कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: दो ध्रुवीयता का अंत – नोट्स PDF

शीत युद्ध के अंत और द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था के पतन को सरल भाषा में समझें!

कक्षा 12 राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए यह नोट्स PDF शीत युद्ध के इतिहास, द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था के उदय और पतन, और सोवियत संघ के विघटन के कारणों का विश्लेषण प्रदान करता है।

Table of Contents

इसमें शामिल हैं: दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity)

  • शीत युद्ध की प्रमुख घटनाएं: शीत युद्ध की शुरुआत, कोरियाई युद्ध, क्यूबा मिसाइल संकट, वियतनाम युद्ध, अंतरिक्ष दौड़, आदि।
  • द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था की विशेषताएं: राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सैन्य क्षेत्रों में दो महाशक्तियों के बीच टकराव।
  • सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण: आर्थिक समस्याएँ, राजनीतिक अस्थिरता, गोर्बाचेव के सुधार, राष्ट्रवाद का उदय, आदि।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के प्रभाव: एकध्रुवीय विश्व का उदय, अमेरिकी प्रभुत्व, वैश्वीकरण में तेज़ी, नई सुरक्षा चुनौतियाँ।

यह नोट्स PDF परीक्षा की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण अवधारणाओं और परीक्षा युक्तियों को भी सम्मिलित करता है।

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नोट: यह PDF केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए है।

राजनीति विज्ञान कक्षा 12 नोट्स :अध्याय 1 दो ध्रुवीयता का अंत

अध्याय-1 : दो ध्रुवीयता का अंत

बर्निल की दीवार / Burnil’s Wall | दो ध्रुवीयता का अंत

बर्निल की दीवार पूर्वी और पश्चिमी खेमे के बीच विभाजन का प्रतीक थी, जो यूरोप महाद्वीप में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में बनी थी। शीतयुद्ध के प्रतीक के रूप में, इसे 9 नवंबर 1989 को जनता ने तोड़ दिया। यह 28 वर्षों तक खड़ी रही और इसकी लंबाई 150 किलोमीटर थी।

सोवियत संघ (U.S.S.R.) / Soviet Union (U.S.S.R.) | दो ध्रुवीयता का अंत

1917 की रूसी बोल्शेविक क्रांति के बाद, समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ (U. S. S. R.) की स्थापना हुई। सोवियत संघ में कुल 15 गणराज्य शामिल थे जिससे सोवियत संघ का निर्माण हुआ था। यह समाजवाद और साम्यवादी विचारधारा के अनुसार बनाया गया था। इन 15 गणराज्यों में रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, बेलारूस, उज़्बेकिस्तान, आर्मेनिया, अज़रबैजान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मोलडोवा, तुर्कमेनिस्तान, ताजीकिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, और एस्तोनिया शामिल थे।

सोवियत प्रणाली / Soviet system | दो ध्रुवीयता का अंत

सोवियत संघ में समतावादी समाज के निर्माण के लिए केंद्रीकृत योजना, राज्य के नियंत्रण पर आधारित और साम्यवादी दल द्वारा निर्देशित व्यवस्था सोवियत प्रणाली कहलाईगी। इसमें नियोजित अर्थव्यवस्था, कम्यूनिस्ट पार्टी का दबदबा, उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण, और उन्नत संचार प्रणाली शामिल थी। सोवियत प्रणाली ने समाजवाद और साम्यवादी आदर्शों का पालन किया और उदार नीतियों के अनुसार गरीबों के हितों को ध्यान में रखा।

सोवियत प्रणाली की विशेषताएँ / Features of Soviet system

विचारशीलता:

  • सोवियत प्रणाली पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध तथा समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित थी।

नियोजित अर्थव्यवस्था:

  • सोवियत प्रणाली में नियोजित अर्थव्यवस्था थी।

पार्टी दबदबा:

  • कम्यूनिस्ट पार्टी का दबदबा था।

न्यूनतम जीवन स्तर:

  • न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा बेरोजगारी न होना।

उन्नत संचार प्रणाली:

  • उन्नत संचार प्रणाली थी।

राज्य का स्वामित्व:

  • मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था।

उत्पादन का नियंत्रण:

  • उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण था।

दूसरी दुनिया के देश / Other world countries

पूर्वी यूरोप के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया था, इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया।

साम्यवादी सोवियत अर्थव्यवस्था तथा पूँजीवादी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर / Difference between communist Soviet economy and capitalist American economy

सोवियत अर्थव्यवस्था

(i) राज्य द्वारा पूर्ण रूपेण नियंत्रित

(ii) योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था

(iii) व्यक्तिगत पूंजी का अस्तित्व नहीं

(iv) समाजवादी आदर्शों से प्रेरित

(v) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व

अमेरिका की अर्थव्यवस्था

(i) राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप

(ii) स्वतंत्र आर्थिक प्रतियोगिता पर आधारित

(iii) व्यक्तिगत पूंजी की महत्ता

(iv) अधिकतम लाभ के पूंजीवादी सिद्धांत

(v) उत्पादन के साधनों पर बाजार का नियंत्रण

मिखाइल गोर्बाचेव /  Mikhail Gorbachev

1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव ने राजनीतिक सुधारों और लोकतांत्रिकरण की दिशा में पुर्नरचना (पेरेस्ट्रोइका) और खुलापन (ग्लासनोस्त) की प्रक्रिया शुरू की।

सोवियत संघ समाप्ति की घोषणा / Declaration of end of Soviet Union

1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों और रूस, यूक्रेन, और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। इसके परिणामस्वरूप CIS (स्वतंत्र राज्यों का संघ) बना और 15 नए देशों का उदय हुआ।

सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन की कमियाँ

Shortcomings of communist rule in the Soviet Union

कमियाँ:

  • सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया, परंतु यह पार्टी अब जनता के जवाबदेह नहीं रही थी।
  • कम्युनिस्ट शासन में सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनितिक रूप से गतिरुद्ध हो चूका था।
  • भारी भ्रष्टाचार व्याप्त था और गलतियों को सुधारने में शासन व्यवस्था अक्षम थी।
  • विशाल देश में केन्द्रीयकृत शासन प्रणाली थी।
  • सत्ता का जनाधार खिसकता जा रहा था, कम्युनिस्ट पार्टी में कुछ तानाशाह प्रकृति के नेता भी थे जिनकों जनता से कोई सरोकार नहीं था।
  • पार्टी के अधिकारीयों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे।

सोवियत संघ के विघटन के कारण

Reasons for the dissolution of the Soviet Union

  • नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आंकाक्षाओं को पूरा न कर पाना।
  • सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा।
  • कम्यूनिस्ट पार्टी का बुरा शासन।
  • सोवियत संधि में अपना पैसा और संसाधन पूर्वी यूरोप में अधिक लगाया ताकि वह उनके नियंत्रण में बने रहे।
  • लोगों को गलत जानकारी देना की सोवियत संघ विकास कर था है।
  • संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियारों पर करना।
  • प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पश्चिम के मुकाबले पीछे रहना।
  • रूस की प्रमुखता।
  • गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना।
  • अर्थव्यवस्था गतिरूद्ध व उपभोक्ता वस्तुओं की कमी।
  • राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार।
  • सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना, पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होना।

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम

Consequences of the dissolution of the Soviet Union

  • शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया, दूसरी दुनिया का पतन।
  • एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमेरिकी वर्चस्व का उदय।
  • हथियारों की होड़ की समाप्ति सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय।
  • विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्था ताकतवर देशों की सलाहकार बन गई।
  • रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
  • विश्व राजनीति में शक्ति संबंध परिवर्तित हो गए।
  • समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व।
  • शॉक थेरेपी को अपनाया गया।
  • उदारवादी लोकतंत्र का महत्व बढा।

भारत जैसे विकासशील देशों में सावियत संघ के विघटन के परिणाम

Consequences of the disintegration of the Soviet Union in developing countries like India

  • विकासशील देशों की घरेलू राजनीति में अमेरिका को हस्तक्षेप का अधिक अवसर मिला।
  • कम्यूनिस्ट विचारधारा को धक्का मिला।
  • विश्व के महत्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व (I.M.E., World Bank)।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत व अन्य विकासशील देशों में अनियंत्रित प्रवेश की सुविधा।

एक ध्रुवीय विश्व / A unipolar world

  • विश्व में एक महाशक्ति का होना।
  • 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ध्रुवीय विश्व की स्थापना हुई।
  • उस वक्त विश्व में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने वाला कोई देश नहीं था।
  • विश्व में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का बोलबाला हो गया क्योकि समाजवादी अर्थव्यवस्था असफल हो गई।
  • अमेरिका का सैन्य खर्च और सैन्य प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता का इतना अच्छा होना की विश्व मई कोई भी देश उसको चुनौती नहीं दे सकता था।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संघटनो पर भी उसका वर्चस्व था।
  • उसकी जींस, कोक, पेप्सी आदि विश्व भर की संस्कृतियों पर हावी हो रहे थे।

हथियारों की होड़ की कीमत / Cost of arms race

सोवियत संघ और पश्चिमी देशों के बीच:

सोवियत संघ ने हथियारों की होड़ में अमरीका को टक्कर दी, लेकिन प्रोद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में पश्चिमी देशों के पीछे रहा।

उत्पादकता और गुणवत्ता में भी सोवियत संघ पश्चिम के देशों से पीछे छूट गया।

शॉक थेरेपी / Shock Therapy

साम्यवाद के पतन के बाद, सोवियत संघ के गणराज्यों को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण (परिवर्तन) करने का मॉडल अपनाने का प्रस्ताव आया। इस परिवर्तन को शॉक थेरेपी कहा गया।

शॉक थेरेपी की विशेषताएँ / Features of shock therapy

निजी स्वामित्व बढ़ावा

सामूहिक फार्मों को निजी फार्मों में बदला गया

पूंजीवादी पद्धति को अपनाया

मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाया

रूसी मुद्रा में गिरावट

समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट हुई

आर्थिक विषमता बढ़ी

गरीबी में वृद्धि

माफिया वर्ग का उदय

अमीर और गरीब के बीच तीखा विभाजन हुआ

शॉक थेरेपी के परिणाम / Results of shock therapy

रूस:

  • पूर्णतया असफल, रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया.
  • रूसी मुद्रा रूबल में गिरावट.
  • समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट.
  • सरकारी रियायतें खत्म हो गईं, ज्यादातर लोग गरीब हो गए.

आर्थिक परिणाम:

  • 90% उद्योगों को निजी हाथों या कम दामों में बेचा गया, जिसे ‘इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल’ कहा गया.
  • आर्थिक विषमता में बढ़ोतरी.
  • खाद्यान्न संकट.
  • माफिया वर्ग का उदय.
  • अमीर और गरीब के बीच तीखा विभाजन.
  • कमजोर संसद और राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ, जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन.

गराज–सेल / Garage Sale

  • शॉक थेरेपी से पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई जहां पहले साम्यवादी शासन था.
  • रूस में, राज्य-नियंत्रित औद्योगिक ढांचा चरमरा उठा, 90% उद्योगों को बेचा गया, इसे ‘इतिहास की सबसे बड़ी गराज–सेल’ कहा गया.

गराज – सेल जैसी हालात उत्पन्न होने का कारण / Reasons for garage-sale like situation

महत्त्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम से कम करके आंकी गई और उन्हें औने – पौने दामों में बेच दिया गया। हालाँकि इस महा – बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों को अधिकार – पत्र दिए गए थे, लेकिन अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार पत्र कालाबाजारियों के हाथों बेच दिये क्योंकि उन्हें धन की जरुरत थी। रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई। मुद्रास्पफीति इतनी ज्यादा बढ़ी कि लोगों की जमापूँजी जाती रही।

संघर्ष व तनाव के क्षेत्र / Areas of conflict and tension

पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है। इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी भी बढ़ी है। रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले। चेकोस्लोवाकिया दो भागों – चेक तथा स्लोवाकिया में बंट गया।

अरब स्प्रिंग / Arab Spring

21 वीं शताब्दी में पश्चिम एशियाई देशों में लोकतंत्र के लिए विरोध प्रदर्शन और जन आंदोलन शुरू हुए। ऐसे ही एक आंदोलन को अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है। इसकी शुरुआत ट्यूनीशिया में 2010 में मोहम्मद बउज़िज़ी के आत्मदाह के साथ हुई।

विरोध प्रदर्शन के तरीके / Methods of protest

  • हड़ताल
  • धरना
  • मार्च
  • रैली

विरोध का कारण / Reason for protest

  • जनता का असंतोष
  • गरीबी
  • तानाशाही
  • मानव अधिकार उल्लंघन
  • भ्रष्टाचार
  • बेरोजगा

बाल्कन क्षेत्र / Balkan Region

बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में बँट गया। जिसमें शामिल बोस्निया – हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।

बाल्टिक क्षेत्र / Baltic region

बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतन्त्र घोषित किया। एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने। 2004 में नाटो में शामिल हुए।

मध्य एशिया / Central Asia

मध्य एशिया के तज़ाकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला। अज़रबैजान, अर्मेनिया, यूक्रेन, किरगिझस्तान, जार्जिया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं। मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।

पूर्व साम्यवादी देश और भारत / Former communist countries and India

पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है। दोनों का सपना बहुध्रवीय विश्व का है। दोनों देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय सम्प्रभुता, स्वतन्त्र विदेश नीति, अंतराष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है।

2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर भारत रूसी हथियारों का खरीददार। रूस से तेल का आयात। परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद। कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश।

गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स ( BRICS ) सम्मलेन के दौरान रूस – भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन के बीच रक्षा, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया।

सारांश: दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity)

दो ध्रुवीयता का अंत 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शीत युद्ध की समाप्ति और सोवियत संघ के विघटन को दर्शाता है। यह घटना विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल दिया और एक नई बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की शुरुआत को चिह्नित किया।

प्रमुख बिंदु: दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity)

  • शीत युद्ध के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ दो प्रमुख वैश्विक शक्तियां थीं, जो राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा करती थीं।
  • सोवियत संघ के विघटन ने अमेरिका को एकमात्र महाशक्ति के रूप में छोड़ दिया, लेकिन चीन, जापान और यूरोपीय संघ जैसे अन्य शक्तियों के उदय ने एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का निर्माण किया।
  • दोध्रुवीयता के अंत ने कई महत्वपूर्ण परिणामों को जन्म दिया, जिसमें शीत युद्ध के दौरान विभाजित राष्ट्रों का पुनर्मिलन, वैश्वीकरण में वृद्धि और आतंकवाद का उदय शामिल है।

निष्कर्ष: दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity)

दो ध्रुवीयता का अंत विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने विश्व व्यवस्था को स्थायी रूप से बदल दिया। इसका प्रभाव आज भी महसूस किया जा रहा है, क्योंकि दुनिया बहुध्रुवीयता और इसके साथ आने वाली चुनौतियों और अवसरों के नए युग में प्रवेश करती है।

NCERT Class 6 to 12 Notes in Hindi

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Author: NCERT

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