#Class 10 Science Chapter 5 जैव प्रक्रम Notes PDF in Hindi

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Class 10 Science Chapter 5 Notes PDF in Hindi

📚 Chapter = 5 📚
💠 जैव प्रक्रम 💠
सत्र 2023-24

TextbookNCERT
ClassClass 10
Subjectविज्ञान
ChapterChapter 5
Chapter Nameजैव प्रक्रम
CategoryClass 10 Science Notes
MediumHindi

अध्याय एक नजर में Class 10 Science Chapter 5 PDF Notes

Class 10 विज्ञान
पुनरावृति नोट्स
जैव प्रक्रम

जीवों का अनुरक्षण कार्य निरंतर होना चाहिए यह उस समय भी चलता रहता है जब वे कोई विशेष कार्य नहीं करते। जब हम सो रहे हों अथवा कक्षा में बैठे हों उस समय भी यह अनुरक्षण का काम चलता रहना चाहिए। वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं जैव प्रक्रम कहलाते हैं।
जैव प्रक्रम के प्रकार:

  1. पोषण
  2. श्वसन
  3. वहन
  4. उत्सर्जन

आप पढ़ रहे है : जैव-प्रक्रम : Science class 10th:Hindi Medium cbse notes

Class 10 विज्ञान
पुनरावृति नोट्स
जैव प्रक्रम


पोषण

जब हम टहलते हैं या साइकिल की सवारी करते हैं तो हम ऊर्जा का उपयोग करते हैं। उस स्थिति में भी जब हम कोई आभासी क्रियाकलाप नहीं कर रहे हैं, हमारे शरीर में क्रम की स्थिति के अनुरक्षण करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

वृद्धि, विकास, प्रोटीन संश्लेषण आदि में हमें बाहर से भी पदार्थों की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा का स्रोत तथा पदार्थ जो हम खाते हैं वह भोजन है।
सजीव अपना भोजन कैसे प्राप्त करते हैं?


सभी जीवों में ऊर्जा तथा पदार्थ की सामान्य आवश्यकता समान है। लेकिन इसकी आपूर्ति भिन्न विधियों से होती है। कुछ जीव अकार्बनिक स्रोतों से कार्बन डाईऑक्साइड तथा जल के रूप में सरल पदार्थ प्राप्त करते हैं।

ये जीव स्वपोषी हैं जिनमें सभी हरे पौधे तथा कुछ जीवाणु हैं। अन्य जीव जटिल पदार्थों का उपयोग करते हैं। इन जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में खंडित करना अनिवार्य है ताकि ये जीव के समारक्षण तथा वृद्धि में प्रयुक्त हो सकें ।

इसे प्राप्त करने के लिए जीव जैव-उत्प्रेरक का उपयोग करते हैं जिन्हें एंजाइम कहते हैं। अतः विषमपोषी उत्तरजीविता के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वपोषी पर आश्रित होते हैं। जंतु तथा कवक इसी प्रकार के विषमपोषी जीवों में सम्मिलित हैं।


स्वपोषी पोषण


स्वपोषी जीव की कार्बन तथा ऊर्जा की आवश्यकताएँ प्रकाश संश्लेषण द्वारा पूरी होती हैं। यह वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर देता है।

ये पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के रूप में लिए जाते हैं जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर प्रयुक्त होते हैं। जो कार्बोहाइड्रेट तुरंत प्रयुक्त नहीं होते हैं उन्हें मंड के रूप में संचित कर लिया जाता है।

यह रक्षित आंतरिक ऊर्जा की तरह कार्य करेगा तथा पौधे द्वारा आवश्यकतानुसार प्रयुक्त कर लिया जाता है। कुछ इसी तरह की स्थिति हमारे अंदर भी देखी जाती है, हमारे द्वारा खाए गए भोजन से व्युत्पन्न ऊर्जा का कुछ भाग हमारे शरीर में ग्लाइकोजन के रूप में संचित हो जाता है।

cross section of a leaf


Photosynthesis


प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम में वास्तव में क्या होता है।

इस प्रक्रम के दौरान निम्नलिखित घटनाएँ होती हैं-

क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना।

प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।

कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।
यह आवश्यक नहीं है कि ये चरण तत्काल एक के बाद दूसरा हो। उदाहरण के लिए, मरुद्भिद पौधे रात्रि में कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और एक मध्यस्थ उत्पाद बनाते हैं। दिन में क्लोरोफिल ऊर्जा अवशोषित करके अंतिम उत्पाद बनाता है।
उपरोक्त अभिक्रिया का प्रत्येक घटक प्रकाश संश्लेषण के लिए किस प्रकार आवश्यक है।


यदि आप ध्यानपूर्वक एक पत्ती की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी द्वारा अवलोकन करेंगे तो आप नोट करेंगे कि कुछ कोशिकाओं में हरे रंग के बिंदु दिखाई देते हैं। ये हरे बिंदु कोशिकांग हैं जिन्हें क्लोरोप्लास्ट कहते हैं इनमें क्लोरोफिल होता है।
प्रकाशसंश्लेषण के लिए गैसों का अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है लेकिन यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि गैसों का आदान-प्रदान तने, जड़ और पत्तिये की सतह से भी होता है।

इन रंध्रों से पर्याप्त मात्रा में जल की भी हानि होती है अतः जब प्रकाशसंश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड़ की आवश्यकता नहीं होती तब पौधा इन छिद्रों को बंद कर लेता है। छिद्रों का खुलन और बंद होना द्वार कोशिकाओं का एक कार्य है। द्वार कोशिकाओं में जब जल अंदर जाता है तो वे फूल जाती हैं और रंध्र को छिद्र खुल जाता है। इसी तरह जब द्वारे कोशिकाएँ सिकुड़ती हैं तो छिद्र बंद हो जाता है।

the pore closes when the cells contract



अब तक हम यह चर्चा कर चुके हैं कि स्वपोषी अपनी ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति कैसे करते हैं। लेकिन उन्हें भी अपने शरीर के निर्माण के लिए अन्य कच्ची सामग्री की आवश्यकता होती है। स्थलीय पौधे प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक जल की पूर्ति जड़ों द्वारा मिट्टी में उपस्थित जल के अवशोषण से करते हैं।

नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा तथा मैग्नीशियम सरीखे अन्य पदार्थ भी मिट्टी से लिए जाते हैं। नाइट्रोजन एक आवश्यक तत्व है जिसका उपयोग प्रोटीन तथा अन्य यौगिकों के संश्लेषण में किया जाता है। इसे अकार्बनिक नाइट्रेट का नाइट्राइट के रूप में लिया जाता है। इन्हें उन कार्बनिक पदार्थों के रूप में लिया जाता है जिन्हें जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन से बनाते हैं।

विषमपोषी पोषण


प्रत्येक जीव अपने पर्यावरण के लिए अनुकूलित है। भोजन के स्वरूप एवं उपलब्धता के आधार पर पोषण की विधि विभिन्न प्रकार की हो सकती है, इसके अतिरिक्त यह जीव के भोजन ग्रहण करने के ढंग पर भी निर्भर करती है।

उदाहरण के लिए, यदि भोजन स्रोत अचल है (जैसे कि घास) या गतिशील है जैसे हिरण, दोनों प्रकार के भोजन का अभिगम का तरीका भिन्न-भिन्न है तथा गाय व शेर किस पोषक उपकरण का उपयोग करते हैं। जीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने और उसके उपयोग की अनेक युक्तियाँ हैं। कुछ जीव भोज्य पदार्थों का विघटन शरीर के बाहर ही कर देते हैं और तब उसका अवशोषण करते हैं। फफूँदी, यीस्ट तथा मशरूम आदि कवक इसके उदाहरण हैं। अन्य जीव संपूर्ण भोज्य पदार्थ का अंतर्ग्रहण करते हैं तथा उनका पाचन शरीर के अंदर होता है।

जीव अपना पोषण कैसे करते हैं?


क्योंकि भोजन और उसके अंतर्ग्रहण की विधि भिन्न है, अतः विभिन्न जीवों में पाचन तंत्र भी भिन्न है। एककोशिक जीवों में भोजन संपूर्ण सतह से लिया जा सकता है। लेकिन जीव की जटिलता बढ़ने के साथ-साथ विभिन्न कार्य करने वाले अंग विशिष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, अमीबा कोशिकीय सतह से अँगुली जैसे अस्थायी प्रवर्ध की मदद से भोजन ग्रहण करता है।

यह प्रवर्ध भोजन के कणों को घेर लेते हैं तथा संगलित होकर खाद्य रिक्तिका बनाते हैं चित्र। खाद्य रिक्तिका के अंदर जटिल पदार्थों का विघटन सरल पदार्थों में किया जाता है और वे कोशिकाद्रव्य में विसरित हो जाते हैं। बचा हुआ अपच पदार्थ कोशिका की सतह की ओर गति करता है तथा शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है। पैरामीशियम भी एककोशिक जीव है, इसकी कोशिका का एक निश्चित आकार होता है तथा भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है। भोजन इस स्थान तक पक्ष्याभ की गति द्वारा पहुँचता है जो कोशिका की पूरी सतह को ढके होते हैं।

Amoeba takes up food from the cell surface with the help of temporary finger-like outgrowths.

मनुष्य में पोषण


आहार नाल मूल रूप से मुँह से गुदा तक विस्तरित एक लंबी नली है। चित्र में हम इस नली के विभिन्न भागों को देख सकते हैं।
हम तरह-तरह के भोजन खाते हैं जिन्हें उसी भोजन नली से गुजरना होता है।

प्राकृतिक रूप से भोजन को एक प्रक्रम से गुजरना होता है जिससे वह उसी प्रकार के छोटे-छोटे कणों में बदल जाता है। इसे हम दाँतों से चबाकर पूरा कर लेते हैं। क्योंकि आहार का आस्तर बहुत कोमल होता है, अतः भोजन को गीला किया जाता है ताकि इसका मार्ग आसान हो जाए। जब हम अपनी पसंद का कोई पदार्थ खाते हैं तो हमारे मुँह में पानी आ जाता है। यह वास्तव में केवल जल नहीं है, यह लाला ग्रंथि से निकलने वाला एक रस है जिसे लालारस या लार कहते हैं।

जिस भोजन को हम खाते नॉन) हैं उसका दूसरा पहलू, उसकी जटिल रचना है। यदि इसका अवशोषण आहार नाल द्वारा करना है तो इसे छोटे अणुओं में खंडित करना होगा। यह काम जैव-उत्प्रेरक द्वारा किया जाता है जिन्हें हम एंज़ाइम कहते हैं। लार में भी एक एंज़ाइम होता है जिसे लार एमिलेस कहते हैं, यह मंड जटिल अणु को सरल शर्करा में खंडित कर देता है।

भोजन को चबाने के दौरान पेशीय जिह्वा भोजन को लार के साथ पूरी तरह मिला देती है।
आहार नली के हर भाग में भोजन की नियमित रूप से गति उसके सही ढंग से प्रक्रमित होने के लिए आवश्यक है। यह क्रमाकुंचक गति पूरी भोजन नली में होती है।


मुँह से आमाशय तक भोजन ग्रसिका या इसोफेगस द्वारा ले जाया जाता है। आमाशय एक बृहत अंग है जो भोजन के आने पर फैल जाता है। आमाशय की पेशीय भित्ति भोजन को अन्य पाचक रसों के साथ मिश्रित करने में सहायक होती है।

ये पाचन कार्य आमाशय की भित्ति में उपस्थित जठर ग्रंथियों के द्वारा संपन्न होते हैं। ये हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, एक प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन तथा श्लेष्मा का स्रावण करते हैं। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो पेप्सिन एंजाइम की क्रिया में सहायक होता है। सामान्य परिस्थितियों में श्लेष्मा आमाशय के आंतरिक आस्तर की अम्ल से रक्षा करता है।

आमाशय से भोजन अब क्षुद्रांत्र में प्रवेश करता है। यह अवरोधिनी पेशी द्वारा नियंत्रित होता है। क्षुद्रांत्र आहारनाल का सबसे लंबा भाग है, अत्यधिक कुंडलित होने के कारण यह संहत स्थान में अवस्थित होती है। विभिन्न जंतुओं में क्षुद्रांत्र की लंबाई उनके भोजन के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होती है। घास खाने वाले शाकाहारी का सेल्युलोज़ पचाने के लिए लंबी क्षुद्रांत्र की आवश्यकता होती है। मांस का पाचन सरल है अत: बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत्र छोटी होती है।

क्षुद्रांत्र कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के पूर्ण पाचन का स्थल है। इस कार्य के लिए यह यकृत तथा अग्न्याशय से स्रावण प्राप्त करती है। आमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय है और अग्न्याशयिक एंजाइमों की क्रिया के लिए उसे क्षारीय बनाया जाता है। यकृत से स्रावित पित्तरस इस कार्य को करता है, यह कार्य वसा पर क्रिया करने के अतिरिक्त है। क्षुद्रांत्र में वसा बड़ी गोलिकाओं के रूप में होता है जिससे उस पर एंजाइम का कार्य करना मुश्किल हो जाता है।

पित्त लवण उन्हें छोटी गोलिकाओं में खंडित कर देता है जिससे एंजाइम की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। यह साबुन का मैल पर इमल्सीकरण की तरह ही है। अग्न्याशय अग्न्याशयिक रस का स्रावण करता है जिसमें प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम होता है तथा इमल्सीकृत वसा का पाचन करने के लिए लाइपेज एंजाइम होता है।

क्षुद्रांत्र की भित्ति में ग्रंथि होती है जो आंत्र रस स्रावित करती है। इसमें उपस्थित एंजाइम अंत में प्रोटीन को अमीनो अम्ल, जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लुकोज़ में तथा वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देते हैं।

पाचित भोजन को आंत्र की भित्ति अवशोषित कर लेती है। क्षुद्रांत्र के आंतरिक आस्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते हैं ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। दीर्घरोम में रुधिर वाहिकाओं की बहुतायत होती है जो भोजन को अवशोषित करके शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुँचाते हैं। यहाँ इसका उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने, नए ऊतकों के निर्माण और पुराने ऊतकों की मरम्मत में होता है।

बिना पचा भोजन बृहदांत्र में भेज दिया जाता है जहाँ दीर्घरोम इस पदार्थ में से जल का अवशोषण कर लेते हैं। अन्य पदार्थ गुदा द्वारा शरीर के बाहर कर दिया जाता है। इस वर्ज्य पदार्थ का बहि:क्षेपण गुदा अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

The alimentary canal is basically a long tube extending from the mouth to the anus.

Class 10 विज्ञान
पुनरावृति नोट्स
जैव प्रक्रम


श्वसन

जिन खाद्य पदार्थों का अंतर्ग्रहण पोषण प्रक्रम में लिए होता है कोशिकाएँ उनका उपयोग विभिन्न जैव प्रक्रम के लिए ऊर्जा प्रदान करने के लिए करती हैं। विविध जीव इसे भिन्न विधियों द्वारा करते हैं-कुछ जीव ऑक्सीजन का उपभोग, ग्लूकोज़ को पूर्णतः कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल में, विखंडित करने के लिए करते हैं जबकि कुछ अन्य जीव दूसरे पथ का उपयोग करते हैं जिसमें ऑक्सीजन प्रयुक्त नहीं होती है (देखिये चित्र)। इन सभी अवस्थाओं में पहला चरण ग्लूकोज़, एक छः कार्बन वाले अणु का तीन कार्बन वाले अणु पायरुवेट में विखंडन है।

यह प्रक्रम कोशिकाद्रव्य में होता है। इसके पश्चात पायरुवेट इथेनॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो सकता है। यह प्रक्रम किण्वन के समय यीस्ट में होता है। क्योंकि यह प्रक्रम वायु (ऑक्सीजन) की अनुपस्थिति में होता है, इसे अवायवीय श्वसन कहते हैं। पायरुवेट का विखंडन ऑक्सीजन का उपयोग करके माइटोकॉन्ड्रिया में होता है।

यह प्रक्रम तीन कार्बन वाले पायरुवेट के अणु को विखंडित करके तीन कार्बन डाइऑक्साइड के अणु देता है। दूसरा उत्पाद जल है। क्योंकि यह प्रक्रम वायु (ऑक्सीजन) की उपस्थिति में होता है, यह वायवीय श्वसन कहलाता है।

वायवीय श्वसन में ऊर्जा का मोचन अवायवीय श्वसन की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। कभी-कभी जब हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन का अभाव हो जाता है, पायरुवेट के विखंडन के लिए दूसरा पथ अपनाया जाता है, यहाँ पायरुवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है। अचानक किसी क्रिया के होने से हमारी पेशियों में लैक्टिक अम्ल का निर्माण होना क्रैम्प का कारण हो सकता है।

The breakdown of glucose, a six-carbon molecule, into the three-carbon molecule pyruvate.


कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा तत्काल ही ए.टी.पी. (ATP) नामक अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है जो कोशिका की अन्य क्रियाओं के लिए ईंधन की तरह प्रयुक्त होता है। ए.टी.पी. के विखंडन से एक निश्चित मात्रा में ऊर्जा मोचित होती है जो कोशिका के अंदर होने वाली आंतरोष्मि (endothermic) क्रियाओं का परिचालन करती है।


क्योंकि वायवीय श्वसन पथ ऑक्सीजन पर निर्भर करता है, अतः वायवीय जीवों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण की जा रही है। हम देख चुके हैं कि पौधे गैसों का आदान-प्रदान रंध्र के द्वारा करते हैं और अंतर्कोशिकीय अवकाश यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी कोशिकाएँ वायु के संपर्क में हैं।

यहाँ कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन का आदान-प्रदान विसरण द्वारा होता है। ये कोशिकाओं में या उससे दूर बाहर वायु में जा सकती हैं। विसरण की दिशा पर्यावरणीय अवस्थाओं तथा पौधे की आवश्यकता पर निर्भर करती है।

रात्रि में, जब कोई प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया नहीं हो रही है, कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन ही मुख्य आदान-प्रदान क्रिया है। दिन में, श्वसन के दौरान निकली CO2 प्रकाशसंश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है अतः कोई CO2 नहीं निकलती है। इस समय ऑक्सीजन का निकलना मुख्य घटना है।
जंतुओं में पर्यावरण से ऑक्सीजन लेने और उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड से छुटकारा पाने के लिए भिन्न प्रकार के अंगों का विकास हुआ। स्थलीय जंतु वायुमंडलीय ऑक्सीजन लेते हैं, परंतु जो जंतु जल में रहते हैं, उन्हें जल में विलेय ऑक्सीजन ही उपयोग करने की आवश्यकता है।


जो जीव जल में रहते हैं वे जल में विलेय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। क्योंकि जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा वायु में ऑक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहुत कम है, इसलिए जलीय जीवों की श्वास दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा द्रुत होती है। मछली अपने मुँह के द्वारा जल लेती है तथा बलपूर्वक इसे क्लोम तक पहुँचाती है जहाँ विलेय ऑक्सीजन रुधिर ले लेता है।


स्थलीय जीव श्वसन के लिए वायुमंडल की ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। विभिन्न जीवों में यह ऑक्सीजन भिन्न-भिन्न अंगों द्वारा अवशोषित की जाती है। इन सभी अंगों में एक रचना होती है जो उस सतही क्षेत्रफल को बढ़ाती है जो ऑक्सीजन बाहुल्य वायुमंडल के संपर्क में रहता है।


क्योंकि ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड का विनिमय इस सतह के आर-पार होता है, अतः यह सतह बहुत पतली तथा मुलायम होती है। इस सतह की रक्षा के उद्देश्य से यह शरीर के अंदर अवस्थित होती है अतः इस क्षेत्र में वायु आने के लिए कोई रास्ता होना चाहिए।

इसके अतिरिक्त जहाँ ऑक्सीजन अवशोषित होती है, उस क्षेत्र में वायु अंदर और बाहर होने के लिए एक क्रियाविधि होती है।
मनुष्य में (देखिये चित्र), वायु शरीर के अंदर नासाद्वार द्वारा जाती है। नासाद्वार द्वारा जाने वाली वायु मार्ग में उपस्थित महीन बालों द्वारा निस्पंदित हो जाती है जिससे शरीर में जाने वाली वायु धूल तथा दूसरी अशुद्धियाँ रहित होती है।

इस मार्ग में श्लेष्मा की परत होती है जो इस प्रक्रम में सहायक होती है। यहाँ से वायु कंठ द्वारा फुफ्फुस में प्रवाहित होती है। कंठ में उपास्थि के वलय उपस्थित होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि वायु मार्ग निपतित न हो।

here is a mechanism for air to get in and out.


फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाता है जो अंत में गुब्बारे जैसी रचना में अंतकृत हो जाता है जिसे कूपिका कहते हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है।

जैसा हम प्रारंभिक वर्षों में देख चुके हैं, जब हम श्वास अंदर लेते हैं, हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं और हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है, इसके परिणामस्वरूप वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है। इस कारण वायु फुफ्फुस के अंदर चूस ली जाती है और विस्तृत कूपिकाओं को भर लेती है। रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है।

कूपिका रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है। श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है, फुफ्फुस सदैव वायु का अवशिष्ट आयतन रखते हैं जिससे ऑक्सीजन के अवशोषण तथा कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।


जैसे-जैसे जंतुओं के शरीर का आकार बढ़ता है, अकेला विसरण दाब शरीर के सभी अंगों में ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए अपर्याप्त है, उसकी दक्षता कम हो जाती है। फुफ्फुस की चायु से श्वसन वर्णक ऑक्सीजन लेकर, उन ऊतकों तक पहुँचाते हैं जिनमें ऑक्सीजन की कमी है। मानव में श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन है जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बंधुता रखता है। यह वर्णक लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित होता है। कार्बन डाइऑक्साइड जल में अधिक विलेय है और इसलिए इसका परिवहन हमारे रुधिर में विलेय अवस्था में होता है।

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जैव प्रक्रम


वहन

मानव में वहन


रुधिर भोजन, ऑक्सीजन तथा वर्ज्य पदार्थों का हमारे शरीर में वहन करता है। रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक है। रुधिर में एक तरल माध्यम होता है जिसे प्लैज्मा कहते हैं, इसमें कोशिकाएँ निर्लंबित होती हैं। प्लैज्मा भोजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ का विलीन रूप में वहन करता है।

ऑक्सीजन को लाल रुधिर कणिकाएँ ले जाती हैं। बहुत से अन्य पदार्थ जैसे लवण का वहन भी रुधिर के द्वारा होता है। अतः हमें एक पंपनयंत्र की आवश्यकता है जो रुधिर को अंगों के आसपास धकेल सके, नलियों के एक परिपथ की आवश्यकता है जो रुधिर को सभी ऊतकों तक भेज सके तथा एक तंत्र की जो यह सुनिश्चित करे कि इस परिपथ में यदि कभी टूट-फूट होती है तो उसकी मरम्मत हो सके।

हमारा पंप-हृदय


हृदय एक पेशीय अंग है जो हमारी मुट्ठी के आकार का होता है (चित्र)। क्योंकि रुधिर को ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड दोनों का ही वहन करना होता है अतः ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर को कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रुधिर से मिलने को रोकने के लिए हृदय कई कोष्ठों में बँटा होता है। कार्बन डाइऑक्साइड प्रचुर रुधिर को कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने के लिए फुफ्फुस में जाना होता है तथा फुफ्फुस से वापस ऑक्सीजनित रुधिर को हृदय में लाना होता है। यह ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर तब शरीर के शेष हिस्सों में पंप किया जाता है।

Heart is a muscular organ which is the size of our fist.


इस प्रक्रम को विभिन्न चरणों में समझ सकते हैं (देखिए चित्र)। ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर फुफ्फुस से हृदय में बाईं ओर स्थित कोष्ठ – बायाँ अलिंद, में आता है। इस रुधिर को एकत्रित करते समय बायाँ अलिंद शिथिल रहता है। जब अगला कोष्ठ, बायाँ निलय, फैलता है तब यह संकुचित होता है जिससे रुधिर इसमें स्थानांतरित होता है। \

अपनी बारी पर जब पेशीय बायाँ निलय संकुचित होता है, तब रुधिर शरीर में पंपित हो जाता है। ऊपर वाला दायाँ कोष्ठ, दायाँ अलिंद जब फैलता है तो शरीर से विऑक्सीजनित रुधिर इसमें आ जाता है। जैसे ही दायाँ अलिद संकुचित होता है, नीचे वाला संगत कोष्ठ, दायाँ निलय फैल जाता है। यह रुधिर को दाएँ निलय में स्थानांतरित कर देता है जो रुधिर को ऑक्सीजनीकरण हेतु अपनी बारी पर फुफ्फुस में पंप कर देता है। अलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी होती है क्योंकि निलय को पूरे शरीर में रुधिर भेजना होता है। जब अलिंद् या निलय संकुचित होते हैं तो वाल्व उलटी दिशा में रुधिर प्रवाह को रोकना सुनिश्चित करते हैं।

It in turn pumps the blood to the lungs for oxygenation.


फुफ्फुस में ऑक्सीजन रुधिर में प्रवेश करती है।
हृदय का दायाँ व बायाँ बँटवारा ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को मिलने से ने रोकने में लाभदायक होता है। इस तरह का बँटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति कराता है।

पक्षी और स्तनधारी सरीखे जंतुओं को जिन्हें उच्च ऊर्जा की आवश्यकता है, यह बहुत लाभदायक है क्योंकि इन्हें अपने शरीर का तापक्रम बनाए रखने के लिए निरंतर ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उन जंतुओं में जिन्हें इस कार्य के लिए ऊर्जा का उपयोग नहीं करना होता है, शरीर का तापक्रम पर्यावरण के तापक्रम पर निर्भर होता है।

जल स्थल चर या बहुत से सरीसृप जैसे गमनी जंतुओं में तीन कोष्ठीय हृदय होता है और ये ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर धारा को कुछ सीमा तक मिलना भी सहन कर लेते हैं। दूसरी ओर मछली के हुदय में केवल दो कोष्ठ होते हैं। यहाँ से रुधिर क्लोम में भेजा जाता है जहाँ यह ऑक्सीजनित होता है और सीधा शरीर में भेज दिया जाता है।

इस तरह मछलियों के शरीर में एक चक्र में केवल एक बार ही रुधिर हुदय में जाता है। दूसरी ओर अन्य कशेरुकी में प्रत्येक चक्र में यह दो बार हृदय में जाता है। इसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं।

नलिकाएँ-रुधिर वाहिकाएँ


धमनी वे रुधिर वाहिकाएँ हैं जो रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं। धमनी की भित्ति मोटी तथा लचीली होती है क्योंकि रुधिर हृदय से उच्च दाब से निकलता है। शिराएँ विभिन्न अंगों से रुधिर एकत्र करके वापस हृदय में लाती हैं। उनमें मोटी भित्ति की आवश्यकता नहीं है क्योंकि रुधिर में दाब होता है, बल्कि उनमें रुधिर को एक ही दिशा में प्रवाहित करने के लिए वाल्व होते हैं।


किसी अंग या ऊतक तक पहुँचकर धमनी उत्तरोत्तर छोटी-छोटी वाहिकाओं में विभाजित हो जाती है जिससे सभी कोशिकाओं से रुधिर का संपर्क हो सके। सबसे छोटी वाहिकाओं की भित्ति एक कोशिकीय मोटी होती है और रुधिर एवं आसपास की केशिकाओं के मध्य पदार्थों का विनिमय इस पतली भित्ति के द्वारा ही होता है। केशिकाएँ तब आपस में मिलकर शिराएँ बनाती हैं तथा रुधिर को अंग या ऊतक से दूर ले जाती हैं।

प्लेटलैट्स द्वारा अनुरक्षण


तंत्र से रुधिर की हानि प्राकृतिक रूप से कम से कम होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त रक्तस्राव से दाब में कमी आ जाएगी जिससे पंपिंग प्रणाली की दक्षता में कमी आ जाएगी। इसे रोकने के लिए रुधिर में प्लेटलैट्स कोशिकाएँ होती हैं जो पूरे शरीर में भ्रमण करती हैं और रक्तस्राव के स्थान पर रुधिर का थक्का बनाकर मार्ग अवरुद्ध कर देती हैं।

लसीका


एक अन्य प्रकार का द्रव है जो वहन में भी सहायता करता है। इसे लसीका या ऊतक तरल कहते हैं। केशिकाओं की भित्ति में उपस्थित छिद्रों द्वारा कुछ प्लैज्मा, प्रोटीन तथा रुधिर कोशिकाएँ बाहर निकलकर ऊतक के अंतर्कोशिकीय अवकाश में आ जाते हैं तथा ऊतक तरल या लसीका का निर्माण करते हैं। यह रुधिर के प्लैज्मा की तरह ही है लेकिन यह रंगहीन तथा इसमें अल्पमात्रा में प्रोटीन होते हैं।

पादपों में परिवहन


पादप किस तरह CO2 सरीखे सरल यौगिक लेते हैं और प्रकाशसंश्लेषण द्वारा ऊर्जा का भंडारण क्लोरोफिल युक्त अंगों विशेष रूप से पत्तियों में करते हैं। पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री अलग से प्राप्त की जाती है। पौधों के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा दूसरे खनिज लवणों के लिए मृदा निकटतम तथा प्रचुरतम स्रोत है।

इसलिए इन पदार्थों का अवशोषण जड़ों द्वारा, जो मृदा के संपर्क में रहते हैं, किया जाता है। यदि मृदा के संपर्क वाले अंगों में तथा क्लोरोफिल युक्त अंगों में दूरी बहुत कम है तो ऊर्जा व कच्ची सामग्री पादप शरीर के सभी भागों में आसानी से विसरित हो सकती है। यदि पादप शरीर की अभिकल्पना में परिवर्तन के कारण ये दूरियाँ बढ़ जाती हैं तो पत्तियों में कच्ची सामग्री तथा जड़ों में ऊर्जा उपलब्ध कराने के लिए विसरण प्रक्रम पर्याप्त नहीं होगा। ऐसी परिस्थिति में परिवहन की एक सुदृढ़ प्रणाली आवश्यक हो जाती है।


विभिन्न शरीर अभिकल्पना के लिए ऊर्जा की आवश्यकता भिन्न होती है। पादप प्रचलन नहीं करते हैं, और पादप शरीर का एक बड़ा अनुपात अनेक ऊतकों में मृत कोशिकाओं का होता है। इसके परिणामस्वरूप पादपों को कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा वे अपेक्षाकृत धीमे वहन तंत्र प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं। जिन दूरियों पर परिवहन तंत्र का प्रचालन कर रहे हैं, लंबे वृक्षों में वे बहुत अधिक हो सकती हैं।


पादप वहन तंत्र पत्तियों से भंडारित ऊर्जा युक्त पदार्थ तथा जड़ों से कच्ची सामग्री का वहन करेगा। ये दो पथ स्वतंत्र संगठित चालन नलिकाओं से निर्मित हैं। एक जाइलम है, जो मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों को वहन करता है। दूसरा फ्लोएम, पत्तियों से जहाँ प्रकाशसंश्लेषण के उत्पाद संश्लेषित होते हैं, पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है।

जल का परिवहन


जाइलम ऊतक में जड़ों, तनों और पत्तियों की वाहिनिकाएँ तथा वाहिकाएँ आपस में जुड़कर जल संवहन वाहिकाओं का एक सतत जाल बनाती हैं जो पादप के सभी भागों से संबद्ध होता है।

जड़ों की कोशिकाएँ मृदा के संपर्क में हैं तथा वे सक्रिय रूप से आयन प्राप्त करती हैं। यह जड़ और मृदा के मध्य आयन सांद्रण में एक अंतर उत्पन्न करता है। इस अंतर को समाप्त करने के लिए मृदा से जल जड़ में प्रवेश कर जाता है।

इसका अर्थ है कि जल अनवरत गति से जड़ के जाइलम में जाता है और जल के स्तंभ का निर्माण करता है जो लगातार ऊपर की ओर धकेला जाता है।
जो हम आमतौर पर पादपों की ऊँचाई देखते हैं, यह दाब जल को वहाँ तक पहुँचाने के लिए स्वयं में पर्याप्त नहीं है। पादप जाइलम द्वारा अपने सबसे ऊँचाई के बिंदु तक जल पहुँचाने की कोई और युक्ति करते हैं।


यह मानकर कि पादप को पर्याप्त जलापूर्ति है, जिस जल की रंध्र के द्वारा हानि हुई है उसका प्रतिस्थापन पत्तियों में जाइलम वाहिकाओं द्वारा हो जाता है। वास्तव में कोशिका से जल के अणुओं का वाष्पन एक चूषण उत्पन्न करता है जो जल को जड़ों में उपस्थित जाइलम कोशिकाओं द्वारा खींचता है। पादप के वायवीय भागों द्वारा वाष्प के रूप में जल की हानि वाष्पोत्सर्जन कहलाती है।


अतः वाष्पोत्सर्जन, जल के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक जल तथा उसमें विलेय खनिज लवणों के उपरिमुखी गति में सहायक है। यह ताप के नियमन में भी सहायक है। जल के वहन में मूल दाब रात्रि के समय विशेष रूप से प्रभावी है। दिन में जब रंध्र खुले हैं वाष्पोत्सर्जन कर्षण, जाइलम में जल की गति के लिए, मुख्य प्रेरक बल होता है।

Transpiration, absorption of water and movement of water from root to leaves

भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानांतरण

उपापचयी क्रियाओं के उत्पाद, विशेष रूप से प्रकाशसंश्लेषण, जो पत्तियों में होता है तथा पादप के अन्य भागों में कैसे भेजे जाते हैं। प्रकाशसंश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है और यह संवहन ऊतक के फ्लोएम नामक भाग द्वारा होता है।

प्रकाशसंश्लेषण के उत्पादों के अलावा फ्लोएम अमीनो अम्ल तथा अन्य पदार्थों का परिवहन भी करता है। ये पदार्थ विशेष रूप से जड़ के भंडारण अंगों, फलों, बीजों तथा वृद्धि वाले अंगों में ले जाए जाते हैं। भोजन तथा अन्य पदार्थों का स्थानांतरण संलग्न साथी कोशिका की सहायता से चालनी नलिका में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।


जाइलम द्वारा परिवहन जिसे सामान्य भौतिक बलों द्वारा समझाया जा सकता है, से विपरीत फ्लोएम द्वारा स्थानांतरण है जो ऊर्जा के उपयोग से पूरा होता है। सुक्रोज सरीखे पदार्थ फ्लोएम ऊतक में ए.टी.पी. से प्राप्त ऊर्जा से ही स्थानांतरित होते हैं।

यह ऊतक का परासरण दाब बढ़ा देता है जिससे जल इसमें प्रवेश कर जाता है। यह दाब पदार्थों को फ्लोएम से उस ऊतक तक ले जाता है जहाँ दाब कम होता है। यह फ्लोएम को पादप की आवश्यकता के अनुसार पदार्थों का स्थानांतरण कराता है। उदाहरण के लिए, बसंत में जड़ व तने के ऊतकों में भंडारित शर्करा का स्थानांतरण कलिकाओं में होता है जिसे वृद्धि के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

अब विस्तार से समझते है

CBSE कक्षा 10 विज्ञान
पाठ-5 जैव प्रक्रम

  • जैव प्रक्रम : वे सभी प्रक्रम जो संयुक्त रूप से जीव के अनुरक्षण का कार्य करते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं। उदाहरण-
    जैव प्रक्रम
    • पोषण
    • श्वसन
    • वहन
    • उत्सर्जन
  1. पोषण
    भोजन ग्रहण करना, पचे भोजन का अवशोषण एवं शरीर द्वारा अनुरक्षण के लिए इसका उपयोग पोषण कहलाता है।
    पोषण के आधार पर जीवों को दो समूह में बांटा जा सकता है।
पोषण (प्रकार)
स्वपोषी पोषण विषमपोशी पोषण

स्वपषी पोषण पोषण झा वह तरीका हैं जिसमें नीच अपने आस-पास के वातावरण में उपस्थित सरल अजैव पदार्थों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी से, धूप से, अपना भोजन स्वयं बनाता है।
उदाहरण- हरे पौधे

विषमपोषी पोषण पोषण का वह तरीका जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकता, बल्कि अपने भोजन के लिए अन्य जाँचों पर निर्भर होता हैं।
उदाहरण- मानव व अन्य जीव

  • प्रकाश संश्लेषण : यह वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर देता है। ये पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड़ तथा जल के रूप में लिए जाते हैं जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर दिए जाते हैं।
    6CO2 + 12H2O Inserting image... C6H12O6 + 6O2 + 6H2O

प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री :

  • सूर्य से प्रकाश
  • वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड
  • मिट्टी से पानी
  • पौधे के हरे भागों में पाए जाने वाले क्लोरोप्लास्ट में उपस्थित क्लोरोफिल।

प्रकाश संश्लेषण के दौरान निम्नलिखित घटनाएं होती हैं-

  • क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना।
  • प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना। तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।
  • कार्बन डाईऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।

रंध्र

पत्ती की सतह पर जो सूक्ष्म छिद्र होते हैं उन्हें रंध्र कहते हैं।
U,{575aee73-3f9c-4a5b-89eb-e4685ea74741}{33},3.8125,3.3333333333333335

प्रमुख कार्य :

प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है।

वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया में जल रंध्र द्वारा निकल जाता है।

जीव अपना पोषण कैसे करते हैं।

  • एक कोशिकीय जीव:- भोजन संपूर्ण सतह से लिया जा सकता है।
    उदाहरण- (a) अमीबा, (b) पैरामीशियम
[अमीबा]
भोजन को अपने पादभ की सहायता से घेर लेता है।
खाद्य रिवितका
खाद्य रिवितका में जटिल पदार्थ का विघटन सरल पदार्थों में किया जाता है।
बचा हुआ अपच कोशिका की सतह की ओर गति करता है।
वे पदार्थ शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।
  • Inserting image...
    (e) [पैरामीशियम] पक्ष्याभ (कोशिका की पूरी सतह को ढके होते हैं) भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है।
  • मनुष्य में पोषण
    • अंर्तग्रहण
    • पाचन
    • अवशोषण
    • स्वांगीकरण
    • वहिक्षेषण
  • आहार नाल मूल रूप से मुंह से गुदा तक विस्तरित एक लंबी नली है।
मुंह भोजन का अंत ग्रहण

 

 

दांत

भोजन को चबाना

 

 

जिह्वा

भोजन को लार के साथ पूरी तरह मिलाना।

 

 

लाला ग्रंथि

लाला ग्रंथि से निकलने वाले रस को लालारस या लार कहते हैं।
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भोजन ग्रसिका

मुंह से आमाशय तक भोजन, ग्रसिका द्वारा ले जाया जाता है।
(क्रमाकुंचक गतिः भोजन की नियमित रूप से गति उसके सही ढंग से प्रक्रमित होने के लिए आवश्यक है।)

 

 

आमाशय

जठर ग्रंथियां
* पेप्सिन पाचक एंजाइम एंजाइम (प्रोटीन पाचन करता है।)
* हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (अम्लीय माध्यम तैयार करता है।)
* श्लेष्मा (आस्तर की अम्ल से रक्षा करता है।)

 

 

क्षुद्रांत्र

(i) आंत रस परिवर्तित करता है

कार्बोहाइड्रेड

वसा

प्रोटीन

 

 

 

ग्लुकोज

वसा अम्ल + ग्लिसरॉल

अमीनो अम्ल

कार्बोहाइड्रेड

वसा

प्रोटीन

 

 

 

ग्लुकोज

वसा अम्ल + ग्लिसरॉल

अमीनो अम्ल

कार्बोहाइड्रेड

वसा

प्रोटीन

 

 

 

ग्लुकोज

वसा अम्ल + ग्लिसरॉल

अमीनो अम्ल

कार्बोहाइड्रेड

वसा

प्रोटीन

 

 

 

ग्लुकोज

वसा अम्ल + ग्लिसरॉल

अमीनो अम्ल

कार्बोहाइड्रेड

वसा

प्रोटीन

 

 

 

ग्लुकोज

वसा अम्ल + ग्लिसरॉल

अमीनो अम्ल

क्षुद्रांत्र

(ii) यकृत तथा अग्न्याशय से स्रावण प्राप्त करती है।

 

a) यकृत पितरस पित्र लवण
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b) अग्न्याशय अग्न्याशयिक रस
अग्न्याशयिक रस
i. ऐमिलेस एंजाइम
ii. ट्रिप्सिन एंजाइम
iii. लाइपेज एंजाइम
प्रोटीन (ट्रिप्सिन / ) पेपटोन्स
वसा (लाइपेज / ) वसा अम्ल
स्टार्च (ऐमिलेस / ) ग्लूकोज

क्षुद्रांत्र

[दीर्घ रोम (उंगली जैसे प्रवर्ध)] अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं।

 

 

बृहदांत्र

जल का अवशोषण
अन्य पदार्थ गुदा द्वारा शरीर से बाहर कर दिया जाता है।

U,{7d6d33f2-9ff1-4924-ac1b-c417a4f4d94c}{184},7.333333333333333,7.208333333333333

श्वसन

पोषण प्रक्रम के दौरान ग्रहण की गई खाद्य सामग्री का उपयोग कोशिकाओं में होता है जिससे विभिन्न जैव प्रक्रमों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। ऊर्जा उत्पादन के लिए कोशिकाओं में भोजन के विखंडन को (कोशिकीय श्वसन) कहते हैं।

भिन्न पथों द्वारा ग्लूकोज़ का विखंडन
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श्वसन

वायवीय श्वसन

ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता हैं।

ग्लूकोज का पूर्ण उपचयन होता है, कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और ऊर्जा मुक्त होती हैं।

अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती हैं
उदाहरण- यीस्ट

अवायवीय श्वसन

ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।

ग्लूकोज का अपूर्ण उपचयन होता है, जिसमें एथेनॉल, लैक्टिक, अम्ल, कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा निकलते हैं।

कम ऊर्जा उत्पन्न होती हैं।
उदाहरण- मानव

 

मानव श्वसन तंत्र

नासाद्वार

ग्रसनी

कंठ

श्वास नली

श्वसनी

रुधिर वाहिकाएं

कूपिका कोश

फुफ्फुस

श्वसनिका

मानव श्वसन क्रिया

अतः श्वसन

  • वक्षीय गुहा फैलती हैं।
  • पसलियों से संलग्न पेशियां सिकुड़ती हैं।
  • वक्ष ऊपर और बाहर की और गति करता है।
  • गुहा में वायु का दाब कम हो जाता हैं और वायु फेफड़ों में भरती हैं।

अच्छवसन

  • वक्षीय गुहा अपने मूल आकार में वापिस आ जाती हैं।
  • पसलियों की पेशियां शिथिल हो जाती हैं।
  • वक्ष अपने स्थान पर वापस
  • गुहा में वायु का दाब बढ़ जाता हैं और वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) फेफड़ों से बाहर हो जाती है।

अंतः श्वसन : सांस द्वारा वायुमंडल से गैसों को अंदर ले जाना है।

उच्छवसन : फेफड़ों से वायु या गैसों को बाहर निकालना।

स्थलीय जीव : श्वसन के लिए वायुमंडल की ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।

जो जीव जल में रहते हैं : वे जल में विलेय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।

पादपों में परिवहन

  • जाइलम तथा फ्लोएम (चालन नलिकाएं) पौधों में पदार्थों का परिवहन करते हैं।
    • जाइलम- पादप वन तंत्र का एक अवयव है, जो मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों का वहन करता है।
      जबकि फ्लोएम पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषि उत्पादों को पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है।
    • पादप शरीर में एक बड़ा अनुपात उनकी मृत कोशिकाओं का होता है। इसके परिणाम स्वरूप पाइपों को कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा चे अपेक्षाकृत धीमें वहन तंत्र प्रणाली का उपयोग कर सकते हैं।
    • जड़ व मृदा के मध्य आयन सांद्रण में अंतर के चलते जल मृदा से जड़ में प्रवेश कर जाता है तथा इसी के साथ एक जल स्तंभ का निर्माण हो जाता है जोकि जल को लगातार ऊपर की ओर धकेलता हैं। यही दाब जल को ऊंचे वृक्ष के विभिन्न भागों तक जल को पहुंचाता हैं।
  • यही जल पादप के वायवीय भागों द्वारा वाष्प के रूप में वातावरण में विलीन हो जाता है, प्रक्रम वाष्पोत्सर्जन कहलाता है, इस प्रक्रम द्वारा पौधों को निम्न रूप से सहायता मिलती है:-
    1. जल के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक जल तथा उसमें विलेय खनिज लवणों के उपरिमुखी गति में सहायक।
    2. पौधों में ताप नियमन में भी सहायक है।
      दिन के समय वाष्पोत्सर्जन कर्षण, जाइलम में जल की गति के लिए, मुख्य प्रेरक बल होता है।
  • भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानांतरण (पौधों में)
    • प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है जो कि फ्लोएम ऊतक द्वारा किया जाता है।
    • स्थानांतरण पत्तियों से पौधों के शेष भागों में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।
    • फ्लोएम द्वारा स्थानान्तरण ऊर्जा के प्रयोग से पूरा होता है। अतः सुक्रोज फ्लोएम ऊतक में ए.टी.पी. ऊर्जा से परासरण बल द्वारा स्थानांतरित होते हैं।

उत्सर्जन

  • वह जैव प्रक्रम जिसमें जीवों में उपापचयी क्रियाओं में जनित हानिकारक नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निष्कासन होता हैं, उत्सर्जन कहलाता है।
  • एक कोशिक जीव इन अपशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते हैं।

मानव में उत्सर्जन

  • इस तंत्र में पस्थित अंग निम्न प्रकार से हैं-
    1. एक जोड़ा वृक्क
    2. एक मूत्रवाहिनी
    3. एक मूत्राशय
    4. एक मूत्र मार्ग
  • वृक्क में मल बनने के बाद मूत्रवाहिनी में होता हुआ मूत्राशय में एकत्रित होता है।
  • मूत्र बनने का उद्देश्य रुधिर में से वर्ज्य (हानिकारक अपशिष्ट) पदार्थों को छानकर बाहर करना है।
    U,{bbb89597-8568-446a-b509-c35349dba693}{128},6.875,6.791666666666667
  1. जैव प्रक्रियाएं (II)
    संवहन और उत्सर्जन
  • मनुष्य में भोजन, ऑक्सीजन व अन्य आवश्यक पदार्थों की निरंतर आपूर्ति करने वाला तंत्र, संवहन तंत्र कहलाता है।
  • संवहन तंत्र के मुख्य अवयव इस प्रकार हैं-
    • हृदय
    • रक्त नलिकाएं धमनी व शिरा
    • वहन माध्यम रक्त व लसीका

  • U,{bbb89597-8568-446a-b509-c35349dba693}{232},5.9375,3.6875
  • अलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी होती हैं क्योंकि निलय को पूरे शरीर में अधिक रक्तचाप रुधिर भेजना होता है।
    U,{bbb89597-8568-446a-b509-c35349dba693}{247},7.583333333333333,4.729166666666667

रक्त

ठोस अवयव
(रुधिर कणिकाएँ)

द्रवीय अवयव
(प्लाज्मा)

लाल रक्त कणिकाएं O2, CO2 का वहन हीमोग्लोबिन (Hb) रक्त को लाल रंग देता है।

श्वेत रक्त कणिकाएं शरीर को रोग मुक्त करने में सहायक

रक्त प्लेटलैट्स रक्त का थक्का बनाने में सहायक

पीले रंग का तरल पदार्थ जिसमें 90% जल होता है ततस शेष अवयव जैविक : प्लाज्मा प्रोटीन जैसे एलब्यूमिन, ग्लोब्यूलिन अजैविक : खनिज तत्व

हृदय में उपस्थित वाल्व रुधिर प्रवाह को उल्टी दिशा में रोकना सुनिश्चत करते हैं।

लसीका- एक उत्तक तरल हैं जो रुधिर प्लाज्मा की तरह ही है लेकिन इसमें अल्पमात्रा में प्रोटीन होते हैं। लसीका वहन में सहायता करता है, खासतौर क्षुद्रांत्र द्वारा अवशोषित वसा का वहन लसीका द्वारा होता है तथा अतिरिक्त तरल को बाह्य कोशिकीय अवकाश से वापस रुधिर में ले जाता है।

रक्त

धमनी

रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं-अपवाद फुप्फुस-धमनी

मोटी व अधिक लचीली होती है।

शिरा

शिराएं विभिन्न अंग रुधिर एकत्र करके वापस हृदय में लाती हैं। अपवाद- फुफ्फुस शिरा

शिरा भित्त कम मोटी व कम लचीली होती हैं।

वृक्क में मूत्र निर्माण प्रक्रिया

  • वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई वृक्काणु कहलाती है। वृक्कागु के मुख्य भाग इस प्रकार हैं।
    U,{b1becb7f-de28-4a28-9b6a-52bae646c285}{245},5.895833333333333,6.791666666666667
  • कोशिका गुच्छ (ग्लोमेरुलस) यह पतली भित्ति वाली रुधिर कोशिकाओं का गुच्छ वृक्क होता है ।
  • प्रारंभिक निस्पंद (छानना) के द्वारा कोशिका गुच्छ में से ग्लूकोज, अमीनो अम्ल लवण में जल छन जाते हैं इनमें से आवश्यक लवण तथा जल का पुनवरशोषण हो जाता है। वृक्कों में बनने वाला मूत्र एक लंबी नलिका मूत्रवाहिनी द्वारा मूत्राशय में एकत्रित हो जाता हैं, जो कि मूत्राशय के दाब द्वारा मूत्रमार्ग से बाहर निकलता है।

  • कृत्रिम वृक्क (अपोहन) : ऐसी युक्ति जिसके द्वारा वृक्क रोगियों के रुधिर में से कृत्रिम वृक्क की मदद से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन किया जाता है।
    प्रायः एक स्वस्थ व्यस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंद वृक्क में होता है। जिसमें से उत्सर्जित मूत्र का आयतन 1-2 लीटर हैं। शेष निस्संद वृक्कनलिकाओं में पुनवशोषित हो जाता हैं।

पादप में उत्सर्जन

  • बहुत से पादप अपशिष्ट पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं।
  • अन्य अपशिष्ट पदार्थ (उत्पाद) रेजिन तथा गोंद के रूप में पुराने जाइलम में संचित रहते हैं।
  • जबकि कुछ पदार्थ अपने आसपास मृदा में उत्सर्जित करते हैं।

Class 10 विज्ञान
जैव प्रक्रम

उत्सर्जन

उत्सर्जन
जीव प्रकाशसंश्लेषण तथा श्वसन में जनित वर्ज्य गैसों से कैसे छुटकारा पाते हैं। अन्य उपापचयी क्रियाओं में जनित नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निकलना आवश्यक है। वह जैव प्रक्रम जिसमें इन हानिकारक उपापचयी वर्ज्य पदार्थों का निष्कासन होता है, उत्सर्जन कहलाता है।


मानव में उत्सर्जन


मानव के उत्सर्जन तंत्र (देखिए चित्र) में एक जोड़ा वृक्क, एक मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग होता है। वृक्क उदर में रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं। वृक्क में मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी में होता हुआ मूत्राशय में आ जाता है तथा यहाँ तब तक एकत्र रहता है जब तक मूत्रमार्ग से यह निकल नहीं जाता है।

मूत्र बनने का उद्देश्य रुधिर में से वर्ज्य पदार्थों को छानकर बाहर करना है। फुफ्फुस में CO2 रुधिर से अलग हो जाती है जबकि नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल वृक्क में रुधिर से अलग कर लिए जाते हैं। \

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वृक्क में आधारी निस्यंदन एकक, फुफ्फुस की तरह ही, बहुत पतली भित्ति वाली रुधिर केशिकाओं का गुच्छ होता है। वृक्क में प्रत्येक केशिका गुच्छ, एक नलिका के कप के आकार के सिरे के अंदर होता है।

यह नलिका छने हुए मूत्र को एकत्र करती है (देखिए चित्र)। प्रत्येक वृक्क में ऐसे अनेक निस्यंदन एकक होते हैं जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रॉन) कहते हैं जो आपस में निकटता से पैक रहते हैं।

प्रारंभिक निस्यंद में कुछ पदार्थ, जैसे ग्लूकोज़, अमीनो अम्ल, लवण और प्रचुर मात्रा में जल रह जाते हैं। जैसे-जैसे मूत्र इस नलिका में प्रवाहित होता है इन पदार्थों का चयनित पुनरवशोषण हो जाता है। जल की मात्रा पुनरवशोषण शरीर में उपलब्ध अतिरिक्त जल की मात्रा पर, तथा कितना विलेय वर्ज्य उत्सर्जित करना है, पर निर्भर करता है।

प्रत्येक वृक्क में बनने वाला मूत्र एक लंबी नलिका, मूत्रवाहिनी में प्रवेश करता है जो वृक्क को मूत्राशय से जोड़ती है। मूत्राशय में मूत्र भंडारित रहता है जब तक कि फैले हुए मूत्राशय का दाब मूत्रमार्ग द्वारा उसे बाहर न कर दे। मूत्राशय पेशीय होता है अतः यह तंत्रिका नियंत्रण में है, इसकी चर्चा हम कर चुके हैं। परिणामस्वरूप हम प्रायः मूत्र निकासी को नियंत्रित कर लेते हैं।

पादप में उत्सर्जन

पादप उत्सर्जन के लिए जंतुओं से बिलकुल भिन्न युक्तियाँ प्रयुक्त करते हैं। प्रकाश संश्लेषण में जनित ऑक्सीजन भी अपशिष्ट उत्पाद कही जा सकती है। पौधे अतिरिक्त जल से वाष्पोत्सर्जन द्वारा छुटकारा पा सकते हैं।

पादपों में बहुत से ऊतक मृत कोशिकाओं के बने होते हैं और वे अपने कुछ भागों, जैसे पत्तियों, का क्षय भी कर सकते हैं। बहुत से पादप अपशिष्ट उत्पाद कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं। पौधों से गिरने वाली पत्तियों में भी अपशिष्ट उत्पाद संचित रहते हैं। अन्य अपशिष्ट उत्पाद् रेजिन तथा गोंद के रूप में विशेष रूप से पुराने जाइलम में संचित रहते हैं। पादप भी कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में उत्सर्जित करते हैं।

📚 Chapter = 5 📚
💠 जैव प्रक्रम 💠
सत्र 2023-24

Class 10 विज्ञान
जैव प्रक्रम


सारांश

  • विभिन्न प्रकार की गतियों को जीवन सूचक माना जा सकता है।
  • जीवन के अनुरक्षण के लिए पोषण, श्वसन, शरीर के अंदर पदार्थों का संवहन तथा अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन आदि प्रक्रम आवश्यक हैं।
  • स्वपोषी पोषण में पर्यावरण से सरल अकार्बनिक पदार्थ लेकर तथा बाह्य ऊर्जा स्रोत जैसे सूर्य का उपयोग करके उच्च ऊर्जा वाले जटिल कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण करना है।
  • विषमपोषी पोषण में दूसरे जीवों द्वारा तैयार किए जटिल पदार्थों का अंतर्ग्रहण होता है।
  • मनुष्य में, खाए गए भोजन का विखंडन भोजन नली के अंदर कई चरणों में होता है तथा पाचित भोजन क्षुद्रांत्र में अवशोषित करके शरीर की सभी कोशिकाओं में भेज दिया जाता है।
  • श्वसन प्रक्रम में ग्लूकोज़ जैसे जटिल कार्बनिक यौगिकों का विखंडन होता है जिससे ए.टी.पी. का उपयोग कोशिका में होने वाली अन्य क्रियाओं को ऊर्जा प्रदान करने के लिए किया जाता है।
  • श्वसन वायवीय या अवायवीय हो सकता है। वायवीय श्वसन से जीव को अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • मनुष्य में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, भोजन तथा उत्सर्जी उत्पाद सरीखे पदार्थों का वहन परिसंचरण तंत्र का कार्य होता है। परिसंचरण तंत्र में हुदय, रुधिर तथा रुधिर वाहिकाएँ होती हैं।
  • उच्च विभेदित पादपों में जल, खनिज लवण, भोजन तथा अन्य पदार्थों का परिवहन संवहन ऊतक का कार्य है जिसमें जाइलम तथा फ्लोएम होते हैं।
  • मनुष्य में, उत्सर्जी उत्पाद विलेय नाइट्रोजनी यौगिक के रूप में वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) द्वारा निकाले जाते हैं।
  • पादप अपशिष्ट पदार्थों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए विविध तकनीकों का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए अपशिष्ट पदार्थ कोशिका रिक्तिका में संचित किए जा सकते हैं या गोंद व रेजिन के रूप में तथा गिरती पत्तियों द्वारा दूर किया जा सकता है या ये अपने आसपास की मृदा में उत्सर्जित कर देते हैं।

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Class 10 Science Notes In Hindi Chapter – 5 जैव प्रक्रम
नोट्स, पाठ – 5 जैव प्रक्रम(कक्षा दसंवी) | विज्ञान कक्षा 10
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