इन विस्तृत NCERT नोट्स के साथ, जो विशेष रूप से कक्षा 12 राजनीति विज्ञान भारत के विदेश संबंध के लिए तैयार किए गए हैं! भारत की विदेश नीति के सिद्धांतों, उद्देश्यों और चुनौतियों को समझने में आपकी सहायता के लिए सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते हुए, ये नोट आपको निम्नलिखित प्रदान करते हैं:
- ऐतिहासिक संदर्भ: स्वतंत्रता के बाद से भारत की विदेश नीति के विकास का गहन अध्ययन करें।
- नीतिगत ढांचा: गुटनिरपेक्षता, पंचशील और अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझें।
- संबंधों का विश्लेषण: भारत के पड़ोसी देशों, महाशक्तियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ संबंधों का मूल्यांकन करें।
- समकालीन मुद्दे: आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकरण जैसे प्रमुख मुद्दों पर भारत के रुख को समझें।
यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।
Table of Contents
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | भारत के विदेश संबंध |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
राजनीति विज्ञान अध्याय-4: भारत के विदेश संबंध
इंडियन नेशनल आर्मी / Indian National Army
सुभाष चंद्र बोस का संघर्ष:
- दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, सुभाष चंद्र बोस ने अपने अद्वितीय और संघर्षपूर्ण स्वभाव से पहचान बनाई। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपना पूरा समर्थन दिखाया और नेतृत्व में आगे बढ़कर स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इंडियन नेशनल आर्मी (INA) की स्थापना:
- सुभाष चंद्र बोस ने भारत से बाहर जाकर एक नई सेना की स्थापना की, जिसे वह “इंडियन नेशनल आर्मी” (INA) कहा गया। INA का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करना था और भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में एक सशक्त ताकत बनाना था।
इंडियन नेशनल आर्मी का महत्व:
- INA ने भारतीय सेना के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया और स्वतंत्रता संग्राम में एक अद्वितीय स्थान बनाया। इससे आम जनता में एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना उत्पन्न हुई।
- सुभाष चंद्र बोस और INA का संघर्ष आज भी एक प्रेरणास्रोत है, जो हमें स्वतंत्रता और नेतृत्व के महत्वपूर्ण अंशों को समझने के लिए प्रेरित करता है।
विदेश नीति / Foreign policy
विदेश नीति एक देश के अन्य देशों के साथ संबंधों की निर्माण और स्थापना में एक विशेष प्रकार की नीति होती है। यह नीति देश की स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों को सुनिश्चित रूप से नियंत्रित करने का प्रयास करती है और उसकी रक्षा और सुरक्षा को मजबूती से समर्थ
भारत की विदेश निति / India’s Foreign Policy
- भारत की विदेश नीति एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है जिसने भारत को आंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत रूप से खड़ा किया है। भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त करते ही विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय परिस्थितियों का सामना करना था, जिसने पंडित जवाहर लाल नेहरू को एक दूरदृष्टि से भरा हुआ योजना बनाने के लिए प्रेरित किया।
- भारत की विदेश नीति को लेकर पंडित नेहरू ने अपनी अमिट छाप छोड़ी, जिसमें उन्होंने दुनिया के दो ध्रुवों में बटने वाले विश्व की स्थिति को समझते हुए भारत को एक स्वतंत्र और निष्कलंक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया।
- भारत की विदेश नीति ने देश को एक सांविदानिक रूप से समृद्धि और सुरक्षा की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग प्रदान किया है। पंडित नेहरू ने भारत को अपने सांविदानिक आदर्शों के साथ एक सकारात्मक अभिवृद्धि की दिशा में ले जाने के लिए सकारात्मक और निर्णायक कदम उठाए।
- उन्होंने विभिन्न देशों के साथ नेतृत्व में सम्बन्ध बनाए और विश्व भर में भारत की मानवाधिकार, शांति, और सहयोग की बातें फैलाईं। इसके फलस्वरूप, भारत ने आंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी आवश्यकताओं को समझाने और उन्हें पूरा करने के लिए नेतृत्व किया।
- भारत की विदेश नीति ने विभिन्न आंतरराष्ट्रीय संगठनों में भाग लेने के माध्यम से देश की आवश्यकताओं की रक्षा करने का संकल्प लिया है और साथ ही विश्व सामंजस्य और सांविदानिक समृद्धि में योगदान करने का प्रयास किया है।
- भारत की विदेश नीति ने राष्ट्र को अपने स्वयं के मौद्रिक व्यवस्था में सुधार करने, अपने आत्मनिर्भरता की बढ़ावा देने और आपसी सहयोग के माध्यम से एक समृद्ध विश्व की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाई है। इस प्रकार, भारत की विदेश नीति ने दुनिया के साथ मित्रता, सहयोग, और विकास की नीति में सफलता प्राप्त की है और देश को गर्वित बनाया है।
नेहरू जी की विदेश नीति के तीन मुख्य उद्देश्य थे / Nehru ji’s foreign policy had three main objectives
जवाहरलाल नेहरू जी की विदेश नीति के मुख्य उद्देश्यों को आकर्षक और व्यवस्थित रूप में सुसज्जित करें:
संघर्ष से प्राप्त सम्प्रभुता को बचाए रखना:
- नेहरू जी ने अपनी विदेश नीति के माध्यम से भारत को स्वतंत्रता के बाद आने वाली चुनौतियों से संघर्ष करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया। उनका उद्देश्य यह था कि भारत को अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए विश्व राजनीति में सकारात्मक रूप से शामिल किया जाए।
क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना:
- उनका दूसरा मुख्य उद्देश्य था क्षेत्रीय समरसता और सहयोग को बढ़ावा देना। नेहरू जी ने भारत को पड़ोसी देशों के साथ मित्रता की नींव रखने का प्रयास किया और क्षेत्रीय अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए दुनिया भर में भारत की एक मजबूत पहचान बनाई।
तेज गति से आर्थिक विकास करना:
- नेहरू जी ने भारत को आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत करने का प्रयास किया। उनका उद्देश्य था कि विदेशी नीति के माध्यम से भारत को आर्थिक उन्नति में मदद मिले और देश को विश्व अर्थव्यवस्था में अग्रणी बनाए रखा जाए।
इस रूप में, नेहरू जी की विदेश नीति ने संघर्ष से प्राप्त स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने, और तेज गति से आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रभावी रूप से काम किया।
भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धान्त / Main principles of India’s foreign policy
गुटनिरपेक्षता:
- भारत की विदेश नीति का पहला मुख्य सिद्धान्त है गुटनिरपेक्षता। यह दर्शाता है कि भारत अपने संबंधों में भेदभाव नहीं करता और सभी देशों के साथ संबंध बनाए रखता है।
निःशस्त्रीकरण:
- भारत निःशस्त्रीकरण के सिद्धान्त का पालन करता है और यह दिखाता है कि यह युद्ध और हिंसा का समर्थन नहीं करता है, बल्कि शांति और समरसता की ओर प्रेरित करता है।
वसुधैव कुटुम्बकम:
- इस सिद्धान्त के अनुसार, भारत विश्व को एक परिवार के रूप में देखता है और वसुधैव कुटुम्बकम का पालन करता है, जिससे विश्व समृद्धि और साहित्य्यिक विनोदन में सहयोगी होता है।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्वतंत्रतापूर्वक एवं सक्रिय भागीदारी:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्वतंत्रतापूर्वक और सक्रिय भागीदारी करता है, जिससे विश्व स्तर पर समृद्धि और सुरक्षा में योगदान किया जा सकता है।
पंचशील:
- भारत का पंचशील सिद्धान्त, जिसमें शांति, सहयोग, असम्बद्धता, अस्तित्व-निर्भीकता और अधिकारिक सुलह होती है, उन्हें अपनाने का आदान-प्रदान करता है।
साम्राज्यवाद का विरोध:
- भारत विश्व समुद्र में साम्राज्यवाद के खिलाफ है और उसका समर्थन नहीं करता है, बल्कि न्याय, समरसता और समर्थन की ओर प्रेरित करता है।
अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण हल:
- भारत अपनी विदेश नीति में अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण हल तलाशने का प्रयास करता है और संबंधित पूलितिकल और डिप्लोमेटिक उपायों का अनुसरण करता है।
इस रूप में, भारत की विदेश नीति एक व्यापक, शांतिपूर्ण, और समृद्धि-मुखी दृष्टिकोण को प्रतिष्ठित करती है जो विश्व समुद्र में समरसता और सहयोग की बढ़ती आवश्यकताओं को समझती है।
गुट निरपेक्षता की नीति / Policy of non-alignment
स्वतंत्रता के प्राप्ति के बाद, भारत को अपनी संप्रभुता को बचाए रखने की एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही, देश को तीव्र आर्थिक और सामाजिक विकास के लक्ष्यों को भी हासिल करना था। इस समीक्षात्मक दृष्टिकोण से, भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति को अपनी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया।
अथक प्रयासों से मिली स्वतंत्रता के बाद, भारत ने नई दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए कठिनाइयों का सामना किया। एक ओर से, यह अपनी संप्रभुता को बनाए रखने का प्रयास कर रहा था, जबकि दूसरी ओर से यह आर्थिक और सामाजिक विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखना चाहता था।
इस दोहरे उद्देश्य को पूरा करने के लिए, भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाया। इस सिद्धान्त का मूल उद्देश्य था कि भारत अपने संबंधों में नेतृत्व की भूमिका नहीं बनेगा और उसका संबंध सभी देशों के साथ बराबरीपूर्ण रहेगा।
इस प्रकार, गुट निरपेक्षता की नीति ने भारत को विश्व में एक सकारात्मक और समर्थनशील दृष्टिकोण के साथ स्थापित किया है, जो उसे आत्मनिर्भरता, समृद्धि, और सामाजिक समृद्धि की दिशा में अग्रणी बनाता है।
गुट निरपेक्षता की नीति का उद्देश्य / Objective of the policy of non-alignment
शांति और सुरक्षा का स्थायित्व:
- गुट निरपेक्षता की नीति का पहला उद्देश्य था भारत को ऐसे शांतिप्रिय और सुरक्षित दृष्टिकोण में रखना, जिससे शीत युद्ध के खतरों से बचा जा सके। इसने विभिन्न राष्ट्रों द्वारा संचालित सैन्य संगठनों से दूरी बनाए रखने का प्रयास किया, जैसे कि नाटो, वारसा पेक्ट, आदि।
आर्थिक और सामरिक सहायता की प्राप्ति:
- गुट निरपेक्षता की नीति ने यह उद्देश्य भी रखा कि आवश्यकता के परिस्थितियों में भारत दोनों ही खेमों से आर्थिक और सामरिक सहायता प्राप्त कर सके। इसने एशिया और अफ्रीका के नए स्वतंत्र देशों के साथ विशेष संबंध बनाए रखने के लिए विशेष ध्यान दिया और उनके साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया।
वि-औपनिवेशिकरण की समर्थन:
- इस नीति ने भविष्य में आशीर्वादशील स्थान बनाने की संभावना को ध्यान में रखते हुए, विभिन्न नव स्वतंत्र देशों के साथ वि-औपनिवेशिकरण की प्रक्रिया का समर्थन किया। इससे भारत ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थिति की संभावना को प्रोत्साहित किया।
इस रूप में, गुट निरपेक्षता की नीति ने भारत को एक सकारात्मक और सहयोगी देश के रूप में स्थापित किया, जो आत्मनिर्भरता, शांति, और सामाजिक समृद्धि की दिशा में प्रेरित करता है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन / Non-Aligned Movement
सम्मेलन की नींव:
- गुट निरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत 1955 में इंडोनेशिया के शहर बांडुंग में हुई, जहां एफ्रो – एशियाई सम्मेलन में इस आंदोलन की नींव रखी गई।
पहला सम्मेलन:
- सितंबर 1961 में बेलग्रेड, सर्बिया में पहला गुट निरपेक्ष सम्मेलन हुआ, जिससे इस आंदोलन का औपचारिक प्रारंभ हुआ।
सदस्य देशों की संख्या:
- वर्तमान में, गुट निरपेक्ष आंदोलन में तृतीय विश्व के 120 सदस्य देश हैं, जो एक साथ शांति, सुरक्षा, और विकास की क्रियाएं कर रहे हैं।
सम्मेलन का संपन्न:
- सितंबर 2016 में गुट निरपेक्ष आंदोलन का 17वां सम्मेलन वेनेजुएला में संपन्न हुआ, जिसने संबंधित देशों को एक साथ लाभकारी सहयोग करने का मौका दिया।
आगामी सम्मेलन:
- 18वां सम्मेलन जून 2019 में अजरबैजान में प्रस्तावित है, जिसमें आंतर्राष्ट्रीय समुदाय को समृद्धि और एकसाथीता की दिशा में काम करने का मौका मिलेगा।
इस रूप में, गुट निरपेक्ष आंदोलन ने विभिन्न राष्ट्रों को एक साथ आत्मनिर्भरता और शांति की दिशा में मिलकर काम करने का एक सामर्थ्यपूर्ण मंच प्रदान किया है।
एफ्रो – एशियाई एकता / Afro-Asian Unity
नेहरू का संपर्क:
- नेहरू के दौर में, भारत ने एशिया और अफ्रीका के नव – स्वतंत्र देशों के साथ सुरक्षित संपर्क बनाए।
स्वर में एशियाई एकता:
- 1940 और 1950 के दशकों में नेहरू ने बड़े मुखर स्वर में एशियाई एकता की पैरोकारी की, जिससे राष्ट्रों के बीच सजीव और साकारात्मक संबंध बने।
एशियाई संबंध सम्मलेन:
- नेहरू की नेतृत्व में, भारत ने मार्च 1947 में एशियाई संबंध सम्मेलेन का आयोजन किया, जिसने सामूहिक उन्नति और सामरिक साकारात्मकता की बढ़ावा दिया।
इंडोनेशिया के साथ सहयोग:
- भारत ने नेहरू के नेतृत्व में इंडोनेशिया की आज़ादी के लिए सशक्त प्रयास किए और इसमें सफलता भी प्राप्त की।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन:
- 1949 में, भारत ने इंडोनेशिया की आजादी के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन किया, जिससे राष्ट्रों के बीच मित्रता बढ़ी और सहयोग में वृद्धि हुई।
अनोपनिवेशीकरण का समर्थन:
- भारत ने अनोपनिवेशीकरण की प्रक्रिया का समर्थन किया, जिससे राष्ट्रों को स्वतंत्रता और सामूहिक उन्नति की दिशा में मजबूती मिली।
रंगभेद का विरोध:
- भारत ने खासकर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का विरोध किया और उसने आंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस अमूर्त समस्या में सहायता करने का आदान-प्रदान किया।
बांडुंग सम्मेलन:
- इंडोनेशिया के शहर बांडुंग में 1955 में एफ्रो – एशियाई सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी और जिसने विभिन्न राष्ट्रों को एक साथी समृद्धि की दिशा में मिलकर काम करने का मौका दिया।
भारत – चीन संबंध / India China relations
चीनी क्रांति के बाद के संबंध:
- 1949 में चीनी क्रांति के बाद, भारत ने चीन की कम्यूनिस्ट सरकार को पहले देशों में मान्यता देने वाला एक था। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ अच्छे संबंध बनाने का प्रयास किया।
आक्रमण की आशंका:
- उप – प्रधानमंत्री और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आशंका जताई कि चीन भारत पर आक्रमण कर सकता है। नेहरू जी ने इस आशंका का मुख्य विरोध किया और मान्यता दी कि ऐसी कोई संभावना नहीं है।
स्थिति का विश्लेषण:
- नेहरू जी की यह मान्यता और चीन के साथ अच्छे संबंधों का अभिवादन विचारशीलता और विस्तारशीलता के रूप में समझी जा सकती है। हालांकि, बाद में आनेवाले समय में भारत और चीन के बीच कई विवाद उत्पन्न हुए, जो भूमि सीमा समस्या और अन्य मुद्दों पर आधारित थे।
इस रूप में, भारत – चीन संबंधों की दास्तान विवाद और समझौते की है, जो समय-समय पर बदलती रही है।
पंचशील / Panchsheel
29 अप्रैल 1954 को, भारत के प्रधानमंत्री पं. नेहरू और चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई के बीच एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौता हुआ, जिसे ‘पंचशील’ कहा जाता है।
जिसके अग्रलिखित पांच सिद्धान्त है:-
सम्बंध स्थापना:
- पंचशील का पहला सिद्धांत था सम्बंध स्थापना, जिससे दोनों देशों के बीच भ्रातृत्व और सहयोग की भावना को मजबूत किया गया।
शांति और शांति संबंधी सिद्धांत:
- दूसरा सिद्धांत था शांति और शांति संबंधी सिद्धांत, जिससे सीमा विवादों का समाधान शांतिपूर्णता के द्वारा किया जा सके।
स्वतंत्रता का सिद्धांत:
- तीसरा सिद्धांत था स्वतंत्रता का सिद्धांत, जो दोनों देशों को अपने-आपकी अपनी अंतर्निर्भरता का आदान-प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है।
अधिकारों का आदान-प्रदान:
- चौथा सिद्धांत था अधिकारों का आदान-प्रदान, जिससे दोनों देशों के नागरिकों को अपने-आपकी अधिकारों का आनंद लेने का सुनिश्चित किया जा सकता है।
अपार्थेड का निषेध:
- आखिरी सिद्धांत था अपार्थेड का निषेध, जिससे भारत ने दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध रंगभेद के खिलाफ एक सख्त स्थानीयता अभियान का समर्थन किया।
भारत – चीन के बीच विवाद के मुद्दे / Issues of dispute between India and China
तिब्बत की समस्या:
- 1950 में चीन ने तिब्बत पर अपना काबिज़ा जमा लिया, जिसका विरोध तिब्बती जनता ने किया। भारत ने इसका विरोध नहीं किया, लेकिन तिब्बती धार्मिक नेता दलाई लामा को राजनीतिक शरण देने से चीन ने भारत पर आपत्ति जताई।
सीमा – विवाद:
- चीन और भारत के बीच सीमा-विवाद ने बढ़ावा पाया, जिसमें चीन ने अपना अधिकार जताया और जम्मू-कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश के अंशों पर दावा किया।
भारत – चीन युद्ध:
- 1962 में चीन ने अचानक भारत पर हमला किया, जिसका उत्तर भारतीय सेना ने किया। इस युद्ध में भारत हारा, और चीन ने युद्ध विराम घोषित किया।
युद्ध के परिणाम:
- भारत हारा और विभाजित हुआ।
- रक्षा मंत्री वी के कृष्णमेनन ने मंत्रिमंडल छोड़ा और अनेक सेना कमांडरों ने इस्तीफा दिया।
- चीन के साथ भारतीय विदेश नीति पर सवाल उठा।
- नेहरू की छवि पर असर हुआ और इसने देश में विवाद उत्पन्न किया।
इस प्रकार, ये विवाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में बदलाव और विवादों की कई कारणों से प्रभावित हुए।
भारत – चीन सम्बन्धों में सुधार की पहल / Initiatives to improve India-China relations
राजनयिक संबंधों की शुरुआत (1976):
- 1962 के बाद, भारत – चीन संबंधों को 1976 में राजनयिक संबंध बनाए जाने का प्रयास किया गया।
चीन यात्रा और व्यापारिक संबंध (1979):
- 1979 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री राजीव गांधी ने चीन की यात्रा की और वहाँ व्यापारिक संबंधों पर चर्चा की।
अटल बिहारी वाजपेयी की यात्रा (2003):
- 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फिर से चीन की यात्रा की।
- इस यात्रा में चीन ने प्राचीन सिल्करूट, नाथूला दरा को व्यापार के लिए खोलने का सहमति दिया, जो 1962 से बंद था।
- इससे सिक्किम को भारत का अंग मान्यता मिली।
नोट:
चीन की दावेदारी और पाकिस्तान के साथ मित्रता, और चीन की भारत के खिलाफ मिली मदद के कारण, अरूणाचल प्रदेश में तनाव बना रहता है।
भारत तथा चीन के विवादों को सुलझाने के लिए उठाए गए कदम / Steps taken to resolve the disputes between India and China
सीमा विवादों के सुलझाव के प्रयास (2014-2016):
- चीन और भारत सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयास कर रहे हैं। 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा में, मुख्य समझौता कैलाश मानसरोवर यात्रा हेतु वैकल्पिक सुगम सड़क मार्ग खोलने का प्रस्ताव था।
- मई 2016 में भारतीय राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने चीन की यात्रा की, जिसमें पाकिस्तान के आतंकवादी अजहर मसूद के पक्ष में वीटो किया गया।
व्यक्तिगत और सांस्कृतिक संबंध (P2P STRENGTH):
- भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा सकारात्मक रूप से भारत – चीन संबंधों को मजबूत करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
- P2P (People to People) संबंधों पर STRENGTH के आधार पर ध्यान दिया जा रहा है:
- S – Spirituality (आध्यात्मिकता)
- T – Tradition, Trade, Technology (रीतियाँ, व्यापार, तकनीक)
- R – Relationship (संबंध)
- E – Entertainment (Art, Movies) (मनोरंजन – कला व सिनेमा)
- N – Nature Conservation (प्रकृति का संरक्षण)
- G – Games (खेल)
- T – Tourism (पर्यटन)
- H – Health & Healing (स्वास्थ्य व निदान)
सैन्य समझौता (2017):
- भारत और चीन के बीच डोकलाम क्षेत्र में सैनिक तनातनी 2017 में शुरू हुई, लेकिन आपसी कूटनीतिक प्रयासों से यह समस्या समाप्त हो गई।
आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त आह्वान (2019):
हाल ही में, चीन ने भारत के संयुक्त आह्वान को समर्थन दिया है, जिसमें आतंकी संगठन जैश – ए – मुहम्मद के सरगना अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित किया गया। इसके माध्यम से भारत – चीन सम्बन्धों में सुधार का संकेत मिलता है।
भारत और रूस सम्बन्ध / India and Russia relations
दोनों के बीच सदिग्ध सम्बन्ध:
- भारत और रूस के बीच सदिग्ध और दृढ़ सम्बन्ध हमेशा से रहे हैं।
अविश्वासनीय मित्रता:
- रूस ने हमेशा भारत के साथ सहायता की है, जब भी यह आवश्यक हुआ है, फिर चाहे वह सैन्य सामरिक सहायता हो या अन्य क्षेत्रों में।
साझा सपना – बहुध्रुवीय विश्व:
- भारत और रूस दोनों का सपना है एक बहुध्रुवीय विश्व का निर्माण, जिसमें सभी राष्ट्रों को सामृद्धि और समृद्धि मिले।
80 द्विपक्षीय समझौता:
- 2001 में हुए 80 द्विपक्षीय समझौते ने दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक और सामरिक संबंधों की मजबूती को दर्शाया।
रुसी हथियारों का खरीदार:
- भारत ने रूस से विभिन्न प्रकार के हथियारों को खरीदा है, जो न केवल शक्ति प्रदान करते हैं बल्कि सुरक्षा में भी मदद करते हैं।
आर्थिक और ऊर्जा सम्बन्ध:
- भारत रूस से तेल की आपूर्ति करता है और इसके बारे में अन्य आर्थिक मुद्दे भी हैं।
वैज्ञानिक सहयोग:
- दोनों देश वैज्ञानिक योजनाओं में सहयोग करते हैं और एक दूसरे की तकनीकी उन्नति में मदद करते हैं।
कश्मीर समर्थन:
- रूस ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया है, जो उनके संबंधों को मजबूत बनाए रखता है।
इस प्रकार, भारत और रूस के सम्बन्ध दोनों के लिए सर्वश्रेष्ठ और विश्वासयोग्य रहे हैं।
भारत और अमेरिका सम्बन्ध / India and America relations
शुरुआती तनाव:
- भारत की सोवियत संघ से नज़दीकी और अमेरिका की संबंधीयों के कारण, दोनों देशों के सम्बन्ध शुरूआत में ख़राब थे।
1991: बदलते समय के साथ सुधार:
- 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, भारत ने विदेशी नीति में सुधार किया और अमेरिका के साथ सम्बन्धों में मित्रता की दिशा में कदम बढ़ाया।
वर्तमान में सुदृढ़ सम्बन्ध:
- वर्तमान में, भारत और अमेरिका के सम्बंध काफी सुदृढ़ हैं, और दोनों देश एक दूसरे के महत्वपूर्ण साझा रुचियों के क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं।
व्यापार और आर्थिक सहयोग:
- भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में मजबूती है, जिससे दोनों देशों को आर्थिक और वाणिज्यिक लाभ हो रहा है।
सुरक्षा और रक्षा:
- भारत और अमेरिका के बीच सुरक्षा और रक्षा से जुड़े कई सहयोगी कार्यक्रम चल रहे हैं, जिससे दोनों देशों की सुरक्षा में सहायता हो रही है।
विज्ञान और तकनीक:
- विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में भारत और अमेरिका का सम्बन्ध मजबूत है, और वे एक दूसरे के वैज्ञानिक योजनाओं में सहयोग कर रहे हैं।
- सम्बन्धों के इस सुधार से दिखता है कि भारत और अमेरिका एक दूसरे के साथ विभिन्न क्षेत्रों में साथी बन चुके हैं और एक दूसरे के साथ समृद्धि और सहयोग की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।
भारत और अमेरिका के सम्बन्धो की विशेषताएं / Features of relations between India and America
सॉफ्टवेयर निर्यात:
- भारत ने अपने सॉफ्टवेयर क्षमता के क्षेत्र में विश्व बाजार में आकर्षक प्रस्तुति बनाई है, और इसका 65 प्रतिशत अमेरिका को निर्यात होता है।
बोईंग कर्मचारी:
- भारत और अमेरिका के बीच उड़ान भरता है, क्योंकि अमेरिकी कंपनी बोईंग के 35 प्रतिशत कर्मचारी भारतीय हैं।
सिलिकॉन वैली में योगदान:
- भारतीयों का सिलिकॉन वैली में योगदान बेहद महत्वपूर्ण है, और इस क्षेत्र में 3 लाख से ज़्यादा भारतीय कार्यरत हैं।
योगदानी से भरा अमेरिकी कंपनियों में:
- भारतीयों का अमेरिकी कंपनियों में अत्याधिक योगदान है, जिससे वहां की विभिन्न उद्योगों में भारतीयों का प्रतिष्ठान बढ़ रहा है।
इन विशेषताओं से प्रतिस्पर्धी और सहयोगी स्वरूप के रूप में भारत और अमेरिका के सम्बन्ध एक नए उच्च स्तर पर हैं, जो वैश्विक अर्थतंत्र में उभरने की सूचना देते हैं।
भारत और इजरायल के सम्बन्ध / Relations between India and Israel
संबंध की शुरुआत (1992):
- 1992 में, भारत और इजराइल ने एक नया साझा यात्रा आरंभ किया।
प्रधानमंत्री का दौरा (2017):
- 2017 में, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने भारत का दौरा किया, जिससे दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत हुए।
मदद की बारंबार उपस्थिति:
- इजराइल ने अक्सर भारत को अपनी मदद का हाथ बढ़ाया है, जो संबंधों को और भी मजबूत बनाता है।
विदेशी हथियारों का प्रमुख सप्लायर:
- इजराइल भारत के लिए रूस के बाद हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है, जो रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण साथी बनाता है।
कृषि और सिंचाई क्षेत्र में सहयोग:
- भारत और इजराइल के बीच कृषि और सिंचाई क्षेत्र में तेजी से बढ़ता सहयोग देखा जा रहा है, जिससे उत्पादकता में सुधार हो रहा है।
जल संरक्षण के लिए उपाय:
- इजराइल ने भारत में जल संरक्षण के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में जल स्वच्छता प्लांट्स बनाए हैं, जो आवश्यक संसाधनों को विवेकपूर्णता से प्रबंधित करने में मदद कर रहे हैं।
आर्थिक संबंध:
- भारत और इजराइल के बीच आर्थिक संबंध बहुत अच्छे हैं, जो विभिन्न आयातों में सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
इस संबंध के माध्यम से, भारत और इजराइल ने साझा समर्थन, तकनीकी सहयोग, और विभिन्न क्षेत्रों में साझा कार्य करके एक दूसरे के साथ अच्छे संबंध बनाए हैं।
भारत – पाकिस्तान संबंध / India-Pakistan relations
विभाजन और तनाव:
- 1947 में हुए विभाजन के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के संबंधों में तनाव रहा है। कश्मीर विवाद और सीमा विवाद कुछ मुख्य मुद्दे हैं जो समय-समय पर उत्पन्न होते रहे हैं।
सिंधु नदी जलसंधि (1960):
- 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जलसंधि हुई, जिससे सम्बंधों में सुधार हुआ।
1965 और ताशकंद समझौता:
- 1965 में हुए युद्ध के बाद ताशकंद समझौता की सहमति हुई, जिससे तनाव में कमी आई।
शिमला समझौता (1972):
- 1972 में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ, जिससे युद्ध से पहले की स्थिति बहाल हुई।
1999 कारगिल संघर्ष:
- 1999 में कारगिल संघर्ष के बाद भी संबंधों में सुधार की कड़ी कोशिश की गई, लेकिन तात्कालिक समय में तनाव बना रहा।
2016 और 2018 का आतंकी हमला:
- 2016 में उरी हमले के बाद और 2018 में आतंकी घुसपैठ के बाद, संबंधों में और भी कठिनाईयां आईं।
2019 आतंकी हमला:
- 2019 में जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद, भारत ने कठोर कदम उठाए और संबंधों में आगे की संभावना कम हो गई।
दिप्लोमेसी और संवाद:
- दोनों देशों ने दिप्लोमेसी और संवाद के माध्यम से संबंधों में सुधार की कोशिश की है, परंतु सशक्त संबंध बनाए रखने में कठिनाईयां रही हैं।
उम्मीदें भविष्य की दिशा में:
- दोनों देशों के बीच आत्मसमर्पण और साहस के संकेतों के बावजूद, भविष्य में सुधार की उम्मीदें रहती हैं, जो सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक स्तर पर हो सकते हैं।
लोगों की भावनाएं:
- सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर भी लोगों की भावनाएं महत्वपूर्ण हैं, और दोनों देशों की जनता के बीच आपसी समझ बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
यह विवरण भारत और पाकिस्तान के संबंधों की रूपरेखा प्रदान करता है, जो समझदारी और आपसी समझ की दिशा में साझा सुधार करने की कोशिश करता है।
भारत और नेपाल सम्बंध / India and Nepal relations
1. विवाद:
- व्यापारिक मतभेद:
- भारत और नेपाल के बीच व्यापारिक मतभेद रहा है, जिसमें चीन की दोस्ती को लेकर भी तनाव बना रहता है।
- चीन और नेपाल के संबंध:
- नेपाल ने चीन के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं, जिससे भारत चिंतित रहता है।
- माओवादी समर्थकों का आतंक:
- नेपाल में बढ़ रहे माओवादी समर्थकों को लेकर भारत को खतरा महसूस हो रहा है।
- अंतर्दृष्टि की कमी:
- नेपाल के द्वारा भारत के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी का आरोप है।
2. सहयोग:
- विज्ञान और व्यापार में सहयोग:
- विज्ञान और व्यापार के क्षेत्र में भारत ने नेपाल को सहयोग प्रदान किया है, जो साझा हित में उन्नति का साधन करता है।
- आवागमन का समझौता:
- दोनों देशों के बीच मुक्त आवागमन का समझौता है, जिससे किसी भी व्यक्ति को बिना पासपोर्ट और वीज़ा के भारत से नेपाल और नेपाल से भारत आ सकता है।
- योजनाएं और सहायता:
- भारत ने नेपाल के लिए कई विकास योजनाओं में मदद की है और उसका सहयोग किया है, जो दोनों देशों के बीच सामरिक और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
यह सुनिश्चित करता है कि चुने गए शब्दों और व्याकरण का प्रयोग करके सामग्री को अधिक आकर्षक और संगठित बनाया गया है, जिससे पाठकों को समझने में सहारा मिलेगा।
भारत और भूटान / India and Bhutan
अत्युत्तम संबंध:
- भारत और भूटान के संबंध बहुत अच्छे हैं और इसमें गहरा आत्मविश्वास है।
उग्रवाद नियंत्रण:
- भूटान ने भारत के साथ साझा अनुबंध के तहत अपने देश में विरोधी उग्रवादियों को बाहर निकालने में सफल रहा है, जिससे भारत को बड़ी मदद मिली है।
परियोजना सहायकता:
- भारत ने भूटान के विकास के लिए पनबिजली और अन्य परियोजनाओं में सक्रिय रूप से सहायकता की है, जिससे दोनों देशों के बीच सशक्त साझेदारी बनी है।
अनुदान और समर्थन:
- भारत भूटान के विकास के लिए सबसे अधिक अनुदान और समर्थन प्रदान करता है, जो इस दोनों देशों के बीच गहरे साझेदारी को प्रमोट करता है।
यह सामग्री अधिक आकर्षक और संरचित बनाई गई है, ताकि पाठक इसे अच्छी तरह से समझ सकें और इस संबंध में भारत और भूटान के बीच की महत्वपूर्ण दोस्ती को पूरी तरह से महसूस कर सकें।
भारत और बांग्लादेश सम्बंध / India and Bangladesh relations
विवाद:
अवैध प्रवास:
- हज़ारों बांग्लादेशियों का अवैध रूप से भारत में प्रवास करना एक महत्वपूर्ण विवाद है जो सीमा सुरक्षा को लेकर है।
नदी जलबांटवारा:
- गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी का जलबांटवारा एक अन्य विवाद है, जिसमें दोनों देशों के बीच साझा जल संप्रेषण पर विचार किया जा रहा है।
प्राकृतिक गैस निर्यात:
- बांग्लादेश ने प्राकृतिक गैस का निर्यात न करने का निर्णय लिया है, जिससे ऊर्जा संबंधित विवादों का मुद्दा बना हुआ है।
मुस्लिम जमात समर्थन:
- बांग्लादेश द्वारा भारत विरोधी मुस्लिम जमातों का समर्थन करने का आरोप भी एक महत्वपूर्ण विवाद है, जो दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव बढ़ाता है।
सेना की प्रवेश की रोकथाम:
- बांग्लादेश द्वारा भारतीय सेना को पूर्व में जाने के लिए रास्ता न देने का विवाद एक सुरक्षित सीमा स्थिति प्राप्त करने के लिए उत्सुक है।
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भारत और श्रीलंका सम्बंध / India and Sri Lanka relations
विवाद:
तमिलों की स्थिति:
- भारत और श्रीलंका के बीच एक प्रमुख विवाद है तमिल निवासियों की स्थिति पर, जिसमें समाजिक और राजनीतिक विमुक्ति की मांग की जा रही है।
1987 में भेजी गई शांति सेना:
- 1987 में भारत ने श्रीलंका में शांति स्थापना के लिए भेजी गई शांति सेना को श्रीलंकाई लोगों ने अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप समझा, जिससे संबंधों में तनाव बढ़ा।
सहयोग:
मुक्त व्यापार का समझौता:
- दोनों ही देशों के बीच बढ़ते मुक्त व्यापार के लिए समझौता है, जो व्यापारिक और आर्थिक रूप से सहायक है।
आपातकालीन सहायता:
- श्रीलंका में आई सुनामी के दौरान, भारत ने आपातकालीन सहायता प्रदान करके श्रीलंकाई लोगों की मदद की।
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भारत और मालदीव के सम्बन्ध / Relations between India and Maldives
1988 में सामरिक सहायता:
- 1988 में, श्री लंका से आए कुछ आतंकी सैनिकों ने मालदीव पर हमला किया। मालदीव ने भारत से सहायता मांगी और भारत ने तत्काल अपनी सेना भेजकर मालदीव की रक्षा की। इस सामरिक सहायता के बाद, भारत और मालदीव के संबंध मजबूत हो गए हैं।
आर्थिक विकास में सहायता:
- भारत ने मालदीव के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सहायता प्रदान की है। इसके माध्यम से, दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं और मालदीव को आवश्यक सामग्री और विकास के लिए सहायता पहुंचती रही है।
पर्यटन और मत्स्य उद्योग का समर्थन:
- भारत ने मालदीव को पर्यटन और मत्स्य उद्योग के क्षेत्र में समर्थन प्रदान किया है। इससे मालदीव की आर्थिक वृद्धि हुई है और वह एक समृद्धि और विकसीता की दिशा में आगे बढ़ा है।
इस संबंधों के संक्षेप में यह बताया गया है कि कैसे भारत ने मालदीव के साथ मित्रता और सहयोग के क्षेत्र में अपना सकारात्मक योगदान दिया है।
भारत का परमाणु कार्यक्रम / India’s nuclear programme
परमाणु परीक्षण:
- मई 1974 में, पोखरण में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। इसके बाद, मई 1998 में भी पोखरण में भारत ने पाँच परमाणु परीक्षण कर स्वयं को परमाणु सम्पन्न घोषित किया। यह परीक्षण ने भारत को परमाणु शक्ति का धाराप्रवाही बनाया।
संधियाँ और हस्ताक्षर:
- भारत ने 1968 की परमाणु अप्रसार संधि और 1995 की “व्यापक परीक्षण निषेध संधि” (CTBT) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। यह कारण भारत इन संधियों को भेदभावपूर्ण मानता है और अपने परमाणु कार्यक्रम में स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है।
राष्ट्रीय स्वायत्तता:
- भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम में स्वायत्तता का आदान-प्रदान किया है और इसे एक सुरक्षित और स्वयंनिर्भर रूप में बनाए रखने का प्रयास किया है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध:
- परमाणु परीक्षणों के कारण, भारत ने अमेरिका सहित कई देशों के द्वारा आर्थिक प्रतिबंधों का सामना किया, लेकिन यह उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्वायत्तता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में कमजोर नहीं कर सका।
परमाणु शक्ति का विकास:
- भारत ने परमाणु शक्ति के क्षेत्र में विकास किया है और इसे अपनी रक्षा और सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण साधन बनाए रखने का प्रयास किया है।
यह बताता है कि भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम में स्वतंत्रता और अनुशासन के साथ पूर्ण रूप से शक्ति का विकास किया है, जो इसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है।
भारत की परमाणु नीति / India’s nuclear policy
शांतिपूर्ण कार्य:
- भारत ने स्पष्ट रूप से घोषित किया है कि वह परमाणु शक्ति का प्रयोग केवल शांतिपूर्ण कार्यों के लिए करेगा। भारत अपनी सुरक्षा और रक्षा के लिए आवश्यकतानुसार परमाणु हथियारों का निर्माण करेगा, लेकिन उसे पहले इनका प्रयोग नहीं करना है।
राजनीतिक सत्ता:
- परमाणु हथियारों के प्रयोग की शक्ति राजनीतिक सत्ता के हाथ में होगी। इससे सिद्ध होता है कि भारत इन्हें समझदारी और सावधानी से प्रयोग करेगा, सिर्फ अगर उसकी सुरक्षा के लिए यह आवश्यक हो।
विदेश नीति:
- भारतीय विदेश नीति का निर्माण उदारीकरण और वैश्वीकरण की दृष्टि से किया जा रहा है, लेकिन इसमें सभी राजनीतिक दलों के बीच राष्ट्रीय अखण्डता, अंतर्राष्ट्रीय सीमा सुरक्षा, और राष्ट्रीय हितों पर सहमति है।
शीतयुद्ध के बाद की नीति:
- 1991 में शीतयुद्ध के बाद, भारत ने अपनी विदेश नीति को उदारीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में बदला, और यहां विशेष ध्यान दिया गया कि क्षेत्रीय सहयोग एक महत्वपूर्ण दिशा है।
यह बताता है कि भारत ने अपनी परमाणु नीति को शांतिपूर्ण, सुरक्षित, और राजनीतिक सत्ता के साथी रूप में विकसित करने के लिए सकारात्मक कदम उठाए हैं, जिससे यह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक निर्भीक भूमिका निभा सकता है।
आशा करते है इस पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: भारत के विदेश संबंध में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान : भारत के विदेश संबंध पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!
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Author: NCERT
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