औद्योगीकरण का युग|NCERT Class 10 History Notes In Hindi

Class 10 History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग Notes in hindi जिसमे हम पूर्व औद्योगीकरण , औद्योगीकरण की गति , श्रमिकों का जीवन , भारत में कपड़ा उद्योग , औद्योगीकरण की अनूठी बात के बारे में पड़ेंगे ।

आसान भाषा में औद्योगीकरण का युग: Class 10 के History नोट्स। NCERT सिलेबस, परीक्षा के लिए बेहतरीन।

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHistory
ChapterChapter 4
Chapter Nameऔद्योगीकरण का युग
CategoryClass 10 History
MediumHindi

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

Class 10 History Chapter 4 औद्योगीकरण का युग Notes in hindi

सामाजिक विज्ञान (इतिहास) अध्याय-4: औद्योगीकरण का युग

औद्योगीकरण का युग / Era of industrialization

परिभाषा:

  • औद्योगिक युग में हस्तनिर्मित वस्तुओं का उत्पादन कम हुआ और फैक्ट्रियों, मशीनरी, और तकनीक का विकास हुआ।

युग की अवधि:

  • इस युग की अवधि 1760 से 1840 तक की जाती है, जिसे औद्योगिकरण का युग कहा जाता है।

समाजिक परिवर्तन:

  • औद्योगिक युग में, खेतिहर समाज औद्योगिक समाज में बदल गया।
  • मानव के लिए यह एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का काल था।

पूर्व औद्योगीकरण / Pre industrialization

परिभाषा:

  • यूरोप में औद्योगिकरण के पहले काल को पूर्व औद्योगिकरण का काल कहा जाता है।
  • इस अवधि में गाँवों में हाथ से बनाई गई वस्तुएं बनती थीं, जिन्हें शहर के व्यापारियों खरीदते थे।

उत्पत्ति:

  • यह अवधि औद्योगिक क्रांति से पहले होती है, जिसमें कारखाने लगने से पहले हाथ से बनी वस्तुओं का उत्पादन होता था।

व्यापारिक संबंध:

  • गाँवों में उत्पादित सामग्री को शहरों में व्यापारियों द्वारा खरीदा जाता था।
  • इसका परिणामस्वरूप, शहरी निवासियों के पास विविधता और विशाल वस्त्रों की सामर्थ्य थी।

आदि – औद्योगीकरण / Adi – Industrialization

परिभाषा:

  • आदि – औद्योगीकरण, यह एक चरण है जो औद्योगिक क्रांति से पहले होता है।
  • इसमें अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होता है, जो कि फैक्ट्रियों में नहीं होता।

उत्पत्ति:

  • इंग्लैंड और यूरोप में, फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन होता था।
  • यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था, बल्कि छोटे परिवारिक उद्यमों और शिल्पकारों द्वारा किया जाता था।

विशेषता:

  • इस चरण में, व्यापारिक गतिविधियों के लिए उत्पादित वस्तुओं का व्यापार आरंभ होता है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुंचाया जाता है।
  • यह उत्पादन विभिन्न विपणन नेटवर्क के माध्यम से होता था, जिससे उत्पाद व्यापार में वृद्धि होती थी।

व्यापारियों का गाँवों पर ध्यान देने का कारण

शहरों में ट्रेड और क्राफ्ट गिल्ड:

  • शहरों में ट्रेड और क्राफ्ट गिल्ड बहुत शक्तिशाली होते थे।
  • ये संगठन प्रतिस्पर्धा और कीमतों पर अपना नियंत्रण रखते थे।

प्रतिस्पर्धा की अवरोधन:

  • इन गिल्डों के कारण, नए लोगों को बाजार में काम शुरू करने से रोका जाता था।
  • यहाँ तक कि किसी भी व्यापारी के लिए शहर में नया व्यवसाय शुरू करना मुश्किल होता था।

गाँवों की ओर मुँह करना:

  • इसलिए, व्यापारियों को गाँवों की ओर मुँह करना पसंद किया जाता था।
  • यहाँ वे प्रतिस्पर्धा की कमी के कारण अपने व्यवसाय को संचालित कर सकते थे और नए उत्पादों का विकास कर सकते थे।

स्टेपलर / Stapler

स्टेपलर एक उपकरण है जो रेशों को ऊन के गठबंधन में ‘स्टेपल’ करता है या छाँटता है।

यह विभिन्न कपड़ों के गठबंधन में मदद करता है और समृद्धि बढ़ाने में मदद करता है।

फुलर / Fuller

फुलर एक औद्योगिक कार्यक्रम है जो कपड़ों को ‘फुल’ करता है, अर्थात चुन्नटों के सहारे कपड़े को समेटता है।

इसका उपयोग कपड़ों के समान और समर्थन में किया जाता है, जिससे उनकी रचना मजबूत बनती है।

कार्डिंग / Carding

कार्डिंग एक प्रक्रिया है जिसमें कपास या ऊन के रेशे को कताई के लिए तैयार किया जाता है।

यह एक प्रारंभिक औद्योगिक क्रिया है जो कपास के बड़े गट्ठरों को छोटे गट्ठरों में विभाजित करती है।

कारखानों की शुरुआत

इंग्लैंड में कारखानों की उत्पत्ति:

  • सबसे पहले कारखाने 1730 के दशक में इंग्लैंड में शुरू हुए।
  • अठारहवीं सदी के आखिर तक पूरे इंग्लैंड में कारखानों की संख्या में वृद्धि हुई।

कपास का महत्व:

  • इस नए युग का पहला प्रतीक कपास था।
  • उन्नीसवीं सदी के आखिर में कपास के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई।

कपास के आयात की वृद्धि:

  • 1760 में ब्रिटेन में 2.5 मिलियन पाउंड का कपास आयातित होता था।
  • 1787 तक यह मात्रा बढ़कर 22 मिलियन पाउंड हो गई थी।

कारखानों से लाभ / Profits from factories

श्रमिकों की कार्यकुशलता:

  • कारखानों के खुलने से श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि हुई।
  • उन्हें नई तकनीकों का ज्ञान और अनुभव प्राप्त हुआ।

उत्पादन में सुधार:

  • नई मशीनों की सहायता से प्रति श्रमिक अधिक मात्रा में और बेहतर उत्पाद बनने लगे।

औद्योगिक उद्योग का विकास:

  • औद्योगीकरण की शुरुआत मुख्य रूप से सूती कपड़ा उद्योग में हुई।

श्रमिकों की निगरानी:

  • कारखानों में श्रमिकों की निगरानी और उनसे काम लेना अधिक आसान हो गया।

औद्योगिक परिवर्तन की रफ्तार / Pace of industrial change

उद्योगीकरण का अर्थ:

  • औद्योगीकरण का मतलब सिर्फ फैक्ट्री उद्योग का विकास नहीं था, बल्कि कपास तथा सूती वस्त्र उद्योग और लोहा व स्टील उद्योग में भी बदलाव हुआ।

उद्योगीकरण के पहले दौर:

  • 1840 के दशक तक, सूती कपड़ा उद्योग अग्रणी क्षेत्र था।

रेलवे का प्रसार:

  • रेलवे के प्रसार के बाद, लोहा और इस्पात उद्योग में वृद्धि हुई।
  • रेल का प्रसार इंगलैंड में 1840 के दशक में हुआ और उपनिवेशों में 1860 के दशक में हुआ।

निर्यात की कीमतों में वृद्धि:

  • 1873 तक ब्रिटेन से लोहा और इस्पात के निर्यात की कीमत 77 मिलियन पाउंड हो गई, जो सूती कपड़े के निर्यात की कीमत का दोगुना था।

रोजगार पर असर:

  • औद्योगीकरण के बावजूद, उसका रोजगार पर खास असर नहीं पड़ा।
  • उन्नीसवीं सदी के अंत तक, पूरे कामगारों का केवल 20% तकनीकी रूप से उन्नत औद्योगिक क्षेत्रक में नियोजित था, जिससे पता चलता है कि नए उद्योग पारंपरिक उद्योगों को विस्थापित नहीं कर पाए थे।

नए उद्योगपति परंपरागत उद्योगों की जगह क्यों नहीं ले सके?

Why could new industrialists not replace traditional industries?

मजदूरों की कमी:

  • औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या कम थी, जो नए उद्योगों को विकसित करने में बाधा बनी।

प्रौद्योगिकीय बदलाव की गति:

  • प्रौद्योगिकीय बदलाव की गति धीमी थी, जिससे नए उद्योगों की विकास की रफ्तार कम थी।

गतिशील उद्योग:

  • कपड़ा उद्योग एक गतिशील उद्योग था, जिससे नए और प्रौद्योगिकीन क्षमताओं के अनुप्रयोग की चुनौती थी।

महंगी प्रौद्योगिकी:

  • प्रौद्योगिकी की लागत महंगी थी, जो नए उद्योगों की स्थापना को मुश्किल बनाती थी।

गृह उद्योग से उत्पादन:

  • उत्पादन का बड़ा भाग गृह उद्योग से पूरा होता था, जिससे नए उद्योगों की स्थापना का प्रतिस्पर्धा कमजोर था।

हाथ का श्रम और वाष्प शक्ति

Hand labor and steam power

श्रमिकों की उपलब्धता:

  • उस जमाने में श्रमिकों की कोई कमी नहीं होती थी, जिससे उद्योगपतियों को मशीनों में पूँजी लगाने की अपेक्षा श्रमिकों से काम कराने को अधिक उपयुक्त लगता था।

मशीनों की गुणवत्ता:

  • मशीन से बनी चीजें एक ही जैसी होती थीं और उनकी गुणवत्ता और सुंदरता में हाथ से बनी चीजों के साथ मिलान नहीं कर सकती थीं। इसके कारण, उच्च वर्ग के लोग हाथ से बनी हुई चीजों को अधिक पसंद करते थे।

अमेरिका में स्थिति:

  • उन्नीसवीं सदी के अमेरिका में, श्रमिकों की कमी होने के कारण, मशीनीकरण ही एकमात्र रास्ता बचा था। यहाँ पर उद्योगपतियों के लिए मशीनों का उपयोग करना आवश्यक था।

19 वीं शताब्दी में यूरोप के उद्योगपति मशीनों की अपेक्षा हाथ के श्रम को अधिक पसंद क्यों करते थे?

Why did European industrialists prefer hand labor to machines in the 19th century?

मानव श्रम की उपलब्धता:

  • ब्रिटेन में उद्योगपतियों को मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी, जिससे उन्हें मशीनों के लिए अधिक पूँजी निवेश करनी पड़ती।

मशीनों की आर्थिक लागत:

  • मशीनों की अधिक लागत के कारण, उद्योगपतियों ने मशीनों के लगाने के प्रति संवेदनशीलता दिखाई।

चुनौतीपूर्ण उद्योगों के लिए हस्तशिल्प:

  • कुछ मौसमी उद्योगों के लिए, जैसे कि बारीक डिजाइन और खास आकारों वाली चीजों की विनिर्माण, उद्योगपतियों ने हाथ से काम करवाना अधिक समझा।

मार्केट की माँग:

  • बाजार में अक्सर बारीक डिजाइन और खास आकारों वाली चीजों की माँग रहती थी, जो हस्त कौशल पर निर्भर थी।

मजदूरों की जिंदगी

Life of workers

जीवन की दयनीयता:

  • कुल मिलाकर, मजदूरों का जीवन दयनीय था, जिसमें उन्हें कई संघर्षों का सामना करना पड़ता था।

नौकरियों की कमी:

  • श्रम की बहुतायत की वजह से, नौकरियों की भारी कमी थी, जिससे ज्यादातर मजदूर अवसरों से वंचित रहते थे।

नौकरी मिलने की संभावना:

  • नौकरी मिलने की संभावना ज्यादातर यारी, दोस्ती, और कुनबे-कुटुंब के जरिए जान पहचान पर निर्भर करती थी।

मौसमी काम की समस्या:

  • बहुत सारे उद्योगों में मौसमी काम की वजह से, कामगारों को बीच-बीच में बहुत समय तक खाली बैठना पड़ता था, जिससे उनकी आय में कमी होती थी।

गरीबी का कारण:

  • मजदूरों की आय के वास्तविक मूल्य में भारी कमी थी, जिससे उन्हें गरीबी का सामना करना पड़ता था।

स्पिनिंग जैनी / Spinning Jenny

एक सूत काटने की मशीन जो जेम्स हर गीवजलीवर्स द्वारा 1764 में बनाई गई थी।

स्पिनिंग जेनी मशीन का विरोध

  • जनसंख्या की वृद्धि:

उन्नीसवीं सदी के मध्य तक, शहरों की आबादी में तेजी से वृद्धि होने के कारण, गरीबी बढ़ गई और बेरोजगारी बढ़ी।

  • बेरोजगारी की चिंता:

बेरोजगारी की चिंता से प्रेरित मजदूरों ने नई प्रौद्योगिकी के विरुद्ध प्रतिरोध किया, जैसे कि स्पिनिंग जेनी मशीन।

  • मशीनों के विरोध:

स्पिनिंग जेनी मशीन के उपयोग के विरुद्ध, मजदूरों ने मशीनों पर हमला किया, क्योंकि वे अपने रोजगार के अवसरों का भय प्रकट करने लगे थे।

  • रोजगार के अवसरों में वृद्धि:

1840 के दशक के बाद, रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई क्योंकि सड़कों को चौड़ा किया गया, नए रेलवे स्टेशन बने, और रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया।

उपनिवेशो में औद्योगीकरण

Industrialization in the colonies

भारतीय कपड़े का युग

  • मशीन उद्योग से पहले का युग :-
  1. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पादों का प्रभाव: भारत के रेशमी और सूती उत्पादों का व्यापक प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में महसूस होता था।
  2. मुख्य बंदरगाह: सूरत, हुगली, और मसूली पट्नम प्रमुख बंदरगाह थे जहां से कपड़े निर्यात किए जाते थे।
  3. व्यापारिक नेटवर्क: विभिन्न प्रकार के भारतीय व्यापारी और बैंकर इस व्यापार नेटवर्क में शामिल थे, जिनमें आपूर्ति सौदागर और निर्यात सौदागर शामिल थे।
  • मशीन उद्योग के बाद का युग (1780 के बाद)
  1. भारतीय व्यापार का परिवर्तन: 1750 के बाद, भारतीय सौदागरों के नियंत्रण वाला नेटवर्क टूटने लगा और यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ने लगी।
  2. पुराने बंदरगाह की कमजोरी: सूरत और हुगली जैसे पुराने बंदरगाह कमजोर पड़ गए और नए बंदरगाह जैसे कि बंबई और कलकत्ता ने उभार दिखाया।
  3. यूरोपीय व्यापार: यूरोपीय कंपनियों ने भारतीय कपड़े के व्यापार का नियंत्रण अधिकांशत: उच्च वर्ग के व्यक्तियों को अपनी जरूरतों के लिए यूरोप से कपड़े आयात करने की आदत थी।
  4. भारतीय कपड़े की मांग: 18वीं सदी में यूरोप में भारतीय कपड़ों की भारी मांग थी, जो उन्नीसवीं सदी के पहले कामकाज का महत्वपूर्ण परिणाम था।

यूरोपीय कंपनियों के आने से बुनकारों का क्या हुआ?

यूरोपीय कंपनियों के आने से बुनकारों का परिणामात्मक प्रभाव हुआ। इसके कुछ मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं:

  • कंपनियों के प्रभाव से बुनकारों का असर: यूरोपीय कंपनियों के आने से पहले, बुनकारों की स्थिति बेहतर थी क्योंकि उनका उत्पाद खरीदने वाले बहुत थे और वे मोल भाव करके अधिक कीमत देने वाले को अपना सामान बेच सकते थे।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी के सत्ता स्थापना: ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद, उसके सत्ता स्थापने के परिणामस्वरूप, यह कंपनी कई क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त कर ली, जिससे बुनकारों की स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
  • बुनकारों की अधिक संतुलित स्थिति: ईस्ट इंडिया कंपनी के सत्ता स्थापना के बाद, बुनकारों की संख्या में कमी आई और उनकी स्थिति में संतुलितता आई। यहां तक ​​कि वे अब अधिकांशत: उनकी वास्तविक मूल्य के लिए अधिक काम करने वाले खरीदार थे।
  • बुनकारों की प्रारंभिक स्थिति: ईस्ट इंडिया कंपनी के सत्ता स्थापना से पहले, बुनकारों की स्थिति बेहतर थी क्योंकि उन्हें अपने सामान को बेचने के लिए अधिक विकल्प थे।

ईस्ट इंडिया कंपनी आने के बाद बुनकरों की स्थिति :-

ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के बाद बुनकरों की स्थिति के बारे में निम्नलिखित प्रमुख पहलू हो सकते हैं:

  • एकाधिकारिकता का अनुभव: ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय कपड़ा व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित किया, जिससे वे बुनकरों को सीधे नियंत्रित करने की शक्ति प्राप्त की।
  • व्यापारिक संघर्ष: सक्रिय व्यापारियों और दलालों को समाप्त करने के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया।
  • व्यापारिक प्रतिबंध: ईस्ट इंडिया कंपनी ने बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे उनकी आय में कमी हुई।
  • निगरानी की प्रक्रिया: बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए, गुमाश्ता नामक कर्मचारियों को नियुक्त किया गया, जिससे बुनकरों के बीच और कंपनी के बीच टकराव होता था।
  • कीमत निर्धारण: बुनकरों को कंपनी से मिलने वाली कीमत बहुत कम थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में कमी आई।

भारत में मैनचेस्टर का आना :-

भारत में मैनचेस्टर का आना केवल कपड़ों के निर्यात में ही नहीं, बल्कि भारतीय कपड़ा उद्योग के अन्य पहलुओं में भी व्यापक प्रभाव डाला। निम्नलिखित ढंग से इस विषय को संगठित किया जा सकता है:

  • कपड़ों के निर्यात में कमी: उन्नीसवीं सदी की शुरुआत से ही भारतीय कपड़ों के निर्यात में कमी आने लगी। यहां उत्पन्न कपड़े का निर्यात 1811-12 में 33% था, जो 1850-51 तक मात्र 3% रह गया।
  • इंपोर्ट ड्यूटी लागू: ब्रिटेन के निर्माताओं के दबाव के कारण, सरकार ने ब्रिटेन में इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी, ताकि इंग्लैंड में सिर्फ वहाँ बनी वस्तुएं ही बिक सकें।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी पर दबाव: ईस्ट इंडिया कंपनी पर भी दबाव डाला गया कि वह ब्रिटेन में बनी चीजों को भारत के बाजारों में बेचे।
  • सूती कपड़ों का आयात: अठारहवीं सदी के अंत तक, भारत में सूती कपड़ों का आयात न के बराबर था। लेकिन 1850 आते-आते, कुल आयात में 31% हिस्सा सूती कपड़ों का था, और 1870 के दशक तक यह हिस्सेदारी 50% से ऊपर चली गई।

मैनचेस्टर के आगमन से भारतीय बुनकरों के सामने आई समस्याएं :-

मैनचेस्टर के आगमन से भारतीय बुनकरों के सामने कई समस्याएं उत्पन्न हुईं, जिन्हें निम्नलिखित ढंग से संगठित किया जा सकता है:

भारतीय बुनकरों की समस्याएं:

  • नियति बाजार का ढह जाना: मैनचेस्टर के आगमन से, भारतीय बुनकरों के लिए नियति बाजार में भीड़ और प्रतिस्पर्धा बढ़ गई, जिससे उनकी गरिमा कम हो गई।
  • स्थानीय बाजार का संकुचित हो जाना: मैनचेस्टर के उत्पादों की प्रविष्टि से, स्थानीय बाजार का संकुचित हो गया, क्योंकि उन्हें विदेशी उत्पादों की तुलना में सस्ते और अधिक विकल्प मिलने लगे।
  • अच्छी कपास का ना मिल पाना: मैनचेस्टर उत्पादों की मांग ने कपास की मांग को बढ़ा दिया, जिससे भारतीय बुनकरों को अच्छी कपास का पर्याप्त आपूर्ति नहीं मिल पाई।
  • ऊँची कीमत पर कपास खरीदने के लिए मजबूर होना: मैनचेस्टर कंपनियों ने कपास की मांग बढ़ा दी, जिससे उन्हें कपास को ऊँची कीमत पर खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा।

निर्माणित उत्पादों की बढ़ती मांग:

19 वीं सदी के अंत तक, भारत में फैक्ट्रियों द्वारा उत्पादन शुरू हो गया और भारतीय बाजार में मशीनी उत्पाद की मांग बढ़ गई। यह बुनकरों के लिए एक और चुनौती बन गई, क्योंकि वे अब विदेशी मशीनी उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए उत्साही नहीं थे।

फैक्ट्रियों का आना / Arrival of factories

भारत में कारखानों की शुरुआत :-

  • बम्बई में पहला सूती कपड़ा मिल (1854): भारत में कारखानों की शुरुआत में से एक 1854 में बम्बई में हुई, जहां पहला सूती कपड़ा मिल बनाया गया। उसके बाद, 1862 तक चार मिल चालू हो गए।
  • बंगाल में जूट मिल की शुरुआत: इसी दौरान, बंगाल में भी जूट मिल खोल दी गई, जो उत्पादन में शामिल हो गई।
  • कानपुर में एल्गिन मिल (1860): 1860 के दशक में कानपुर में एल्गिन मिल की शुरुआत हुई, जो कपड़ा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण थी।
  • अहमदाबाद में पहला सूती मिल: इसी कालावधि में, अहमदाबाद में भी पहला सूती मिल चालू हुआ, जिसने कपड़ा उत्पादन को बढ़ावा दिया।
  • मद्रास का पहला सूती मिल (1874): मद्रास के पहले सूती मिल में 1874 में उत्पादन शुरु हो गया, जिसने भी कपड़ा उत्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रारंभिक उद्यमी :-

  • द्वारकानाथ टैगोर (बंगाल): द्वारकानाथ टैगोर चीन के साथ व्यापार में शामिल थे। उन्होंने 6 संयुक्त उद्यम कंपनियाँ लगाई।
  • बम्बई में डिनशॉ पेटिट और जे . एन टाटा।
  • कलकत्ता में सेठ हुकुमचंद ने पहली जूट मिल लगाई।
  • भीड़ला ने भी यही किया।
  • मद्रास के कुछ सौदागर जो वर्मा मध्य पूर्व तथा पूर्वो अफ्रीका से व्यापार करते थे।
  • कुछ वाणिज्यिक समूह जो भारत के भीतर ही व्यापार करते थे।
  • अंग्रेजों का शिकंजा: भारत के व्यवसाय पर अंग्रेजों का शिकंजा था, जिसमें भारतीय व्यापारियों को बढ़ने के लिए अवसर मुहूर्त ही नहीं थे। पहले विश्व युद्ध तक, भारतीय उद्योग के अधिकांश हिस्से पर यूरोप की एजेंसियों की पकड़ थी।

मज़दूर कहाँ से आए :-

  • स्थानीय जिले: अधिकांश मजदूर आसपास के जिलों से आते थे।
  • किसान और कारीगर: ज्यादातर मजदूर किसान और कारीगर थे, जिन्हें गाँव में रोजगार नहीं मिलता था।
  • उदाहरण: उदाहरण के लिए, बंबई के सूती कपड़ा मिल में काम करने वाले अधिकांश मजदूर पास के जिलों से आते थे, जैसे कि रत्नागिरी जिला।

19 वीं सदी में भारतीय मजदूरों की दशा :-

  • 1901 में जनसंख्या: वर्ष 1901 में, भारतीय फैक्ट्रियों में लगभग 5,84,000 मजदूर काम कर रहे थे।
  • 1946 में जनसंख्या: इस संख्या ने 1946 में 24,36,000 तक बढ़ गई थी।
  • अस्थायी मजदूर: ज्यादातर मजदूर अस्थायी तौर पर रखे जाते थे।
  • गाँव लोट: फसलों की कटाई के समय, बहुत से मजदूर गाँवों में लोट जाते थे।
  • रोजगार की कठिनाई: नौकरी प्राप्त करना कठिन था।
  • जॉबर मजदूरों का जीवन: जॉबर मजदूरों की जिंदगी पूरी तरह से नियंत्रित की जाती थी। उन्हें न्यूनतम वेतन पर काम करना पड़ता था और उनके अधिकारों की समझ नहीं होती थी।

जॉबर कौन थे?

  • रोजगार का संचारक: उद्योगपतियों ने मजदूरों की भर्ती के लिए जॉबर को रखा जाता था।
  • पुराना कर्मचारी: जॉबर एक पुराना विश्वस्त कर्मचारी होता था जिसे अच्छी तरह से पहचाना जाता था।
  • गाँव से लोगों को लाना: उनका मुख्य कार्य होता गाँव से लोगों को शहर में लाना और उन्हें नौकरी दिलाना।
  • सहायता: जॉबर काम का भरोसा देता और लोगों को शहर में बसने के लिए सहायता प्रदान करता।
  • मांग: धीरे-धीरे, जॉबर मदद के बदले पैसे और तोहफे की मांग करने लगता था।

औद्योगिक विकास का अनूठापन :-

  • यूरोपीय प्रबंधकीय एजेंसियों की दिशा में रुचि: भारत में औद्योगिक उत्पादन पर यूरोपीय प्रबंधकीय एजेंसियों की खास ध्यान थी। उन्हें उन उत्पादों में दिलचस्पी थी जो निर्यात के लिए उपलब्ध थे, जैसे चाय, कॉफी, नील, जूट, खनन उत्पाद।
  • मेनचेस्टर उत्पाद से प्रतिस्पर्धा: भारतीय व्यवसायियों ने वे उद्योग लगाए जो मेनचेस्टर उत्पाद से प्रतिस्पर्धा नहीं करते थे, जैसे धागा जो कि आयात नहीं किया जाता था।
  • स्वदेशी आंदोलन और औद्योगिकरण: 20 वीं सदी के पहले दशक में स्वदेशी आंदोलन ने लोगों को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रेरित किया। इससे भारत में कपड़ा उत्पादन शुरू हुआ और धागे का निर्यात घट गया।
  • प्रथम विश्व युद्ध और औद्योगिक विकास: प्रथम विश्व युद्ध ने भारत में औद्योगिक उत्पादन को तेजी से बढ़ाया। नई फैक्ट्रियों की स्थापना की गई और उत्पादन में व्यस्त थी।
  • व्यापारिक विकास का प्रयास: यह उद्योगिकरण भारत में व्यापारिक विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण रहा। विदेशी वस्तुओं के आयात की कमी को ध्यान में रखते हुए, भारतीय उद्योगों ने नए उत्पादों के निर्माण और बाजार में उत्पादन के माध्यम से स्वदेशी और विदेशी व्यापार में वृद्धि की कोशिश की।
  • तकनीकी उन्नति का अवलोकन: यह समय भारत में तकनीकी उन्नति के क्षेत्र में भी नई दिशा स्थापित करता है। विशेष रूप से युद्ध के दौरान, नई तकनीकों का उपयोग उत्पादन को अधिक तेजी से और अधिक उत्कृष्ट बनाने में मदद की।
  • रोजगार का संभावनाओं में वृद्धि: इस उद्योगिकरण के कारण, भारत में नौकरियों की आवश्यकता बढ़ी और अनेक लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए। इससे समाज में आर्थिक स्थिरता का संभावनाओं में वृद्धि हुई।
  • विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था में संशोधन: यह औद्योगिक विकास भारत को विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था में एक नई भूमिका दी। यह उन्नति भारत को अन्य विकसित देशों के साथ आर्थिक संबंधों में मजबूत करने में मदद करती है।
  • सामाजिक परिवर्तन: औद्योगिक विकास के साथ, समाज में सामाजिक परिवर्तन भी आया। इसने अधिकतम मजदूरों की आवश्यकता को बढ़ाया, जिससे समाज में जातिवाद और समाज की विभाजन को कम किया गया।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: आधुनिक और तकनीकी उन्नति के साथ, सांस्कृतिक परिवर्तन भी हुआ। लोगों के जीवन शैली में बदलाव आया, नई रंगत, डिज़ाइन और शैलियों का प्रयोग हुआ।

लघु उद्योगों की बहुतायत :-

  • बड़े उद्योगों का प्रतिष्ठान: अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बावजूद, बड़े उद्योगों का हिस्सा कम था। बंगाल और बम्बई में बड़े उद्योगों का ज्यादातर शेयर था, जबकि लघु उद्योगों का प्रतिष्ठान अन्य क्षेत्रों में था।
  • लघु उद्योग का बोलबाला: देश के अन्य हिस्सों में लघु उद्योग का प्रतिष्ठान था, जहां अधिकांश कामगार रजिस्टर्ड कम्पनियों में काम करते थे। इस उत्तराधिकारी क्षेत्र का हिस्सा 1911 में 5% था और 1931 में 10% तक बढ़ गया।
  • तकनीकी उन्नति: 20 वीं सदी में हाथ से बने उत्पादों में नवाचार हुआ, जैसे कि हथकरघा उद्योग में फ्लाई शटल का उपयोग। यह नई तकनीकियों के लागू होने से हाथ से उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता है।
  • फ्लाई शटल का प्रयोग: 1941 में भारत में हाथकरघा में 35% से अधिक स्थानीय उत्पादकों द्वारा फ्लाई शटल का प्रयोग हो चुका था, जो कि मुख्य शहरों में 70 से 80% तक था।
  • उत्पादन क्षमता का विस्तार: नए सुधारों के साथ, हाथकरघा उद्योग में उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई, जो बाजार में अधिक मांग को संतुष्ट करने में मदद करती है।

फ्लाई शटल :-

रस्सी और पुलियो के के जरिए चलने वाला एक यांत्रिक औजार है जिसका बुनाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

वस्तुओं के लिए बाज़ार :-

  • विज्ञापन: उत्पादक ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विज्ञापनों का उपयोग करते थे।
  • लेबलिंग: ‘मेड इन मैनचेस्टर’ का लेबल उत्पाद की गुणवत्ता का प्रतीक माना जाता था। इसके साथ ही सुंदर चित्र भी थे, जो अक्सर भारतीय देवी देवताओं की तस्वीरें होती थीं।
  • कैलेंडर: उत्पादकों ने अपने उत्पादों को प्रमोट करने के लिए कैलेंडर भी बांटते। यह उन्हें पूरे साल तक ब्रांड रिमाइंडर के रूप में कार्य करता।
  • राष्ट्रवादी संदेश: भारतीय उत्पादक अपने विज्ञापनों में अक्सर राष्ट्रवादी संदेश शामिल करते थे, ताकि वे अपने ग्राहकों से सीधे तौर पर जुड़ सकें।

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NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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Author: NCERT

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  • Best NCERT Notes Class 6 to 12

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