#Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु Notes PDF in Hindi

प्रिय विद्यार्थियों आप सभी का स्वागत है आज हम आपको Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु Notes PDF in Hindi कक्षा 10 विज्ञान नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |Class 10 Vigyan Ke Notes PDF

Class 10 Science Chapter 3 Metals and Non-metals in Notes in Hindi

यहां पर आपको क्लास 10 विज्ञान Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु Notes PDF in Hindi नोट्स मिलेंगे जिसे आप पढ़ कर बोर्ड एग्जाम अच्छे नंबर आ सकते है .

chapter 3 dhaatu evam adhaatu

TextbookNCERT
ClassClass 10
Subjectविज्ञान
ChapterChapter
Chapter Nameधातु एवं अधातु
CategoryClass 10 Science Notes
MediumHindi

अध्याय एक नजर में Class 10 Science Chapter 3 Notes

धातु एवं अधातु
भौतिक गुणधर्म

1. धातु

  • इन पदार्थों के भौतिक गुणधर्मों की तुलना करके समूहों में अलग करना सबसे आसान है।
  • अपने शुद्ध रूप में धातु की सतह चमकदार होती है। धातु के इस गुणधर्म को धात्विक चमक कहते हैं।
  • धातुएँ सामान्यतः कठोर होती हैं। प्रत्येक धातु की कठोरता अलग-अलग होती है।
  • धातुओं को पीटकर पतली चादर बनाया जा सकता है। इस गुणधर्म को आघातवर्ध्यता कहते हैं। सोना तथा चाँदी सबसे अधिक आघातवर्ध्य धातुएँ हैं।
  • धातु के पतले तार के रूप में खींचने की क्षमता को तन्यता कहा जाता है। सोना सबसे अधिक तन्य धातु है।
  • आघातवर्ध्यता तथा तन्यता के कारण धातुओं को हमारी आवश्यकता के अनुसार विभिन्न आकार दिए जा सकते हैं।
  • धातु ऊष्मा के सुचालक हैं तथा इनका गलनांक बहुत अधिक होता है। सिल्वर तथा कॉपर ऊष्मा के सबसे अच्छे चालक हैं। इनकी तुलना में लेड तथा मर्करी ऊष्मा के कुचालक हैं। धातुएँ विद्युत की भी चालक हैं।
  • जिस तार से आपके घर तक बिजली पहुँचती है उस पर पॉलिवाइनिल क्लोराइड (PVC) अथवा रबड़ जैसी सामग्री की परत चढ़ी होती है।
  • जो धातुएँ कठोर सतह से टकराने पर आवाज़ उत्पन्न करती हैं उन्हें ध्वानिक (सोनोरस) कहते हैं। जैसे:- स्कूल की घंटी।

2. अधातु

  • धातुओं की तुलना में अधातुओं की संख्या कम है। कार्बन, सल्फ़र, आयोडीन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन आदि अधातुओं के कुछ उदाहरण हैं। ब्रोमीन ऐसी अधातु है जो द्रव होती है। इसके अलावा सारी अधातुएँ या तो ठोस या फिर गैसें होती हैं।
  • मर्करी को छोड़कर सारी धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में पाई जाती हैं।
  • धातुओं का गलनांक अधिक होता है लेकिन गैलियम और सीज़ियम का गलनांक बहुत कम है। यदि आप अपनी हथेली पर इन दोनों धातुओं को रखेंगे तो ये पिघलने लगेंगी।
  • आयोडीन अधातु होते हुए भी चमकीला होता है।
  • कार्बन ऐसी अधातु है जो विभिन्न रूपों में विद्यमान रहती है। प्रत्येक रूप को अपररूप कहते हैं। हीरा कार्बन का एक अपररूप है। यह सबसे कठोर प्राकृतिक पदार्थ है एवं इसका गलनांक तथा क्वथनांक बहुत अधिक होता है। कार्बन का एक अन्य अपररूप ग्रेफ़ाइट, विद्युत का सुचालक है।
  • क्षारीय धातु (लीथियम, सोडियम, पोटैशियम) इतनी मुलायम होती हैं कि उनको चाकू से भी काटा जा सकता है। इनके घनत्व तथा गलनांक कम होते हैं।
  • तत्वों को उनके रासायनिक गुणधर्मों के आधार पर अधिक स्पष्टता से धातुओं एवं अधातुओं में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • अधिकांश अधातुएँ ऑक्साइड प्रदान करते हैं जो जल में घुलकर अम्ल बनाते हैं। वहीं अधिकतर धातुएँ क्षारकीय ऑक्साइड प्रदान करते हैं

CBSE कक्षा 10 विज्ञान
पाठ-3 धातु एवं अधातु

  • वर्तमान में 118 तत्व ज्ञात हैं। इनमें 90 से अधिक धातु, 22 अधातु तथा कुछ उपधातु हैं।
  • सोडियम (Na), पोटाशियम (K), मैग्नीशियम (Mg), लोहा (Fe), एलूमिनियम (Al), कैल्शियम (Ca), बेरियम (Ba) धातुएं हैं।
  • ऑक्सीजन (O), हाइड्रोजन (H), नाइट्रोजन (N), सल्फर (S), फास्फोरस (P), फ्लूओरीन (F), क्लोरीन (CI), ब्रोमीन (Br), आयोडीन (I) अधातुएं हैं।

धातुओं के भौतिक गुणधर्म:

  • कक्ष ताप पर ठोस अवस्था में, केवल मर्करी (Hg) तरल रूप में।
  • तन्य (धातु को पतले तार के रूप में खींचा जा सकता है।)
  • आधातवर्ध्याता (धातु पर आधात कर पतली चादर के रूप में परिवर्तित करना)
  • धात्विक चमक
  • ध्वानिक
  • उच्च गलनांक। कुछ धातुओं का गलनांक कम होता है जैसे, सीजियम एवं गैलियम।
  • सामान्यतः ऊष्मा तथा विद्युत के सुचालक। सीसा (pb) एवं मर्करी (Hg) कुचालक हैं। सिल्वर (Ag) तथा कॉपर (Cu) सबसे अच्छे चालक हैं।
  • सामान्यतः अधिक घनत्व। सोडियम एवं पोटाशियम का घनत्व एवं गलनांक कम होता है। इन धातुओं को चाकू द्वारा काटा जा सकता है।

अधातुओं के भौतिक गुणधर्म:

  • ठोस एवं गैसीय अवस्था में। ब्रोमीन तरल रूप में।
  • सामान्यतः, ये कुचालक हैं। ग्रेफाइट (कार्बन का एक प्राकृतिक स्वरूप) विद्युत एवं ऊष्मा का सुचालक हैं।
  • अ-ध्वानिक
  • चमकहीन, केवल आयोडीन चमकीला होता है।
  • धातुएं क्षारीय ऑक्साइड बनाते हैं। जैसे मैग्नीशियम ऑक्साइड (MgO) (अधातु) अम्लीय (रासायनिक गुणधर्म) ऑक्साइड बनाते हैं। जैसे, अम्लीयवर्षा में।

धातुओं के रसायनिक गुणधर्मः

  • 1. वायु के साथ अभिक्रिया
  • धातु वायु में जल सकते हैं, वायु से अभिक्रिया कर सकते हैं या अप्रभावित रहते हैं।
    धातु + ऑक्सीजन धातु ऑक्साइड

Na तथा K को आकस्मिक आग बनाने से रोकने के लिये किरोसिन तेल में डुबो कर रखा जाता है।

Mg, Al, Zn, Pb वायु के साथ धीरे अभिक्रिया करते हैं। इन धातुओं पर ऑक्साइड की पतली सुरक्षा परत चढ़ जाती है।

Mg वायु में जलने पर सफेद MgO बनाता है।

Fe एवं Cu वायु में गर्म करने पर प्रज्वलित नहीं होते अपितु अपने ऑक्साइड बनाते हैं। ज्वाला में लौह चूर्ण डालने पर वे तेजी से जलने लगते हैं।

Ag तथा Au (गोल्ड) ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया नहीं करते।
2Na + O2 Na2O
2Mg + O2 2MgO
2Cu + O2 2CuO
4Al + 3O2 2Al2O3

उभयधर्मी ऑक्साइड : वे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षार से अभिक्रिया करते हैं तथा लवण एवं जल उत्पन्न करते हैं।
Al2O3 + HCl AlCl3 + H2O
Al2O3 + NaOH NaAlO2 + H2O

2. जल के साथ अभिक्रिया :
धातु
ठंडे जल के साथ क्रियाशील, जैसे Na, K, Ca
गर्म जल के साथ क्रियाशील, जैसे Mg
केवल भाप के साथ क्रियाशील जैसे Fe, AI
Na + H2O NaOH + H2
K + H2O KOH + H2
Ca + H2O Ca(OH)2 + H2
Mg + H2O Mg(OH)2 + H2

Ca तथा Mg की जल से अभिक्रिया के दौरान उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले धातु के साथ चिपक जाते हैं तथा धातु तैरना प्रारंभ कर देती हैं।
Al + H2O AI2O3 + H2
Fe + H2O Fe3O4 + H2
(उपरोक्त रसायनिक समीकरणों को संतुलित करने का प्रयास कीजिये।)

3. तनु अम्लों के साथ अभिक्रिया:
धातु + तनु अम्ल लवण + हाइड्रोजन गैस
सामान्यतः धातुएं तनु अम्ल [HCl] तथा (H2SO4) के साथ अभिक्रिया कर लवण तथा हाइड्रोजन उत्पन्न करती हैं।
Fe + 2HCl FeCl2 + H2
Mg + 2HCl MgCl2 + H2
Zn + 2HCl ZnCl2 + H2
2Al + 6HCl 2AlCl3 + 3H2
कॉपर, मर्करी एवं सिल्वर तनु अम्लों के साथ अभिक्रिया नहीं करते।
उत्पन्न H2 गैस उपचयित हो H2O उत्पन्न करती हैं जब धातु नाइट्रिक अम्ल HNO3 के साथ अभिक्रिया करते हैं। परंतु Mg एवं Mn अति तनु HNO2 के साथ क्रिया करके H2 गैस उत्पन्न करते हैं।
Mg + 2HNO3 Mg(NO3)2 + H2

4. धातुओं की अन्य धातु लवणों के साथ अभिक्रिया:

Reaction of metals with other metal salts

सभी धातुएं सम-अभिक्रियाशील नहीं होती। अधिक क्रियाशील धातुएं अपने से कम क्रियाशील धातुओं को उनके यौगिक के विलयन या गलित अवस्था में विस्थापित करती है। यह तथ्य धातुओं की सक्रियता श्रेणी का आधार है।

सक्रियता श्रेणी : वह सूची जिसमें धातुओं की क्रियाशील को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया है।

K

 

कोई धातु इस सूची में अपने से नीचे अथवा बाद में आने वाली धातुओं को विस्थापित करती है।

Na

सर्वाधिक

Ca

अभिक्रियाशील

Mg

 

Al

 

Zn

घटती अभिक्रियाशीलता

Fe

 

Pb

 

H

 

Cu

 

Hg

 

Ag

 

Au

सबसे कम अभिक्रियाशील

Fe + CuSO4 FeSO4 + Cu
Zn + CuSO4 ZnSO4 + Cu

धातुओं की अधातुओं के साथ अभिक्रिया- तत्वों की अभिक्रियाशील, संयोजकता कोष को पूर्ण करने की प्रवृत्ति के रूप में समझी जा सकती है।

धातु के परमाणु अपने संयोजकता कोश से इलेक्ट्रॉन त्याग करते हैं तथा धनायन बनाते हैं।

अधातु के परमाणु संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन बनाते हैं।

विपरीत आवेशित आयन एक दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा मजबूत स्थिर वैद्युत बल में बंधकर आयनिक यौगिक बनाते हैं।

MgCI2 का निर्माण:

Manufacture of MgCI2


MgCI2 का निर्माण

आयनिक यौगिकों के गुण धर्म-

कठोर तथा भंगुर।

उच्च गलनांक एवं क्वथनांक। मजबूत अंतर-आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिये ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा में आवश्यकता।

सामान्यता जल में घुलनशील। किरोसीन एवं पेट्रोल में अघुलनशील।

गलित अवस्था तथा विलयन रूप में विद्युत के सुचालक। इन अवस्थाओं में आयन उत्पन्न होने के कारण विद्युत प्रवाहित होती है।

धातुओं की प्राप्ति /धात्विकीः

खनिज: पृथ्वी में प्राकृतिक रूप से उपस्थित तत्त्व एवं यौगिकों को खनिज कहते हैं।

अयस्क: वें खनिज जिनमें कोई विशेष धातु काफी मात्रा में होती हैं तथा उसे निकालना लाभकारी होता है।

सक्रियता श्रेणी में निचली धातुएं स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती है। उदाहरण- गोल्ड, सिल्वर, कॉपर। यद्यपि कॉपर तथा सिल्वर सल्फाईड तथा ऑक्साईड अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं।

सक्रियता श्रेणी के मध्य में उपस्थित धातु प्रमुखतः सल्फाईड, ऑक्साईड तथा कार्बोनेट अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं।
उदाहरण- Zn, Fe, Pb

अधिक क्रियाशील धातुएं स्वतंत्र रूप से नहीं मिलती। जैसे- पोटाशियम, सोडियम, कैल्शियम्।

गैंगः पृथ्वी खनित अयस्कों में मिट्टी, रेत जैसी अशुद्धियां होती हैं जो गैंग कहलाती हैं।
धात्विक

अयस्क से धातु प्राप्ति की क्रम-गत प्रक्रिया।

अयस्क का समृद्धिकरण।

समृद्धित अयस्क से धातु की प्राप्ति।

अशुद्ध से शुद्ध धातु की परिष्करण द्वारा प्राप्ति।

सक्रियता श्रेणी में निचली धातुओं का निष्कर्षण:
अयस्क को वायु में गर्म करके

सिनाबार से मर्करी की प्राप्ति

recovery of mercury from cinnabar
recovery of mercury from cinnabar


कॉपर सल्फाईड द्वारा कॉपर की प्राप्ति

recovery of copper from copper sulphide
recovery of copper from copper sulphide

सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण धातु को ऑक्साइड अयस्क से प्राप्त करना सुलभ होता है। इसी कारणवश सल्फाईड एवं कार्बोनेट अयस्कों को ऑक्साईड अयस्क में परिवर्तित किया जाता हैं।

अयस्क को वायु में अधिक ताप पर गर्म करना

Sulphide and carbonate ores are converted into oxide ores.


यह भर्जन कहलाता है।

अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करना

Sulphide and carbonate ores are converted into oxide ores.


यह निस्तापन कहलाता है।

धातु ऑक्साईड का अपचयन-

कोयला प्रयोग करके : अपचयकारक के रूप में कोयला

विस्थापन अभिक्रिया करके : अधिक क्रियाशील धातु जैसे Na, Ca तथा Al का प्रयोग कम क्रियाशील धातुओं को उनके यौगिक से विस्थापित करने में किया जाता है।

उपरोक्त अभिक्रिया में लोहा गलित रूप में प्राप्त होता है जिसका उपयोग रेल की टूटी हुई पटरियों को जोड़ने में होता है। इस प्रक्रम को थर्मिट अभिक्रिया कहते हैं।

सक्रियता श्रेणी के शीर्ष में उपस्थित धातुओं का निष्कर्षणः

इन धातुओं की बंधुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन के प्रति अधिक होती है।

इन धातुओं को बैंद्युत-अपघटनी अपचयन के द्वारा प्राप्त करते हैं। सोडियम को उसके गलित क्लोराइड के विद्युत अपघटन द्वारा प्राप्त करते हैं।
NaCl Na+ + Cl

विलयन अथवा गलत अवस्था में विद्युत प्रवाह के पश्चात् कैथोड (ऋण आवेशित) पर सोडियम निक्षेपित हो जाती है तथा ऐनोड ( धन आवेशित) पर क्लोरीन मुक्त होती हैं।
कैथोड पर : Na+ + e Na
ऐनोड़ पर : 2Cl Cl2 + 2e

धातुओं का परिष्करण
प्राप्त धातुओं की अशुद्धियां या अपद्रव्य को वैद्युत अपघटनी परिष्करण द्वारा हटाया जा सकता है। शुद्ध कॉपर को इस विधि से प्राप्त किया जाता हैं। वैद्युत अपघटन उपकरण में निम्नलिखित प्रयुक्त होते हैं।

ऐनोड – अशुद्ध कॉपर धातु की छड़

कैथोड – शुद्ध कॉपर धातु की छड़

विलयन – कॉपर सल्फेट के जलीय विलयन के साथ सूक्ष्म मात्रा में तनु सल्फ्यूरिक अम्ल।

विद्युत प्रवाह करने के पश्चात ऐनोड से अशुद्ध धातु विद्युत अपघट्य में घुल जाती है तथा उतनी ही मात्रा में शुद्ध कॉपर विद्युत अपघट्य से कैथोड पर निक्षेपित होती हैं।

अविलेय अशुद्धियां ऐनोड तल पर निक्षेपित होती हैं जिसे ऐनोड पंक कहते हैं।

The insoluble impurities are deposited on the anode surface which is called anode mud.

संक्षारण:
धातुएं अपने आसपास अम्ल, आर्द्रता एवं वायु आदि के संपर्क में आपने पर संक्षारित होती हैं।

सिल्वर – वायु में उपस्थित सल्फर के साथ अभिक्रिया कर

सिल्वर- सल्फाइड बनाता है तथा वस्तु काली हो जाती हैं।

लोहा – आर्द्र वायु में लोहे पर भूरे रंग के पत्र की पदार्थ की परत चढ़ जाती हैं जिसे जंग कहते हैं। वायु तथा आर्द्रता लोहे पर जंग लगने के लिए आवश्यक है।

कॉपर – आर्द्र कार्बन डाइऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके हरे रंग का कॉपर कार्बोनेट बनाता है।

संक्षारण से सुरक्षा :
लोहे को जंग लगने से पेंट करके, तेल लगाकर, ग्नीज़ लगाकर, यशदलेपन कर, क्रोमियम लेपन द्वारा, ऐनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर, बचाया जा सकता है।

लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिए उन पर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाई जाती है। इसे यशदलेपन प्रक्रम कहते हैं।

मिश्र धातु : ये धातु तथा अन्य धातुओं अथवा अधातुओं का समांगी मिश्रण कहते हैं।

सुक्ष्म मात्रा में कार्बन का मिश्रण करने पर लोहा कठोर एवं प्रबल हो जाता हैं।

लोहे में निकैल और क्रोमियम मिश्रित करने पर स्टेनलैस इस्पात प्राप्त होता हैं जो कठोर एवं जंग-रोधी होता है।

मर्करी (पारद) को अन्य तत्वों के साथ मिश्रित करने पर अमलगम निर्मित होते हैं।

पीतल : कॉपर एवं जिंक की मिश्रधातु।

कांसा : कॉपर एवं टिन की मिश्रधातु।
इन दोनों मिश्रधातु की विद्युत चालकता एवं गलनांक शुद्ध धातु की अपेक्षा कम होता है।

संक्षेप में:

अतिशय रूप से धातु ठोस, ध्वनिक, चमकीली, सुचालक, आद्यातवर्ध्य, तन्य, उच्च गलनांक तथा उच्च घनत्व वाली होती है। धातु क्षारीय ऑक्साईड एवं धनायन बनाती हैं।

अधातुएं सामान्यतः ठोस अथवा गैस, चमकहीन, अध्वानिक, कुचालक तथा निम्न गलनांक वाली होती हैं। ये अम्लीय ऑक्साइड एवं ऋणायन बनाती हैं।

Na, K तथा Ca कुछ अत्यंत क्रियाशील धातुएं हैं। Mg, AI, Zn तथा Pb इनसे कम क्रियाशील और सोना, चांदी एवं प्लैटिनम सबसे कम क्रियाशील धातुएं हैं।

सामान्यतः धातु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित करते हैं।

विस्थापन क्षमता के आधार पर सक्रियता श्रेणी बनाई गई है। इस श्रेणी में धातुओं को क्रियाशीलता के घटते क्रम में व्यवस्थित किया गया है।

धातु एवं अधातु परस्पर क्रिया कर आयनिक यौगिकों का निर्माण करते हैं जो जल में घुलनशील, उच्च गलनांक वाले पदार्थ होते हैं जो गलित अवस्था तथा जलीय विलयन में विद्युत का प्रवाह करते हैं।

अयस्क वे खनित होते हैं जिनसे लाभकारी रूप से कोई धातु प्राप्त होती हैं।

धातुओं का निष्कर्षण उनकी अभिक्रियाशीलता के अनुसार किया जाता है।

सल्फाईड एवं क्लोराईड अयस्कों का भर्जन तथा कार्बोनेट अयस्कों का निस्तापन किया जाता है।

विद्युत अपघटनी परिष्करण द्वारा परिशुद्ध धातुएं प्राप्त की जाती हैं।

धातुएं वायु में उपस्थित पदार्थों के साथ अभिक्रिया करके संक्षारित होते हैं। धातुओं के गुणधर्मों में परिवर्तन करने हेतु मिश्रधातु बनाई जाती है।

स्टील (इस्पात), स्टेनलेस इस्पात, अमलगम, पीतल, कांसा तथा सोल्डर मिश्रधातु के उदाहरण हैं।

Class 10 विज्ञान
धातु एवं अधातु
धातुओं के रासायनिक गुणधर्म

धातुओं का वायु में दहन करने से क्या होता है?

लगभग सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ मिलकर संगत धातु के ऑक्साइड बनाती हैं।
धातु + ऑक्सीजन धातु ऑक्साइड
उदाहरण के लिए, जब कॉपर को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है तो यह ऑक्सीजन के साथ मिलकर काले रंग का कॉपर (II) ऑक्साइड बनाता है।

इसी प्रकार ऐलुमिनियम “ऐलुमिनियम ऑक्साइड” प्रदान करता है।

धातु ऑक्साइड की प्रकृति क्षारकीय होती है। लेकिन ऐलुमिनियम ऑक्साइड, जिंक ऑक्साइड जैसे कुछ धातु ऑक्साइड अम्लीय तथा क्षारकीय दोनों प्रकार के व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। ऐसे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षारक दोनों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल प्रदान करते हैं, उभयधर्मी ऑक्साइड कहलाते हैं।
अम्ल तथा क्षारक के साथ ऐलुमिनियम ऑक्साइड निम्न प्रकार से अभिक्रिया करता है।
Al2O3 + 6HCl 2AlCl3 + 3H2O



अधिकांश धातु ऑक्साइड जल में अघुलनशील हैं लेकिन इनमें से कुछ जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं। सोडियम ऑक्साइड एवं पोटैशियम ऑक्साइड निम्न प्रकार से जल में घुलकर क्षार प्रदान करते हैं:
Na2O(s) + H2O(l) 2NaOH(aq)
K2O(s) + H2O(l) 2KOH(aq)
ऑक्सीजन के साथ सभी धातुएँ एक ही दर से अभिक्रिया नहीं करती हैं। विभिन्न धातुएँ ऑक्सीजन के साथ विभिन्न अभिक्रियाशीलता प्रदर्शित करती हैं। पोटैशियम तथा सोडियम जैसी कुछ धातुएँ इतनी तेज़ी से अभिक्रिया करती हैं कि खुले में रखने पर आग पकड़ लेती हैं। इसलिए, इन्हें सुरक्षित रखने तथा आकस्मिक आग को रोकने के लिए किरोसिन तेल में डुबो कर रखा जाता है।

सामान्य ताप पर मैग्नीशियम, ऐलुमिनियम, जिंक, लेड आदि जैसी धातुओं की सतह पर ऑक्साइड की पतली परत चढ़ जाती है। ऑक्साइड की यह परत धातुओं को पुनः ऑक्सीकरण से सुरक्षित रखती है। गर्म करने पर आयरन का दहन तो नहीं होता है लेकिन जब बर्नर की ज्वाला में लौह चूर्ण डालते हैं तब वह तेज़ी से जलने लगता है। कॉपर का दहन तो नहीं होता है लेकिन गर्म धातु पर कॉपर (II) ऑक्साइड की काले रंग की परत चढ़ जाती है। सिल्वर एवं गोल्ड अत्यंत अधिक ताप पर भी ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया नहीं करते हैं।


धातुओं के नमूनों में सोडियम सबसे अधिक अभिक्रियाशील है। मैग्नीशियम धीमी अभिक्रिया करता है और यह सोडियम की अपेक्षा कम अभिक्रियाशील है। लेकिन ऑक्सीजन में दहन करने से हमें ज़िक, आयरन, कॉपर तथा लेड की अभिक्रियाशीलता का पता नहीं चलता है।

धातुएँ जब जल के साथ अभिक्रिया करती हैं तो क्या होता है?

जल के साथ अभिक्रिया करके धातुएँ हाइड्रोजन गैस तथा धातु ऑक्साइड उत्पन्न करती हैं। जो धातु ऑक्साइड जल में घुलनशील हैं, जल में घुलकर धातु हाइड्रॉक्साइड प्रदान करते हैं। लेकिन सभी धातुएँ जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती हैं।
धातु + जल धातु ऑक्साइड + हाइड्रोजन
धातु ऑक्साइड + जल धातु हाइड्रॉक्साइड


पोटैशियम एवं सोडियम जैसी धातुएँ ठंडे जल के साथ तेज़ी से अभिक्रिया करती हैं। सोडियम तथा पोटैशियम की अभिक्रिया तेज़ तथा ऊष्माक्षेपी होती है कि इससे उत्सर्जित हाइड्रोजन तत्काल प्रज्ज्वलित हो जाती है।


2K(s) + 2H2O(l) 2KOH(aq) + H2(g) + ऊष्मीय ऊर्जा
2Na(s) + 2H2O(l) 2NaOH(aq) + H2(g) + ऊष्मीय ऊर्जा
जल के साथ कैल्सियम की अभिक्रिया थोड़ी धीमी होती है। यहाँ उत्सर्जित ऊष्मा हाइड्रोजन के प्रज्ज्वलित होने के लिए पर्याप्त नहीं होती है।
Ca(s) + 2H2O(l) Ca(OH)2(aq) + H2(g)
क्योंकि उपरोक्त अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले कैल्सियम धातु की सतह पर चिपक जाते हैं। अतः कैल्सियम तैरना प्रारंभ कर देता है।

मैग्नीशियम शीतल जल के साथ अभिक्रिया नहीं करता है परंतु गर्म जल के साथ अभिक्रिया करके वह मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड एवं हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है। चूँकि हाइड्रोजन गैस के बुलबुले मैग्नीशियम धातु की सतह से चिपक जाते हैं। अतः यह भी तैरना प्रारंभ कर देते हैं।

ऐलुमिनियम, आयरन तथा जिंक जैसी धातुएँ न तो शीतल जल के साथ और न ही गर्म जल के साथ अभिक्रिया करती हैं। लेकिन भाप के साथ अभिक्रिया करके यह धातु ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन प्रदान करती हैं।
2Al(s) + 3H2O(g) Al2O3(s) + 3H2(g)
3Fe(s) + 4H2O(g) Fe3O4(s) + 4H2(g)
लेड, कॉपर, सिल्वर तथा गोल्ड जैसी धातुएँ जल के साथ बिलकुल अभिक्रिया नहीं करती हैं।

क्या होता है जब धातुएँ अम्लों के साथ अभिक्रिया करती हैं?

धातुएँ अम्ल के साथ अभिक्रिया करके संगत लवण तथा हाइड्रोजन गैस प्रदान करती हैं।
धातु + तनु अम्ल लवण + हाइड्रोजन
जब धातुएँ नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करती हैं तब हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित नहीं होती है। क्योंकि HNO3 एक प्रबल ऑक्सीकारक होता है जो उत्पन्न H2 को ऑक्सीकृत करके जल में परिवर्तित कर देता है एवं स्वयं नाइट्रोजन के किसी ऑक्साइड (N2O, NO, NO2) में अपचयित हो जाता है। लेकिन मैग्नीशियम (Mg) एवं मैंगनीज (Mn), अति तनु HNO2 के साथ अभिक्रिया कर H2 गैस उत्सर्जित करते हैं।


बुलबुले बनने की दर मैग्नीशियम के साथ सबसे अधिक थी। इस स्थिति में अभिक्रिया सबसे अधिक ऊष्माक्षेपी थी। अभिक्रियाशीलता इस क्रम में घटती है: Mg > Al > Zn > Fe
कॉपर की स्थिति में न तो बुलबुले बनते हैं और न ही ताप में कोई परिवर्तन होता है। इससे पता चलता है कि कॉपर तनु HCl के साथ अभिक्रिया नहीं करता है।

अन्य धातु लवणों के विलयन के साथ धातुएँ कैसे अभिक्रिया करती हैं?

अभिक्रियाशील धातु अपने से कम अभिक्रियाशील धातु को उसके यौगिक के विलयन या गलित अवस्था से विस्थापित कर देती है।
सभी धातुओं की अभिक्रियाशीलता समान नहीं होती है।ऑक्सीजन, जल एवं अम्ल के साथ विभिन्न धातुओं की अभिक्रियशीलता की जाँच की। लेकिन सभी धातुएँ इन अभिकर्मकों के साथ अभिक्रिया नहीं करती हैं। इसलिए हम सभी धातुओं के नमूने को अभिक्रियाशीलता के अवरोही क्रम में नहीं रख सके।


जो विस्थापन अभिक्रियाओं का अध्ययन किया वह धातुओं की अभिक्रियाशीलता का उत्तम प्रमाण प्रस्तुत करता है। इसे समझना बहुत ही आसान एवं सरल है। अगर धातु (A) धातु (B) को उसके विलयन से विस्थापित कर देती है तो यह धातु (B) की अपेक्षा अधिक अभिक्रियाशील है।
धातु (A) + (B) का लवण विलयन (A) का लवण विलयन + धातु (B)

सक्रियता श्रेणी

सक्रियता श्रेणी वह सूची है जिसमें धातुओं की क्रियाशीलता को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। विस्थापन के प्रयोगों के बाद को विकसित किया गया है जिसे सक्रियता श्रेणी कहते हैं।
सारणी : सक्रियता श्रेणी : धातुओं की सापेक्ष अभिक्रियाशीलताएँ

Table : Reactivity series : Relative reactivities of metals

Class 10 विज्ञान
धातु एवं अधातु
धातुएँ एवं अधातुएँ अभिक्रिया

संयोजकता कोश पूर्ण होने के कारण उत्कृष्ट गैसों की रासायनिक अभिक्रियाएँ बहुत कम होती हैं। इसलिए, हम तत्वों की अभिक्रियाशीलता को, संयोजकता कोश को पूर्ण करने की प्रवृत्ति के रूप में समझ सकते हैं।


सोडियम परमाणु के बाह्यतम कोश में केवल एक इलेक्ट्रॉन है। यदि यह अपने M कोश से एक इलेक्ट्रॉन को त्याग देता है तब L कोश इसका बाह्यतम कोश बन जाता है जिसमें स्थायी अष्टक उपस्थित है।

इस परमाणु के नाभिक में 11 प्रोटॉन हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनों की संख्या 10 होने के कारण इसमें धन आवेश की अधिकता होती है तथा यह सोडियम धनायन Na+ प्रदान करता है। दूसरी ओर, क्लोरीन के बाह्यतम कोश में 7 इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा अष्टक पूर्ण होने के लिए इसे एक इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है।

यदि सोडियम एवं क्लोरीन अभिक्रिया करें तो सोडियम द्वारा त्यागा गया एक इलेक्ट्रॉन क्लोरीन ग्रहण कर लेता है। एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके क्लोरीन-परमाणु, इकाई ऋण आवेश प्राप्त करता है क्योंकि इसके नाभिक में 17 प्रोटॉन होते हैं तथा इसके K, L, एवं M कोशों में 18 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इससे क्लोराइड ऋणायन Cl प्राप्त होता है। इसलिए यह दोनों तत्वों के बीच निम्न प्रकार से आदान-प्रदान का संबंध स्थापित हो जाता है (चित्र)।

When sodium and chlorine react, an electron lost by sodium is accepted by chlorine.



विपरीत आवेश होने के कारण सोडियम तथा क्लोराइड आयन परस्पर आकर्षित होते हैं तथा मजबूत स्थिरवैद्युत बल में बँधकर सोडियम क्लोराइड (Nacl) के रूप में उपस्थित रहते हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि सोडियम क्लोराइड अणु के रूप में नहीं पाया जाता है बल्कि यह विपरीत आयनों का समुच्चय होता है।


अब एक और आयनिक यौगिक, मैग्नीशियम क्लोराइड के निर्माण को में दर्शाया गया है।

The formation of the ionic compound, magnesium chloride, is shown in Fig.



धातु से अधातु में इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण से बने यौगिकों को आयनिक यौगिक या वैद्युत संयोजक यौगिक कहा जाता है।

आयनिक यौगिक के गुणधर्म

सारणी कुछ आयनिक यौगिकों के गलनांक एवं क्वथनांक

आयनिक यौगिक गलनांक (K) क्वथनांक (i)

NaCl

1074

1686

LiCl

887

1600

CaCl2

1045

1900

CaO

2850

3120

MgCl2

981

1685

आयनिक यौगिकों के निम्न सामान्य गुणधर्मों पर आपने ध्यान दिया होगा:

  1. भौतिक प्रकृति: धन एवं ऋण आयनों के बीच मजबूत आकर्षण बल के कारण आयनिक यौगिक ठोस एवं थोड़े कठोर होते हैं। ये यौगिक सामान्यतः भंगुर होते हैं तथा दाब डालने पर टुकड़ों में टूट जाते हैं।
  2. गलनांक एवं क्वथनांक: आयनिक यौगिकों का गलनांक एवं क्वथनांक बहुत अधिक होता है क्योंकि मजबूत अंतर-आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिए ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता होती है।
  3. घुलनशीलता: वैद्युत संयोजक यौगिक सामान्यत: जल में घुलनशील तथा किरोसिन, पेट्रोल आदि जैसे विलायकों में अविलेय होते हैं।
  4. विद्युत चालकता: किसी विलयन से विद्युत के चालन के लिए आवेशित कणों की गतिशीलता आवश्यक होती है। आयनिक यौगिकों के जलीय विलयन में आयन उपस्थित होते हैं। जब विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह आयन विपरीत इलैक्ट्रोड की ओर गमन करने लगते हैं। ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत का चालन नहीं करते हैं क्योंकि ठोस अवस्था में दृढ़ संरचना के कारण आयनों की गति संभव नहीं होती है। लेकिन आयनिक यौगिक गलित अवस्था में विद्युत का चालन करते हैं क्योंकि गलित अवस्था में विपरीत आवेश वाले आयनों के मध्य स्थिरवैद्युत आकर्षण बल ऊष्मा के कारण कमज़ोर पड़ जाता है। इसलिए आयन स्वतंत्र रूप से गमन करते हैं एवं विद्युत का चालन करते हैं।

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Class 10 विज्ञान
धातु एवं अधातु
धातुओं की प्राप्ति

पृथ्वी की भूपर्पटी धातुओं का मुख्य स्रोत है। समुद्री जल में भी सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड आदि जैसे कुछ विलेय लवण उपस्थित रहते हैं। पृथ्वी की भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं। कुछ स्थानों पर खनिजों में कोई विशेष धातु काफ़ी मात्रा में होती है जिसे निकालना लाभकारी होता है। इन खनिजों को अयस्क कहते हैं।

धातुओं का निष्कर्षण

कुछ धातुएँ भूपर्पटी में स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती हैं। कुछ धातुएँ अपने यौगिकों के रूप में मिलती हैं। सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ सबसे कम अभिक्रियाशील होती हैं। ये स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती हैं।

उदाहरण के लिए, गोल्ड (सोना), सिल्वर (चाँदी), प्लैटिनम एवं कॉपर (ताँबा) स्वतंत्र अवस्था में पाए जाते हैं। कॉपर एवं सिल्वर, अपने सल्फ़ाइड या ऑक्साइड के अयस्क के रूप में संयुक्त अवस्था में भी पाए जाते हैं।

सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर की धातुएँ (K, Na, Ca, Mg एवं Al) इतनी अधिक अभिक्रियाशील होती हैं कि ये कभी भी स्वतंत्र तत्व के रूप में नहीं पाई जातीं। सक्रियता श्रेणी के मध्य की धातुएँ (Zn, Fe, Pb,आदि) की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है।

पृथ्वी की भू-पर्पटी में ये मुख्यतः ऑक्साइड, सल्फ़ाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं। आप देखेंगे कि कई धातुओं के अयस्क ऑक्साइड होते हैं। ऑक्सीजन की अत्यधिक अभिक्रियाशीलता एवं पृथ्वी पर इसके प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण ऐसा होता है।
इस प्रकार, अभिक्रियाशीलता के आधार पर हम धातुओं को निम्न तीन वर्गों (चित्र) में विभाजित कर सकते हैं: (i) निम्न अभिक्रियाशील धातुएँ (ii) मध्यम अभिक्रियाशील धातुएँ (iii) उच्च अभिक्रियाशील धातुएँ। प्रत्येक वर्ग में आने वाली धातुओं को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

On the basis of reactivity, we can divide metals into the following three groups (Figure)



अयस्क से शुद्ध धातु का निष्कर्षण कई चरणों में होता है। इन चरणों का सारांश चित्र में दिया गया है। निम्न भागों में प्रत्येक चरण की विस्तृत चर्चा की गई है।

The extraction of pure metal from the ore takes place in several steps. These steps are summarized in Fig. Each step is discussed in detail in the following sections.

अयस्कों का समृद्धीकरण

पृथ्वी से खनित अयस्कों में मिट्टी, रेत आदि जैसी कई अशुद्धियाँ होती हैं जिन्हें गैंग (gangue) कहते हैं। धातुओं के निष्कर्षण से पहले अयस्क से अशुद्धियों को हटाना आवश्यक होता है। अयस्कों से गैंग को हटाने के लिए जिन प्रक्रियाओं का उपयोग होता है वे अयस्क एवं गैंग के भौतिक या रासायनिक गुणधर्मों पर आधारित होते हैं। इस पृथकन के लिए विभिन्न तकनीक अपनायी जाती है।

सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण

सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ काफ़ी अनभिक्रिय होती हैं। इन धातुओं के ऑक्साइड को केवल गर्म करने से ही धातु प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, सिनाबार (HgS), मर्करी (पारद) का एक अयस्क है। वायु में गर्म करने पर यह सबसे पहले मर्क्यूरिक ऑक्साइड (HgO) में परिवर्तित होता है और अधिक गर्म करने पर मर्क्यूरिक ऑक्साइड मर्करी (पारद) में अपचयित हो जाता है।

इसी प्रकार, प्राकृतिक रूप से Cu2S के रूप में उपलब्ध ताँबे (कॉपर) को केवल वायु में गर्म करके इसको अयस्क से अलग किया जा सकता है।

सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण

सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुएँ; जैसे-आयरन, जिंक, लेड, कॉपर की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। प्रकृति में यह प्राय: सल्फ़ाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं।

सल्फ़ाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान है। इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फ़ाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है।

सल्फ़ाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करने पर यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं। कार्बोनेट अयस्क को सीमित वायु में अधिक ताप पर गर्म करने से यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया को निस्तापन कहा जाता है। जिंक के अयस्कों के भर्जन एवं निस्तापन के समय निम्न रासायनिक अभिक्रिया होती है:
भर्जन

निस्तापन

इसके बाद कार्बन जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से धातु प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, जब जिंक ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है तो यह जिंक धातु में अपचयित हो जाता है।

धातुओं को उनके यौगिकों से प्राप्त करना भी अपचयन प्रक्रम है।
कार्बन (कोयला) का उपयोग कर धातु के ऑक्साइड को धातु में अपचयन करने के अलावा विस्थापन अभिक्रिया का भी उपयोग किया जा सकता है।

अत्यधिक अभिक्रियाशील धातुएँ; जैसे-सोडियम, कैल्सियम, ऐलुमिनियम आदि को अपचायक के रूप में उपयोग किया जा सकता है क्योंकि ये निम्न अभिक्रियाशीलता वाले धातुओं को उनके यौगिकों से विस्थापित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब मैगनीज डाइऑक्साइड को ऐलुमिनियम चूर्ण के साथ गर्म किया जाता है तो निम्न अभिक्रिया होती है:
3MnO2 (s) + 4Al(s) 3Mn(l) + 2Al2O3 (s) + ऊष्मा


यह विस्थापन अभिक्रियाएँ अत्यधिक ऊष्माक्षेपी होती हैं। इसमें उत्सर्जित ऊष्मा की मात्रा इतनी अधिक होती है कि धातुएँ गलित अवस्था में प्राप्त होती हैं। वास्तव में आयरन(III)ऑक्साइड Fe2O3 के साथ ऐलुमिनियम की अभिक्रिया का उपयोग रेल की पटरी एवं मशीनी पुर्जों की दरारों को जोड़ने के लिए किया जाता है। इस अभिक्रिया को थर्मिट अभिक्रिया कहते हैं।
Fe2O3(s) + 2Al(s) 2Fe(l) + Al2O3(s) + ऊष्मा

सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुओं का निष्कर्षण

अभिक्रियाशीलता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुएँ अत्यंत अभिक्रियाशील होती हैं। इन्हें कार्बन के साथ गर्म कर इनके यौगिकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कार्बन के द्वारा सोडियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम, ऐलुमिनियम आदि के ऑक्साइड का अपचयन कर उन्हें धातुओं में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

इन धातुओं की बंधुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन के प्रति अधिक होती है। इन धातुओं को विद्युत अपघटनी अपचयन द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, सोडियम, मैग्नीशियम एवं कैल्सियम को उनके गलित क्लोराइडों के विद्युत अपघटन से प्राप्त किया जाता है।

कैथोड (ऋण आवेशित इलैक्ट्रोड) पर धातुएँ निक्षेपित हो जाती हैं तथा ऐनोड (धन आवेशित इलैक्ट्रोड) पर क्लोरीन मुक्त होती है। अभिक्रियाएँ इस प्रकार हैं:
कैथोड पर Na+ + e Na
ऐनोड पर 2Cl Cl2+ 2e
इसी प्रकार, ऐलुमिनियम ऑक्साइड के विद्युत अपघटनी अपचयन से ऐलुमिनियम प्राप्त किया जाता है।

धातुओं का परिष्करण

ऊपर वर्णित विभिन्न अपचयन प्रक्रमों से प्राप्त धातुएँ पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होती हैं। इनमें अपद्रव्य होते हैं जिन्हें हटाकर ही शुद्ध धातु प्राप्त की जा सकती है। धातुओं से अपद्रव्य को हटाने के लिए सबसे अधिक प्रचलित विधि विद्युत अपघटनी परिष्करण है।

विद्युत अपघटनी परिष्करण: कॉपर, जिंक, टिन, निकैल, सिल्वर, गोल्ड आदि जैसी अनेक धातुओं का परिष्करण विद्युत अपघटन द्वारा किया जाता है। इस प्रकम में, अशुद्ध धातु को ऐनोड तथा शुद्ध धातु की पतली परत को कैथोड बनाया जाता है। धातु के लवण विलयन का उपयोग विद्युत अपघट्य के रूप में होता है। चित्र के अनुसार उपकरण व्यवस्थित किया जाता है।

Electrolytic refining of copper. Acidified copper sulphate solution is electrolytic. The impure copper is the anode while the pure copper strip acts as the cathode. On passing electric current, pure copper gets deposited on the cathode.


विद्युत अपघट्य से जब धारा प्रवाहित की जाती है तब ऐनोड पर स्थित अशुद्ध धातु विद्युत अपघट्य में घुल जाती है। इतनी ही मात्रा में शुद्ध धातु विद्युत अपघट्य से कैथोड पर निक्षेपित हो जाती है। विलेय अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं तथा अविलेय अशुद्धियाँ ऐनोड तली पर निक्षेपित हो जाती हैं जिसे ऐनोड पंक कहते हैं।

Class 10 विज्ञान
धातु एवं अधातु
संक्षारण

संक्षारण के संबंध में निम्न बातों का अध्ययन कर चुके हैं:-

  • खुली वायु में कुछ दिन छोड़ देने पर सिल्वर की वस्तुएँ काली हो जाती हैं। सिल्वर का वायु में उपस्थित सल्फ़र के साथ अभिक्रिया कर सिल्वर सल्फ़ाइड की परत बनने के कारण ऐसा होता है।
  • कॉपर वायु में उपस्थित आर्द्र कार्बन डाइऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करता है जिससे इसकी सतह से भूरे रंग की चमक धीरे-धीरे खत्म हो जाती है तथा इस पर हरे रंग की परत चढ़ जाती है। यह हरा पदार्थ बेसिक कॉपर कार्बोनेट होता है।
  • लंबे समय तक आर्द्र वायु में रहने पर लोहे पर भूरे रंग के पत्रकी पदार्थ की परत चढ़ जाती है जिसे जंग कहते हैं।

संक्षारण से सुरक्षा


पेंट करके, तेल लगाकर, ग्रीज़ लगाकर, यशदलेपन (लोहे की वस्तुओं पर जस्ते की परत चढ़ाकर), क्रोमियम लेपन, ऐनोडीकरण या मिश्रधातु बनाकर लोहे को जंग लगने से बचाया जा सकता है।


लोहे एवं इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिए उनपर जस्ते (जिंक) की पतली परत चढ़ाने की विधि को यशदलेपन कहते हैं। जस्ते की परत नष्ट हो जाने के बाद भी यशदलेपित वस्तु जंग से सुरक्षित रहती है।


धातु के गुणधर्मों को बेहतर बनाने की अच्छी विधि मिश्रात्वन है। इस विधि से हम इच्छानुसार धातुओं के अत्यन्त गुणधर्म प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, लोहा सर्वाधिक उपयोग मे आने वाली धातु है। लेकिन कभी भी शुद्ध अवस्था में इसका उपयोग नहीं किया जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि शुद्ध लोहा अत्यन्त नर्म होता है एवं गर्म करने पर सुगमतापूर्वक खिंच जाता है।

लेकिन यदि इसमें थोड़ा कार्बन (लगभग 0.05 प्रतिशत) मिला दिया जाता है तो यह कठोर तथा प्रबल हो जाता है। लोहे के साथ निकैल एवं क्रोमियम मिलाने पर हमें स्टेनलेस इस्पात प्राप्त होता है जो कठोर होता है तथा उसमें जंग नहीं लगता है।

इस प्रकार यदि लोहे के साथ कोई अन्य पदार्थ मिश्रित किया जाता है तो इसके गुणधर्म बदल जाते हैं। वास्तव में, कोई अन्य पदार्थ मिला कर किसी भी धातु के गुणधर्म बदले जा सकते हैं। यह पदार्थ धातु या अधातु कुछ भी हो सकता है। दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण को मिश्रातु कहते हैं। इसे तैयार करने के लिए पहले मूल धातु को गलित अवस्था में लाया जाता है एवं तत्पश्चात दूसरे तत्वों को एक निश्चित अनुपात में इसमें विलीन किया जाता है। फिर इसे कमरे के ताप पर शीतलीकृत किया जाता है।


यदि कोई एक धातु पारद है तो इसके मिश्रातु को अमलगम कहते हैं। शुद्ध धातु की अपेक्षा उसके मिश्रातु की विद्युत चालकता तथा गलनांक कम होता है। उदाहरण के लिए, ताँबा एवं जस्ते (Cu एवं Zn) की मिश्रातु पीतल तथा ताम्र एवं टिन (Cu एवं Sn) की मिश्रातु काँसा विद्युत के कुचालक हैं, लेकिन ताम्र का उपयोग विद्युतीय परिपथ बनाने में किया जाता है। सीसा एवं टिन (Pb एवं Sn) की मिश्रातु सोल्डर है जिसका गलनांक बहुत कम होता है। इसका उपयोग विद्युत तारों की परस्पर वेल्डिग के लिए किया जाता है।

Class 10 विज्ञान
धातु एवं अधातु


सारांश

  • तत्वों को धातुओं एवं अधातुओं में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • धातुएँ तन्य, आघातवर्ध्य, चमकीली एवं ऊष्मा तथा विद्युत की सुचालक होती हैं। पारद के अलावा सभी धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस होती हैं। कमरे के ताप पर पारद द्रव होता है।
  • धातुएँ विद्युत धनात्मक तत्व होते हैं क्योंकि यह अधातुओं को इलेक्ट्रॉन देकर स्वयं धन आयन में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर धातुएँ क्षारकीय ऑक्साइड बनाती हैं। ऐलुमिनियम ऑक्साइड एवं जिंक ऑक्साइड, क्षारकीय ऑक्साइड तथा अम्लीय ऑक्साइड, दानों के गुणधर्म प्रदर्शित करती हैं। इन ऑक्साइड को उभयधर्मी ऑक्साइड कहते हैं।
  • जल एवं तनु अम्लों के साथ विभिन्न धातुओं की अभिक्रियाशीलता भिन्न-भिन्न होती है।
  • अभिक्रियाशीलता के आधार पर अवरोही क्रम में व्यवस्थित सामान्य धातुओं की सूची को सक्रियता श्रेणी कहते हैं।
  • सक्रियता श्रेणी में हाइड्रोजन के ऊपर स्थित धातुएँ तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर सकती हैं।
  • अधिक अभिक्रियाशील धातुएँ अपने से कम अभिक्रियाशील धातुओं को उसके लवण विलयन से विस्थापित कर सकती हैं।
  • प्रकृति में धातुएँ स्वतंत्र अवस्था में या अपने यौगिकों के रूप में पाई जाती हैं।
  • अयस्क से धातु का निष्कर्षण तथा उसका परिष्करण कर उपयोगी बनाने के प्रक्रम को धातुकर्म कहते हैं।
  • दो या दो से अधिक धातुओं अथवा एक धातु या एक अधातु के समांगी मिश्रण को मिश्रातु कहते हैं। लंबे समय तक आर्द्र वायु के संपर्क में रखने से लोहा जैसे कुछ धातुओं की सतह संक्षारित हो जाती है। इस परिघटना को संक्षारण कहते हैं।
  • अधातुओं के गुणधर्म धातुओं के विपरीत होते हैं। यह न तो आघातवर्ध्य तथा न ही तन्य होते हैं। ग्रैफ्राइट के अलावा सभी अधातुएँ ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक होती हैं। ग्रैफ़ाइट विद्युत का चालक होता है। अधातुएँ विद्युत ऋणात्मक तत्व होती हैं क्योंकि धातुओं के साथ अभिक्रिया में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋण आवेशित आयन बनाती हैं।
  • अधातुएँ ऑक्साइड बनाती हैं जो अम्लीय या उदासीन होती हैं।
  • अधातुएँ तनु अम्लों में से हाइड्रोजन का विस्थापन नहीं करती हैं। यह हाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया कर हाइड्राइड बनाती हैं।

ऐसी धातु का उदाहरण दीजिए जो –
(i) कमरे के ताप पर द्रव होती है।

मर्करी (पारा) केवल ऐसा धातु है जो कमरे के तापमान पर द्रव अवस्था में पाया जाता है।

ऐसी धातु का उदाहरण दीजिए जो
चाकू से आसानी से काटा जा सकता है।

लीथियम, सोडियम, पोटेशियम आदि को चाकू से आसानी से काटा जा सकता है ।

ऐसी धातु का उदाहरण दीजिए जो –
ऊष्मा की सबसे अच्छी चालक होती है।

चाँदी (सिल्वर) तथा तांबा (कॉपर) ऊष्मा के सबसे अच्छे चालक हैं।

ऐसी धातु का उदाहरण दीजिए जो –
ऊष्मा की कुचालक होती है।

लेड तथा पारा (मर्करी) ऊष्मा के कुचालक हैं।

आघातवर्ध्य तथा तन्य का अर्थ बताइए।

आघातवर्ध्य- वे धातुएँ जिन्हें पीटकर पतली चादरें बनाई जा सकती हैं, आघातवर्ध्य कहलाते हैं। उदाहरण – लोहा,एल्युमिनियम।

सोडियम को केरोसीन में डुबोकर क्यों रखा जाता है?

सोडियम में उच्च अभिक्रियाशीलता पाई जाती है तथा इसका ज्वलन ताप कम होता है। यदि इसे खुले में रखा जाता है तो ऑक्सीजन से तेजी से क्रिया करके आग पकड़ लेती है, इसलिए इसे सुरक्षित रखने तथा आकस्मिक आग को रोकने के लिए  केरोसिन को तेल में डुबोकर रखा जाता है।

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