#यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय nCERT Class 10 History Notes

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Class 10 History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Notes PDF in Hindi

Class 10 Social Science [ History ] Itihas Chapter 1 The Rise of Nationalism in Europe Notes In Hindi

Class 10 सामाजिक विज्ञान
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHistory
ChapterChapter 1
Chapter Nameयूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
CategoryClass 10 History Notes in Hindi
MediumHindi

अध्याय = 1
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

यूरोप में राष्ट्रवाद का क्रमिक विकास

राष्ट्रवाद:- वह विचारधारा जो किसी भी राष्ट्र के सदस्यों में एक सामूहिक पहचान को बढ़ावा देती है। उसे राष्ट्रवाद कहते है।
राष्ट्रवाद की भावनाओं को बढ़ाने के लिए कई प्रतीकों का सहारा लिया जाता है। जैसे- राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय गान, आदि।

यूरोप में राष्ट्रवाद का क्रमिक विकास:- उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोपीय देश वैसे नहीं थे जैसे कि आज है, विभिन्न क्षेत्रों पर शासन अलग-अलग वंश के लोग राज करते थे। इन क्षेत्रों पर राजवंश का शासन हुआ करता था। कई ऐसे तकनीकी बदलाव हुए जिनके कारण समाज में परिवर्तन आए। इन्हीं परिवर्तनों के कारण लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का उदय हुआ।

  • फ्रांसीसी क्रांति 1789
  • नागरिक संहिता 1804
  • वियना की संधि 1815
  • उदारवादियों की क्रांति 1848
  • जर्मनी का एकीकरण 1866-1871
  • इटली का एकीकरण 1859-1871

फ्रांसीसी क्रांति के आरंभ से ही फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने ऐसे अनेक कदम उठाए जिनसे फ्रांसीसी लोगों में एक सामूहिक पहचान (राष्ट्रवाद) की भावना पैदा हो सकती थी। 1789 में सत्ता का स्थानांतरण राजतंत्र से लोकतान्त्रिक संस्था को हुआ।

 इस नई संस्था का निर्माण नागरिकों द्वारा हुआ था। इस नई शुरुआत से ऐसा माना जाने लगा कि फ्रांस के लोग अपने देश का भविष्य खुद तय करेंगे। बाद में, नेपोलियन ने प्रशासनिक क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधारों को प्रारंभ किया जिसे 1804 की नागरिक संहिता (नेपोलियन की संहिता) के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, यूरोप में उन्नीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में राष्ट्रीय एकता से संबंधित विचार उदारवाद से करीब से जुड़े थे।

फ्रांसीसी क्रांति एवं राष्ट्रवाद:-


सत्ता राजतंत्र से लोकतंत्र के हाथ में आने से राष्ट्रवाद की भावना का लोगों में विकास हुआ

  1. संविधान आधारित शासन
  2. समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व जैसे विचार
  3. नया फ्रांसीसी तिरंगा झंडा
  4. नेशनल असेंबली का गठन
  5. आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त एवं माप-तौल की एक समान व्यवस्था
  6. फ्रेंच को राष्ट्र की साझा भाषा बनाया गया।

1804 की नागरिक संहिता:- को नेपोलियन संहिता भी कहते है। यह मूल रूप से कानून के समक्ष समानता पर आधारित अवधारणा है। इसकी विशेषताएँ इस प्रकार है-

  1. जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों की समाप्ति।
  2. कानून के सामने समानता एवं संपत्ति को अधिकार को सुरक्षित किया गया।
  3. प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया।
  4. सामंती व्यवस्था को समाप्त किया गया।
  5. किसानों के भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति।
  6. शहरों में कारीगरों के श्रेणी संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।

Class 10 History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Notes in Hindi

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यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय


उदारवादी राष्ट्रवाद (राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में)

उदारवादी राष्ट्रवाद (राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में):– उदारवाद शब्द अंग्रेजी भाषा के “liberalism” का हिन्दी अनुवाद है। इसकी उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द “liberty” से हुई है। अर्थात् उदारवाद स्वतंत्रता से संबंधित है। जिसका अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता का सिद्धांत “liberalism” शब्द लेटिन भाषा के “liberalise” शब्द से भी संबंधित माना जाता है। सारटोरी के अनुसार- “उदारवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संविधानिक राज्य का सिद्धांत तथा व्यवहार है”।

राजनीतिक क्षेत्र में उदारवाद: लोकतंत्र का समर्थन करता है एवं शक्तियों के पृथक्करण, कानून का शासन, न्यायिक पुनरावलोकन जैसी व्यवस्थाओं का पक्षधर है। अर्थात् उदारवाद हर एक रूप में व्यक्ति की स्वतंत्रता का ही समर्थन करता है। यह जीवन के सभी क्षेत्रों में दमन का विरोधी है। चाहे वह दमन नैतिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक या सांस्कृतिक हो।

आर्थिक क्षेत्र में उदारवाद:- मुफ्त व्यापार तथा राज्य को बुराई बताकर व्यक्तिवाद का समर्थन करता है। उत्पादन और वितरण पर राज्य के नियंत्रण की वकालत करता है। उदारवादियों के अनुसार- आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति को स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की छूट होनी चाहिए। समाज और राज्य की तरफ से उद्योग और व्यापार में कोई हस्तक्षेप नहींं होना चाहिए। अर्थात व्यक्ति अपनी इच्छानुसार व्यवसाय करे और पूँजी लगाए।

उदारवाद की कुछ निम्नलिखित विशेषताएँ इस प्रकार है-

  1. सहमति पर आधारित सरकार
  2. संविधान आधारित शासन
  3. संसदीय सरकार या प्रतिनिधि आधारित
  4. विशेषाधिकारों का अंत
  5. कानून के समक्ष समानता
  6. मताधिकार का समर्थन लेकिन सबके लिए नहीं
  7. मुक्त बाजार
  8. वस्तुओं एंव सेवाओं पर प्रतिबंधों से मुक्ति
  9. धर्मनिरपेक्षता में विश्वास
  10. लोककल्याणकारी राज्य व्यवस्था का समर्थन

1815 के उपरांत यूरोप में रूढ़िवाद:-

1815 में नेपोलियन की हार के उपरांत यूरोप की सरकारों का झुकाव पुनः रूढ़िवाद की तरफ बढ़ गया। अपनी राजनीतिक विचारधारा के अनुरूप रूढ़िवादियों ने स्थापित संस्थाओं, रीति-रिवाजों, परंपराओं को मान्यता दी एवं तीव्र परिवर्तन के स्थान पर क्रमिक विकास पर जोर दिया। इस परिप्रेक्ष्य में, एक शिखर सम्मेलन (जिसे कांग्रेस कहा गया) का आयोजन वियना में किया गया। इस कांग्रेस का आयोजन आस्ट्रियन चांसलर ड्युक मैटरनिख ने किया। इस कांग्रेस में वियना संधि पर हस्ताक्षर किए गए।

1815 की वियना संधि:-

 वियना संधि यूरोप के सभी देशों के राजपूतों का एक सम्मलेन था। इस सम्मलेन की अध्यक्षता ऑस्ट्रेलिया राजनेता मेटरनिख के द्वारा की गयी थी। इसकी कुछ विशेषताएँ इस प्रकार है।

1815 की वियना संधि की विशेषताएँ:-

  1. फ्रांस में बुर्बों राजवंश की पुर्नस्थापना।
  2. इसका मुख्य उद्देश्य यूरोप में एक नई रूढ़िवादी व्यवस्था कायम करना था।
  3. फ्रांस ने इलाकों पर से अधिपत्य खो दिया जो उसने नेपोलियन के समय जीते थे।
  4. फ्रांस के सीमा विस्तार पर रोक लगाने हेतु नए राज्यों की स्थापना।

ड्युक मैटरनिख: जन्म 15 मई 1773 को हुआ। वे आस्ट्रिया के चांसलर थे। 1814 से 1848 तक के काल में इन्होंने यूरोप की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यूरोप के राजनीतिक हालातों पर टिप्पणी करते हुए इन्होनें कहा था कि “यदि फ्रांस छींकता है तो पूरे यूरोप को जुकाम हो जाता है।” वियना संधि में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। नेपोलियन यद्ध के उपरांत यूरोप की पुर्नरचना एवं पुराने राजतंत्र (रूढ़िवादी तंत्र) की पुर्नस्थापना में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।

ज्युसेपी मेत्सिनी:– जन्म 1807 में जेनोआ में हुआ था और कुछ समय पश्चात् वह कार्बोनारी में गुप्त संगठन के सदस्य बन गए। चौबीस साल की युवावस्था में लिगुरिया में क्रांति करने के लिए उन्हें 1831 में देश निकाला दे दिया गया। तत्पश्चात् उन्होनें दो और भूमिगत संगठनों की स्थापना की। पहला था मार्सेई मैं यंग इटली और दूसरा बर्न में यंग यूरोप। मेत्सिनी द्वारा राजतंत्र का जोरदार विरोध एवं उसके प्रजातांत्रिक सपनों नें रूढिवादियों के मन में भय भर दिया। “मैटरनिख ने उसे हमारी सामाजिक व्यवस्थाओं का सबसे खतरनाक दुश्मन बताया।”
1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र एवं क्रांति से अलगाव होने लगा। राज्य की सत्ता को बढ़़ाने के लिए रूढ़िवादियों ने अक्सर राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया। यद्यपि, मध्यवर्गीय जर्मन लोगों ने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़कर एक राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया था मगर इसे राजशाही और फौज की ताकत द्वारा मिलकर दबा दिया गया। इसके पश्चात् प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया।

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पुनरावृति नोट्स
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय


जर्मनी तथा इटली का एकीकरण

जर्मनी का एकीकरण 1866-1871: मध्य यूरोप के स्वतंत्र राज्यों (प्रशा, बवेरिआ, सेक्सोनी) को मिलाकर 1871 में एक राष्ट्र-राज्य व जर्मन साम्राज्य का निर्माण किया गया, इसी ऐतिहासिक प्रक्रिया को जर्मनी का एकीकरण कहते है। इससे पहले यह भू-भाग 39 राज्यों में बँटा था। इसमें से भी ऑस्ट्रियाई साम्राज्य एवं प्रशा राजतंत्र अपने आर्थिक तथा राजनीतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध थे। 18 जनवरी 1871 ई. में वर्साय के शीशमहल में विलियम प्रथम का राज्याभिषेक जर्मनी के एक सम्राट के रूप में हुआ।

  1. एकीकरण प्रशा के नेतृत्व में हुआ।
  2. प्रशा के प्रमुख मंत्री आँटो-वन बिस्मार्क ने राष्ट्र निर्माण में मुख्य भूमिका अदा की।
  3. सात वर्ष के दौरान ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस से तीन युद्धों में प्रशा की जीत हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
  4. 1871 में केसर विलियम प्रथम को नए साम्राज्य का राजा घोषित किया गया। जर्मनी के एकीकरण ने यूरोप में प्रशा को महाशक्ति के रूप में स्थापित किया।
  5. नए जर्मन राज्य में, मुद्रा, बैकिंग एवं न्यायिक व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया।

इटली का एकीकरण 1859-1870:- इटली का एकीकरण जिसे इतावली भाषा में इल रेसौरजिमेंटों कहा जाता है। 19वीं सदी में इटली में इटली राजनैतिक और सामाजिक अभियान शुरू हुआ, जिसने इटली प्रायद्वीप के विभिन्न राज्यों को एक साथ संगठित करके एक इतावली राष्ट्र बना दिया, इसे ही इटली का एकीकरण कहा जाता है।

  1. इटली सात राज्यों में बँटा हुआ था।
  2. 1830 के दशक में ज्यूसेपे मेत्सिनी ने इटली के एकीकरण के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
  3. 1830 एवं 1848 के क्रांतिकारी विद्रोह असफल हुए।
  4. 1859 में फ्रांस से सार्डिनिया-पीडमॉण्ट ने एक चतुर कूटनीतिक संधि की जिसके माध्यम से उसने आस्ट्रियाई बलों को हरा दिया।

काउंट कैमिलो दे कावूर सार्डिनीया-पीडमॉण्ट का प्रमुख मंत्री था। इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया हाँलाकि वह स्वयं न तो एक क्रांतिकारी था और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला।
फ्रांस के साथ की गई चतुर संधि के पीछे कावूर का हाथ था जिसके कारण आस्ट्रिया को हराया जा सका एवं इटली का एकीकरण संभव हो सका।

ज्यूसेपे गैरीबॉल्डी नियमित सेना का हिस्सा नहीं था। उसने इटली के एकीकरण के लिए सशस्त्र स्वयंसेवकों का नेतृत्व किया। 1860 में वे दक्षिण इटली और दो सिसिलियों के राज्य में प्रवेश कर गए और स्पेनी शासकों को हटाने के लिए स्थानीय किसानों का समर्थन पाने में सफल रहे। उसने दक्षिणी इटली एवं सिसली को राजा इमैनुएल द्वितीय को सौंप दी और इस प्रकार इटली का एकीकरण संभव हो सका।

पाठ 1- यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय इतिहास के नोट्स| Class 10th

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यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय


यूनान का स्वतंत्रता संघर्ष

  • यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा 15वीं शताब्दी से था। क्रांतिकारी राष्ट्रवाद (1789 मे फ्रांसीसी क्रांति के उपरांत) के उदय ने यूनानी लोगों के मन में स्वतंत्रता की भावना को प्रज्ज्वलित किया।
  • 1821 से वहाँ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष शुरू हुआ। यूनान के लोगों को निर्वासन में रह रहें यूनानियों के साथ साथ पश्चिमी यूरोप के लोगों का भी समर्थन मिला जो कि प्राचीन यूनानी संस्कृति में रूचि रखते थे।
  • विभिन्न कवियों और कलाकारों ने भी स्वतंत्रता के लिए जनमत निर्माण में मुस्लिम साम्राज्य के विरोध में तथा यूनान के संघर्ष के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजी के कवि लार्ड बायरन ने धनराशि एकत्र की एवं वह युद्ध के लिए भी गए, जहाँ 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गई।
  • 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की 29 मई 1453 को यह संधि संपन्न हुई।

ब्रिटेन में राष्ट्रवाद:-

  • राष्ट्रवाद किसी उथल-पुथल या क्रांति का परिणाम नहीं अपितु एक लम्बी चलने वाली प्रक्रिया का परिणाम था।
  • 18वीं शताब्दी से पूर्व ब्रिटेन एक राष्ट्र-राज्य नहीं था बल्कि ब्रितानी द्वीपसमूहों में रहने वाले लोगों जैसे- अंग्रेज, वेल्श, स्कॉट, आयरिश की पहचान नृजातीय थी। इन सभी जातीय समूहों की अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपरा थी।
  • आंग्ल-राष्ट्र ने अपनी शक्ति में विस्तार के साथ-साथ अन्य राष्ट्रों व द्वीप समूहों पर विस्तार आरंभ किया।
  • एक लम्बे टकराव तथा संघर्ष के पश्चात आंग्ल संसद द्वारा 1688 में राजतंत्र से सत्ता को छीन लिया गया तथा आंग्ल संसद के द्वारा ब्रिटेन में राष्ट्र=राज्य का निर्माण हुआ।
  • 1707 में इंग्लैण्ड और स्कॉटलैंड को मिलाकर यूनाइटेड किंगडम ऑफ ब्रिटेन का गठन किया गया। इस एक्ट के अनुसार इंग्लैंड का स्कॉटलैंड पर प्रभुत्व स्थापित हो गया। इसके पश्चात ब्रितानी संसद में आंग्ल सदस्यों का प्रभाव बना रहा। ब्रितानी पहचान को बनाए रखने के लिए स्कॉटलैंड की संस्कृति एवं राजनीतिक संस्थाओं का दमन किया गया।
  • 1798 में हुए असफल विद्रोह के बाद 1801 में आयरलैंड के बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में शामिल कर लिया गया।
  • नए ब्रिटेन के प्रतीक चिह्वों को खूब बढ़ावा दिया गया।

राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद (बाल्कन समस्या):-

 टर्की के सुल्तान की अयोग्यता का लाभ उठाके 1911 ई० में इटली ने ट्रिपोली पर अधिकार कर लिया, जिससे उत्साहित होकर बाल्कन राज्यों जिसमे यूनान, सर्बिया, मॉन्टीनीग्रो और बुल्गारिया शामिल थे ने में टर्की पर आक्रमण कर उसको हरा दिया। इस तरह बाल्कन समस्या ने यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध का वातावरण तैयार किया।

  • बाल्कन भौगोलिक एवं नृजातीय रूप से ताओं का क्षेत्र था जिसमें आधुनिक रूमानिया, बल्गारिया, अल्बेनिया, ग्रीस, मकदूनिया, क्रोएशिया, स्लोवानिया, सर्बिया आदि शामिल थे।
  • इन क्षेत्रों में रहने वाले मूलनिवासियों को स्लाव कहा जाता था। बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था।
  • बाल्कन राज्य में रूमानी राष्ट्रवाद के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफी विस्फोटक हो गई। एक के बाद एक उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके चंगुल से निकल कर स्वतंत्रता की घोषणा करने लगीं। जैसे-जैसे विभिन्न स्लाव राष्ट्रीय समूहों ने अपनी पहचान और स्वतंत्रता की परिभाषा तय करने की कोशिश की, बाल्कन क्षेत्र गहरे टकराव का क्षेत्र बन गया। हर एक बाल्कन प्रदेश अपने लिए ज्यादा इलाके की चाह रखता था।
  • इस समय युरोपीय शक्तियों के बीच इस क्षेत्र पर कब्जा जमाने के लिए यूरोपीय शक्तियों के मध्य जबरदस्त प्रतिस्पर्धा रहीं। जिससे यह समस्या गहराती चली गई व जिस कारण यहाँ विभिन्न युद्व हुए। जिसकी परिणति प्रथम विश्व युद्ध के रूप में हुई।

राज्य की दृश्य कल्पना:-


अठाहरवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में कलाकारों ने राष्ट्र को कुछ यूँ चित्रित किया जैसे वह कोई व्यक्ति हों। राष्ट्रों को नारी वेश में प्रस्तुत किया जाता था। राष्ट्र को व्यक्ति का जामा पहनाते हुए जिस नारी रूप को चुना गया वह असल जीवन में कोई खास महिला नहीं थी। यह तो राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप प्रदान करने का प्रयास था। यानी नारी की छवि राष्ट्र का रूपक बन गई। फ्रांस में उसे लोकप्रिय ईसाई नाम मारिआना दिया गया जिसने जन-राष्ट्र के विचार को रेखांकित किया। इसी प्रकार जर्मेनिया, जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गई।

फ्रेंकफर्ट संसद:- शाब्दिक अर्थ -“फ्रैंकफर्ट राष्ट्रीय सभा” यह जर्मनी की पहली सभी के लिए चुनी गयी संसद थी।
जर्मन इलाकों में बड़ी संख्या में राजनीतिक संगठनों ने फ्रैंकफर्ट शहर में मिल कर एक सर्व-जर्मन नेशनल एसेंबली के पक्ष में मतदान का फैसला लिया। 18 मई 1848 को, 831 निर्वाचित प्रतिनिधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जा कर फ्रैंकफट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया। यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपी गई जिसे संसद के आधीन रहना था। जब प्रतिनिधियों ने प्रशा के राजा फैडरीख विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर उन राजाओं का साथ दिया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे। जहाँ कुलीन वर्ग और सेना का विरोध बढ़ गया, वहीं संसद का सामाजिक आधार कमजोर हो गया। संसद में मध्य वर्गों का प्रभाव अधिक था जिन्होंने मजदूरों और कारीगरों की माँगों का विरोध किया जिससे वे उनका समर्थन खो बेठे। अंत में सैनिकों को बुलाया गया और एसेंबली भंग की गई। इस आंदोलन में महिलाओं ने भी जमकर हिस्सा लिया। इसके बाद भी उन्हें एसेम्बली के चुनाव में वोट का अधिकार नहीं दिया गया। सेंट पॉल के नेतृत्व में जब चर्च में फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट बुलाई गई तो महिलाओ को दर्शक में बैठने की इजाजत दी गयी। यह संसद भंग हो गई जिसके कारण जर्मनी का एकीकरण नहीं हो सका।

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यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय


राष्ट्रवाद के उदय में महिलाओं का योगदान

राष्ट्रवाद के उदय में महिलाओं का योगदान:- आज के आधुनिक समय में भी महिलाएँ समाज सेवा, राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्र उत्थान के कार्यों में शामिल है। महिलाओं ने अपनी कर्तव्यपरायणता से यह साबित किया है कि महिलाएँ किसी भी स्तर पर पुरुषों से कम नहीं है बल्कि उन्होंने तो राष्ट्रनिर्माण में भी अपनी भूमिका अदा की है।

 19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद की लहर आयी। जर्मनी, इटली, रोमानिया आदि देश कई क्षेत्रीय राज्यों को मिलाने से बने जिनकी राष्ट्रीय पहचान समान थी तथा यूनान, पोलैंड, बल्गारिया स्वतंत्र होकर राष्ट्र बन गये। राष्ट्रवादी चेतना यूरोप में पुनर्जागरण काल से ही शुरू हो चुकी थी, लेकिन 1789 फ्रांसीसी क्रांति के दौरान यह सशक्त रूप से प्रकट हुई। राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने वाली कुछ महिलाओं के नाम इस प्रकार है:- कस्तूरबा गाँधी, विजयलक्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, सिस्टर निवेदिता, मीरा बेन, कमला नेहरू, मैडम भीकाजी कामा, इंदिरा गाँधी, सुचेता कृपलानी आदि।
राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भूमिका निम्नलिखित थी-

  • राजनैतिक संगठन का निर्माण
  • समाचार पत्रों का प्रकाशन
  • मताधिकार प्राप्ति हेतु संघर्ष
  • राजनैतिक बैठकों तथा प्रदर्शनों में हिस्सा लेना

विभिन्न प्रतीक चिन्ह और उनका अर्थ:-

प्रतीक चिन्ह

महत्त्व

टूटी हुई बेड़िया

आजादी मिलना

बाज छाप वाला कवच

जर्मन समुदाय की प्रतीक शक्ति

बलूत पत्तियों का मुकुट

वीरता

तलवार

मुकाबले की तैयारी

तलवार पर लिपटी जैतून की डाली

शांति की चाह

काला, लाल और सुनहरा तिरंगा

उदारवादी राष्ट्रवादियों का झण्डा

उगते सूर्य की किरणें

एक नए युग की शुरूआत


1. नैपोलियन ने इटली पर आक्रमण कब किया?
1821
1905
1797
1795

उत्तर- (4) 1797

2. 19वीं सदी में ऐसी कौन सी ताकत उभरी जिसने यूरोप की राजनैतिक और भौतिक दुनिया में भारी परिर्वतन किये?

उत्तर-  राष्ट्र राज्य का उदय

3. निम्न में से कौन सा लक्षण नेपोलियन की संहिता का लक्षण नही था?
जन्म पर आधारित सुविधाओं का ना होना।
सम्पत्ति का अधिकार
सब के लिये व्यस्क मताधिकार
कानून के समक्ष समानता

उत्तर- (3) सब के लिये व्यस्क मताधिकार

4. वियना कांग्रेस किस वर्ष में आयोजित की गई?
1815
1816
1817
1818

उत्तर- (1) 1815

5. निम्न में कौन 1815 की वियना सन्धि से सम्बन्धित है?
विस्मार्क
डयूक मैटरनिख
डयूसेपी मेत्सिनी
नेपोलियन

उत्तर- (2) डयूक मैटरनिख

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