[जीव विज्ञान ]Class 12 Biology Cha12 Biotechnology and its Applications Notes in Hindi

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जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग | Class 12 Biology Cha12 Biotechnology and its Applications

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectBiology
ChapterChapter 12
Chapter NameBiotechnology and its Applications
जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग
Book Nameजीव विज्ञान
CategoryNCERT Notes
MediumHindi

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Class 12 Biology All Notes हिंदी में

परिचय  (Introduction) class 12 biology chapter 12 in hindi


⇒ जैवप्रौद्योगिकी द्वारा जीन स्थानांतरण करके इच्छित लक्षणों वाले जीव [सूक्ष्मजीव ,पौधे,जंतु] आदि उत्पन्न किए जाते है। इन जीवों का उपयोग करके विभिन्न औषधियाँ, Enzyme , Hormone, Vitamin आदि का औद्योगिक स्तर उत्पादन पर किया जाता है।

⇒ जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कृषि,चिकित्सा , खाद्य पदार्थ, अपशिष्ट पदार्थों के उपचार के लिए होता है।

⇒ जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग निम्न क्षेत्रों में अधिकतर किया जाता है।

  1. कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग
  2. चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग
  3. परजीवी जंतु [Transgenic Animals] मैं जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग 

1. कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग

⇒ जैव प्रौद्योगिकी द्वारा खाद्य उत्पादन में वृद्धि निम्न प्रकार से की जा सकती है।

  1. कृषि रसायन आधारित कृषि →  हरित क्रांति द्वारा खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुई है उत्पादन में वृद्धि के लिए उन्नत किस्मों को काम में लिया जाता है और उर्वरक तथा विभिन्न कृषि रसायनों का उप्रयोग किया जाता है।
  • ये कृषि रसायन महंगे होते हैं जो मृदा जल तथा भोज्य पदार्थ व वातावरण को अत्यधिक दूषित करते है इसलिए कार्बनिक कृषि पर जोर दिया जा रहा है जिसमें जैव उर्वरक व पशुओं की खाद का उपयोग किया जा रहा है।
  1. कार्बनिक कृषि →  इस प्रकार की कृषि में फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए जैव उर्वरक के साथ -साथ जैव पीडकनाशी व जैव नियन्त्रको  का प्रयोग किया जाता है।
  2. आनुवांशिक रूपांरित फसल पर आधारित कृषि → ऐसे जीव जो जीन स्थानांतरण द्वारा परिवर्तित किए जाते है अर्थात उन जीवों की आनुवांशिक सरंचना को रूपांतरित किया जाता है तब उसे आनुवांशिक रूपांतरित जीव [GMO- Geneticaly Modified  Organism] कहते हैं।
  • वह gene जो सजीव में प्रवेश कराया जाता है “Transgene” कहलाता है तथा आनुवांशिक रूप से रूपांतरित पादप “Transgenic” plant” कहलाता है।

आनुवांशिक रूपांतरित पादपों लाभ निम्न -[ GM plant ]

  1. इन फसलों के उत्पन्न करने में कम समय लगता है।
  2. फसलों में ताप , सूखा , लवण आदि के प्रति सहनशीलता विकसित की जा सकती है।
  3. रसायनिक उर्वरक व पीडकनाशियों पर कम निर्भर रहना पड़ता है।
  4. खाद्य पदार्थों में पोषक स्तरों की वृद्धि हो आती है।

कुछ GM Plant निम्न है ⇒

  1. कीटरोधी पादप
  2. पीडकप्रतिरोधी पादप

(1) कीटरोधी पादप –

 मृदा जीवाणु, बैसीलस थुरिनजिऐंसिस (Bt) में उपस्थित gene द्वारा Crystal Protein (Cry Protein) का निर्माण होता है यह Protein कई कीटो के लिए घातक विष का कार्य करता है इसलिए उसे “Bt विष”कहते है।

  • Cry protein के gene को Ti- Plasmid [Tumor inducing plasmid] की सहायता से तम्बाकु , टमाटर, कपास आदि में प्रवेश कराकार, उन Plants को कीटों के प्रति प्रतिरोधी बनाया गया है।
  • इस प्रकार के जीन स्थानान्तरण से Bt Cotton को बनाया गया है जिसे “Killer Cotton” भी कहते है।
  • Bt cotton के पौधो की पत्तियों को खाने पर निष्क्रिय protein विष, कीट की आहारनाल में पहुंचकर आंत्रीय pH में घुलकर सक्रिय Protein में परिवर्तित हो जाता है । यह सक्रिय विष आंत्र की दिवार में कोशिकाओं को नष्ट कर छिद्र बना देता है जिससे की कीट की मृत्यु हो जाती है।
  • कपास पर बॉलवर्म का आक्रमण होता है संक्रमित अवस्था कैटरपिलर होती है जो पुष्प कलिकाओं व बॉल के ऊपरी कोमल भाग में छेद करके प्रवेश कर जाती है बॉल छिद्र वाला हो जाता है जिससे Cotton बॉल के उत्पादन में कमी आती है इसलिए आनुवांशिक रूपांतरित फसल Bt Cotton विकसित की गई।
  • Cry जीन भी कई प्रकार के होते हैं जैसे –
  1. Cry I Ac, Cry II Ab → ये Cotton Ballworm पर नियंत्रण रखते है।
  2. Cry I Ab → यह मक्का छेदक पर नियंत्रण रखता है।

2. पीडकप्रतिरोधी पादप 

  सूत्रकृमि मिल्वाडेगाइन इन्कोग्निशिया, (Meloidogine incognisia) तम्बाकू, टमाटर, बैगन आदि पादपों की जड़ों में संक्रमण करके उनके उत्पादन को कम करते है।

  • इसके लिए एक विशेष प्रकार की तकनीक को विकसित किया गया है जिसके द्वारा इस सूत्रकृमि के आक्रमण को रोका जा सकता है। व फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता हैं।
  • फसल परपोषी पौधे में ऐसे दो genes का प्रवेश करवाया जाता है जो सूत्रकृमि के प्रति विशिष्ट होते है इसके लिए एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमीफेशिएन्स जीवाणु का उपयोग किया जाता है।
  • प्रवेश कराए गए दोनो gene परपोषी पौधे में sense व Antisense RNA का निर्माण करते है। ये दोनो RNA एक दूसरे के पूरक होते है जो द्विसूत्रीय RNA का निर्माण करते है।
  • यह dsRNA, सूत्रकृमि के mRNA से जुडकर उन्हें जैविक रूप से निष्क्रिय कर देते है यह प्रक्रिया “RNA interference (RNA) (RNA अन्तरक्षेप)” कहलाती है जिसमें mRNA silent हो जाता है।
  • इसके फलस्वरूप परजीव [सूत्रकृमि] परपोषी पादप में जीवित नहीं रह पाता है और पौधा परजीवियों से सुरक्षित रहता है।
  • इस प्रकार लाभदायक जीनों को पादपों में प्रवेश कराकर, Transgenic plant बनाए जाते है और उनमें पीड़क प्रतिरोधकता उत्पन्न की जा सकती हैं।

2. चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग 

  • वर्तमान समय में चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग व्यापक रूप से किया जा रहा है | rDNA Technique द्वारा अत्यधिक सुरक्षित व प्रभावी चिकित्सीय औषधि का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जा रहा है।
  • चिकित्सा के क्षेत्र प्रतिजैविक, (Anti-biotics) वृद्वि हार्मोन, इंटरफेरॉन, इन्सुलिन (Interferon, insulin) आदि उपयोगी उत्पादों को अनेक सूक्ष्मजीवों में प्राप्त किया जा रहा है जो कि जैव प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • Gene therapy व gene cloning के उपयोग से आनुवांशिक रोगों के निदान व उपचार में नई क्रांति आ गई है।
  • वर्तमान में विश्वभर में 30 पुनर्योजी चिकित्सकीय औषधियाँ मनुष्य के प्रयोग हेतु निर्मित की जा चुकी है जिनमें से 12 औषश्चियाँ भारत में उपलब्ध हैं।
  • जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग से चिकित्सा में एक नई क्रांति आ गई है है।  जिसके प्रमुख उदाहरण निम्न है।
  1. आनुवांशिकत: निर्मित इन्सुलिन
  2. जीन चिकित्सा। [gene theapy]
  3. आण्विक निदान

1. आनुवांशिकत: निर्मित इन्सुलिन – 

इन्सुलिन हार्मोन अग्नाशयी ग्रंथि की लैंगर हैंस द्वीप समूह की कोशिकाओं से स्त्रावित होता है उसका मुख्य कार्य रक्त मे उपस्थित अधिक glucose की मात्रा को glycogen में परिवर्तित करना है इसकी कमी से मधुमेह रोग हो जाता है।

  • Human insulin में दो polypeptide chain होती है जो कि निम्न है।

          1. श्रृंखला A                                2. श्रृंखना B

  • उपरोक्त दोनो श्रृंखलाएँ Disulphide Bonds द्वारा परस्पर जुडी रहती है।
  • Insulin का स्त्रावण Pro-insulin के रूप में किया जाता है। प्रोइन्सुलिन, परिपक्व व क्रियाशील हार्मोन बनने से पहले संसाधित होता है।
  • Proinsulin में peptide-A, peptide-B, Peptide-C  तीन श्रृंखलाएँ होती है जब proinsulin संसाधित होता है तो peptide c chain अलग हो जाती है इसके पश्चात् क्रियाशील Hormone व परिपक्व Hormone insuin का निर्माण करता है। क्रियाशील इन्सूलिन हार्मोन में दोनों छोटी Polypeptide chains A & B परस्पर disulphide Bonds द्वारा जुडी रहती है।
  • “F. sanger” ने Insulin की सरंचना का वर्णन किया इन्होंने बताया कि Insulin में 21 Amino Acid व 30 Amino Acid की बनी दो  श्रृंखला पाई जाती है जिसमें 2 disulphide Bond  पाए जाते है। पहला Disulphide Bond दोनों श्रृंखलाओं के 7 वें Amino Acid के बीच व दूसरा Disulphide Bond एक chain के 19 वें व दूसरे chain के 20 वें Amino acid के बीच पाया जाता है।

** F Sanger के अनुसार Insulin की संरचना **

  • 1983 में एलिलिली कम्पनी ने दो DNA अनुक्रमों को तैयार किया जो Human Insulin chain A तथा B के समान थे। इन दोनों श्रृखलाओं को  Bacteria E.coli के plasmid में प्रवेश कराकर इन Insulin श्रृंखलाओं का अलग-अलग उत्पादन किया।
  • इन अलग- अलग निर्मित A व B chains को  Disulphide Bond बनाकर आपस में संयोजित कर Human insulin का निर्माण किया गया।
  • जैव तकनीक से E.coli द्वारा निर्मित  Human insulin को “Humulin” ह्युम्यूलिन कहा जाता है।

2. जीन चिकित्सा [Gene Therapy] ⇒

  • जीन चिकित्सा में दोषयुक्त जीन का प्रतिस्थापन सामान्य व स्वस्थ जीन से कर दिया जाता है।
  • इस विधि में दोषयुक्त genes को आनुवांशिक अभियांत्रिकी तकनीक से से काट कर अलग किया उस स्थान पर स्वस्थ टुकड़ा जोड दिया जाता है जिसे जीन चिकित्सा कहते है।
  • जीन चिकित्सा का कार्य नवजात शिशु या भ्रूण में किया जाता है।
  • जो व्यक्ति आनुवांशिक रोग के साथ जन्म लेते है उनका उपचार जीन चिकित्सा के माध्यम से किया जाता है।
  • जीन चिकित्सा के द्वारा पुटी तंतुमयता [सिस्टिक फाइब्रोसिस], Sickle Cell Anemia आदि आनुवांशिक रोगों का उपचार किया जाता है।
  • स्वस्थ जीन स्थानांतरण में ऐसे virus का वाहक के रूप में उपयोग किया जाता है जो परपोषी cell से अपना आनुवांशिक पदार्थ छोडकर उसे संक्रमित करते है।
  • सर्वप्रथम 1990 में इस चिकित्सा द्वारा एक 4 वर्षीय लड़की में एडीनोसीन डी एमीनेम न्यूनता का उपचार किया गया था। यह Enzyme system के लिए आवश्यक होता है।
  • ADA की कमी का उपचार अस्थिमज्जा के प्रत्योरापण से होता है लेकिन यह पूर्णतया रोगनाशक नहीं है।
  • जीन चिकित्सा विधि में सर्वप्रथम उपरोक्त रोगी के रक्त से लसिकाणु को निकालकर शरीर से बाहर संवर्धन किया जाता है इसके पश्चात इसमें सक्रिय ADA का जीन [C-DNA→COPY OF DNA] प्रवेश कराया जाता है। इस कार्य के लिए Retrovirus (पश्च विषाणु) वाहक के रूप में काम आते हैं। इन Lymphocytes को अब रोगी के शरीर में स्थानांतरित कर देते है। रोगी को इस प्रकार के आनुवांशिक रूपांतरित लसिकाणुओं की बार-बार आवश्यकता पडती हैं। क्योंकि लसिकाणु एक निश्चित समय के बाद मृत हो जाते है।
  • यदि क्रियात्मक gene को Bone-Morrow (अस्थि मज्जा) की cell में स्थानांतरित कर दिया जाए तो यह रोग स्थायी रूप से ठीक हो सकता है।परंतु यह कार्य केवल भ्रूणीय अवस्था के दौरान ही किया जाता है।

3. अण्विक निदान ⇒

  • रोगों की चिकित्सा व उपचार हेतु सर्वप्रथम रोग का निदान होना आवश्यक है।
  • रोग के निदान हेतु rDNA तकनीक, ELISA व PCR तकनीक का अधिक उपयोग किया जाता है क्योंकि यह अत्यधिक विश्वसनीय व शुद्ध विधियाँ है जिसमें error की संभावनाएँ कम रहती है।
  • मानव भ्रूण में आनुवांशिक रोगों का निदान DNA खंडो के अध्ययन से किया जाना संभव हुआ है।
  • रोगजनक [Bacteria, Virus] की उपस्थिति का तब पता लगता है जब उसके द्वारा उत्पन्न रोग के लक्षण दिखाई देने लगते है। उस समय तक रोगजनक की संख्या शरीर में पहले से बहुत अधिक हो चुकी होती है जब इन रोगजनक की संख्या बहुत कम होती है तब उस रोग के लक्षण स्पष्ट दिखाई नहीं देते। ऐसी अवस्था में इसकी पहचान PCR द्वारा उनके Nucleic acid के प्रवर्धन से की जाती है।
  • PCR एक उपयोगी तकनीक है जिसके द्वारा अनेक आनुवांशिक दोषो की पहचान की जा सकती है | PCR का उपयोग कैंसर रोग, AIDS रोगियों के gene में होने वाले उत्परिवर्तन को पता लगाने में भी किया जाता है।
  • रैडियोएक्टिव प्रोब (एकल श्रृंखला वाले DNA खंड) का उपयोग संकरण क्रिया द्वारा अपने पूरक DNA को पहचानने के लिए किया जाता है।
  • प्रोब, अपने पूरक DNA से संकरित हो जाते है जिसे बाद में स्व-विकिरण चित्रण द्वारा पहचाना जाता है। ऐसे पूरक DNA जिसमें उत्परिवर्तित gene मिलते है वे फिल्म पर दिखाई नहीं देते क्योंकि प्रोब व उत्परिवर्तित gene एक-दूसरे के पूरक नहीं होते हे। इस प्रकार DNA प्रोब विभिन्न आनुवांशिक दोषों को पहचानने के लिए काम आते है।
  • ELISA परीक्षण, “प्रतिजन – प्रतिरक्षी पारस्परिक क्रिया” के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इस परीक्षण द्वारा Enzyme की सहायता से सूक्ष्मतम मात्रा में उपस्थित protein, Antigen & Ab को पहचाना जा सकता है।
  • ELISA परीक्षण में रोगजनकों के द्वारा उत्पन्न संक्रमण की पहचान, प्रतिजनों की उपस्थित या रोगजनकों के विरुद्ध बने प्रतिरक्षियों की पहचान के आधार पर की जाती है।
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3. पारजीवी जंतु में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग ⇒

  • ऐसे जंतु जिनमें वांछित gene को स्थानांतरित किया जाता है उन्हें पारजीवी जंतु कहते है। प्रवेश कराया गया पारजीन कहलाता है।
  • पारजीवी जंतु के आनुवांशिक संरचना में बदलाव आ जाता है अत: इसे आनुवांशिक रूपांतरित जंतु भी कहते है।
  • कुछ जंतु जेसे – सुअर, भेड़, गाय, चूहे आदि पारजीवी जंतु बनाए गए है जिनमें सर्वाधिक चूहे 95 प्रतिशत है।
  • इन परजीवी जंतु के निर्माण से मानव को बहुत से लाभ होते है जैसे –

1. सामान्य शरीर क्रिया व विकास :-

  • पारजीवी ने वैज्ञानिकों को gene की क्रिया, उनका नियंत्रण, सामान्य देह कार्यों वृद्धि व विकास पर प्रभाव आदि का अध्ययन करने के लिए आधार प्रदान किए

2. रोगों का अध्ययन :-

  • पारजीवी जंतु में रोगों के विकास में gene कीभूमिका का अध्ययन किया जाता है और पता लगाया जाता है कि gene किस प्रकार रोगों के विकास में भाग लेते है।
  • पारजीवि जंतु को उपचार के विभिन्न स्तरों व औषधिय प्रभावों की जाँच के लिए नमूने के रूप में प्रयुक्त किए जाते है। जैसे – Cancer के लिए Onco mouse, सिस्टिक फाइब्रोसिस रोग की जाँच के लिए विभिन्न पारजीवि जंतु का उपयोग किया जाता है।

3. जैविक उत्पाद :-

  • मानव रोगों के उपचार हेतु विभिन्न औषधियों की आवश्यकता पड़ती है। ये औषधियाँ जैविक उत्पाद से बनती है जो अधिक महंगी होती है इसलिए ऐसे पारजीवि जंतु का निर्माण किया गया जो उपयोगी जैविक उत्पाद का निर्माण करते है। जैसे – मानव Protein (L-1 एन्टीट्रिप्सीन) का उपयोग इंफीसीमा (ध्रुमपान से उत्पन्न रोग) के निदान में होता है।
  • इस protein Transgenic cow रोजी के दूध से प्राप्त किया गया है।
  • इस गाय के दूध में लेक्ट एल्ब्युमिन भी मिलता है जो मानव शिशु हेतु अत्यधित संतुलित पोषक तत्व है जो साधारण गाय के रूप में नहीं मिलता है।

4. टीका सुरक्षा :-

  • मनुष्य में टीके को प्रयुक्त करने से पहले पारजीवि जंतु में टीके की जाँच करना सुरक्षा की दृष्टि से सबसे अच्छा होता है पोलियों का टीका पारजीवि जंतु पर जाँचा गया है इसी तरह से अन्य टीके का भी परिक्षण अधिकतर पारजीवि जंतु पर ही किया जाता है

5. रासायनिक सुरक्षा जाँच :-

  • Transgenic animals, non-Transgenic animals की अपेक्षा विषैले पदार्थो से ज्यादा संवेदनशील होते हैं अत: विषैले रसायन या विषैली औषधियों के प्रभाव का अध्ययन करने में काफी उपयोगी होते है

नैतिक मुद्दे ⇒

  • मानव अपने हित के लिए जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कर पारजीवि जीवों का निर्माण कर रहा है और विभिन्न लाभदायक उत्पादों का उत्पादन कर रहा है लेकिन इनसे होने वाले दूरगामी परिणाम हानिकारक है।
  • विभिन्न जीवों का इस तरह से प्रयोग व शोषण हो रहा है इसके लिए कुछ नैतिक मानदण्डों की आवश्यकता है
  • व्यक्तियों में यह भी आक्रोश है कि कुछ कंपनियाँ आनुवांशिक पदार्थों पर अन्य जैविक संसाधनों का उपयोग कर बनाने वाले उत्पादों व तकनीक का पेटेंट (एकस्व) प्राप्त कर रहे है जबकि यह बहुत समय पूर्व से विकसित व पहचानी जा चुकी है और किसान तथा विशेष क्षेत्र या देश  लोगों द्वारा इनका उपयोग किया जा रहा है इन सभी से बायोपाइरेसी (जैव अपहरण) समस्या भी उत्पन्न हो रही है।
  • इसलिए भारत सरकार ने ऐसे संगठनों को स्थापित किया है जैसे – [GEAC – जेनेटिक इंजिनियरिंग एप्रुवल कमेटी] जो आनुवांशिक रूपांतरित अनुसंधान संबंधी कार्यों की वैधानिकता, GM जीवों की सुरक्षा आदि के विषय में निर्णय लेती है​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​

बायोपाइरेसी ⇒

  • जैविक कारको, जीन स्त्रोतों की चोरी करना, बायोपाइरेसी कहलाता है।
  • जैविक कारको का उपयोग कृषि, रसायनिक उद्योग व चिकित्सा के क्षेत्र में होता है।
  • बहुत सारे औद्योगिक राष्ट्र आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न है लेकिन उनके पास जैव विविधता व परम्परागत ज्ञान की कमी है इसके विपरीत विकासशील व अविकसित देश जैव विविधता व जैव संसाधनों से सम्पन्न है।
  • आर्थिक दृष्टि से विकसित राष्ट्र, विकासशील देशों से जैव अपहरण जैव अनैतिकता का कार्य कर रहे है।
  • इस प्रकार बिना किसी की अनुमति व क्षतिपूरक भुगतान के जैव संसाधनों का उपयोग करना, बायोपाइरेसी कहलाता है।

बायोपेटेंट (जैवपेटेंट) ⇒

  • जैविक कारकों और उनसे प्राप्त उत्पादों के पेटेंट को, जैवपेटेंट कहते है।
  • पेटेंट एक सरकारी अनुदान हैं जिसके अंतर्गत जैव पदार्थ की खोज करने वाले को सुरक्षा प्रदान करती है जिससे उस नाम का कोई और उस उत्पाद को न बना सके। तथा न बेच सके। यदि कोई ऐसा करता है तो उसे खोजकर्ता या संस्था से अनुमति लेनी होगी तथा कीमत भी देनी होगी।
  • बासमती धान अपनी सुगंध व स्वाद के लिए मशहूर है तथा भारत में लगभग 27 किस्में मिलती है।
  • हमारे धर्मग्रंथों, साहित्यों आदि में इसका वर्णन मिलता है परंतु अमेरिक की एक कंपनी ने बासमती का पेटेंट  व ट्रेडमार्क अपने लिए लेकर उस पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया है। यह एक तरह की बायोपाइरेसी कहलाती है।
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Class 12 Biology Chapter 12 Biotechnology and its Applications (जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग) in hindi

कक्षा 12th Biology के Notes के रूप में हमारे https://my-notes.in वेबसाइट पर उपलब्ध है | इस नोट्स को नवीनतम NCERT पाठ्यक्रम के आधार पर तैयार किया गया है | नोट्स हिंदी माध्यम में बड़ी ही आसान भाषा में तथा अधिक चित्रों के द्वारा समझाया गया है जिसस कमजोर से कमजोर छात्रों को भी समझ में आ सके।

NCERT Class 12 Biology Chapter 12, “Biotechnology and its Applications,” covers the various applications of biotechnology in various fields such as medicine, agriculture, and industry. Topics covered in the chapter include:

  • Recombinant DNA technology and its applications
  • Genetically modified organisms (GMOs) and their applications
  • Biotechnology in medicine (e.g. production of insulin and vaccines)
  • Biotechnology in agriculture (e.g. crop improvement and pest control)
  • Biotechnology in industry (e.g. production of enzymes and biofuels)
  • Ethics and safety concerns related to biotechnology
  • It also covers the techniques used in biotechnology like genetic engineering, tissue culture and fermentation.

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Biotechnology
Applications
Medical biotechnology
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Pest-resistant plants
Plant varieties
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Genetic engineering
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