Class 10 History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes PDF in Hindi

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Class 10 History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes PDF in Hindi

Class 10 Social Science [ History ] Itihas Chapter 5 Print Culture and the Modern World Notes In Hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHistory
ChapterChapter 5
Chapter Nameमुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
CategoryClass 10 History Notes in Hindi
MediumHindi

अध्याय = 5
मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

Class 10 सामाजिक विज्ञान
मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

शुरुआती छपी किताबें

  • प्रिंट टेक्नॉलोजी का विकास सबसे पहले चीन, जापान और कोरिया में हुआ।
Class 10 History Chapter 5
Class 10 History Chapter 5 Notes
  • चीन में 594 इसवी के बाद से ही लकड़ी के ब्लॉक पर स्याही लगाकर उससे कागज पर प्रिंटिंग की जाती थी।
  • उस जमाने में कागज पतले और झिरीदार होते थे। ऐसे कागज पर दोनों तरफ छपाई करना संभव नहीं था। कागज के दोनों सिरों को टाँके लगाकर फिर बाकी कागज को मोड़कर एकॉर्डियन बुक बनाई जाती थी।
Class 10 History Chapter 5
Class 10 History Chapter 5 Notes

उस जमाने मे किस तरह की किताबें छापी जाती थी और उन्हें को पढ़ता था?

  • एक लंबे समय तक चीन का राजतंत्र ही छपे हुए सामान का सबसे बड़ा उत्पादक था। चीन के प्रशासनिक तंत्र में सिविल सर्विस परीक्षा द्वारा लोगों की बहाली की जाती थी।
  • इस परीक्षा के लिये चीन का राजतंत्र बड़े पैमाने पर पाठ्यपुस्तकें छपवाता था। सोलहवीं सदी में इस परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या बहुत बढ़ गई। इसलिये किताबें छपने की रफ्तार भी बढ़ गई।

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया का परिचय

शुरुआत में छपी पुस्तकें:- एक समय था जब छाप नहीं थी। छपाई अपने आप में एक इतिहास है। प्रोद्यौगिकी से पहले एशिया में शुरू हुई तथा यूरोप, भारत में फ़ैल गई। छपाई की कला से पूर्व लेखन हाथ से लिखा जाता था।

  1. चीन, जापान एवं कोरिया में मुद्रण की सबसे पहली तकनीक विकसित हुई।
  2. सोलहवीं सदी में चीन में उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ-साथ छाप की मात्रा में भी बढ़ोतरी हुई सत्रवीं सदी में छाप के कारण कथा, कहानियाँ, आत्मकथा, रोमांटिक नाटकों का विकास हुआ जिसे सभी ने पढ़ना शुरू कर दिया।
  3. 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापी जानें लगी थी। प्रारम्भिक चीनी किताबें एकॉर्डियन शैली में बनाई जाती थी।
  4. सिविल सेवा में नियुक्ति हेतू आवश्यक पुस्तक की पूर्ति के लिए चीन मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक रहा।
  5. व्यापारी अपने रोजमर्रा के कारोबार की जानकारी के लिए मुद्रित सामग्री का इस्तेमाल करने लगे।
  6. शंघाई मुद्रण-संस्कृति का नया केंद्र बन गया तथा हाथ छपाई से याँत्रिक छपाई में बदलाव आया।
  7. चीनी बौद्ध प्रचारक अपने साथ 768-770 ई. में अपने साथ छपाई की तकनीक लेकर जापान गए।
  8. जापान की सबसे पुरानी पुस्तक डायमंड सूत्र 868 ई. में छपी। इसमें पाठ की छह शीट और लकड़ीकट चित्र सम्मिलित है। जापान में चित्र वस्त्रों, ताश और कागज पर छपे थे। कवियों और लेखकों ने भरी मात्रा में किताबें प्रकाशित की।

मुद्रण का युरोप जाना:-

  1. सिल्क रूट के माध्यम से ग्याहरवीं शताब्दी में चीनी कागज़ यूरोप पहुँचा।
  2. 1925 में मार्को पोलो चीन से मुद्रण का ज्ञान लेकर इटली गया।
  3. किताबों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए अब पुस्तक विक्रेता सुलेखक या कातिब को रोजगार देने लगे।
  4. हस्तलिखित पांडुलिपियों के माध्यम से पुस्तकों की भारी माँग को पूर्ण कर पाना अंसभव था।

योहान गुटेन्बर्ग के पिता व्यापारी थे और वह खेती की एक बड़ी रियासत में पल-बढ़़कर बड़ा हुआ। वह बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीनें देखता आया था। बाद में उसने पत्थर पर पॉलिश करने की कला सीखी, फिर सुनारी और अंत उसने शीशे की इच्छित आकृतियों में गढ़ने में महारत हासिल कर ली।

अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल उसने अपने नए अविष्कार में किया। जैतून प्रेस ही प्रिटिंग प्रेस का आदर्श बनी और साँचे का उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को गढ़ने के लिए किया गया। गुटेनबर्ग ने 1448 तक अपना यह यंत्र मुकम्मल कर लिया और इससे सबसे पहली जो पुस्तक छपी वह थी बाइबिल। शुरू-शुरू में छपी किताबें अपने रंग रूप में और साज-सज्जा में हस्तलिखित जैसी ही थी। 1440-1550 के मध्य यूरोप के ज्यादातर देशों में छापेखाने लग गए थे।

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes

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मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

मुद्रण क्रांति और उसका असर

मुद्रण क्रांति का असर: मुद्रण क्रांति के परिणामस्वरूप किताबें अधिक मात्रा में लोगों तक पहुँचने लगी। जिससे नई संस्कृति का विकास हुआ। इन किताबों में लोकप्रिय गीत, लोककथाओं, तथा कहानियों को छापा जाता था जिससे अनपढ़ लोग भी सुनकर समझ ले, क्योंकि बारहवीं सदी तक यूरोप में साक्षरता दर बहुत कम थी।

  1. छापेखाने के आने से एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ।
  2. छपाई में लगने वाली लागत व श्रम कम हो गया।
  3. छपाई से किताबों की कीमत गिरी।
  4. बाजार किताबों से पट गई, पाठक वर्ग भी बृहत्तर होता गया।
  5. मुद्रण क्रांति के कारण पहले जो जनता श्रोता थी वह अब पाठक में बदल गई।
  6. अब किताबें समाज के व्यापक तबकों तक पहुँच चुकी थी।

धार्मिक विवाद एवं प्रिंट का डर: मुद्रण के आने से बहुत से बहसों और विवादों को अवसर मिलने लगे। लोग धर्म से सम्बंधित मान्यताओं पर सवाल उठाने लगे। रूढ़िवादी लोगों का मानना था कि इससे पुरानी व्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी हो रही है।

  1. अधिकांश लोगों को यह भय था कि अगर मुद्रण पर नियंत्रण नही किया गया तो विद्रोही एवं अधार्मिक विचार पनपने लगेंगें।
  2. धर्म सुधारक मार्टिन लूथर किंग ने अपने लेखों के माध्यम से कैथोलिक चर्च की कुरीतियों का वर्णन किया। तब इससे ईसाई धर्म की प्रोटेस्टैंट क्रांति की शुरुआत हुई।
  3. टेस्टामेंट के लूथर के तर्जुमे के कारण चर्च का विभाजन हो गया एवं और प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार की शुरूआत हुई।
  4. धर्म-विरोधियों को सुधारने हेतु रोमन चर्च ने इन्कवीजीशन आरंभ किया।
  5. 1558 में रोमन चर्च ने प्रतिबंधित किताबों की सूची प्रकाशित की।

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पढ़ने का जुनून

पढ़ने का जुनून:-

  1. अलग-अलग संप्रदायों के चर्चों ने गाँवों में स्कूल स्थापित किए और किसानों-कारीगरों को शिक्षित करने लगे।
  2. यूरोप में उन्नीसवीं शताब्दी तक शिक्षा केवल एक छोटे से वर्ग में ही सीमित थी। अठारहवी सदी तक आते-आते पूरे यूरोप में उच्च शिक्षा के 150 केंद्र स्थापित हो गए। जिनको आज विश्वविद्यालय की संज्ञा दी जाती है, यूरोप के कुछ हिस्सों में तो अब साक्षरता 60 से 80 प्रतिशत तक हो गई। इंग्लैंड में पेनी चैपबुक्स या एकपैसिया किताबें बेचनेवालों को चैपमैन कहा जाता था। चैपबुक चालीस पेजों का एक छोटा प्रकाशन है। चैपबुक सस्ते थे तथा निम्न वर्ग के लोगों के पढ़ने का मुख्य साधन थे, क्योंकि ये लोग महंगी किताबे नहीं खरीद सकते थे। चैपबुक एवं बैल्ड उत्पादन का केंद्र लंदन था।
  3. फ्रांस में बिब्लियोथीक ब्ल्यू का चलन था, जो सस्ते कागज़ पर छपी और नीली जिल्द में बँधी छोटी किताबें हुआ करती थीं। एक तरह का पंचांग और लोकप्रिय साहित्य है, जो अर्ली मॉडर्न फ्रांस में प्रकाशित हुआ, जो अंग्रेजी चैपबुक और जर्मन वोक्सबच के बराबर है
  4. फ्रांस में 1857 में सिर्फ बाल-पुस्तकों को छापने के लिए एक मुद्रणालय की स्थापना की गई।
  5. जर्मनी के गिम्र बंधुओं ने बरसों लगाकर किसानों के बीच से लोक कथाओं को एकत्र कर 1812 में उन्हें छापा। ग्रीम ब्रदर्स ने उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में पहली बार जनसाधारण में प्रचलित लोककथाओं को लिखित रूप में प्रस्तुत किया और इसे “किंडर मेरशन” का नाम दिया। यह लोककथाएँ मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण साधन है।
  6. सत्रहवीं शताब्दी में ही किराए पर पुस्तक देने वाले कई पुस्तकालय अस्तित्व में आ चुके थे। उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैंड में ऐसे पुस्तकालयों के उपयोग मजदूरों आदि को शिक्षित करने के लिए किए जाने लगा।
  7. अठाहरवीं शताब्दी में पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ, जिनमें समसामायिक घटनाओं की खबर के साथ मनोरंजन भी परोसा जाने लगा।
  8. टॉमस पेन, वॉल्तेयर और ज्या जा़ रुसो जैसे दार्शनिकों की किताबें भी भारी मात्रा में छपीं व पढ़ी जाने लगी जिससे विज्ञान, तर्क और विवेकवाद के उनके विचार लोकप्रिय साहित्य में जगह पाने लगे।
  9. इंग्लैंड में 1920 के दशक में लोकप्रिय किताबें एक सस्ती श्रृंखला-शिलिंग श्रृंखला के तहत छापी गई।
  10. 1930 की आर्थिक मंदी के आने से प्रकाशकों को बिक्री गिरने का भय हुआ इसलिए उन्होंने सस्ते पेपरबैक संस्करण छापे।

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भारत का मुद्रण संसार

भारत का मुद्रण संसार:-

  1. भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न श्रेत्रीय भाषाओं में हस्त-लिखित पांडुलिपियों की पुरानी और समृद्ध परंपरा थी।
  2. पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थी पांडुलिपियाँ नाजुक और काफी महंगी होती थी, इसलिए उन्हें सावधानी से पकड़ा जाता था तथा अलग-अलग तरीके से लिखी होने के कारण इन्हें पढ़ना भी आसान नहीं था। पांडुलिपियाँ व्यक्तियों द्वारा हाथ से लिखी जाती थी, इसलिए इन्हें हस्तलेख, हस्तलिपि इत्यादि नामों से जाना जाता है।
  3. उनकी उम्र बढ़ाने के विचार से उन्हें जिल्द या तख्तियों में बाँध दिया जाता था।
  4. पूर्व औपनिवेशक काल में बंगाल में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालाओं का बड़ा जाल था, लेकिन विद्यार्थी आमतौर पर किताबें नहीं पढ़ते थे। गुरू अपनी याद्दाश्त से किताबेंं सुनाते थे और विद्यार्थी उन्हें लिख लेते थे। इस तरह कई सारे लोग बिना कोई किताब पढ़े साक्षर बन जाते थे।

मुद्रण संस्कृति का भारत आना: मुद्रण संस्कृति ने भारत के राष्ट्रवाद में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय लेखकों ने बहुत सी ऐसी पुस्तकों की रचना की जो कि राष्ट्रीय भावना से परिपूर्ण थी। जैसे- बंकिमचंद्र चटर्जी का उपन्यास आनंदमठ, वंदे मातरम् गीत आदि।

  1. प्रिटिंग प्रेस पहले-पहल सोलहवीं सदी में भारत के गोवा में पुर्तगाली धर्म-प्रचारक के साथ आया।
  2. 1674 ई. तक कोकंणी एवं कन्नड़ भाषाओं में लगभग 50 पुस्तकें छापी जा चुकी थी।
  3. कैथोलिक पुजारियों ने 1579 में कोचीन में पहली तमिल किताब छापी और 1713 में उन्होंने ही पहली मलयालम पुस्तक छापी।
  4. जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 से बंगाल गज़ट नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन आरम्भ किया।
  5. गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल गजट का प्रकाशन आरंभ किया।

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महिलाएँ मुद्रण एवं सुधार

महिलाएँ मुद्रण एवं सुधार:-

  1. जेन ऑस्टिन, ब्राण्ट बहनें, जार्ज इलियट आदि के लेखन से नयी नारी की परिभाषा उभरी: जिसका व्यक्तित्व सुदृढ़ था, जिसमें गहरी सूझ-बूझ थी और जिसका अपना दिमाग था, अपनी इच्छाशक्ति थी।
  2. महिलाओं की जिंदगी और उनकी भावनाएँ बड़ी साफगोई और गहनता से लिखी जाने लगी। इसलिए मध्यवर्गीय घरों में महिलाओं का पढ़ना भी पहले से बहुत ज्यादा हो गया।
  3. राजा राम मोहन रॉय ने नारी समाज के उत्थान के लिए अनेको प्रयास किए उनके प्रयास के द्वारा ही 1828 में सती प्रथा को रोकने का कानून बनाया गया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया। 1821 से संवाद कौमुदी प्रकाशित किया और रूढिवादियों ने उनके विचारों से टक्कर लेने के लिए समाचार चंद्रिका का सहारा लिया।
  4. दो फारसी अखबार-जाम-ए-जहाँ नामा और शम्सुल अखबार 1882 में प्रकाशित हुए।
  5. 1867 में स्थापित देवबंद सेमिनरी ने मुसलमान पाठकों को रोजमर्रा का जीवन जीने का सलीका और इस्लामी सिद्धांतों के मायने समझाते हुए हजारों फतवे जारी किए।
  6. राससुंदरी देवी के द्वारा आमोर जीबोन नामक किताब लिखी गई, यह किताब बांग्ला भाषा में लिखी गई थी, उनकी आत्मकथा थी। राससुंदरी देवी बांग्ला भाषा में लिखने वाली एक लेखिका थी, उनकी आत्मकथा आमोर जीबोन का प्रकाशन 1876 में हुआ था।
  7. ताराबाई शिंदे नारीवादी कार्यकर्त्ता थी। उन्नीसवीं सदी भारत में उन्होंने पितृसत्ता एवं जाति का विरोध किया था। ताराबाई शिंदे अपनी प्रकाशित काम, स्त्री-पुरुष तुलना जो कि मराठी भाषा में है के लिए जानी जाती है। यह पहला आधुनिक भारतीय नारीवादी पाठ माना जाता है। ताराबाई शिंदे सामाजिक कार्यकर्त्ता होने के साथ-साथ सत्यशोधक समाज संगठन की संस्थापक भी थी।
  8. राम चड्ढा ने औरतों को आज्ञाकारी बीवियाँ बनने की सीख देने के उद्देश्य से अपनी बेस्ट सेलिंग कृति स्त्री धर्म विचार लिखी।
  9. 1871 ज्योतिबा फूले ने अपनी पुस्तक गुलामगिरी में जाति प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
  10. कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा ने 1938 में छोटे और बड़े का सवाल लिख और छाप कर जातीय एवं वर्गीय शोषण के बीच का रिश्ता समझाने की कोशिश की।
  11. आइरिश प्रेस एक्ट की तर्ज पर 1878 में भारत मे वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू हुआ।
  12. पंडिता रमाबाई भारतीय महिलाओं के उत्थान की समर्थक थी। इन्होने स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह एवं बाल विवाह जैसी प्रथाओं पर सवाल खड़े किए थे।

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प्रश्न 1 निम्नलिखित के कारण दें-

  1. वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
  2. मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
  3. रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरु कर दी।
  4. महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।

उत्तर –

  1. 1295 तक यूरोप में बुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई न आने के निम्न कारण थे:
  2. 1295 ई० में मार्को पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में काफ़ी साल बिताने के बाद इटली वापस लौटा।
  3. वह चीन से वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक का ज्ञान अपने साथ लेकर आया।
  4. उसके बाद इतालवी भी तख्ती की छपाई से किताबें निकालने लगे और फिर यह तकनीक बाकी यूरोप में फैल गई।
  5. इस तरह यूरोप में वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई 1295 के बाद ही संभव हो पाई।
  6. 1295 तक यूरोप के कुलीन वर्ग, पादरी, भिक्षु छपाई वाली पुस्तकों को धर्म विरुद्ध, अश्लील और सस्ती मानते थे।
  7. मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की। सोलहवीं सदी में रोमन कैथलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करने के लिए धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर ने आंदोलन चलाया। 1517 ई. में मार्टिन लूथर ने चर्च तथा मठों में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के उद्देश्य से ‘नाइंटी फाईव थिसेज’ की रचना की। इसकी एक प्रति विटेनवर्ग के गिरजाघर के दरवाजे पर टाँगी गई। लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी। लूथर की लोकप्रियता बढ़ने लगी। उसके लेख बड़ी संख्या में छपने लगे और लोग पढ़ने लगे। परिणामस्वरूप चर्च में विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार की शुरुआत हुई। कुछ ही हफ्तों में न्यू टेस्टामेंट के लूथर के अनुवाद की 5000 प्रतियाँ बिक गईं और तीन महीने के अंदर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। लूथर ने मुद्रण की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है और सबसे बड़ा तोहफा है। छपाई ने नया बौद्धिक माहौल बनाया और इससे धर्मसुधार आंदोलन के नए विचारों के प्रसार में मदद मिली।
  8. प्रिंट के कारण बाइबिल की नई व्याख्या लोगों तक पहुँची और लोग चर्च की शक्ति पर सवाल उठाने लगे। इसलिए रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरु कर दी।

महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।

  • महात्मा गांधी ने स्वराज की लड़ाई को दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई कहा क्योंकि ब्रिटिश भारत की सरकार इन तीन आज़ादियों को दबाने की कोशिश कर रही थी। लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति, पत्र-पत्रिकाओं की वास्तविकता को व्यक्त करने की आजादी और सामूहिक जनमत को बल प्रयोग व मनमाने कानूनों द्वारा दबाया जा रहा था। इसीलिए गांधी ने इन तीन आजादियों के लिए संघर्ष को ही स्वराज की लड़ाई कहा।

प्रश्न 2 छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-

  1. गुटेन्बर्ग प्रेस।
  2. छपी किताबों को लेकर इरैस्मस के विचार।
  3. वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट।

उत्तर –

  1. गुटेन्बर्ग प्रेस:

योहान गुटेनबर्ग जर्मनी का निवासी था। वह बचपन से ही तेल तथा जैतून पेरने की मशीनें देखता आया था। बाद में उसमें हीरो तथा शीशा में पॉलिश करने की कला सीखी। अपने ज्ञान और अनुभव का प्रयोग उसने अपनी प्रिंटिंग प्रेस के निर्माण में किया। उसके द्वारा बनाई गई प्रेस विश्व की पहली प्रिंटिंग प्रेस थी जिसका आविष्कार 1448 में हुआ था। इससे पहले पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थी। गुटेनबर्ग की प्रेस पर सबसे पहले छपने वाली पुस्तक बाइबल थी। इस पुस्तक की 180 प्रतियां छपने में 3 वर्ष का समय लगा था। गुटेनबर्ग ने रोमन वर्णमाला के सभी 26 अक्षरों के टाइप बनाएं। यह टाइप धातुई थी। उन्होंने इन्हें इधर-उधर घुमा कर शब्द बनाने का तरीका निकाला। इसलिए गुटेनबर्ग की प्रेस को मूवेबल टाइप प्रिंटिंग प्रेस का नाम दिया गया। इसके बाद लगभग 300 वर्षों तक छपाई की यही तकनीक प्रचलित रही।

  • छपी किताबों को लेकर इरैस्मस के विचार।

लातिन का विद्वान और कैथलिक धर्म सुधारक इरैस्मस छपाई को लेकर बहुत आशंकित था। उसने अपनी पुस्तक एडेजेज़ में लिखा था कि पुस्तकें भिनभिनाती. मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है, जहाँ ये नहीं पहुँच जातीं? हो सकता है कि जहाँ-जहाँ एकाध जानने लायक चीजें भी बताएँ, लेकिन इनका ज्यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। बेकार ढेर है क्योंकि अच्छी चीजों की अति भी अति ही है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक दुनिया को सिर्फ तुच्छ किताबों से ही नहीं पाट रहे बल्कि बकवास, बेवकूफ़, सनसनीखेज, धर्मविरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबें छापते हैं, और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान साहित्य का मूल्य ही नहीं रह जाता । इरैस्मस की छपी किताबों पर इस तरह के विचारों से प्रतीत होता है कि वह छपाई की बढ़ती तेज़ी और पुस्तकों के प्रसार से आशंकित था, उसे डर था कि इसके बुरे प्रभाव हो सकते हैं तथा लोग अच्छे साहित्य के बजाए व्यर्थ व फ़िजूल की किताबों से भ्रमित होंगे।

  • वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट:

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट वाइसराय लिटन द्वारा 1878 ई. में पास हुआ था। इस एक्ट ने भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रों पर नियंत्रण लगा दिया। किंतु यह एक्ट अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों पर लागू नहीं किया गया। इसके फलस्वरूप भारतीयों ने इस एक्ट का बड़े ज़ोर से विरोध किया।

  • ‘वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट’ तत्कालीन लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण राष्ट्रवादी समाचार पत्र ‘सोम प्रकाश’ को लक्ष्य बनाकर लाया गया था।
  • दूसरे शब्दों में यह अधिनियम मात्र ‘सोम प्रकाश’ पर लागू हो सका।
  • लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए ‘अमृत बाज़ार पत्रिका’ (समाचार पत्र), जो बंगला भाषा की थी, अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी।
  • सोम प्रकाश, भारत मिहिर, ढाका प्रकाश और सहचर आदि समाचार पत्रों के ख़िलाफ़ भी मुकदमें चलाये गये।
  • इस अधिनियम के तहत समाचार पत्रों को न्यायलय में अपील करने का कोई अधिकार नहीं था।
  • वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को ‘मुंह बन्द करने वाला अधिनियम’ भी कहा गया है।
  • इस घृणित अधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 ई. में रद्द कर दिया।

प्रश्न 3 उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

  1. महिलाएँ।
  2. गरीब जनता।
  3. सुधारक।

उत्तर –

  1. महिलाएँ
  2. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार ने महिलाओं में साक्षरता को बढ़ावा दिया।
  3. महिलाओं की जिंदगी और भावनाओं पर गहनता से लिखा जाने लगा, इससे महिलाओं का पढ़ना भी बहुत ज्यादा हो गया।
  4. उदारवादी पिता और पति अपने यहाँ औरतों को घर पर पढ़ाने लगे और उन्नीसवीं सदी के मध्य में जब बड़े। छोटे शहरों में स्कूल बने तो उन्हें स्कूल भेजने लगे।
  5. कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी शिक्षा की जरूरत को बार-बार रेखांकित किया।
  6. इन पत्रिकाओं में पाठ्यक्रम भी छपता था और पाठ्य सामग्री भी, जिसका इस्तेमाल घर बैठे स्कूली शिक्षा के लिए किया जा सकता था।
  7. लेकिन परंपरावादी हिंदू व दकियानूसी मुसलमान महिला शिक्षा के विरोधी थे तथा इस पर प्रतिबंध लगाते थे।
  8. फिर भी बहुत-सी महिलाओं ने इन विरोधों व पाबंदियों के बावजूद पढ़ना-लिखना सीखा।
  9. पूर्वी बंगाल में, उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में कट्टर रूढ़िवादी परिवार में ब्याही कन्या रशसुंदरी देवी ने रसोई में छिप-छिप कर पढ़ना सीखा।
  10. बाद में चलकर उन्होंने ‘आमार जीवन’ नामक आत्मकथा लिखी। यह बंगला भाषा में प्रकाशित पहली संपूर्ण आत्मकथा थी।
  11. कैलाश बाशिनी देवी ने महिलाओं के अनुभवों पर लिखना शुरू किया।
  12. ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों की दयनीय हालत के बारे में जोश और रोष से लिखा।
  13. इस तरह मुद्रण में महिलाओं की दशा व दिशा के बारे में उन्नीसवीं सदी में काफी कुछ लिखा जाने लगा।
  14. गरीब जनता।
  15. उन्नीसवीं सदी के मद्रासी शहरों में काफी सस्ती किताबें चौक-चौराहों पर बेची जाने लगीं।
  16. इससे गरीब लोग भी बाजार से उन्हें खरीदने व पढ़ने लगे।
  17. इसने साक्षरता बढ़ाने व गरीब जनता में भी पढ़ने की रुचि जगाने में मदद की।
  18. उन्नीसवीं सदी के अंत से जाति-भेद के बारे में लिखा जाने लगा।
  19. ज्योतिबा फुले ने जाति-प्रथा के अत्याचारों पर लि
  20. स्थानीय विरोध आंदोलनों और सम्प्रदायों ने भी प्राचीन धर्म ग्रंथों की आलोचना करते हुए, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।
  21. गरीब जनता की भी ऐसी पुस्तकों में रुचि बढ़ी।
  22. इस तरह मुद्रण के प्रसार ने गरीब जनता की पहुँच में आकर उनमें नयी सोच को जन्म दिया तथा मजदूरों में नशाखोरी कम हुई, उनमें साक्षरता के प्रति रुझान बढ़ा और राष्ट्रवाद का विकास हुआ।
  23. सुधारक।

19 वीं सदी के आखिर से जाती-भेद के बारे में तरह-तरह की पुस्तिकाओं और निबंधों में लिखा जाने लगा था। ‘निम्न-जातीय’ आन्दोलनों के मराठी प्रणेता ज्योतिबा पहले ने अपनी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ (1871) में जाति-प्रथा के अत्याचारों के बारे में लिखा। 20 वीं सदी के महाराष्ट्र में भीमराव अंबेडकर और मद्रास में ई.वी. रामास्वामी नायकर ने, जो पेरियार के नाम से बेहतर जाने जाते हैं, जाति पर ज़ोरदार कलम चलाई और उनके लेखन पुरे भारत में पढ़े गए। स्थानीय विरोध आंदोलनों और संप्रदायों ने भी प्राचीन धर्मग्रंथों की आलोचना करते हुए, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने के संघर्ष में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।

कानपुर के मिल-मज़दूर काशीबाबा ने सन् 1938 में छोटे और बड़े सवाल लिख और छापकर जातीय तथा वर्गीय शोषण के मध्य का रिश्ता समझाने का प्रयत्न किया। सन् 1935 से सन् 1955 के बीच सुदर्शन चक्र के नाम से लिखने वाले एक और मिल मज़दूर का लेखन ‘सच्ची कविताएँ नामक एक संग्रह में छापा गया।

यूरोप में पहली प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किसने किया ?

उत्तर- योहान गुटेन्बर्ग

कौन सा धर्म सुधारक प्रोटेस्टेट धर्म सुधार के लिए उत्तरदायी था ?

उत्तर- मार्टिन लूथर

गुटेन्बर्ग द्वारा छापी पहली पुस्तक कौन सी थी?

उत्तर- बाइबिल

पुस्तकों का पेपर ब्रेक संस्करण कब प्रकाशित हुआ ?

उत्तर- महामन्दी की शुरूआत में

इंग्लैंड में फेरीवालों के द्वारा एक पैसे में बिकने वाली किताबों को क्या कहा जाता था ?

उत्तर- चैपबुक्स

कौन-सा पढ़ने का साधन विशेषकर नारियों के लिए था ?

उत्तर- पेनी मैग्जीन्स

 1878 का वर्नाक्युलर एक्ट किस तर्ज पर बना था ?

उत्तर- आईरिश प्रेस कानून 

 जापान की सबसे पुरानी छपी पुस्तक का नाम क्या था ?

उत्तर- डायमड सूत्र

किस देश में मुद्रण की तकनीक सबसे पहले विकसित हुई ?

उत्तर- चीन

‘मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है’ यह शब्द किसने कहा था ?

उत्तर- मार्टिन लूथर

किसने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस की कारगर बनाया ?

उत्तर- रिचर्ड एम हो

NCERT Class 6 to 12 Notes in Hindi
Class 10 History Chapter 5

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