संविधान का निर्माण Notes, Class 12 history chapter 12 notes in hindi इस अध्याय मे हम भारतीय संविधान के बारे में विस्तार से पड़ेगे ।
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Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 12 |
Chapter Name | संविधान का निर्माण |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
12 Class History Notes In Hindi Chapter 12 संविधान का निर्माण
इतिहास अध्याय-4: संविधान का निर्माण
भारतीय संविधान / Indian Constitution
भारतीय संविधान विश्व का एकमात्र सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
इसे 9 दिसम्बर, 1946 से 28 नवम्बर 1949 के बीच सूत्रबद्ध किया गया। संविधान सभा में कुल 11 सत्र हुए जिनमें 165 दिन बैठकों में गए।
भारतीय संविधान लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिन में बनकर तैयार हुआ। इसे बनाने हेतु लगभग 64 लाख का खर्चा किया गया।
संविधान में भारतीय शासन व्यवस्था, राज्य और केंद्र के संबंधों, राज्य के मुख्य अंगो के कार्यों का विवरण है।
भारतीय संविधान का निर्माण देश निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण कार्य में से एक था। इसे नेताओं जैसे जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे बड़े नेताओं ने किया।
भारतीय संविधान न केवल भारत की अभिवृद्धि और सुरक्षा की नींव है, बल्कि यह विश्व के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम है जो संविधानिक लोकतंत्र के उत्थान का प्रतीक है।
उथल पुथल का दौर
- भारतीय संविधान का अद्भुत उत्थान 26 जनवरी, 1950 को हुआ, लेकिन इससे पहले के कई वर्ष उथल-पुथल से भरे रहे। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसमें महान आशाएं उत्पन्न हुईं, परंतु भीषण मोहभंग भी हुआ।
- लोगों की स्मृति में भारत छोड़ो आंदोलन, हिंदुस्तानी फौज का संघर्ष, 1946 में रॉयल इंडियन नेवी का विद्रोह, और देश भर में उभरे मजदूरों और किसानों के आंदोलन आशाओं के साकार रूप थे, जबकि हिन्दू-मुस्लिम दंगे और विभाजन का दुखद परिणाम भी उन समयों का परिचायक था।
- हमारा संविधान इन विवादों के समाधान के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। यह हमें अपने अतीत और वर्तमान के घावों को मिटाने, और विभिन्न सामाजिक वर्गों, जातियों और समुदायों को एक सामान्य राजनीतिक मंच पर लाने में सहायक होता है।
इस प्रकार, भारतीय संविधान के उद्भव के पीछे छुपी उथल-पुथल और अधिकारिक विवादों की कहानी हमें व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
संविधान की मांग / Demand for Constitution
- महात्मा गांधी ने 1922 में असहयोग आंदोलन के दौरान जताई मांग: भारत का राजनीतिक भाग्य भारतीयों द्वारा स्वयं निर्धारित होना चाहिए।
- कानूनी आयोगों और गोलमेज सम्मेलनों की असफलता ने भारतीयों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 को पारित किया गया।
- 1935 में कांग्रेस ने मांग की कि भारत का संविधान बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के बनना चाहिए।
- 1938 में जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस कार्यसमिति के साथ मिलकर भारतीयों की स्वतंत्रता की योजना में संविधान सभा की मांग की।
संविधान सभा का गठन / Formation of Constituent Assembly
- संविधान सभा का गठन, केबिनेट मिशन योजना के प्रस्ताव के अनुसार 1946 में हुआ।
- इस सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें 296 ब्रिटिश भारतीय और 93 देसी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
- सभी राज्यों और देसी रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुसार सीटों का आवंटन किया गया था।
- प्रांतीय विधान सभा के सदस्यों ने संविधान सभा के सदस्यों का चयन किया, जो की सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर नहीं था।
- संविधान सभा में कांग्रेस का प्रभाव था, जिसके कारण 82% सदस्य कांग्रेसी थे।
- हालांकि सभी कांग्रेस सदस्यों के बीच एकमत नहीं था, कई मुद्दों पर वे भिन्न मत रखते थे।
- संविधान सभा में विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक प्रभावों का मिश्रण था, जो उसे देश के समृद्ध और समावेशी निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बनाता है।
संविधान सभा मे चर्चाएं / Discussion in the Constituent Assembly
- संविधान सभा में बहसों का महत्वपूर्ण स्थान था, जिसमें जनमत का प्रभाव हमेशा महसूस होता था।
- प्रस्तावों पर विविध पक्षों की दलीलें अख़बारों और मीडिया में छपती थीं, जिससे जनता को भी विविधता का पता चलता था।
- विभिन्न प्रस्तावों पर सार्वजनिक बहस का माहौल था, जो संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
- जनता के सुझावों को ध्यान में रखते हुए सामूहिक सहभागिता को बढ़ावा दिया जाता था।
- अल्पसंख्यक समुदाय अपनी मातृभाषा और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए मांग करते थे, जो समाज की सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
संविधान सभा के मुख्य नेता / मुख्य आवाजें
- संविधान सभा में कुल तीन सौ सदस्य थे, लेकिन उनमें से तीन विशेष रूप से महत्वपूर्ण थे। वे थे – जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, और राजेन्द्र प्रसाद, जो कांग्रेस के प्रमुख नेता थे।
- संविधान सभा में अन्य महत्वपूर्ण नेताओं में विधिवेत्ता बी.आर. अम्बेडकर, के.एम. मुशी और अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर शामिल थे। उन्होंने अपने ज्ञान और दृष्टिकोण से संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- संविधान सभा में दो प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी भी थे। उनमें से एक थे बी.एन. राव, भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार, और दूसरे थे एस.एन. मुखर्जी, जो मुख्य योजनाकार के रूप में कार्य करते थे। उनका योगदान भी संविधान निर्माण के प्रक्रिया में महत्वपूर्ण था।
संविधान के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
- संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। इसकी शुरुआती चर्चा ने नए भारतीय संविधान के निर्माण का मार्ग निर्धारित किया।
- मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया, जिसने निर्माण की प्रक्रिया में विवाद उत्पन्न किया।
- संविधान सभा में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थाई अध्यक्ष चुना गया, जबकि दूसरी बैठक में राजेंद्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष बनाया गया।
- तीसरी बैठक में जवाहरलाल नेहरू द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया गया, जो संविधान निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण था।
- संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद अध्यक्ष थे।
- अधिनियमित अवधि 2 महीने, 11 महीने, 11 दिन थी, जिसके बाद संविधान 26 नवंबर 1946 को पूरा हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
- संविधान सभा का कार्यकाल 11 सत्रों में 165 दिन तक चला, जिसमें भारतीय संविधान का निर्माण और अंतिम संविधान का प्रस्ताव तैयार किया गया।
- मुस्लिम लीग का शामिल होना अंतरिम सरकार में 13 अक्टूबर, 1946 को हुआ, जो संविधान सभा के प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव लाया।
उद्देश्य प्रस्ताव
- प्रस्ताव का प्रस्तावन: 13 दिसम्बर, 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने “उद्देश्य प्रस्ताव” पेश किया। इस प्रस्ताव में भारत को “स्वतंत्र, सम्प्रभु गणराज्य” घोषित किया गया था और नागरिकों को न्याय, समानता, और स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया।
- लोकतंत्र की महत्वपूर्णता: पं . नेहरू ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की रूपरेखा हमारे बीच होने वाली चर्चा से ही उभरेगी और भारतीय संविधान के आदर्श और प्रावधान कहीं और से उठाए गए नहीं हो सकते।
- राष्ट्रीय ध्वज का प्रस्ताव: नेहरू जी ने भारत का राष्ट्रीय ध्वज केसरिया, सफेद, और गहरे हरे रंग की 3 बराबर चौड़ाई वाली पट्टियों वाला तिरंगा झंडा प्रस्तावित किया, जिसमें गहरे नीले रंग का चक्र भी था।
- वल्लभ भाई पटेल की भूमिका: वल्लभ भाई पटेल मुख्य रूप से पर्दे के पीछे कई महत्वपूर्ण काम कर रहे थे, जैसे कि रिपोर्ट के प्रारूप लिखना और सहमति प्राप्त करना।
- अम्बेडकर की भूमिका: भीम राव अम्बेडकर, जो संविधान के प्रारूप के प्रमुख अध्यक्ष थे, ने सभा में महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
- अन्य सदस्यों का योगदान: केएम मुंसी और अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर भी संविधान के प्रारूप पर महत्वपूर्ण सुझाव देने में सक्रिय रहे।
- संविधान निर्माण की अवधि: अम्बेडकर के नेतृत्व में काम करने में लगभग 3 वर्ष लगे, जिसमें 11/12 भारी भरकम खण्डों में संविधान के प्रारूप पर हुई चर्चाओं के रिकार्ड प्रकाशित हुए।
संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी
- ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ जंग: संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी को चर्चाओं में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्याह (परछाई) दिखाई देता था।
- अंग्रेजों की देख-रेख में चर्चा: 1946-1947 के सर्दी में संविधान सभा में चर्चा चल रही थी, जब तक अंग्रेज भारत में थे। जवाहर लाल नेहरू की नेतृत्व में अंतरिम सरकार तो चल रही थी, पर उसे अंग्रेजों की देख-रेख में काम करना पड़ता था।
- संविधान सभा की अंग्रेजों की साजिश: लाहिड़ी ने संविधान सभा के अंग्रेजों की बनाई हुई योजना को साकार करने के काम को देखकर अपने साथियों को समझाया कि सभा अंग्रेजों के दबाव में है और वे अंग्रेजों की साजिश का शिकार हो रहे हैं।
पृथक निर्वाचन की समस्या
- मद्रास के बी. पोकर बहादुर का भाषण: 27 अगस्त 1947 को मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचिकाएं बनाए रखने के पक्ष में एक प्रभावशाली भाषण दिया।
- विवाद का उद्भव: संविधान सभा में पृथक निर्वाचिका की समस्या पर बहस हुई। अधिकांश राष्ट्रवादी नेताओं ने इसे घातक माना और इसके खिलाफ विरोध जताया।
- सरकारी नेताओं के विरोध: सरदार पटेल ने पृथक निर्वाचिका को राष्ट्र की एकता को खतरे में डालने का आरोप लगाया और इसे हटाने की मांग की।
- अल्पसंख्यकों के हित में: जीबी पंत ने अलग मतदाताओं की अल्पसंख्यकों के लिए हानिकारक होने की बात की और उन्होंने इसे समर्थन दिया।
- राष्ट्र की एकता पर आधारित तर्क: यह विवाद राष्ट्र की एकता के मौलिक सिद्धांत पर आधारित था, जहां प्रत्येक व्यक्ति एक राष्ट्र का नागरिक होता है।
- अलग-अलग मतदाताओं के प्रति जिम्मेदारी: संविधान के माध्यम से नागरिकों को राज्य के प्रति वफादारी की पेशकश करने की आवश्यकता थी, जिससे सभी समुदायों को समानता मिले।
- समाधान: 1949 तक, संविधान सभा ने अलग-अलग मतदाताओं को हटा दिया, जिससे समुदायों की एकता बढ़ी और नागरिकों को राजनीतिक व्यवस्था में सहभागिता मिली।
- मुसलमानों की भागीदारी: मुसलमानों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने की आवश्यकता थी, ताकि उनकी आवाज़ समाज में सुनी जा सके।
आदिवासी और उनके अधिकार
- आदिवासी का संघर्ष: जयपाल सिंह, एक आदिवासी, ने इतिहास के माध्यम से आदिवासी के शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा है।
- आवाज़ की मांग: उन्होंने जारी रखा कि जनजातियों को सामान्य आबादी के स्तर पर आने में मदद करने और उनकी रक्षा करने के लिए उन्हें विधान में सीटों के आरक्षण की आवश्यकता है।
- एकीकृतता की आवश्यकता: उन्होंने शारीरिक और भावनात्मक दूरी को तोड़ने के लिए एकीकृत करने की जरूरत को उठाया और आदिवासी मुद्दों पर जोर दिया।
- सामाजिक न्याय की मांग: उनका मुख्य आवाज़ था कि समाज में सामाजिक न्याय को साकार करने के लिए आदिवासी मुद्दों पर जोर देना जरूरी है।
हमारे देश के दलित वर्गों के लिए संविधान में प्रावधान
- आबादी का विचार: दलित वर्ग हमारे देश की 20-25% आबादी का हिस्सा बनाते हैं, जो कि संख्यात्मक रूप से कम नहीं है। फिर भी, उन्हें अक्सर हाशिए पर धकेल दिया जाता है।
- प्रतिबंधित पहुंच: दलित वर्गों को सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच नहीं थी और उन्हें विकृत सामाजिक और नैतिक आदेशों के दबाव में रहना पड़ा। उनकी शिक्षा और प्रशासनिक भागीदारी में भी कमी थी।
- अस्पृश्यता का मुद्दा: दलित वर्गों के सदस्यों ने अस्पृश्यता के मुद्दे पर जोर दिया, जो कि सुरक्षा और संरक्षण के माध्यम से हल नहीं हो सकता था।
- संविधानिक प्रावधान: संविधान सभा ने अस्पृश्यता को समाप्त किया, मंदिरों को सभी जातियों के लिए खोला, और सरकारी नौकरियों में नौकरियां दलितों के लिए आरक्षित की गईं। यह प्रावधान समाज में भेदभाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
राज्य की शक्तियाँ / Powers of the state
- विभाजन की बहस: केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार की विभाजन के मुद्दे पर तीव्र बहस हुई। संविधान ने इसे तीन सूचियों में व्यवस्थित किया।
- संविधानिक प्रावधान: राज्य की शक्तियों का विवरण संविधान में तीन सूचियों के रूप में दिया गया है – केंद्रीय सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची।
- केंद्र की शक्ति: केंद्रीय सूची में अधिक अधिकार हैं, जिससे केंद्र सरकार को अधिक शक्तिशाली बनाया जाता है।
- संथानम की दृष्टिकोण: संथानम ने कहा कि राज्य को मजबूत बनाने के लिए केंद्र को सत्ता में लाना जरूरी है, लेकिन इसके बिना राज्य के काम का सही ठीक से नहीं हो सकता। उन्होंने इसके लिए राज्य को भी कुछ शक्तियाँ देने की मांग की।
- वित्तीय स्वतंत्रता: राज्यों को उचित वित्तीय प्रावधान दिए जाने चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें और केंद्र पर निर्भर न रहें।
- शक्ति का संतुलन: प्रांत केंद्र के खिलाफ विद्रोह कर सकता है, इसलिए शक्ति का संतुलन रखना महत्वपूर्ण है।
मजबूत सरकार की आवश्यकता :-
- नेताओं का समर्थन: विभाजन की घटनाओं से मजबूत सरकार की आवश्यकता को और मजबूती मिली। कई प्रमुख नेताओं जैसे जवाहरलाल नेहरू, बीआर अंबेडकर, और गोपालस्वामी अय्यंगार ने मजबूत केंद्र की वकालत की।
- कांग्रेस की स्वायत्तता की सहमति: विभाजन से पहले, कांग्रेस ने प्रांतों को काफी स्वायत्तता देने पर सहमति व्यक्त की थी। इससे मुस्लिम लीग को संतुष्टि मिली। लेकिन विभाजन के बाद, कोई राजनीतिक दबाव नहीं था और विभाजन के बाद की आवाज ने केंद्रीकृत शक्ति को और बढ़ावा दिया।
राष्ट्र की भाषा / National language
- बहस का मुद्दा: संविधान सभा में राष्ट्रभाषा के मुद्दों पर महीनों से तीव्र बहस हुई। भाषा एक भावनात्मक मुद्दा था और यह विशेष क्षेत्र की संस्कृति और विरासत से संबंधित था।
- हिंदी का स्वीकृति: 1930 के दशक तक, कांग्रेस और महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया। हिंदी भाषा को समझना आसान था और भारत के बड़े हिस्से के बीच एक लोकप्रिय भाषा थी।
- भाषा का विकास: हिंदी भाषा मुख्य रूप से हिंदी और उर्दू से बनी थी, लेकिन इसमें दूसरी भाषा के शब्द भी थे। लेकिन दुर्भाग्य से, भाषा भी सांप्रदायिक राजनीति से पीड़ित हुई।
- भाषा का विभाजन: धीरे – धीरे हिंदी और उर्दू अलग होने लगी। हिंदी ने संस्कृत के अधिक शब्दों का उपयोग करना शुरू कर दिया, इसी तरह उर्दू और अधिक दृढ़ हो गई।
- गांधीजी का समर्थन: महात्मा गांधी ने हिंदी में अपना विश्वास बनाए रखा। उन्होंने महसूस किया कि हिंदी सभी भारतीयों के लिए एक समग्र भाषा थी।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की दलील
- धुलेकर की दलील: आर . वी . धुलेकर, संविधान सभा के सदस्य, ने हिंदी को राष्ट्रभाषा और भाषा बनाने के लिए एक मजबूत दलील दी जिसमें संविधान बनाया जाना चाहिए। इस दलील का प्रबल विरोध हुआ।
- भाषा समिति की रिपोर्ट: असेंबली की भाषा समिति ने एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें उसने यह तय करने की कोशिश की कि देवनागरी लिपि में हिंदी एक आधिकारिक भाषा होगी।
- प्रांतों को अधिकार: प्रांत के भीतर आधिकारिक कार्यों के लिए प्रांतों को एक भाषा चुनने की अनुमति थी।
- भाषा का बदलाव: हिंदी को लोगों की भाषा के रूप में स्वीकार किया था लेकिन भाषा बदली जा रही है।
- सदस्यों की चिंताएं: कई सदस्यों ने महसूस किया कि राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के मुद्दे को सावधानी से व्यवहार किया जाना चाहिए।
हिंदी के प्रभुत्व का डर
- दक्षिण भारत में विरोध: संविधान सभा के सदस्य एसजी दुर्गाबाई ने कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी के खिलाफ तीव्र विरोध है।
- प्रांतीय भाषा के खिलाफ डर: भाषा के संबंध में विवाद के प्रादुर्भाव के बाद, प्रतिद्वंद्वी में एक डर है कि हिंदी प्रांतीय भाषा के लिए विरोधी है और यह प्रांतीय भाषा और इसके साथ जुड़ी सांस्कृतिक विरासत की जड़ को काटती है।
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स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
URL: https://my-notes.in
Author: NCERT
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