NCERT Class 12 Biology Chapter 4 वंशागति एवं विविधता के सिद्धांत Notes PDF in Hindi
आज हम आपको सत्र 2023-24 के लिए NCERT Class 12 Biology Chapter 4 वंशागति एवं विविधता के सिद्धांत Notes PDF in Hindi कक्षा 12 जीव विज्ञान नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |
Class 12 jiv Vigyan ( Biology ) जीव विज्ञान नोट्स अध्याय 4 वंशागति एवं विविधता के सिद्धांत ( Janan svaasthaya ) Ke Notes PDF Hindi me Chapter 4 Principles of Inheritance and Variation Notes PDF Download .
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Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Biology | जीव विज्ञान |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | वंशागति एवं विविधता के सिद्धांत |
Category | Class 12 Biology Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
12th Biology Chapter 4 Notes PDF Download in Hindi
📚 अध्याय = 4 📚
💠वंशागति एवं विविधता के सिद्धांत 💠
💠Principles of Inheritance and Variation 💠
आनुवंशिकी (Genetics)
जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें वंशागति एवं विभिन्नता का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी कहलाती है। जेनेटिक्स नाम विलियम बेटसन (1905) के द्वारा दिया गया।
आनुवंशिकी के मूल सिद्धांतों का अध्ययन सबसे पहले ऑस्ट्रिया के पादरी, ग्रेगोर जोह्न मेंडल द्वारा किया गया था। इसलिए मेंडल को आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है।
वंशागति (Heredity / Inheritance)
लक्षणों पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में गमन वंशागति कहलाता है।
मेंडल ने उद्यान मटर (पाइसम सैटाइवम) पर संकरण का अध्ययन करके “पादप हाइब्रिडाइजेशन पर प्रयोग Experiments on plant hybridisation” नामक शोधपत्र “प्राकृतिक इतिहास सोसाइटी ऑफ ब्रून (Natural History Society of Brunn)” में 1866 में प्रकाशित किये।
1900 में, मेंडल तीन जीवविज्ञानियों ह्यूगो डी व्रीज, कार्ल कोरेंस और एरिक वॉन शेरमाक द्वारा मेंडल के नियमों की दुबारा खोज की।
आनुवंशिकी से जुड़ी शब्दावली (Terms in Genetics)
जीन (Gene)
कोशिका के अंदर का वह भाग जो किसी सजीव के लक्षणों को नियंत्रित करता है जीन कहलाता है। यह डीएनए का छोटा खंड होता है, जिस पर आनुवांशिक कोड पाए जाते हैं। जोह्नसन ने जीन शब्द दिया। मेंडल ने जीन को कारक (Factor) कहा।
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युग्मविकल्पी या एलील (Allele)
लक्षणों का नियंत्रण करने वाली जीन के एक या अधिक संभावित रूप जो गुणसूत्र में एक ही स्थान पर पाए जाते हैं, एलील कहलाते है।
जैसे पादप की लंबाई के लिए T एवं t एलील होते है। इसी प्रकार बीज के आकार के लिए R एवं r एलील होते है।
समयुग्मजी (Homozygous)
यदि एलील के जोड़े में दोनों एलील समान होते हैं तो इसे समयुग्मजी कहते है। जैसे TT, tt, RRYY, rryy
विषमयुग्मजी (Heterozygous)
यदि एलील के जोड़े में दोनों एलील अलग-अलग होते हैं तो इसे विषमयुग्मजी कहते है। जैसे Tt, Rr, RrYy
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दृश्य-प्ररूप (Phenotype)
किसी लक्षण का बाहरी रूप दृश्य-प्ररूप कहलाता है। जैसे- लम्बा, बौना, लाल, सफेद, गोल आदि।
जीनी-प्ररूप (Genotype)
किसी लक्षण से सम्बन्धित जीनी संरचना जीनी-प्ररूप कहलाता है। जैसे- लम्बे के लिए TT, Tt, बौने के लिए tt , लाल के लिए RR, सफेद rr, गोल RR आदि।
प्रभावी लक्षण (Dominant Charaters)
वह लक्षण जो मेंडल के संकरण में प्रथम पीढ़ी में अपना प्रभाव दिखाता है। प्रभावी लक्षण होता है। यह समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी दोनों अवस्था में अपना प्रभाव दिखाता है।
प्रभावी लक्षण के एलील हमेशा कैपिटल अक्षर में काम लेते है। जैसे लम्बे के लिए T, गोल के लिए R, पीले के लिए Y, आदि।
अप्रभावी लक्षण (Recessive Charaters)
वह लक्षण जो मेंडल के संकरण में प्रथम पीढ़ी में अपना प्रभाव नहीं दिखाता है। अप्रभावी लक्षण होता है। यह केवल विषमयुग्मजी अवस्था में अपना प्रभाव दिखाता है।
प्रभावी लक्षण के एलील हमेशा स्माल अक्षर में काम लेते है। जैसे बौने के लिए t, झुरीदार के लिए r , हरे के लिए y, आदि।
एकल संकर संकरण (Monohybrid Cross)
जब एक ही प्रकार के विप्रयासी लक्षणों का उपयोग करके संकरण कराया जाता है तो इसे एकल संकर संकरण कहते है। जैसे TT x tt
द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross)
जब दो प्रकार के विप्रयासी लक्षणों का उपयोग करके संकरण करवाया जाता है तो उसे द्विसंकर संकरण कहते है। जैसे RRYY x rryy
बहुसंकर संकरण (Polyhybrid Cross)
जब कई प्रकार के लक्षणों का उपयोग करके संकरण करवाया जाता है तो इसे बहुसंकर संकरण कहते है। जैसे RRYYTT x rryytt
मेंडल के आनुवंशिकी के नियम (Mendelian law of Genetics)
मेंडल के वंशागति के तीन सिद्धांत हैं:
- प्रभाविता का नियम
- पृथक्करण का नियम
- स्वतंत्र अपव्युहन का नियम
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1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)
यह नियम बताता है कि जब किसी प्रजाति के दो विप्रयासी लक्षणों का उपयोग करके संकरण करवाया जाता है तो आप प्रथम पीढ़ी में एक लक्षण है दिखाई देता है जो प्रभावी होता है तथा अन्य लक्षण दिखाई नहीं देता जिसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं
जब लंबे और बौने पौधों के बीच एक क्रॉस करवाया जाता है तो प्रथम पीढ़ी में केवल लंबे पौधे ही देखे जाते हैं। इसका मतलब है कि लंबा लक्षण बौना लक्षण पर हावी है।
प्रभाविता का नियम के अपवाद
- अपुर्ण प्रभाविता
- सहप्रभाविता
- बहुप्रभाविता
2. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)
युग्मकों के निर्माण के समय एलील के जोड़े में से एलील के जोड़े में से प्रत्येक एलील एक-दूसरे से पृथक होकर संतति में जाता है।
उदाहरण के लिए जब एकल संकर संकरण में प्रथम पीढ़ी के पादपों का आपस में संकरण करवाया जाता है तो द्वितीय पीढ़ी में लम्बे पादपों के साथ-साथ बोने पादप भी प्राप्त होते हैं
युग्मक के निर्माण में एक-दूसरे से अलग होते है। इस सिद्धांत को युग्मकों की शुद्धता के नियम के रूप में भी जाना जाता है।
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3. स्वतंत्र अपव्युहन का नियम (Law of Independent Assortment)
जब दो या अधिक लक्षणों का उपयोग करके संकरण करवाया जाता है तो प्रत्येक लक्षण स्वतंत्र रूप से संतति में जाता है।
उदाहरण-लंबा हरा तथा बौना पीला पादपों में संकरण करवाया जाता है तो लंबे के साथ पादप पीला एवं बोने पादप के साथ हरा लक्षण भी दिखाई देता है जो स्वतंत्र अपव्युहन को दिखाता है।
स्वतंत्र अपव्युहन नियम के अपवाद
- सहलग्नता
- पुनर्योजन
मेंडेलिज्म का महत्व –
यूजेनिक्स या सुजंनिकी मेंडेलिज्म पर आधारित है।
मेंडेलिज्म के आधार पर, जानवरों और पौधों की किस्मों में विभिन्न संकर नस्लों का उत्पादन किया गया है।
घातक जीन के बारे में जानकारी मिलती है।
वंशागति (Heredity / Inheritance)
वह प्रक्रम जिसमें लक्षण एक जनक से संतति में जाते हैं, वंशागति कहलाता है। वंशागति अनुवांशिक विज्ञान (Genetics) का आधार है। हैरिडिटी शब्द स्पेंसर (Spenser) द्वारा दिया गया।
विविधता (Variation)
जनक और संतति तथा एक ही जनक से उत्पन्न संतति के लक्षणों में पाई जाने वाली असमानता (Differenciation) को विविधता कहते हैं ।
जीवों में दो प्रकार की विभिन्नताएँ पाई जाती है –
(1) सोमेटोजेनिक विभिन्नताएँ (Somatogenic Variations)
(2) ब्लास्टोजेनिक विभिन्नताएँ (blastogenic variations)
सोमेटोजेनिक विभिन्नताएँ (Somatogenic Variations)
ये उपार्जित विभिन्नताएँ होती है, तथा प्रकृति में अवंशागत होती है। जीवों की वातावरण के सन्दर्भ में इसके लक्षण प्ररूप में आंशिक परिवर्तन की क्षमता लक्षण प्ररूपिक प्रत्यास्थता कहलाती है।
ब्लास्टोजेनिक विभिन्नताएँ (blastogenic variations)
ये जननिक विभिन्नताएँ है, तथा प्रकृति में वंशागत होती है। ये दो प्रकार की होती है।
अनुवांशिक विज्ञान (Genetics)
जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवो में पाई जाने वाली विविधता तथा वंशागति का अध्ययन किया जाता है। अनुवांशिक विज्ञान कहलाती है।
अनुवांशिक विज्ञान का जनक ग्रेगर जॉन मेंडल को कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान का जनक Batson को कहा जाता है।‘
अनुवांशिक विज्ञान में काम आने वाले महत्वपूर्ण शब्द
कारक (Factor)
लक्षणों को नियंत्रित करने वाली इकाई कारक कहलाती है। जिसे बाद में जीन कहा गया।
जीन (Gene)
वह इकाईयां जो लक्षणों को नियंत्रित करती जीन कहलाती है। यह डीएनए का एक छोटा क्रियाशील खंड होता है। यह अनुवांशिकता की इकाई होती है।
जीन शब्द जोहन्शन के द्वारा दिया गया।
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युग्म विकल्पी / अलिल (Allele)
एक ही लक्षण के दो भिन्न-भिन्न विपरीत रूप को व्यक्त करने वाले कारकों को अलिल कहते हैं। जैसे लंबाई के लिए लंबा तथा बौना। युग्मविकल्पी शब्द बेटसन द्वारा दिया गया।
समयुग्मजी (Homozygous)
यदि अलिल का जोड़ा समान अलील वाला होता है तो उसे समयुग्मजी कहते हैं।
विषम युग्मजी (Heterozygous)
यदि अलील का जोड़ा असमान अलील वाला होता है। तो उसे विषम युग्मजी कहते हैं।
लक्षण प्ररूप (Phenotype)
यह किसी जीव की बाह्यआकारिकी (Outer Appearance) दर्शिता है। व्यष्ठि के लक्षण प्ररूप युग्मविकल्पियों के भिन्न संयुग्मन द्वारा निर्धारित होते हैं। जैसे – लम्बापन या बौनापन
जीनप्ररूप (Genotype)
यह जीव के आनुवंशिकी संगठन (Genetic Structure) का प्रदर्शन है। जैसे TT, Tt, tt
प्रभावी लक्षण (Dominant Character)
वह जो लक्षणों F1 पीढ़ी में अपना प्रभाव दर्शाता है, प्रभावी लक्षण कहलाता है। यह लक्षण समयुग्मजी (Homozygous) तथा विषम युग्मजी (Heterozygous) दोनों अवस्थाओं में अपना प्रभाव दर्शाता है। जैसे लम्बा पौधा।
अप्रभावी (Recessive Character)
वह जो लक्षणों F1 पीढ़ी में अपना प्रभाव नहीं दर्शाता है, अप्रभावी लक्षण कहलाता है। यह केवल विषम युग्मजी (Heterozygous) अवस्था में अपना प्रभाव दर्शाता है। इसके उत्पाद या तो अपूर्ण या अल्प प्रभावी होते हैं। जैसे बोना पौधा।
एक संकर संकरण (Monohybrid Cross)
एक ही प्रकार के दो विपरीत लक्षणों को काम में लेकर करवाया गया संकरण एक संकर संकरण (Monohybrid Cross) कहलाता है। जैसे लम्बे (TT) तथा बौने (tt) पादपों में संकरण करवाना
द्वि संकर संकरण (Dihybrid Cross)
दो प्रकार के लक्षणों को काम में लेकर करवाया गया संकरण द्वि संकर संकरण ( Di hybrid Cross) कहलाता है। जैसे गोल व पीले बीज (RRYY) वाले पादपों का संकरण तथा झुर्रीदार व हरे बीज (rryy) वाले पादपों से करवाना।
बहू संकर संकरण (Polyhybrid Cross)
विभिन्न प्रकार के लक्षणों को काम में लेकर करवाया गया संकरण बहु संकर संकरण (Poly hybrid Cross) कहलाता है। जैसे गोल व पीले बीज वाले लम्बे पादपों (TTRRYY) का संकरण तथा झुर्रीदार व हरे बीज वाले बौने (ttrryy) पादपों से करवाना।
मेंडल का इतिहास (History of Mendel)
वैज्ञानिक ग्रेगर जॉन मेंडल का जन्म 20 जूलाई 1822 में ऑस्ट्रिया साम्राज्य के सिलेसियन में हुआ था, जो अब चेक गणराज्य में पड़ता है।
मेंडल ने ऑस्ट्रिया के ब्रून शहर में पादरी का काम करते हुए उद्यान मटर (Pisum sativum) पर प्रयोग किए। इनके प्रयोग Experiments in Plant Hybridization (पादप संकरण पर प्रयोग) नाम से Natural History Society of Brunn in Bohemia (Czech Republic) नामक संस्था द्वारा प्रकाशित हुए।
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मेंडल द्वारा मटर के पादप को चुनने के कारण
ग्रेगर जॉन मेंडल ने उद्यान मटर के पौधे में 7 वर्षों तक संकरण के प्रयोग किए तथा उनके आधार पर जीवों की वंशागति को प्रस्तावित किया। निम्न कारणों की वजह से मटर के पादप को अध्ययन के लिए चुना-
1. मटर का पादप आकार में छोटा होता है। इसे छोटी जगह पर आसानी से उगाया जा सकता है।
2. मटर के पादप का जीवनकाल (Life Span) छोटा होता है। यह 1 वर्ष में ही प्रजनन कर समितियां उत्पन्न कर लेता है।
3. मटर के पादप उभयलिंगी (Hermaphrodite) होते हैं। इनमें स्वपरागण (Self pollination) होता है। परंतु इनमें आसानी से पर परागण (Artificial pollination) करवाया जा सकता है।
4. मटर के पादप में अधिक विविधता (Variation) पाई जाती है।
मेंडल के द्वारा चुने गए लक्षण (Contrasting character choosed by Mendel)
मेंडल ने अध्ययन के लिए मटर के 7 जोड़ी विप्रयासी लक्षणों (contrasting character) को चुना जो निम्नलिखित है
1. तने की लंबाई – लंबा (Tall) और बोना (Dwarf)
2. फूल का रंग – बैंगनी (Violet) और सफेद (White)
3. फूल की स्थिति – अक्षीय (Axial) तथा शीर्षस्थ (Terminal)
4. फली का आकार – फुला हुआ ( Inflated) तथा सिकुड़ा हुआ (Constructed)
5. फली का रंग – हरा (Green) और पीला (Yellow)
6. बीज का आकार – गोल (Round) और झुर्री दार (Wrinkled)
7. बीज का रंग – पीला (Yellow) और हरा (Green)
मेंडल के नियमों की पुनः खोज ( Rediscovery of mendel’s law)
मेंडल के प्रयोगों को अनुसंधान संस्थान द्वारा नकार दिया गया। इनके नियमों की पुनः खोज ह्यूगो डी व्रीस, कार्ल कोरेंस और एरिक वॉन शेरमाक ने पृथक-पृथक काम करते हुए की।
मेंडल की सफलता के कारण (Reason of Mendel success)
मेंडल आनुवंशिकता के नियमों की व्याख्या करने में सफल रहे क्योंकि
1) उन्होंने मटर के पौधों को चुना जो शुद्ध वंशक्रम वाले थे।
2) मेंडल के द्वारा चुने गए सभी लक्षण विभिन्न गुणसूत्रों पर पाए जाने वाले जीन द्वारा नियंत्रित होते हैं जिससे उनका अध्ययन सफल रहा।
3) उन्होंने केवल उन्हीं लक्षणों को चुना जो विपरीत थे।
4) मेंडल की सफलता का मुख्य कारण यह था कि उन्होंने संकरण के अपने प्रयोगों में एक समय में केवल एक ही प्रकार के लक्षण को लिया जिससे प्रयोग आसान हो गया।
मेंडल के प्रयोग (Experiments of Mendel)
- एक जीन की वंशागति
- दो जीन की वंशागति
मेंडल के आनुवंशिकता के नियम (Mendelian law of inheritance)
- प्रभाविता का नियम (law of dominance)
- पृथक्करण का नियम (law of segregation)
- स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (law of independent assortment)
एक संकर संकरण और द्विसंकर संकरण
एक जीन की वंशागति (Inheritance of one gene)
- इसको एक संकर संकरण (Monohybrid cross) भी कहते है। एक जीन की वंशागति के अध्ययन के लिए मेंडल ने केवल एक प्रकार के विपरीत लक्षण (विपर्यासी लक्षणों / Contrasting character) को चुना।
- मेंडल ने मटर के लंबे पौधों (Tall Plants) का संकरण बोने पादपों (Dwarf Plants) से करवाया और प्राप्त बीजों को उगाकर F1 पीढी़ प्राप्त की। मेंडल ने पाया कि F1 पीढ़ी के सभी पौधे लंबे थे अर्थात अपने लंबे जनक के समान थे।
- मेंडल ने F2 पीढ़ी में लंबे तथा बोने पादप प्राप्त किए। लंबे पादप अपने लंबे जनक तथा बोने पादप अपने बोने जनक के समान थे। किस आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि लंबे तथा बोने पादपों का अनुपात 3:1 है।
- ग्रेगर जॉन मेंडल ने प्रयोग द्वारा यह प्रस्तावित किया कि कोई वस्तु अपरिवर्तित (Unchanged) रूप से जनकों से संतति में युग्मकों के माध्यम से अग्रसारित होती है। मंडल ने इन वस्तुओं को कारक(Factor) कहा जिन्हें हम जीन (Gene) कहते हैं।
- मेंडल ने F2 पीढ़ी के जीनोटाइप को प्राप्त किया। जिसे गणित की द्विनामी (Binominal )पद के रूप में व्यक्त किया। जिनमें T और t जीन वाले युग्मक समान में 1/2 में रहते हैं।
मेंडल ने एकल संकरण संकर पर आधारित दो नियम दिए
- प्रभाविता का नियम (Law of dominance)
- पृथक्करण का नियम (law of segregation)
दो जीन की वंशागति (Inheritance of two gene)
मेंडल ने मटर के दो अलग-अलग प्रकार के लक्षणों को लेकर संकरण करवाया जिसे द्विसंकर संकरण (Dihybrid cross) कहते हैं। मेंडल ने गोल तथा पीले बीजों (Round and yellow ) वाले पौधों का संकरण झुर्रिदार और हरे बीजों (Wrinkled and green) वाले पौधों से करवाया तो उन्हें F1 पीढ़ी में सभी पादप गोल व पीले प्राप्त हुए।
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मेंडल के वंशागति के नियम
प्रभाविता का नियम (Law of dominance)
इस नियम के अनुसार, जब एक जीव में एक गुण के लिए दो विपर्यासी युग्म (Contrasting pair) विकल्पी साथ-साथ आते हैं, तो केवल एक ही स्वयं को पूर्णतया अभिव्यक्ति (Express) करता है, एवं प्रभाव दर्शाता है। यह प्रभावी (Dominant) कहलाता है, एवं अन्य युग्मविकल्पी जो अभिव्यक्त नहीं हो पाता है, एवं छुपा रहता है, अप्रभावी (Recessive) कहलाता है।
पादप की लम्बाई दो युग्म विकल्पी प्रभावी युग्म विकल्पी (Dominant allele) – T एवं अप्रभावी युग्म विकल्पी (Recessive allele) – t द्वारा नियंत्रित होती है।
ये दो युग्म विकल्पी तीन रूपों में उपस्थिति हो सकते हैं।
- TT – Homozygous / समयुग्मजी
- Tt – Heterozygous / विषमयुग्मजी
- tt – Homozygous / समयुग्मजी
मेण्डल ने दो मटर पादपों एक समयुग्मजी लम्बा TT एवं दूसरा समयुग्मजी बौना tt के मध्य संकरण किया। और F1 पीढ़ी प्राप्त की –
उन्होंने पाया कि सभी F1 संतति पादप एक जनक के समान लम्बे थे, कोई भी बौना पादप नहीं था।
उसने गुणों के अन्य युग्म के लिए भी समान प्रेक्षण प्राप्त किये एवं पाया कि F1 संतति पादप सदैव केवल एक जनक के साथ समानता दर्शाता है, एवं अन्य जनक के गुण उनमें प्रदर्शित नहीं होते थें।
प्रभाविता का नियम के अपवाद (Exceptions of law of dominance)
यह नियम सर्वमान्य अनुप्रयोगिक (application) नहीं है। इसके अपवाद निम्नलिखित है –
- अपूर्ण प्रभाविता (incomplete dominance)
- सह प्रभाविता (co- dominance)
पृथक्करण का नियम / युग्मकों की शुद्धता का नियम
- इस नियम के अनुसार F1 पीढ़ी मे पाए जाने वाले दोनों जनक युग्मविकल्पी T & t पृथक-पृथक होकर युग्मकों के माध्यम से संतति में जाते हैं, एवं F2 पीढ़ी में लक्षण प्रारूपिक रूप से अभिव्यक्त होते हैं।
- F1 संकर में स्वपरागण के द्वारा F2 पीढ़ी की उत्पत्ति होती है।
- यह दर्शाता है कि दोनों प्रभावी एवं अप्रभावी पादप 3:1 के अनुपात में दिखाई देते हैं। इस प्रकार F2 पीढ़ी/संततियां दोनों जनक रूपों को दर्शाती है।
- F2 पीढ़ी के आधार पर निम्न निम्न निष्कर्ष निकलता है-
- सामान्यतया एक जीव में प्रत्येक गुण के लिए दो युग्म विकल्पी (Allele) होते हैं। ये युग्म विकल्पी या तो समान या भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। एक युग्म के समान युग्म विकल्पी युक्त जीव उस गुण के लिए शुद्ध या सत्य जननिक कहलाते हैं। यदि जीव में एक युग्म के भिन्न-भिन्न युग्म विकल्पी होते हैं, तो वह जीव अशुद्ध या संकर (Hybrid) कहलाता है।
- एक जीव दो युग्मविकल्पियों में से एक-नर युग्मक से एवं अन्य मादा युग्म से प्राप्त करता है। युग्मक जनन के दौरान संयुक्त होते हैं, एवं युग्मनज बनाते हैं। युग्मनज एक जीव में विकसित होता है।
- प्रत्येक युग्मक (नर एवं मादा) में युग्म का केवल एक युग्मविकल्पी होता है। इस प्रकार प्रत्येक युग्मक एक गुण के लिए शुद्ध होता है। इस कारण यह नियम युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहलाता है।
- नर एवं मादा युग्मकों के मध्य संयोजन से युग्मनज उत्पन्न होना एक नियमित प्रक्रिया होती है।
- F2 पीढ़ी में प्राप्त पादप 3 (लम्बे) : 1 (बौने) लक्षण प्रारूप अनुपात दर्शाते हैं। इन तीनों लम्बे पादपों में से एक शुद्ध एवं या समयुग्मकी प्रभावी एवं शेष दो विषमयुग्मकी होते हैं। (इस स्थिति में लम्बे पादप होते हैं)। इनमें केवल एक पादप है। बौने पादप शुद्ध या सत्य प्रजननशील होते हैं, जो समयुग्मकी अप्रभावी होते हैं।
पृथक्करण का नियम के अपवाद (Exceptions of law of Segregation)
यह नियम सर्वमान्य रूप से अनुप्रयोगिक है। मतलब कि इस नियम के कोई अपवाद नहीं है।
स्वतंत्र अप्यूहन का नियम (Law of independent assortment)
स्वतंत्र अप्यूहन का नियम के अनुसार जब जब दो अलग-अलग प्रकार के लक्षणों (अर्थात विपर्यासी लक्षण नहीं) मध्य संकरण करवाया जाता है, तो एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतया स्वतंत्र होती है।
इनके स्वतंत्र अप्यूहन के कारण जनक प्रकारों के अतिरिक्त पुर्नसंयोजन (Recombination) भी प्राप्त होते हैं।
- गोल/पीला (जनक प्रकार)
- गोल/हरे (पुर्नसंयोजन / Recombination)
- झुर्रीदार/पीला (पुर्नसंयोजन / Recombination)
- झुर्रीदार/हरे (जनक प्रकार)
द्विसंकर में, ये संयोजन 9:3:3:1 के अनुपात में प्राप्त होते हैं। उसने समयुग्मकी प्रभावी गोल एवं पीले बीजों वाले पादप (RRYY) का समयुग्मकी अप्रभावी झुर्रीदार एवं हरे बीजों वाले पादप (rryy) के साथ संकरण करवाया।
F1 संकर सभी विषमयुग्मकी पीले एवं गोल बीजों (RrYy) वाले पादप थे।
लक्षण प्रारूप अनुपात –
गोल/पीला 9/16
गोल/हरे 3/16
झुर्रीदार/पीला 3/16
झुर्रीदार/हरे 1/16
जीनप्रारूप अनुपात – 1: 2 :1: 2: 4: 2: 1 : 2: 1
यदि युग्मविकल्पियों के प्रत्येक युग्म का लक्षण प्रारूप अनुपात निश्चित होता है। (उदाहरण बीज का पीला एवं हरा रंग) तो यह 12(9 + 3) पीले बीजों वाले पादप एवं 4(3 + 1) हरे बीजों वाले पादपों को दर्शाता है।
यह पृथक्करण दर्शाते हुए एकल संकर संकरण के F2 पीढ़ी में प्राप्त 3 : 1 अनुपात के समान ही आता है।
इस प्रकार प्रत्येक लक्षण का परिणाम एकल संकर संकरण के समान ही होता है।
घातक जीन (Lethal Gene): प्रभावी और अप्रभावी घातक जीन (Dominant and Recessive Lethal Gene)
Definition :- कुछ जीनों के प्रभाव के कारण जीव की मृत्यु हो सकती है। युग्म विकल्पी या अलील (Allele) जिनके कुछ जीनोटाइप के कारण जीव की मृत्यु हो सकती है, उन्हें घातक जीन (Lethal Gene) कहा जाता है। घातक जीन को कुनोट (Cuenot) ने खोजा था।
घातक जीन के प्रभाव के भ्रूणीय अवस्था में ही जीव की मृत्यु हो जाती है। उदाहरण चूहों में पीला फर। अथवा यौन परिपक्वता से पहले ही व्यक्ति मर जाता है। जैसे दात्र कोशिका अरक्तता। (सिकल सेल एनीमिया) घातक जीन के कारण मकई में Albinism उत्पन्न होता है।
घातक जीन प्रभावी या अप्रभावी हो सकती है।
A) प्रभावी घातक जीन (Dominant Lethal Gene)
यह जीन विषमयुग्मजी (Homozygous) अवस्था में अपना घातक प्रभाव दर्शाती है। उदाहरण: मानव में Epiloia प्रभावी घातक जीन के लिए एक उदाहरण है। यदि घातक जीन प्रभावी होती है, तो घातक अलील युक्त सभी व्यक्ति मर जाते हैं और जीन अगली पीढ़ी को प्रेषित नहीं किया जा सकता है।
B) अप्रभावी घातक जीन (Recessive Lethal Gene)
इस प्रकार की जीन केवल समयुग्मजी (Homozygous) अवस्था में ही अपना प्रभाव दर्शाती है। इसके कारण फीनोटाइपिक अनुपात हमेशा 3: 1 से 2: 1 परिवर्तित होता है।
उदाहरण: चुहों में पीला फर
चुहों में घातक जीन (Lethal Gene in mice)
घातक पीले अलील, चूहों में एक सहज उत्परिवर्तन होता है। जो कि उनके फर को पीला बनाता है।
यह एलील 20 वीं शताब्दी के आसपास फ्रांसीसी आनुवंशिकीविद् ल्यूसीन कुनोट (Lucien Cuenót) ने खोजा था, जिन्होंने पाया कि घातक पीले अलील एक असामान्य पैटर्न में वंशागत होता है।
जब पीले चूहों (Yy) का सामान्य भूरे चूहों (yy) के साथ संकरण (Cross) कराया गया, तो उन्होंने आधे पीले (Yy) और आधे भूरे (yy) संतति का उत्पादन किया। जिससे यह पता चला कि पीले चूहें विषमयुग्मजी (Heterozygous) थे, और पीले अलील Y भूरे अलील y पर प्रभावशाली (Dominant) थे।
लेकिन जब दो पीले चूहों का एक दूसरे के साथ संकरण करवाया गया, तो वे 2:1 के अनुपात में पीले (Yy) और भूरे रंग (yy) की संतति उत्पन्न करते थे।
ऐसा इसलिए होता है। क्योंकि Y अलील अप्रभावी घातक जीन है। जो विषमयुग्मजी (Heterozygous) Yy स्थिति में अपना घातक प्रभाव व्यक्त नहीं करती। लेकिन समयुग्मजी (Homozygous) YY स्थिति में अपना घातक प्रभाव व्यक्त करती है जिससे भ्रूणीय अवस्था में ही चूहों की मृत्यु हो जाती है।
अतः किसी जीन के समयुग्मजी स्थिति में अपना प्रभाव व्यक्त जीव की मृत्यु हो जाती तो वह जीन अप्रभावी घातक जीन कहलाती है।
ध्यान रहे के यहा Y अलील रंग उत्पन्न करने की दृष्टि से तो प्रभावी है। लेकिन घातक होने की दृष्टि से अप्रभावी है।
Class 12 Biology Chapter 4 Notes in Hindi वंशागति एवं विविधता
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