NCERT Class 9 Political Science Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज|लोकतांत्रिक राजनीति- I
प्रिय विद्यार्थियों आप सभी का स्वागत है आज हम आपको सत्र 2023-24 के लिए Best NCERT Class 9 Political Science Chapter 4 संस्थाओं का कामकाज Notes in Hindi | कक्षा 9 राजनीति विज्ञान के नोट्स उपलब्ध करवा रहे है |
9th Class Politial Science Chapter 4 WORKING OF INSTITUTIONS Notes in Hindi | कक्षा 9 राजनीति विज्ञान नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |Class 9 Raajaniiti Vigyan Chapter 4 Samsthaaon kaa kaamakaaj Notes PDF Hindi me Notes PDF 2023-24 New Syllabus ke anusar .
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Politial Science | राजनीति विज्ञान |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | संस्थाओं का कामकाज | WORKING OF INSTITUTIONS |
Category | Class 9 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 09 राजनीति विज्ञान
अध्याय = 4
संस्थाओं का कामकाज
WORKING OF INSTITUTIONS
✔ परिचय
- • लोकतंत्र का मतलब लोगों द्वारा अपने शासकों का चुनाव करना भर नहीं है।
- • लोकतांत्रिक व्यवस्था में शासकों को भी कुछ कायदे-कानूनों को मानना होता हैं।
- • संस्थाओं के साथ और संस्थाओं के भीतर ही रहकर काम करना होता है।
- • लोकतंत्र में संस्थाओं के कामकाज से संबंधित है
- • इन फैसलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली तीन संस्थाओं के नाम है
- 1. विधायिका
- 2. कार्यपालिका
- 3. न्यायपालिका
- • ये संस्थाएँ मिलकर किस तरह से सरकार का काम करती हैं।
- • कई बार इनकी तुलना दूसरी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को इसी तरह की संस्थाओं से करते हैं।
- • राष्ट्रीय स्तर की सरकार के कामकाज से उदाहरण देंगे राष्ट्रीय स्तर पर भारत की सरकार को केन्द्र या संघ की सरकार भी कहा जाता है।
- • अपने प्रदेश की सरकार के कामकाज के उदाहरणों पर भी नजर रख सकते है।
✤ प्रमुख नीतिगत फैसले कैसे किए जाते हैं?
एक सरकारी आदेश
- • 13 अगस्त 1990 के दिन भारत सरकार ने एक आदेश जारी किया। इसे कार्यालय ज्ञापन कहा गया।
- • सभी सरकारी आदेशों की तरह, इस ज्ञापन पर भी एक संख्या थी। यह आदेश उसी संख्या से जाना जाता है ओ.एम.न. 36012/31/90।कार्मिक, जनशिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के एक संयुक्त सचिव, ने इस आदेश पर दस्तखत किए थे।
- • यह छोटा-सा आदेश, मुश्किल से एक पन्ने का था। यह एक वैसा ही आम या नोटिस लगेगा जैसे आपने स्कूल में देखे होंगे।
- • सरकार हर रोज विभिन्न मसलों पर सैकड़ों आदेश जारी करती है। लेकिन यह आदेश बहुत महत्त्वपूर्ण था और कई सालों तक विवाद का कारण बना रहा।
- • यह निर्णय किस तरह लिया गया और इसके बाद क्या हुआ।
- • इस सरकारी आदेश में एक प्रमुख नीतिगत फैसले की घोषणा की गई थी।
- • इसमें कहा गया था कि भारत सरकार के सरकारी पदों और सेवाओं में 27 प्रतिशत रिक्तियाँ सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) के लिए आरक्षित होंगी।
- • अब तक जिन जाति समूहों को सरकार पिछड़ा मानती है उन्हीं का एक और नाम एसईबीसी (सोशली एंड एजुकेशनली बैंकवर्ड क्लासेज) हैं।
- • अब तक नौकरी में आरक्षण का लाभ केवल अनुसूचित जाति और जनजातियों को ही मिल रहा था।
- • अब एसईबीसी या सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गो के लिए, तीसरी श्रेणी तैयार की जा रही थी और इनके लिए 27 प्रतिशत का अलग कोटा तैयार किया जा रहा था।
✤ निर्णय करने वाले
- • इस ज्ञापन को जारी करने का फैसला किसने किया? जाहिर है, अकेले उस व्यक्ति ने इतना बड़ा फैसला नहीं किया होगा जिसके हस्ताक्षर उस दस्तावेज पर थे।
- • वह अपने मंत्री द्वारा दिए गए निर्देशों को लागू करने वाला अधिकारी था।
- • कर्मिक और प्रशिक्षण विभाग के मंत्री ने भी खुद यह निर्णय नहीं किया होगा
- • इतने बड़े निर्णय में देश के सभी प्रमुख अधिकारी शामिल रहे होंगे।
✤ इस फैसले में प्रमुख भूमिका निभाने वाले व्यक्ति व संस्थाऐं।
- 1. राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है और औपचारिक रूप से देश का सबसे बड़ा अधिकारी होता है।
- 2. प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है और दरअसल सरकार की और से अधिकांश अधिकारों का इस्तेमाल वही करता है।
- 3. प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति मंत्रियों को नियुक्त करता है। इनसे बनने वाले मंत्रिमंडल की बैठकों में ही राजकाज से जुड़े अधिकतर निर्णय लिए जाते हैं।
- 4. संसद के दो सदन हाते हैं 1. लोकसभा 2. राज्यसभा। प्रधानमंत्री को लोकसभा के सदस्यों के बहुमत का समर्थन हासिल होना जरूरी है।
- • यह सरकारी आदेश एक लंबे घटनाचक्र का परिणाम था। भारत सरकार ने 1979 में दूसरा पिछड़ी जाति आयोग गठित किया था।
- • इसकी अध्यक्षता बी.पी मंडल ने की थी और इसी के कारण इसे आम तौर पर मंडल आयोग कहते हैं।
- • भारत में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए मापदंड तय करने और उनका पिछड़ापन दूर करने के उपाय बताने का जिम्मा सौंपा गया।
- • इस आयोग ने 1980 में सरकारी नौकरियों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देना। इस रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों पर संसद में चर्चा हुई।
- • वर्षों तक कई पार्टियाँ और सांसद इसे लागू करने की माँग करते रहे। फिर 1989 का लोकसभा चुनाव हुआ।
- • जनता दल ने अपने चुनाव घोषणपत्र में वादा किया कि सत्ता में आने पर वह मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करेगा।
- • चुनाव के बाद जनता दल की ही सरकार बनी और इसके नेता वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने।
- 1. नयी सरकार ने संसद में राष्ट्रपति के भाषण के जरिए मंडल रिपोर्ट लागू करने की अपनी मंशा की घोषणा की।
- 2. 6 अगस्त 1990 को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इसके बारे में एक औपचारिक निर्णय किया गया।
- 3. अगले दिन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह ने एक बयान के जरिए इस निर्णय के बारे में संसद के दोनों सदनों को सूचित किया।
- 4. कैबिनेट के फैसलें को काम तथा प्रशिक्षण विभाग को भेज दिया गया। विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कैबिनेट के निर्णय के मुताबिक एक आदेश तैयार किया और मंत्री की स्वीकृति केंद्रीय सरकार की तरफ से ली। एक अधिकारी ने उस आदेश पर हस्ताक्षर किए और इस तरह 13 अगस्त 1990 को ओ. एम. नं. 36012/31/90 तैयार हो गया।
- • अगले कुछ महीनों तक यह देश का सबसे ज्यादा चर्चित मुद्दा बना रहा।
- • सभी अखबार और पत्रिकाओं में इस मुद्दे पर तरह-तरह के विचार आये, बहस चली।
- • इसके चलते कई प्रदर्शन और जवाबी प्रदर्शन हुए। इनमें से कुछ हिंसक भी थे।
- • इससे नौकरियों के हजारों अवसर प्रभावित होने वाले थे। कुछ लोगों का मानना था कि भारत में विभिन्न जातियों के बीच असमानता के कारण ही नौकरियों में आरक्षण जरूरी है।
- • उनका मानना था कि इससे उन लोगों को बराबरी पर आने का मौका मिलेगा जिनको सरकारी नौकरियों में अभी तक उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।
- • दूसरे पक्ष के लोगों का मानना था कि इस निर्णय से जो पिछड़े वर्ग के नहीं हैं उनके अवसर छिनेंगे। अधिक योग्यता होने पर भी उनको नौकरियां नहीं मिलेंगी।
- • कुछ लोगों का मानना था कि इससे जातिवाद बढ़ेगा जिससे देश की प्रगति और एकता पर असर होगा।
- • यह निर्णय अच्छा था नहीं- इस अध्याय में हम इस बारे में बात नहीं करेंगे। हम इस उदाहरण को यहाँ सिर्फ यह समझाने के लिए बता रहे हैं कि देश में प्रमुख निर्णय कैसे लिए जाते हैं और उन्हें कैसे लागू किया जाता है।
- • आप जानते हैं कि सरकारी निर्णय से उठने वाले विवादों का निपटारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय करते हैं।
- • इस आदेश के विरोधी कुछ लोगों और संस्थाओं ने अदालतों में कई मुकदमें दायर कर दिए।
- • उन्होंने अदालत से इस आदेश को अवैध घोषित करके लागू होने से रोकने की अपील की।
- • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी मुकदमों को एक साथ जोड़ दिया। इस मुकदमें को ‘इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत सरकार मामला’ कहा जाता है।
- • सर्वोच्च न्यायालय के 11 सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।
- • उन्होनें 1992 में बहुमत से फैसला किया कि भारत सरकार का यह आदेश अवैध नहीं है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से उसके मूल आदेश में कुछ संशोधन करने को कहा।
- • उसने कहा कि पिछड़े वर्ग की अच्छी स्थिति वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
- • उसी के मुताबिक, 8 सितंबर 1993 को कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने एक और आदेश जारी किया।
- • यह विवाद सुलझ गया और तभी से इस नीति पर अमल किया जा रहा है।
✤ राजनैतिक संस्थाओं की आवश्यकता :-
- • हमने एक उदाहरण देखा कि सरकार कैसे काम करती है।
- • किसी देश को चलाने में इस तरह की कई गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
- • मिसाल के तौर पर, सरकार पर नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और सबको शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराने की जिम्मेदारी होती है।
- • वह कर इकट्ठा करती है और इसे सेना, पुलिस तथा विकास कार्यक्रमों पर खर्च करती है।
- • वह विभिन्न कल्याणकारी योजनाएँ बनाकर उन्हें लागू करती है।
- • कुछ व्यक्तियों को इन गतिविधियों को चलाने के लिए फैसला करना होता है।
- • कुछ लोगों को इन्हें लागू कराना होता है अगर इन फैसलों या फिर लागू करने में कोई विवाद उठता है तो यह तय करने वाला भी कोई विवाद उठता है तो यह तय करने वाला भी कोई होना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत है।
- • सबके लिए यह जानना भी जरूरी है कि कौन किस काम को करने क लिए जिम्मेदार है।
- • यह भी जरूरी है कि भले ही प्रमुख पदों पर बैठे लोग बदल जाएँ लेकिन ये गतिविधियाँ जारी रहें।
- • लिहाजा, सभी आधुनिक लोकतांत्रिक देशों में इन कामों को देखने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएँ की गई हैं।
- • इस तरह की व्यवस्थाओं को संस्थाएँ कहते हैं। कोई भी लोकतंत्र तभी ठीक से काम करता है जब ये संस्थाएँ अपने काम को अच्छी तरह करती है।
- • किसी भी देश के संविधान में प्रत्येक संस्था के अधिकारों और कार्यों के बारे में बुनियादी नियमों का वर्णन होता है।
✤ इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत सरकार मामला :-
- इसके विरोधी कुछ लोगों और संस्थाओं ने अदालतों में कई मुकदमें दायर किए।
- इस आदेश को अवैध घोषित करके लागू होने से रोकने की अपील की।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी मुकदमों को एक साथ जोड़ दिया। इस मुकदमें को “इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत सरकार मामला” कहा जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के 11 सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी।
- उन्होंने 1992 में बहुमत से फैसला किया कि भारत सरकार का यह आदेश अवैध नहीं है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से उसके मूल आदेश में कुछ संशोधन करने को कहा।
- पिछड़े वर्ग की अच्छी स्थिति वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिऐ।
- उसी के मुताबिक 8 सितम्बर को कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने एक और आदेश जारी किया।
- यह विवाद सुलझ गया और तभी से इस नीति पर अमल किया जा रहा हैं।
- राजनैतिक संस्थाओं की आवश्यकता :-
- सरकार पर नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और सबको शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराने की जिम्मेदारी होती है।
- वह कर इकट्टा करती है और इसे सेना, पुलिस, तथा विकास के कार्यक्रमों पर खर्च करती हैं।
- वह विभिन्न कल्याणकारी योजनाएँ बनाकर उन्हें लागू करती है।
- कुछ व्यक्ति इन गतिविधियों को चलाने के लिए फैसला करते हैं।
- कुछ लोग इन्हें लागू करते हैं इन फैसलों में या लागू करने में कोई विवाद उठता है तो यह तय करने वाला भी कोई होना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत है।
- सबके लिए यह जानना भी जरूरी है कि कौन किस काम को करने के लिए जिम्मेदार है।
✤ विभिन्न संस्थाओं को काम :-
- 1. प्रधानमंत्री और कैबिनेट ऐसी संस्थाएँ हैं जो सभी महत्त्वपूर्ण नीतिगत फ़ैसले करती हैं।
- 2. मंत्रियों द्वारा किए गए फैसले को लागू करने के उपायों के लिए एक निकाय के रूप में नौकरशाह जिम्मेदार होते हैं।
- 3. सर्वोच्च न्यायालय वह संस्था है, जहाँ नागरिक और सरकार के बीच विवाद अंतत: सुलझाए जाते हैं।
- • संस्थाओं के साथ काम करना आसान नहीं है। संस्थाओं के साथ कायदे-कानून जुड़े होते हैं।
- • इनसे नेताओं के हाथ बंध सकते हैं संस्थाओं के कामकाम में कुछ बैठकें, कुछ समितियाँ और कुछ रूटीम काम होता है
- • कुछ सामान्य रूटीन होता है इनके कारण अवसर काम में देरी और परेशानियाँ होती हैं।
- • इसलिए संस्थाओं के साथ कामकाज में परेशानी महसूस की जा सकती है।
- • ऐसे ही कोई सोच सकता है कि एक ही व्यक्ति सारे फैसले ले तो ज्यादा बेहतर होगा।
- • लोकतंत्र की बुनियादी भावना के अनुकूल नहीं है। संस्थाओं के कामकाज के तरीकों से जो कुछ परेशानियाँ होती हैं थोड़ा वक्त लगता है, वह भी कई मायने में उपयोगी होता हैं।
- • किसी भी फैसले के पहले अनेक लोगों से राय-विचार करने का अवसर मिल जाता है।
- • संस्थाओं के कारण एक अच्छा फैसला झटपट करना आसान नहीं होता लेकिन संस्थाएँ बुरा फैसला भी जल्दी ले पाना मुश्किल बना देती हैं, इसी कारण लोकतांत्रिक सरकारें संस्थाओं पर जोर देती है।
✤ संसद :-
- • कार्यालय ज्ञापन के उदाहरण में क्या आपको संसद की भूमिका याद है? शायद नहीं।
- • चूंकि यह फैसला संसद ने नहीं किया था, लिहाजा आपको लग सकता है कि इस फैसले में संसद की कोई भूमिका नहीं थी।
- • लेकिन पहले हम कुछ घटनाओं पर नजर डालकर देखते हैं कि क्या उनमें संसद का कहीं कोई जिक्र था।
- • हम उन्हें निम्नलिखित वाक्यों को पूरा करके याद करने की कोशिश करते है।
- 1. मंडल आयोग की रिपोर्ट पर …. चर्चा हुई थी
- 2. भारत के राष्ट्रपति ने इसका …. ज़िक्र किया था
- 3. प्रधानमंत्री ने ….
- • यह फैसला सीधे संसद में नहीं किया गया था लेकिन इस रिपोर्ट पर संसद में हुई चर्चा से सरकार की राय प्रभावित हुई थी।
- • इसकी वजह से सरकार पर मंडल आयोग की सिफारिश पर कार्रवाई करने के लिए दबाव पड़ा था
- • अगर संसद इस फैसले के पक्ष में नहीं होती तो सरकार यह कदम नहीं उठा सकती थी।
- • हर लोकतंत्र में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की सभा, जनता की और से सर्वोच्च राजनैतिक अधिकार का प्रयोग करती है।
- • भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों की राष्ट्रीय सभा को संसद कहा जाता है। राज्य स्तर पर इसे विधानसभा कहते हैं।
- • अलग – अलग देशों में इनके नाम अलग – अलग हो सकते हैं पर हर लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधियाँ की सभाएं होती है।
- • यह जनता की और से कई तरह से राजनैतिक अधिकार का प्रयोग करती है।
- 1. किसी भी देश में कानून बनाने का सबसे बड़ा अधिकार संसद को होता है। कानून बनाने या विधि निर्माण का यह काम इतना महत्त्वपूर्ण होता है कि इन सभाओं को विधायिका कहते हैं दुनिया भर की संसदें नए कानून बना सकती हैं, मौजूदा कानूनों में संशोधन कर सकती हैं या मौजूदा कानून को खत्म कर उसकी जगह नये कानून बना सकती हैं।
- 2. दुनिया भर में संसद सरकार चलाने वालों को नियंत्रित करने के लिए कुछ अधिकारों का प्रयोग करती हैं। भारत जैसे देश में उसे सीधा और पूर्ण नियंत्रण हासिल है। संसद के पूर्ण समर्थन की स्थिति में ही सरकार चलाने वाले फैसले कर सकते हैं।
- 3. सरकार के हर पैसे पर संसद का नियंत्रण होता है। अधिकांश देशों में संसद की मंजूरी के बाद ही सार्वजनिक पैसे को खर्च किया जा सकता है।
- 4. सार्वजनिक मसलों और किसी देश की राष्ट्रीय नीति पर चर्चा और बहस के लिए संसद ही सर्वोच्च संघ है। संसद किसी भी मामले में सूचना माँग सकती है।
✤ संसद के दो सदन
- • आधुनिक लोकतंत्रों में संसद बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है लिहाजा अधिकांश बड़े देशों ने संसद की भूमिका और अधिकारों को दो हिस्सों में बाँट दिया है। इन्हें चेंबर या सदन कहते हैं।
- • पहले सदन के सदस्य आम तौर से सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं और जनता की ओर से असली अधिकारों का प्रयोग करते हैं।
- • दूसरे सदन के सदस्य अमूमन परोक्ष रूप से चुने जाते हैं और कुछ विशेष काम करते हैं।
- • दूसरे सदन का सामान्य काम विभिन्न राज्य, क्षेत्र और संघीय इकाइयों के हितों की निगरानी करना होता है।
- • हमारे देश में संसद के दो सदन हैं।
- • दोनों सदनों में एक को राज्यसभा (काउंसिल ऑफ स्टेट्स) और दूसरे को लोकसभा (हाउस ऑफ पी पल) के नाम से जाना जाता है।
- • भारत का राष्ट्रपति संसद का हिस्सा होता है हालांकि वह दोनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता।
- • इसीलिए संसद के फैसले राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही लागू होते हैं।
- • संसद के दोनों सदनों के गठन में प्रमुख अंतर को याद करते हैं।
- • इन मामलों में लोकसभा और राज्यसभा के बारे में अलग अलग जवाब दीजिए।
✤ लोकसभा बनाम राज्य सभा :-
- • राज्ससभा को कभी-कभी अपर हाउस और लोकसभा को लोअर हाउस कहा जाता है, अब जनता को यह निर्णय लेना होगा कि दोनों में से ज्यादा शक्तिशाली कौन है।
- • इसका यह मतलब नहीं है कि राज्यसभा लोकसभा से ज्यादा प्रभावशाली होती है।
- • यह महज बोलचाल की पुरानी शैली है और हमारे संविधान में यह भाषा इस्तेमाल नहीं की गई है।
- • हमारे संविधान में राज्यों के संबंध में राज्यसभा को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं।
- • लेकिन अधिकतर मसलों पर सर्वोच्च अधिकार लोकसभा के पास ही है।
- 1. किसी भी सामान्य कानून को पारित करने के लिए दोनों सदनों की जरूरत होती है। लेकिन अगर दोनों सदनों के बीच कोई मतभेद हो तो अंतिम फैसला दोनों के संयुक्त अधिवेशन में किया जाता है इसमें दोनों सदनों के सदस्य एक साथ बैठते हैं सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण इस तरह की बैठक में लोकसभा के विचारों को प्राथमिकता मिलने की संभावना होती है।
- 2. लोकसभा पैसे के मामलों में अधिक अधिकारों का प्रयोग करती है। लोकसभा में सरकार का बजट या पैसे से संबंधित कोई कानून पारित हो जाए तो राज्यसभा उसे खारिज नहीं कर सकती। राज्यसभा उसे पारित करने में केवल 14 दिनों की देरी कर सकती है या उसमें संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है। यह लोकसभा का अधिकार है कि वह उन सुझावों को माने या न माने।
- 3. सबसे बड़ी बात यह है कि लोकसभा मंत्रिपरिषद् को नियंत्रित करती है। सिर्फ वही व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है जिसे लोकसभा में बहुमत हासिल हो। अगर आधे से अधिक लोकसभा सदस्य यह कह दें कि उन्हें मंत्रिपरिषद् पर विश्वास नहीं है तो प्रधानमंत्री समेत सभी मंत्रियों को पद छोड़ना होगा। राज्यसभा को यह अधिकार हासिल नहीं है।
✤ राजनैतिक कार्यपालिका
- • सरकारी आदेश की जिस कहानी के दस्तावेज पर व्यक्ति ने हस्ताक्षर किये थे उसने यह फैसला नहीं किया था।
- • वह केवल एक नीतिगत फैसले को लागू कर रहा था जिसे किसी और ने किया था।
- • हमने यह फैसला करने में प्रधानमंत्री की भूमिका देखी थी लेकिन, हम यह भी जानते है कि अगर उन्हें लोकसभा का समर्थन नहीं होता तो वे वह फैसला नहीं कर सकते थे।
- • इस अर्थ में वे सिर्फ संसद की मर्जी को लागू कर रहे थे।
- • इसी तरह किसी भी सरकार के विभिन्न स्तरों पर हमें ऐसे अधिकारी मिलते हैं जो रोजमर्रा के फैसले करते हैं।
- • लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि वे जनता के द्वारा दिए गए सबसे बड़े अधिकारों को इस रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
- • इन सभी अधिकारियों को सामूहिक रूप से कार्यपालिका के रूप में जाना जाता है।
- • सरकार की नीतियों को कार्यरूप देने के कारण इन्हें कार्यपालिका कहा जता है।
- • इस तरह जब हम सरकार के बारे में बात करते हैं तो हमारा तात्पर्य आम तौर पर कार्यपालिका से ही होता है।
✤ राजनैतिक और स्थायी कार्यपालिका :-
- • किसी लोकतांत्रिक देश में कार्यपालिका के दो हिस्से होते है। जनता द्वारा खास अवधि तक के लिए निर्वाचित लोगों को राजनैतिक कार्यपालिका कहते हैं।
- • ये राजनैतिक व्यक्ति होते हैं जो बड़े फैसले करते हैं। दूसरी और जिन्हें लंबे समय के लिए नियुक्त किया जाता है उन्हें स्थायी कार्यपालिका या प्रशासनिक सेवक कहते हैं।
- • लोक सेवाओं में काम करने वाले लोगों को सिविल सर्वेंट या नौकरशाह कहते हैं।
- • वे सत्ताधारी पार्टी के बदलने के बावजूद अपने पदों पर बने रहते हैं।
- • ये अधिकारी राजनैतिक कार्यपालिका के तहत काम करते हैं और रोजमर्रा के प्रशासन में उनकी सहायता करते हैं।
- • नौकरशाह आमतौर पर अधिक शिक्षित होता है और उसे विषय का अधिक ज्ञान होता है और वह उस विषय पर अधिक महारथ और जानकारी रखता है।
- • वित्त मंत्रालय में काम करने वाले सलाहकारों को अर्थशास्त्र की जानकारी वित्त मंत्री से ज्यादा हो सकती है।
- • कभी – कभी मंत्रियों को अपने मंत्रालय के अधीनस्थ मामलों की तकनीकी जानकारी बहुत कम हो सकती है।
- • रक्षा, उद्योग, स्वास्थ्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, खान आदि मंत्रालयों में ऐसा होना आम बात है।
- • वजह बहुत सीधी है किसी भी लोकतंत्र में लोगों की इच्छा ही सर्वोपरि होती है।
- • मंत्री लोगों द्वारा चुना गया होता है ओर इस तरह उसे जनता की और से उनकी इच्छाओं को लागू करने का अधिकार होता है और इस तरह उसे जनता की और से उनकी इच्छाओं को लागू करने का अधिकार होता है।
- • वह अपने फैसले के नतीजे के लिए लोगों के प्रति जिम्मेदार होता है।
- • इसी वजह से मंत्री ही सारे फैसले करता है मंत्री ही उस ढाँचे और उद्देश्यों को तय करता है जिसमें नीतिगत फैसले किए जाते हैं।
- • किसी मंत्री से अपने मंत्रालय के मामलों का विशेषज्ञ होने की कतई उम्मीद नहीं की जाती।
- • सभी तकनीकी मामलों पर मंत्री विशेषज्ञों की सलाह लेता है लेकिन विशेषज्ञ अकसर अलग-अलग राय रखते है या फिर वे एक से अधिक विकल्प मंत्री के सामने पेश करते हैं।
- • मंत्री अपने उद्देश्यों के मुताबिक ही निर्णय लेता है।
- • ऐसा हर बड़े संगठन में होता है जो पूरे मामले को अच्छी तरह से समझते हैं वे ही सबसे महत्त्वपूर्ण फैसले करते हैं, विशेषज्ञ नहीं करते।
- • विशेषज्ञ विशेष रास्ता बता सकते हैं लेकिन व्यापक नजरियें रखने वाला व्यक्ति ही मंजिल के बारे में फैसला करता है।
- • लोकतंत्र में निर्वाचित मंत्री इसी व्यापक नजरिए वाले व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं।
✤ प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद :-
- • इस देश में प्रधानमंत्री सबसे महत्त्वपूर्ण राजनैतिक संस्था है। फिर भी प्रधानमंत्री के लिए कोई प्रत्यक्ष चुनाव नहीं होता।
- • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करते हैं।
- • लेकिन राष्ट्रपति अपनी मर्जी से किसी को प्रधानमंत्री नियुक्त नहीं कर सकते।
- • राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या पार्टियों के गठबंधन के नेता को ही प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
- • अगर किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं होता तो राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करता है जिसे सदन में बहुमत हासिल होने की संभावना होती है।
- • प्रधानमंत्री का कार्यकाल तय नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर रह सकता है जब तक वह पार्टी या गठबंधन का नेता है।
- • प्रधानमंत्री को नियुक्त करने के बाद राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर दूसरे मंत्रियों को नियुक्त करते है।
- • मंत्री अमूमन उसी पार्टी या गठबंधन के होते हैं जिसे लोकसभा में बहुमत हासिल हो।
- • प्रधानमंत्री मंत्रियों के चयन के लिए स्वतंत्र होता है, बशर्ते वे संसद के सदस्य हों।
- • कभी कभी ऐसे व्यक्ति को भी मंत्री बनाया जा सकता है जो संसद का सदस्य नहीं हो।
- • लेकिन उस व्यक्ति का, मंत्री बनने के छह महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों में से किसी एक का सदस्य चुना जाना ज़रूरी है।
- 1. मंत्रिपरिषद् उस निकाय का सरकारी नाम है जिसमें सारे मंत्री होते हैं। इसमें अमूमन विभिन्न स्तरों के 60 से 80 मंत्री होते हैं।
- 2. कैबिनेट मंत्री अमूमन सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन की पार्टियों के वरिष्ठ नेता होते हैं प्रमुख मंत्रालयों के प्रभारी होते हैं। कैबिनेट मंत्री मंत्रिपरिषद् के नाम पर फ़ैसले करने के लिए बैठक करते हैं। इस तरह कैबिनेट मंत्रिपरिषद् का शीर्ष समूह होता है। इसमें करीब 25 मंत्री होते हैं।
- 3. स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री अमूमन छोटे मंत्रालयों के प्रभारी होते हैं। वे विशेष रूप से आमंत्रित किए जाने पर ही कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं।
- • 4. राज्य मंत्री अपने विभाग के कैबिनेट मंत्रियों से जुड़े होते हैं और उनकी सहायता करते हैं।
- • चूँकि सारे मंत्रियों के लिए नियमित रूप से मिलकर हर बात पर चर्चा करना व्यावहारिक नहीं है लिहाजा फ़ैसले कैबिनेट बैठकों में ही किए जाते हैं।
- • इसी वजह से अधिकांश देशों में संसदीय लोकतंत्र को सरकार का कैबिनेट रूप कहा जाता है। कैबिनेट टीम के रूप में काम करती है।
- • मंत्रियों की राय और विचार अलग हो सकते हैं लेकिन सबको कैबिनेट के फैसले की जिम्मेदारी लेनी होती है।
- • भले ही कोई फैसला किसी दूसरे मंत्रालय या विभाग का हो लेकिन कोई भी मंत्री सरकार के फैसले की खुलेआम आलोचना नहीं कर सकता।
- • हर मंत्रालय में सचिव होते हैं, जो नौकरशाह होते हैं। ये सचिव फैसला करने के लिए मंत्री को ज़रूरी सूचना मुहैया कराते हैं।
- • टीम के रूप में कैबिनेट की मदद कैबिनेट सचिवालय करता है। उसमें कई वरिष्ठ नौकरशाह शामिल होते हैं जो विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करने की कोशिश करते हैं।
✤ प्रधानमंत्री के अधिकार :-
- • संविधान में प्रधानमंत्री या मंत्रियों के अधिकारों या एक-दूसरे से उनके संबंध के बारे में बहुत कुछ नहीं कहा गया है।
- • लेकिन सरकार के प्रमुख होने के नाते प्रधानमंत्री के व्यापक अधिकार होते हैं।
- • वह कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता है। वह विभिन्न विभागों के कार्यों का समन्वय करता है।
- • विभागों के विवाद के मामले में उसका निर्णय अंतिम माना जाता है।
- • वह विभिन्न विभागों की सामान्य निगरानी करता है। सारे मंत्री उसी के नेतृत्व में काम करते हैं।
- • प्रधानमंत्री मंत्रियों को काम का वितरण और पुनर्वितरण करता है।
- • उसे किसी मंत्री को बर्खास्त करने का भी अधिकार होता है।
- • जब प्रधानमंत्री अपना पद राष्ट्रपति के पास छोड़ता है तो पूरा मंत्रिमंडल इस्तीफ़ा दे देता है।
- • इस तरह अगर भारत में कैबिनेट सबसे अधिक प्रभावशाली संस्था है तो कैबिनेट के भीतर सबसे प्रभावशाली व्यक्ति प्रधानमंत्री होता है।
- • दुनिया के सभी संसदीय लोकतंत्रों में प्रधानमंत्री के अधिकार हाल ही के दशकों में इतने बढ़ गए हैं कि संसदीय लोकतंत्र को कभी-कभी सरकार का प्रधानमंत्रीय रूप कहा जाने लगा है।
- • राजनीति में राजनैतिक दलों/पार्टियों की भूमिका बढ़ने के साथ ही प्रधानमंत्री पार्टी के जरिए कैबिनेट और संसद को नियंत्रित करने लगा है।
- • मीडिया राजनीति और चुनाव को पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा के रूप में पेश करके इस रुझान में अपना योगदान करती है।
- • भारत में भी हमने प्रधानमंत्री के पास ही सारे अधिकार सीमित करने की प्रवृत्ति देखी है।
- • भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ढेर सारे अधिकारों का इस्तेमाल किया क्योंकि उनका जनता पर बहुत अधिक प्रभाव था।
- • इंदिरा गांधी भी कैबिनेट अपने सहयोगियों की तुलना में बहुत ज्यादा प्रभावशाली थीं।
- • जाहिर है कि किसी प्रधानमंत्री का अधिकार उस पद पर बैठे व्यक्ति के व्यक्तित्व पर भी निर्भर करता है।
- • लेकिन हाल वर्षों में भारत में गठबंधन की राजनीति के उभार से प्रधानमंत्री के अधिकार कुछ हद तक सीमित हुए हैं।
- • गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री अपनी मर्जी से फ़ैसले नहीं कर सकता।
- • उसे अपनी पार्टी के भीतर विभिन्न समूहों और गुटों के साथ गठबंधन के साझेदारों की राय भी माननी होती है।
- • इसके अलावा उसे गठबंधन के साझीदारों और दूसरी पार्टियों के विचारों और स्थितियों को भी देखना होता है आखिर उन्हीं के समर्थन के आधार पर सरकार टिकी होती है।
- • प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिए हमेशा पुलिंग का इस्तेमाल क्यों होता है?
✤ राष्ट्रपति
- • एक और जहाँ प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है, वहीं राष्ट्रपति राष्ट्र का अध्यक्ष होता है।
- • हमारी राजनैतिक व्यवस्था में राष्ट्रपति केवल नाम के अधिकारों का प्रयोग करता है।
- • भारत का राष्ट्रपति ब्रिटेन की महारानी की तरह होता हैं, जिसका काम आलंकारिक अधिक होता है।
- • राष्ट्रपति देश की सभी राजनैतिक संस्थाओं के काम की निगरानी करता है ताकि वे राज्य के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए मिल-जुलकर काम करें।
- • राष्ट्रपति का चयन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाता।
- • संसद सदस्य और राज्य की विधानसभाओं के सदस्य उसे चुनते हैं।
- • राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को चुनाव जीतने के लिए बहुमत हासिल करना होता है।
- • इससे यह तय हो जाता है कि राष्ट्रपति पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है।
- • लेकिन राष्ट्रपति उस तरह से प्रत्यक्ष जनादेश का दावा नहीं कर सकता जिस तरह से प्रधानमंत्री।
- • इससे यह तय हो जाता है कि राष्ट्रपति कहने मात्र के लिए कार्यपालक की भूमिका निभाता है।
- • राष्ट्रपति के अधिकारों के मामले में भी यही बात लागू होती है।
- • अगर आप संविधान को सरसरी तौर पर पढ़ें तो आप सोचेंगे कि ऐसा कुछ नहीं है जो राष्ट्रपति न कर सके।
- • सारी सरकारी गतिविधियाँ राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं।
- • सारे कानून और सरकार के प्रमुख नीतिगत फैसले उसी के नाम से जारी होते हैं।
- • सभी प्रमुख नियुक्तियाँ राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। वह भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय और राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्यपालों, चुनाव आयुक्तों और दूसरे देशों में राजदूतों आदि को नियुक्त करता है।
- • सभी अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते उसी के नाम से होते हैं।
- • भारत के रक्षा बलों का सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति ही होता है।
- • लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि राष्ट्रपति इन अधिकारों का इस्तेमाल मंत्रिपरिषद् की सलाह पर ही करता है।
- • राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् को अपनी सलाह पर पुनवचार करने के लिए कह सकता है।
- • लेकिन अगर वही सलाह दोबारा मिलती है तो वह उसे मानने के लिए बाध्य होता हैं।
- • इसी प्रकार संसद द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही कानून बनता है।
- • अगर राष्ट्रपति चाहे तो उसे कुछ समय के लिए रोक सकता है।
- • वह विधेयक पर पुनर्विचार के लिए उसे संसद में वापस भेज सकता है।
- • लेकिन अगर संसद दोबारा विधेयक पारित करती है तो उसे उस पर हस्ताक्षर करने ही पड़ेंगे।
- • एक महत्त्वपूर्ण चीज़ है जो उसे स्वविवेक से करनी चाहिए: प्रधानमंत्री की नियुक्ति।
- • जब कोई पार्टी या गठबंधन चुनाव में बहुमत हासिल कर लेता है तो राष्ट्रपति के पास कोई विकल्प नहीं होता।
- • उसे लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करना होता है।
- • जब किसी पार्टी या गठबंधन को लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं होता तो राष्ट्रपति अपने विवेक से काम लेता है।
- • वह ऐसे नेता को नियुक्त करता है जो उसकी राय में लोकसभा में बहुमत जुटा सकता है।
- • ऐसे मामले में राष्ट्रपति नवनियुक्त प्रधानमंत्री से एक तय समय के भीतर लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहता है।
✤ न्यायपालिका :-
• इस बार भी हम सरकारी आदेश की उसी कहानी पर लौटते हैं, जिससे हमने शुरुआत की थी। इस बार हम कहानी को याद नहीं करेंगे, बस यह कल्पना करेंगे कि यह कहानी कितनी अलग हो सकती थी। याद कीजिए कि इस कहानी का उस समय संतोषजनक अंत हो गया जब सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया। इसे हर किसी ने स्वीकार कर लिया। कल्पना कीजिए कि निम्नलिखित परिस्थितियों में क्या होता – देश में सर्वोच्च न्यायालय जैसा कुछ नहीं होता।
1. सर्वोच्च न्यायालय तो होता पर उसके पास सरकार की कार्रवाइयों को आँकने का अधिकार नहीं होता।
2. उसे अधिकार होता मगर सर्वोच्च न्यायालय से कोई निष्पक्ष न्याय की उम्मीद नहीं रखता।
3. भले ही वह निष्पक्ष फ़ैसला सुना देता लेकिन सरकार के आदेश के खिलाफ़ अपील करने वाले उसके फैसले को नहीं मानते।
• इसी वजह से लोकतंत्रों के लिए स्वतंत्र और प्रभावशाली न्यायपालिका को ज़रूरी माना जाता है।
• देश के विभिन्न स्तरों पर मौजूद अदालतों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहा जाता है।
• भारतीय न्यायपालिका में पूरे देश सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों में उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय और स्थानीय स्तर के न्यायालय होते हैं।
• भारत में न्यायपालिका एकीकृत है। इसका मतलब यह कि सर्वोच्च न्यायालय देश में न्यायिक प्रशासन को नियंत्रित करता है।
• देश की सभी अदालतों को उसका फ़ैसला मानना होता है।
• वह इनमें से किसी भी विवाद की सुनवाई कर सकता है
• 1. देश के नागरिकों के बीच
• 2. नागरिकों और सरकार के बीच
• 3. दो या उससे अधिक राज्य सरकारों के बीच
• 4. केंद्र और राज्य सरकार के बीच।
• यह फ़ौजदारी और दीवानी मामले में अपील के लिए सर्वोच्च संस्था है। यह उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ़ सुनवाई कर सकता है।
• न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब है कि वह विधायिका या कार्यपालिका के नियंत्रण में नहीं है।
• न्यायाधीश सरकार के निर्देश या सत्ताधारी पार्टी की मर्जी के मुताबिक काम नहीं करते।
• अदालतें, विधायिका और कार्यपालिका के अधीन इसी वजह से सभी आधुनिक लोकतंत्रों में नहीं होतीं।
• भारत ने इस लक्ष्य को हासिल कर लिया है।
• राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को प्रधानमंत्री की सलाह पर और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के मशविरे से नियुक्त करता है।
• व्यावहारिक तौर पर अब इस व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश, सर्वोच्च , न्यायालय और उच्च न्यायालयों के नए न्यायाधीशों को चुनते हैं। इसमें राजनैतिक कार्यपालिका की दखल की गुंजाइश बेहद कम है।
• सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को ही अमूमन मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है।
• एक बार किसी व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करने के बाद उसे उसके पद से हटाना लगभग असंभव हो जाता है।
• उसे हटाना भारत के राष्ट्रपति को हटाने जितना ही मुश्किल है।
• किसी भी न्यायाधीश को संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग दो-तिहाई बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित करके ही हटाया जा सकता है। भारतीय लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं हुआ।
• भारत की न्यायपालिका दुनिया की सबसे अधिक प्रभावशाली न्यायपालिकाओं में से एक है।
• सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को देश के संविधान की व्याख्या का अधिकार है।
• अगर उन्हें लगता है कि विधायिका का कोई कानून या कार्यपालिका की कोई कार्रवाई संविधान के खिलाफ़ है तो वे केंद्र और राज्य स्तर पर ऐसे कानून या कार्रवाई को अमान्य घोषित कर सकते हैं।
• इस तरह जब उनके सामने किसी कानून या कार्यपालिका की कार्रवाई को चुनौती मिलती है तो वे उसकी संवैधानिक वैधता तय करते हैं। इसे न्यायिक समीक्षा के रूप में जाना जाता है।
• भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी फ़ैसला दिया है कि संसद, संविधान के मूलभूत सिद्धांतों को बदल नहीं सकती।
• भारतीय न्यायपालिका के अधिकार और स्वतंत्रता उसे मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में काम करने की क्षमता प्रदान करते हैं।
• हम नागरिकों के अधिकार वाले अध्याय में देखेंगे कि नागरिकों को संविधान से मिले अपने अधिकारों के उल्लंघन के मामले में इंसाफ़ पाने के लिए अदालतों में जाने का अधिकार है।
• हाल के वर्षों में अदालतों ने सार्वजनिक हित और मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए विभिन्न फ़ैसले और निर्देश दिए हैं।
• सरकार की कार्रवाइयों से जनहित को ठेस पहुँचने की स्थिति में कोई भी अदालत जा सकता है।
• इसे जनहित याचिका कहते हैं। सरकार को निर्णय करने की शक्ति के दुरुपयोग से रोकने के लिए हस्तक्षेप करती हैं। वे सरकारी अधिकारियों को भ्रष्ट आचरण से रोकती हैं। इसी वजह से लोगों के बीच न्यायपालिका को काफ़ी विश्वास हासिल है।
• गठबंधन सरकार :- विधायिका में किसी एक पार्टी को बहुमत हासिल न होने की सूरत में दो या उससे अधिक राजनैतिक पाटयों के गठबंधन से बनी सरकार।
• कार्यपालिका :- व्यक्तियों का ऐसा निकाय जिसके पास देश के संविधान और कानून के आधार पर प्रमुख नीति बनाने, फ़ैसले करने और उन्हें लागू करने का अधिकार होता है।
• सरकार :- संस्थाओं का ऐसा समूह जिसके पास देश में व्यवस्थित जन-जीवन सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने, लागू करने और उसकी व्याख्या करने का अधिकार होता है। व्यापक अर्थ में सरकार किसी देश के लोगों और संसाधनों को नियंत्रित और उनकी निगरानी करती है।
• न्यायपालिका :- एक राजनैतिक संस्था जिसके पास न्याय करने और कानूनी विवादों के निपटारे का अधिकार होता है। देश की सभी अदालतों को एक साथ न्यायपालिका के नाम से पुकारा जाता है। विधायिका जनप्रतिनिधियों की सभा जिसके पास देश का कानून बनाने का अधिकार होता है। कानून बनाने के अलावा विधायिका को कर बढ़ाने, बजट बनाने और दूसरे वित्त विधेयकों को बनाने का विशेष अधिकार होता है।
• कार्यालय ज्ञापन :- सक्षम अधिकारी द्वारा जारी पत्र जिसमें सरकार के फैसले या नीति के बारे में बताया जाता है।
• राजनैतिक संस्था :- देश की सरकार और राजनैतिक जीवन के आचार को नियमित करने वाली प्रक्रियाओं का समूह।
• आरक्षण :- भेदभाव के शिकार, वंचित और पिछड़े लोगों और समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों तथा शैक्षिक संस्थाओं में पद एवं सीटें आरक्षित’ करने की नीति।
• राज्य :- निश्चित क्षेत्र में फैली राजनैतिक इकाई, जिसके पास संगठित सरक हो और घरेलू तथा विदेश नीतियों को बनाने का अधिकार हो। सरकारें बदल सकती हैं पर राज्य बना रहता है। बोलचाल की भाषा में देश, राष्ट्र और राज्य को समानार्थी के रूप में प्रयोग किया जाता है। ‘राज्य’ शब्द का एक अन्य प्रयोग किसी देश के अंदर की प्रशासनिक इकाईयों या प्रांतों के लिए भी होता है। इस अर्थ में राजस्थान, झारखंड, त्रिपुरा आदि भी राज्य कहे जाते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. अगर आपको भारत का राष्ट्रपति चुना जाए तो आप निम्नलिखित में से कौन–सा फैसला खुद कर सकते है?
क. अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुन सकते हैं।
ख. लोकसभा में बहुमत वाले प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकते हैं।
ग. दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनविचार के लिए कह सकते हैं।
घ. मंत्रिपरिषद् में अपनी पसंद के नेताओं का चयन कर सकते हैं।
उत्तर :- ग. दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनविचार के लिए कह सकते हैं।
प्रश्न 2. निम्नलिखित में कौन राजनैतिक कार्यपालिका का हिस्सा होता है?
क. जिलाधीश
ख. गृह मंत्रालय का सचिव
ग. गृह मंत्री
घ. पुलिस महानिदेशक
उत्तर :- ग. गृह मंत्री
प्रश्न 3. न्यायपालिका के बारे में निम्नलिखित में से कौन–सा बयान गलत है?
क. संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।
ख. अगर कोई कानून संविधान की भावना के खिलाफ है तो न्यायापालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है।
ग. न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है।
घ. अगर किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है तो वह अदालत में जा सकता है।
उत्तर :- क संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित राजनैतिक संस्थाओं में से कौन–सी संस्था देश के मौजूदा कानून में संशोधन कर सकती है?
क. सर्वोच्च न्यायालय
ख. राष्ट्रपति
ग. प्रधानमंत्री
घ. संसद
उत्तर :- घ. संसद
प्रश्न 5. उस मंत्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार जारी किया होगा:
क. | देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है। | 1. रक्षा मंत्रालय |
ख. | ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ सुलभ करायी जाएँगी। | 2. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय |
ग. | सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूँ की कीमतें कम की जाएँगी | 3. स्वास्थ्य मंत्रालय |
घ. | पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा। | 4. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय |
ङ | ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएँगे। | 5. संचार और सूचना–प्रौद्योगिकी मंत्रालय |
उत्तर :-
क. | देश से जूट का निर्यात बढ़ाने के लिए एक नई नीति बनाई जा रही है। | 1. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय |
ख. | ग्रामीण इलाकों में टेलीफोन सेवाएँ सुलभ करायी जाएँगी। | 2. संचार और सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय |
ग. | सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बिकने वाले चावल और गेहूँ की कीमतें कम की जाएँगी | 3. कृषि, खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय |
घ. | पल्स पोलियो अभियान शुरू किया जाएगा। | 4. स्वास्थ्य मंत्रालय |
ङ | ऊँची पहाड़ियों पर तैनात सैनिकों के भत्ते बढ़ाए जाएँगे। | 5. रक्षा मंत्रालय |
प्रश्न 6. देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से उस राजनैतिक संस्था का नाम बताइए जो निम्नलिखित मामलों में अधिकारों का इस्तेमाल करती है।
क. सड़क, सिंचाई जैसे बुनियादी ढाँचों के विकास और नागरिकों की विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों पर कितना पैसा खर्च किया जाएगा।
ख. स्टॉक एक्सचेंज को नियमित करने संबंधी कानून बनाने की कमेटी के सुझाव पर विचार–विमर्श करती है।
ग. दो राज्य सरकारों के बीच कानूनी विवाद पर निर्णय लेती है।
घ. भूकंप पीड़ितों की राहत के प्रयासों के बारे में सूचना माँगती है।
उत्तर :-
क. विधायिका
ख. न्यायपालिका
ग. न्यायपालिका
घ. कार्यपालिका
प्रश्न 7. भारत का प्रधानमंत्री सीधे जनता द्वारा क्यों नहीं चुना जाता? निम्नलिखित चार जवाबों में सबसे सही को चुनकर अपनी पसंद के पक्ष में कारण दीजिए:
क. संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी का नेता ही प्रधानमंत्री बन सकता है।
ख. लोकसभा, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें हटा सकते है।
ग. चूँकि प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति नियुक्त करता है लिहाजा उसे जनता द्वारा चुने जाने की जरूरत ही नहीं है।
घ. प्रधानमंत्री के सीधे चुनाव में बहुत ज्यादा खर्च आएगा।
उत्तर :- संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा में बहुमत दल का नेता ही प्रधानमंत्री बन सकता है। यह सुनिश्चित करना है कि प्रधानमंत्री बहुमत समर्थन हासिल करें। यह उन्हें एक कठपुतली या तानाशाह बनने से रोकता है क्योंकि उन्हें मंत्रियों की एक परिषद के साथ काम करना पड़ता है।
प्रश्न 8. तीन दोस्त एक ऐसी फिल्म देखने गए जिसमें हीरो एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनता है और राज्य में बहुत से बदलाव लाता है। इमरान ने कहा कि देश को इसी चीज की जरूरत है। रिजवान ने कहा कि इस तरह का, बिना संस्थाओं वाला एक व्यक्ति का राज खतरनाक है। शंकर ने कहा कि यह तो एक कल्पना है। कोई भी मंत्री एक दिन में कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसी फिल्मों के बारे में आपको क्या राय है?
उत्तर :- इस प्रकार की फिल्म का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। एक व्यक्ति का शासन सदैव खतरनाक होता है। शासन सिद्धांतों एवं नियमों के अनुसार ही चलाया जा सकता है। मुख्यमंत्री को अन्य मंत्रियों को साथ लेकर चलना होता है। मुख्यमंत्री विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी है।
प्रश्न 9. एक शिक्षिका छात्रों की संसद के आयोजन की तैयारी कर रही थी। उसने दो छात्राओं से अलग–अलग पार्टियों के नेताओं की भूमिका करने को कहा। उसने उन्हें विकल्प भी दिया। यदि वे चाहें तो राज्य सभा में बहुमत प्राप्त दल की नेता हो सकती थीं और अगर चाहें तो लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल की। अगर आपको यह विकल्प दिया गया तो आप क्या चुनेंगे और क्यों?
उत्तर :- मैं लोकसभा का नेता बनना पसंद करूंगा क्योंकि लोकसभा में बहुमत का नेता ही प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है। शासन की वास्तविक शक्तियाँ प्रधानमंत्री के पास है न कि राज्यसभा के बहुमत के नेता के पास।
प्रश्न 10. आरक्षण पर आदेश का उदाहरण पढ़कर तीन विद्याथियों की न्यायपालिका की भूमिका पर अलग–अलग प्रतिक्रिया थी। इनमें से कौन–सी प्रतिक्रिया, न्यायपालिका की भूमिका को सही तरह से समझती है?,
क. श्रीनिवास का तर्क है कि चूँकि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के साथ सहमत हो गई है लिहाजा वह स्वतंत्र नही है।
ख. अंजैया का कहना है कि न्यायपालिका स्वतंत्र है क्योंकि वह सरकार के आदेश के खिलाफ फैसला सुना सकती थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को उसमें संशोधन का निर्देश दिया।
ग. विजया का मानना है कि न्यायपालिका न तो स्वतंत्र है न ही किसी के अनुसार चलने वाली है बल्कि वह विरोधी समूहों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। न्यायालय ने इस आदेश के समर्थकों और विरोधियों के बीच बढ़िया संतुलन बनाया। आपकी राय में कौन–सा विचार सबसे सही है?
उत्तर :- मेरे विचार के अनुसार इन तीनों विवादों में से अंजैया का विचार सही है। न्यायपालिका स्वतंत्र है। सर्वोच्च न्यायालय सरकार के निर्णय को रद्द भी कर सकता है और उसे बदलने का आदेश भी दे सकता है। अत: सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को अपने आदेश में संशोधन करने का आदेश दिया।
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