10 Class Science Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय notes in Hindi
Class 10 science Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय notes in hindi. जिसमे हम जन्तुओ और पौधों में नियंत्रण और समन्वय , तंत्रिका तंत्र , स्वैच्छिक, अनैच्छिक और प्रतिवर्त क्रिया , रासायनिक समन्वय: पशु हार्मोन आदि के बारे में पढ़ेगे ।
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | विज्ञान |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | नियंत्रण एवं समन्वय |
Category | Class 10 Science Notes |
Medium | Hindi |
Class 10 science Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय Notes in hindi
Chapter = 7
नियंत्रण एवं समन्वय
❖ परिचय:- (Introduction)
संसार के सभी जीव अपने आस-पास होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते है।
पर्यावरण में हो रहे ये परिवर्तन जिसके अनुरूप सजीव अनुक्रिया करते है, उद्दीपन कहलाता है।
जैसे – प्रकाश, ऊष्मा, ठंडा, ध्वनि , सुगंध, स्पर्श आदि।
पौधे एवं जन्तु अलग-अलग प्रकार से उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया करते है।
जैसे → हम गरम वस्तु को छूते हैं तो हमारा हाथ जलने लगता है और हम तुरंत इसके प्रति अनुक्रिया करते हैं।
नियंत्रण एवं समन्वय का क्या अर्थ :-
- जीव में विभिन्न जैव प्रक्रम एक साथ होते रहते है इन सभी के बीच तालमेल बनाए रखने को समन्वय कहते हैं ।
- इस संबंध को स्थापित करने के लिए जो व्यवस्था होती है उसके लिए नियंत्रण की आवश्यकता होती है ।
❇️ जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय :-
🔹 यह सभी जंतुओं में दो मुख्य तंत्रों द्वारा किया जाता है :-
तंत्रिका तंत्र
अंत : स्रावी तंत्र
❏ ग्राही (Receptor)→
तंत्रिका कोशिकाओं के विशिष्ट सिरे जो पर्यावरण से सभी सूचनाओं का पत्ता लगाते है ग्राही कहलाते हैं।
ये सभी ग्राही हमारे ज्ञानेन्द्रियों (Sense organs) में स्थित होते हैं।
(a) कान : सुनना
: शरीर का संतुलन
(b) आँख : प्रकाशग्राही
: देखना
(c) त्वचा : तापग्राही
: गर्म एवं ठंडा
: स्पर्श
(d) नाक : घ्राणग्राही
: गंध का पता लगाना(e) जीभ : रस संवेदी ग्राही
: स्वाद का पता लगाना
❏ तंत्रिका ऊत्तक→
यह तंत्रिका तंत्र की सरंचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। वह ऊत्तक जो तंत्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। यह सूचनाओं को विद्युत आवेश के द्वारा शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक संवहन के लिए विशिष्टीकृत है।तंत्रिका कोशिका
❇️ तंत्रिका कोशिका ( न्यूरॉन ) के भाग :-
(a) द्रुमिका : कोशिका काय से निकलने वाली धागे जैसी संरचनाएँ , जो सूचना प्राप्त करती है।
(b) कोशिका काय: प्राप्त की गई सूचना विद्युत आवेग के रूप में चलती है।
(c) तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन) : यह सूचना के विद्युत आवेग को, कोशिकाकाय से दूसरी न्यूरॉन की द्रुमिका तक पहुंचाता है।
(d) अंतर्ग्रथन ( सिनेप्स ) :- यह तंत्रिका के अंतिम सिरे एवं अगली तंत्रिका कोशिका के द्रुमिका के मध्य का रिक्त स्थान है । यहाँ विद्युत आवेग को रासायनिक संकेत में बदला जाता है जिससे यह आगे संचरित हो सके ।
🔶 प्रतिवर्ती क्रिया :- किसी उद्दीपन के प्रति तेज व अचानक की गई अनुक्रिया प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती है । उदाहरण :- किसी गर्म वस्तु को छूने पर हाथ को पीछे हटा लेना ।
🔶 प्रतिवर्ती चाप :- प्रतिवर्ती क्रिया के दौरान विद्युत आवेग जिस पथ पर चलते हैं , उसे प्रतिवर्ती चाप कहते हैं ।
❏ प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण :- सभी प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु के द्वारा नियंत्रित होती है।
ये क्रियाएँ स्वत: होने वाली क्रियाएँ है जो जीव की इच्छा के बिना ही होती है।
उदाहरण :-
(i) किसी गर्म वस्तु को छूने से जलने पर तुरंत हाथ हटा लेना ।
(ii) खाना देखकर मुँह में पानी का आ जाना ।
(iii) सूई चुभाने पर हाथ का हट जाना आदि।
❖ ऐच्छिक क्रियाएँ :-
वे सभी क्रियाएँ जिस पर हमारा नियंत्रण होता है, ऐच्छिक क्रियाएँ कहलाती है।
जैसे – बोलना, चलना,लिखना आदि ।
❏ ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण :-
ऐच्छिक क्रियाएँ हमारी इच्छा और सोचने से होती है इसलिए इसका नियंत्रण हमारे सोचने वाला भाग अग्र- मस्तिष्क के द्वारा होता है।
❖ अनैच्छिक क्रियाएँ :-
वे सभी क्रियाएँ जो स्वत: होती रहती है जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है। अनैच्छिक क्रियाएँ कहलाती है।
जैसे :- हृदय का धड़कना, साँस का लेना, भोजन का पचना आदि ।
❏ अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण :-
अनैच्छिक क्रियाएँ मध्य-मस्तिष्क व पश्च-मस्तिष्क के द्वारा नियंत्रित होती है।
❖ प्रतिवर्ती चाप :-
प्रतिवर्ती क्रियाओं के आगम संकेतों पता लगाने और निर्गम क्रियाओं के करने के लिए संवेदी तंत्रिका कोशिका और प्रेरित तंत्रिका कोशिका मेरुरज्जु के साथ मिलकर एक पथ का निर्माण करती है जिसे प्रतिवर्ती चाप कहते है।
प्रतिवर्ती क्रियाओं के आगम संकेतों पता लगाने और निर्गम क्रियाओं के करने के लिए संवेदी तंत्रिका कोशिका और प्रेरित तंत्रिका कोशिका मेरूरज्जु के साथ मिलकर एक पथ का निर्माण करती है जिसे प्रतिवर्ती चाप कहते है।
❏ उपयोगिता :-
अधिकतर जंतुओं में प्रतिवर्ती चाप इसलिए विकसित हुआ है क्योंकि इनके मस्तिष्क के सोचने का प्रक्रम बहुत तेज नहीं है । वास्तव में अधिकांश जंतुओं में सोचने के लिए आवश्यक जटिल न्यूरॉन जाल या तो अल्प है या अनुपस्थित होता है।
अत: यह स्पष्ट है कि वास्तविक विचार प्रक्रम की अनुपस्थिति में प्रतिवर्ती चाप का दक्ष कार्य प्रणाली के रूप में विकास हुआ है। यद्यपि जटिल न्यूरॉन जाल के अस्तित्व में आने के बाद भी प्रतिवर्ती चाप तुरंत अनुक्रिया के लिए एक अधिक दक्ष प्रणाली के रूप में कार्य करता है।
तंत्रिका तंत्र के मुख्य कार्य :-
- शरीर को प्रभावित करने वाली स्थिति में परिवर्तन की सूचना देना ।
- शरीर के विभिन्न अंगों के कार्य का समन्वय करना ।
- आस – पास से सूचना प्राप्त करके उसकी व्याख्या करना ।
- ऊतक में स्थित तंत्रिका कोशिकाओं में उत्पन्न आवेग को तंत्रिका तंत्र तक ले जाना ओर तंत्रिका तंत्र से अंगों के लिए आदेश लाना ।
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❏ मानव मस्तिष्क (Human Brain) :
मानव मस्तिष्क तंत्रिका कोशिकाओं से बना तंत्रिका तंत्र (nervous system) का एक बहुत बड़ा भाग है। जो मेरुरज्जु के साथ मे मिलकर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करता है।
❏मेरुरज्जु (Spinal Chord) :
मेरुरज्जु तंत्रिका रेशों का एक बेलनाकार बण्डल है जिसके उत्तक मेरुदंड (spine) से होकर मस्तिष्क से लेकर कोक्किक्स तक गुजरते हैं। यह शरीर के सभी भागों को तंत्रिकाओं से जोड़ता है और मस्तिष्क के साथ मिलकर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करता है।
कार्य (Functions) :
(i) ये शरीर के सभी भागों से सूचनाएँ प्राप्त करते हैं तथा इसका समाकलन करते है।
(ii) ये पेशियों तक सन्देश भेजते हैं।
(iii) मस्तिष्क हमें सोचने की अनुमति तथा सोचने पर आधारित क्रिया करने की अनुमति प्रदान करता है।
(iv) सभी प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जु के द्वारा नियंत्रित होती है।
(v) सभी ऐच्छिक एवं अनैच्छिक क्रियाएँ मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होती है।
मस्तिष्क के भाग और उनके कार्य:-
1. अग्र मस्तिष्क (Fore Brain) : यह सोंचने वाला मुख्य भाग है। इसमें विभिन्न ग्राहियों से संवेदी आवेग प्राप्त करने के क्षेत्र होते हैं। इसमें सुनने, देखने और सूँघने के लिए विशेष भाग होते हैं। यह ऐच्छिक पेशियों के गति को नियत्रित करता है। इसमें भूख से संबधित केन्द्र है।
2. मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) : यह शरीर के सभी अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है। यह श्रव्य व दृश्य तंत्रिकाओं के लिए सहायक होती है।
3. पश्च मस्तिष्क (Hind Brain) : यह भी अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है। सभी अनैच्छिक क्रियाएँ जैसे रक्तदाब, लार आना तथा वमन पश्चमस्तिष्क स्थित मेड्डला द्वारा नियंत्रित होती है।
पश्च मस्तिष्क तीन केन्द्रों से मिलकर बना है।
(i) अनुमस्तिष्क (Cerebellum) : यह ऐच्छिक क्रियाओं की परिशुद्धि तथा शरीर की स्थिति तथा संतुलन को नियंत्रित करती है। जैसे एक सीधी रेखा में चलना, साइकिल चलाना, एक पेंसिल उठाना आदि।
(ii) पॉन्स (Pons) : यह श्वसन क्रिया के नियमित और नियंत्रित करने में भाग लेता है।
(iii) मेंड्डला ओब्लोंगेटा (Medula Oblongata) यर मस्तिष्क पुच्छ : सभी अनैच्छिक क्रियाएँ जैसे रक्तदाब, लार आना तथा वमन पश्चमस्तिष्क स्थित मेड्डुला द्वारा नियंत्रित होती हैं।
❖ पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय
पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य पादप हार्मोंस के द्वारा होता है जिसे फाइटोहार्मोंस भी कहा जाता है विविध पादप हॉर्मोन वृद्धि, विकास तथा पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया के समन्वय में सहायता करते हैं।
पादप दो भिन्न प्रकार की गतियाँ दर्शाते हैं-
1. वृद्धि से मुक्त – ये गतियाँ वृद्धि पर निर्भर नहीं करती है । जैसे – छुई – मुई के पौधे का स्पर्श से सिकुड़ जाना ।
2. वृद्धि पर आश्रित – पौधों में होने वाली वे गतियाँ जो पौधों के कायिक भाग में गतियों को दर्शाती है। जैसे-प्रतान की गति, पौधे का प्रकाश की ओर गति और जड़ों का जल की ओर गति आदि ।
1. वृद्धि से मुक्त गति –
छुई-मुई के पौधे में गति- जब हम छुई मुई के पौधों को स्पर्श करते हैं तो अनुक्रिया के फलस्वरूप अपने पत्तियों में गति करता है। यह गति वृद्धि से सम्बंधित नहीं है।पादपों में उद्दीपन के प्रति तत्काल अनुक्रिया –
पादप स्पर्श की सूचना को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक संचारित करने के लिए वैद्युत -रसायन साधन का उपयोग भी करते हैं लेकिन जंतुओं की तरह पादप में सूचनाओं के चालन के लिए कोई विशिष्टीकृत ऊत्तक नहीं होते हैं। पादप कोशिकाओं में जंतु पेशी कोशिकाओं की तरह विशिष्टीकृत प्रोटीन तो नहीं होतीं अपितु वे जल की मात्रा में परिवर्तन करके अपनी आकृति बदल लेती हैं, परिणामस्वरूप फूलने या सिकुड़ने में उनका आकार बदल जाता है।
2. वृद्धि पर आश्रित गति
a. प्रतान की गति- प्रतान का वह भाग जो वस्तु से दूर होता है, वस्तु के पास वाले भाग की तुलना में तेजी से गति करता है जिससे प्रतान वस्तु के चारों तरफ लिपट जाती है।
b. अनुवर्तन
(i) प्रकाशानुवर्तन
(ii) गुरुत्वानुवर्तन
(iii) रसायानुवर्तन
(iv) जलानुवर्तन
अनुवर्तनी गति
पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य पादप हार्मोन के द्वारा होता है जिसे फाइटोहार्मोन्स कहते है। पौधों में बाह्य उद्दीपनों को ग्रहण करने की क्षमता होती है तथा उसके अनुसार उसमें गति भी होती है। पौधों में ऐसी गति को अनुवर्तनी गति कहते हैं।
प्रकाशानुवर्तन → प्रकाश की दिशा में पौधों के प्ररोह तंत्र का की गति तने के शीर्ष भाग में स्पष्ट दिखती है।
प्ररोह तंत्र का प्रकाश में प्रति धनात्मक अनुवर्तन होता है।
यदि किसी पादप को गमले में लगा कर इसे किसी अंधेरे कमरे में रख दें जिसमें प्रकाश किसी दरवाजे या खिड़की की ओर से भीतर आता हो तो कुछ दिन के बाद प्ररोह का अग्र भाग स्वयं उसी दिशा में मुड जाता है जिस तरफ से प्रकाश कमरे में प्रवेश करता है।
ऐसा इसलिए होता है कि प्ररोह शीर्ष केवल उसी दिशा में स्त्रावित होने वाले अधिक ऑक्सिन्स के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं जबकि विपरित दिशा की तरफ हार्मोन्स उपस्थित रहता है। इस कारण प्ररोह प्रकाश की दिशा में मुड जाता है।
गुरुत्वानुवर्तन →
किसी जीव की ऐसी वृद्धि होती है जो गुरुत्वाकर्षण बल के उद्दीपन से प्रभावित होती है। पौधों के तनों में ऋण गुरूत्वानुवर्तन होता है जिस कारण वे ऊपर की दिशा में उगते है जबकि उनके जड़ों में धन गुरुत्वानुवर्तन होता है।
रसायनुवर्तन →
यह गति रासायनिक उद्दीपनों के द्वारा होता है।
उदा.→ पराग नलिका का बीजांड की और वृद्धि करना ।जलानुवर्तन → पौधे के अंग का जल की ओर होने वाली गति जलानुवर्तन कहलाती है।
❖ पादपों में रासायनिक समन्वय
पादपों में रासायनिक समन्वय पादप हॉर्मोन द्वारा होते हैं। ये हॉर्मोन पौधों की वृद्धि, विकास एवं पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया के समन्वयन में सहायता प्रदान करते हैं। इनके संश्लेषण का स्थान इनके क्रिया क्षेत्र से दूर होता है और वे साधारण विसरण द्वारा क्रिया क्षेत्र तक पहुँच जाते हैं।
❏ फाइटोंहार्मोन या पादपहार्मोन
वे रासायनिक पदार्थ तो पादपों में नियंत्रण तथा समन्वय का कार्य करते है, फाइटोंहार्मोन कहलाते है।
ये पांच प्रकार के होते है-
1. ऑक्सीन :-
(i) ऑक्सीन फलों की वृद्धि को बढ़ावा देते है।
(ii) कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि करते है।
2. जिबरेलिन्स :-
(i) ऑक्सीन की उपस्थिति में जिबरेलिन्स पौधें में कोशिका विवर्धन तथा कोशिका विभेदन को बढ़ावा देते हैं।
(ii) फलों तथा तनों की वृद्धि को बढ़ावा देते है।
3. साइटोकाइनीन
(i) पौधें में कोशिका विभाजन को बढावा देते है।
(ii) फलों को खिलने में सहायता करता है।
4. ऐब्सीलिक अम्ल :-
(i) पौधें में वृद्धि को रोकता/ नियंत्रित करता है इसीलिए इसे वृद्धि रोधक हार्मोन कहा जाता है।
(ii) पौधों में जल हृास को नियंत्रित करता है।
(iii) पौधों में प्रोटीन के संश्लेषण को प्रोत्साहित करता है।
5. इथिलीन :-
(i) यह फलों को पकाने के लिए प्रेरित करता है।
(ii) मादा पुष्पों की संख्या बढ़ाता है।
(iii) तनों को फुलने में सहायता करता है।
❖ हार्मोन्स (Harmones) :- ये रासायनिक पदार्थ जो जंतुओं या पादपों में नियंत्रण और समन्वय का कार्य करते हैं, हार्मोन्स कहलाते हैं।
❏ जंतुओं में हार्मोन का बनना :-
जंतुओं में हार्मोन अंत: स्त्रावी ग्रंथियों में बनता है।
मनुष्य में अथवा जंतुओं में ग्रंथियों दो प्रकार की होती है। जो निम्न हैं-
1. अंत: स्त्रावी ग्रंथियाँ :
2. बाहृा-स्त्रावी ग्रंथियाँ :
1. अंत: स्त्रावी ग्रंथियाँ : नलिकाविहीन ग्रंथियों को अंत: स्त्रावी ग्रंथियाँ कहते है। जैसे- पिनियल ग्रंथि, पिट्यूटरी ग्रंथि, थाइरोइड ग्रंथि, पाराथाइराइड ग्रंथि, थाइमस ग्रंथि, एड्रिनल ग्रंथि, अंडाशय (ओवरी) (मादाओं में ) और वृषण (नर में ) आदि।
2. बाहृा-स्त्रावी ग्रंथि : वे ग्रन्थियाँ जिनका स्राव नलिकाओं के द्वारा होता है बाहा ग्रंथि कहलाती हैं। जैसे-यकृत, अग्न्याशय और लैक्रिमल ग्रंथि आदि ।
हॉर्मोन, अंत: स्रावी ग्रंथियों एवं उनके कार्य:-
क्र.सं. | हॉर्मोन | ग्रंथि | स्थान | कार्य |
1. | थायरॉक्सिन | अवटुग्रंथि | गर्दन में | कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन का वसा का उपापचय |
2. | वृद्धि हॉर्मोन | पीयूष ग्रंथि (मास्टर ग्रंथि) | मस्तिष्क में | वृद्धि का विकास का नियंत्रण |
3. | एड्रीनलीन | अधिवृक्क | वृक्क (Kidney) के ऊपर | B.P. हृदय की धड़कन आदि का नियंत्रण आपातकाल में |
4. | इंसुलिन | अग्न्याशय | उदर के नीचे | रक्त में शर्करा की मात्रा का नियंत्रण |
5. | लिंग हॉर्मोन टेस्टोस्टेरोन (नर में ) एस्ट्रोजन (मादा में) | वृषण | पेट का निचला हिस्सा | यौवनारंभ से संबंधित परिवर्तन (लैंगिक परिपक्वता) |
❏ आयोडीन युक्त नमक आवश्यक है :
अवटुग्रंथि (थॉयरॉइड ग्रंथि) को थायरॉक्सिन हॉर्मोन बनाने के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। थायरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के उपापचय का नियंत्रण करता है जिससे शरीर की संतुलित वृद्धि हो सके । अत: अवटुग्रंथि के सही रूप से कार्य करने के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। आयोडीन की कमी से गला फूल जाता है, जिसे गॉयटर रोग या घेंघा रोग या गलगण्ड रोग कहते हैं।
❏ मधुमेह (डायबिटीज):
इस बीमारी में रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।
कारण : अग्न्याशय ग्रंथि द्वारा स्रावित इंसुलिन हॉर्मोन की कमी के कारण होता है। इंसुलिन रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है।
निदान (उपचार) : इसुंलिन हॉर्मोन का इंजेक्शन ।
❏ पुनर्भरण क्रियाविधि :-
हॉर्मोन का अधिक या कम मात्रा में स्रावित होना हमारे शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है। पुनर्भरण क्रियाविधि यह सुनिश्चित करती है कि हॉर्मोन सही मात्रा में तथा सही समय पर स्रावित हो
प्रश्न:- 1. प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने के बीच क्या अंतर है?
उत्तर:-
प्रतिवर्ती क्रिया | टहलना |
i. प्रतिवर्ती क्रिया मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होती है। | i. टहलना मस्तिष्क के भाग अनुमस्तिष्क द्वारा नियंत्रित होती है। |
ii. यह क्रिया अत्यंत तेज़ अर्थात् एक सेकंड के सूक्ष्म अंश में ही पूर्ण हो जाती है। | ii. इस क्रिया में अधिक समय लगता है क्योंकि पहले मस्तिष्क विचार करता है तथा सूचना को तंत्रिका के माध्यम से पेशियों तक पहुँचाता है। |
प्रश्न:- 2. दो तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन) के मध्य अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) में क्या होता है?
उत्तर:- दो तंत्रिका कोशिकाओं के मध्य रिक्त स्थान होते हैं, जिसे अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) कहते हैं। तंत्रिका कोशिका के द्रुमाकृति पर उत्पन्न विद्युत आवेग तंत्रिकांक्ष (एकसॉन) में होता हुआ अंतिम सिरे तक पहुँचता है।
एक्सॉन के अंत में विद्युत आवेग कुछ रसायनों का विमोचन करता है। यह रसायन रिक्त स्थान या सिनेप्स (सिनोण्टिक दरार) को पार करते हैं और अगली तंत्रिका कोशिका की द्रुमिका में इसी तरह का विद्युत आवेग प्रारंभ करते हैं।
अंततः इसी प्रकार का एक अंतर्ग्रथन (सिनेप्स) ऐसे आवेगों को तंत्रिका कोशिका से अन्य कोशिकाओं जैसे कि पेशी कोशिकाओं या ग्रंथि तक ले जाते हैं।
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