुष्प व फल उत्पन्न करती है और मृत हो जाती है।
  • (B) इसी प्रकार नीलाकुरेंजी (स्टॉबिलैन्थस कुन्यिआना) पादप 12 वर्ष में एक बार पुष्प उत्पन्न करता है।
  • 2. पॉलीकर्पिक:-
  • ये बहुवर्षीय पादप है जो परिपक्व होने पर एक विशेष मौसम में पुष्प धारण करते है।
  • जैसे:- आम, सेव, अंगुर।
  • II.  जन्तु प्रजनन
  • प्रजन काल के आधार पर जन्तु दो प्रकार के होते है।
  • i. मौसमी प्रजनक          ii. सतत् प्रजनक
  • i. मौसमी प्रजनक:-
  • – इस प्रकार के जन्तु वर्ष के एक निर्धारित काल में प्रजनन करते है।
  • – इन्हें ऋतुनिष्ठ प्रजनक भी कहते है
  • उदा:- मेंढ़क, छिपकली, अधिकतर पक्षी।
  • ii. सतत् प्रजनक:-
  • ये जन्तु लैंगिक परिपक्वता के काल में किसी भी समय प्रजनन कर सकते है।
  • उदा:- दुधारू पशु, चूहे, खरगोश
  • जन्तु अपने प्रजनन के दौरान निरंतर चक्रीय परिवर्तन दर्शाते है।

ये चक्र निम्न है
1. रजचक्र
2. मदचक्र

1. रजचक्र :-
यह चक्र प्राइमेट स्तनधारी मादाओं (चिपोंजी, बंदर, मनुष्य) में रजोदर्शन से लेकर रजोनिवर्ती तक का चक्र जिसकी लयबद्धता प्रत्येक महीने में होती है।

2. मदचक्र (ओएस्ट्रस चक्र) :-
यह नॉन प्राइमेट स्तनधारी मादाओं (गाय, बकरी, भैस, बिल्ली) में पाया जाता है।
यह वर्ष में एक या दो बार होता है।
इस चक्र के दौरान एक इस्ट्रंस काल पाया जाता है।
जब मादा रक्त में एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्रावण अत्यधिक बढ जाता है तब इसे इंस्टास काल कहते है।
इस काल में नर मादा के सम्पर्क में आता है यह काल अलग-अलग जन्तुओं में कुछ घंटो से लेकर कुछ दिनों का होता है।

3. जीर्णावस्था :-
यह प्रजनन के पश्चात् का समय है जिसमें जीवों की प्राकृतिक मृत्यु होती है।
इस अवस्था में जीव कार्यकी व संरचनात्मक रूप से नष्ट हो जाता है।
लैंगिक जनन की घटनाएँ:-

निषेचन पूर्व घटना :-
निषेचन पूर्व घटनाओं को दो भागों में बाँटा गया है।

  • (1) युग्मक जनन:-
  • जीवों में युग्मकों के निर्माण की प्रक्रिया युग्मक जनन कहलाती है।
  • युग्मक सदैव अगुणित होते है।
  • युग्मक तीन प्रकार से हो सकते है। (आकार व संरचना के आधार पर)
  • (i) सम युग्मकी
  • (ii) असम युग्मकी
  • (iii) विषम युग्मकी

(i) सम युग्मकी:-
जब युग्मक आकार व सरंचना में समान हो तब इन्हें समयुग्मकी कहते है।
उदा:- क्लोडोफोरा, युलोथ्रिक्स।

(ii) असम युग्मकी:-
जब युग्मक संरचना में समान पर आकार में अलग-अलग हो तब इन्हे विषम युग्मकी कहते है।
उदा:- स्पाइरोगायरा।

(iii) विषम युग्मकी:-
जब युग्मक आकार व संरचना में असमान हो तब इन्हें विषम युग्मकी कहते है।
उदा:- मानव, फ्युकस।

2) युग्मक स्थानान्तरण : युग्मक निर्माण पश्चात् नर व मादा युग्मक एक-दूसरे के समीप आते है ताकि निषेचन क्रिया सम्पन्न हो सकें।
⇒ समयुग्मकों में दोनों युग्मक गतिशील / गमनशील होते है। और एक-दूसरे को आकर्षित करते है।
⇒ जबकि विषमयुग्मकी में एक युग्मक गतिहीन होता है और स्थिर होता है, जिसे मादा युग्मक कहते है जबकि नर युग्मक गतिशील होते हैं।
⇒ ब्रायोफाइट व टेरिडोफाइट में अण्डाणु गतिहीन होते हैं जो स्त्रीधानी में उत्पन्न होते है। जबकि पुधानी पुमणू का निर्माण करती है जो गतिशील होतें हैं।
⇒ ब्रायोफाईट व टेरिडोफाईट में निषेचन के लिए जल की आवश्यकता होती है। परिवहन के दौरान नर युग्मकों की हानि का पूरा करने के लिए नर युग्मक, मादा युग्मकों की तूलना मे कई हजार गुना संख्या में उत्पन्न होते है।
⇒ पुष्पधारी पादपों में नर युग्मक परागकणों में होते हैं
⇒ ये परागकण जायांग की वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरित हो जाते हैं। यह क्रिया परागण कहलाती हैं। इसके पश्चात् निषेचन होता है।

  • ⇒ परागण दो प्रकार का होता है।
  • (i) स्वपरागण         (ii) परपरागण
  • ⇒ स्वपरागण द्विलिंगी पुष्पों में तथा परपरागण एकलिंगी व द्विलिंगी पुष्पों में हो सकता हैं।
  • ⇒ परागकणों का स्थानांतरण वायु, जल व कीटों के माध्यम से होता है।

♦ निषेचन

  • ⇒ नर व मादा युग्मकों के संलयन से युग्मनज बनने की क्रिया को निषेचन कहते है इसे युग्मक संलयन भी कहा जाता है।
  • ⇒ निषेचन दो प्रकार का होता है –
  • (i) बाह्य निषेचन  (ii) आंतरिक निषेचन

(i) बाह्य निषेचन इस प्रकार का निषेचन मादा प्राणी शरीर के बाहर होता है
⇒ नर व मादा प्राणी अपने-अपने युग्मकों को जल में छोडते है, ये युग्मक जल में निषेचन की क्रिया करते हैं।
⇒ बाह्य निषेचन के लिए जलीय माध्यम आवश्यक है। उदाहरण मछलियाँ, उभयचर तथा अकशेरूकी प्राणियों में बाहर निषेचन पाया जाता हैं। 
⇒ इस प्रकार के निषेचन की कमी यह है कि यहाँ पर बनने वाली संततियों की शिकारियो से तब तक बहुत खतरा होता है जब तक ये पूर्ण विकसित नहीं हो जाते हैं।

(ii) आन्तरिक निषेचन इस प्रकार का निषेचन मादा प्राणी शरीर के भीतर होता हैं।

⇒ यह निषेचन सभी स्थलीय जीव, कुछ जलीय जीव, ‘सरीसृप’ शॉर्क, ब्रायोफाहट, टिरिडोफाइट, जिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म (आवर्तबीजी) पादपों में पाया जाता हैं।
⇒ इस निषेचन में बाह्य निषेचन की तुलना से मादा युगमकों की संख्या कम होने से संतति भी कम ही बनती है।
⇒ बीजीय पादपो में अचलनशील नरयुग्मक परागनली से होता हुआ मादा युग्मकों तक पहुँचता है अर्थात् इनमें भी आंतरिक निषेचन पाया जाता है।

निषेचन के पश्चात् घटनाएँ – लैंगिक जनन में निषेचन के पश्चात् होने वाली घटनाओ को निषेचन पश्च घटनाएँ कहते है जिसमें युग्मनज निर्माण के पश्चात् भ्रूण का विकास होता है
⇒ निषेचन पश्च घटनाएँ दो भागों में बँटी हैं –
1. युग्मनज निर्माण 2. भ्रूणोदभव

1. युग्मनज निर्माण –
⇒ युग्मनज हमेशा द्विगुणित होता है।
⇒ बाह्य निषेचन करने वाले जीवों में युग्मनज बाहर तथा आंतरिक निषेचन करने वाले जीवों में युग्मनज मादा शरीर के अन्दर बनता है।
⇒ बहुत से शैवाल व कवक में युग्मनज अपने चारों ओर एक मोटी भित्ति स्त्रावित करता है जिसे निषिक्तांड (ऊस्पोर) कहते है। यह भित्ति युग्मनज को सूखने तथा यांत्रिक क्षति से सूरक्षा प्रदान करती हैं।
⇒ विश्राम अवस्था के बाद युग्मनज में अर्द्धसूत्री विभाजन होता है जिससे अगुणित संतति उत्पन्न होती है जो अगुणित जीवनचक्र में सहायक है।
⇒ बहुत से जीवों में द्विगुणित युग्मनज समसूत्री विभाजन करके द्विगुणित भ्रूण का निर्माण करता है जो द्विगुणित जीवन चक्र की ओर अग्रसर होता हैं।         
⇒ इस प्रकार युग्मनज एक पीढ़ी से दुसरी पीढी के जीव के मध्य एक महत्वपूर्ण योजक कडी का कार्य करता है।
⇒ प्रत्येक लौंगिक जनन करने वाले जीवों का प्रारंभ एक कोशिकीय युग्मनज से होता है।

2. भ्रुणोद्भव – युग्मनज से भ्रुण निर्माण की प्रक्रिया भ्रुणोद्भव कहलाती है इस दौरान युग्मनज में कोशिका विभाजन कोशिका विभेदीकरण होता है।
⇒ युग्मनज समसूत्री  विभाजन करके भ्रूण की वृद्धि में सहायता करता है इसके पश्चात् भ्रूण की Cell विभेदित होकर अंग व तंत्रों का निर्माण करती है।   

 ⇒ भ्रूण विकास एवं भ्रूण उत्पत्ति के आधार पर प्राणियों कों दो श्रेणियों में बाँटा गया हैं।

(1) अण्डप्रजक   (2) सजीवप्रजक

1. अण्डप्रजक :- इन जीवों द्वारा बाह्य वातावरण में निषेचित अण्डे दिए जाते हैं जो कठोर कैल्शियम आवरण से ढके रहते है। ये निषेचित अण्डे के पश्चात् नए शिशु को जन्म देते हैं। मिल्कियत अवधि के पश्चात नवण क्षिामा को जन्म देते है।
जैसे- मेढ़क, पक्षी, छिपकली आदि।

2. सजीव प्रजक :- इसके अन्तर्गत मादा शरीर के भीतर भ्रूण का विकास होता है तथा निश्चित अवधि के पश्चात् नए शिशु का जन्म होता है।
जैसे:- अधिकांश स्थलीय प्राणी।
इन प्राणियों में भूण की सही देखभाल होती है तथा भ्रूण अधिक सुरखित रहने के कारण जीवों जीवित रहने के अवसर बढ़ जाते हैं।
पुष्पधारी पादपों में भ्रूण युग्मनज से विकसित होता हैं। निषेचित बीजाण्ड परिपक्व होकर बीज का निर्माण करता है तथा अण्डाश्य फल में बदल जाता हैं।
फल के बनने पर बाह्यदल, पुमंग, जायांग सब नष्ट हो जाते हैं।

♦ जीवी में लैंगिकता
लैंगिकता के आधार पर जीव अलग-अलग प्रकार के होते है जो कि निम्न है-
i. होमोथेलिक
ii. हिटरोथेलिक
iii. द्विलिंगी पुष्प
iv. एकलिंगी पुष्प
v. उभयलिंगाश्रयी पादप
vi. एकलिंगाश्रयी पादप

i. होमोथेलिक (समथैलसी) –
निम्न श्रेणी के लौंगिक जनन करने वाले प्राणी युग्मक एक ही जनक द्वारा बनते है। इन युग्मकों में सरंचना व आकार के आधार पर भिन्नता नहीं पाई जाती है।
उदाहरण – म्यूकर।

ii. हिटरोथेलिक (विषमथैलसी) –
उच्च श्रेणी के जीव नर व मादा में विभेदित होते है। इनसे बनने वाले युग्मकों में आकार व सरंचना में विभिन्नता पाई जाती है ऐसे जीवों को हिटरोथेलिक जीव कहते है।
उदा.- मानव, फ्युक्स।

iii. द्विलिंगी पुष्प –
जब एक ही पुष्प मे नर व मादा जननांग उपस्थित हो तब ऐसे पुष्प को द्विलिंगी पुष्प कहते है।
उदा.- सरसों, धतुरा, शकरकंद इत्यादि।

iv.  एकलिंगी पुष्प
जब एक पुष्प में नर या मादा जननांग उपस्थित हो अर्थात एक ही जननांग उपस्थित हो तब ऐसे पुष्प को एकलिंगी पुष्प कहते है।
उदा. – मक्का, नारियल, कुकुरबिटेसी कुल के सदस्य। – खीरा, ककड़ी।

v. उभयलिंगाश्रयी पादप (द्विलिंगी Hermaphrodite) –  
जब नर व मादा पुष्प एक ही पादप पर उपस्थित हो तब ऐसे पादप उभयलिंगाश्रयी पादप कहलाता है।
उदा. – मस्का, नारियल कुकुरबिटेसी कुल के सदस्य।
कारा (शैवाल) ® इस शैवाल में नर जननांग पुधानी तथा मादा जननांग स्त्रीधानी एक ही पादप पर पाए जाते है।

vi. एकलिंगाश्रयी पादप  
जब नर व मादा पूष्प अलग-अलग पादपो पर उपस्थित हो तब ऐसे पादप एक लिंगाश्रेयी कहलाते हैं।
जैसे- पपीता, खजूर तथा मार्केन्शिया (ब्रायोफाइट) मार्केन्शिया को लीवरवर्ट भी कहते है। जो कि एक ब्रायोफाइट है।
मार्कन्शिया में जब पादप पर नर जननांग पुधानीधर तथा मादा पादप पर मादा जननांग स्त्रीधानीधर पाया जाता अर्थात इसमें नर व मादा पादप अलग-अलग होते हैं।

सभी उच्च श्रेणी के प्राणी एकलिंगी होते है।
जैसे – कॉकरोच
– निम्न श्रेणी के कुछ प्राणी द्विलिंगी (उभयलिंगी) होते है।
जैसे – केंचुआ, ज़ोक, फीताकृमी (टीनिया सोलियम) स्पंज।

♦ युग्मक निर्माण के दौरान कोशिका विभाजन

  • सभी विषमयुग्मकी प्रजातियों में युग्मक दो प्रकार के होते है, जो नर तथा मादा युग्मक कहलाते हैं।
  • युग्मक का उत्पादन करने वाली जनक कोशिका चाहे अगुणित हो या द्विगुणित युग्मक हमेशा अगुणित ही होते हैं।
  • मोनेरा, कवक, शैवाल व ब्रायोफाइट अगुणित है इनमें युग्मक बनते समय समसूत्री विभाजन होता हैं।
  • टेरिडोफाइट, जिम्नोस्पर्म, एंजियोस्पर्म व अधिकांश प्राणी तथा मनुष्य आदि द्विगुणित संरचना वाले प्राणी है। इनमें युग्मक बनते समय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है।
  • अर्द्धसूत्री विभाजन होने पर बनने वाली संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है,जिन्हें युग्मक कहते हैं।
क्र.सं.जीव का नामजनक Cell में गुणसूत्रोंयुग्मक Cell में गुणस्त्रों की संख्या
1 आफियोग्लोसम (पादप)1260630
2तितली380190
3कुत्ता7839
4आलू4824
5मनुष्य4623
6चूहा4221
7बिल्ली3819
8सेव3417
9प्याज3216
10धान2412
11मक्का2010
12घरेलु मक्खी126
13फल मक्खी84

NCERT Class 12 Biology नोट्स Chapter 1 – (जीवों में जनन ) Reproduction in Organism

20seconds

Please wait...