2023-24 NCERT Class 9 Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी  Notes in Hindi

NCERT Class 9 History Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी|समकालीन भारत I

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9th Class Geography Chapter 5 Natural Vegetation and Wildlife Notes in Hindi | कक्षा 9 भूगोल नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |Class 9 Bhuugol Chapter 5 Praakṛtik vanaspati tathaa vany praaṇii  Notes PDF Hindi me Notes PDF 2023-24 New Syllabus ke anusar.

TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectGeography | भूगोल
ChapterChapter 5
Chapter Nameप्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी 
CategoryClass 9 Geography Notes in Hindi
MediumHindi
class-9-Geography-chapter-5-Natural Vegetation and Wildlife notes-in-hindi

Class 09 भूगोल
अध्याय = 5
प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी 

Natural Vegetation and Wildlife

परिचय

  • – हमारा देश भारत विश्व के मुख्य 12 जैव विविधता वाले देशों में से एक है।
  • – भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील,चीन, कोलाम्बिया, इक्वाडोर, इण्डोनेशिया, मेडागास्कर, मलेशिया, पेरू, जाइरे, मैक्सिको।
  • – भारत में लगभग 47000 विभिन्न जातियों के पौधे पाए जाते है।
  • – इसलिए भारत विश्व में 10 वें स्थान पर एशिया के देशों में 4 स्थान पर है।
  • – भारत में लगभग 15,000 फूलों के पौधे हैं जो कि विश्व में फूलों के पौधों का 6% है।
  • – भारत में बहुत से बिना फूलों के पौधे हैं जैसे कि फर्न, शैवाल (एलेगी) तथा कवक (फंजाई) भी पाए जाते हैं।
  • – भारत में लगभग 90,000 जातियों के जानवर तथा विभिन्न प्रकार की मछलियाँ, ताजे तथा समुद्री पानी की पाई जाती हैं।

प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ – 

  • वनस्पति का वह भाग जो कि मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लंबे समय तक उस पर मानवी प्रभाव नहीं पड़ता इसे अक्षत वनस्पति कहते हैं।
  • अतः विभिन्न प्रकार की कृषिकृत फसलें, फल और बागान, वनस्पति का भाग तो हैं परंतु प्राकृतिक वनस्पति नहीं है।
  • देशज पौधे – वह वनस्पति जो कि मूलरूप से भारतीय है उसे देशज कहते हैं।
  • विदेशज पौधे- जो पौधे भारत के बाहर से आए हैं उन्हें ‘विदेशज पौधे’ कहते हैं।
  • वनस्पति-जगत – किसी विशेष क्षेत्र में किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है।
  • प्राणि जगत – जानवरों के विषय में बतलाता है।

धरातल :-


भूभाग

  • भूमि का वनस्पति पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
  • धरातल के स्वभाव का वनस्पति पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
  • पर्वत, पठार तथा मैदान और शीतोष्ण कटिबंधों में एक ही प्रकार की वनस्पति नहीं हो सकती, उपजाऊ भूमि पर कृषि की जाती है।
  • ऊबड़ तथा असमतल भूभाग पर, जंगल तथा घास के मैदान हैं, जिन में वन्य प्राणियों को आश्रय मिलता है।

मृदा :-


विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग प्रकार की मृदा पाई जाती है, जो विविध प्रकार की वनस्पति का आधार है।
मरुस्थल की बलुई मृदा में कंटीली झाड़ियाँ तथा नदियों के डेल्टा क्षेत्र में पर्णपाती वन पाए जाते हैं।
पर्वतों की ढलानों में जहाँ मृदा की परत गहरी है शंकुधारी वन पाए जाते हैं।

जलवायु :-


तापमान


वनस्पति की विविधता तथा विशेषताएँ तापमान और वायु को नमी पर भी निर्भर करती हैं।
हिमालय पर्वत की ढलानों तथा प्रायद्वीप के पहाड़ियों पर 915 मी० की ऊँचाई से ऊपर तापमान में गिरावट वनस्पति के पनपने और बढ़ने को प्रभावित करती है और उसे उष्ण कटिबंधीय से उपोष्ण, शीतोष्ण तथा अल्पाइन वनस्पतियों में परिवर्तित करती है।

सूर्य का प्रकाश :-


किसी भी स्थान पर सूर्य के प्रकाश का समय, उस स्थान के अक्षांश, समुद्र तल से ऊँचाई एवं ऋतु पर निर्भर करता है।
प्रकाश अधिक समय तक मिलने के कारण वृक्ष गर्मी की ऋतु में जल्दी बढ़ते हैं।

वर्षण :-

  • भारत में लगभग सारी वर्षा आगे बढ़ते हुए दक्षिण-पश्चिमी मानसून (जून से सितंबर तक) एवं पीछे हटते उत्तर-पूर्वी मानसून से होती है।
  • अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा वाले क्षेत्रों की अपेक्षा सघन वन पाए जाते हैं।
  • वन नवीकरण योग्य संसाधन हैं।
  • पर्यावरण की गुणवत्ता वृद्धि में मुख्य भूमिका।
  • जलवायु, मृदा अपरदन तथा नदियों की धारा नियंत्रित करते हैं।
  • बहुत सारे उद्योगों के आधार हैं।
  • कई समुदायों को जीविका प्रदान करते हैं।
  • मनोरम प्राकृतिक दृश्यों के कारण पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
  • पवन तथा तापमान को नियंत्रित करते हैं।
  • वर्षा लाने में भी सहायता करते हैं।
  • भारतीय प्राकृतिक वनस्पति में कई कारणों से बहुत बदलाव आया है जैसे कि कृषि के लिए अधिक क्षेत्र की माँग, उद्योगों का विकास, शहरीकरण की परियोजनाएँ और पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था के कारण वन्य क्षेत्र कम हो रहा है।
  • 2003 में वनों का कुल क्षेत्रफल 68 लाख वर्ग किलोमीटर था।
  • भारत के बहुत से भाग में वन क्षेत्र सही मायने में प्राकृतिक नहीं है।
  • कुछ अगम्य क्षेत्रों को छोड़कर जैसे हिमालय और मध्य भारत के कुछ भाग तथा मरुस्थल, जहाँ प्राकृतिक वनस्पति है।
  • शेष भागों में मनुष्य के हस्तक्षेप से प्राकृतिक वनस्पति आंशिक या संपूर्ण रूप से परिवर्तित हो चुकी है या फिर बिल्कुल निम्न कोटि की हो गई है।

पारिस्थितिक तंत्र :-

  • पादप तथा प्राणियों के आपस में तथा अपने भौतिक पर्यावरण से अंतर्संबंधित होना।
  • मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का अविच्छिन्न भाग है।
  • मानव किसी स्थान के पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता है।
  • मनुष्य, वन्य जीवन और वनस्पति को अपने लाभ के लिए प्रयोग करता है।
  • मनुष्य अपने लालच के कारण इन संसाधनों का अधिकतम प्रयोग करता है।
  • वह वृक्षों को काट कर और जानवरों को मार कर पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन पैदा करता है।
  • परिणामस्वरूप कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने का भय होता है।
  • धरातल पर एक विशिष्ट प्रकार की वनस्पति या प्राणी जीवन वाले विशाल पारिस्थितिक तंत्र को ‘जीवोम’ (Biome) कहते हैं।
  • जीवोम की पहचान पादप पर आधारित होती है।

वनस्पति के प्रकार :-

  • (i) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन।
  • (ii) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन।
  • (iii) उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ।
  • (iv) पर्वतीय वन।
  • (v) मैंग्रोव वन।

उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन :-


वर्षा – 200 सेमी से अधिक।
क्षेत्र – पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों. लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं।


प्रमुख वृक्ष – आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोजवुड, रबड़ और सिंकोना हैं प्रमुख वृक्ष – आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोजवुड, रबड़ और सिंकोना हैं।


प्रमुख जानवर – हाथी, बंदर, लैमूर, हिरण, असम और पश्चिमी बंगाल के दलदली क्षेत्र में एक सींग वाले गैंडा, कई प्रकार के पक्षी जैसे-  चमगादड़ तथा कई रेंगने वाले जीव भी पाए जाते हैं।


विशेषता – उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ वर्षा के साथ एक थोड़े समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है।
इन वनों में वृक्ष 60 मी० या इससे अधिक ऊँचाई तक पहुँचते हैं, ये क्षेत्र वर्ष भर गर्म तथा आर्द्र रहते हैं।
यहाँ हर प्रकार की वनस्पति वृक्ष, झाड़ियाँ व लताएँ उगती हैं।
वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाईयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं।
वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता है, यह वन साल भर हरे-भरे लगते हैं।

उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन :-
ये वन बड़े क्षेत्र में फैले हुए है।
अन्य नाम – मानसूनी वन, पतझड़ वन।
वर्षा – 70 से.मी. से 200 से.मी. तक।

जल उपलब्धता के आधार पर प्रकार–
1. आर्द्र पर्णपाती वन।
2. शुष्क पर्णपाती वन।

आर्द्र या नम पर्णपाती वन –
वर्षा – 100 से.मी. 200 से.मी. तक।
क्षेत्र – देश के पूर्वी भागों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, झारखंड, पश्चिमी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों में पाए जाते हैं।
प्रमुख वृक्ष – सागोन सबसे प्रमुख, बाँस, साल, शीशम, चंदन, रवैर, कुसुम, अर्जुन तथा शहतूत के वृक्ष।

शुष्क पर्णपाती –


वर्षा – 70 सेमी. से 100 से.मी. के बीच।
क्षेत्र – प्रायद्वीपीय पठार के वर्षा वाले क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानों में।
प्रमुख वृक्ष – सागोन, साल, पीपल तथा नीम के वृक्ष।
प्रमुख जानवर – शेर, सूअर, हिरण, हाथी, विविध प्रकार के पक्षी, छिपकली, साँप और कछुए पाए जाते हैं।
विशेषता – इन क्षेत्रों के बहुत बड़े भाग कृषि कार्य में प्रयोग हेतु साफ कर लिए गए हैं।
कुछ भागों में पशुचारण भी होता है।
ये शुष्क ग्रीष्म ऋतु में 6 से 8 सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

कंटीले वन तथा झाड़ियाँ :-


वर्षा – 
70 से॰मी॰ से कम।
क्षेत्र – उत्तरी-पश्चिमी भाग – गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा।
प्रमुख वृक्ष – अकासिया, खजूर (पाम), यूफ़ोरबिया तथा नागफ़नी (कैक्टाई) ।
प्रमुख जानवर – चूहे, खरगोश, लोमड़ी, भेड़िए, शेर, जंगली गधा, घोड़े तथा ऊँट।


विशेषता – इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं।
इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में चारों ओर फैली होती हैं।
पत्तियाँ प्रायः छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो सके।
शुष्क भागों में झाड़ियाँ और कंटीले पादप पाए जाते हैं, इन जंगलों में पाए जाते हैं।

पर्वतीय वन :-
पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ- साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है-
1. आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय।
2. शंकुधारी वृक्ष।
3. शीतोष्ण कटिबंधीय वन।

1. आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय
ऊँचाई – 
1,000 मी. से 2,000 मी. तक।
प्रमुख वृक्ष – चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट।

2. शंकुधारी वृक्ष
ऊँचाई – 1,500 से 3,000 मी०।
प्रमुख वृक्ष – चीड़ (पाइन), देवदार, सिल्वर-फर, स्यूस, सीडर।
विशेषता – ये वन प्रायः हिमालय की दक्षिणी ढलानों दक्षिण और उत्तर पूर्व भारत के अधिक ऊंचाई वाले भागों में पाए जाते हैं, अधिक ऊँचाई पर प्राय: शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते है।

3. शीतोष्ण कटिबंधीय वन


ऊँचाई – 
3600 मी. से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है।
प्रमुख वृक्ष – सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व वर्च।
प्रमुख जानवर – कश्मीरी महामृग, चितरा हिरण जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बतीय बारहसिंघा, याक. हिम तेंदुआ, गिलहरी, रीछ, आइबैक्स, लाल पांडा, घने बालों वाली भेड़ तथा बकरियाँ।


विशेषता – हिमरेखा के निकट पहुंचते हैं इन वृक्षों के आकार छोटे होते जाते हैं।
अंततः झाड़ियों के रूप के बाद वे अल्पाइन घास के मैदानों में विलीन हो जाते हैं।
इनका उपयोग गुज्जर तथा बक्करवाल जैसी घुमक्कड़ जातियों द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है।
अधिक ऊँचाई वाले भागों में मॉस, लिचन घास, टुंड्रा वनस्पति का एक भाग है।

मैग्रोव वन :-


स्थिति – 
तटवर्तीय क्षेत्रों में जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं।
क्षेत्र – गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा भाग में।
प्रमुख वृक्ष – सुंदरी वृक्ष, नारियल, ताड़, क्योड़ा , वं ऐंगार के वृक्ष।
प्रमुख जानवर – रॉयल बंगाल टाइगर, कछुए, मगरमच्छ, घड़ियाल एवं कई प्रकार के साँप।
विशेषता – घने मैंग्रोव एक प्रकार की वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं।
सुंदरी वृक्ष की लकड़ी बड़ी मजबुत होती है।

औषधीय पादप


भारत प्राचीन समय से अपने मसालों तथा जड़ी-बूटियों के लिए विख्यात रहा है।
आयुर्वेद में लगभग 2,000 पादपों का वर्णन है और कम से कम 500 तो निरंतर प्रयोग में आते रहे हैं।
‘विश्व संरक्षण संघ’ ने लाल सूची के अंतर्गत 352 पादपों की गणना की है जिसमें से 52 पादप अति संकटग्रस्त हैं और 49 पादपों को विनष्ट होने का खतरा है।
भारत में प्रायः औषधि के लिए प्रयोग होने वाले कुछ निम्नलिखित पादप हैं।

सर्पगंधा :- यह रक्तचाप के निदान के लिए प्रयोग होता है और केवल भारत में ही पाया जाता है।

जामुन :- पके हुए फल से सिरका बनाया जाता है जो कि वायुसारी और मूत्रवर्धक है और इसमें पाचन शक्ति के भी गुण हैं।
बीज का बनाया हुआ पाउडर मधुमेह (Diabetes) रोग में सहायता करता है।

अर्जुन :- ताजे पत्तों का निकाला हुआ रस कान के दर्द के इलाज में सहायता करता है।
यह रक्तचाप की नियमिता के लिए भी लाभदायक है।

बबूल :- इसके पत्ते आँख की फुसी के लिए लाभदायक हैं।
इससे प्राप्त गोंद का प्रयोग शारीरिक शक्ति की वृद्धि के लिए होता है।

नीम :- जैव और जीवाणु प्रतिरोधक है।

तुलसी पादप :- जुकाम और खाँसी की दवा में इसका प्रयोग होता है।

कचनार :- फोड़ा (अल्सर) व दमा रोगों के लिए प्रयोग होता है।
इस पौधे की जड़ और कली पाचन शक्ति में सहायता करती है।

वन्य प्राणी :-
वनस्पति की भाँति ही, भारत विभिन्न प्रकार की प्राणी संपत्ति में भी धनी है।

वन्य जीव – 90,000 प्रजातियाँ।

पक्षियों की – 2,000 से अधिक प्रजातियाँ (यह कुल विश्व का 13% है)।

मछलियों की – 2,546 प्रजातियाँ (यह कुल विश्व का 12%)।
भारत में विश्व के 5 से 8 प्रतिशत तक उभयचरी, सरीसृप तथा स्तनधारी जानवर भी पाए जाते हैं।

हाथी – स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

क्षेत्र – असम, कर्नाटक और केरल के उष्ण तथा आर्द्र वनों में पाए जाते हैं।

एक सींग वाला गैंड़ा – पश्चिमी बंगाल तथा असम के दलदली क्षेत्रों में रहते हैं।

जंगली गधे तथा ऊँट  – कच्छ के रन तथा थार मरुस्थल में।

अन्य जानवर – भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंघा, छोटा मृग (गैजल), विभिन्न प्रजातियों वाले हिरण तथा बंदरों की भी अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

  • भारत विश्व का अकेला देश है जहाँ शेर तथा बाघ दोनों पाए जाते हैं।
  • भारतीय शेरों का प्राकृतिक आवास गुजरात में गिर जंगल है।
  • बाघ मध्य प्रदेश तथा झारखंड के वनों, पश्चिमी बंगाल के सुंदरवन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  • बिल्ली जाति के सदस्यों में तेंदुआ भी है, यह शिकारी जानवरों में मुख्य है।
  • हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले जानवर अपेक्षाकृत कठोर जलवायु को सहन करने वाले होते हैं जो अत्यधिक ठंड में भी जीवित रहते हैं।
  • लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में याक पाए जाते हैं जो गुच्छेदार सींगो वाला बैल जैसा जीव है जिसका भार लगभग एक टन होता है।
  • तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल (नीली भेड़), जंगली भेड़ तथा कियांग (तिब्बती जंगली गधे) भी यहाँ पाए जाते हैं कहीं-कहीं लाल पांडा भी कुछ भागों में मिलते हैं।
  • नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में कछुए, मगरमच्छ और घडियाल पाए जाते हैं।
  • घड़ियाल, मगरमच्छ की प्रजाति का एक ऐसा प्रतिनिधि है जो विश्व में केवल भारत में पाया जाता है।
  • भारत में अनेक रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं- मोर, बत्तख, तोता, मैना, सारस तथा कबूतर आदि कुछ पक्षी प्रजातियाँ हैं जो देश के वनों तथा आर्द्र क्षेत्रों में रहती हैं।
  • प्रवासी पक्षी भारत के कुछ दलदली भाग प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • शीत ऋतु में साइबेरियन सारस बहुत संख्या में यहाँ आते हैं।
  • इन पक्षियों का एक मनपसंद स्थान कच्छ का रन है।
  • जिस स्थान पर मरुभूमि समुद्र से मिलती है वहाँ लाल सुंदर कलंगी वाली फ्लेमिंगोए हजारों की संख्या में आती हैं और खारे कीचड़ के ढर बनाकर उनमें घोंसले बनाती है और बच्चों को पालती है। देश में अनेकों दर्शनीय दृश्यों में से यह भी एक है।

पेड़ पौधें और जीव जन्तुओं का मानव के जीवन महत्व-

  • मानव ने अपनी फसलें जैव-विविध पर्यावरण से चुनी है यानि खाने योग्य पौधों के निचय से हमने बहुत से औषधि पादपों का प्रयोग कर उनका चुनाव किया है।
  • दूध देने वाले पशु भी प्रकृति द्वारा दिए बहुत सारे जानवरों में से चुने गए हैं।
  • जानवर हमें बोझा ढोने, कृषि कार्य तथा यातायात के साधन के रूप में मदद करते हैं।
  • इनसे माँस, एवं अंडे भी प्राप्त होते हैं, मछली से पौष्टिक आहार मिलता है।
  • बहुत से कीड़े-मकौड़े फसलों, फलों और वृक्षों के परागण में मदद करते हैं और हानिकारक कीड़ों पर जैविक नियंत्रण रखते हैं, प्रत्येक प्रजाति का पारिस्थितिक तंत्र में योगदान है अत: उनका संरक्षण अनिवार्य है। मनुष्यों द्वारा पादपों और जीवों के अत्यधिक उपयोग के कारण पारिस्थतिक तंत्र असंतुलित हो गया है
  • लगभग 1,300 पादप प्रजातियाँ संकट में हैं, 20 प्रजातियाँ विनष्ट हो चुकी हैं।
  • काफी वन्य जीवन प्रजातियाँ भी संकट में हैं और कुछ विनष्ट हो चुकी हैं।

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Class 9 Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य

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