कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: नियोजित विकास की राजनीति – NCERT नोट्स PDF

स्वतंत्र भारत में नियोजित विकास की राजनीति कक्षा 12 राजनीति विज्ञान के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए इन विस्तृत NCERT नोट्स के साथ, आप योजना आयोग, पंचवर्षीय योजनाओं और विकास के विभिन्न पहलुओं की गहन समझ प्राप्त करेंगे।

यह सम्पूर्ण नोट्स आपको निम्नलिखित प्रदान करता है:

  • योजना आयोग का गठन और उद्देश्य: भारत में नियोजित विकास के इतिहास और योजना आयोग की भूमिका को समझें।
  • पंचवर्षीय योजनाओं का विश्लेषण: प्रत्येक पंचवर्षीय योजना के लक्ष्यों, रणनीतियों और उपलब्धियों का गहन अध्ययन करें।
  • विकास के विभिन्न पहलुओं की खोज: कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक न्याय जैसे क्षेत्रों में विकास का मूल्यांकन करें।
  • समकालीन मुद्दों पर चर्चा: नियोजित विकास की चुनौतियों, असमानताओं और वैकल्पिक दृष्टिकोणों पर विचार-विमर्श करें।

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

Table of Contents

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science
ChapterChapter 3
Chapter Nameनियोजित विकास की राजनीति
CategoryClass 12 Political Science
MediumHindi

राजनीति विज्ञान अध्याय-3: नियोजित विकास की राजनीति

नियोजन / Planning

  • नियोजन का आदान-प्रदान करना विकसित समाज और आर्थिक स्थिति को सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका मतलब है हमें उपलब्ध संसाधनों का सबसे बेहतर उपयोग करने के लिए सबसे अच्छी योजना बनाना और इसे अनुसरण करना।

1. विकास की दिशा में बदलाव:

  • सही नियोजन से हम विभिन्न क्षेत्रों में विकास की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर सकते हैं। यह हमें सामाजिक और आर्थिक समृद्धि की दिशा में सार्थक योजनाएं बनाने का अवसर प्रदान करता है।

2. उत्पादन की वृद्धि:

  • नियोजन के माध्यम से हमें उत्पादन में वृद्धि करने का विचार करना चाहिए। सुसंगत योजनाएं नई तकनीकों का सही उपयोग करके उत्पादन को मजबूती देने में सहायक हो सकती हैं।

3. रोजगार के अवसर:

  • नियोजन के माध्यम से हम रोजगार के अवसरों में वृद्धि कर सकते हैं, जिससे युवा शक्ति को सही मार्गदर्शन प्राप्त होगा और उन्हें सुरक्षित और सकारात्मक

भारत के विकास का अर्थ

Meaning of India’s development

सामाजिक न्याय और आर्थिक संवृद्धि:

  • आजादी के बाद, सभी को मिली थी एक सामान्य धारा की भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और सामाजिक न्याय दोनों हैं। यह सामाजिक समृद्धि के साथ साथ आर्थिक समृद्धि को भी समेटता है।

सरकार की भूमिका:

  • इसके साथ ही, सभी सहमत थे कि आर्थिक विकास और सामाजिक-आर्थिक न्याय को सिर्फ व्यापारिक वर्ग, उद्योगपति और किसानों के ही द्वारा नहीं, बल्कि सरकार की प्रमुख भूमिका के माध्यम से भी बढ़ावा देना चाहिए।

पश्चिमी देशों की दृष्टि:

  • आजादी के समय, ‘विकास’ का मानक पश्चिमी देशों के साथ तुलना में था। हमें आधुनिकता का मतलब यह नहीं था कि हम उनकी अनुकरणीयता की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि हमें अपनी विशेषता को साकार करना था।

इस रूपरेखा में, हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि भारत के विकास का मायना केवल आर्थिक संवृद्धि में ही नहीं, बल्कि सामाजिक समृद्धि और सरकारी नेतृत्व के माध्यम से समृद्धि की नई दिशा में भी है।

वामपंथी / Leftist

गरीबों की आवाज:

  • वामपंथी विचारधारा के अनुयायी ऐसे व्यक्तियों को दर्शाते हैं, जो समाज में असमानता और गरीबी के खिलाफ खड़े होकर गरीबों की आवाज बनते हैं। उनका मुख्य मकसद समृद्धि की दिशा में सामाजिक संवाद बढ़ाना है।

राहत पहुंचाने की नीतियों का समर्थन:

  • ये व्यक्तियों गरीबों की स्थिति में सुधार करने के लिए उन नीतियों का समर्थन करते हैं जो गरीबों को राहत पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं। उनका मानना है कि समृद्धि का सफर सबके लिए होना चाहिए।
  • वामपंथी विचारधारा का मुख्य उद्देश्य गरीबों के हित में काम करना है और समृद्धि की दिशा में समाज में बदलाव लाना है। उन्हें गरीबी और असमानता के खिलाफ लड़ने का संकल्प है, जिससे समृद्धिशील समाज की दृष्टि से गरीबों को भी सम्मान और समृद्धि का हिस्सा बनने का मौका मिले।

दक्षिणपंथी / Right winger

खुली प्रतिस्पर्धा और बाजार मुल्य:

  • दक्षिणपंथी दृष्टिकोण वे हैं जो खुली प्रतिस्पर्धा और बाजार मुल्यों का पूर्ण समर्थन करते हैं। उनका मानना ​​है कि स्वतंत्र और उद्यमिता से भरा बाजार विकास की सार्थक दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

सरकारी हस्तक्षेप के खिलाफ:

  • इनका सिद्धांत है कि सरकार को अर्थव्यवस्था में गैर आवश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। ये मानते हैं कि बाजारी सुरक्षितता और संवेदनशीलता के साथ स्वतंत्रता को बढ़ावा देने में सक्षम हैं और इससे अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है।
  • दक्षिणपंथी दृष्टिकोण ने बाजारी सुरक्षितता और स्वतंत्रता के माध्यम से आर्थिक विकास की समर्थन की प्रेरणा दी है। उनका विश्वास है कि इस तरह के सांविदानिक उपाय से ही समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।

भारतीय विकास के मॉडल

Indian development models

भारतीय विकास का सफर दो प्रमुख मॉडलों के माध्यम से हुआ है – पहला है उदारवादी/पूंजीवादी मॉडल और दूसरा है समाजवादी मॉडल। भारत ने इस मामूले में स्वयं को स्थापित करते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया है, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को संजीवनी मिली।

1. उदारवादी / पूंजीवादी मॉडल:

  • यह मॉडल उरोप और अमेरिका के अधिकांश देशों ने अपनाया। इसमें सभी वस्तुओं का उत्पादन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाता है और सरकार का हस्तक्षेप संविदानिक सीमा में होता है।

2. समाजवादी मॉडल:

  • यह मॉडल सोवियत रूस में अपनाया गया था, जिसमें सभी चीजों का उत्पादन सरकार द्वारा किया जाता है और निजी क्षेत्र की अनुपस्थिति होती है।
  • भारत ने इस महत्वपूर्ण संघर्ष में मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया है, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों को समाहित किया गया है। इस समृद्धि की दिशा में कड़ा प्रयास और अभ्यंतरव्यापी सुधारों के माध्यम से, भारत अपने विकास की कहानी में नए युग की ओर बढ़ रहा है।

स्वतंत्रता के बाद भारत में अपनाए जाने वाले आर्थिक विकास के मॉडल से सम्बन्धित सहमति तथा असहमति के विभिन्न क्षेत्रों

स्वतंत्रता के बाद भारत में अपनाए जाने वाले आर्थिक विकास के मॉडल से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में विचार विमर्श हो रहा है। इस सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं, जो नीति निर्माताओं और समाज के बीच में विभाजन उत्पन्न कर सकते हैं। यहां कुछ क्षेत्रों पर लोगों के विचार हैं:

  1. सरकारी हस्तक्षेप पर असहमति:
  • कुछ विचारकों का मानना है कि सरकार को अधिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे अर्थिक विकास में असमानता बढ़ सकती है।
  • उनका तर्क है कि विशेषाधिकार और नियंत्रण के बिना ही बाजार को स्वतंत्रता देना चाहिए ताकि सामाजिक न्याय बना रहे।
  1. उद्योग बनाम कृषि और निजी बनाम सार्वजनिक क्षेत्र:
  • कुछ लोग उद्योग और कृषि, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के बीच आर्थिक विकास में सहमति नहीं करते हैं।
  • इसमें असमानता बढ़ने और ग्रामीण क्षेत्रों के हित में कमी होने का खतरा है, जिससे समृद्धि का सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण दूर हो सकता है।

इस रूपरेखा में हम देख सकते हैं कि भारत में आर्थिक विकास के मॉडल के संबंध में विभिन्न मत हैं, लेकिन एक सामान्य सुझाव यह है कि समृद्धि का मार्ग विकास और सामाजिक न्याय के संतुलन के साथ होना चाहिए। विकास के प्रक्रिया में सामाजिक और आर्थिक समरसता को बनाए रखने के लिए नीतियों को सावधानीपूर्वक रचना चाहिए ताकि देश के सभी वर्गों को उचित और समान लाभ हो सके।

मिश्रित अर्थव्यवस्था / Mixed economy

विशेषता:

  • मिश्रित अर्थव्यवस्था ने समाजवाद और पूंजीवाद को संगत रूप से जोड़ने का काम किया है।
  • यह उद्यमिता और सामाजिक न्याय के संतुलन को बनाए रखने का प्रयास करती है।

उद्यमों का विकास:

  • छोटे उद्योगों के प्रोत्साहन से निजी क्षेत्र में स्वयंरूपी विकास हो रहा है।
  • इससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो रही है और सामाजिक न्याय में सुधार हो रहा है।

सरकारी जिम्मेदारी:

  • इस अर्थव्यवस्था में, बड़े उद्योगों के विकास की जिम्मेदारी सरकार ने ली है।
  • सरकारी उद्यमों के माध्यम से सामाजिक न्याय और सामृद्धि को बढ़ावा मिला है।

सामाजिक समृद्धि:

  • मिश्रित अर्थव्यवस्था ने समाज में समृद्धि की दिशा में सकारात्मक परिवर्तन किया है।
  • विभिन्न वर्गों को समृद्धि के लाभ में हिस्सा मिला है।

सारांश:

मिश्रित अर्थव्यवस्था ने अपने संबंधित तत्वों को एक साथ मिलाकर विकास का समर्थन किया है और समाजवाद की दृष्टि से सामाजिक न्याय को बनाए रखने का प्रयास किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था ने इस दिशा में अहम कदम बढ़ाया है, जिससे नये भारत की दिशा में प्रगति हुई है।

बोम्बे प्लान / Bombay Plan

प्रस्तावना:

  • 1944 में, भारतीय उद्योगपतियों ने “बोम्बे प्लान” का प्रस्ताव तैयार किया।
  • इसका उद्देश्य था देश की अर्थव्यवस्था को नियोजित रूप से चलाना और उद्योगों को विकसित करना।

उद्देश्य:

  • बोम्बे प्लान का मुख्य उद्देश्य था देश में उद्योगों के विकास को बढ़ावा देना और उन्हें आर्थिक स्थिरता में मदद करना।

विशेषताएं:

  • यह नीति ने देश में उद्योगों के लिए स्थायी नीति की आवश्यकता को पहचाना।
  • छोटे उद्योगों को प्रोत्साहित किया और उन्हें बड़े उद्योगों के साथ समर्थ बनाने के लिए उत्साहित किया।
  • यह एक सुदृढ़ आर्थिक नीति का प्रमुख अंश था जो देश को स्वावलंबी बनाने में काम किया।

प्रभाव:

  • बोम्बे प्लान के प्रभाव से उद्योगों का विकास हुआ और देश के आर्थिक स्थिरता में सुधार हुआ।
  • यह नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ और स्वावलंबी बनाने में मदद की और उद्यमिता को बढ़ावा दिया।
  • बोम्बे प्लान ने भारतीय अर्थव्यवस्था को संबोधित करते हुए विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
  • इससे देश ने आर्थिक उत्थान की दिशा में प्रगति की और नए भारत की दिशा में कदम बढ़ाया।

योजना आयोग / Planning Commission

प्रस्तावना:

  • भारत के स्वतंत्रता के बाद, मार्च 1950 में, योजना आयोग का गठन हुआ। इसे भारत सरकार ने विकास की रणनीति और मार्गदर्शन के लिए स्थापित किया।

स्थापना:

  • योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में हुई थी।
  • प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष थे, जो इसके सचिव भी थे।

उद्देश्य:

  • योजना आयोग का मुख्य उद्देश्य भारत के विकास की रणनीति और मार्गदर्शन करना था।
  • इसने देश के विकास के लिए सुझाव और योजनाओं की रचना की।

क्रियाएं:

  • योजना आयोग ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए योजनाएं बनाई और लागू की।
  • इसने समृद्धि और सामाजिक न्याय के साथ विकास के माध्यमों को निर्धारित किया।

महत्व:

  • योजना आयोग ने भारत के विकास के लिए केंद्रीय और प्रभावशाली भूमिका निभाई।
  • इसने देश को विकास के क्षेत्र में मार्गदर्शन किया और रणनीतियों का निर्धारण किया।
  • योजना आयोग ने भारत को विकास की दिशा में मार्गदर्शन किया और विभिन्न क्षेत्रों में समृद्धि के लिए योजनाएं बनाई।
  • इसकी भूमिका ने देश को आर्थिक और सामाजिक स्तर पर सुधार करने में मदद की।

योजना आयोग की कार्यविधि

Procedure of Planning Commission

पंचवर्षीय योजनाएं:

  • भारतीय योजना आयोग ने सोवियत संघ की अनुकरणीयता को ध्यान में रखते हुए पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाया।

आमदनी और खर्च की योजना:

  • भारत सरकार ने अपनी दृष्टि में भविष्य के पांच वर्षों के लिए एक योजना तैयार करने का निर्णय लिया है।
  • इसमें आमदनी और खर्च की योजना तैयार की जाएगी।

बजट का बाँटवारा:

  • इस योजना के तहत, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा जाएगा।

गैरयोजना – व्यय:

  • एक हिस्सा गैरयोजना – व्यय का होगा, जिसमें सालाना आधार पर दिन दैनिक मदों पर खर्च किया जाएगा।

योजना व्यय:

  • दूसरा हिस्सा योजना व्यय का होगा, जिसमें विकास के लिए विशेष योजनाओं के लिए धन का व्यय किया जाएगा।

महत्वपूर्ण दिशा:

  • यह कार्यविधि नए भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जो आर्थिक स्थिति में सुधार और विकास की साधना करता है।

समापन:

  • योजना आयोग की इस कार्यविधि से स्पष्ट है कि भारत ने अपने विकास की राह में कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ने का संकल्प किया है। इससे देश को समृद्धि और सामाजिक न्याय की दिशा में मजबूती मिलेगी।

योजना आयोग के मुख्य कार्य

Main functions of Planning Commission

  1. संसाधनों और पूंजी का आंकलन:
  • योजना आयोग का पहला कार्य है देश के संसाधनों और पूंजी का विश्लेषण और अनुमान लगाना।
  • इससे योजना आयोग देश की आर्थिक स्थिति को समझने में सहायक होता है।
  1. विकास की योजनाएं बनाना:
  • योजना आयोग विकास की योजनाएं बनाता है और उन्हें प्राथमिकता देने में मदद करता है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य देश को समृद्धि और सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ाना है।
  1. बाधक कारकों का पता लगाना:
  • योजना आयोग विकास को बाधित करने वाले कारकों की जाँच करता है और उन्हें पहचानता है।
  • इससे समस्याओं को सुधारने के लिए सही कदम उठाया जा सकता है।
  1. प्रगति की योजना का मूल्यांकन:
  • योजना आयोग पहले तय की गई योजनाओं की प्रगति का मूल्यांकन करता है।
  • इससे देखा जा सकता है कि कौन-कौन सी योजनाएं सफल रही हैं और कहाँ सुधार की आवश्यकता है।

समापन:

  • योजना आयोग के इन मुख्य कार्यों से स्पष्ट है कि यह देश के विकास की दिशा में सकारात्मक प्रयास कर रहा है और विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की संभावना बढ़ा रहा है।

नीति आयोग / NITI Aayog

नीति आयोग, जो 1 जनवरी 2015 से योजना आयोग की जगह स्थान ले रहा है, एक महत्वपूर्ण संस्था है जो भारतीय समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी

नीति आयोग का पूरा नाम “National Institute For Transforming India” है,

जो खुद ही इसके महत्व को दर्शाता है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को प्रौद्योगिकी, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सुधारना है।

नीति आयोग का निर्माण उद्दीपकांत आचार्य कमेटी की सिफारिशों पर हुआ था, जिसका मुख्य उद्देश्य था एक नई सोच और दृष्टिकोण के साथ भारत के विकास को बढ़ावा देना। नीति आयोग के गठन के बाद, यह विभिन्न क्षेत्रों में सुधार के लिए नीतियों और योजनाओं को विकसित करने का कार्य कर रहा है।

इस संस्था का अद्भुत योजना और नीतियों का उदाहरण है कि यह कैसे देश को एक नए दिशा में ले जा सकता है, साथ ही भारतीय नागरिकों को अधिक समृद्धि और विकास की दिशा में मदद कर सकता है। नीति आयोग की उपस्थिति से हम एक नए और सुरक्षित भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जिसमें समृद्धि और सामरिक समाज का निर्माण हो सके।

राष्ट्रीय विकास परिषद / National Development Council

  • राष्ट्रीय विकास परिषद, जिसकी स्थापना 6 अगस्त, 1952 में हुई, एक महत्वपूर्ण संस्था है जो भारतीय राष्ट्र के विकास में मुख्य भूमिका निभाती है। इसका मुख्य उद्देश्य योजनाओं के निर्माण में राज्यों की भागीदारी को सुनिश्चित करना है और इसी के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना की गई थी।
  • इस परिषद द्वारा देश की पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन किया जाता है, जो विकास के क्षेत्र में नीतियों को सामग्री स्थापित करने में मदद करता है। इसके अध्यक्ष का पद देश के प्रधानमंत्री को सौंपा जाता है, जो देश के सर्वोच्च नेता होते हैं। साथ ही, इसमें भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और योजना आयोग के सदस्य भी शामिल होते हैं, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर समृद्धि और विकास की योजनाएं तैयार की जा सकती हैं।
  • राष्ट्रीय विकास परिषद का गठन एक सामग्री और सुरक्षित भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिससे देश के विकास में एक संबंधीत और सामग्री योजना का निर्माण हो सकता है।

प्रथम पंचवर्षीय योजना / First Five Year Plan

प्रथम पंचवर्षीय योजना, जो 1951 से 1956 तक चली, भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने का एक महत्वपूर्ण कदम था। इस योजना का मुख्य फोकस कृषिक्षेत्र पर था और इसके तहत बाँधों और सिचाई क्षेत्र में भी विशेष निवेश किया गया।

इस पहले पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत, भागड़ा-नांगल परियोजना एक उदाहरण है जिसने देश के कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। यह योजना न केवल खेती में वृद्धि को बढ़ाने का प्रयास कर रही थी, बल्कि इसने बाँधों और सिचाई के माध्यम से जल संचार को सुधारने का उद्देश्य भी रखा था।

इस पहले योजना के माध्यम से भारत ने अपने कृषि क्षेत्र को मजबूत करने का प्रयास किया और जल संचार में सुधार करने के लिए कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का आयोजन किया। इससे देश ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति की।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना / Second Five Year Plan

द्वितीय पंचवर्षीय योजना, जो 1956 से 1961 तक चली, ने भारतीय अर्थव्यवस्था को और भी मजबूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस योजना का मुख्य ध्यान उद्योगों के विकास पर था, जिससे देश में और अधिक रोजगार और आर्थिक समृद्धि हो सके।

इस योजना में, सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाने का निर्णय लिया, जिससे देश के उद्योगीय विकास को बढ़ावा मिला। यह योजना ने विभिन्न क्षेत्रों में नई योजनाओं का आयोजन किया और देश को विशेष रूप से उद्योगिक दृष्टिकोण से समृद्धि प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन किया।

इस योजना के योजनाकार पंडित जवाहरलाल नेहरू के आधीन स्थित पंडित पी.सी. महालनोबीस थे, जिन्होंने अपने उद्दीपन और विचारशीलता के माध्यम से देश को और अधिक आर्थिक समृद्धि की दिशा में प्रेरित किया।

विकास का केरल मॉडल

“विकास का केरल मॉडल” एक अद्वितीय निर्माण है जो भारतीय राज्य केरल में विकास और नियोजन की दृष्टि से अपनाया गया है। इस मॉडल में शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार, कारगर खाद्य-वितरण, और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जा रहा है, जिससे समृद्धि और सामर्थ्य में सुधार हो रहा है।

इस मॉडल के प्रमुख रचनाकारों में जे.सी.कुमारप्पा जैसे गांधीवादी अर्थशास्त्री शामिल हैं, जिन्होंने विकास की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की, जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दिया गया।

चौधरी चरण सिंह ने इस मॉडल के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केंद्र में रखने की बात प्रभावशाली तरीके से उठाई।

इस मॉडल ने भूमि सुधार के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जैसे कि जमींदारी प्रथा की समाप्ति, जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करना (चकबंदी), और जो काश्तकार किसी दूसरे की जमीन बटाई पर जोत-बो रहे थे, उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने व भूमि स्वामित्व सीमा कानून का निर्माण किया।

1960 के दशक में, सूखा और अकाल के कारण कृषि की दशा बद से बदतर हो गई, जिससे खाद्य संकट उत्पन्न हुआ और गेहूं का आयात करना पड़ा। इस मॉडल ने इस चुनौती का सामना करने के लिए उपायों का आयोजन किया और भूमि सुधार, शिक्षा, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधारों के माध्यम से केरल को एक सुदृढ़ और समृद्धिशील राज्य बनाने में सफलता प्राप्त की।

हरित क्रांति / Green Revolution

सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई है, जिसे हम “हरित क्रांति” कहते हैं। इस नई पहल में, सरकार ने एक विशेष ध्यान दिया है कि जहां सिचाई सुविधा मौजूद है और किसान समृद्ध भी है, वहां अधिक संसाधन लगाने का निर्णय किया जाए।

इस पहल में, सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक, और बेहतर सिंचाई सुविधा को बढ़ावा देने के लिए बड़े अनुदानों की घोषणा की है। इसके साथ ही, उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदने की गारंटी दी गई है। इन संयुक्त प्रयासों को हम “हरित क्रांति” कहते हैं, जिसके जनक भारत में एम.एस. स्वामीनाथन कहे जाते हैं।

सरकार के प्रमुख पहलुओं में है:

  1. शिक्षा और स्वास्थ्य: यह मॉडल ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में विकास के लिए साकारात्मक प्रयास किए है।
  2. भूमि सुधार: उपज की वृद्धि के लिए, इसने भूमि सुधार के क्षेत्र में कई कदम उठाए हैं, जैसे कि जमींदारी प्रथा की समाप्ति और जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ करना (चकबंदी)।
  3. अनुदानित मूल्य पर सामग्री उपलब्ध कराना: सरकार ने उच्च गुणवत्ता की बीज, उर्वरक, कीटनाशक, और सिंचाई सुविधा को बढ़ावा देने के लिए अनुदानों की प्रदान की है।

साकारात्मक परिणामों की उम्मीद:

हरित क्रांति की यह पहल उम्मीद है कि इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी, खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा और अधिक लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा। इसके माध्यम से, भारत एक औरत्नित और सशक्त अर्थव्यवस्था की दिशा में कदम बढ़ाएगा।

हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव / Positive effects of green revolution

हरित क्रांति ने भारतीय खेती में कई सकारात्मक परिणामों को साकारात्मक रूप से प्रेरित किया है:

  1. खेती की पैदावार में वृद्धि: हरित क्रांति ने खेती की पैदावार में वृद्धि को प्रोत्साहित किया है। नई तकनीकों और उन्नत बीजों का उपयोग करने से किसानों को अधिक उत्पादित करने का अवसर मिला है।
  2. गेहूँ की पैदावार में वृद्धि: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप, गेहूँ की पैदावार में भी सुधार हुआ है। यह खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करता है।
  3. प्रदेशों की समृद्धि: हरित क्रांति ने भारत के कुछ प्रमुख प्रदेशों को समृद्धि में सुधार किया है, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश। इन इलाकों में खेती में वृद्धि ने आर्थिक स्थिति में सुधार किया है।
  4. किसानों की स्थिति में सुधार: हरित क्रांति ने किसानों की स्थिति में सुधार किया है। उन्हें उन्नत तकनीकों, बीजों, और सामग्रियों का उपयोग करने का अवसर मिला है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है।

समृद्धि और सुधार से भरी हरित क्रांति ने खेती को नए आयाम दिए हैं, जिससे भारतीय कृषि को मजबूती मिली है।

हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव / Negative effects of green revolution

हरित क्रांति के कुछ नकारात्मक परिणाम भी हैं, जो विभिन्न प्रकार से सामाजिक और आर्थिक असमानता को बढ़ा सकते हैं:

  1. क्षेत्रीय और सामाजिक असमानता: हरित क्रांति ने किसानों के बीच क्षेत्रीय और सामाजिक असमानता को बढ़ावा दिया है। उन इलाकों में जहां सिचाई सुविधा नहीं है, वहां किसानों को अधिक संसाधन मिलने में कठिनाई हो रही है, जिससे असमानता बढ़ रही है।
  2. गरीब और बड़े भूस्वामी के बीच अंतर: हरित क्रांति के कारण, गरीब किसान और बड़े भूस्वामी किसानों के बीच अंतर में वृद्धि हो रही है। बड़े किसानों को उन्नत तकनीक और अन्य सुविधाएं अधिक मिल रही हैं, जबकि गरीब किसान इससे वंचित हैं। इससे वामपंथी संगठनों का उभार हो रहा है।
  3. मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उभार: हरित क्रांति ने मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों को अधिक लाभ पहुंचाने में मदद की है। इससे उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है, जबकि अन्य श्रेणियों के किसानों को इसका उचित फायदा नहीं हो पा रहा है।

नकारात्मक प्रभावों का सामना करते हुए हमें समृद्धि के माध्यम से सामाजिक न्याय और समानता की प्रोत्साहना करने की आवश्यकता है, ताकि हर किसान को विकास का अवसर मिले।

श्वेत क्रान्ति / White revolution

गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपरण परिसंघ के ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ वर्गीज कुरियन ने ने एक नए क्रांतिकारी मॉडल की शुरूआत की है, जिसे हम ‘श्वेत क्रान्ति’ कह सकते हैं। इस नई पहल का मुख्य उद्देश्य था देशभर के 25 लाख दूध उत्पादकों को साथ मिलकर एक सामूहिक और समृद्धि शैली में काम करना।

कुरियन की यह महत्वपूर्ण भूमिकाएँ थीं:

  1. मिल्कमैन ऑफ इंडिया के रूप में: कुरियन ने अपनी अनोखी योजना के बारे में “मिल्कमैन ऑफ इंडिया” के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। इसमें वह देशभर के दूध उत्पादकों को मिलकर एक सामूहिक नेतृत्व करने का कारगर उदाहरण बने।
  2. ‘अमूल’ की शुरूआत: कुरियन ने ‘अमूल’ ब्रांड की शुरूआत की, जो गुजरात के लाखों दूध उत्पादकों को संगठित करते हैं। इसके माध्यम से उन्होंने न केवल एक सशक्त उद्यमिता की स्थापना की, बल्कि उन्होंने देशभर में एक उदार और सशक्त दुग्ध उत्पादन समृद्धि मॉडल की स्थापना की।

श्वेत क्रान्ति ने बनाया एक नया भविष्य:

श्वेत क्रान्ति के जरिए, वर्गीज कुरियन ने दिखाया है कि सहकारी समृद्धि मॉडल से हम अधिक संप्रेषण और सामूहिक उत्थान की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। इस मॉडल ने भारतीय दुग्ध उत्पादन को सार्वजनिक और बेहतर बनाने के लिए एक प्रेरक उदाहरण स्थापित किया है जिसे आगे बढ़ाना चाहिए।

आशा करते है इस पोस्ट नियोजित विकास की राजनीति में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान : नियोजित विकास की राजनीति पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

Best Notes & Questions

Class 10 Hindi Model Paper NCERT |CBSE |RBSE | UP Board | MP Board | Bihar Board |Haryana Board कक्षा 10वीं के छात्रों के लिए है. 

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Author: NCERT

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