कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन – NCERT नोट्स PDF

NCERT कक्षा 12 राजनीति विज्ञान के अध्याय 6 “पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन” में पर्यावरणीय मुद्दों, संसाधन प्रबंधन और सतत विकास के महत्वपूर्ण पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

यहाँ कुछ महत्वपूर्ण Topic दिए गए हैं जो इस अध्याय में शामिल हैं:

  • पर्यावरणीय समस्याएं: वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जैव विविधता का नुकसान, जलवायु परिवर्तन
  • संसाधनों की राजनीति: ऊर्जा संसाधन, खनिज संसाधन, वन संसाधन, जल संसाधन
  • टिकाऊ विकास: अवधारणा, सिद्धांत, चुनौतियां, रणनीतियां

Table of Contents

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science
ChapterChapter 6
Chapter Nameपर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
CategoryClass 12 Political Science
MediumHindi

राजनीति विज्ञान अध्याय-6: पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

पर्यावरण / Environment

परि (ऊपरी) + आवरण (वह आवरण) जो बनस्पति तथा जीव जन्तुओं को ऊपर से ढके हुए है।

पर्यावरण का महत्व:

  • पर्यावरण हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है, जो हमें जीवन यापन में आवश्यक रूप से सहारा प्रदान करता है। यह शब्द “पर्यावरण” उस आवरण को सूचित करता है जो हमारे चारों ओर है और हमारी जीवनशैली को प्रभावित करता है।

पर्यावरण का अर्थ:

  • पर्यावरण शब्द का अर्थ है “जीवन का आवरण”। यह वह सभी तत्व हैं जो हमारे आस-पास मौजूद हैं, जैसे कि वायु, जल, पृथ्वी, वन्यजीव, और उनसे जुड़ी हुई सभी जीवन रूपियाँ।

पर्यावरण का ख्याल रखना:

स्वच्छता और सुरक्षा:

  • हमें अपने आस-पास के पर्यावरण की सफाई और सुरक्षा का पूर्वाग्रह करना चाहिए।

पौधशाला और वृक्षारोपण:

  • पौधशालाएं और वृक्षारोपण करके हम वातावरण को शुद्ध कर सकते हैं और हरित पर्यावरण का समर्थन कर सकते हैं।

ऊर्जा संरक्षण:

  • ऊर्जा की बचत करना और योजनाएं बनाना हमारे पर्यावरण के संरक्षण में मदद कर सकता है।

प्रदूषण नियंत्रण:

  • वायु, जल, और ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करना आवश्यक है ताकि हमारा पर्यावरण स्वस्थ रहे।

पर्यावरण और समृद्धि:

  • पर्यावरण का सही ध्यान रखना हमारे भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए, हमें अपने कार्यों में पर्यावरण का समर्थन करना और उसका अच्छा ख्याल रखना चाहिए।

प्राकृतिक संसाधन / Natural resources

परिचय:

  • मानव जीवन का अस्तित्व प्रकृति के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। हमारी प्रगति और विकास के लिए, हमने प्रकृति से विभिन्न संसाधनों का उपयोग किया है।

प्राकृतिक संसाधनों का महत्व:

  • प्राकृतिक संसाधन, मानव सभी गतिविधियों के लिए आवश्यक हैं और हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं। ये हमें ऊर्जा, खाद्य, और अन्य आवश्यक आपूर्तियाँ प्रदान करते हैं जो हमारे जीवन को सुखद बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

मुख्य प्रकार के प्राकृतिक संसाधन:

जल (Water):

  • पीने के लिए जल, कृषि, उद्योग, और ऊर्जा के लिए महत्वपूर्ण है।

वन्यजीव (Flora and Fauna):

  • वन्यजीव हमें खाद्य, और उद्योगीय सामग्री प्रदान करते हैं और वन्यजीव संरक्षण का भी हिस्सा हैं।

खनिज (Minerals):

  • खनिज हमें धातु, ऊर्जा, और निर्माण सामग्री प्रदान करते हैं जो विभिन्न उद्योगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

वायुमंडल (Atmosphere):

  • वायुमंडल हमें शुद्ध वायु, बर्फबारी, और बर्फबारी से सुरक्षित रखने में मदद करता है।

संसाधन संरक्षण:

  • हमें इन संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने और संरक्षित रखने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इनका उपयोग करने का अवसर मिले।

विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के उत्तरदायी कारक

Factors responsible for environmental pollution in the world

जनसंख्या वृद्धि:

  • अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि ने प्रदूषण को बढ़ाया है क्योंकि अधिक लोग अधिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और उत्पादन के लिए और अधिक साधनों का उपयोग कर रहे हैं।

वनों की कटाई:

  • अन्धाधुंध वनस्पति कटाई ने हमारे वायरमेंट को बिगाड़ा है, जिससे हवा में अधिक प्रदूषण हो रहा है।

उपभोक्तावादी संस्कृति:

  • अधिक उपभोक्तावाद ने विश्वभर में उत्पादन और खपत को बढ़ा दिया है, जिससे अधिक उपादू उत्पन्न हो रहा है।

संसाधनों का अत्याधिक दोहन:

  • संसाधनों का अत्यधिक उपयोग हमें स्थायी पर्यावरण समस्याओं का सामना करने के लिए करता है।

औद्योगिकीकरण:

  • औद्योगिकीकरण ने उद्योगों से निकलने वाले अधिक अपशिष्ट पदार्थों की वजह से वायरमेंट में प्रदूषण को बढ़ाया है।

परिवहन के अत्यधिक साधन:

  • बढ़ती यातायात ने वायरमेंट में वायु प्रदूषण को बढ़ावा दिया है।

पर्यावरण प्रदूषण के संरक्षण के उपाय

Measures to protect against environmental pollution

जनसंख्या नियंत्रण:

  • जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए जागरूकता और नैतिकता के साथ सामाजिक परिवर्तन करना आवश्यक है।

वन संरक्षण:

  • वन्यजीवों की सुरक्षा और वनों की सही प्रबंधन से हम प्रदूषण को कम कर सकते हैं।

पर्यावरण मित्र तकनीक का प्रयोग:

  • साथ ही, प्रौद्योगिकियों का सही तरीके से उपयोग करने के लिए हमें पर्यावरण मित्र तकनीक का अधिक प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित प्रयोग:

  • संसाधनों का संतुलित और जिम्मेदारीपूर्वक उपयोग करना हमारी प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद करेगा।

परिवहन के सार्वजनिक साधनों का प्रयोग:

  • परिवहन में सार्वजनिक साधनों का अधिक प्रयोग करना और पर्यावरण से अधिक साथी वाहनों को बढ़ावा देना हमें वायु प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है।

जन जागरूकता कार्यक्रम:

  • सामाजिक मीडिया, शिक्षा कार्यक्रम, और जनसंबंधी प्रणालियों के माध्यम से जनता में जागरूकता बढ़ाना हमें सभी को सही दिशा में बढ़ने में मदद कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:

  • पर्यावरण समस्याओं का समाधान करने के लिए हमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का समर्थन करना और सहयोग करना हमारी जिम्मेदारी है।

” लिमिट्स टू ग्रोथ ” नामक पुस्तक

Book named “Limits to Growth”

वैश्विक मामलों में सरोकार रखने वाले विद्वानों का एक समूह, जिसे “क्लब ऑफ़ रोम” कहा जाता है, ने 1972 में “लिमिट्स टू ग्रोथ” नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में बताया गया है कि जिस प्रकार से दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है, उसी प्रकार संसाधन कम होते जा रहे हैं।

रियो सम्मेलन / पृथ्वी सम्मेलन / Rio Conference / Earth Summit

1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने पर्यावरण और विकास के मुद्दों पर केन्द्रित एक सम्मेलन “रियो सम्मेलन” ब्राजील के रियो डी जनेरियो में आयोजित किया। इस सम्मेलन में 170 देशों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों, और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी थी।

रियो सम्मेलन / पृथ्वी सम्मेलन की विशेषताएँ / महत्व /

Features/Importance of Rio Conference/Earth Conference:-

पर्यावरण के मुद्दों पर ध्यान देने वाली राजनीतिक दायरे में ठोस रूप मिला।

उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के बीच पर्यावरण और विकास से संबंधित विचारों में विभिन्नता उजागर हुई।

जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, और वनस्पति से संबंधित नियमाचार तय किए गए।

“धारणीय विकास” की बात की गई, जो विकास को सहजता और पर्यावरण संरक्षण के साथ जोड़ने का प्रयास करता है।

अजेंडा – 21 / Agenda – 21

इसमे यह कहा गया कि विकास का तरीका ऐसा हो जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे।

” अवर कॉमन फ्यूचर ” नामक रिपोर्ट की चेतावनी

Warning of the report titled “Our Common Future”

1987 में आई इस रिपोर्ट में जताया गया कि आर्थिक विकास के चालू तौर तरीके भविष्य में टिकाऊ साबित नही होगे।

नोट:

  • UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) एक अक्टूबर 1972 में स्थापित किया गया था और यह पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन में सहायक रूप से कार्य करता है।

सारांश:

  • यह पुस्तकें और सम्मेलन ने पर्यावरण और विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके एक साझेदार और सतत समर्थन का माहौल बनाया है। इसने विकास को सुरक्षित और पर्यावरण को सहारा देने के लिए समृद्धि की दिशा में एक नई सोच की प्रेरणा दी है।

पर्यावरण को लेकर विकसित और विकासशील देशों का रवैया

Attitude of developed and developing countries regarding environment

1. विकसित देश:

  • उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में पर्यावरण आज मौजूद है। ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो। उनका मत है कि सभी देशों को मिलकर साझा करना चाहिए, और उन्हें सहयोग करना चाहिए ताकि समस्याएं समाधान हो सकें।

2. विकासशील देश:

  • विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतः विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँचा है। उनका दृष्टिकोण है कि यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है, तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए। उनका यह तर्क है कि विकसित देशों पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों को विकासशील देशों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वे अभी भी औद्योगिकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और उन्हें समर्थन मिलना चाहिए।

सारांश:

  • विकसित और विकासशील देशों का यह रवैया दिखाता है कि पर्यावरण संरक्षण में विश्वसनीयता और सहयोग की आवश्यकता है। समस्याएं और उनके समाधानों में मिलनसर दृष्टिकोण से यह रवैया सांघातिक है और एक साझेदार दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है।

साझी संपदा / Common property

परिभाषा:

  • साझी संपदा उन संसाधनों को कहते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है, जैसे कि मैदान, कुआँ या नदी। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह, और बाहरी अंतरिक्ष भी शामिल है।

महत्वपूर्ण समझौते:

  • अंटार्कटिका संधि (1959): इस संधि के अनुसार अंटार्कटिका क्षेत्र का सांध्य रहेगा और यह किसी भी सैन्यबल का प्रतिबंध रखेगा।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987): इस प्रोटोकॉल ने उच्च ऊष्मा वर्गीय गैसों की उत्पत्ति और उनके उपयोग को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाये।
  • अंटार्कटिका पर्यावरणीय प्रोटोकॉल (1991): यह प्रोटोकॉल ने अंटार्कटिका के प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

ग्लोबल वार्मिंग:

  • ग्लोबल वार्मिंग का सामना करने के लिए, वायुमंडल के ऊपर ओजोन की परत में हुए छेद ने सूर्य की किरणों को सीधे पृथ्वी पर पहुंचने की दर को बढ़ा दिया है। इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।

मुख्य कारण:

  • कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन: ये गैसें ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य कारण हैं, जो औद्योगिक गतिविधियों और अन्य प्रदूषणों के कारण बढ़ रही हैं।

समाप्ति:

  • इस रूपरेखा से हमें यह सिखने को मिलता है कि साझी संपदा की रक्षा के लिए कदम उठाना अत्यंत महत्वपूर्ण है और ग्लोबल वार्मिंग के प्रति सतर्कता बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।

साझी परन्तु अलग अलग जिम्मेदारी

Common but separate responsibilities

वैश्विक साझी संपदा की सुरक्षा:

  • विकसित और विकासशील देशों का दृष्टिकोण विशेषत:

विकसित देश:

  • साझी संपदा की सुरक्षा में सहमति।
  • पर्यावरण संरक्षण में साझा जिम्मेदारी।

विकासशील देश:

  • साझी संपदा को प्रदूषित करने में विकसित देशों की भूमिका पर आपत्ति।
  • विकास की प्रक्रिया में होने का दूसरा कारण।

क्योटो प्रोटोकॉल / Kyoto Protocol

क्योटो प्रोटोकॉल ने दुनिया भर में पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

समझौते और आंदोलन:

  • विकसित देशों की जिम्मेदारी को बढ़ावा देना।
  • भारत ने 2002 में हस्ताक्षर किए और इसका अनुमोदन किया।

उर्जा संरक्षण एवं वन्यजन सुरक्षा:

  • भारत ने अपनी ऊर्जा नीति में उर्जा संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं।
  • ग्रीन हाउस गैस कम करने के लिए वृक्षारोपण की वृद्धि का वादा किया है।

वन प्रांतर / Forest Province

गाँवों और देहातों में ऐसी कई जगहें हैं जो पवित्र मानी जाती हैं, जहां कहा जाता है कि देवी-देवताओं का वास होता है। इस सन्दर्भ में, वन प्रांतर एक ऐसी परंपरा को अभिव्यक्त करता है जिसमें प्राकृतिक संरचनाओं को समर्पित किया जाता है और जहां पेड़-पौधों का महत्वपूर्ण बचाव होता है।

भारत ने भी पर्यावरण सुरक्षा के विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अपना योगदान दिया है / India has also contributed to environmental protection through various programs

भारत ने पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण प्रयासों के माध्यम से वैश्विक समुदाय को एक प्रेरणादायक नमूना प्रदान किया है। यहां कुछ ऐसे पहलुओं को जानें जो भारत के योगदान को अत्यंत आकर्षक बनाते हैं:

क्योटो प्रोटोकॉल (2002): भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए और इसे अनुमोदित किया, जो वैश्विक उदारवाद की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।

जी-8 देशों की बैठक (2005): 2005 में हुई जी-8 देशों की बैठक में, विकसित देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी की दिशा में मिलकर कदम उठाया।

नेशनल ऑटो – फ्यूल पॉलिसी: स्वच्छ ईधन की प्रोत्साहना के लिए नेशनल ऑटो – फ्यूल पॉलिसी के अंतर्गत वाहनों में पर्यावरण सहित स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग किया जा रहा है।

उर्जा सरंक्षण अधिनियम (2001): भारत ने 2001 में उर्जा सरंक्षण अधिनियम को पारित किया, जिससे ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में कदम बढ़ाया गया।

बिजली अधिनियम (2003): बिजली अधिनियम के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया है, जो एक हरित और स्वच्छ भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाता है।

बायोडाइवर्सिटी और जैवसंरक्षण: भारत ने बायोडाइवर्सिटी और जैवसंरक्षण को महत्वपूर्णता प्रदान करते हुए इसे बचाने और बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों का संचालन किया है।

पेरिस समझौता (2016): भारत ने पेरिस समझौते में भाग लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है और ऊर्जा उत्पादन को साफ और अनुकूलनीय बनाने के लिए कदम उठाए हैं।

2030 तक का लक्ष्य: भारत ने 2030 तक अपने उत्सर्जन में 33-35% की कमी का लक्ष्य रखा है, जिससे वह अपने प्रति व्यक्ति के कार्बन उत्सर्जन को कम कर सके।

COP-23 में प्रतिबद्धता: भारत ने COP-23 में वृक्षारोपण और वन्यजन क्षेत्र में वृद्धि के माध्यम से 2030 तक 2.5 से 3 विलियन टन CO2 के बराबर सिंक बनाने का वादा किया है।

इस रूप में, भारत ने सुनिश्चित किया है कि वह वैश्विक पर्यावरण संरक्षा के क्षेत्र में एक सकारात्मक योगदान प्रदान कर रहा है और स्वयं को एक आदर्श वातावरण रक्षक के रूप में स्थापित कर रहा है।

पर्यावरण आंदोलन / Environmental Movement

पृथ्वी की रक्षा के लिए विश्वभर में पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं ने एक सक्रिय भूमिका निभाई है। विभिन्न देशों और क्षेत्रों में आयोजित अनेक आंदोलनों ने एक साथ आक्रमण किया है। इनमें शामिल हैं:

दक्षिणी देशों का प्रतिरोध: मैक्सिको, चिले, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, अफ्रीका, और भारत में वन आंदोलन के माध्यम से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आंदोलन किया गया है।

ऑस्ट्रेलिया में खनिज उद्योगों के खिलाफ: ऑस्ट्रेलिया में खनिज उद्योगों के खिलाफ विरोधी आंदोलन हुआ है, जिससे वहां के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा की जा रही है।

बड़े बाँधों के खिलाफ आंदोलन: थाईलैंड, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, चीन और भारत में बड़े बाँधों के खिलाफ आंदोलन हुए हैं, जिसमें नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत में प्रमुख है।

संसाधनों की भू – राजनीति / Geo-politics of resources

यूरोपीय देशों का विस्तार और आर्थिक शोषण:

  • विकसित यूरोपीय देशों ने अधीन देशों का आर्थिक शोषण करके अपने विस्तार को बढ़ाया है। उन्होंने अन्य देशों के वनों का शोषण करके अपनी नौसेना को मजबूत किया है, जिससे उनका विदेशी व्यापार बढ़ा है।

इमारती लकड़ी और नौसेना का मजबूत होना:

  • पश्चिमी देशों ने अपनी उन्नत नौसेना बनाने के लिए दूसरे देशों के वनों का शोषण किया है, खासकर इमारती लकड़ी के निर्माण के लिए।

तेल भण्डार और युद्ध के बाद का महत्व:

  • विश्व युद्ध के बाद, उन देशों की महत्वपूर्णता बढ़ी जिनके पास यूरेनियम और तेल जैसे संसाधन थे। विकसित देशों ने तेल की आपूर्ति के लिए समुद्री मार्ग का सक्रिय उपयोग किया।

जल संबंधित विवाद और दावेदार राज्य:

  • पानी के नियंत्रण और बाँटवारे के लिए देशों के बीच विवाद है, जैसे कि इजराइल, जार्डन, सीरिया, और लेबनॉन के बीच हुआ है। इन विवादों में जार्डन नदी का पानी सबसे महत्वपूर्ण है और इसके लिए चार राज्य दावेदार हैं: इजराइल, जार्डन, सीरिया, और लेबनॉन।

इस रूपरेखा ने संसाधनों की भू-राजनीति को सरल और आकर्षक भाषा में प्रस्तुत किया है, जिससे पाठकों को इस महत्वपूर्ण विषय को समझने में आसानी होगी।

मूलवासी / Native

मूलवासी और संयुक्त राष्ट्र संघ:

  • 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने उन लोगों को मूलवासी मान्यता दी, जो मौजूदा देश में बहुत दिनों से रह रहे थे और बाद में दूसरी संस्कृति या जातियों ने उन्हें अपने अधीन बना लिया। भारत में, इन्हें ‘मूलवासी’ कहा जाता है, जिसके लिए ‘जनजाति’ या ‘आदिवासी’ शब्द का प्रयोग होता है।

मूलवासी संगठन – World Council of Indigenous Peoples:

  • 1975 में मूलवासियों का एक महत्वपूर्ण संगठन ‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजन पीपल्स’ बना। इस संगठन का उद्देश्य मूलवासियों को स्वतंत्र पहचान प्रदान करना है, और उन्हें दूसरे आजादी के बाद से चल रही परियोजनाओं के कारण हो रहे विस्थापन और विकास की समस्याओं पर ध्यान देना है।

इस रूपरेखा ने मूलवासियों के बारे में जानकारी को सुझावपूर्ण और व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किया है, जिससे पाठकों को इस महत्वपूर्ण विषय की सार्थकता मिलेगी।

आशा करते है इस पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

Best Notes & Questions

Class 10 Hindi Model Paper NCERT |CBSE |RBSE | UP Board | MP Board | Bihar Board |Haryana Board कक्षा 10वीं के छात्रों के लिए है. 

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Author: NCERT

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