महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन अध्याय के विस्तृत हिंदी नोट्स | Class 12 इतिहास के लिए NCERT सिलेबस पर आधारित, सरल भाषा।
महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन Notes Class 12 history chapter 11 notes in hindi इस अध्याय मे हम स्वदेशी आन्दोलन , चम्पारण किसान आंदोलन , खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन , रौलेट एक्ट , भारत छोड़ो आंदोलन तथा उसे जुड़ी विषयो पर चर्चा करेेंगे ।
Table of Contents
यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 11 |
Chapter Name | महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
Class 12 History Notes In Hindi Chapter 11 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन
इतिहास अध्याय-3: महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन
महात्मा गांधी: एक अद्भुत जीवन यात्रा
जन्म और परिवार: महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद्र गांधी और माता का नाम पुतली बाई था।
बचपन की शैली: उनका बचपन में शर्मीला स्वभाव था और उनका नाम मनु था।
अल्प आयु में विवाह: उनका अल्प आयु में (13 वर्ष) कस्तूरबा से विवाह कर दिया गया था।
महात्मा गांधी की इस अद्भुत जीवन यात्रा में उनका नेतृत्व, साहस, और अद्भुत संघर्ष नवीनतम व्याख्यान के रूप में हमें प्रेरित करता है।
गांधी जी और दक्षिण अफ्रीका (1893-1914)
- सेठ अब्दुल्ला के निमंत्रण: 1893 में महात्मा गांधी जी दक्षिण अफ्रीका गए थे, जहां सेठ अब्दुल्ला ने उन्हें एक मुकदमा लड़ने के लिए बुलाया था। इस यात्रा ने गांधी जी की जीवन की एक नई धारा शुरू की।
- रंगभेद का विरोध: दक्षिण अफ्रीका में, गांधी जी ने रंगभेद का सामना किया और इसे खुलकर विरोध किया। उन्होंने काले लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रयास किया और उन्हें इस भेदभाव से आज़ाद करने के लिए संघर्ष किया।
- सत्याग्रह का प्रयोग: गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में पहली बार ‘सत्याग्रह’ का प्रयोग किया, एक अहिंसात्मक विरोध तकनीक। इससे उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया और उच्च जाति भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार के खिलाफ चेतावनी दी।
इस रूपरेखा में, दक्षिण अफ्रीका गांधी जी के जीवन को नए दिशाओं में ले गया और उन्हें ‘महात्मा’ बनाने का मार्ग दिखाया।
स्वदेशी आन्दोलन (1905-07)
- अध्यायन और प्रेरणा: स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय था, जिसका आयोजन बंगाल में लॉर्ड कर्जन के बंगाल विभाजन के खिलाफ हुआ था।
- विद्यार्थी और युवा समूहों की उत्कृष्ट भूमिका: स्वदेशी आंदोलन में विद्यार्थी और युवा समूहों ने बड़ी भूमिका निभाई। वे धर्म, शिक्षा, और समाज के विविध क्षेत्रों में सक्रिय रहे और जनता को आंदोलन में सहयोग करने के लिए प्रेरित किया।
- आंदोलन की विभिन्न रूपरेखाएं: स्वदेशी आंदोलन ने विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ, जैसे विद्यालयों और कालेजों के बाहर के प्रदर्शन, विद्यार्थी और युवा समूहों के द्वारा ब्रिटिश कंपनियों के उत्पादों के बहिष्कार, और स्वदेशी उत्पादों की उत्पत्ति और प्रचार।
- असहमति के अभिव्यक्ति का माध्यम: स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय जनता के बीच विद्यानिकेतन, सभा, और सम्मेलनों के माध्यम से असहमति का स्वागत किया। यह असहमति ब्रिटिश शासन के खिलाफ उम्मीद और उत्साह का स्रोत बना।
- आंदोलन की असफलता और महत्व: हालांकि स्वदेशी आंदोलन के प्रारंभिक चरण में कुछ सफलता हासिल हुई, लेकिन ब्रिटिश शासन के खिलाफ विपरीत प्रतिक्रिया भी उत्पन्न हुई। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण अवधारणा का एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
इस आंदोलन के प्रमुख नेता :
- बाल गंगाधर तिलक (महाराष्ट्र): महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक ने स्वदेशी आंदोलन में अपना अद्वितीय योगदान दिया। उन्हें “लोकमान्य” के उपाधि से विख्यात किया जाता है।
- विपिन चन्द्र पाल (बंगाल): बंगाल के विपिन चंद्र पाल ने स्वदेशी आंदोलन को नेतृत्व किया और जनता को उत्साहित किया।
- लाला लाजपत राय (पंजाब): पंजाब के लाला लाजपत राय ने भी स्वदेशी आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। उन्हें “पंजाब केशरी” कहा जाता है।
- लाल, बाल, पाल: इन तीनों नेताओं को “लाल, बाल, पाल” के नाम से भी जाना जाता है, जो स्वदेशी आंदोलन के तीन मुख्य स्तंभ हैं।
- हिंसा के विरुद्ध सिफारिश: इन नेताओं ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ हिंसा का रास्ता अपनाने की सिफारिश की और स्वदेशी आंदोलन में लोगों को उत्साहित किया।
गांधी जी का भारत आगमन / Gandhiji’s arrival in India
- सत्याग्रह का सफल प्रयोग: महात्मा गांधी ने 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया और भारत वापस आए। इसी दिन को हम अप्रवासी दिवस के रूप में मानते हैं।
- राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सहयोग: भारत लौटने के बाद, गांधी जी ने राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं से मिलकर विचार विमर्श किया।
- गोपाल कृष्ण गोखले का साथ: उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया और उनके साथ भारतीय राजनीति के अध्ययन के लिए सारे देश का भ्रमण किया। गोपाल कृष्ण गोखले के आध्यात्मिक और राजनीतिक गुरु महादेव गोविंद रनाडे थे।
- यात्रा और समर्पण: गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर, गांधी जी ने एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने देशवासियों के कष्टों को समझा और उनके दुःख को अपनाया।
- राष्ट्रपिता का समर्पण: गांधी जी को देश में फैली अज्ञानता, अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता, और छूत के दुःख से दुःख हुआ। उन्होंने अपने आपको राष्ट्रपिता के लिए समर्पित किया।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय BHU :-
- उद्घाटन समारोह: गांधी जी ने फरवरी 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में हिस्सा लिया। इस समारोह में उन्होंने राजा और मानव प्रेमी व्यक्तियों के साथ मिलकर योगदान दिया जो विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भारतीय समाज के ध्यान: गांधी जी के समारोह में आने पर उन्होंने मजदूरों और गरीबों की समस्याओं पर ध्यान दिया। उन्होंने स्वशासन की बात की और किसानों के श्रम की समझाई।
- किसानों की मुद्दा: उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के लिए किसानों का समर्थन अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने किसानों के माध्यम से ही देश की मुक्ति की संभावना को बताया।
- लखनऊ अधिवेशन: गांधी जी के बाद, दिसंबर 1916 में लखनऊ में हुई कांग्रेस की वार्षिक अधिवेशन में उन्हें चंपारन से आए किसानों के प्रति उत्पादकों की अत्याचार की रिपोर्ट प्राप्त हुई।
गांधीजी का प्रारम्भिक आन्दोलन: चंपारण,अहमदाबाद, खेड़ा / Gandhiji’s initial movement: Champaran, Ahmedabad, Kheda
चम्पारण किसान आंदोलन 1917 :-
- आरंभिक सत्याग्रह: महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में सत्याग्रह के माध्यम से सफलतापूर्वक संघर्ष किया था। इसके बाद, उन्होंने चंपारण (बिहार) की ओर अपनी कदम बढ़ाई।
- किसानों की स्थिति: 1917 में चंपारण जिले में किसानों को नील की खेतों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था, जिसे तीनकठिया पद्धति कहा जाता था।
- आंदोलन के नेतृत्व: महात्मा गांधी, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल-हक, जे. बी. कृपलानी और महादेव देसाई चंपारण पहुंचे और किसानों की समस्याओं का अध्ययन किया।
- सफलता: आंदोलन में गांधीजी की अग्रणी भूमिका ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की पहली लड़ाई में विजय हासिल की। उन्होंने खेत मालिकों के साथ समझौता किया और किसानों को उनके अनुदान का 25 प्रतिशत रिफंड करने के लिए सहमति दी।
- उपाधियाँ: इस आंदोलन के कारण, महात्मा गांधी को बहुतायत उपाधियाँ प्राप्त हुईं, जैसे कि “महात्मा” (रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा) और “मलंग बाबा” (खान अब्दुल गफ्फार खान द्वारा)।
खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन 1918 / Kheda Satyagraha Movement 1918
- किसानों की मुश्किलें: 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों ने अपनी फसलों की चौपट हो जाने के कारण सरकार द्वारा लगान में छूट न मिलने का सामना किया।
- गांधीजी की कार्रवाई: 22 मार्च 1918 को महात्मा गांधी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और ब्रिटिश सरकार को लगान माफ करने के लिए अपनी मांग प्रस्तुत की। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने खेड़ा के किसानों के अनुकूल निर्णय लिया।
- महत्व: इस आंदोलन को हार्डीमेन ने गांधीजी का प्रथम सफल सत्याग्रही आंदोलन माना था। यह आंदोलन किसानों के हक की रक्षा के लिए गांधीजी के महत्वपूर्ण कदमों का एक प्रमुख उदाहरण था।
अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन 1918 / Ahmedabad Mill Workers Movement 1918
- विवाद की उत्पत्ति: मार्च 1918 में अहमदाबाद के मिल मज़दूरों और मालिकों के बीच प्लेग बोनस पर विवाद हुआ। मजदूरों ने 50% बोनस की मांग की, जबकि मालिक 20% ही देने को तैयार थे।
- आंदोलन का आयोजन: मालिकों के विरुद्ध मजदूरों ने श्रम विवाद में हस्तक्षेप किया और कपड़ों की मिलों में काम करने के लिए बेहतर स्थितियों की माँग की।
- गांधीजी की भूमिका: महात्मा गांधी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और भूख हड़ताल का सहारा लिया। उन्होंने पहला आमरण अनशन किया और मजदूरों की मांग पर सफलता प्राप्त की।
- समाप्ति: आंदोलन के परिणामस्वरूप, मजदूरों को 35% बोनस मिला। इस आंदोलन ने गांधीजी के पहले आमरण अनशन की नींव रखी और मानविकी के माध्यम से समस्याओं का समाधान किया।
- महत्वपूर्ण साथी: इस आंदोलन में मिल मालिक अंबालाल साराभाई और उनकी बहन अनुसुइया भी गांधीजी के साथ थे, जिसने इसकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रौलेट एक्ट (1919) / Rowlatt Act (1919)
- उत्पत्ति और प्रेरणा: गरीबी, बीमारी, नौकरशाही का दमन और युद्धकाल में धन एकत्र करने और सिपाहियों की भर्ती में कठोरता के कारण, भारतीय जनता में अंग्रेजी शासन के खिलाफ असंतोष उत्पन्न हुआ। इससे उग्रवादी गतिविधियों की तेजी से बढ़ती थी।
- रौलेट समिति का गठन: 1917 में, सरकार ने अंबालाल साराभाई रौलेट की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसका काम आतंकवाद को नष्ट करने के लिए एक प्रभावी योजना बनाना था।
- रौलेट एक्ट की उत्पत्ति: रौलेट समिति के सुझावों के आधार पर, 1919 में केन्द्रीय विधान परिषद में दो विधेयक पेश किए गए, जिनमें से एक पास हो गया। इसे रौलेट एक्ट या रौलेट अधिनियम के रूप में जाना गया।
- कानून का दुरुपयोग: रौलेट अधिनियम के तहत, अंग्रेजी सरकार को बिना मुकदमा चलाए लोगों को जेल में बंद करने की अनियमित अधिकार था, जिसे बिना वकील, अपील, या दलील के कानून के रूप में जाना जाता था।
- उत्पात और प्रभाव: रौलेट एक्ट ने जनता की साधारण स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार किया और अंग्रेजी सरकार की बर्बर नीति का स्पष्ट प्रमाण था। इसे मोतीलाल नेहरू ने “न अपील, न वकील, न दलील” का कानून कहा।
रौलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह (1919) / Satyagraha against Rowlatt Act (1919)
- काला कानून की आलोचना: भारतीय जनता ने रौलेट एक्ट को “काला कानून” कहकर आलोचना की। गांधी जी ने इसे आलोचना करते हुए इसके खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए सत्याग्रह सभा की स्थापना की।
- स्वयं सेवकों की कार्रवाई: रौलेट एक्ट के विरोधी सत्याग्रह के पहले चरण में, स्वयं सेवकों ने कानून को औपचारिक चुनौती देते हुए गिरफ्तारियाँ दी।
- हड़तालों का आयोजन: 6 अप्रैल, 1919 को गांधी जी के अनुरोध पर देश भर में हङ्गामों का आयोजन किया गया, जिसके कारण गांधी जी को पंजाब और दिल्ली में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया।
- गांधी जी की गिरफ्तारी: 9 अप्रैल को गांधी जी दिल्ली में प्रवेश के प्रयास में गिरफ्तार कर लिए गए, जिससे देश में आक्रोश बढ़ा। उन्हें बंबई ले जाकर रिहा कर दिया गया।
- सत्याग्रह सभा में शामिल व्यक्तित्व: रौलेट एक्ट के विरोध के लिए गांधी जी द्वारा स्थापित सत्याग्रह सभा में जमना लाल दास, द्वाराकादास, शंकर लाल बैंकर, उमर सोमानी, बी.जी. हार्नीमन आदि शामिल थे।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रेल 1919 / Jallianwala Bagh massacre 13 April 1919
- संघर्ष का मैदान: 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोग रोलेट एक्ट के खिलाफ एकत्र हुए। यहाँ कई लोग अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आए थे।
- अंधाधुंध गोलियाँ: मैदान चारों ओर से बंद था और जो लोग मैदान में थे, उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था कि उनके पीछे इलाके में मार्शल लॉ लागू किया गया है।
- दायर का डरावना सामना: जनरल डायर ने अपने हथियारबंद सैनिकों के साथ मैदान पर प्रवेश किया और जैसे ही वहाँ पहुँचे, उन्होंने मैदान के सभी रास्ते बंद कर दिए।
- अम्बुश की घातक चालें: सिपाहियों ने अंधाधुंध गोलियाँ चलाई, जिससे बहुत से लोगों की मौत हो गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 379 लोगों की मौत हो गई, जबकि अन्य स्रोतों के अनुसार इस घटना में 1000 से अधिक लोगों की मौत हुई।
असहयोग आंदोलन, 1920-22 / Non-cooperation movement, 1920-22
प्रथम जन आंदोलन: यह आंदोलन महात्मा गांधी का पहला जन आंदोलन था, जिसने उन्हें जन जन के नेता बना दिया। जनता के भीतर एक नया उत्साह और जोश भर गया।
कार्यक्रमों का विवरण:
- उपाधियाँ बेतनिक या अबेतनिक पदों से त्याग दिए गए।
- सरकारी और सहकारी स्कूलों को बहिष्कार किया गया।
- 1919 सुधार एक्ट के अन्तर्गत होने वाले चुनाव रद्द किए गए।
- सभी सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार किया गया।
- विदेशी माल का भी बहिष्कार किया गया।
- सरकारी और अर्ध-सरकारी समारोहों का बहिष्कार किया गया।
- सैनिक कॉलेज और मजदूरों में काम करने का इनकार किया गया।
- मधु पान का भी निषेद किया गया।
- सरकारी करों का भुगतान भी बंद कर दिया गया।
- विदेशों में नौकरी करने से भी इनकार किया गया।
रचनात्मक पक्ष:
- कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना की गई।
- पंचायतों की स्थापना हुई।
- स्वदेशी और हाथकरघा उद्योग को प्रोत्साहित किया गया।
- अस्पृश्यता का अंत किया गया।
- हिन्दू-मुस्लिम एकता को स्थापित किया गया।
गांधीजी का मार्गदर्शन: गांधीजी ने आंदोलन को अहिंसा के मार्ग पर चलाने का संदेश दिया और जागरूकता और उत्साह को बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि किसी भी कीमत पर आंदोलन हिंसात्मक नहीं होना चाहिए।
आंदोलन की शक्ति: यह आंदोलन देश का पहला विशाल जन आंदोलन था, जिसमें सभी प्रांत, वर्ग, और जाति के लोग भाग लिए। यह आंदोलन भारी संख्या में लोगों को आकर्षित किया और राष्ट्रीय अभियान के रूप में विकसित हुआ।
चोरी चोरा और असहयोग आंदोलन स्थगित :-
घटना का संक्षिप्त वर्णन:
- 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चोरी-चोरा गांव में कांग्रेस द्वारा जुलूस निकाला गया।
- पुलिस ने जुलूस को रोका, पर भीड़ ने पुलिस को हमला किया।
- जुलूस ने थाने में आग लगाई जिससे कई लोगों की मौत हो गई।
गांधी जी की प्रतिक्रिया:
- गांधी जी ने इस हिंसा को देखकर बहुत दुखी हुए।
- उनका विश्वास हुआ कि लोग अभी अहिंसात्मक आंदोलन के लिए तैयार नहीं हैं।
आंदोलन की स्थगिति:
- कांग्रेस के कार्यसमिति ने अंततः 12 फरवरी 1922 को आंदोलन को स्थगित कर दिया।
इसके प्रभाव:
- यह घटना गांधी जी को अहिंसा के मार्ग पर और ज्यादा दृढ़ बनाई।
- उन्होंने समझा कि लोगों को अहिंसा के लिए और जागरूक करने की जरूरत है।
नमक सत्याग्रह :- वर्ष 1928 / Salt Satyagraha :- Year 1928
एंटी – साइमन कमीशन मूवमेंट:
- लाला लाजपत राय पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया गया जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
- इससे भारत में राजनीतिक सक्रियता में वृद्धि हुई।
वर्ष 1929: लाहौर कांग्रेस अधिवेशन:
नेहरू को अध्यक्ष चुना गया।
“पूर्ण स्वराज” को आदर्श घोषित किया गया।
नमक सत्याग्रह (दांडी):
मार्च की योजना: गांधीजी ने नमक कानून को तोड़ने के लिए मार्च की योजना घोषित की।
मार्च का आयोजन:
- 12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने मार्च शुरू किया।
- उन्होंने सागर किनारे पर जाकर नमक बनाया और इस तरह अपराधी बने।
आंदोलन का प्रभाव:
- किसानों, श्रमिकों, वकीलों, और ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों ने इसमें सहभागिता की।
- सरकार ने हजारों भारतीयों को गिरफ्तार किया और कांग्रेस के नेताओं को भी।
प्रतिक्रिया: अमेरिकी पत्रिका ‘टाइम’ ने ब्रिटिश शासकों को ‘हताश रूप से चिंतित’ बताया।
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव / Lahore session of Congress and proposal for complete independence
उद्देश्य का परिवर्तन:
- कांग्रेस ने कलकत्ता अधिवेशन में औपनिवेशिक स्वराज्य के स्थान पर पूर्ण स्वराज्य को लक्ष्य बनाया।
- नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार करने के बाद इस निर्णय का ऐलान किया गया।
लाहौर अधिवेशन:
- 31 दिसम्बर, 1929 को रावी नदी के किनारे लाहौर में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया गया।
- पं. जवाहरलाल नेहरू ने इस अवसर पर उद्घाटन भाषण दिया।
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव:
- नेहरू ने कहा, “हम भारत के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते हैं।”
- उन्होंने इसका समर्थन देने के लिए भारतीयों को आह्वान दिया।
स्वतंत्रता दिवस का घोषणा:
- सम्मेलन में हजारों लोगों ने भाग लिया और पूर्ण स्वराज्य का प्रण लिया।
- 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आयोजन किया गया।
अहिंसात्मक आंदोलन की बात: नेहरू ने अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत करने का भी संकेत दिया।
गोलमेज सम्मेलन : भारतीय राजनीतिक दलों की महामहिमा / Round Table Conference: Excellencies of Indian Political Parties
सम्मेलन की घोषणा:
- ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और ब्रिटिश राजनीतिज्ञों के बीच गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया।
- यह सम्मेलन साइमन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर भारत की राजनीतिक समस्याओं पर विचार-विमर्श के लिए बुलाया गया।
सम्मेलन का प्रयोजन:
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तीव्रता के बाद, सरकार ने इस सम्मेलन को आयोजित करने का निर्णय लिया।
- इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के समाधान के लिए राजनीतिक समझौता खोजना था।
विचार-विमर्श के विषय:
- सम्मेलन में साइमन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर भारत की राजनीतिक समस्याओं पर चर्चा होगी।
- इसके माध्यम से समस्याओं का समाधान ढूंढने का प्रयास किया जाएगा।
महत्वपूर्ण अवसर:
- गोलमेज सम्मेलन भारतीय राजनीतिक संघर्ष में एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है, जो समाधान के लिए संवाद का माध्यम बन सकता है।
- इससे सरकार और स्वतंत्रता संग्रामियों के बीच समझौता स्थापित करने की उम्मीद है।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवम्बर 1930-19 जनवरी 1931) / First Round Table Conference (12 November 1930-19 January 1931)
सम्मेलन का आयोजन:
- लंदन में 12 नवम्बर 1930 से 19 जनवरी 1931 तक, प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड की अध्यक्षता में प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।
सम्मेलन का उद्देश्य:
- इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संवैधानिक समस्या को सुलझाना था।
- यह सम्मेलन भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
प्रतिनिधियों की संख्या:
- सम्मेलन में कुल 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसमें भारतीय और ब्रिटिश दलों के प्रतिनिधियों शामिल थे।
परिणाम:
- कांग्रेस के अनभिज्ञ होने के कारण, उसने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया।
- इससे, सम्मेलन में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका और यह अनिश्चित काल हेतु स्थगित कर दिया गया।
भागीदारी:
- सम्मेलन में डॉ. अम्बेडकर और जिन्ना जैसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व भाग लिए।
- इनकी भागीदारी ने सम्मेलन को और भी महत्वपूर्ण बनाया।
गाँधी इरविन समझौता / Gandhi Irwin Pact
समझौते का आयोजन:
- ब्रिटिश सरकार के एकमात्र सांसद और महात्मा गांधी के बीच, 5 मार्च 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ।
- इस समझौते के माध्यम से, संवैधानिक समस्याओं का हल ढूंढने की कोशिश की गई।
समझौते के प्रमुख प्रावधान:
- इस समझौते में, वायसराय लार्ड इरविन ने यह निश्चित किया कि हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी राजनीतिक बंधनों को रिहा किया जाएगा।
- भारतीयों को समुद्र किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया गया और उन्हें अधिकार मिला कि वे शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना दे सकें।
- समझौते के अनुसार, आन्दोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को पुनः उनके पदों पर स्थानांतरित किया जाएगा और जब्त सम्पत्ति वापस की जाएगी।
कांग्रेस की शर्तें:
- कांग्रेस ने भी अपनी शर्तें रखी, जैसे कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित किया जाएगा और कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
महत्व:
- इस समझौते का महत्व इसलिए था क्योंकि यह पहली बार था जब ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के साथ समानता के स्तर पर समझौता किया।
- इसे एक महत्वपूर्ण चरण के रूप में देखा गया जिसने स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में मदद की।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (7 सितम्बर 1931 से 1 दिसम्बर 1931) / Second Round Table Conference (7 September 1931 to 1 December 1931)
सम्मेलन का आयोजन:
- लन्दन में 7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ।
- इसमें महात्मा गांधी, डॉ. अम्बेडकर, सरोजिनी नायडू, और मदन मोहन मालवीय जैसे प्रमुख नेताओं की उपस्थिति थी।
मांगें और समाधान:
- गांधीजी ने कांग्रेस को एकमात्र पार्टी बताया, जो साम्प्रदायिक नहीं है और समस्त भारतीय जातियों का प्रतिनिधित्व करती है।
- उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की, जिसे ब्रिटिश सरकार ने माना नहीं।
- अन्य साम्प्रदायिक दलों ने भी अपनी-अपनी जातियों के लिए पृथक-पृथक प्रतिनिधित्व की मांग की।
निराशा और पुनरावृत्ति:
- गांधीजी की समाप्ति में निराशा थी, क्योंकि अन्य दल साम्प्रदायिकता को बढ़ाने के प्रयासरत थे।
- इस निराशा के बाद, गांधीजी ने भारत लौटकर 3 जनवरी 1932 को पुन: सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरंभ किया।
उपसंग्रह: गांधीजी और सरदार पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया और कांग्रेस गैरकानूनी संस्था घोषित की गई।
पूना पैक्ट् (समझौता) अथवा कम्युनल अवॉर्ड / Poona Pact or Communal Award
ब्रिटिश सरकार की घोषणा:
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के बाद, ब्रिटिश सरकार ने 16 अगस्त 1932 को सांप्रदायिक समस्या को हल करने का वादा किया।
- इस घोषणा के साथ, मुस्लिम, सिख, हिन्दू, और भारतीय ईसाई समुदायों को अलग-अलग प्रतिनिधित्व देने की घोषणा की गई।
कम्युनल अवॉर्ड की घोषणा:
- हिन्दू समाज से हरिजनों को अलग करने की घोषणा ने कम्युनल अवॉर्ड या सांप्रदायिक पंचाट की बातें उठाई।
- यह घोषणा स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य सत्ता को संरक्षित करने और नीति बनाने के राजनीतिक उद्देश्यों को प्राथमिकता देना था।
गांधीजी के आमरण अनशन:
- गांधीजी ने सरकार को सांप्रदायिक निर्णय को वापस लेने की चेतावनी दी, और अनशन की धमकी दी।
- हालांकि, सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, जिसके परिणामस्वरूप गांधीजी ने आमरण अनशन आरंभ किया।
पूना पैक्ट की साक्षात्कार:
- समझौता के लिए गांधीजी के सहयोगी जैसे मदनमोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, राजगोपाल चारी, और एम.सी.रज्जा के साथ सम्मेलन का आयोजन किया गया।
- 26 सितंबर 1932 को, समझौता हस्ताक्षर किया गया, और क्योंकि यह पुणे में हुआ, इसे “पूना पैक्ट” कहा गया।
- इस प्रकार, पूना पैक्ट (समझौता) ने समस्त भारतीय समुदायों के बीच सामरिक सौहार्दपूर्ण एवं सामाजिक सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
भारत छोड़ो आंदोलन / Bhaarat chhodo aandolan
क्रिप्स मिशन के बाद कार्रवाई:
- 1942 में, क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद, गांधीजी ने बंबई से “भारत छोड़ो” आंदोलन आरंभ किया।
- गांधीजी और अन्य नेताओं को तत्काल गिरफ्तार किया गया, लेकिन युवा कार्यकर्ताओं ने पूरे देश में हमले और तोड़फोड़ की।
जन आंदोलन का रूप:
- यह आंदोलन जनहित में हुआ, जिसमें सैकड़ों हजार नागरिक और युवा अपने कॉलेजों को छोड़कर जेल चले गए।
- कांग्रेसी नेताओं के जेल में रहते हुए, मुस्लिम लीग ने पंजाब और सिंध में अपना प्रभाव बढ़ाने के प्रयास किये।
गांधीजी की रिहाई और वार्ता:
- 1944 में, गांधीजी को जेल से रिहा किया गया, और उन्होंने मतभेदों को सुलझाने के लिए जिन्ना के साथ बैठक की।
ब्रिटिश सरकार की रुचि में बदलाव:
- 1945 में, इंग्लैंड में श्रम सरकार सत्ता में आई और भारत को स्वतंत्रता देने के लिए प्रतिबद्ध हुई।
- 1946 के चुनावों में, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच ध्रुवीकरण देखा गया, जिसने संघीय व्यवस्था के बारे में बातचीत को गति दी।
भारत के विभाजन की घोषणा:
- वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने वेवेल की जगह ली और वार्ता के अंतिम दौर में घोषणा की कि भारत को मुक्त किया जाएगा और विभाजित किया जाएगा।
अंतिम परिणाम:
- 15 अगस्त, 1947 को, भारत को स्वतंत्रता मिली, और यह उसके नागरिकों के लिए एक नई अध्याय की शुरुआत थी।
- भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, जो उसकी आजादी की अनिवार्यता को साबित करता है।
महात्मा गांधी के अंतिम वीर दिवस :- एक समर्पण और नेतृत्व की श्रेष्ठता / Last Brave Day of Mahatma Gandhi:- Excellence of dedication and leadership
अहम निर्णय का दिन:
- गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम के समापन को 24 घंटे के उपवास के साथ चिह्नित किया।
- भारत के विभाजन के साथ, देश के लोग एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने की भावना में थे।
समाधान की अपील:
- सितंबर और अक्टूबर में, गांधीजी ने अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों में जाकर लोगों को सांत्वना दी।
- उन्होंने भावनाओं को बढ़ावा दिया कि वे अपने अतीत को भूलकर दोस्ती, सहयोग और शांति के माध्यम से आगे बढ़ें।
अल्पसंख्यकों के अधिकार:
- कांग्रेस ने गांधीजी और नेहरू के समर्थन में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुनिश्चित करने का प्रस्ताव पारित किया।
- विभाजन को कभी स्वीकार न करने का दावा करते हुए, पार्टी को मजबूर किया गया कि यह प्रस्ताव पारित किया जाए।
उम्मीद की पुनरावृत्ति:
- 26 जनवरी, 1948 को, गांधीजी ने अंतिम भाषण में उम्मीद का वाक्य उच्चारित किया कि भारत की सांझी विरासत के रूप में मित्रता और सम्मान का महत्व समझा जाएगा।
विशेष अभिव्यक्ति की श्रध्धांजलि:
- गांधीजी की हत्या ने देश को शोक में डाल दिया, और उन्हें विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अवधारणाओं से सराहा गया।
- उनकी मृत्यु की तुलना अब्राहम लिंकन के साथ की गई, जो एक समर्पित नेता के रूप में उनकी श्रेष्ठता को माना गया।
- महात्मा गांधी के अंतिम वीर दिवस ने देश को एक नई दिशा में अग्रसर किया और उनके विचार और आदर्शों का आदर किया।
महात्मा गांधी को जानना :- विविध स्रोतों से एक समृद्ध चित्र / Knowing Mahatma Gandhi: A Rich Picture from Diverse Sources
विविधता की धरोहर:
- राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास और गांधीजी के राजनीतिक करियर को बनाने के लिए विभिन्न स्रोत हैं।
लेखन और भाषण: अद्वितीय स्रोत:
- गांधीजी और उनके समकालीनों के लेखन और भाषण महत्वपूर्ण स्रोत थे।
- भाषण सार्वजनिक करने के लिए थे, जबकि निजी पत्र भावनाओं को व्यक्त करने के लिए थे।
अपील की भाषा: पत्रों का महत्व:
- लिखे गए पत्र व्यक्तिगत थे लेकिन वे लोगों को स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने से रोकते थे।
आत्मकथाएँ और साक्ष्य: इतिहास की अनमोल संपत्ति:
- आत्मकथाएँ हमें अतीत का लेखा-जोखा देती हैं लेकिन इन्हें सावधानी से व्याख्या करने की ज़रूरत है।
- सरकारी अभिलेख भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं, लेकिन इनकी सीमाएं भी हैं क्योंकि ये ज्यादातर पक्षपाती हो सकते हैं।
समाचार पत्र: भारतीय भावनाओं का प्रतिनिधित्व:
- अंग्रेजी और अन्य साक्ष्यों में समाचार पत्र ने गांधीजी के आंदोलन और उनके बारे में भारतीयों की भावना को ट्रैक किया।
- इन्हें उतने ही अहमियत के साथ देखा जाना चाहिए जितने दूसरे स्रोत।
- इस प्रकार, महात्मा गांधी के जीवन और विचारों को समझने के लिए विविध स्रोतों का आधार महत्वपूर्ण है।
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NCERT Notes
स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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Author: NCERT
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Pros
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