NCERT Class 9 Political Science Chapter 2 संविधान निर्माण|लोकतांत्रिक राजनीति- I
प्रिय विद्यार्थियों आप सभी का स्वागत है आज हम आपको सत्र 2023-24 के लिए Best NCERT Class 9 Political Science Chapter 2 संविधान निर्माण Notes in Hindi | कक्षा 9 राजनीति विज्ञान के नोट्स उपलब्ध करवा रहे है |
9th Class Politial Science Chapter 2 Constitutional Design Notes in Hindi | कक्षा 9 राजनीति विज्ञान नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |Class 9 Raajaniiti Vigyan Chapter 2 Samvidhaan nirmaaṇa Notes PDF Hindi me Notes PDF 2023-24 New Syllabus ke anusar .
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Politial Science | राजनीति विज्ञान |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | संविधान निर्माण | Constitutional Design |
Category | Class 9 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 09 राजनीति विज्ञान
अध्याय = 2
संविधान निर्माण
Constitutional Design
परिचय :-
संविधान :- लिखित नियमों की एक ऐसी किताब है जिसे किसी भी देश में रहने वाले लोग सामूहिक रूप से मानते है। इसे संविधान या सर्वोच्च कानून कहते है।
- देश का सर्वोच्च कानून होने की हैसियत से संविधान नागरिकों के अधिकार, सरकार की शक्ति और उसके काम करने के तौर तरीको के बारे में बताता है।
- संविधान लोंगों के आपसी सम्बन्ध तथा लोगों और सरकार के बीच के सम्बन्ध को तय करता है।
- अभी हाल ही के दिनों में संविधान बनाने का एक उदाहरण दक्षिण अफ्रीका का है।
- हम इस अध्याय की शुरुआत में देखेंगे की और अनुभव करेंगे कि दक्षिण अफ्रीका के लोगों ने किस तरह संविधान को तैयार किया। और निर्माण के काम को अंजाम दिया।
- इसके बाद हम भारतीय संविधान के निर्माण और इसके पीछे के मूल विचारों और मूल्यों के बारे में बात करेंगे।
- और पता करेंगे की यह किस तरह नागरिकों के जीवन और सरकार के अच्छे कामकाज के लिए बढ़िया ढाँचा उपलब्ध कराता है।
- दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान –
दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान
- “मैंने गोरों के प्रभुत्व के खिलाफ संघर्ष किया है और मैंने ही अश्वेतों के प्रभुत्व का विरोध भी किया है। मैंने एक ऐसे लोकतांत्रिक और स्वतंत्र समाज की के बारे में सोचा है जिसमें सभी लोग मिलकर एक साथ रहें और सबको बराबर अवसर मिले हों। मैं इसी आदर्श के लिए जीवित रहना ओर इसे पाना चाहता हूँ और अगर जरूरत पड़ी तो इस आदर्श के लिए मैं अपनी जान देने को भी तैयार हूँ।”
- यह नेल्सन मंडेला का कहना है की जिन पर दक्षिण अफ्रीका की गोरों की सरकार ने देशद्रोह का मुकदमा चलाया था।
- नेल्सन मंडेल और उनके साथ 7 लोगों को जो बड़े नेता थे। उन्हें 1964 में देश में रंगभेद के आधार पर चलने वाली शासन व्यवस्था का विरोध करने के लिए आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।
- 28 वर्षों तक उन्हें दक्षिण अफ्रीका की सबसे खतरनाक/डरावनी जेल, रोब्बेन द्वीप में कैद करके रखा गया था।
रंगभेद के खिलाफ संघर्ष
- रंगभेद नस्ल के आधार पर आधारित उस व्यवस्था या भेदभाव का नाम है जो दक्षिण अफ्रीका में विशिष्ट तौर पर चलाई गई।
- दक्षिण अफ्रीका पर यह व्यवस्था यूरोप के गोरे लोगों ने डाल दी।
- 17वीं और 18वीं सदी में व्यापार करने आई यूरोप की कई कंपनियों ने दक्षिण अफ्रीका को भी उसी तरह हथियारों और जोर-जबर्दस्ती से गुलाम बनाया जैसे भारत को बनाया था।
- भारत में इसके उलट काफी बड़ी संख्या में गोरे लोग दक्षिण अफ्रीका में बस गए और उन्होनें स्थानीय शासन को अपने हाथों में ले लिया।
- रंगभेद की राजनीति ने लोगों को उनकी चमड़ी के रंग के आधार पर बाँट दिया।
- दक्षिण अफ्रीका के स्थानीय लोगों (वहाँ पर रहने वाले लोग) की चमड़ी का रंग काला होता है।
- आबादी में उनका हिस्सा तीन-चौथाई है और उन्हें ‘अश्वेत’ कहा जाता था।
- श्वेत और अश्वेतों के अलावा वहाँ मिश्रित नस्लों जिन्हें ‘रंगीन’ चमड़ी वाला कहा जाता था और भारत से गए लोग भी थे।
- गोरे शासक, गोरों के अलावा शेष सब को छोटा ओर नीचा मानते थे।
- इन्हें वोट डालने का भी अधिकार नहीं था।
- रंगभेद की शासकीय नीति अश्वेतों के लिए खास तौर से दमनकारी थी।
- उन्हें गोरों की बस्तियों में रहने- बसने की इजाजत नहीं थी।
- परमिट होने पर ही वे वहाँ जाकर काम कर सकते थे।
- रेलगाड़ी, बस, टैक्सी, होटल, अस्पताल, स्कूल और कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमाघर, समुद्र तट और सार्वजनिक शौचालयों तक में गोरों और कालों के लिए एकदम अलग-अलग इंतजाम थे।
- इसे पृथक्करण या अलग-अलग करने का इंतजाम कहा जाता था।
- काले लोग गोरों के लिए आरक्षित जगह तो क्या उनके गिरजाघर तक में नहीं जा सकते थे।
- अश्वेतों को संगठन बनाने और इस भेदभाव से भरे व्यवहार का विरोध करने का भी अधिकार नहीं था।
- 1950 से ही अश्वेत, रंगीन चमड़ी वाले और भारतीय मूल के लोगों ने रंगभेद प्रणाली के खिलाफ संघर्ष किया।
- उन्होंने विरोध प्रदर्शन किए और हड़तालें करनें की भी योजना बनाई।
- भेदभाव वाली इस शासन प्रणाली का विरोध करने वाले संगठन अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के झंडे के नीचे एकसाथ हुए।
- इनमें कई मजदूर संगठन और कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी।
- अनेक समझदार और संवेदनशील गोरे लोग भी रंगभेद को खत्म करने के लिए आंदोलन में अफ्रीका नेशनल कांग्रेस के साथ आए और उन्होंने इस संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।
- अनेक देशों ने रंगभेद की निंदा की और इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई।
- लेकिन गोरी सरकार ने हजारों अश्वेत ओर रंगीन चमड़ी वाले लोगों की हत्या और दमन करते हुए अपना शासन जारी रखा।
एक नए संविधान की ओर
- रंगभेद के खिलाफ जब संघर्ष ओर विरोध बढ़ता गया तो सरकार को यह एहसास हो गया कि अब वह ज़ोर-जबर्दस्ती से अश्वेतों पर अपना राज कायम नहीं रख सकती। इसलिए, गोरी सरकार ने अपनी नीतियों में बदलाव करना शुरु किया।
- वे कानून जिनके कारण देश और समाज में भेदभाव पैदा हो रहे थे उन कानूनों का वापस ले लिया गया।
- राजनैतिक दलों पर लगा प्रतिबंध और मीडिया पर लगी पाबंदियों को हटा दिया गया।
- 28 वर्ष तक जेल में कैद रखने के बाद नेल्सन मंडेला को आजाद कर दिया गया।
- आखिरकार 26 अप्रैल 1994 की देर रात को दक्षिण अफ्रीका गणराज्य का नया झंडा लहाराया औरयह दुनिया का एक नया लोकतांत्रिक देश बन गया। रंगभेद वाली शासन व्यवस्था समाप्त हुई और सभी नस्ल के लोगों की मिलीजुली सरकार के गठन का रास्ता खुला।
- यह सब कैसे हुआ? इस बदलाव के बाद नए दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला से यह जानें:- “ऐतिहासिक रूप से एक-दूसरे के दुश्मन रहे दो समूह रंगभेद वाली शासन व्यवस्था की जगह शांतिपूर्ण ढंग से लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाने पर सहमत हो गए क्योंकि दोनों को एक-दूसरे की सलाह पर भरोसा था और वे इसे मानने को तैयार थे। मेरी कामना है कि दक्षिण अफ्रीकी लोग कभी भी अच्छाई पर विश्वास करना न छोड़ें और इस बात में आस्था रखें कि मनुष्य जाति पर विश्वास करना ही हमारे लोकतंत्र का आधार है।”
- नए लोकतांत्रिक संविधान में दक्षिण अफ्रीका के उदय के साथ ही अश्वेत नेताओं ने अश्वेत समाज के अश्वेत लोगों से आग्रह किया कि सत्ता में रहते हुए गोरे लोगों ने जो जुल्म कि थे वे उसे भूल जाएँ और गोरों को माफ कर दें।
- उन्होंने कहा कि आइए, अब सभी नस्लों तथा स्त्री-पुरुष की समानता, लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों पर आधारित नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण करें।
- एक पार्टी ने दमन और नृशंस हत्याओं के जोर पर शासन किया था और दूसरी पार्टी ने आजादी की लड़ाई की अगुवाई की थी।
- नए संविधान के निर्माण के लिए दोनों ही साथ-साथ बैठीं।
- दो वर्षों की चर्चा और बहस के बाद उन्होंने जो संविधान बनाया वैसा अच्छा संविधान दुनिया में कभी नहीं बना था।
- इस संविधान में नागरिकों को जितने व्यापक अधिकार दिए गए हैं उतने दुनिया के किसी भी संविधान ने नहीं दिए हैं।
- साथ ही उन्होनें यह फैसला भी किया था कि मुश्किल मामलों को हल करने की कोशिशों में किसी को भी अलग नहीं किया जाएगा और न ही किसी को बुरा या बेकार मानकर बर्ताव किया जाएगा।
- इस बात पर भी सहमति बनी कि पहले जिसने चाहे जो कुछ किया हो लेकिन अब से हर समस्या के समाधान में सबकी भागीदारी होगी।
- दक्षिण अफ्रीकी संविधान की प्रस्तावना ही इस भावना को बहुत खूबसूरत ढंग से व्यक्त करती है।
- दक्षिण अफ्रीकी संविधान से दुनिया भर के लोकतांत्रिक लोग प्रेरणा लेते हैं।
- अभी हाल तक जिस देश की दुनिया भर में अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों के लिए निंदा की जाती थी, आज उसे लोकतंत्र के मॉडल के रूप में देखा जाता है।
- यह काम दक्षिण अफ्रीकी लोगों द्वारा साथ रहने, साथ काम करने के दृढ़ निश्चय और पुराने कड़वे अनुभवों को आगे के इंद्रधनुषी समाज बनाने में एक सबक के रूप में प्रयोग करने की समझदारी दिखाने के कारण संभव हुआ।
- एक बार फिर नेल्सन मंडेला के शब्दों में ही इस बात को समझें: कि “दक्षिण अफ्रीका का संविधान इतिहास और भविष्य, दोनों की बातें करता है। एक तरफ तो यह एक पवित्र समझौता है कि दक्षिण अफ्रीकी के रूप में हम, एक-दूसरे से यह वायदा करते हैं कि हम अपने रंगभेदी, क्रूर और दमनकारी इतिहास को फिर से दोहराने की अनुमति नहीं देंगे। पर बात इतनी ही नहीं हैं। यह अपने देश को इसके सभी लोगों द्वारा वास्तविक अर्थों में साझा करने का घोषणापत्र भी है- श्वेत और अश्वेत, स्त्री और पुरुष, यह देश पूर्ण रूप से हम सभी का है।”
- हमें संविधान की जरूरत क्यों है? :-
- इस नए लोकतंत्र में दमन करने वाले ओर दमन सहने वाले, दोनों ही साथ-साथ समान हैसियत से रहने की योजना बना रहे थे।
- दोनों के लिए ही एक-दूसरे पर भरोसा कर पाना आसान नहीं था।
- उनके अंदर अपने-अपने किस्म के डर थे वे अपने हितों की रखवाली भी चाहते थे।
- बहुसंख्यक अश्वेत इस बात पर चौकस थे कि लोकतंत्र में बहुमत के शासन वाले मूल सिद्धांत से कोई समझौता न हो।
- उन्हें बहुत सारे सामाजिक और आर्थिक अधिकार चाहिए थे।
- गोरे लोग जो अल्पसख्यक थे उन्हें अपनी संपत्ति और विशेषअधिकारों को लेकर चिंता थी।
- लंबे समय तक हुई बातचीत के बाद दोनों पक्ष समझौते का रास्ता अपनाने को तैयार हुए।
- गोरे लोग बहुमत के शासन का सिद्धांत और एक व्यक्ति एक वोट को मान गए।
- वे गरीब लोगों और मजदूरों के कुछ बुनियादी अधिकारों पर भी सहमत हुए।
- अश्वेत लोग भी इस बात पर सहमत हुए कि सिर्फ बहुमत के आधार पर सारे फैसले नहीं होंगे।
- वे इस बात पर सहमत हुए कि सिर्फ बहुमत के आधार पर सारे फैसले नहीं होंगे।
- वे इस बात पर सहमत हुए कि बहुमत के जरिए अश्वेत लोग अल्पसंख्यक गोरों की जमीन-जायदाद पर कब्जा नहीं करेंगे।
- यह समझौता आसान नहीं था। इसे लागू करने के लिए पहली जरूरत थी कि वे एक-दूसरे पर भरोसा करें और अगर वे एक-दूसरे पर भरोसा कर भी लें तो क्या गांरटी है कि भविष्य में इसे तोड़ा नहीं जाएगा?
- ऐसी स्थिति में भरोसा बनाने और कायम रखने का एक ही तरीका है कि जो बातें तय हुई हैं उन्हें लिखत-पढ़त में ले लिया जाए जिससे सभी लोगों पर उन्हें मानने की मजबूरी बनी रहे।
- भविष्य में शासकों का चुनाव कैसे होगा, इस बारे में नियम तय होकर लिखित रूप में आ जाते हैं।
- चुनी हुई सरकार क्या कर सकती है और क्या नहीं कर सकती इनका दायरा लिखित रूप में मौजूद हो।
- इन्हीं लिखित नियमों में नागरिकों के अधिकार भी होते हैं।
- पर ये नियम तभी काम करेंगे जब जीतकर आने वाले लोग इन्हें आसानी से और मनमाने ढंग से नहीं बदलें।
- दक्षिण अफ्रीकी लोगों ने इन्हीं चीजों का इंतजाम किया।
- वे कुछ बुनियादी नियमों पर सहमत हुए।
- वे इस बात पर भी सहमत हुए कि ये नियम सबसे ऊपर होंगे और कोई भी सरकार इनके खिलाफ नहीं हो सकते।
- इन्हीं बुनियादी नियमों के लिखित रूप को संविधान कहते हैं।
- संविधान की रचना सिर्फ दक्षिण अफ्रीका की ही खासियत नहीं है। हर देश में अलग-अलग समूहों के लोग रहते हैं।
- संभव है कि उनके रिश्ते दक्षिण अफ्रीका के गोरे और कालों जितने कटुता पूर्ण नहीं हो।
- दुनिया भर में लोगों के बीच विचारों और हितों में फर्क रहता है।
- लोकतांत्रिक शासन प्रणाली हो या न हो पर दुनिया के सभी देशों को ऐसे बुनियादी नियमों की जरूरत होती हैं।
- यह बात सिर्फ सरकारों पर ही लागू नहीं होती।
- हर संगठन के कायदे – कानून होते हैं, संविधान होता है।
- इस तरह आपके इलाके का कोई क्ल्ब हो या सहकारी संगठन या फिर कोई राजनैतिक दल, सभी को एक संविधान की जरूरत होती है।
- संविधान लिखित नियमों की ऐसी किताब है जिसे किसी देश में रहने वाले सभी लोग सामूहिक रूप से मानते हैं।
- संविधान सर्वोच्च कानून है जिससे किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों (जिन्हें नागरिक कहा जाता है) के बीच के आपसी संबंध तय होने के साथ-साथ लोगों और सरकार के बीच के संबंध तय होने के साथ-साथ लोगों और सरकार के बीच के संबंध भी तय होते हैं।
- संविधान अनेक काम करता है जिनमें ये प्रमुख हैं:
1. सभी तरह के लोगों के बीच जरूरी भरोसा और सहयोग का विकास हो।
2. सरकार का गठन कैसे होगा और किसे फैसले लेने का अधिकार होगा। यह स्पष्ट हो।
3. यह सरकार के अधिकारों की सीमा तय करता है और हमें बताता है कि नागरिकों के क्या अधिकार हैं।
4. यह अच्छे समाज के गठन के लिए लोगों की इच्छाओं को बताता है। - जिन देशों में संविधान हैं, वे सभी लोकतांत्रिक शासन वाले हों यह जरूरी नहीं है।
- लेकिन जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन है वहाँ संविधान का होना जरूरी है।
- ब्रिटेन के खिलाफ आजादी की लड़ाई के बाद अमेरिकी लोगों ने अपने लिए संविधान का निर्माण किया।
- फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांसीसी लोगों ने एक लोकतांत्रिक संविधान को मान्यता दी।
- इसके बाद से यह चलन हो गया कि हर लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में एक लिखित संविधान हो।
भारतीय संविधान का निर्माण :-
- दक्षिण अफ्रीका की ही तरह भारत का संविधान भी बहुत कठिन परिस्थितियों के बीच बना।
- भारत जैसे विशाल और विविधता भरे देश के लिए संविधान बनाना आसान काम नहीं था।
- भारत के लोग तब गुलाम की हैसियत से निकलकर नागरिक की हैसियत पाने जा रहे थे।
- देश ने धर्म के आधार पर हुए बँटवारे की मुसीबत भी झेली थी।
- भारत और पाकिस्तान के लोगों के लिए बँटवारा भारी बर्बादी और बुरी तरह से डराने वाला अनुभव था।
- विभाजन से जुड़ी हिंसा में सीमा के दोनों तरफ समस्याएँ कम नहीं थी।
- अंग्रेजों ने देसी रियासतों के शासकों को यह आजादी दे दी थी कि वे भारत या पाकिस्तान जिसमें इच्छा हो अपनी रियासत का विलय कर दें या स्वतंत्र रहें।
- इन रियासतों का विलय मुश्किल और अनिश्चय भरा काम था।
- जब संविधान लिखा जा रहा था तब देश का भविष्य इतना सुरक्षित और चैन भरा नहीं लगता था जितना आज है।
- संविधान निर्माताओं को देश के वर्तमान और भविष्य की चिंता थी।
संविधान निर्माण का रास्ता :-
- सारी मुश्किलों के बावजूद भारतीय संविधान निर्माताओं को एक बड़ा लाभ था।
- दक्षिण अफ्रीका में जिस तरह संविधान निर्माण के दौर में ही सारी बातों पर सहमति बनानी पड़ी वैसी स्थिति उस समय के भारत में नहीं थी।
- भारत में आजादी की लड़ाई के दौरान ही लोकतंत्र समेत ज्यादातर बुनियादी बातों पर राष्ट्रीय सहमति बनाने का काम हो चुका था।
- हमारा राष्ट्रीय आंदोलन सिर्फ एक विदेशी सत्ता के खिलाफ संघर्ष भर नहीं था।
- यह न केवल अपने समाज को फिर से जगाने का बल्कि अपने समाज और राजनीति को बदलने और नए सिरे से गढ़ने का आंदोलन भी था।
- आजादी के बाद भारत को किस रास्ते पर चलना चाहिए इसे लेकर आजादी के संघर्ष के दौरान भी तीखे मतभेद थे।
- ऐसे कुछ मतभेद अब तक भी बने हुए हैं।
- पर कुछ बुनियादी विचारों पर लगभग सभी लोगों की सहमति कायम हो चुकी थी।
- 1928 में ही मोतीलाल नेहरु और कांग्रेस के आठ अन्य नेताओं ने भारत का एक संविधान लिखा था।
- 1931 में कराची में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में एक प्रस्ताव में यह रूपरेखा रखी गई थी कि आजाद भारत का संविधान कैसा होगा।
- इन दोनों ही दस्तावेजों में स्वतंत्र भारत के संविधान में सार्वभौम वयस्क मताधिकार, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी।
- इस प्रकार संविधान की रचना करने क लिए बैठने से पहले ही कुछ बुनियादी मूल्यों पर सभी नेताओं की सहमति बन चुकी थी।
- औपनिवेशिक शासन की राजनैतिक संस्थाओं और व्यवस्थाओं को जानने- समझने से भी नई राजनैतिक संस्थाओं का स्वरूप तय करने में मदद मिली।
- अंग्रेजी हुकूमत ने बहुत कम लोगों को वोट का अधिकार दिया था।
- इसके आधार पर अंग्रेजो ने जिस विधायिका का गठन किया था वह बहुत कमजोर थी।
- 1937 के बाद पूरे ब्रिटिश शासन वाले भारत में प्रादेशिक असैंबलियों के लिए चुनाव कराए गए थे।
- इनमें बनी सरकारें पूरी तरह लोकतांत्रिक नहीं थीं।
- पर विधानसभाओं में जाने और काम करने का अनुभव तब बहुत लाभदायक हुआ क्योंकि इन्हीं भारतीय लोगों को अपनी संस्थाएँ और व्यवस्थाएँ बनानी थीं और चलाना था।
- इसी कारण भारतीय संविधान में कई संस्थाओं और व्यवस्थाओं को पुरानी व्यवस्था से लगभग जैसे को तैसा अपना लिया गया जैसे कि 1935 का भारत सरकार कानून।
- आजादी के बाद भारत के स्वरूप को लेकर वर्षों पहले से चले चिंतन और बहसों ने भी काफी लाभ पहुँचाया।
- हमारे नेताओं में इतना आत्मविश्वास आ गया था कि उन्हें बाहर के विचार और अनुभवों को अपनी जरूरत के अनुसार अपनाने में कोई हिचक नहीं हुई।
- हमारे अनेक नेता फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों, ब्रिटेन के संसदीय लोकतंत्र के कामकाज और अमेरिका के अधिकारों की सूची से काफी प्रभावित थे।
- रूस में हुई समाजवादी क्रांति ने भी अनेक भारतीयों को प्रभावित किया और वे सामाजिक और आर्थिक समता पर आधारित व्यवस्था बनाने की कल्पना करने लगे थे।
- लेकिन वे दूसरों की सिर्फ नकल नहीं कर रहे थे। हर कदम पर वे यह सवाल जरूर पूछते थे कि क्या ये चीजें भारत के लिए उपयोगी होंगी।
- इन सभी चीजों ने हमारे संविधान के निर्माण में मदद की।
संविधान सभा :-
- भारत के संविधान के निर्माता कौन थे? यहां आपको संविधान बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले कुछ नेताओं के बारे में बहुत संक्षेप में कुछ-कुछ जानकारियाँ मिलेंगी।
- जनप्रतिनिधियों की जो सभा संविधान नामक विशाल दस्तावेज को लिखने का काम करती है उसे संविधान सभा कहते हैं।
- भारतीय संविधान सभा के लिए जुलाई 1946 में चुनाव हुए थे।
- संविधान सभा की पहली बैठक दिसंबर 1946 को हुई थी।
- इसके तत्काल बाद देश दो हिस्सों – भारत और पाकिस्तान में बँट गया।
- संविधान सभा भी दो हिस्सों में बँट गई – भारत का संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा।
- भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे।
- इसमें 26 नवम्बर 1949 को अपना काम पूरा कर लिया।,
- संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
- इसी दिन की याद में हम हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं।
- इस सभा द्वारा पचास साल से भी पहले बनाए संविधान को हम क्यों मानते हैं?
- संविधान सिर्फ संविधान सभा के सदस्यों के विचारों को ही व्यक्त नहीं करता है।
- यह अपने समय की व्यापक सहमतियों को व्यक्त करता है।
- दुनिया के कई देशों में संविधान को फिर से लिखना पड़ा क्योंकि संविधान में दर्ज बुनियादी बातों पर ही वहाँ के सभी सामाजिक समूहों या राजनैतिक दलों की सहमति नहीं थी।
- कई देशों में संविधान है पर वह कागज का टुकड़ा या किसी भी अन्य किताब की तरह का दस्तावेज भर है।
- कोई भी उस पर आचरण नहीं करता। पर हमारे संविधान का अनुभव एकदम अलग है।
- पिछली आधी सदी से ज्यादा की अवधि में अनेक सामाजिक समूहों ने संविधान के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए।
- किसी भी बड़े सामाजिक समूह या राजनैतिक दल ने खुद संविधान की वैधता पर सवाल नहीं उठाया।
- यह हमारे संविधान की एक असाधारण उपलब्धि है।
- संविधान को मानने का दूसरा कारण यह है कि संविधान सभा भी भारत के लोगों का ही प्रतिनिधित्व कर रही थी।
- उस समय सार्वभौम वयस्क मताधिकार नहीं था।
- इसलिए संविधान सभा का चुनाव देश के लोग प्रत्यक्ष ढंग से नहीं कर सकते थे।
- इसका चुनाव मुख्य रूप से उन प्रांतीय असेंबलियों के सदस्यों ने ही किया था।
- इसके कारण देश के सभी भौगोलिक क्षेत्रों का इसमें उचित प्रतिनिधित्व हो गया था।
- इस सभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों का प्रभुत्व था जिसने राष्ट्रीय आंदोलन की अगुवाई की थी।
- स्वयं काग्रेंस के अंदर कई राजनैतिक समूह और विचारों के लोग थे।
- सभा में कई सदस्य ऐसे थे जो कांग्रेस के विचारों से सहमत नहीं थे।
- सामाजिक रूप से इस सभा में सभी समूह, जाति, वर्ग, धर्म और पेशों के लोग थे।
- अगर संविधान सभा का गठन सार्वभौम वयरूक मातधिकार के जरिए का गठन सार्वभौम वयस्क मताधिकार के जरिए हुआ होता तब भी इसका स्वरूप काफी कुछ इसी तरह का होता ।
- जिस तरह संविधान सभा ने काम किया, वह संविधान को एक तरह की पवित्रता और वैधता देता है।
- संविधान सभा का काम काफी व्यवस्थित, खुला और सर्वसम्मति बनाने के प्रयास पर आधारित था।
- सबसे पहले कुछ बुनियादी सिद्धांत तय किए गए और उन पर सबकी सहमति बनाई गई।
- फिर प्रारूप कमेटी के प्रमुख डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने चर्चा के लिए एक प्रारूप संविधान बनाया।
- संविधान के प्रारूप की प्रत्येक धारा पर कई-कई दौर में चर्चा हुई।
- दो हजार से ज्यादा संशोधनों पर विचार हुआ।
- तीन वर्षों में कुल 114 दिनों की गंभीर चर्चा हुई।
- सभा में पेश हर प्रस्ताव, हर शब्द और वहाँ कही गई हर बात को रिकॉर्ड किया गया और संभाला गया।
- इन्हें कांस्टीट्यूएंट असेम्बली डिबेट्स नाम से 12 मोटे – मोटे खंडो में प्रकाशि किया गया ।
- इन्हीं बहसों से हर प्रावधान के पीछे की सोच और तर्क को समझा जा सकता है।
- संविधान की व्याख्या के लिए भी इस बहस के दस्तावेजे का उपयोग होता है।
भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य :-
- इस किताब में हम विभिन्न विषयों पर संविधान के प्रावधनों का अध्ययन करेंगे।
- हमारे संविधान के पीछे का दर्शन क्या है।
- यह काम हम दो तरीकों से कर सकते हैं।
- अपने नेताओं के संविधान संबंधी विचार पढ़कर हम इस बात को समझ सकते हैं।
- परंतु हमारा संविधान स्वयं अपने दर्शन के बारे में जो कहता हैं उसे पढ़ना भी उतना ही जरूरी है।
- संविधान की प्रस्तावना यह काम करती है।
सपने और वायदे :-
- आपमें से कुछ को भारतीय संविधान निर्माताओं को सूची में एक बड़ा नाम न होने पर हैरानी हुई होगी यानि महात्मा गांधी का नाम।
- वे संविधान सभा के सदस्य नहीं थे। पर संविधान सभा के अनेक सदस्य उनके विचारों के अनुयायी थे।
- 1931 में अपनी पत्रिका “यंग इंडिया” में उन्होनें संविधान से अपनी अपेक्षा के बारे में लिखा था।
- भेदभाव और गैर-बराबरी मुक्त भारत का सपना डॉ. अंबेडकर के मन में भी था जिन्होंने संविधान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
- असमानता कैसे दूर की जा सकती है इस बारे में उनके विचार दूसरों से अलग थे।
- उन्होनें अक्सर गांधी और उनकी नजरिए की कटु आलोचना की।
- संविधान सभा में दिए गए अपने अंतिम भाषण में उन्होनें अपनी चिताओं को बहुत स्पष्ट ढंग से रखा था।
- आखिर में आइए हम 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि के समय संविधान सभा में दिए जवाहर लाल नेहरू के प्रसिद्ध भाषण को याद करें:
- संविधान का दर्शन :-
- जिन मूल्यों ने स्वतंत्रता की प्रेरणा दी और उसे दिशा-निर्देश दिए तथा जो इस क्रम में जाँच-परख लिए गए वे ही भारतीय लोकतंत्र का आधार बने।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इन्हें शामिल किया गया।
- भारतीय संविधान की सारी धाराएँ इन्हीं के अनुरूप बनी हैं।
- संविधान की शुरुआत बुनियादी मूल्यों की एक छोटी-सी उद्देश्यिका के साथ होती है।
- इसे संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका कहते हैं।
- अमेरिकी संविधान की प्रस्तावना से प्रेरणा लेकर समकालीन दुनिया के अधिकांश देश अपने संविधान की शुरुआत एक प्रस्तावना के साथ करते हैं।
- हम अपने संविधान की प्रस्तावना को बहुत सावधानी से पढ़ें और उसमें आए प्रत्येक महत्वपूर्ण शब्द के मतलब को समझे:
- संविधान की प्रस्तावना लोकतंत्र पर एक खूबसूरत कविता-सी लगती हैं।
- इसमें वह दर्शन शामिल है जिस पर पूरे संविधान का निर्माण हुआ है।
- यह दर्शन सरकार के किसी भी कानून और फैसले के मूल्यांकन और परीक्षण का मानक तय करता है- इसके सहारे परखा जा सकता है कि कौन कानून, कौन फैसला अच्छा या बुरा है।
- इसमें भारतीय संविधान की आत्मा बसती है।
- संस्थाओं का स्वरूप
- संविधान सिर्फ मूल्यों और दर्शन का बयान भर नहीं है।
- संविधान इन मूल्यों को संस्थागत रूप देने की कोशिश है।
- जिसे हम भारत का संविधान कहते है उसका अधिकांश हिस्सा इन्हीं व्यवस्थाओं को तय करने वाला है।
- यह एक बहुत ही लंबा और विस्तृत दस्तावेज है इसलिए समय-समय पर इसे नया रूप देने के लिए इसमें बदलाव की जरूरत पड़ती है।
- भारतीय संविधान के निर्माताओं को लगा कि इसे लोगों की भावनाओं के अनुरूप चलना चाहिए और समाज में हो रहे बदलावों से दूर नहीं रहना चाहिए।
- उन्होनें इसे पवित्र, स्थायी और न बदले जा सकने वाले कानून के रूप में नहीं देखा था इसलिए उन्होनें बदलावों को समय-समय पर शामिल करने का प्रावधान भी रखा।
- इन बदलावों को संविधान संशोधन कहते हैं।
- संविधान ने संस्थागत व्यवस्थाओं को बड़ी कानूनी भाषा में दर्ज किया है।
- अगर आप संविधान को पहली बार पढ़ें तो इसे समझना मुश्किल लगेगा।
- फिर भी संस्थाओं के बुनियादी स्वरूप को समझना बहुत मुश्किल नहीं हैं।
- किसी भी संविधान की तरह भारतीय संविधान भी वे नियम बताता है जिनके अनुसार शासकों का चुनाव किया जाएगा।
- इसमें स्पष्ट लिखा है कि किसके पास कितनी शक्ति होगी और कौन किस बारे में फैसले लेगा। साथ ही संविधान नागरिकों को कुछ स्पष्ट अधिकार देकर सरकार के लिए लक्ष्मण रेखा तय कर देता है कि सरकार इससे आगे नहीं बढ़ सकती।
रंगभेद :- दक्षिण अफ्रीका की सरकार की 1948 से 1989 के बीच काले लोगों के साथ नस्ली-अलगाव और खराब व्यवहार करने वाली शासन व्यवस्था।
➲ धारा :- किसी दस्तावेज का खास हिस्सा, अनुच्छेद।
➲ संविधान :- देश का सर्वोच्च कानून। इसमें किसी देश की राजनीति और समाज को चलाने वाले बदलाव।
➲ संविधान सभा :- जनप्रतिनिधियों की वह सभा जो संविधान लिखने का काम करती है।
➲ प्रारूप :- किसी कानूनी दस्तावेज का प्रारंभिक रूप।
➲ दर्शन:- किसी सोच और काम को दिशा देने वाले सबसे बुनियादी विचार।
➲ प्रस्तावना :- संविधान का वह पहला कथन जिसमें कोई देश अपने संविधान के बुनियादी मूल्यों और अवधारणाओं को स्पष्ट ढंग से कहता है।
➲ देशद्रोह :- देश की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश करने का अपराध।
संविधान सभा के महत्त्वपूर्ण सदस्य की सूची :-
नाम | वर्ष | जन्म स्थान | महत्वपूर्ण राजनैतिक पद व योगदान |
वल्लभभाई झावरभाई पटेल (सरदार पटेल) | 1875-1950 | गुजरात | अंतरिम सरकार में गृह, सूचना एवं प्रसारण मंत्री। वकील और बारदोली किसान सत्याग्रह के नेता। भारतीय रियासतों के विलय में निर्णायक भूमिका । बाद में उप प्रधानमंत्री |
सरोजिनी नायडू | 1879-1949 | आंध्र प्रदेश | कवयित्री, लेखिका और राजनैतिक कार्यकर्ता। कांग्रेस की अग्रणी महिला नेता। बाद में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल |
अबुल कलाम आजाद | 1888-1958 | सऊदी अरब | शिक्षाविद, लेखक और धर्मशाला के ज्ञाता, अरबी के विद्वान, कांग्रेसी नेता, राष्ट्रीय आंदोलन में अग्रणी भूमिका, मुस्लिम अलगाववादी राजनीति के विरोधी। बाद में पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री |
टी.टी कृष्णामचारी | 1899-1974 | तमिलनाडु | प्रारूप कमेटी के सदस्य, उद्यमी और कांग्रेसी नेता, बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री |
राजेंद्र प्रसाद | 1884-1963 | बिहार | संविधान सभा के अध्यक्ष, वकील और चंपारण सत्याग्रह के प्रमुख भागीदार, तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष, बाद में भारत के प्रधानमंत्री |
जयपाल सिंह | 1903-1970 | झारखंड | खिलाड़ी ओर शिक्षाविद, भारतीय हॉकी टीम के पहले कप्तान, आदिवासी महासभा के संस्थापक अध्यक्ष, बाद में झारखंड पार्टी के संस्थापक। |
एच. सी मुखर्जी | 1887-1956 | बंगाल | संविधान सभा के उपाध्यक्ष, प्रसिद्ध लेखक और शिक्षाविद, कांग्रेसी नेता, ऑल इंडिया क्रिश्चियन कौंसिल और बंगाल विधानसभा के सदस्य, बाद में बंगाल के राज्यपाल। |
जी. दुर्गाबाई देशमुख | 1909-1981 | आंध्र प्रदेश | वकील ओर महिला मुक्ति कार्यकर्त्ता, आंध्र महिला सभा की संस्थापक, कांग्रेस की सक्रिय नेता, बाद में केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की संस्थापक अध्यक्ष। |
बलदेव सिंह | 1901-1961 | हरियाणा | सफल उद्यमी और पंजाब विधानसभा में पंथक अकाली पार्टी के नेता, संविधान सभा में कांग्रेस द्वारा मनोनीत, बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री |
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी | 1887-1971 | गुजरात | वकील, इतिहासकार और भाषाविद, कांग्रेसी नेता और गांधीवादी, बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री, स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक। |
श्यामा प्रसाद मुखर्जी | 1901-1953 | पश्चिम बंगाल | अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री, शिक्षाविद और वकील, हिन्दू महासभा में सक्रिय, बाद में भारतीय जनसंघ के संस्थापक। |
भीमराव रामजी अंबेडकर | 1891-1956 | महाराष्ट्र | प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष, सामाजिक क्रांतिकारी चिंतक, जातिगत बँटवारे और भेदभाव के खिलाफ अग्रणी आंदोलनकारी, बाद में स्वतंत्र भारत की पहली सरकार में कानून मंत्री, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के संस्थापक। |
जवाहर लाल नेहरु | 1889-1964 | उत्तरप्रदेश | अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री, वकील और कांग्रेस नेता, समाजवाद, लोकतंत्र और साम्राज्यवाद विरोध के पक्षधर, बाद में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री। |
सोमनाथ लाहिड़ी | 1901-1984 | पश्चिम बंगाल | लेखक और संपादक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, बाद में पश्चिम बंगाल विधानसभा में सदस्य। |
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