कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: सत्ता के समकालीन केन्द्र – नोट्स PDF

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान के ‘सत्ता के वैकल्पिक केंद्र’ अध्याय को आसानी से समझें! हमारे संपूर्ण हिंदी नोट्स के साथ इस महत्वपूर्ण टॉपिक को सरल भाषा में सीखें।

इन नोट्स में यूरोपीय संघ, आसियान, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन आदि के बारे में सारी जानकारी मिल जाएगी। परीक्षा की तैयारी के लिए हमारे विस्तृत नोट्स पर भरोसा करें और अच्छे अंक प्राप्त करें। अभी डाउनलोड करें!

Table of Contents

राजनीति विज्ञान कक्षा 12 अध्याय-2: सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र / Alternative centers of power

सोवियत संघ के विभाजन के पश्चात्, विश्व में अमेरिका ने अपना वर्चस्व साबित किया है। हालांकि, कुछ देशों ने सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र के रूप में अपने संगठनों को उभारा है। इन संगठनों का उदय एक नए राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से विश्व के संबंधों को प्रभावित कर रहा है।

इन संगठनों का उदय एक नए सत्ता के रूप में देखा जा रहा है, जो अमेरिका के प्रभुत्व को सीमित करने का प्रयास कर रहे हैं। ये संगठन न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक माध्यमों के माध्यम से भी शक्तिशाली हो रहे हैं, जिससे विश्व निर्वाचनों और आर्थिक समर्थन में बदलाव हो रहा है।

इस संदर्भ में, इन संगठनों का उदय अद्वितीय है क्योंकि ये समृद्धि, विकास, और सामाजिक समृद्धि के क्षेत्र में नेतृत्व कर रहे हैं। इनके प्रयासों से यह सुनिश्चित हो रहा है कि अमेरिका के अलावा भी संगठित रूप से समृद्धि का हिस्सा बनने की कोशिश हो रही है।

इस परिवर्तन के साथ, यह समझना महत्वपूर्ण है कि सत्ता का नया विभाजन कैसे विश्व के नायकों को स्थापित कर रहा है और कैसे यह एक सुरक्षित, सामरिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से विश्व समुदाय को प्रभावित कर रहा है।

क्षेत्रीय संगठन / Regional Organization

एक समृद्धि और समर्थ भूमि

क्षेत्रीय संगठन एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है, जहां प्रभुसत्ता सम्पन्न देशों ने स्वैच्छिक समुदायों के साथ मिलकर एक संधि बनाई है। इस संधि का मुख्य उद्देश्य यह है कि निश्चित क्षेत्र के भीतर एक एकत्रित समृद्धि और सहयोग का माहौल बनाए रखा जाए।

यह संगठन उन देशों को सम्मिलित कर रहा है जिनका प्रमुख उद्देश्य यह है कि वे अपने क्षेत्र के संबंध में आक्रामक कार्यवाही से बचें। इसका मतलब है कि इन संगठनों ने एक सकारात्मक संरचना बनाई है जो उन देशों को अपने सामरिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों को संरक्षित रखने में मदद करती है।

इस संगठन के माध्यम से, सदस्य देशों को एक विशेष क्षेत्र में एकत्रित होने का अवसर मिलता है, जिससे उनकी सामरिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है। इसके फलस्वरूप, इन संगठनों ने एक सकारात्मक और सहयोगी समुदाय की बुनियाद रखी है, जिससे समृद्धि और समर्थता की नई ऊंचाइयों की प्राप्ति हो सकती है।

संगठन / Organization

संगठन और उनके सदस्य देश: सांगत शक्ति के बीच साकारात्मक संबंध

यूरोपीय संघ:

सारांश: यूरोपीय संघ, यूरोप के देशों के बीच एक संगठन है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक सहयोग और सामरिक समर्थन का स्थापना है।

आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियान नेशंस):

सारांश: आसियान, दक्षिणपूर्व एशिया के देशों का समूह है जो विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग और विकास को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है।

ब्रिक्स (ब्राज़िल, रूस, इंडिया, चीन, दक्षिण अफ्रीका):

सारांश: ब्रिक्स, बड़े और उभरते अर्थतंत्र और राजनीतिक बलों के संगठन के रूप में विकसित हो रहा है, जो सदस्य देशों को एक साथ मिलकर ग्लोबल मामलों में बोलचाल करने में सक्षम बनाने का प्रयास कर रहा है।

सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन):

सारांश: सार्क, दक्षिण एशिया में स्थित देशों का समूह है जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय विकास और सहयोग है। इसमें भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, भूटान और मालदीव समाहित हैं।

अनुसंधान या विस्तार / Research or Extension

चीन:

सारांश: चीन, एक अद्वितीय सांगत राष्ट्र, आर्थिक और सैन्यगत दृष्टि से बड़ी ऊंचाइयों को हासिल कर रहा है और वैश्विक मामलों में अच्छी तरह से बोलचाल कर रही है।

जापान:

सारांश: जापान, तकनीकी उन्नति और विकास में अपने माहिर होने के साथ-साथ आर्थिक मजबूती के लिए प्रसिद्ध है।

भारत:

सारांश: भारत, अपने विविधता, विशेषज्ञता, और सामरिक सहयोग के माध्यम से विश्व में अहम भूमिका निभा रहा है।

इजराइल:

सारांश: इजराइल, तकनीकी अग्रणीता और रक्षा तंत्र की शक्ति के रूप में आगे बढ़ रहा है, जिससे यह एक प्रमुख विकासशील राष्ट्र बन रहा है।

रूस:

सारांश: रूस, आर्थिक और सैन्यगत स्तर पर अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है और वैश्विक मामलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

इसी प्रकार, इन संगठनों और उनके सदस्य देशों के बीच संबंध निर्माण का सफलता से साकारात्मक और सहयोगी भविष्य की दिशा में कदम बढ़ रहा है।

क्षेत्रीय संगठन के उद्देश्य / Objectives of regional organization

क्षेत्रीय संगठन के उद्देश्य: समृद्धि, सहयोग, और शांति की दिशा में

सदस्य देशों में एकता की भावना का मजबूत होना:

सारांश: हमारा पहला उद्देश्य है सदस्य देशों में एक साजगत भावना का निर्माण करना। हम एक समृद्ध और संबद्ध साझेदारी की ऊर्जा को बढ़ाना चाहते हैं ताकि हम समस्त क्षेत्र में आदर्श और एकात्म महसूस कर सकें।

क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा:

सारांश: हम विभिन्न देशों के बीच सहयोग को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि हम समृद्धि और विकास के पथ में साथ मिलकर आगे बढ़ सकें।

सदस्यों के बीच आपसी व्यापार को बढ़ाना:

सारांश: हम आपसी व्यापार को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिससे सदस्य देश आर्थिक और औद्योगिक दृष्टि से आपसी लाभ का अनुभव कर सकें।

क्षेत्र में शांति और सौहार्द को बढ़ाना:

सारांश: हम चाहते हैं कि हमारे क्षेत्र में शांति और सौहार्द का माहौल हो, जिससे हम सभी आत्मविश्वास से भरा हुआ, सुरक्षित और मित्रभावपूर्ण समुदाय बना सकें।

विवादों को आपसी बातचीत द्वारा निपटाना:

सारांश: हम विवादों को सुलझाने के लिए आपसी बातचीत का समर्थन करते हैं, जिससे हम समृद्धि और सहयोग की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

इस रूपरेखा के माध्यम से, हम क्षेत्रीय संगठन के माध्यम से समृद्धि, सहयोग, और शांति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं और साथ मिलकर एक सुरक्षित और सहयोगी समुदाय की रूपरेखा बनाए रखना चाहते हैं।

मार्शल योजना / Marshall Plan

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, यूरोप ने अपनी अर्थव्यवस्था की बहुत नुकसान पहुँची थी, और इस मुश्किल समय में अमरीका ने एक अद्वितीय योजना की शुरुआत की – “मार्शल योजना”। इस योजना के अंतर्गत, 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई, जो उन्हें फिर से उच्चारित करने का एक अवसर दिया।

1949 में, यूरोपीय परिषद ने राजनीतिक मामलों की देखरेख की, और 1957 में यूरोपीय इकनॉमिक कम्युनिस्ट का गठन हुआ। इसके परिणामस्वरूप, 1992 में यूरोपीय संघ का गठन हुआ, जिसमें विदेश नीति, साँझी मुद्रा, सुरक्षा नीति आदि शामिल हैं। इस बदलते संस्थानिक रूप के साथ, यूरोपीय संघ ने अपनी नीतियों को आर्थिक सहयोग से बचकर राजनैतिक दिशा में बदल ली है।

यूरोपीय संघ का गठन / Formation of European Union

1992 में, यूरोपीय संघ का गठन हुआ, जिसमें यूएसएसआर के विघटन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस नए संगठन ने एक सामान्य विदेशी और सुरक्षा नीति, न्याय पर सहयोग, और एकल मुद्रा की नींव रखी। हालांकि, यूरोपीय संघ ने 2003 में अपना संविधान बनाने का प्रयास किया, लेकिन उसमें सफल नहीं हुआ।

मार्शल योजना की कहानी ने यूरोप को नए साहस और संगठन की दिशा में पुनर्निर्माण करने में सफलता प्राप्त की है, जिससे यह आज भी एक एकीकृत, सशक्त, और समृद्धि में बढ़ने का प्रयास कर रहा है।

यूरोपीय संघ के गठन के उद्देश्य / Objectives of formation of European Union

एक समान विदेश व सुरक्षा नीति:

सारांश: यूरोपीय संघ का मुख्य उद्देश्य है सभी सदस्यों के बीच एक समान विदेश और सुरक्षा नीति का निर्माण करना, जिससे कि वे एक मजबूत और संगठित समृद्धि में साथी बन सकें।

आंतरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मामलों पर सहयोग:

सारांश: यूरोपीय संघ ने अपने सदस्यों के बीच आंतरिक मामलों और न्याय से जुड़े मामलों में सहयोग करने का प्रयास किया है, जिससे न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार हो सके।

एक समान मुद्रा का चलन:

सारांश: यूरोपीय संघ ने साँझी मुद्रा को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाया है, जिससे एक समान मुद्रा का चलन हो, और आर्थिक संबंध मजबूत हो सके।

वीजा मुक्त आवागमन:

सारांश: यूरोपीय संघ ने वीजा मुक्त आवागमन की दिशा में कदम उठाया है, जिससे सदस्य देशों के बीच आवागमन में सुधार हो सके और लोग आसानी से एक दूसरे के साथ साझा करने का मौका प्राप्त करें।

समर्थन और एकीकृतता की दिशा में, यूरोपीय संघ आज भी विश्व में एक आदर्श योजना के रूप में प्रकट हो रहा है।

यूरोपीय संघ की विशेषताएँ / Features of European Union

संगठन, और समृद्धि का प्रतीक

समाप्ति:

यूरोपीय संघ, समय के साथ, न केवल एक आर्थिक संघ होने का बल्कि राजनैतिक दृष्टि से भी विकसित होने का सफल प्रतीक बन चुका है। इसकी विशेषताएँ हैं जो इसे एक अद्वितीय संगठन बनाती हैं।

1. यूरोपीय संघ का एकतामूलक कार्य:

सारांश: यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र-राज्य की भावना के साथ कार्य कर रहा है, जिससे साझा संबंध और साहस में एकता की भावना बनी रहती है।

2. सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक:

सारांश: यूरोपीय संघ का झंडा, गान, और मुद्रा उसकी सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं, जो वहां के लोगों की पूर्णता और समृद्धि की ओर इशारा करते हैं।

3. सहयोग और सुरक्षा में साझेदारी:

सारांश: यूरोपीय संघ ने अन्य देशों से संबंधों में साझी विदेश और सुरक्षा नीति बनाई है, जिससे यह एक सकारात्मक समृद्धि की दिशा में अग्रणी है।

यूरोपीय संघ को ताकतवार बनाने वाले कारक या विशेषताएँ

Factors or characteristics that make the European Union strong

1. आर्थिक शक्ति:

सारांश: यूरोपीय संघ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में शामिल है और इसने विश्व व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को तीन गुना बढ़ा दी है।

2. राजनीतिक और सुरक्षा साझेदारी:

सारांश: ब्रिटेन और फ्रांस के सहयोग से, यूरोपीय संघ ने सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनकर राजनीतिक और सुरक्षा मामलों में भी अग्रणी भूमिका निभाई है।

3. संयुक्त सशस्त्र सेना:

सारांश: यूरोपीय संघ की संयुक्त सशस्त्र सेना दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी सेना है जो रक्षा क्षेत्र में अग्रणी है।

4. आर्थिक शक्ति का प्रभाव:

सारांश: यूरोपीय संघ की आर्थिक शक्ति का प्रभाव यूरोप, एशिया, और अफ्रीका के देशों पर है, जिससे इसका विश्व व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान हो रहा है।

5. अधिराष्ट्रीय संगठन का कार्य:

सारांश: यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है और इससे वह एक महत्वपूर्ण अधिराष्ट्रीय संगठन के रूप में कार्य कर रहा है।

समर्थन और एकीकृतता की दिशा में, यूरोपीय संघ आज भी विश्व में एक आदर्श संगठन के रूप में प्रकट हो रहा है।

यूरोपीय संघ की कमजोरियाँ / Weaknesses of European Union

यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की कई चुनौतियाँ हैं जो उनके बीच विदेश और रक्षा नीतियों में विरोध उत्पन्न कर सकती हैं। इसके अलावा, कुछ देशों में यूरो मुद्रा के प्रति आपत्ति भी है। इन चुनौतियों का सामना करते हुए, यूरोपीय संघ अपनी एकता को बनाए रखने में प्रयासरत रहता है।

1. विदेश और रक्षा नीति में असमंजस:

सारांश: सदस्य देशों की अपनी विदेश और रक्षा नीतियों के बीच असमंजस है, जैसे इराक पर हमले के मामले में देखा गया। यह चुनौती से भरी हुई है और संघ को समर्थन जुटाने में कठिनाई उत्पन्न हो रही है।

2. यूरो मुद्रा के खिलाफ आपत्ति:

सारांश: कुछ यूरोपीय संघ के हिस्सों में यूरो मुद्रा को लेकर आपत्ति है, जिससे आर्थिक व्यवस्था में विघ्न उत्पन्न हो रहा है।

3. सदस्य देशों का विरोध:

सारांश: डेनमार्क और स्वीडन ने मास्ट्रिस्स संधि और यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का विरोध किया, जिससे संघ के अंदर विभाजन का माहौल बना रहता है।

4. अलगाव और संघर्ष:

सारांश: यूरोपीय संघ के कई सदस्य देश अमरीकी गठबंधन में थे, लेकिन ब्रिटेन ने 2016 में हुए जनमत संग्रह के बाद से इससे अलग हो गया है, जिससे संघ की सामृद्धि में एक चुनौती उत्पन्न हो रही है।

दक्षिण – पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान) / Association of Southeast Asian Nations (ASEAN)

आसियान, जिसे हम प्रेम से “दक्षिण – पूर्व का संघ” कह सकते हैं, ने अपने साझा इतिहास और सांस्कृतिक विविधता के आधार पर साझा भविष्य बनाने का संकल्प किया। इसकी शुरुआत अगस्त 1967 में पाँच प्रबल देशों – इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, और थाईलैंड ने बैंकाक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके की गई।

1. संगठन का निर्माण:

  • सारांश: शुरुआती में, आसियान की स्थापना पाँच देशों द्वारा की गई थी, जो इस क्षेत्र के सहयोग और विकास के लिए एकसाथ आए थे।

2. सदस्यों का विस्तार:

  • सारांश: बाद में, ब्रुनई दारूस्लाम, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया ने भी इस संगठन में शामिल होकर अपनी सदस्यता बढ़ाई, जिससे आसियान की सदस्या संख्या 10 हो गई।

3. साझा उद्देश्य:

  • सारांश: आसियान ने एक साझा उद्देश्य के आसपास अपनी नींव रखी है – सामाजिक समृद्धि, आर्थिक सहयोग, और साउंड राजनीतिक संबंध।

4. सहमति और भिन्नता:

  • सारांश: आसियान में सहमति और भिन्नता का एक संतुलन है, जो इसे इस क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण बनाता है।

समर्थन और एक आदर्श साझा भविष्य की दिशा में, आसियान ने इस क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आसियान के मुख्य उद्देश्य / Main objectives of ASEAN

आर्थिक विकास का तेज कारगर उद्देश्य:

  • सारांश: आसियान ने सदस्य देशों के आर्थिक विकास को बढ़ाने का मिशन अपनाया है।

सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का समर्थन:

  • सारांश: संघ ने सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य रखा है, जिससे रोजगार और विकास में सुधार हो।

क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व का प्रोत्साहन:

  • सारांश: आसियान ने कानून के शासन और संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमों का पालन करने के माध्यम से क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देने का काम किया है।

आसियान शैली / ASEAN style

1. नौपचारिक और टकरावरहित:

  • सारांश: आसियान ने अपनी शैली को नौपचारिक, टकरावरहित, और सहयोगात्मक बनाया है, जिसे ‘आसियान शैली’ कहा जाता है।

2. आसियान के प्रमुख स्तंभ:

  • आसियान सुरक्षा समुदाय:
  • सारांश: इस समुदाय का मुख्य उद्देश्य ऐसी स्थितियों में सहयोग और सुरक्षा सुनिश्चित करना है जो क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर हों।

आसियान आर्थिक समुदाय:

  • सारांश: इस समुदाय का मुख्य उद्देश्य आर्थिक सहयोग और साझेदारी के माध्यम से सदस्य देशों को आर्थिक समृद्धि की दिशा में मदद करना है।

सामाजिक सांस्कृतिक समुदाय:

  • सारांश: इस समुदाय का उद्देश्य सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देना है और सभी सदस्य देशों को एकजुटता में मजबूती प्रदान करना है।

आसियान के इन स्तंभों के माध्यम से संघ ने सहयोग, समर्पण, और समृद्धि की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

आसियान का विजन दस्तावेज 2020 / ASEAN Vision Document 2020

आसियान: विजन 2020

  • आसियान, जो तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्रीय संगठन है, ने अपने विजन दस्तावेज 2020 के माध्यम से एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की दिशा में कई मुद्दों पर बातचीत की है। इस दस्तावेज से स्पष्ट होता है कि आसियान अब टकराव की जगह सहयोग और बातचीत को महत्त्वपूर्ण मान रहा है।

आसियान क्षेत्रीय मंच:

  • 1994 में स्थापित हुआ आसियान क्षेत्रीय मंच एक महत्त्वपूर्ण कदम है जो इस संगठन के सदस्य देशों को एक साथ आने और उनकी सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाए रखने का माध्यम है। यह मंच उदारवाद, सामरिक सहयोग, और विभिन्न राष्ट्रों के बीच साझा समर्थन प्रोत्साहित करता है।

संगठन की प्रमुख उद्देश्य / Major objectives of the organization

सुरक्षा की समझदारी:

  • सारांश: आसियान विजन 2020 के माध्यम से सुरक्षा को महत्त्वपूर्ण रूप से समझने और इसमें सहयोग करने की स्थापिति कर रहा है।

बातचीत और सहमति:

  • सारांश: आसियान ने अब विवादों के स्थान पर बातचीत और सहमति को प्रोत्साहित करने का नारा बदला है।

क्षेत्रीय विकास का समर्थन:

  • सारांश: संगठन ने विकास के क्षेत्र में सहयोग करने का उद्देश्य रखा है ताकि क्षेत्र के सभी देश साझा समृद्धि की दिशा में बढ़ सकें।

आसियान के इन उपायों द्वारा, संगठन ने एक साथीपन की नई दिशा का सुरूआत किया है और क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से विकास और सुरक्षा की दिशा में कई नई संभावनाओं को खोला है।

आसियान की उपयोगिता या प्रासंगिकता / Usefulness or Relevance of ASEAN

1. आर्थिक शक्ति का सहयोग:

  • आसियान आर्थिक शक्ति के रूप में उभरता है और विकसित एशियाई देशों के साथ व्यापार और निवेश में सहयोग करता है। इससे सभी सदस्य देशों को आर्थिक समृद्धि की दिशा में बढ़ने में मदद मिलती है।

2. मुक्त व्यापार क्षेत्र:

  • आसियान ने निवेश, श्रम, और सेवाओं के क्षेत्र में मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने का ध्यान दिया है। इससे सारे क्षेत्र में सहयोग बढ़ता है और विभिन्न देशों के बीच तार्किक बंधन कम होते हैं।

3. भारत और आसियान:

  • भारत ने ‘पूरब की ओर देखो’ नीति के तहत आसियान के सदस्य देशों के साथ गहरा संबंध बनाए हैं और मुक्त व्यापार क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं।

4. भारतीय प्रधानमंत्री की पहल:

  • हाल ही में, भारतीय प्रधानमंत्री ने आसियान देशों को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया और एकमात्र ऐसा संगठन बनाया जो एशियाई देशों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा करने के लिए मंच प्रदान करता है।

सार्क (South Asian Association for Regional Cooperation)

1. सार्क का स्थापना:

  • सार्क 8 दिसंबर 1985 को स्थापित हुआ था और इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान शामिल हैं।

2. क्षेत्रीय सहयोग:

  • सार्क का मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग और समर्थन को बढ़ावा देना है, जिससे रोजगार, बाजार, और अर्थव्यवस्था में सुधार हो।

3. भारतीय पहल:

  • भारत ने सार्क के साथ गहरे संबंध बनाए हैं और इसे क्षेत्रीय सहयोग में एक महत्वपूर्ण संगठन बनाए रखने का प्रयास किया है।

4. समर्थन और संबंध:

  • सार्क ने दक्षिण एशियाई देशों के बीच सामरिक सहयोग और संबंधों में सुधार के लिए एक मंच प्रदान किया है।

इस रूपरेखा के माध्यम से, आसियान और सार्क जैसे संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका और उनकी उपयोगिता को समझाया जा सकता है, जो एशियाई देशों के बीच सहयोग और संबंधों को सुधारने में मदद करते हैं।

SAARC (सार्क) का उद्देश्य / Objective of SAARC

विकास और जीवन स्तर का सुधार:

  • सार्क का मुख्य उद्देश्य है दक्षिण एशिया के देशों में जनता के विकास और जीवन स्तर में सुधार लाना।

आत्मनिर्भरता का विकास:

  • सार्क ने आत्मनिर्भरता के विकास को महत्वपूर्ण माना है, जिससे सदस्य देश अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकें।

आर्थिक विकास:

  • सार्क का उद्देश्य है आर्थिक विकास को बढ़ाना और सदस्य देशों को एक दूसरे के साथ साथिक रूप से समर्थन प्रदान करना।

सांस्कृतिक और सामाजिक विकास:

  • सार्क का उद्देश्य सांस्कृतिक और सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करना है, जिससे सांस्कृतिक विविधता बनी रहे।

आपसी सहयोग और विवादों का निपटारा:

  • सार्क आपसी सहयोग बढ़ाने का काम करता है और किसी भी आपसी विवादों का निपटारा करने के लिए तैयार रहता है।

आपसी विश्वास बढ़ाना और व्यापार को बढ़ावा देना:

  • सार्क का लक्ष्य है आपसी विश्वास को मजबूत करना और सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देना।

पूरब की ओर देखो नीति / Look East Policy

भारत ने 1991 में “पूरब की ओर देखो” नीति की शुरुआत की, जिससे पूर्वी एशिया के साथ अपने आर्थिक संबंधों में वृद्धि हुई।

भारत ने आसियान, चीन, जापान, और दक्षिण कोरिया जैसे तेजी से विकसित देशों के साथ गहरे संबंध बनाए।

चीन का विकास / Development of China

चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में बड़ी परिवर्तन की दिशा में कई कदम उठाए हैं, जिससे यह एक अग्रणी आर्थिक शक्ति बन गई है।

चीन ने उद्योगीकरण, विदेशी निवेश, और विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) की स्थापना करके अपनी आर्थिक गतिविधियों में सुधार किया।

हालांकि, चीन के विकास में कुछ नकारात्मक पहलुओं ने भी सामने आए हैं, जैसे कि बढ़ती जनसंख्या और वातावरण की हानि।

चीन में सुधारों की पहल / Reform initiatives in China

चीन में सुधारों की पहल का उल्लेख करते हुए, यह सुधार चीन के आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ आया:

1. अमरीका से संबंध बनाना (1972):

  • 1972 में चीन ने अमरीका के साथ संबंध स्थापित करने का निर्णय लिया, जिससे इसने अपने राजनैतिक और आर्थिक एकांतवास को खत्म किया।

2. प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के प्रस्ताव (1973):

  • प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने 1973 में कृषि, उद्योग, सेवा, और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के लिए चार प्रस्ताव रखे।

3. देंग श्याओपेंग की नीति (1978):

  • 1978 में देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और खुलेद्वार की नीति का घोषणा की, जिससे चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।

4. खेती का निजीकरण (1982):

  • 1982 में खेती को निजीकरण किया गया, जिससे कृषि सेक्टर में सुधार हुआ और उत्पादकता में वृद्धि हुई।

5. उद्योगों का निजीकरण (1998):

  • 1998 में उद्योगों को निजीकरण किया गया, जिससे चीनी उत्पादों का विश्व बाजार में बढ़ता हुआ हिस्सा बना।

6. स्पेशल इकॉनॉमिक जोन्स (SEZ) की स्थापना:

  • साल 1978 में स्थापित हुए स्पेशल इकॉनॉमिक जोन्स (SEZ) के माध्यम से, चीन ने विदेशी निवेश और आर्थिक सुधार को बढ़ावा दिया।

7. विश्व व्यापार संगठन में शामिली:

  • चीन ने 2001 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शामिल होने का निर्णय लिया, जिससे उसने विश्व बाजार में अपनी पहचान बनाई और अन्य देशों के साथ व्यापार में बढ़ोतरी की।

इस प्रकार, चीन ने अपनी आर्थिक नीतियों में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं, जिससे उसने विश्व अर्थव्यवस्था में अच्छे स्थान पर पहुँचने में सफलता प्राप्त की है।

चीनी सुधारों का नकारात्मक पहलू / Negative aspects of Chinese reforms

चीन के आर्थिक और सामाजिक सुधारों के बावजूद, कुछ नकारात्मक पहलू भी उभरते हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

1. सामाजिक असमानता:

  • चीन के आर्थिक विकास से जुड़े फायदे का अनुभव समाज के सभी वर्गों तक नहीं पहुंचा है। सामाजिक असमानता बढ़ रही है और इससे समाज में विभाजन उत्पन्न हो रहा है।

2. बेरोजगारी में वृद्धि:

  • पूँजीवादी उपायों को अपनाने से बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। लोगों को अच्छे रोजगार की कमी महसूस हो रही है, जिससे उनका आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं हो रहा है।

3. महिलाओं के रोजगार में समास्याएं:

  • महिलाओं के रोजगार और काम करने के हालात में सुधार नहीं हो रहा है, जिससे वे संतुष्ट नहीं हैं और समाज में सामाजिक समानता की कमी हो रही है।

4. आय में अंतर का विस्तार:

  • गाँव, शहर, तटीय और मुख्य भूमि पर रहने वालों के बीच आर्थिक अंतर में वृद्धि हो रही है, जिससे विकास के फायदों का न्यायसंगत वितरण नहीं हो पा रहा है।

5. पर्यावरणीय परिणाम:

  • चीन के विकास की गतिविधियों ने पर्यावरण को काफी हानि पहुंचाई है, जैसे कि ऊर्जा उत्पादन, औद्योगिक प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन की समस्याएं।

6. भ्रष्टाचार में वृद्धि:

  • चीन में आर्थिक विकास के बावजूद, प्रशासनिक और सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार में वृद्धि हो रही है, जिससे न्यायसंगत और ईमानदारी की कमी हो रही है।

इसके बावजूद, चीन को इन पहलुओं पर ध्यान देना और इन्हें सुधारने के लिए कदम उठाना होगा ताकि विकास समृद्धि के साथ सामाजिक समानता की दिशा में हो सके।

चीन के साथ भारत के संबंध : विवाद के क्षेत्र में

India’s relations with China: Areas of dispute

चीन और भारत के संबंधों में विवाद के क्षेत्रों की समीक्षा करते हैं:

तिब्बत और सीमा समस्या:

  • 1950 में चीन ने तिब्बत को हड़पने के बाद और भारत चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने के फैसले के बाद, दोनों देशों के संबंधों में खचाखच बढ़ा।

सीमा पर आक्रमण:

  • 1962 में, चीन ने अपने दावों को जबरन स्थापित करने के लिए लद्दाख और अरूणाचल प्रदेश पर आक्रमण किया, जिससे दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण विवाद उत्पन्न हुआ।

भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध:

  • चीन ने भारत के परमाणु परीक्षणों का स्पष्ट विरोध किया है, जिससे दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण रक्षा संबंध खतरे में हैं।

पाकिस्तान से संबंध:

  • चीन की पाकिस्तान से दोस्ती और समर्थन ने राजनीतिक और सुरक्षा संबंधों को गहरा कर दिया है, जिससे भारत के साथ तनाव बढ़ा है।

आतंकवाद पर प्रतिबंध:

  • संयुक्त राष्ट्र संघ ने जैश – ए – मुहम्मद पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को चीन ने वीटो किया, जिससे आतंकवाद और सुरक्षा मुद्दों पर सहमति नहीं हो पा रही है।

अभिवादन की रणनीति:

  • चीन की “वन बेल्ट वन रोड” योजना, जो पीओके से होकर गुजरती है, उसे भारत को घेरने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव का कारण बन रहा है।

डोकलाम समस्या:

  • 2017 में, भूटान के डोकलाम क्षेत्र में हुआ विवाद ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया, लेकिन भारत की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने विवाद को सुलझाने के लिए उम्मीद दिखाई।

इस प्रकार, चीन और भारत के संबंधों में विवाद के क्षेत्रों में एक संरचित और आकर्षक रूप में जानकारी प्रदान करते हैं, जो दोनों देशों के बीच समझदारी और सुलझाव की स्थिति की दिशा में सहायक हो सकती है।

चीन के साथ भारत के संबंध : सहयोग का दौर (क्षेत्र)

India’s relations with China: era of cooperation (area)

चीन और भारत के संबंधों में सहयोग के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण मोड़:

नए नेतृत्व के साथ परिवर्तन:

  • 1970 के दशक में चीनी नेतृत्व के परिवर्तन के साथ, व्यावहारिक मुद्दे सहयोग के क्षेत्र में प्रमुख बन गए हैं, जो दोनों देशों के संबंधों में नई दिशा दिखा रहे हैं।

सीमा विवाद की समझौता:

  • 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने चीन की यात्रा की, जिससे सीमा विवाद पर समझौता हुआ और यथास्थिति बनाए रखने की पहल की गई।

सांस्कृतिक सहयोग और विज्ञान:

  • दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विज्ञान तकनीक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया है, जिससे दोनों राष्ट्रों को विश्व में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है।

सीमा पर चार पोस्ट का समझौता:

  • सीमा पर चार पोस्ट खोलने हेतु किए गए समझौते ने व्यापार और सांस्कृतिक अदला-बदली को बढ़ावा दिया है और सीमा सुरक्षा में समझौता बनाए रखने का प्रयास किया है।

व्यापारिक सहयोग:

  • 1999 से द्विपक्षीय व्यापार 30 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हो रहे हैं।

ऊर्जा सौदा:

  • विदेशों में ऊर्जा सौदा हासिल करने के मामले में भी दोनों देश सहयोग द्वारा समाधान निकालने में सक्रिय हैं, जिससे वे विश्व स्तर पर एक दूसरे के साथ जुड़े हैं।

अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों में सहमति:

  • भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों के संबंध में समर्थन और सहमति जताई है, जिससे वे वैश्विक अर्थतंत्र में साजगर्मी बढ़ा रहे हैं।

इस प्रकार, चीन और भारत के संबंधों में सहयोग के क्षेत्र में हो रहे नवीन विकासों को आकर्षक और सुझावपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है, जो दोनों देशों के बीच सजीव और समृद्धि की दिशा में सहायक हो सकता है।


सारांश ( Revision) : सत्ता के वैकल्पिक केंद्र

परिचय

  • शीत युद्ध के दौरान वैश्विक राजनीति में अमेरिका और सोवियत संघ का वर्चस्व था। अन्य देश, संगठन, और आंदोलन भी वैश्विक स्तर पर प्रभाव डाल रहे थे।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के बाद सत्ता के नए केंद्र (नए राष्ट्र और संगठन) सामने आए।

यूरोपीय संघ (ईयू)

  • स्थापना: 1992 की मास्ट्रिक्ट संधि के साथ हुआ। इसकी जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की पुनर्निर्माण की अवधि में हैं।
  • उद्देश्य: यूरोपीय देशों के बीच आर्थिक एवं राजनीतिक एकीकरण करना ताकि वे अमेरिका और सोवियत संघ का मुकाबला कर सकें।
  • विशेषताएं:
    • साझी मुद्रा (यूरो)
    • सीमा नियंत्रण में कमी
    • दुनिया का एक बड़ा आर्थिक बाजार
  • समस्याएं: सदस्यों की विविध विदेश नीतियां और साझा मुद्रा को लेकर मतभेद

आसियान (ASEAN)

  • दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का संगठन: 1967 में स्थापित
  • उद्देश्य: क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति
  • आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF): क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा का मंच
  • दक्षिण एशिया के लिए क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC): क्षेत्रीय सहयोग पर एक कम सफल संगठन

चीन और जापान का महाशक्ति के रूप में उदय

  • चीन:
    • बड़ी और तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था
    • मजबूत होती सैन्य क्षमता
    • “One Belt One Road” जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से वैश्विक प्रभाव बढ़ाना
  • जापान:
    • तकनीकी रूप से उन्नत अर्थव्यवस्था
    • अंतरराष्ट्रीय संगठनों में प्रभावशाली सदस्य

सत्ता के वैकल्पिक केंद्रों का महत्व

  • अमेरिका के एकमात्र महाशक्ति होने का दौर समाप्त हो गया।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था, जहां कई शक्तिशाली राष्ट्र और संगठन हैं।
  • वैश्विक राजनीति में सहयोग और प्रतिस्पर्धा में वृद्धि।

आशा करते है इस पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: सत्ता के समकालीन केन्द्र – नोट्स PDF में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: सत्ता के समकालीन केन्द्र – नोट्स PDF पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

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