10 Class Science Chapter 3 धातु एवं अधातु notes in hindi
Class 10 science Chapter 3 अम्ल , क्षारक एवं लवण notes in hindi. जिसमे हम धातु एवं अधातु , धातुओं एवं अधातुओं के भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्म ,सक्रियता श्रेणी, धातुओं की प्राप्ति एवं उनके संक्षारण आदि के बारे में जानेगे ।
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | विज्ञान |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | धातु एवं अधातु |
Category | Class 10 Science Notes |
Medium | Hindi |
धातु एवं अधातु
- तत्वों को उनके गुणधर्मों के आधार पर धातु एवं अधातु में वर्गीकृत किया जाता है।
- धातु के कुछ उदाहरण हैं।
आयरन (Fe), ऐलुमिनीयम (AI), चाँदी (Ag), कॉपर (Cu) - अधातु के कुछ उदाहरण हैं:
हाइड्रोजन (H), नाइट्रोजन (N), सल्फर (S), आक्सीजन (O)
तत्व :- तत्वों की कुल संख्या 118 है। सर्वप्रथम ब्रायल एवं लवाइजिए ने बताया।
धातुओं के भौतिक गुणधर्म:-
(1) धात्विक चमक:– सभी धातुएँ चमकदार होती है अर्थात् धातुओं में चमक होती है।
उदाहरण – सोना, चांदी आदि
(2) कठोरता:- सभी धातुएँ कठोर होती है।
उदाहरण : लोहा, ऐल्युमिनियम आदि।
अपवाद :- सोडियम, लीथियम व पौटेशियम अत्यधिक मुलायम होते है, अत: इन्हे आसानी से चाकू से काटा जा सकता है।
आप पढ़ रहे है-Class 10 Science Chapter 3 notes
सोडियम धातु को मिट्टी का तेल (केरोसीन) में डुबोकर क्यों रखा जाता है।
सोडियम अत्यधिक क्रियाशील धातु है, तथा इसका ज्वलन ताप बहुत कम होता है इसलिए सोडियम वायु या जल के सम्पर्क में आते ही आग पकड़ लेता है। इसी कारण सोडियम (Na) को केरोसिन में डुबोकर रखा जाता है।
(3) रूप:- धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस रूप में पाई जाती है।
उदाहरण: पारा या मर्करी (Hg)धातु कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में पायी जाती है।
(4) आधातवर्ध्यता:- कुछ धातुओं को पीट-पीटकर चादर के रूप में व्यक्त करना, आघातवर्ध्यता कहलाता है।
उदाहरण: लोहा (Fe), ऐल्युमिनियम (Al)
(5) तन्यता:- धातुओं को खींच-खींच कर तार के रूप में व्यक्त करना, तन्यता कहलाता है।
उदा. 1 ग्राम सोने को 2 किमी. लम्बे तार के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
आघातवर्ध्यता व तन्यता में क्या अन्तर है?
आघातवर्ध्यता | तन्यता |
वे धातुएँ जिनको पीटकर चादर के रूप में व्यक्त किया जा सके। उदा. लोहा | वे धातुएँ जिनको खींचकर तार के रूप में व्यक्त किया जा सके। उदा. सोना |
6. विद्युत व ऊष्मा की चालक:- सामान्यत सभी धातुएँ व ऊष्मा की सुचालक होती है।
उदा. चांदी (Ag), तांबा (Cu) विद्युत व ऊष्मा के सर्वाधिक सुचालक है।
लैड (Pb) व पारा (Hg) विद्युत व ऊष्मा के कुचालक होते है।
7. ध्वानिक (सोनोरस):- धातुएँ कठोर सतह से टकराने पर ध्वनि उत्पन्न करती है, उसे ध्वानिक (सोनोरस) कहा जाता है।
8. घनत्व:- सामान्यत: अधिक घनत्व व उच्च गलनांक होता है।
अपवाद :- सोडियम एवं पोटैशियम का घनत्व तथा गलनांक कम होता है।
अधातुओं के भौतिक गुण –
(1) धात्विक चमक:– अधातुएँ सामान्यत: चमकदार नहीं होती है।
अपवाद :- आयोडीन चमकदार अधातु है।
(2) कठोरता:– सामान्यत: अधातुएँ मुलायम प्रकृति की होती है अर्थात् कठोर नहीं होती है।
उदाहरण :- ग्रेफाईट
अपवाद :- कार्बन का एक अपररूप “हीरा” कठोर अधातु है।
(3) रूप:– सामान्यत: अधातुएँ ठोसीय या गैसीय अवस्था में पायी जाती है।
उदाहरण:- हीरा, ग्रेफाइट, ऑक्सीजन
अपवाद:- ब्रोमीन अधातु द्रव अवस्था में पायी जाती है।
(4) आघातवर्ध्यता:- अधातुएँ सामान्यत: आघातवर्ध्य नहीं होती है अर्थात अधातुएँ भंगुर प्रकृति की होती है, अत: इनको पीटने पर ये टूट जाती है।
उदाहरण:- ग्रेफाइट
(5) तन्यता:- अधातुओं में तन्यता का गुण नहीं पाया जाता है। इनको खींचने पर टूट जाते हैं।
उदाहरण:- ग्रेफाइट
(6) विद्युत व ऊष्मा का चालक:– अधातुएँ विद्युत व ऊष्मा की कुचालक होती है।
उदाहरण :- हीरा (कुचालक)
अपवाद:– ग्रेफाइट अधातु विद्युत व ऊष्मा की सुचालक होती है।
(7) ध्वानिक (सोनोरस):- अधातुएँ ध्वानिक नहीं होती है, अत: इनमें ध्वनि उत्पन्न नहीं होती है।
(8) घनत्व:- अधातुओं का घनत्व व गलनांक बहुत कम होता है।
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धातुओं व अधातुओं को उनके भौतिक गुणों के आधार पर वर्गीकृत कीजिए –
गुणधर्म | धातु | अधातु |
1. धात्विक चमक | धातु की सतह चमकदार होती है।उदाहरण:-सोना | अधातुएँ चमकीली नहीं होती है। आयोडीन अधातु होते हुए भी चमकीला होता है। |
2. कठोरता | धातुएँ सामान्यत: कठोर होती हैं। लेकिन लीथियम, सोडियम, पौटैशियम मुलायम होते हैं और इन्हें चाकू से काटा जा सकता है। | ये अधिकतर कठोर नहीं होते है। कार्बन का एक अपरूप हीरा है जो सबसे कठोर प्राकृतिक पदार्थ है। |
3. रूप | धातुएँ कमरे के ताप पर ठोस रूप में पाई जाती हैं। केवल मर्करी (पारा) को छोड़कर जो द्रव रूप में पाया जाता है। | अधातुएँ ठोस या गैसीय रूप में पाई जाती है। ब्रोमीन अधातु द्रव अवस्था में पायी जाती है। |
4. आघातवर्ध्यता | कुछ धातुओं को पीटकर पतली चादर के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। | अधातुएँ आघातवर्ध्य नहीं होती है। |
5. तन्यता | धातुओं को पतली तार के रूप में खींचा जा सकता है। उदाहरण-सोना | अधातुएँ तन्य नहीं होतीं। |
6. विद्युत व ऊष्मा के चालक | सामान्यत: धातुएँ विद्युत व ऊष्मा की सुचालक होती हैं। सीसा (Pb) एवं मर्करी (Hg) कुचालक होते हैं। | सामान्यत: अधातुएँ विद्युत व ऊष्मा की कुचालक होती हैं। ग्रेफाइट सुचालक होता है। |
7. घनत्व | सामान्यत: अधिक घनत्व व उच्च गलनांक होता है। सोडियम एवं पोटैशियम का घनत्व तथा गलनांक कम होता है। | सामान्यत: अधातुओं का घनत्व व गलनांक कम होते हैं। |
8. ध्वानिक | धातुएँ कठोर सतह से टकराने पर आवाज पैदा करती है। | अधातुएँ ध्वानिक नहीं होती हैं। |
धातुओं के रासायनिक गुणधर्म:-
वायु के साथ अभिक्रिया:- धातुएँ ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके धातु ऑक्साइड का निर्माण करती है।
धातु + ऑक्सीजन ⟶ धातु ऑक्साइड
⇒ मैग्नीशियम का दहन (दहन से पहले रेजमाल से साफ करना)
2Mg + O2 ⟶ 2MgO
मैग्नीशियम ऑक्सीजन मैग्नीशियम ऑक्साइड
⇒ कॉपर (तांबा) का ऑक्सीजन के साथ क्रिया
2Cu + O2 ⟶ 2CuO
कॉपर ऑक्साइड
⇒ 4Al + 3O2 ⟶ 2Al2O3
ऐल्युमिनियम ऑक्साइड
ऐनोडीकरण :-
ऐल्युमिनियम को संक्षारण से बचाने के लिए ऐनोडीकरण प्रक्रिया का उपयोग होता है। ऐल्युमिनियम वायु के साथ क्रिया करके ऐल्युमिनियम ऑक्साइड की परत का निर्माण कर देता है।
धातुएँ वायु के साथ अलग-अलग प्रकार से क्रिया करती है-
⇒ सोडियम (Na), लीथियम (Li) व पौटेशियम (K)
वायु के साथ सम्पर्क करके आग पकड़ लेती है क्योंकि ये धातुएँ अधिक क्रियाशील है व इनका ज्वलन ताप कम होता है,अत: ये धातुएँ वायु के सम्पर्क में न आये इसलिए इनको केरोसीन में डुबोकर रखा जाता है।
⇒ कुछ धातुएँ जैसे मैगनीज (Mn), ऐल्युमिनियम (Al), जिंक (Zn), लैड (Pb) आदि वायु के साथ धीमी अभिक्रिया करते है अत: इन धातुओं पर ऑक्साइड की परत चढ़ जाती है, जो इन्हे संक्षारित होने से बचाने का कार्य करती है।
⇒ लोहा या आयरन (Fe) वायु में गरम करने पर प्रज्वलित नहीं होता है परन्तु जब ज्वाला में लौह चूर्ण (पाउडर) डालने पर वह तेजी से प्रज्वलित होने लगता है।
⇒ तांबा या कॉपर (Cu) प्रज्वलित नहीं होता परन्तु उसका दहन करने पर काले रंग की परत चढ़ जाती है।
2Cu + O2 ⟶ 2CuO
(कॉपर ऑक्साइड)
⇒ कुछ ऐसी धातुएँ जो ऑक्सीजन के साथ क्रिया नहीं करती है।
उदा. सोना (Au), चाँदी (Ag)
उभयधर्मी ऑक्साइड
- वे धातु ऑक्साइड जो अम्ल व क्षार दोनों के साथ अभिक्रिया करते है तथा लवण व जल का निर्माण करते है, उन्हे उभयधर्मी ऑक्साइड कहा जाता है।
- उदा. ZnO, Al2O3, BeO (उभयधर्मी ऑक्साइड)
- धातु ऑक्साइड + अम्ल या क्षार ⟶ लवण + H2O (जल)
- Al2O3 + 6HCl ⟶ 2AlCl3 + H2O
- Al2O3 + 2NaOH ⟶ 2NaAlO3 + H2O
- सोडियम ऐलिमुनेट
⇒ वे धातु ऑक्साइड जो केवल अम्ल के साथ क्रिया करते है। वे क्षारीय प्रकृति के होते है।
धातु ऑक्साइड + अम्ल ⟶ लवण + जल
⇒ वे अधातु ऑक्साइड जो केवल क्षार के साथ क्रिया करते है। वे अम्लीय प्रकृति के होते है।
अधातु ऑक्साइड + क्षार ⟶ लवण + जल
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धातुओं के रासायनिक गुणधर्म:-
धातु की जल (H2O)के साथ अभिक्रिया
धातु + जल ⟶ धातु ऑक्साइड + H2
↓ + H2O (जल)
धातु हाइड्रॉक्साइड
धातु ऑक्साइड + जल ⟶ धातु हाइड्रॉक्साइड
(1) ठण्डे जल के साथ क्रिया – कुछ धातुएँ केवल ठण्डे जल के साथ क्रिया करती है।जैसे-
(2) गर्म जल के साथ अभिक्रिया – कुछ धातुएँ केवल गरम जल के साथ क्रिया करती है जैसे-
(3) धातु की भाप के साथ अभिक्रिया –
Fe Zn Al
(लोहा) जिंक ऐल्युमिनियम
आयरन (जस्ता)
2 Al + 3H2O ⟶ Al2O3 + 3H2
ऐल्युमिनियम भाप ऐल्युमिनियम ऑक्साइड
3 Fe + 4H2O ⟶ Fe3O4 + 4H2
आयरन (लोहा) भाप
(4) धातुएँ जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती:-
सोना (Au) ऑरम – लैटिन नाम
चांदी (Ag) अर्जेन्टम – लैटिन नाम
लैड (Pb) प्लमबम – लैटिन नाम
धातुओं की तनु अम्ल के साथ अभिक्रिया :-
तनु ⇒ जिस विलयन में जल की मात्रा अधिक है, उसे तनु कहा जाता है।
सान्द्र ⇒ जिस विलयन में जल की मात्रा कम है उसे सान्द्र कहा जाता है।
अम्ल की धातु के साथ अभिक्रिया :- अम्ल धातु के साथ क्रिया करके हाइड्रोजन गैस (H2) देते हैं।
धातु + अम्ल ⟶ लवण + हाइड्रोजन गैस
Fe + 2HCl FeCl2 + H2
आयरन (लोहा) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल आयरन क्लोराइड
Mg + 2HCl ⟶ MgCl2 + H2
Zn + H2 SO4 ⟶ ZnSO4 + H2
पॉप टेस्ट :-
जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में परखनली से गैस निकलती है तो उसके पास जलती हुई मोमबत्ती ले जाने पर पट-पट की ध्वनि उत्पन्न होती है, इसे पॉप टेस्ट कहा जाता है, अत: निकलने वाली गैस हाइड्रोजन हैं।
कुछ धातुएँ तनु अम्ल के साथ अभिक्रिया नहीं करती :-
उदाहरण- कॉपर (Cu), चांदी (Ag), पारा/मर्करी (Hg)
प्रश्न:- HNO3 (नाइट्रिक अम्ल) जब धातु के साथ क्रिया करता है तो H2 गैस उत्सर्जित नहीं होती है। क्यों?
उत्तर- HNO3 एक प्रबल ऑक्सीकारक है। H2 गैस ऑक्सीकृत होकर जल में परिवर्तित हो जाती है।
स्वयं नाइट्रोजन के अपचयित होकर (NO2/ NO / N2O) में परिवर्तित हो जाता है।
धातुओं की अन्य लवणों के साथ अभिक्रिया :-
धातु (क) + धातु लवण (ख) ⟶ लवण विलयन (क) + धातु (ख)
Fe + CuSO4 ⟶ FeSO4 + Cu
(लोहे की कील) कॉपर सल्फेट का विलयन फेरस सल्फेट का विलयन
(नीला रंग) (हरा रंग)
अधिक क्रियाशील धातुएँ अपने से कम क्रियाशील धातुओं को उनके यौगिक के विलयन से विस्थापित कर देता है।
उदाहरण- आयरन (Fe) ⟶ कॉपर (Cu) से अधिक क्रियाशील था, अत: लोहे ने कॉपर सल्फेट के विलयन में से कॉपर विस्थापित कर देता है।
अम्लराज (ऐक्वारेजिया) :-
सक्रियता श्रेणी:
वह सूची जिसमें धातुओं को क्रियाशीलता के अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया है।
धातुओं की अधातुओं के साथ अभिक्रिया :- तत्वों की अभिक्रियाशीलता को संयोजकता कोश को पूर्ण करने से समझी जा सकती है।
धनायन : धातु के परमाणु अपने संयोजकता कोश से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते है, उसे धनायन कहा जाता है।
ऋणायन : धातु के परमाणु अपने संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करते है, उसे ऋणायन कहा जाता है।
इलेक्ट्रॉन ज्ञात करने का सूत्र ⇒ 2 n2 (n = कक्षकों की संख्या)
बाहरी कोश में — 8 e– (अष्टक पूर्ण)
(i) K- कक्ष = (n = 1) ⇒ 2 (1)2 = 2
(ii) L- कक्ष = (n = 2) ⇒ 2 (2)2 = 8
(iii) M- कक्ष = (n = 3) ⇒ 2 (3 2 = 18
(iv) N- कक्ष = (n = 4) ⇒ 2 (4)2 = 32उत्कृष्ट गैसें (अक्रिय गैसे) ⇒
(1) हीलियम (2, 0)
परमाणु संख्या — 2
इलेक्ट्रॉन – 2
(2) नियॉन
परमाणु संख्या – 10
इलेक्ट्रॉन – 10 (K- 2, L- 8)
(3) ऑर्गन
परमाणु संख्या – 18
इलेक्ट्रॉन – 18 (K- 2, L- 8, M- 8)
(4) सोडियम (Na)
परमाणु संख्या – 11
इलेक्ट्रॉन – 11 (K- 2, L- 8, M- 1)
(5) क्लोरीन (Cl)
परमाणु संख्या – 17
इलेक्ट्रॉन – 17 (K- 2, L- 8, M- 7
C l + e– → Cl–
(2, 8, 7) (2, 8, 8)
NaCl का निर्माण (सोडियम क्लोराइड:- साधारण नमक)
आयनिक यौगिक
धातु से इलेक्ट्रॉन का अधातु की ओर गमन करना, आयनिक यौगिक कहलाता है।
अथवा
विपरीत आवेशित आयन एक दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा मजबूत स्थिर वैद्युत बल में बंधकर आयनिक यौगिक बनाते हैं।
आयनिक यौगिक के गुणधर्म :-
भौतिक प्रकृति :- आयनिक यौगिक कठोर होते है तथा ये भंगुर प्रकृति के होते है।
गलनांक एवं क्वथनांक :- आयनिक यौगिकों का गलनांक एंव क्वथनांक बहुत अधिक होता है। आयनिक यौगिकों में अन्तराआण्विक आकर्षण बल अधिक होता है।
घुलनशीलता :- आयनिक यौगिक प्राय: जल में घुलनशील होते है परन्तु मिट्टी का तेल (केरोसीन), पेट्रोल व डीजल आदि में अविलेय होते है।
विद्युत चालकता :- आयनिक यौगिक जलीय विलयन में तथा गलित रूप में विद्युत का चालन करते है परन्तु ठोसों में विद्युत का चालन नहीं करते है। जलीय विलयन में आयन होते है इस कारण ये विद्युत का चालन करते है।
धातुओं की प्राप्ति / धात्विकी
खनिज :- पृथ्वी में प्राकृतिक रूप से उपस्थित तत्वों एवं यौगिकों को खनिज कहते है।
अथवा
पृथ्वी के भूगर्भ में स्वतंत्र अवस्था में पाया जाने वाला पदार्थ, खनिज कहलाता है।
उदाहरण – लोहा, ऐल्युमिनियम।
अयस्क :- वे खनिज जिनमें धातु अधिक मात्रा में पायी जाती है, जिनका निकालना लाभकारी होता है, उसे अयस्क कहा जाता है।
अथवा
वे खनिज पदार्थ जिनका निष्कर्षण करके व्यावसायिक रूप में उपयोग होता है, उसे अयस्क कहा जाता है।
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धातु और अधातु pdf
धातुओं की प्राप्ति/ धात्विकी
सक्रियता श्रेणी एवं संबंधित धातुकर्म :-
धातुओं का निष्कर्षण : (अयस्क से धातु प्राप्त करना)
चरण ⇒ 1 अयस्कों का समृद्धिकरण
चरण ⇒ 2 धातुओं का निष्कर्षण
चरण ⇒ 3 धातुओं का परिष्करण
अयस्कों का समृद्धिकरण :
गैंग :- पृथ्वी में खनिज अयस्कों में मिट्टी, रेत, धूल अर्थात् आदि अशुद्धियाँ पायी जाती है, उन अशुद्धियों को गैंग कहा जाता है।
धातुओं का निष्कर्षण करने से पहले उसमें अशुद्धियों को हटाना आवश्यक होता है। अयस्कों में गैंग को हटाने के कुछ प्रक्रियाओं का उपयोग करना पडेगा तथा उनके भौतिक व रासायनिक गुणों को पहचान करके उन्हें पृथक् (अलग) किया जा सकता है।
अयस्कों का समृद्धीकरण :–
(i) सक्रियता श्रेणी में सबसे नीचे आने वाले धातुओं का निष्कर्षण :-
कॉपर (Cu), पारा (मर्करी Hg), सिल्वर ( Ag), सोना (Au) प्लेटिनम (Pt)
इन धातु ऑक्साइड को गर्म करके धातु प्राप्त किया जा सकता है।
धातु एवं अधातु कैसे अभिक्रिया करती है
सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुओं का निष्कर्षण:-
सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुएँ: जैसे- आयरन, जिंक, लेड, कॉपर की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। प्रकृति में यह प्राय: सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाई जाती हैं। सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान है। इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है।
भर्जन :-
सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गरम करने पर यह ऑक्साइड में बदल जाता है, इसमें SO2 गैस बाहर निकलती है, उसे भर्जन कहा जाता है।
निस्तापन :-
कार्बोनेट अयस्क को सीमित वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गरम करने पर ऑक्साइड में बदल जाता है तथा CO2 गैस उत्सर्जित होती है, इस प्रक्रिया को निस्तापन कहा जाता है।
उदाहरण:-
भर्जन व निस्तापन में अन्तर :-
अपचयन ⇒ धातु ऑक्साइड से कॉर्बन जैसे अपचायक का उपयोग करके धातु को प्राप्त किया जा सकता है।
उदा- ZnO + C ⟶ Zn + CO
धातु ऑक्साइड कार्बन
थर्मिट अभिक्रिया:- यह एक विस्थापन अभिक्रिया है, इसमें अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा बाहर निकलती है, इसीलिए इसे ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया भी कहते है।
उदाहरण:- आयरन (lll) ऑक्साइड को ऐल्युमिनियम से क्रिया कराने पर ऐल्युमिनियम अधिक अभिक्रियाशील होने के कारण आयरन को विस्थापित कर देता है।
रासायनिक समीकरण ⇒
Fe2O3(s) + 2Al(s) ⟶ Al2 O3 (s) + 2Fe (l) (उष्मा)उपयोग ⇒
(1) रेल की पटरियों के मध्य दरारों को जोड़ने में।
(2) मशीनों के पुर्जो को जोड़ने में।
सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर वाली धातुओं का निष्कर्षण:-
अभिक्रियाशीलता श्रेणी में सबसे ऊपर स्थित धातुएँ अत्यंत अभिक्रियाशील होती हैं। इन्हें कार्बन के साथ गर्म कर इनके यौगिकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कार्बन के द्वारा सोडियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम, ऐलुमिनियम आदि के ऑक्साइड का अपचयन कर उन्हें धातुओं में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। इन धातुओं की बंधुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन के प्रति अधिक होती है। इन धातुओं को विद्युत अपघटनी अपचयन द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, सोडियम, मैग्नीशियम एवं कैल्सियम को उनके गलित क्लोराइडों के विद्युत अपघटन से प्राप्त किया जाता है।
कैथोड़ ⇒ Na+ + e– ⟶ Na
ऐनोड़ ⇒ 2Cl– ⟶ Cl2 + 2e–
ऐल्युमिनियम ऑक्साइड का विद्युत अपघटन विधि से अपचयन करके ऐल्युमिनियम प्राप्त किया जा सकता है।
धातुओं का परिष्करण :- धातुओं से अपद्रव्य (अशुद्धियों) को हटाने के लिए सबसे प्रचलित विधि विद्युत अपघटनीय परिष्करण विधि है।
विद्युत अपघटनीय विधि — इस विधि के द्वारा कॉपर, जिंक, निकल, सोना (गोल्ड), चांदी (सिल्वर), टिन आदि धातुओं का शुद्धिकरण कर सकते है।
संक्षारण
संक्षारण:- वायुमंडल में नमी, आर्द्रता, अम्लता या अन्य गैसों के कारण धातुएँ संक्षारित हो जाती है, उसे संक्षारण कहा जाता है।
उदाहरण – लोहे पर जंग लगना।
(A) लोहे की कील वायु व जल के साथ क्रिया करके उस पर जंग बहुत तेजी से लगता है।
(B) लोहे की कील को जंग लगने में अधिक समय लगेगा, क्योंकि तेल की परत वायु व जल को सम्पर्क में आने से रोकने का कार्य कर रहा है।
(C) शुष्क वायु होने के लोहे की कील पर जंग नहीं लगता है।
संक्षारण से बचाव के उपाय :
- –
- 1. पेन्ट करके
- 2. ऑयल लगाकर
- 3. ग्रीस लगाकर
यशदलेपन :
– लोहे (Fe) को जंग से बचाने के लिए उस पर जिंक की परत चढाई जाती है, इस प्रक्रिया को यशदलेपन कहते है।
क्रोमियमलेपन :
– धातुओं को संक्षारित होने से बचाने के लिए क्रोमियम का लेपन होता है, इस प्रक्रिया को क्रोमियमलेपन कहा जाता है।
संक्षारण के अन्य उदाहरण :-सिल्वर (अर्जेन्टम Ag – चाँदी ):- सिल्वर धातु वायुमण्डल में सल्फर गैस से क्रिया करके संक्षारित हो जाती है तथा सिल्वर पर काली परत का निर्माण होता है।
2 Ag + S ⟶ Ag2 S (काली परत)
कॉपर (क्यूप्रस Cu – तांबा) :- तांबा (कॉपर) वायुमण्डल में उपस्थित
CO2 गैस के कारण उस पर हरी परत का निर्माण होता है।
Cu + CO2 ⟶ Cu.CO2 (हरी परत)
आयरन (फेरम Fe – लोहा):-
आर्द्र वायु में लोहे पर भूरे रंग के पदार्थ की परत चढ़ जाती है जिसे जंग कहते है।
दिल्ली में स्थित लोह स्तम्भ :-
- गोल्ड (ओरम Au – सोना) :-
- 24 कैरट गोल्ड बहुत ही नरम होता है जिससे आभूषण बना नहीं सकते।
- सोने को कठोर बनाने के लिए उसमें चांदी या तांबे का उपयोग किया जाता है।
- 22 कैरट गोल्ड + 2 कैरट तांबा
- मिश्र धातु :- दो या दो से अधिक धातु या अधातु संमागी होते है, उसे मिश्र धातु कहते है।
- इस्पात ⇒ लोहा + निकल और क्रोमियम (बर्तन बनाने में)
- पीतल ⇒ कॉपर (Cu) + जिंक (Zn) ⟶ (बर्तन व मूर्तियाँ बनाने में)
- कांसा ⇒ कॉपर (Cu) + टिन (Sn) ⟶ (बर्तन व मूर्तियाँ बनाने में)
- सोल्डर ⇒ लैड (Tb) + टिन (Sn) ⟶ (विद्युत तारों की परस्पर वैल्डिंग करने में)
- अमलगम :- यह कोई एक धातु पारद है जिसके मिश्रातु को अमलगम कहा जाता है।
प्रश्न:-1 ऐसी धातु का उदाहरण दीजिए जो –
(i) कमरे के ताप पर द्रव होती है।
(ii) चाकू से आसानी से काटा जा सकता है।
(iii) ऊष्मा की सबसे अच्छी चालक होती है।
(iv) ऊष्मा की कुचालक होती है।
उत्तर:- (i) मर्करी (पारा) केवल ऐसा धातु है जो कमरे के तापमान पर द्रव अवस्था में पाया जाता है।
(ii) लीथियम, सोडियम, पोटेशियम आदि को चाकू से आसानी से काटा जा सकता है ।
(iii) चाँदी (सिल्वर) तथा तांबा (कॉपर) ऊष्मा के सबसे अच्छे चालक हैं।
(iv) लेड तथा पारा (मर्करी) ऊष्मा के कुचालक हैं।
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