NCERT Class 9 History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति |भारत और समकालीन विश्व-I
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9th Class History Chapter 2 Socialism in Europe and the Russian Revolution Notes in Hindi | कक्षा 9 इतिहास नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |Class 9 Itihaas Chapter 2 Yuurop men samaajavaad evam ruusii kraanti Notes PDF Hindi me Notes PDF 2023-24 New Syllabus ke anusar.
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | History | इतिहास |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति |
Category | Class 9 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 09 इतिहास
अध्याय = 2
यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति
Socialism in Europe and the Russian Revolution
❖ फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव :-
- फ्रांसीसी क्रांति के बाद यूरोप में स्वतंत्रता और समानता के शक्तिशाली विचारों का प्रसार हुआ। फ्रांसीसी क्रांति ने सामाजिक संरचना के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन की संभावनाओं का सूत्रपात कर दिया था।
❖ क्रांति से पूर्व :-
- अठारहवीं सदी से पहले फ्रांस का समाज मोटे तौर पर एस्टेट्स और श्रेणियों में बँटा हुआ था।
- समाज की आर्थिक और सामाजिक सत्ता पर कुलीन वर्ग और चर्च का नियंत्रण था। लेकिन क्रांति के बाद इस संरचना को बदलना संभव दिखाई देने लगा।
- यूरोप और एशिया सहित दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में व्यक्तिगत अधिकारों के स्वरूप और सामाजिक सत्ता पर किसका नियंत्रण हो इस पर चर्चा छिड़ गई।
- भारत में भी राजा राममोहन रॉय और डेरोजियो ने फ्रांसीसी क्रांति के महत्व का उल्लेख किया। और भी बहुत सारे लोग क्रांति पश्चात यूरोप की स्थितियों के बारे में चल रही बहस में कूद पड़े।
- आगे चलकर उपनिवेशों में घटी घटनाओं ने भी इन विचारों को एक नया रूप प्रदान करने में योगदान दिया।
- मगर यूरोप में भी सभी लोग आमूल समाज परिवर्तन के पक्ष में नहीं थे। इस सवाल पर सबकी अलग-अलग राय थी।
- बहुत सारे लोग बदलाव के लिए तो तैयार थे लेकिन वह चाहते थे कि यह बदलाव धीरे-धीरे हो। एक खेमा मानता था कि समाज का आमूल पुनर्गठन जरूरी है।
- कुछ ‘रुढ़िवादी’ (Conservatives) थे तो कुछ उदारवादी’ (Liberals) या आमूल परिवर्तनवादी’ (Radical, रैडिकल) समाधानों के पक्ष में थे।
- 1. उदारवादी, रैडिकल और रुढ़िवादी :-
- (i) समाज परिवर्तन के समर्थकों में एक समूह उदारवादियों का था।
- (ii) उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले। उस समय यूरोप के देशों में प्राय: किसी एक धर्म को ही ज्यादा महत्व दिया जाता था (ब्रिटेन की सरकार चर्च ऑफ़ इंग्लैंड का समर्थन करती थी, ऑस्ट्रिया और स्पेन, कैथलिक चर्च के समर्थक थे)।
- (iii) उदारवादी समूह वंश-आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरोधी थे।
- (iv) वे सरकार के समक्ष व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे। उनका कहना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का
- अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।
- (v) यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार के पक्ष में था जो शासकों और अफ़सरों के प्रभाव से मुक्त और सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार शासन कार्य चलाए। पर यह समूह ‘लोकतंत्रवादी’ नहीं था।
- (vi) ये लोग सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार यानी सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे।
- (vii) उनका मानना था कि वोट का अधिकार केवल संपत्तिधारियों को ही मिलना चाहिए।
2. रैडिकल :-
(i) रैडिकल समूह के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की आबादी के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो।
(ii) इनमें से बहुत सारे लोग महिला मताधिकार आंदोलन के भी समर्थक थे।
(iii) उदारवादियों के विपरीत ये लोग बड़े जमींदारों और संपन्न उद्योगपतियों को प्राप्त किसी भी तरह के विशेषाधिकारों के खिलाफ़ थे।
(iv) वे निजी संपत्ति के विरोधी नहीं थे लेकिन केवल कुछ लोगों के पास संपत्ति के संकेंद्रण का विरोध जरूर करते थे।
3. रूढ़िवादी :-
(i) रूढ़िवादी तबका रैडिकल और उदारवादी, दोनों के खिलाफ़ था।
(ii) मगर फ्रांसीसी क्रांति के बाद तो रूढ़िवादी भी बदलाव की जरूरत को स्वीकार करने लगे थे।
(iii) पुराने समय में, यानी अठारहवी शताब्दी में रुढ़िवादी आमतौर पर परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे।
(iv) उन्नीसवीं सदी तक आते-आते ये भी मानने लगे थे कि कुछ परिवर्तन आवश्यक हो गया है परंतु वह चाहते थे कि अतीत का सम्मान किया जाए अर्थात् अतीत को पूरी तरह ठुकराया न जाए और बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो।
❖ विभिन्न विचारों के बीच टकराव :-
- फ्रांसीसी क्रांति के बाद पैदा हुई राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान सामाजिक परिवर्तन पर केंद्रित इन विविध विचारों के बीच काफ़ी टकराव हुए उन्नीसवीं सदी में क्रांति और राष्ट्रीय कायांतरण की विभिन्न कोशिशों ने इन सभी राजनीतिक पाराओं की सीमाओं और संभावनाओं को स्पष्ट कर दिया।
❖ औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन :-
1. ये राजनीतिक रुझान एक नए युग का द्योतक थे।
2. यह दौर गहन सामाजिक एवं आर्थिक बदलावों का था।
3. यह ऐसा समय था जब नए शहर बस रहे थे।
4. नए-नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहे थे।
5. रेलवे का काफी विस्तार हो चुका था।
6. औद्योगिक क्रांति संपन्न हो चुकी थी।
❖ औद्योगिक समाज व सामाजिक परिवर्ततनों के कारण उत्पन्न समस्याएँ :-
1. औद्योगीकरण ने औरतों-आदमियों और बच्चों, सबको कारखानों में ला दिया।
2. काम के घंटे यानी पाली बहुत लंबी होती थी।
3. मजदूरी बहुत कम थी।
4. बेरोजगारी आम समस्या थी।
5. औद्योगिक वस्तुओं की माँग में गिरावट आ जाने पर तो बेरोजगारी और बढ़ जाती थी।
6. शहर तेजी से बसते और फैलते जा रहे थे इसलिए आवास और साफ़-सफ़ाई का काम भी मुश्किल होता जा रहा था।
❖ समस्याओं का हल :-
- उदारवादी और रैडिकल, दोनों ही इन समस्याओं का हल खोजने की कोशिश कर रहे थे।
- 1. लगभग सभी उद्योग व्यक्तिगत स्वामित्व में थे। बहुत सारे रैडिकल और उदारवादियों के पास भी काफी संपत्ति थी और उनके यहाँ बहुत सारे लोग नौकरी करते थे। उन्होंने व्यापार या औद्योगिक व्यवसायों के जरिए धन-दौलत इकट्ठा की थी इसलिए वह चाहते थे कि इस तरह के प्रयासों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए।
- 2. उन्हें लगता था कि अगर मजदूर स्वस्थ हों और नागरिक पढ़े-लिखे हों, तो इस व्यवस्था का भरपूर लाभ लिया जा सकता है।
- 3. ये लोग जन्मजात मिलने वाले विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे।
- 4. व्यक्तिगत प्रयास, श्रम और उद्यमशीलता में उनका गहरा विश्वास था।
- 5. उनकी मान्यता थी कि यदि हरेक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी जाए. गरीबों को रोजगार मिले, और जिनके पास पूँजी है उन्हें बिना रोक-टोक काम करने का मौका दिया जाए तो समाज तरक्की कर सकता है।
- इसी कारण उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में समाज परिवर्तन के इच्छुक बहुत सारे कामकाजी स्त्री-पुरुष उदारवादी और रैडिकल समूहों व पार्टियों के इर्द-गिर्द गोलबंद हो गए थे।
❖ क्रांति के पक्ष में :-
- यूरोप में 1815 में जिस तरह की सरकारें बनीं उनसे छुटकारा पाने के लिए कुछ राष्ट्रवादी, उदारवादी और रैडिकल आंदोलनकारी क्रांति के पक्ष में थे। फ्रांस, इटली, जर्मनी और रूस में ऐसे लोग क्रांतिकारी हो गए और राजाओं के तख्तापलट का प्रयास करने लगे।
- राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं क्रांति के जरिए ऐसे ‘राष्ट्रों’ की स्थापना करना चाहते थे जिनमें सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हों। 1815 के बाद इटली के राष्ट्रवादी गिसेप्पे मेजिनी ने यही लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपने समर्थकों के साथ मिलकर राजा के खिलाफ साजिश रची थी।
- भारत सहित दुनिया भर के राष्ट्रवादी उसकी रचनाओं को पढ़ते थे।
❖ यूरोप में समाजवाद का आना :-
- समाज के पुनर्गठन संभवतः सबसे दूरगामी दृष्टि प्रदान करने वाली विचारधारा समाजवाद ही थी।
- उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोप में समाजवाद एक जाना-पहचाना विचार था। उसकी तरफ बहुत सारे लोगों का ध्यान आकर्षित हो रहा था।
❖ समाजवादी विचारधारा :-
- 1. समाजवादी निजी संपत्ति के विरोधी थे। यानी, वे संपत्ति पर निजी स्वामित्व को सही नहीं मानते थे।
- 2. उनका कहना था कि संपत्ति के निजी स्वामित्व की व्यवस्था ही सारी समस्याओं की जड़ है।
- 3. उनका तर्क था कि बहुत सारे लोगों के पास संपत्ति तो है जिससे दूसरों को रोजगार भी मिलता है लेकिन समस्या यह है कि संपत्तिधारी व्यक्ति को सिर्फ अपने फ़ायदे से ही मतलब रहता है; वह उनके बारे में नहीं सोचता जो उसकी संपत्ति को उत्पादनशील बनाते हैं।
- 4. अगर संपत्ति पर किसी एक व्यक्ति के बजाय पूरे समाज का नियंत्रण हो तो साझा सामाजिक हितों पर ज्यादा अच्छी तरह ध्यान दिया जा सकता है।
- 5. समाजवादी इस तरह का बदलाव चाहते थे और इसके लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर अभियान चलाया।
- 6. समाजवादियों के पास भविष्य की एक बिल्कुल भिन्न दृष्टि थी।
❖ विभिन्न समाजवादी तथा उनके विचार :-
(i) कुछ समाजवादियों को कोऑपरेटिव यानी सामूहिक उद्यम के विचार में दिलचस्पी थी। इंग्लैंड के जाने-माने उद्योगपति रॉबर्ट ओवेन (1771-1858) ने इंडियाना (अमेरिका) में नया समन्वय (New Harmony) के नाम से एक नये तरह के समुदाय की रचना का प्रयास किया।
(ii) कुछ समाजवादी मानते थे कि केवल व्यक्तिगत पहलकदमी से बहुत बड़े सामूहिक खेत नहीं बनाए जा सकते। वह चाहते थे कि सरकार अपनी तरफ से सामूहिक खेती को बढ़ावा दे।
- उदाहरण के लिए फ्रांस में लुई ब्लांक (1813-1882) चाहते थे कि सरकार पूंजीवादी उद्यमों की जगह सामूहिक उद्यमों को बढ़ावा दे कोऑपरेटिव ऐसे लोगों के समूह थे जो मिल कर चीजें बनाते थे और मुनाफे को प्रत्येक सदस्य द्वारा किए गए काम के हिसाब से आपस में बाँट लेते थे।
❖ कार्ल मार्क्स के विचार :-
- कार्ल मार्क्स (1818-1882) और फ्रेडरिक एंगेल्स (1820-1895) ने इस दिशा में कई नए तर्क पेश किए।
- 1. मार्क्स का विचार था कि औद्योगिक समाज ‘पूँजीवादी’ समाज है।
- 2. फैक्ट्रियों में लगी पूँजी पर पूँजीपतियों का स्वामित्व है।
- 3. पूँजीपतियों का मुनाफा मजदूरों की मेहनत से पैदा होता है।
- 4. मार्क्स का निष्कर्ष था कि जब तक निजी पूँजीपति इसी तरह मुनाफे का संचय करते जाएँगे तब तक मजदूरों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता।
- 5. अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए मजदूरों पूँजीवाद व निजी संपत्ति पर आधारित शासन को उखाड़ फेंकना होगा।
- 6. मार्क्स का विश्वास था कि खुद को पूँजीवादी शोषण से मुक्त कराने के लिए मजदूरों को एक अत्यंत भिन्न किस्म का समाज बनाना होगा जिसमें सारी संपत्ति पर पूरे समाज का यानी सामाजिक नियंत्रण और स्वामित्व रहेगा।
- 7. उन्होंने भविष्य के इस समाज को साम्यवादी (कम्युनिस्ट) समाज का नाम दिया।
- 8. मार्क्स को विश्वास था कि पूँजीपतियों के साथ होने वाले संघर्ष में जीत अंतत: मजदूरों की ही होगी। उनकी राय में कम्युनिस्ट समाज ही भविष्य का समाज होगा।
❖ समाजवाद के लिए समर्थन :-
- 1. 1870 का दशक आते-आते समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे। अपने प्रयासों में समन्वय लाने के लिए समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनैशनल के नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी बना ली थी।
- 2. इंग्लैंड और जर्मनी के मजदूरों ने अपनी जीवन और कार्यस्थितियों में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरू कर दिया था।
- 3. संकट के समय अपने सदस्यों को मदद पहुँचाने के लिए इन संगठनों के कोष स्थापित किए।
- 4. काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया।
- 5. जर्मनी में सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ इन संगठनों के काफी गहरे रिश्ते थे और संसदीय चुनावों में वे पार्टी की मदद भी करते थे।
- 6. 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों और ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी।
- 7. फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम ऐसी ही एक पार्टी का गठन किया गया।
- 8. 1914 तक यूरोप में समाजवादी कहीं भी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाए।
- 9. संसदीय राजनीति में उनके प्रतिनिधि बड़ी संख्या में जीतते रहे, उन्होंने कानून बनवाने में भी अहम भूमिका निभायी, मगर सरकारों में रुढ़िवादियों, उदारवादियों और रैडिकलों का ही दबदबा बना रहा।
- फ्रांसीसी क्रांति ने समाज में परिवर्तन की संभावनाओं के द्वार खोल दिए।
- इन्हीं संभावनाओं को मूर्त्र रूप देने में तीन अलग-अलग विचारधाराओं का विकास हुआ उदारवादी रूढ़िवादी और परिवर्तनवादी।
- रूढ़िवादियों के मुख्य विचार
- उदारवादियों और परिवर्तनवादियों का विरोध
- अतीत का सम्मान
- बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो
- उदारवादियों के मुख्य विचार
- सभी धर्मो का आदर एवं सम्मान।
- अनियंत्रित सत्ता के विरोधी।
- व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर।
- प्रतिनिधित्व पर आधारित निर्वाचित सरकार और स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्ष में
- सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के स्थान पर संपत्तिधारकों को वोट के अधिकार के पक्ष में।
- परिवर्तनवादियों के मुख्य विचार:
- बहुमत आधारित सरकार के पक्षधर।
- बड़े जमींदारों और सम्पन्न उद्योगपतियों को प्राप्त विशेषाधिकार का विरोध।
- सम्पत्ति के संकेद्रण का विरोध लेकिन निजी सम्पत्ति का विरोध नहीं।
- महिला मताधिकार आंदोलन का समर्थन।
- यह दौर गहन सामाजिक और आर्थिक बदलावों का था।
- औद्योगिक क्रांति के दुष्परिणाम जैसे – काम की लंबी अवधि, कम, मजदूरी, बेरोजगारी, आवास की कमी, साफ-सफाई की अयवस्था आदि ने लोगों को इस (औद्योगिक क्रांति) पर सोचने को विवश कर दिया।
- समाजवादियों के मुख्य विचार:
- निजी सम्पत्ति का विरोध
- सामुहिक समुदायों की रचना (रॉवर्ट ओवेन)
- सरकार द्वारा सामुहिक उद्यमों को बढ़ावा (लुई ब्लॉक)
सारी सम्पत्ति पर पूरे समाज का नियंत्रण एवं स्वामित्व (कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स)
- 1870 का दशक आते-आते समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुका था।
- फरवरी 1917 में राजशाही के पतन से लेकर अक्टूबर 1917 में रूस की सत्ता पर समाजवादियों के कब्जे तक की घटनाओं को रूसी क्रांति कहा जाता है।
रुसी समाज:
- बीसवीं सदी की शुरूआत में रूस की लगभग 85 प्रतिशत जनता खेती पर निर्भर थी।
- कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थे जहाँ काम की दशाएँ बेहद खराब थीं।
- यहाँ के किसान समय-समय पर सारी जमीन अपने कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और फिर कम्यून परिवार की जरूरत के हिसाब से किसानों को जमीन बाँटता था।
- रूस में एक निरंकुश राजशाही था।
- 1904 ई. में जरूरी चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ने लगीं।
- मजदूर संगठन भी बनने लगे जो मजदूरों की स्थिति में सुधार की माँग करने लगे।
- इसी दौरान पादरी गौपॉन के नेतृत्व में मजदूरों के जुलूस पर जार के महल के सैनिकों ने हमला बोल दिया। इस घटना में 100 से ज्यादा मजदूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए। इतिहास में इस घटना को “खूनी रविवार” के नाम से याद किया जाता है।
1905 की क्रांति की शुरूआत इसी घटना से हुई।
- सारे देश में हड़तालें होने लगी।
- विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए।
- वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अन्य मध्यवर्गीय कामगारों ने संविधान सभा के गठन की माँग करते हुए यूनियन ऑफ यूनियन की स्थापना कर ली।
- जार एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद (ड्यूमा) के गठन पर सहमत हुआ परन्तु
- मात्र 75 दिनों के भीतर पहली ड्यूमा, 3 महीने के भीतर दूसरी ड्यूमा को उसने बर्खास्त कर दिया।
- तीसरे ड्यूमा में उसने रूढ़िवादी राजनेताओं को भर दिया ताकि उसकी शक्तियों पर अंकुश न लगे।
1914 ई. में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया जो 1918 तक चला। इसमें दो खेमों केंद्रीय शक्तियाँ (जर्मनी, ऑस्ट्रिया, तुर्की) और मित्र राष्ट्र (फ्रांस, ब्रिटेन व रूस) के बीच लड़ाई शुरू हुई जिसका असर लगभग पूरे विश्व पर पड़ा।
फरवरी क्रांति
फरवरी क्रांति प्रकार:
कारण
- प्रथम विश्व युद्ध का लंबा खिंचना।
- रासपुतिन (एक सन्यासी) का प्रभाव
- असंख्य रूसी सैनिकों की मौत
- सैनिकों का मनोबल गिरना
- शरणार्थियों की समस्या
- खाद्यान्न की कमी
- उद्योगों का बंद होना।
घटनाएँ
- 22 फरवरी को एक फैक्ट्री में तालाबंदी
- 50 अन्य फैक्ट्रियों के मजदूरों की हड़ताल
- हड़ताली मजदूरों द्वारा सरकारी इमारतों का घेराव
- राजा द्वारा कफ्यू लगाना
- 25 फरवरी को ड्यूमा को बर्खास्त करना।
- 27 फरवरी को प्रदर्शन कारियों ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया।
- सिपाही एवं मजदूरों के संगठन (सोवियत) का गठन
- सैनिक कमांडर की सलाह पर जार का गद्दी छोड़ना (2 मार्च 1917)
प्रभाव
- रूस में ज़ारशाही का अंत
- सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा का चुनाव।
- अंतरिम सरकार में सोवियत और ड्यूमा के नेताओं की शिरकत।
अप्रैल थीसिस
अप्रैल थीसिस:
- महान बोल्शेविक नेता लेनिन अप्रैल 1917 में रूस लौटे। उन्होंने तीन माँगे कीं जिन्हें अप्रैल थीसिस कहा गया।
- युद्ध की समाप्ति
- सारी जमीनें किसानों के हवाले
- बैंको का राष्ट्रीयकरण
- अंतरिम सरकार और बोल्शेविकों के बीच टकराव बढ़ते गए।
- 24 अक्टूबर 1917 को विद्रोह शुरू हो गया और शाम ढ़लते-ढ़लते पूरा पैट्रोग्राद शहर बोल्शेविकों के नियंत्रण में आ गया। इस तरह अक्टूबर क्रांति पूर्ण हुई।
- अक्टूबर क्रांति के बाद क्या बदला
- निजी सम्पत्ति का खात्मा
- बैंको एवं उद्योगों का राष्ट्रीयकरण
- जमीनों को सामाजिक सम्पत्ति घोषित करना
- अभिजात्य वर्ग की पुरानी पदवियों पर रोक
- रूस एक दलीय व्यवस्था वाला देश बन गया।
- जीवन के हरेक क्षेत्र में सेंसरशिप लागू।
- गृह युद्ध का आरंभ
गृह युद्ध: क्रांति के पश्चात् रूसी समाज में तीन मुख्य समूह बन गए बोल्शेविक (रेड्स) सामाजिक क्रांतिकारी (ग्रीन्स) और जार समर्थक (व्हाइटस) इनके मध्य गृहयुद्ध शुरू हो गया ‘ग्रीन्स और ‘व्हाइटस’ को फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन से भी समर्थन मिलने लगा क्योंकि ये समाजवादियों (रेड्स) से सशंकित थे।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न 1 रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 ई. से पहले कैसे थे?
उत्तर -19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन हुए थे। इनमें कई देश गणराज्य थे, तो कई संवैधानिक राजतंत्र सामंती व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी और सामंतों का स्थान नए मध्य वर्ग ने ले लिया था। परन्तु रूस अभी भी पुरानी दुनिया में जी रहा था। यह बात रूस की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दशा से स्पष्ट हो जाएगी।
1905 ई. से पूर्व रूस की सामाजिक और आर्थिक स्थिति-
- किसानों की शोचनीय स्थिति- रूस में किसानों की स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी। वहाँ कृषि-दास प्रथा अवश्य समाप्त हो चुकी थी, लेकिन किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ था। उनकी कृषि जोतें बहुत ही छोटी थीं और खेती को विकसित तरीके से करने के लिए उनके पास पूँजी का अभाव था। इन छोटी-छोटी जोतों को पाने के लिए भी उन्हें अनेक दशकों तक मुक्ति कर के रूप में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती थी।
- श्रमिकों की हीन दशा- औद्योगिक क्रांति के कारण रूस में बड़े-बड़े पूँजीपतियों ने अधिक मुनाफा कमाने की इच्छा से मजदूरों का शोषण करना आरम्भ कर दिया। वे उन्हें कम वेतन देते थे तथा कारखानों में उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे। यहाँ तक कि बच्चों व स्त्रियों के जीवन से भी खिलवाड़ करने में वे कभी नहीं चूकते थे। ऐसी अवस्था से बचने के लिए मजदूर एक होने लगे। किन्तु 1900 ई. में इन पर हड़ताल करने व संघ बनाने पर भी रोक लगा दी गई। उन्हें न तो कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही उन्हें सुधारों की कोई आशा थी। ऐसे समय में उनके पास मरने अथवा मारने के अलावा और कोई चारा नहीं था। यूरोप के देशों की तुलना में रूस में औद्योगीकरण बहुत देर से शुरू हुआ। इसीलिए वहाँ के लोग बहुत पिछड़े हुए थे। रूस में उद्योग-धन्धे लगाने के लिए पूँजी का अभाव होने के कारण विदेशी पूँजीपति रूस के धन को लूटकर स्वदेश पहुँचाते रहे। सन् 1904 मजदूरों के लिए बहुत बुरा था। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत बढ़ गए। मजदूरी 20 प्रतिशत घट गयी। कामगार संगठनों की सदस्यता शुल्क नाटकीय तरीके से बढ़ जाता था।
- रूस की राजनीतिक स्थिति- रूस की राजनीतिक स्थिति 1905 ई. से पूर्व अत्यन्त चिंताजनक थी। रूस में जार का निरंकुश शासन था जिसमें जनता ‘पुरानी दुनिया की तरह रह रही थी क्योंकि वहाँ पर अभी तक यूरोप के अन्य देशों की भाँति आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन नहीं हो रहे थे। रूस के किसान, श्रमिक और जनसाधारण की हालत बड़ी खराब थी। रूस में औद्योगीकरण देरी से हुआ। सारा समाज विषमताओं से पीड़ित था। राज्य जनता को कोई अधिकार देने को तैयार नहीं था क्योंकि वह दैवी सिद्धान्त में विश्वास रखता था। जार और उसकी पत्नी बुद्धिहीन और भोग-विलासी थे। वह जनता पर दमनपूर्ण शासन रखना चाहता था।
प्रश्न 2 1917 के पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
उत्तर -1917 के पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले निम्नलिखित स्तरों पर भिन्न थी –
- बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में रूस की आबादी का एक बहुत हिस्सा खेती-बाड़ी से जुड़ा हुआ था।रूसी साम्राज्य का लगभग 85% जनता आजीविका के लिए खेती पर निर्भर थी। यूरोप के किसी भी देश में खेती पर आश्रित जनता का प्रतिशत इतना नहीं था। उदाहरण के तौर पर फ्रांस का 40-50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं था।
- औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरुप यूरोपीय देश औद्योगिक हो चुक थे। जैसे जैसे ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी। परन्तु उद्योग बहुत कम थे।
- जारशाही रूस में किसान सामंतों और नवाबों का बिल्कुल सम्मान नहीं करते थे। बहुधा वे जमीदारों की हत्या भी कर देते थे। इसके विपरीत फ्रांस में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान ब्रिटनी (फ्रांस का एक क्षेत्र) के किसानों ने नवाबों को बचाने के लिए लड़ाइयाँ लड़ी।
- रूसी किसान यूरोप के बाकी किसानों के मुकाबले एक और लिहाज से अलग थे। यहाँ के किसान समय-समय पर सारी जमीन अपने कम्यून को सौंप दे देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक परिवार की ज़रूरत के अनुसार किसानो को जमीन देता था।
- कुछ रूसी समाजवादियों का यह भी मानना था कि दूसरे देशों की तुलना में रूस बहुत तेजी से समाजवादी बना। इसका एकमात्र कारण रूसी किसानों द्वारा जमीन सौंपने ओर बाँटने की प्रक्रिया से संभव हुआ।
- रूसी जारशाही में मजदूर सामाजिक स्तर पर बँटे हुए थे। कुछ मजदूर का अपने गाँवो के साथ गहरे संबंध बनाए हुए थे। बहुत सारे मजदूर स्थाई रूप से शहरों में बस चुके थे। योग्यता और दक्षता के स्तर पर उनमे काफी भेद था।
- 1914 में फैक्ट्री मजदूरों में औरतों की संख्या 31% थी परन्तु उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिलता था।
प्रश्न 3 1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर – जनता के बढते अविश्वास एवं जार की नीतियों से असंतुष्टि के कारण जार का शासन 1917 में खत्म हो गया। जार निकोलस द्वितीय ने राजनैतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी, मतदान के नियम बदल डाले और अपनी सत्ता के विरुद्ध उठे सवालों अथवा नियंत्रण को खारिज कर दिया। रूस में युद्ध प्रारंभ में बहुत लोकप्रिय था और जनता जार का साथ देती थी। जैसे–जैसे युद्ध जारी रहा, जार ने ड्यूमा के प्रमुख दलों से सलाह लेने से मना कर दिया। इस प्रकार उसने समर्थन खो दिया और जर्मन विरोधी भावनाएं प्रबल होने लगीं। जारीना अलेक्सान्द्रा के सलाहकारों विशेषकर रास्पूतिन ने राजशाही को अलोकप्रिय बना दिया। रूसी सेना लड़ाइयाँ हार गई। पीछे हटते समय रूसी सेना ने फसलों एवं इमारतों को नष्ट कर दिया। फसलों एवं इमारतों के विनाश से रूस में लगभग 30 लाख से अधिक लोग शरणार्थी हो गए जिससे हालात और बिगड़ गए।
प्रथम विश्व युद्ध का उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ा। बाल्टिक सागर के रास्ते पर जर्मनी का कब्जा हो जाने के कारण माल का आयात बंद हो गया। औद्योगिक उपकरण बेकार होने लगे तथा 1916 तक रेलवे लाइनें टूट गई। अनिवार्य सैनिक सेवा के चलते सेहतमन्द लोगों को युद्ध में झोंक दिया गया जिसके परिणामस्वरूप, मजदूरों की कमी हो गई। रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गई। 26 फरवरी 1917 को ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया गया। यह आखिरी दांव साबित हुआ और इसने जार के शासन को पूरी तरह जोखिम में डाल दिया। 2 मार्च 1917 को जार गद्दी छोड़ने पर मजबूर हो गया और इससे निरंकुशता का अंत हो गया। किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार का अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन की भूख प्रमुख कारक थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुण्ठा के कारण वे आमतौर पर लगान देने से मना कर देते और प्राय: जमींदारों की हत्या करते। कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं ने भी लोगों को विद्रोह के लिए उत्साहित किया।
प्रश्न 4 दो सूचियाँ बनाइए: एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्टूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
उत्तर – जार की गलत नीतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा जनसाधारण एवं सैनिकों की दुर्दशा के कारण रूस में क्रान्ति का वातावरण तैयार हो चुका था। एक छोटी-सी घटना ने इस क्रान्ति की शुरुआत कर दी और यह दो चरणों में पूरी हुई। ये दो चरण थे- फरवरी क्रान्ति और अक्टूबर क्रान्ति।
संक्षेप में क्रान्ति का सम्पूर्ण घटनाक्रम इस प्रकार है-
- फरवरी क्रान्ति- 1917 ई. के फरवरी माह में शीतकाल में राजधानी पेत्रोग्राद में हालात बिगड़ गए। मजदूरों के क्वार्टरों में खाने की अत्यधिक कमी हो गयी जबकि संसदीय प्रतिनिधि जार की ड्यूमा को बर्खास्त करने की इच्छा के विरुद्ध थे। नगर की संरचना इसके नागरिकों के विभाजन का कारण बन गयी। मजदूरों के क्वार्टर और कारखाने नेवा नदी के दाएँ तट पर स्थित थे। बाएँ तट पर फैशनेबल इलाके जैसे कि विंटर पैलेस, सरकारी भवन तथा वह महल भी था जहाँ ड्यूमा की बैठक होती थी। सर्दी बहुत ज्यादा थी- असाधारण कोहरा और बर्फबारी हुई थी। 22 फरवरी को दाएँ किनारे पर एक कारखाने में तालाबंदी हो गई। अगले दिन सहानुभूति के तौर पर 50 और कारखानों के मजदूरों ने हड़ताल कर दी। कई कारखानों में महिलाओं ने हड़ताल की अगुवाई की। रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया। 27 फरवरी को पुलिस मुख्यालय पर हमला किया गया। गलियाँ रोटी, मजदूरी, बेहतर कार्य घण्टों एवं लोकतंत्र के नारे लगाते हुए लोगों से भर गईं।
घुड़सवार सैनिकों की टुकड़ियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से मना कर दिया तथा शाम तक बगावत कर रहे सैनिकों यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति एवं हड़ताल कर रहे मजदूरों ने मिलकर पेत्रोग्राद सोवियत नाम की सोवियत या काउंसिल बना ली। जार ने 2 मार्च को अपनी सत्ता छोड़ दी और सोवियत तथा ड्यूमा के नेताओं ने मिलकर रूस के लिए अंतरिम सरकार बना ली। फरवरी क्रांति के मोर्चे पर कोई भी राजनैतिक दल नहीं था। इसका नेतृत्व लोगों ने स्वयं किया था। पेत्रोग्राद ने राजशाही का अन्त कर दिया और इस प्रकार उन्होंने सोवियत इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया।
फरवरी क्रान्ति का प्रभाव यह हुआ कि जनसाधारण तथा संगठनों की बैठकों पर से प्रतिबन्ध हटा लिया गया। पेत्रोग्राद सोवियत की तरह ही सभी जगह सोवियत बन गई यद्यपि इनमें एक जैसी चुनाव प्रणाली का अनुसरण नहीं किया गया। अप्रैल, 1917 ई. में बोल्शेविकों के नेता ब्लादिमीर लेनिन देश निकाले से रूस वापस लौट आए। उसने ‘अप्रैल थीसिस’ के नाम से जानी जाने वाली तीन माँगें रखीं। ये तीन माँगें थीं- युद्ध को समाप्त किया जाए, भूमि किसानों को हस्तांतरित की जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। उसने इस बात पर भी जोर दिया कि अब अपने रैडिकल उद्देश्यों को स्पष्ट करने के लिए। बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर कम्युनिस्ट पार्टी रख दिया जाए।
- अक्टूबर क्रान्ति- जनता की सबसे महत्त्वपूर्ण चार माँगें थीं- शांति, भूमि का स्वामित्व जोतने वालों को, कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर-रूसी जातियों को समानता का दर्जा। अस्थायी सरकार का प्रधान केरेस्की इनमें से किसी भी माँग को पूरा न कर सका और सरकार ने जनता का समर्थन खो दिया। लेनिन फरवरी क्रान्ति के समय स्विट्जरलैण्ड में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा था, वह अप्रैल में रूस लौट आया। उसके नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने युद्ध समाप्त करने, किसानों को जमीन देने तथा ‘सारे अधिकार सोवियतों को देने की स्पष्ट नीतियाँ सामने रखीं। गैर-रूसी जातियों के प्रश्न पर भी केवल लेनिन की बोल्शेविक पार्टी के पास एक स्पष्ट नीति थी। अक्टूबर क्रांति अंतरिम सरकार तथा बोल्शेविकों में मतभेद के कारण हुई। सितम्बर में ब्लादिमीर लेनिन ने विद्रोह के लिए समर्थकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। 16 अक्टूबर, 1917 ई. को उसने पेत्रोग्राद सोवियते तथा बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर सामाजिक कब्जा करने के लिए मना लिया। सत्ता पर कब्जे के लिए लियोन ट्रॉटस्की के नेतृत्व में एक सैनिक क्रांतिकारी सैनिक समिति नियुक्त की गई। जब 24 अक्टूबर को विद्रोह शुरू हुआ, प्रधानमंत्री केरेस्की ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने के लिए सैनिक टुकड़ियों को लाने हेतु शहर छोड़ा। क्रांतिकारी समिति ने सरकारी कार्यालयों पर हमला बोला; ऑरोरा नामक युद्धपोत ने विंटर पैलेस पर बमबारी की और 24 तारीख की रात को शहर पर बोल्शेविकों का नियंत्रण हो गया। थोड़ी सी गम्भीर लड़ाई के उपरान्त बोल्शेविकों ने मॉस्को पेत्रोग्राद क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण पा लिया। पेत्रोग्राद में ऑल रशियन कांग्रेस ऑफ सोवियत्स की बैठक में बोल्शेविकों की कार्रवाई को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। अक्टूबर क्रान्ति का नेतृत्व मुख्यत: लेनिन तथा उसके अधीनस्थ ट्रॉटस्की ने किया और इसमें इन नेताओं का समर्थन करने वाली जनता भी शामिल थी। इसने सोवियत पर लेनिन के शासन की शुरुआत की तथा लेनिन के निर्देशन में बोल्शेविक इसके साथ थे।
प्रश्न 5 बोल्शेविकों ने अक्तूबर क्रांति के फौरन बाद कौन-कौन-से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर – अक्तूबर क्रांति के बाद बोल्शेविकों द्वारा किए गए कई बदलाव में शामिल हैं:
- बोल्शेविक निजी संपत्ति के पक्षधर नहीं थे अत: अधिकतर उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
- भूमि को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया और किसानों को उस भूमि पर कब्जा करने दिया गया जिस पर वे काम करते थे।
- शहरों में बड़े घरों के परिवार की आवश्यकता के अनुसार हिस्से कर दिए गए।
- पुराने अभिजात्य वर्ग की पदवियों के प्रयोग पर रोक लगा दी गई।
- परिवर्तन को स्पष्ट करने के लिए बोल्शेविकों ने सेना एवं कर्मचारियों की नई वर्दियाँ पेश की।
- बोल्शेविक पार्टी का नाम बदल कर रूसी कम्यूनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया गया।
- नवंबर में संविधान सभा के चुनावों में बोल्शेविकों की हार हुई और जनवरी 1918 में जब सभा ने उनके प्रस्तावों को खारिज कर दिया तो लेनिन ने सभा बर्खास्त कर दी। मार्च 1918 में राजनैतिक विरोध के बावजूद रूस ने ब्रेस्ट लिटोव्स्क में जर्मनी से संधि कर ली।
- रूस एक-दलीय देश बन गया और ट्रेड यूनियनों को पार्टी के नियंत्रण में रखा गया।
- उन्होंने पहली बार केन्द्रीकृत नियोजन लागू किया जिसके आधार पर पंचवर्षीय योजनाएं बनाई गई।
प्रश्न 6 निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए-
- कुलक
- ड्यूमा
- 1900 से 1930 ई. के बीच महिला कामगार
- उदारवादी
- स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर –
(a) कुलक
ये सोवियत रूस के धनी किसान थे। कृषि के सामूहिकीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत स्तालिन ने इनका अन्त कर दिया। स्तालिन का विश्वास था कि वे अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज इकट्ठा कर रहे थे। 1927-28 ई. तक सोवियत रूस के शहर अन्न आपूर्ति की भारी किल्लत को सामना कर रहे थे। इसलिए इन कुलकों पर 1928 ई. में छापे मारे गए और उनके अनाज के भण्डारों को जब्त कर लिया गया। माक्र्सवादी स्तालिनवाद के अनुसार कुलक गरीब किसानों के वर्ग शत्रु थे। उनकी मुनाफाखोरी की इच्छा से खाने की किल्लत हो गई और अन्तत: स्तालिन को इन कुलकों का सफाया। करने के लिए सामूहिकीकरण कार्यक्रम चलाना पड़ा और सरकार द्वारा नियंत्रित बड़े खेतों की स्थापना करनी पड़ी।
(b) ड्यूमा
ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद थी। रूस के जार निकोलस द्वितीय ने इसे मात्र एक सलाहकार समिति में परिवर्तित कर दिया था। इसमें मात्र अनुदारवादी राजनीतिज्ञों को ही स्थान दिया गया। उदारवादियों तथा क्रान्तिकारियों को इससे दूर रखा गया।
(c) 1900 से 1930 ई. के बीच महिला कामगार
1900 से 1930 ई. के बीच महिला कामगार-महिला मजदूरों ने रूस के भविष्य निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिला कामगार सन् 1914 तक कुल कारखाना कामगार शक्ति का 31 प्रतिशत भाग बन चुकी थी किन्तु उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती थी। महिला कामगारों को न केवल कारखानों में काम करना पड़ता था अपितु उनके परिवार एवं बच्चों की भी देखभाल करनी पड़ती थी। वे देश के सभी मामलों में बहुत सक्रिय थीं। प्राय: अपने साथ काम करने वाले पुरुष कामगारों को प्रेरणा भी देती थीं।
1917 ई. की अक्टूबर क्रान्ति के बाद समाजवादियों ने रूस में सरकार बनाई। 1917 ई. में राजशाही के पतन एवं अक्टूबर की घटनाओं को ही सामान्यत: रूसी क्रांति कहा जाता है। उदाहरण के लिए लॉरेंज टेलीफोन की महिला मजदूर मार्फा वासीलेवा ने बढ़ती कीमतों तथा कारखाने के मालिकों की मनमानी के विरुद्ध आवाज उठाई और सफल हड़ताल की। अन्य महिला मजदूरों ने भी माफ वासीलेवा का अनुसरण किया और जब तक उन्होंने रूस में समाजवादी सरकार की स्थापना नहीं की तब तक उन्होंने राहत की साँस नहीं ली।
(d) उदारवादी
उदारवाद एक क्रमबद्ध और निश्चित विचारधारा नहीं है, इसका सम्बन्ध न किसी एक युग से है और न ही किसी सर्वमान्य व्यक्ति विशेष से। यह तो युगों-युगों तथा अनेक व्यक्तियों के दृष्टिकोणों का परिणाम है। इस विचारधारा के समर्थक प्राय: निम्न विषयों में परिवर्तन चाहते थे |
- उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले।
- व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा को बनाए रखा जाए क्योंकि समाज और राज्य व्यक्ति की प्रगति और उत्थान के साधन मात्र हैं।
- प्रत्येक व्यक्ति को इच्छानुसार व्यवसाय करने तथा सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार होना चाहिए। राज्य को आवश्यक कर ही लगाने चाहिए।
- नागरिकों को कानून के द्वारा आवश्यक स्वतन्त्रता प्रदान की जानी चाहिए जिससे स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हो सके तथा व्यक्ति का विकास तीव्र गति से सम्भव हो सके।
इनके अनुसार व्यक्तियों को प्राचीन रूढ़ियों एवं परम्पराओं का दास नहीं बनना चाहिए। प्रगति एवं विकास के लिए यदि परम्पराओं का विरोध करना पड़े तो भी करना चाहिए।
(e) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
सन् 1929 से स्तालिन के साम्यवादी दल ने सभी किसानों को सामूहिक स्रोतों (कोलखोज) में काम करने का निर्देश जारी कर दिया। ज्यादातर जमीन और साजो-सामान को सामूहिक खेतों में बदल दिया गया। रूस के सभी किसान सामूहिक खेतों पर मिल-जुलकर काम करते थे। कोलखोज के लाभ को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था। इस निर्णय से नाराज किसानों ने सरकार का विरोध किया।
इस विरोध को जताने के लिए वे अपने जानवरों को मारने लगे। परिणामस्वरूप रूस में 1929 से 1931 ई. के बीच जानवरों की संख्या में एक तिहाई की कमी आयी। सरकार द्वारा सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाता था। अनेक विरोधियों को देश से निर्वासित कर दिया गया। सामूहिकीकरण के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। दूसरी तरफ 1930 से 1933 ई. के बीच खराब फसल के बाद सोवियत रूस में सबसे बड़ा अकाल पड़ा। इस अकाल में 40 लाख से अधिक लोग मारे गए।
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