मुगल साम्राज्य के इतिहास का गहराई से अध्ययन करने के इच्छुक हैं? NCERT के कक्षा 12 के इतिहास के अध्याय “किसान, ज़मींदार, और राज्य: कृषि समाज और मुगल साम्राज्य” Notes
इस अध्याय में मुगलकालीन भारत की जटिल सामाजिक-आर्थिक संरचना के बारे में जानें। इस अध्याय के विस्तृत हिंदी नोट्स के साथ किसानों और जमींदारों की भूमिका, मुगल राजस्व प्रणाली, तथा समाज और कृषि क्षेत्र पर इसका प्रभाव समझें। भारतीय इतिहास की बेहतर समझ के लिए अभी डाउनलोड करें!
इस अध्याय मे हम मुगल शासक व्यवस्था और कृषि , जमीदार , ग्रामीण दस्तकार , पंचायत मुखिया इत्यादि के बारे में जानेंगे ।
Table of Contents
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 8 |
Chapter Name | किसान, ज़मींदार और राज्य |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।
12 Class History Notes In Hindi किसान , जमींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य
इतिहास अध्याय-4: किसान जमींदार और राज्य
एक साझेदारी का आदान-प्रदान / Exchange of a partnership
- गाँव की जनसंख्या: गुजरते सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के दौरान, हिन्दुस्तान में गाँवों में लगभग 85 प्रतिशत लोग निवास करते थे। यहाँ गाँवों की जीवनशैली और उनका संबंध प्रमुख था।
- कृषि का महत्व: कृषि व्यवसाय गाँव के लोगों का मुख्य आधार था। किसान और जमींदार विभिन्न कृषि उत्पादों के उत्पादन में लगे रहते थे।
- सहयोग और प्रतिस्पर्धा: गाँवों में कृषि, किसानों और जमींदारों के बीच एक साझेदारी बनी रहती थी। यहाँ पर उनका सहयोग, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष एक संतुलित संबंध विकसित किया जाता था।
यह साझेदारी गाँव की समृद्धि और समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी, जिससे गाँव की आर्थिक और सामाजिक विकास में सहायक होती थी।
कृषि समाज और मुगल साम्राज्य के ऐतिहासिक स्रोत / Historical sources of agricultural society and Mughal Empire
- मुगल स्रोतों का महत्व: कृषि इतिहास को समझने के लिए हमारे पास मुगल स्रोत व ऐतिहासिक ग्रंथ और दस्तावेज हैं, जो मुगल दरबार की निगरानी में लिखे गए थे। इन स्रोतों से हमें कृषि और समाज की व्यापकता और विकास की जानकारी मिलती है।
- कृषि समाज की मूल इकाई: कृषि समाज की मूल इकाई गाँव थी, जिसमें कई गुना काम करने वाले किसान रहते थे। यहाँ पर मिट्टी को भरना, बीज बोना, फसल की कटाई करना, आदि काम होते थे। गाँव की गतिविधियों को लेकर मुगल स्रोत अहम जानकारी प्रदान करते हैं।
- मुगल काल के प्रमुख स्रोत: 16 वीं और 17 वीं शताब्दी के शुरुआती इतिहास के प्रमुख स्रोत क्रॉनिकल और दस्तावेज़ हैं। इन स्रोतों के माध्यम से हमें कृषि और समाज के विकास के बारे में गहरी समझ मिलती है, जो कि हमारी इतिहासिक जानकारी को बढ़ावा देती है।
इन स्रोतों का अध्ययन कृषि और समाज के विकास के प्रति हमारी समझ को बढ़ावा देता है और हमें हमारे पूर्वजों के जीवन और संस्कृति की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
मुगल साम्राज्य : कृषि और राजस्व / Mughal Empire: Agriculture and Revenue
- कृषि: साम्राज्य का मुख्य स्रोत मुगल साम्राज्य के राजस्व का मुख्य स्रोत कृषि था। यहाँ तक कि राजस्व अभिगमकर्ता, कलेक्टर और रिकॉर्ड रखने वाले भी हमेशा ग्रामीण समाज को नियंत्रित करने की कोशिश करते थे।
- कृषि का महत्व: मुगल समय में कृषि का महत्व अत्यधिक था, क्योंकि यह सम्राटों के राजस्व का प्रमुख स्रोत था। राजस्व के विकास में ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान महत्वपूर्ण था और इसके लिए उन्हें संवेदनशीलता से नियंत्रित किया जाता था।
- नियंत्रण की कोशिश: राजस्व के प्राप्ति के लिए, मुगल साम्राज्य के अधिकारी हमेशा ग्रामीण समाज को नियंत्रित करने का प्रयास करते थे। इसके लिए, उन्होंने कृषि को अपने नियंत्रण में रखने के लिए विभिन्न नीतियाँ और प्रणालियाँ अपनाईं।
- ग्रामीण समाज का महत्व: ग्रामीण समाज मुगल साम्राज्य के लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण था। उनके उत्पादन और योगदान ने साम्राज्य को स्थिरता और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में विकास का अवसर प्रदान किया।
मुगल साम्राज्य के कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को समझने से हमें इस साम्राज्य के सामाजिक और आर्थिक संरचना की समझ में मदद मिलती है।
आइन–ए–अकबरी : मुगल साम्राज्य का ऐतिहासिक दस्तावेज / Ain-e-Akbari: Historical document of the Mughal Empire
- मुगल दरबार का महत्वपूर्ण ग्रंथ: आइन-ए-अकबरी, स्रोतों में सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथों में से एक है। मुगल दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने अकबर के दरबार में इसे लिखा था। यह ग्रंथ मुगल साम्राज्य के विविध पहलुओं को प्रकट करता है।
- दरबार की समृद्ध विवरण: आइन का मुख्य उद्देश्य दरबार के साम्राज्य का एक ऐसा खाका प्रस्तुत करना था, जो सत्ताधारी वर्ग की समृद्धि और समाजिक मेल-जोल को बढ़ाता था। इसमें किसानों के संबंधों का विस्तारित वर्णन भी है, जो उनके जीवन की महत्वपूर्ण पहलूओं को प्रकट करता है।
- पाँच पुस्तकों का संग्रह: आइन पांच पुस्तकों (दफ्तारों) से बना है, जिनमें पहली तीन पुस्तकों में अकबर के शासन के प्रशासन का वर्णन है। चौथी और पांचवीं पुस्तकें (दफ्तरी) लोगों की धार्मिक, साहित्यिक, और सांस्कृतिक परंपराओं से संबंधित हैं। इनमें अकबर के ‘शुभ कथन’ का संग्रह भी है।
- साधारण दस्तावेज का अद्वितीयता: आइन-ए-अकबरी, अपनी सीमाओं के बावजूद, उस अवधि का एक अतिरिक्त साधारण दस्तावेज है। इसमें मुगल साम्राज्य की विशालता और उसके सांस्कृतिक सामर्थ्य की अद्वितीयता को प्रकट किया जाता है।
- आइन-ए-अकबरी मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण रूपरेखा है, जो हमें उस समय के समाज और राजनीतिक वातावरण की समझ में मदद करती है।
अन्य स्रोत :-
- गुजरात, महाराष्ट्र, और राजस्थान के दस्तावेज: सत्रहवीं और अठारहवीं सदियों के गुजरात, महाराष्ट्र, और राजस्थान से मिलने वाले दस्तावेज सरकारी आमदनी का ब्यौरा और विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। ये दस्तावेज साम्राज्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को समझने में मदद करते हैं।
- ईस्ट इंडिया कंपनी के दस्तावेज: ईस्ट इंडिया कंपनी के बहुत सारे दस्तावेज भी हैं, जो पूर्वी भारत में कृषि से संबंधित उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। इन दस्तावेजों से हमें इतिहास, व्यापार, और कृषि के क्षेत्र में एक समृद्ध और विविध दृष्टिकोण प्राप्त होता है।
- आवाज की विविधता: इन स्रोतों के माध्यम से हम देखते हैं कि भारतीय इतिहास में कृषि और आर्थिक विकास की विविधता कितनी अद्भुत और गहरी थी। ये स्रोत हमें समृद्धि और समाज में बदलाव की दास्तानी प्रकट करते हैं।
इन स्रोतों के साथ, हम भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को खोलते हैं, जिसमें कृषि और आर्थिक उन्नति की ऊर्जा और विविधता का उत्साह छिपा है।
किसान ओर उनकी जमीन एव कृषि : मुगल काल के परिप्रेक्ष्य में / Farmers and their land and agriculture: in the perspective of the Mughal period
- भाषाई परिप्रेक्ष्य: मुगल काल के भारतीय फारसी स्रोतों में किसानों के लिए ‘रैयत’ या ‘मुजारियन’ शब्द का उपयोग किया जाता था। साथ ही, हमें ‘किसान’ या ‘आसामी’ शब्द भी मिलते हैं। ये शब्द भारतीय जमींदारी और कृषि से जुड़े समाजिक और आर्थिक प्रतिक हैं।
- रैयत और मुजारियन: ‘रैयत’ या ‘मुजारियन’ शब्द का उपयोग मुगल समय में उन किसानों के लिए किया जाता था जो किसी भूमि का उपयोग करते थे, लेकिन जमींदार या मालिक के निर्देशों के अनुसार। यह शब्द उनकी समाजिक स्थिति और अधिकारों को दर्शाता है।
- किसान और आसामी: ‘किसान’ और ‘आसामी’ शब्द भारतीय समाज में उन किसानों को संदर्भित करते हैं जो अपनी जमींन पर खेती करते थे। ये शब्द उनकी व्यवसायिक और सामाजिक पहचान को दर्शाते हैं, जो कृषि के माध्यम से अपने जीवन का आजीवन आधार बनाते थे।
मुगल काल में भारतीय किसानों की स्थिति और उनके अधिकारों का विश्वसनीय चित्रण, इन भाषाई प्रतिकों के माध्यम से हमें मिलता है। ये शब्द उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रकट करते हैं और उनके सामाजिक और आर्थिक स्थिति की समझ में मदद करते हैं।
सत्रहवीं सदी के किसान: खुदकाश्त और पाही-काश्त / Peasants of the Seventeenth Century: Khudkasht and Pahi-kasht
- खुदकाश्त और पाही-काश्त: इस समय के भारतीय किसानों की चर्चा करते समय, हम पाही-काश्त और खुदकाश्त के दो प्रमुख वर्गों का उल्लेख करते हैं। खुदकाश्त किसान वे थे जो अपने गाँव में ही रहते थे और जिनकी जमीन थी। पाही-काश्त किसान वे थे जो अन्य गाँवों में खेती के ठेके पर जाकर कृषि करते थे।
- आर्थिक अवस्था और संपत्ति: उत्तर भारत के किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर थी। बहुत कम लोगों के पास अधिकांश बैल और हल से ज्यादा संपत्ति नहीं थी। उनकी खेती व्यक्तिगत मिल्कियत पर आधारित थी और उनकी जमीन की खरीद-बिक्री भी अन्य संपत्तियों की तरह होती थी।
- आर्थिक वृद्धि और आबादी: इस समय में खेती में विविधता और लचीलापन के फलस्वरूप, आर्थिक वृद्धि हुई और आबादी धीरे-धीरे बढ़ गई। यहाँ तक कि आर्थिक इतिहासकारों के अनुसार लगभग 5 करोड़ लोगों की आबादी बढ़ गई, जिसमें करीब-करीब 33 प्रतिशत वृद्धि हुई।
- समाजिक असमानता: हालांकि जमीन की कमी नहीं थी, फिर भी कुछ जातियों के लोगों को नीच समझे जाने वाले काम ही दिए जाते थे। इसके फलस्वरूप, वे गरीबी में पड़े रहते थे और मजबूरी में रहते थे।
इस प्रकार, सत्रहवीं सदी के भारतीय किसानों की स्थिति का चित्रण करते हुए हमें उनकी आर्थिक, सामाजिक, और आर्थिक प्रतिकृति की समझ मिलती है। ये प्रशासनिक और सामाजिक प्रतिकृतियाँ हमें उनकी जीवनशैली और संघर्ष की दास्तान सुनाती हैं।
सिचाई और तकनीक : बाबरनामा के प्रकाश में / Irrigation and Technology: In the Light of Baburnama
- पानी का इंतजाम: बाबरनामा के अनुसार, हिन्दुस्तान में खेती के लिए बहुत सारी जमीन उपलब्ध थी, लेकिन जहाँ पानी का इंतजाम नहीं था। फसलों को उगाने या बागानों के लिए पानी की कोई आवश्यकता नहीं थी।
- ऋतुओं का प्रभाव: शारद ऋतु की फसलें बारिश के पानी से ही पैदा होती थीं, हालांकि वसंत ऋतु की फसलें बारिश के बिना भी पैदा होती थीं। यह अद्भुत था कि किसानों ने कैसे बारिश के अभाव में भी फसलों को पालने का तरीका ढूंढ लिया।
- सिंचाई की तकनीक: छोटे पेड़ों तक पानी पहुंचाने के लिए, बाल्टियों या रहट का उपयोग किया जाता था। यह तकनीक किसानों को अपनी फसलों को पोषण प्रदान करने के लिए मदद करती थी।
- सिंचाई के क्षेत्र: लाहौर, दीपालपुर, और अन्य क्षेत्रों में, लोग रहट के जरिए सिंचाई का काम करते थे। यह उन्हें खेतों को पानी पहुंचाने के लिए साधनों का उपयोग करने की संख्या के अभाव में भी सहायता प्रदान करता था।
बाबरनामा के माध्यम से हमें समझ मिलता है कि सिंचाई और तकनीक के क्षेत्र में कैसे साम्राज्य के लोगों ने नई तकनीकों का उपयोग करके खेती को उन्नति दी।
फसलो की भरमार / Abundance of crops
- फसलों की संख्या: उत्तर भारत में, वर्षा या सिंचाई के साधन हर समय उपलब्ध नहीं थे, लेकिन फिर भी यहाँ कम से कम दो फसले उगाई जाती थी। जहाँ ये सुविधाएँ मौजूद थीं, वहां साल में तीन बार फसलें उगाई जाती थीं।
- फसलों की विविधता: स्रोतों से मिले डेटा के अनुसार, बहुत सारी फसलें उपलब्ध थीं। आइन बताती है कि मुगल प्रांत आगरा में 39 और दिल्ली प्रांत में 43 किस्म की फसलें उगाई जाती थीं। बंगाल में, सिर्फ चावल की 50 किस्में पैदा होती थीं।
- मुख्य फसलें: बड़े-बड़े टुकड़ों पर कपास और गन्ना उगाई जाती थी, जबकि बंगाल में चीनी की खेती प्रसिद्ध थी। तिलहन और दलहन भी नकदी फसलें थीं।
- नई फसलें: 17वीं सदी में, दुनिया के विभिन्न हिस्सों से कई नई फसलें भारत तक पहुंचीं। मक्का और अन्य फसलें अफ्रीका और पाकिस्तान के माध्यम से आईं और पश्चिम भारत में मुख्य फसलें बन गईं।
- नई दुनिया से फसलें: टमाटर, आलू, मिर्च, अनानास, पपीता जैसी फल-सब्जियां नई दुनिया से आईं और भारत की कृषि को और भी विविधता मिली।
इस रूपरेखा से हम देखते हैं कि भारतीय कृषि विविधता के एक संगम है, जिसमें बदलते समय के साथ नई फसलें और तकनीक का उपयोग होता रहा है।
तम्बाकू का प्रसार / Spread of tobacco
- दक्कन से उत्तर: तम्बाकू का पौधा सबसे पहले दक्कन में पहुंचा। वहां से 17वीं सदी के शुरुआती वर्षों में इसे उत्तर भारत लाया गया।
- अकबर का अनुभव: आइन ने उत्तर भारत की फसलों की सूची में तम्बाकू का जिक्र नहीं किया है, लेकिन अकबर और उसके अभिजातों ने 1604 ई० में पहली बार तम्बाकू को देखा।
- धुम्रपान की लत: इस आधुनिक युग में धुम्रपान एक बड़ी समस्या है, लेकिन इस आदत का अंदाजा इतिहास में भी दिया जा सकता है। जहाँगीर को तम्बाकू धुम्रपान की बुरी आदत के फैलने से इतना चिंता हुआ कि उसने इस पर पाबंदी लगा दी।
- प्रसार का परिणाम: हालांकि यह पाबंदी पूरी तरह से बेअसर साबित हुई क्योंकि 17वीं सदी के अंत तक, तम्बाकू पूरे भारत में खेती, व्यापार और उपयोग की मुख्य बस्तुओं में से एक था।
यह अद्भुत विषय दिखाता है कि ऐसे पदार्थ जो आज एक समस्या का कारण बने हैं, पुराने समय में कितने महत्वपूर्ण थे।
ग्रामीण दस्तकार / Rural artisans
- दस्तकारों की अच्छी तादाद: गाँवों में दस्तकार काफी अच्छी तादाद में रहते थे, कुछ जगहों पर तो कुल घरों का 25% तक घर दस्तकारों के थे।
- विविध दस्तकार: ग्रामीण दस्तकारों में कुम्हार, लौहार, बढ़ई, नाई और सुनार जैसे विभिन्न पेशेवर थे, जो अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को प्रदान करते थे।
- अदायगी की व्यवस्था: इन दस्तकारों को गाँव की जमीन का एक टुकड़ा या फसल का हिस्सा दिया जाता था, जिस पर उन्हें अपनी सेवाएँ प्रदान करने का अधिकार होता था। उनकी अदायगी की सूरत पंचायत द्वारा निर्धारित की जाती थी।
- परिवर्तन और सम्मति: यह व्यवस्था कभी-कभी बदली जाती थी, जहाँ दस्तकार और खेतिहर परिवारों के बीच बातचीत करके अदायगी की किसी एक व्यवस्था पर सहमति प्राप्त होती थी। ऐसे में वस्तुओं और सेवाओं की विनियमन की जाती थी।
ग्रामीण दस्तकारों का यह प्रणाली सामाजिक समृद्धि और अनुग्रह के एक महत्वपूर्ण स्रोत था, जो गाँव की आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
ग्राम समुदायों में महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति / Social and economic status of women in village communities
- कृषि में योगदान: महिलाएं ग्रामीण समुदायों में विभिन्न कृषि कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाती थीं, जैसे कि बुआई, निराई, गुड़ाई, और फसल का अनाज निकालना।
- दस्तकारी कार्य: महिलाएं सूत काटने, बर्तन बनाने, और कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के कामों में भी अपना योगदान देती थीं, जो उत्पादन के महत्वपूर्ण पहलुओं में थे।
- अतिरिक्त काम क्षेत्रों में योगदान: किसान और दस्तकार महिलाएं अपने समुदाय के अलावा नियोक्ताओं के घर भी जाती थीं और बाजार में भी काम करती थीं।
- समाजिक परंपरा: कई ग्रामीण समुदायों में दहेज की बजाय दुल्हन की कीमत अदा करने की प्रथा थी, और तलाकशुदा और विधवा महिलाओं के लिए पुनर्विवाह को वैध माना जाता था। महिलाओं को संपत्ति विरासत में पाने का अधिकार था।
महिलाओं की यह अद्वितीय भूमिका ग्रामीण समाजों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करती थी, जो समृद्धि और सामाजिक समरसता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाती थी।
जंगल और कबीले / Forest and clan
- जंगली शब्द का मतलब: समसामयिक रचनाएं जंगल में रहने वाले लोगों के लिए “जंगली” शब्द का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन पूर्व में इसका अर्थ कुछ और था। यह शब्द पहले उन लोगों के लिए होता था जिनका गुजारा जंगल के उत्पादों, शिकार और स्थानांतरित खेती से होता था।
- जंगल में व्यापार: जंगल में वसंत में उत्पादों का इकट्ठा किया जाता, गर्मियों में मछली पकड़ी जाती, मानसून में खेती की जाती और शारद और जाड़ों में शिकार किया जाता था।
- राज्य के सवाल: जंगल राज्य के सुरक्षा कावच के रूप में काम करता था, जिसमें बदमाशों को शरण दी जाती थी। इसके साथ ही, जंगल में बाहरी ताकतें भी घुसती थीं, जैसे कि सेना के लिए हाथियों की आवश्यकता।
- सेना और हाथियों का योगदान: जंगल में हाथियों की उपलब्धता बहुत महत्वपूर्ण थी और इसके लिए जंगल वासियों से ली जाने वाली-पेशकश में अक्सर हाथी भी शामिल होते थे।
जंगल और उसके वासियों का सम्बंध गाँवी और नगरीय जीवन के साथ गहरा था, जिसने समाज की आर्थिक और सामाजिक संरचना में अहम भूमिका निभाई।
जमीदार ओर उनकी शक्ति / Landlord and his power
- श्रेणी का बढ़ना: जमींदार वे लोग थे जो अपनी जमीन के मालिक होते थे, जिन्हें ग्रामीण समाज में ऊँची हैसियत की वजह से कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधाएं मिलती थीं।
- कारण: उनकी शक्ति के पीछे कई कारण थे, जैसे कि उनका जाति, और राज्य को उनकी कुछ खास सेवाएं देना।
- विस्तृत जमीन: उनकी सम्पत्ति की मूल कारण थी उनकी विस्तृत जमीन, जिसे “मिल्कियत” कहा जाता था। इन जमीनों पर अक्सर दिहाड़ी के मजदुर या पराधीन मजदुर काम करते थे।
- राज्य से सम्बंध: जमींदारों की ताकत उनकी योजनाओं से भी आती थी, जैसे कि वे अक्सर राज्य के कर वसूल कर सकते थे और इसके बदले में वित्तीय मुआवजा प्राप्त करते थे।
- सैनिक संसाधन: जमींदारों की ताकत का एक और स्रोत सैनिक संसाधन था, जो उन्हें अपने किलों और सैनिक टुकड़ियों के माध्यम से मिलता था।
जमींदारों की शक्ति का सारांश उनके सम्बंधों, संसाधनों, और राज्य से आये संबंधों में था, जिसने उन्हें समाज में प्रभावी बनाया।
भू – राजस्व प्रणाली / Land Revenue System
- चरणों में व्यवस्था: भू – राजस्व के इंतजाम में दो चरण थे – कर निर्धारण और वास्तविक वसूली। यह निर्धारित रकम का जमा करने का प्रक्रियात्मक तरीका था।
- राज्य का हिस्सा: राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा ज्यादा से ज्यादा रखने की कोशिश करता था, लेकिन स्थानीय हालातों के कारण कभी-कभी यह संभव नहीं हो पाता था।
- भूमि का नापन: हर बात में जुटी हुई जमीन और जोतने लायक जमीन की नापाई की जाती थी। इसके लिए अकबर के शासन काल में अबुल फजल ने सभी ऑक्सड्स का सकलन किया और बाद में भी इस प्रयास को जारी रखा गया।
- सालाना हिसाब: 1665 ई. में औरंजेब ने अपने राजस्व कर्मचारियों को हर गाँव में खेतिहरों की संख्या का सालाना हिसाब रखने के निर्देश दिए।
- विवाद और जंगलों की नपाई: इलाकों की नपाई को लेकर विवाद उत्पन्न होते थे, क्योंकि उपमहाद्वीप के कई बड़े हिस्से जंगलों से घिरे हुए थे और इनकी नपाई नहीं हो पाती थी।
भू – राजस्व प्रणाली का उचित व्यवस्थितीकरण और न्यायिक इंतजाम समाज में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
खेती की जमीनों के प्रकार / Types of farming lands
- अमील: अमील एक मुलाजिम था, जिसकी जिम्मेदारी थी राजकीय नियमों का पालन कराना।
- पोलज: पोलज वह जमीन है जहाँ हर साल लगातार फसलों की खेती होती है, और इसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता।
- परौती: परौती वह जमीन है जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती है, ताकि जमीन अपनी ताकत वापस पा सके।
- चचर: चचर वह जमीन है जो 3-4 बर्षों तक खाली रहती है, फिर से खेती के लिए उपयुक्त बनाई जाती है।
- बंजर: बंजर वह जमीन है जिस पर 5 वर्षों से अधिक समय तक कोई खेती नहीं की गई है। इस प्रकार की जमीन अक्सर पुनः सुधार के लिए प्रयुक्त की जाती है।
अर्थव्यवस्था पर चांदी का प्रवाह / Flow of silver on the economy
- मुगल साम्राज्य और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: मुगल साम्राज्य ने 16 वीं और 17 वीं सदी में अपनी सत्ता और संसाधनों का सही इस्तेमाल करके अपनी पकड़ मजबूत की।
इस साम्राज्य की राजनीतिक स्थिरता ने चीन से लेकर भू-मध्य सागर तक व्यापारिक रूप से जमीनी व्यापार का बढ़ावा किया।
- अर्थव्यवस्था में बदलाव: यूरोपीय खोजी यात्रियों की नई दुनिया के खुलने से एशिया के व्यापार में भारी वृद्धि हुई।
भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं के लिए अधिक चांदी की मांग बढ़ी।
- चांदी का महत्व: भारत के लिए चांदी का अभियान महत्वपूर्ण था, क्योंकि यहाँ प्राकृतिक संसाधन थे नहीं।
इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा संचार और सिक्कों की ढुलाई में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
- मुगल साम्राज्य का लाभ: मुगल राज्यों को नकदी को आसानी से संग्रह करने में मदद मिली, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।
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स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
URL: https://my-notes.in
Author: NCERT
5
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