NCERT Class 9 History Chapter 3 अपवाह|समकालीन भारत I
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9th Class Geography Chapter 3 Drainage Notes in Hindi | कक्षा 9 भूगोल नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |Class 9 Bhuugol Chapter 3 Apavaaha Notes PDF Hindi me Notes PDF 2023-24 New Syllabus ke anusar.
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Geography | भूगोल |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | अपवाह |
Category | Class 9 Geography Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 09 भूगोल
अध्याय = 3
अपवाह
Drainage
भारत में अपवाह तंत्र
- अपवाह शब्द एक क्षेत्र के नदी तंत्र की व्याख्या के लिए उपयोग होता है।
अपवाह-
- किसी क्षेत्र के जल का छोटी-छोटी नदियों द्वारा विकास या बहाकर ले जाना। अथवा किसी क्षेत्र के नदी तंत्र को अपवाह कहते है।
अपवाह तंत्र-
- किसी क्षेत्र विशेष की जल प्रवाह प्रणाली को अपवाह तंत्र कहते है। या किसी क्षेत्र के जल को कौन-कौन सी नदियाँ किस प्रकार बहाकर ले जाती है उसे अपवाह तंत्र कहा जाता है।
नदी तंत्र-
- मुख्य नदी उसकी सहायक नदियों एवं वितरिकाओं के समूह को नदी तंत्र कहते हैं, छोटी-छोटी धाराएँ आकर जब एक साथ मिल जाती है तो एक मुख्य नदी का निर्माण करती है।
- मुख्य नदी अंततः बड़े जलाशय जैसे- झील, समुद्र, या महासागर में विलीन हो जाती है, अपवाह द्रोणी – एक नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे एक अपवाह द्रोणी कहते हैं।
अपवाह द्रोणी-
- एक नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे नदी द्रोणी या अपवाह द्रोणी कहते हैं, जब कोई भी ऊंचा क्षेत्र जैसे पर्वतीय उच्च भूमि दो पड़ोसी अपवाह द्रोणीयों को एक दूसरे से अलग करता है तो ऐसे क्षेत्र को या भूमि को जल विभाजक कहते हैं।
जल विभाजक-
- दो अपवाह द्रोणीयों के मध्य स्थित उच्च स्थलीय भाग को जल विभाजक कहते हैं।
- विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी अमेजन नदी है, भारत में गंगा नदी की अपवाह द्रोणी सबसे बड़ी है।
भारत में अपवाह तंत्र
- भारत के अपवाह तंत्र का नियंत्रण मुख्यतः भौगोलिक आकृतियों के द्वारा होता है।
- इस आधार पर भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है।
1. हिमालय की नदियाँ तथा
2. प्रायद्वीपीय नदियाँ - भारत के 2 मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों से उत्पन्न होने के कारण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ एक दूसरे से भिन्न है।
- हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं।
- इनमें वर्ष भर पानी रहता है, क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है।
- हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय श्रृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं।
- इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गॉर्जों का निर्माण किया है।
गार्ज-
- एक संकरी, गहरी और लगभग खड़े किनारे वाली घाटी। इसे महाखड्ड भी कहतें हैं, हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लंबे रास्ते को तय करती है, यह अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती है, यह नदियाँ अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू को वहन करती है, मध्य और निचले भागों में यह नदियाँ विसर्प, गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत से अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती है।
- विसर्प- विषम तथा समतल मार्ग में नदी का प्रवाह घुमावदार हो जाता है इसे विसर्प कहते हैं
- गोखुर झील- बाढ़ के मैदानों में गाय के खुर की आकृति की झील।
- बाढ़ का मैदान- नदी के निचले भाग में नदी की चौड़ी समतल घाटी बाढ़ के समय इसमें पानी भर जाता है, यह पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती है।
प्रायद्वीपीय नदियाँ
- प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती है, इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है।
- शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है।
- हिमालय की नदियों की तुलना में प्रायद्वीपीय नदियों की लंबाई कम है, यह नदियाँ छिछली हैं, प्रायद्वीपीय नदियों में से कुछ केंद्रीय उच्च भूमि से निकलती है, तथा पश्चिम की तरफ बहती है, प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती है तथा बंगाल की खाड़ी की तरफ बहती है।
हिमालय की नदियाँ
- सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ है, यह नदियाँ लंबी है, तथा अनेक महत्वपूर्ण एवं बड़ी सहायक नदियाँ इसमें मिलती है, किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों को नदी तंत्र कहा जाता हैं।
सिंधु नदी तंत्र
उद्गम- सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। (बोखर-चू हिमनद से)
पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में लद्दाख (दर्दिस्तान नामक स्थान ) में प्रवेश करती है।
इस भाग (लद्दाख व गिलगित मे प्रवाहित होने के दौरान) में यह एक बहुत ही सुंदर दर्शनीय गार्ज का निर्माण करती है, इस क्षेत्र में बहुत ही सहायक नदियाँ इसमें मिलती है।
सहायक नदियाँ- जास्कर, नुबरा, श्योक तथा हुंजा।
सिंधु नदी बलूचिस्तान तथा गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्रों से बाहर निकलती है।
झेलम, चेनाब, रावी व्यास व सतलुज आपस में मिलकर पाकिस्तान में मिथनकोट के पास सिंधु नदी में मिल जाती है, इसके बाद यह नदी दक्षिण की तरफ बहती है, अंत में कराची से पूर्व की ओर अरब सागर में मिल जाती है।
- सिंधु नदी के मैदान की ढाल बहुत ही धीमी है, सिंधु नदी द्रोणी का एक तिहाई से कुछ अधिक भाग भारत के जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल तथा पंजाब में तथा शेष भाग पाकिस्तान में स्थित है, भारत में लम्बाई- 1,114 कि.मी, कुल लंबाई- 2900 किलोमीटर लगभग (2,880 कि.मी), विशेषता- विश्व की सबसे लंबी नदियों में से एक है।
सिंधु जल समझौता
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गंगा नदी तंत्र
- उद्गम- गंगा की मुख्य धारा ‘भागीरथी’ गंगोत्री हिमानी से निकलती है।
- सतोपथ हिमानी से निकली अलकनंदा उत्तराखंड के देवप्रयाग में जब भागीरथी से मिलती है तो यह ‘गंगा नदी’ कहलाती है।
- हरिद्वार के पास गंगा पर्वतीय भागों को छोड़कर मैदानी भागों में प्रवेश करती है।
- हिमालय से निकलने वाली बहुत सी नदियाँ आकर गंगा में मिलती है।
- सहायक नदियाँ- यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी।
- यमुना नदी- उद्गम- यमुनोत्री हिमानी से, यह गंगा के दाहिने किनारे के समानांतर बहती है, यह गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है, जो इसके पश्चिम में प्रवाहित होती है, यह नदी इलाहाबाद के निकट गंगा में मिल जाती है।
- घाघरा गंडक तथा कोसी नेपाल हिमालय से निकलती है।
- इन नदियों के कारण प्रत्येक वर्ष उत्तरी मैदान के कुछ हिस्सों में बाढ़ आती है जिससे बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान होता है।
- यह वह नदियाँ है जो मिट्टी को उपजाऊ पन प्रदान कर कृषि योग्य भूमि बना देती है।
- प्रायद्वीपीय उच्च भूमि से आने वाली मुख्य सहायक नदियाँ चंबल, बेतवा तथा सोन हैं।
- ये अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों से निकलती है।
- इनकी लंबाई कम तथा इन में पानी की मात्रा भी कम होती हैं।
- चंबल नदी विंध्यांचल पर्वत में जानापाव की पहाड़ियों से निकलती है तथा इटावा में यमुना में मिल जाती है।
- बेतवा नदी रायसेन जिला मध्य प्रदेश से निकलती है तथा हमीरपुर उत्तर प्रदेश में यमुना में मिल जाती है।
- सोन नदी अमरकंटक पठार से निकलती है तथा पटना के पश्चिम में आरा के पास गंगा में मिल जाती है।
- अपनी सहायक नदियों का जल लेकर गंगा नदी फरक्का तक बहती है तथा फरक्का के बाद यह नदी दो भागों में बंट जाती है।
1. भागीरथी
2. हुगली - फरक्का गंगा डेल्टा का सबसे उत्तरी बिंदु है।
- भागीरथी हुगली दक्षिण की तरफ बहती है तथा डेल्टा के मैदान से होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- मुख्यधारा दक्षिण की ओर बहती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है एवं ब्रह्मपुत्र नदी इस में आकर मिल जाती है।
- अंतिम चरण में गंगा और ब्रह्मपुत्र समुद्र में विलीन होने से पहले ‘मेघना-सुरमा नदी तंत्र में मिल जाने से संयुक्त रूप से ‘मेघना’ के नाम से जानी जाती है।
- गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के जल वाली यह वृहद् नदी बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है, इन नदियों के द्वारा बनाए गए डेल्टा को सुंदरबन डेल्टा के नाम से जाना जाता है।
सुंदरबन डेल्टा
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- लंबाई- गंगा की लंबाई 2500 किलोमीटर से अधिक है। (2525 किलोमीटर)
- विशेषता-
अंबाला नगर सिंधु तथा गंगा नदी तंत्र के बीच जल विभाजक पर स्थित है, अंबाला से सुंदरबन तक मैदान की लंबाई लगभग 1,800 किलोमीटर है, परंतु इसके ढाल की गिरावट मुश्किल से 300 मीटर है, दूसरे शब्दों में प्रति 6 किलोमीटर की दूरी पर ढाल में गिरावट केवल 1 मीटर है, प्रभाव- ढाल में इतने कम गिरावट के कारण इन नदियों में अनेक बड़े-बड़े विसर्प बन जाते हैं।
नमामि गंगे परियोजना
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ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
- उद्गम- तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व (कैलाश श्रेणी के चेमायुंगडुंग हिमानी से) तथा सिंधु एवं सतलुज के स्त्रोत के काफी नजदीक से निकलती है।
- तिब्बत में इसे ‘सांग्पो’ के नाम से जाना जाता है
- लंबाई- सिंधु से कुछ अधिक है। (2900 किलोमीटर)
- इस नदी का अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है।
- यह हिमालय के समानांतर पूर्व की ओर बहती है।
- नामचा बरवा शिखर (7,757 मीटर) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के यू(U) अक्षर जैसा मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है, यहाँ इसे दिहाँग के नाम से जाना जाता है।
- सहायक नदियाँ- दिबांग लोहित कैनुला एवं आदि सहायक नदियाँ इसमें असम में आकर मिलती है, यहाँ इसे ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है।
- तिब्बत एक शीत एवं शुष्क क्षेत्र है, अतः यहाँ इस नदी के जल एवं सिल्ट की मात्रा बहुत कम होती है।
- भारत में यह उच्च वर्षा वाले क्षेत्र से होकर गुजरती है।
- यहाँ नदी में जल एवं सिल्ट की मात्रा बढ़ जाती है।
- असम में ब्रह्मपुत्र अनेक धाराओं में बंटकर एक गुंफित नदी के रूप में बहती है।
- अत्यधिक मन्द ढाल पर बहने वाली नदी जो अपने तल पर अत्यधिक अवसाद जमा करने के कारण अनेक धाराओं में विभक्त हो जाती है, गुंफित नदी कहलाती है।
- ब्रह्मपुत्र बहुत से नदी द्वीपों का निर्माण करती है, ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा निर्मित ‘माजुली द्वीप’ एक ऐसा ही नदी द्वीप है, जो विश्व में नदियों में सबसे बड़ा है।
- प्रत्येक वर्ष वर्षा ऋतु में यह नदी अपने किनारों से ऊपर बहने लगती है, बाढ़ के द्वारा असम तथा बांग्लादेश में यह नदी बहुत अधिक क्षति पहुंचाती है, अत्यधिक क्षति पहुंचाने के कारण इसे ‘बांग्लादेश का शोक’ भी कहते हैं, उत्तर भारत के अन्य नदियों के विपरीत ब्रह्मपुत्र नदी में सिल्ट निक्षेपण की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसके कारण नदी की सतह बढ़ जाती है, और यह बार-बार अपनी धारा के मार्ग में परिवर्तन लाती है, सिल्ट- महीन गाद या मृदा है।
प्रायद्वीपीय नदियाँ
- प्रायद्वीपीय भारत में मुख्य जल विभाजक का निर्माण पश्चिमी घाट द्वारा होता है।
- यह पश्चिमी तट के निकट उत्तर से दक्षिण की ओर स्थित है।
- प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर मुख्य नदियाँ जैसे- महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी पूर्व की ओर बहती है, यह नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती है, यह नदियाँ अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती है।
- पश्चिमी घाट से पश्चिम में बहने वाली अनेक छोटी धाराएँ हैं जैसे- साबरमती, माही, ढाढर, कालिंदी, शरावती, भरतपूझा, पेरियार आदि।
- नर्मदा एवं तापी दो ही बड़ी नदियाँ है, जो कि पश्चिम की तरफ बहती है, यह नदियाँ ज्वारनदमुख का निर्माण करती है, प्रायद्वीपीय नदियों की अपवाह द्रोणीयाँ आकार में अपेक्षाकृत छोटी है।
नर्मदा द्रोणी
- उद्गम- मध्यप्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी के पश्चिमी ढाल से।
- विशेषता- यह नदी पश्चिम की ओर एक भ्रंश घाटी में बहती है, समुद्र तक पहुंचने के क्रम में यह नदी बहुत से दर्शनीय स्थलों का निर्माण करती है, जबलपुर के निकट संगमरमर के शैलों में यह नदी गहरे गॉर्ज से बहती है, यहाँ यह नदी तीव्र ढाल से गिरती है, यहाँ यह नदी ‘धुआँधार प्रपात’ का निर्माण करती है, नर्मदा की सभी सहायक नदियाँ बहुत छोटी है, इनमें से अधिकतर समकोण पर मुख्यधारा में मिलती है।
- नर्मदा द्रोणी- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात के कुछ भागों में विस्तृत।
- लम्बाई- 1312 किलोमीटर
नमामि देवी नर्मदे परियोजना-
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तापी द्रोणी
- उद्गम- मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में मुलताई नामक पहाड़ी से (सतपुड़ा पर्वत)।
- यह भी नर्मदा के समानांतर एक भ्रंश घाटी में बहती है, लेकिन इसकी लंबाई बहुत कम है। ( तापी- 724 किलोमीटर / नर्मदा- 1312 किलोमीटर)
- तापी द्रोणी- इसकी द्रोणी मध्य प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्य में है।
- अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के बीच का तटीय मैदान बहुत संकीर्ण है, इसलिए तटीय नदियों की लंबाई बहुत कम है।
- पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियाँ- साबरमती व माही,(राजस्थान व गुजरात) तथा भरतपूझा व पेरियार(केरल) है।
गोदावरी द्रोणी
- यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है।
- उद्गम- महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिमी घाट की ढाल से।
- लंबाई- लगभग 1500 किलोमीटर (1465 किलोमीटर)।
- यह बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- विशेषता- प्रायद्वीपीय नदियों में इसका अपवाह तंत्र सबसे बड़ा है।
- गोदावरी द्रोणी- इसकी द्रोणी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश में स्थित है, गोदावरी में अनेक सहायक नदियाँ मिलती है, सहायक नदियाँ- पूर्णा, वर्धा, प्राणहिता, मंजरा, वेनगंगा तथा पेनगंगा, इनमें से अंतिम तीनों सहायक नदियाँ बहुत बड़ी है।
- उपनाम- बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे “दक्षिण गंगा” के नाम से भी जाना जाता है।
महानदी द्रोणी
- महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ की उच्चभूमि से है, यह ओडिशा से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है, इस नदी की लंबाई 860 कि.मी. है, इसकी अपवाह द्रोणी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा ओडिशा में है।
कृष्णा द्रोणी
- महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर के निकट एक स्रोत से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है, इसकी लंबाई लगभग 1400 कि. मी. है, तुंगभद्रा, कोयना, घाटप्रभा, मुसी तथा भीमा इसकी कुछ सहायक नदियाँ है, इसकी द्रोणी महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में फैली है।
कावेरी द्रोणी
- कावेरी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी श्रृंखला से निकलती है, तमिलनाडु में कुडलूर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है, इसकी लंबाई 760 कि. मी. है, इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ है – अमरावती, भवानी, हेमावती तथा काबिनी, इसकी द्रोणी तमिलनाडु, केरल तथा कर्नाटक में विस्तृत है।
- भारत में दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात कावेरी नदी बनाती है, इसे शिवसुंदरम् के नाम से जाना जाता है।
- प्रपात द्वारा उत्पादित विद्युत मैसूर, बंगलोर तथा कोलार स्वर्ण-क्षेत्र को प्रदान की जाती है।
- इन बड़ी नदियों के अतिरिक्त कुछ छोटी नदियाँ है जो पूर्व की तरफ बहती है।
- दामोदर, ब्रह्मनी, वैतरणी तथा सुवर्ण रेखा कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण है।
झीलें :-
- पृथ्वी की सतह के गर्त वाले भागों में जहाँ जब जमा हो जाता है उसे झील कहते है, बड़े आकार वाली झीलों को समुद्र कहा जाता है। जैसे केस्पियन सागर, मृत सागर तथा अरब सागर।
झीलों का निर्माण :-
निम्न प्रमुख कारकों के कारण झीलों का निर्माण हो सकता है।
1. हिमानी कार्य द्वारा
2. वायु कार्य द्वारा
3. नदी कार्य द्वारा (डेल्टाई या गोखुर झील)
4. लेगून झील
5. विवर्तनिक कार्य द्वारा
6. ज्वालामुखी क्रिया द्वारा
7. मनुष्य द्वारा
प्रकार :-
1. हिमानी कार्य द्वारा निर्मित झीलें/हिमानी निर्मित झीले :-
- ये हिमनद अथवा हिमानी के अपरदन से निर्मित होती है जैसे :- डल झील, भीमताल, नैनीताल, लोकताक तथा बड़ापानी
- भारत में मीठे पानी की अधिकांश झीले हिमालय झेत्र में है।
- इनका निर्माण हिमानियों द्वारा या तो कोई गहरी द्रोणी बनाने से हुआ है या किसी क्षेत्र में शिलाओं अथवा मिट्टी से हिमानी मार्ग बँध गये तब बनी है।
- इन द्रोणीयों में तथा बाधिम मार्ग में हिम के पिघलने से इन झीलों का निर्माण हुआ है।
(i) नैनिताल झील :-
- यह एक प्राकृतिक स्वच्छ व ताजे (मीठे) पानी की झील है, यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य में नैनिताल नामक नगर में स्थित है।
(ii) भीमताल :-
- यह उत्तराखण्ड राज्य के भीमताल नामक नगर (नैनीताल जिला) में स्थित है, यह नैनीताल झील से भी बड़ी है, यह कुमाऊँ क्षेत्र की सबसे बड़ी झील है, नैनीताल जिले को “भारत का झीलों वाला जिला” के नाम से जाना जाता है।
(iii) डल झील :-
- यह जम्मू कश्मीर राज्य की दूसरी बड़ी झील है, डल झील के मुख्य आकर्षण का केन्द्र है यहाँ के शिकारे या हाउसबोट, इस झील को “फूलों वाली झील” तथा “कश्मीर के ताज का नगीना” भी कहा जाता है।
(iv) लोकताक झील :-
- यह उत्तर पूर्वी भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है, यह भारत के मणिपुर राज्य में स्थित है, इस पर तैरते हुए द्वीप पाए जाते हैं, विश्व का एकमात्र तैरता हुआ उद्यान “केबुल – लामजाओं नेशनल पार्क” इसी पर स्थित है।
(v) बड़ापानी झील :-
- इसका मूल नाम उमियम झील है, उम का अर्थ है – बड़ा तथा यम का अर्थ – पानी है, यह मेघालय में गुवाहाटी – शिलांग राजमार्ग पर स्थित है।
2. विवर्तनिक कार्य द्वारा निर्मित झील :-
- इसका निर्माण धरातल के उठने एवं धँसने से होता है जैसे कश्मीर की वुलर झील।
(i) वुलर झील :-
- वुलर झील जम्मू व कश्मीर राज्य के बांडीपोर जिले में स्थित एक झील हैं, यह भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील है, यह झेलम नदी के मार्ग में आती है।
3. लैगून झील या अनूप झील :-
- इसका निर्माण तब होता है जब समुद्र जल का कुछ भाग बालू चट्टान तथा रोधिका (स्पिट तथा बार) द्वारा मुख्य जल से अलग हो जाता है, उदाहरण :- चिल्का झील, पुलीकट झील,
(i) चिल्का झील :-
- यह भारत की सबसे बड़ी लैगून एवं खारे पानी की झील है, यह उत्तरी सरकार तट (ओडिसा) में स्थित है।
(ii) पुलीकट झील :-
- यह आंधप्रदेश तथा तमिलनाडू की सीमा पर अवस्थित है, श्री हरिकोटा द्वीप इस झील को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है।
4. डेल्टाई झील :-
- ये झीलें डेल्टाई प्रदेशों में नदी वितरिकाओं के मध्य निर्मित होती है। जैसे- कोलेरु झील
(i)कोलेरु झील :-
- यह एक स्वच्छ पानी की झील है, यह आंध्र-प्रदेश की तटीय प्रदेश में गोदावरी और कृष्ण नदियों के डेल्टा के मध्य स्थित है।
- अंतर्देशीय अपवाह वाले अर्धशुष्क क्षेत्रों की द्रोणी वाली झीले वर्षा ऋतु के दौरान निर्मित अस्थाई झील या स्थाई झील हो सकती है। यह कभी-कभी मौसमी होती है जैसे राजस्थान की सांभर झील, जो एक लवण जल वाली झील है।
- इसका उपयोग (जल का उपयोग) नमक के निर्माण के लिए किया जाता है।
5. मानव निर्मित झीले :-
- इनका निर्माण नदियों पर बांध बनाकर किया जाता है, इन बांधों को निर्माण जल विद्युत के लिए किया जाता है, बांध के पीछे वाला जल एक झील के रूप में बदल जाती है।
(a) गुरु गोविन्द सागर (भाखडा – नांगल परियोजना)
(b) नागार्जुन सागर (कृष्णा नदी पर नागार्जुन सागर बाँध)
(c) स्टेनले जलाशय (तमिलनाडू में कावेरी नदी पर निर्मित मेट्टूर बांध के पीछे बनी झील)
झीलों का महत्व :-
- यह मानव के लिए अत्यधिक लाभदायक होती है, झील नदी के बहाव को सुचारू बनाने में सहायक होती है, अत्यधिक वर्षा के समय यह बाढ़ को रोकती है, सूखे के मौसम में यह परनी के बहाव व उपलब्धता को संतुलित करने में सहायक है।
- झीलों का प्रयोग जल विद्युत उत्पादन करने में भी किया जाता है, यह आस-पास के क्षेत्र की जलवायु को सामान्य बनाती है।
- जलीय पंरितत्र को संतुलित रखती है, झीलें प्रकृति की सुन्दरता व पर्यटन को बढाती है, झीलें हमें मनोरंजन प्रदान करती है।
नदियों का अर्थव्यवस्था में महत्व
- नदियों का मानव के लिए अत्यधिक महत्व है, नदियों का जल एक प्राकृतिक संसाधन है तथा यह अनेक मानवीय क्रियाकलापों के लिए अनिवार्य है, नदियों के तट ने प्राचीन काल से ही आदिवासियों को अपनी और आकर्षित किया है।
- विश्व की कई सारी सभ्यताएँ नदी तटों के किनारे विकसित हुई।
- भारत जैसे देश के लिए जहाँ की अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, वहाँ सिंचाई, नौ-संचालन, जल विद्युत निर्माण में नदियों का महत्व बहुत अधिक है।
नदी प्रदूषण
- नदी जल की घरेलू औद्योगिक तथा कृषि में बढ़ती मांग के कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है, इसके परिणाम यह होता है कि, नदियों से अधिक जल की निकासी होती है, तथा इसका आयतन घटता जाता है, उद्योगों का प्रदूषण तथा अपरिष्कृत कचरे नदी में मिलते रहते हैं, जिससे नदी प्रदूषित होती है।
- प्रदूषण केवल जल की गुणवत्ता को ही नहीं बल्कि नदी के स्वतः स्वच्छीकरण की क्षमता को भी प्रभावित करता है, उदाहरण के लिए, यदि दिए गए समुचित जल प्रवाह में गंगा का जल लगभग 20 किमी क्षेत्र में फैले बड़े शहर की गंदगी को साफ करके समाहित कर सकता है।
- लगातार बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण अनेक नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है क्योंकि यह शहर नदियों में प्रदूषित मल-जल का निस्तारण करते हैं, नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इन को स्वच्छ बनाने के लिए अनेक कार्य योजनाएं लागू की गई है, जिसमें से एक उदाहरण राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना है।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना
- गंगा कार्य योजना के क्रियाकलापों का पहला चरण 1985 में आरंभ किया गया, इसे 31 मार्च 2000 में बंद कर दिया गया।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की कार्यकारी समिति ने गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण की प्रगति की समीक्षा की।
- गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण से प्राप्त अनुभव के आधार पर आवश्यक सुझाव दिए, इस कार्य योजना को देश की प्रमुख प्रदूषित नदियों में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अंतर्गत लागू किया गया, गंगा कार्य योजना के दूसरे चरण को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अंतर्गत शामिल कर लिया गया है।
- विस्तृत राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में 16 राज्यों की 27 नदियों के किनारे बसे 152 शहर शामिल है, इस कार्य योजना के तहत 57 जिलों में प्रदूषण को कम करने के लिए कार्य किया जा रहा है, प्रदूषण को कम करने वाली कुल 215 योजनाओं को स्वीकृति दी गई है, अभी तक 69 योजनाएँ इस कार्य योजना के तहत पूरी हो चुकी है, इसके अंतर्गत लाखों लीटर प्रदूषित जल को रोक कर उसकी दिशा में परिवर्तन करके करने का लक्ष्य रखा गया।
नदी प्रदूषित जल से मनुष्य स्वास्थ्य पर प्रभाव
- प्रदूषित जल से कई प्रकार की बीमारियाँ मानवों में होती है,जैसे तपेदिक, पेट के रोग आदि, नदी जल के प्रदूषण से आसपास के भूमि क्षेत्र में भी मृदा प्रदूषण की समस्या बनी रहती है।
नदियों का अर्थव्यवस्था में महत्व
- नदियों का मानव के लिए अत्यधिक महत्व है, नदियों का जल एक प्राकृतिक संसाधन है तथा यह अनेक मानवीय क्रियाकलापों के लिए अनिवार्य है।
- नदियों के तट ने प्राचीन काल से ही आदिवासियों को अपनी और आकर्षित किया है।
- विश्व की कई सारी सभ्यताएँ नदी तटों के किनारे विकसित हुई।
- भारत जैसे देश के लिए जहाँ की अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, वहाँ सिंचाई, नौ-संचालन, जल विद्युत निर्माण में नदियों का महत्व बहुत अधिक है।
नदी प्रदूषण
- नदी जल की घरेलू औद्योगिक तथा कृषि में बढ़ती मांग के कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है, इसके परिणामस्वरूप, नदियों से अधिक जल की निकासी होती है, तथा इसका आयतन घटता जाता है।
- उद्योगों का प्रदूषण तथा अपरिष्कृत कचरे नदी में मिलते रहते हैं, जिससे नदी प्रदूषित होती है, प्रदूषण केवल जल की गुणवत्ता को ही नहीं बल्कि नदी के स्वतः स्वच्छीकरण की क्षमता को भी प्रभावित करता है, उदाहरण के लिए, यदि दिए गए समुचित जल प्रवाह में गंगा का जल लगभग 20 किमी क्षेत्र में फैले बड़े शहर की गंदगी को तनु करके समाहित कर सकता है, लगातार बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण अनेक नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, क्योंकि यह शहर नदियों में प्रदूषित मल-जल का निस्तारण करते हैं।
- नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इन को स्वच्छ बनाने के लिए अनेक कार्य योजनाएं लागू की गई है, जिसमें से एक उदाहरण राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना है।
राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना
- गंगा कार्य योजना के क्रियाकलापों का पहला चरण 1985 में आरंभ किया गया, इसे 31 मार्च 2000 में बंद कर दिया गया।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की कार्यकारी समिति ने गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण की प्रगति की समीक्षा की।
- गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण से प्राप्त अनुभव के आधार पर आवश्यक सुझाव दिए, इस कार्य योजना को देश की प्रमुख प्रदूषित नदियों में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अंतर्गत लागू किया गया, गंगा कार्य योजना के दूसरे चरण को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अंतर्गत शामिल कर लिया गया है।
- विस्तृत राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में 16 राज्यों की 27 नदियों के किनारे बसे 152 शहर शामिल है, इस कार्य योजना के तहत 57 जिलों में प्रदूषण को कम करने के लिए कार्य किया जा रहा है, प्रदूषण को कम करने वाली कुल 215 योजनाओं को स्वीकृति दी गई है, अभी तक 69 योजनाएँ इस कार्य योजना के तहत पूरी हो चुकी है, इसके अंतर्गत लाखों लीटर प्रदूषित जल को रोक कर उसकी दिशा में परिवर्तन करके करने का लक्ष्य रखा गया।
नदी प्रदूषित जल से मनुष्य स्वास्थ्य पर प्रभाव
- प्रदूषित जल से कई प्रकार की बीमारियाँ मानवों में होती है,जैसे तपेदिक, पेट के रोग आदि, नदी जल के प्रदूषण से आसपास के भूमि क्षेत्र में भी मृदा प्रदूषण की समस्या बनी रहती है।
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