CUET Hindi Notes Samas समास महत्वपूर्ण नोट्स PDF Download
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Hindi Grammer Samas PDF notes
⚬ समास दो शब्दों के मेल से बना है– ‘सम्’ और ‘आस’।
⚬ सम् का अर्थ ‘पास’ तथा आस का अर्थ ‘आना या बैठाना’।
समास का अर्थ है– ‘संक्षिप्त’।
⚬ समास की परिभाषा–
दो या अधिक शब्दों के परस्पर मेल को समास कहते हैं। समास का अर्थ होता है संक्षिप्त। समास में प्राय: दो पद होते हैं– 1. पूर्व पद, 2. उत्तर पद। दोनों पदों को मिलाने से बनने वाला पद सामासिक पद कहलाता है। दोनों पदों को अलग करने की प्रक्रिया समास विग्रह कहलाती है; जैसे–
बैलगाड़ी (समास) = बैल से चलने वाली गाड़ी (समास-विग्रह)।
⚬ समास मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं– 1. अव्ययीभाव समास 2. तत्पुरुष समास 3. द्वंद्व समास 4. बहुव्रीहि समास। किंतु कुछ विद्वान् कर्मधारय और द्विगु समास को पृथक् समास मानते हुए समासों की संख्या छह बतलाते हैं जबकि वास्तविकता तो यह है कि कर्मधारय और द्विगु समास कोई पृथक् समास न होकर तत्पुरुष समास के ही उपभेद मात्र हैं।
⚬ समास के भेद–
- ⚬ पद की प्रधानता के आधार पर– चार भेद
- 1. पहला पद प्रधान– अव्ययीभाव समास
- 2. दूसरा पद प्रधान– तत्पुरुष समास (कर्मधारय और द्विगु समास)
- 3. दोनों पद प्रधान– द्वंद्व समास
- 4. अन्य पद प्रधान– बहुव्रीहि समास
⚬ अर्थ की प्रधानता के आधार पर– छह भेद
1. अव्ययीभाव समास
• प्रथम पद अव्यय हो तथा एक ही शब्द बार-बार आए, जिसमें परिवर्तन नहीं होता हो एवं उपसर्ग हो; जैसे– अत्यधिक = अधिक से अधिक
2. तत्पुरुष समास
- • दूसरा पद प्रधान व कारक चिह्नों का लोप; जैसे–
- राजपुरुष = राजा का पुरुष
- • तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं–
- 1. कर्म तत्पुरुष
- 2. करण तत्पुरुष
- 3. संप्रदान तत्पुरुष
- 4. अपादान तत्पुरुष
- 5. संबंध तत्पुरुष
- 6. अधिकरण तत्पुरुष
3. कर्मधारय समास
• उत्तर पद प्रधान हो, पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध अथवा उपमेय-उपमान का संबंध हो; जैसे– नीलाकाश = नीला है जो आकाश।
4. द्विगु समास
• प्रथम पद संख्यावाची हो; जैसे– त्रिफला = तीन फलों का समूह
5. द्वन्द्व समास
• दोनों पद प्रधान होते हैं; जैसे– राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
6. बहुव्रीहि समास
• दोनों पद गौण होते हैं तथा तीसरा अर्थ निकले; जैसे–
त्रिनेत्र = तीन है नेत्र जिसके अर्थात् शिव
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1. अव्ययीभाव समास
• जिस समास में पूर्व पद प्रधान हो तथा साथ में अव्यय हो, अव्ययीभाव समास कहलाता है।
• विशेषताएँ–
(i) पहला पद प्रधान
(ii) पहला पद अव्यय
(iii) उपसर्गयुक्त पद
(iv) पुनरावृति शब्द
समास | समास-विग्रह |
आजीवन | जीवन पर्यंत/जीवन भर |
प्रतिदिन | हर दिन/दिन-दिन, प्रत्येक दिन |
अनुकूल | कूल के अनुसार |
प्रतिपल | हर पल |
भरपेट | पेट भरकर/पेट भर के |
आजन्म | जन्म पर्यन्त/जन्म से |
बेखटके | बिना खटके/बिना खटके के |
दर्शनार्थ | दर्शन हेतु |
कृपापूर्वक | कृपा के साथ |
श्रद्धापूर्वक | श्रद्धा से पूर्ण |
निःसंकोच | संकोच रहित |
अत्यधिक | अधिक से अधिक |
निर्विकार | विकार रहित |
निर्भय | बिना भय का |
बीचोंबीच | बीच के भी बीच में |
प्रत्यक्ष | आँखों के सामने |
प्रति क्षण | प्रत्येक क्षण |
धीमे-धीमे | धीमे के पश्चात् धीमे |
धुँधला-धुँधला | धुँधले के पश्चात् धुँधला |
निडर | डर रहित |
यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
नियमानुसार | नियम के अनुसार |
रातभर | पूरी रात |
दिनभर | पूरे दिन |
दिनोंदिन | दिन ही दिन में |
रातोंरात | रात ही रात में |
कानोंकान | कान ही कान में |
यथास्थान | जो स्थान निर्धारित है |
आपादमस्तक | पाद से मस्तक तक |
प्रत्युपकार | उपकार के प्रति |
प्रतिबिंब | बिंब के बदले बिंब |
दौड़मदौड़ | दौड़ने के पश्चात् दौड़ना |
कहाकही | कहने के पश्चात् कहना |
सुनासुनी | सुनने के पश्चात् सुनना |
मंद-मंद | बहुत मंद |
यथास्थिति | जैसे स्थिति है |
प्रतिवर्ष | प्रत्येक वर्ष |
निस्संदेह | संदेह रहित |
2. तत्पुरुष समास–
जिस समास में उत्तर पद अर्थात् दूसरा पद प्रधान हो, वह तत्पुरुष समास कहलाता है। इसकी पहचान यह है कि समास विग्रह करने पर विभक्ति चिह्न नजर आते हैं।
• तत्पुरुष समास के भेद–
(i) नञ् तत्पुरुष समास
(ii) लुप्तपद तत्पुरुष समास
(iii) अलुक् तत्पुरुष समास
(iv) उपपद तत्पुरुष समास
(v) लुप्तकारक चिह्न तत्पुरुष समास
(i) नञ् तत्पुरुष समास– अ, अन्, अन, ना (अन्ना)
• इस समास में अ, अन्, अन और ना (अन्ना) उपसर्गों का प्रयोग किया जाता है तथा नहीं के अर्थ का बोध होता है; जैसे–
असत्य | सत्य नहीं |
अज्ञान | ज्ञान नहीं |
अकारण | कारण नहीं |
अव्यय | व्यय नहीं |
अभाव | भाव नहीं |
अयोग्य | योग्य नहीं |
अनाहूत | आहूत (बुलाया) नहीं |
अनावश्यक | आवश्यक नहीं |
अनावरण | आवरण नहीं |
अनदेखा | देखा नहीं |
अनचाहा | चाहा नहीं |
अनमोल | मोल नहीं |
अनभिज्ञ | अभिज्ञ (जानकार) नहीं |
अनपढ़ | पढ़ा-लिखा नहीं |
अनाधिकार | अधिकार नहीं |
अनुपयोगी | उपयोगी नहीं |
अनहोनी | होनी नहीं |
अनमेल | मेल नहीं |
नालायक | लायक नहीं |
नाजायज | जायज नहीं |
नापसंद | पसंद नहीं |
नापाक | पाक नहीं |
• विशेष– विकल्प में ‘नञ् तत्पुरुष’ न दे रखा हो, तो ‘अव्ययीभाव समास’ होगा।
(ii) लुप्तपद तत्पुरुष समास– इस समास में दोनों पदों के बीच प्रयुक्त पदों का लोप हो जाता है, इसलिए इसे लुप्तपद तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे–
समास | समास-विग्रह |
मधुमक्खी | मधु एकत्र करने वाली मक्खी |
रेलगाड़ी | रेल (पटरी) पर चलने वाली गाड़ी |
बैलगाड़ी | बैल द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी |
पर्णशाला | पर्णों (पत्तों) से निर्मित शाला |
जलपोत | जल पर चलने वाला पोत |
पवनचक्की | पवन से चलने वाली चक्की |
पनचक्की | पन (पानी) के बहाव की शक्ति से चलने वाली चक्की |
वायुयान | वायु में उड़ने वाला यान |
गुड़धानी | गुड़ मिली हुई धानी |
बड़बोला | बड़ी बात बोलने वाला |
अश्रुगैस | अश्रु (आँसू) लाने वाली गैस |
रसमलाई | रस में डूबी हुई मलाई |
जलकौआ | जल में रहने वाला कौआ |
जलकुंभी | जल में उत्पन्न होने वाली कुंभी |
तुलादान | तुला से बराबर कर दिया जाने वाला दान |
घृतान्न | घी में पका हुआ अन्न |
गुरुभाई | गुरु के सम्बन्ध से भाई (गुरु का पुत्र) |
गोबर-गणेश | गोबर से निर्मित गणेश |
पकौड़ी | पकी हुई बड़ी |
रसगुल्ला | रस में डूबा हुआ गुल्ला (गोला) |
दहीबड़ा | दही में डूबा हुआ बड़ा |
(iii) अलुक् तत्पुरुष समास– इस समास में प्रथम पद के साथ संस्कृत का विभक्ति चिह्न जुड़ा रहता है इसलिए इसे अलुक् तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे–
समास | समास-विग्रह |
वसुंधरा | वसुओं को धारण करने वाली धरा |
शुभंकर | शुभ को करने वाला |
खेचर | ख (आकाश) में चर (विचरण) |
धनंजय | धन को जय करने वाला |
आत्मनैपद | आत्म (स्वयं) के लिए प्रयुक्त पद |
परस्मैपद | पर (दूसरे) के लिए प्रयुक्त पद |
कर्मणि प्रयोग | कर्म में प्रयोग |
कर्तरि प्रयोग | कर्ता के अर्थ में प्रयोग |
(iv) उपपद तत्पुरुष समास– इस समास का दूसरा पद कोई न कोई प्रत्यय होता है, इसलिए इसे उपपद तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे–
समास | समास-विग्रह |
पंकज | पंक (कीचड़) में जन्म लेने वाला |
जलज | जल में जन्म लेने वाला |
राजनीतिज्ञ | राजनीति को जानने वाला |
स्वर्णकार | स्वर्ण का काम करने वाला |
स्वेदज | स्वेद (पसीना) से जन्म लेने वाला |
अम्बुद | अम्बु (जल) को देने वाला |
अंडज | अंडा से जन्म लेने वाला |
उरग | उर (छाती के बल) से गमन करने वाला |
(v) लुप्तकारक चिह्न तत्पुरुष समास– इस समास में कर्म कारक से लेकर अधिकरण कारक तक के विभक्ति चिह्न लुप्त हो जाते है, इसलिए इसे लुप्तकारक चिह्न तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे–
जेबकतरा | जेब को कतरने वाला |
व्यायामशाला | व्यायाम के लिए शाला |
क्र.स. | कारक | कारक-चिह्न |
(i) | कर्म | को |
(ii) | करण | से/के द्वारा |
(iii) | सम्प्रदान | के लिए |
(iv) | अपादान | से (अलग होने हेतु) |
(v) | सम्बन्ध | का, की, के |
(vi) | अधिकरण | में, पर |
(i) कर्म तत्पुरुष (‘को’) का लोप से बनने वाला
समास | समास-विग्रह |
जितेंद्रिय | इंद्रियो को जीतने वाला |
कष्टापन्न | कष्ट को आपन्न (प्राप्त) |
विकासोन्मुख | विकास को उन्मुख |
मनोहर | मन को हरने वाला |
सिद्धिप्राप्त | सिद्धि को प्राप्त |
शरणागत | शरण को आगत |
तर्कसंगत | तर्क को संगत |
जेबकतरा | जेब को कतरने वाला |
वयप्राप्त | वय को प्राप्त |
स्वर्गप्राप्त | स्वर्ग को प्राप्त |
विरोधजनक | विरोध को जन्म देना वाला |
गृहागत | गृह को आगत |
ख्यातिप्राप्त | ख्याति को प्राप्त |
मुँहतोड़ | मुँह को तोड़ने वाला |
यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
विद्याधर | विद्या को धारण करने वाला |
(ii) करण तत्पुरुष (से/के द्वारा) के लोप से बनने वाले
समास | समास-विग्रह |
हस्तलिखित | हस्त द्वारा लिखित |
बिहारीरचित | बिहारी द्वारा रचित |
आचारकुशल | आचार से कुशल |
शोकातुर | शोक से आतुर |
क्रियान्विति | क्रिया के द्वारा अन्विति |
शोकाकुल | शोक से आकुल |
पददलित | पद से दलित |
महिमामंडित | महिमा से मंडित |
मनमाना | मन से माना |
वाग्युद्ध | वाक् से युद्ध |
अकालपीड़ित | अकाल से पीड़ित |
नीतियुक्त | नीति से युक्त |
मुँहमाँगा | मुँह से माँगा |
जलसिक्त | जल से सिक्त |
करुणापूर्ण | करुणा से पूर्ण |
हृदयहीन | हृदय से हीन |
प्रेमसिक्त | प्रेम से सिक्त |
रणविमुख | रण से विमुख |
कृष्णार्पण | कृष्ण के लिए अर्पण |
वज्राहत | वज्र से आहत |
रेखांकित | रेखा के द्वारा अंकित |
जग-हँसाई | जग के द्वारा हँसी |
लोकसत्य | लोक द्वारा सत्य |
मोहांध | मोह से अंधा |
भुखमरा | भूख से मरा |
श्रमजीवी | श्रम से जीने वाला |
मेघाच्छन्न | मेघ से आछन्न |
(iii) संप्रदान तत्पुरुष (के लिए) के लोप से बनने वाला
समास | समास-विग्रह |
परीक्षाभवन | परीक्षा के लिए भवन |
स्नानघर | स्नान के लिए घर |
देशभक्ति | देश के लिए भक्ति |
मार्गव्यय | मार्ग के लिए व्यय |
युद्धक्षेत्र | युद्ध के लिए क्षेत्र |
भूतबलि | भूत के लिए बलि |
छात्रावास | छात्र-छात्राओं के लिए आवास |
रंगमंच | रंग के लिए मंच |
हवनकुण्ड | हवन के लिए कुण्ड |
पुत्रशोक | पुत्र के लिए शोक |
भण्डारघर | भण्डार के लिए घर |
गुरुदक्षिणा | गुरु के लिए दक्षिणा |
देवालय | देव के लिए आलय |
बालामृत | बालकों के लिए अमृत |
पाकशाला | पाक के लिए शाला |
सत्याग्रह | सत्य के लिए आग्रह |
यज्ञशाला | यज्ञ के लिए शाला |
घुड़साल | घोड़ो के लिए साल (भवन) |
देवार्पण | देव के लिए अर्पण |
विधानसभा | विधान के लिए सभा |
सभामंडप | सभा के लिए मंडप |
रसोईघर | रसोई के लिए घर |
(iv) अपादान तत्पुरुष (से) अलग होने के अर्थ में
समास | समास-विग्रह |
बंधनमुक्त | बंधन से मुक्त |
कर्तव्यविमुख | कर्तव्य से विमुख |
पथभ्रष्ट | पथ से भ्रष्ट |
धर्मविमुख | धर्म से विमुख |
स्थानच्युत | स्थान से च्युत |
ईश्वरविमुख | ईश्वर से विमुख |
पदच्युत | पद से च्युत |
सेवानिवृत | सेवा से निवृत |
लक्ष्यभ्रष्ट | लक्ष्य से भ्रष्ट |
लोकविरुद्ध | लोक से विरुद्ध |
नेत्रहीन | नेत्र से हीन |
स्थानभ्रष्ट | स्थान से भ्रष्ट |
शक्तिहीन | शक्ति से हीन |
ऋणमुक्त | ऋण से मुक्त |
देशनिकाला | देश से निकाला हुआ |
(v) संबंध तत्पुरुष (का, के, की) के लोप से बनने वाला
समास | समास-विग्रह |
गंगाजल | गंगा का जल |
अन्नदान | अन्न का दान |
विद्यासागर | विद्या का सागर |
गुरुसेवा | गुरु की सेवा |
राजदरबार | राजा का दरबार |
मृगछौना | मृग का छौना |
सूर्योदय | सूर्य का उदय |
राजभवन | राजा का भवन |
चन्द्रोदय | चन्द्र का उदय |
लखपति | लाखों का पति |
गृहस्वामी | गृह का स्वामी |
कूपजल | कूप का जल |
चरित्रचित्रण | चरित्र का चित्रण |
राजकन्या | राजा की कन्या |
पितृभक्त | पिता का भक्त |
राजकुमार | राजा का कुमार |
सेनापति | सेना का पति |
गोदान | गो का दान |
प्रेमोपासक | प्रेम का उपासक |
रामोपासक | राम का उपासक |
जगन्नाथ | जगत् का नाथ |
मतदाता | मत का दाता |
मंत्रिपरिषद् | मंत्रियों की परिषद् |
सत्रावसान | सत्र का अवसान |
मनःस्थिति | मन की स्थिति |
प्राणाहुति | प्राणों की आहुति |
मनोविकार | मन का विकार |
रामायण | राम का अयन |
अछूतोद्धार | अछूतों का उद्धार |
चर्मरोग | चर्म का रोग |
रंगभेद | रंग का भेद |
अनारदाना | अनार का दाना |
विभागाध्यक्ष | विभाग का अध्यक्ष |
घुड़दौड़ | घोड़ों की दौड़ |
(vi) अधिकरण तत्पुरुष (में, पर) का लोप
समास | समास-विग्रह |
गृहप्रवेश | गृह में प्रवेश |
जलमग्न | जल में मग्न |
सिंहासनारूढ़ | सिंहासन पर आरूढ़ |
विश्वविख्यात | विश्व में विख्यात |
हरफनमौला | हर फन में मौला |
शास्त्रप्रवीण | शास्त्रों में प्रवीण |
व्यवहारकुशल | व्यवहार में कुशल |
ग्रामवास | ग्राम में वास |
कार्यकुशल | कार्य में कुशल |
वाग्वीर | वाक् (बोलने) में वीर |
आत्मनिर्भर | आत्म पर निर्भर |
तर्ककुशल | तर्क में कुशल |
लोकप्रिय | लोक में प्रिय |
कानाफूसी | कान में फुसफुसाहट |
सर्वोत्तम | सर्व में उत्तम |
धर्मरत | धर्म में रत |
कर्मनिष्ठ | कर्म में निष्ठ |
वनवास | वन में वास |
आप पढ़ रहे है – CUET Hindi Notes Samas| समास
3. कर्मधारय समास–
• जिस समास में प्रथम पद या पूर्व पद विशेषण तथा दूसरा पद या उत्तर पद विशेष्य हो, उसे कर्मधारय समास कहा जाता है। इस समास में विशेषण विशेष्य या उपमान उपमेय सम्बन्ध पाया जाता है; जैसे–
समास | समास-विग्रह |
नीलाकाश | नीला है जो आकाश |
चन्द्रमुख | चन्द्रमा के समान मुख |
महर्षि | महान है जो ऋषि |
महाराज | महान है जो राजा |
सज्जन | सत् है जो जन |
महापुरुष | महान है जो पुरुष |
भवसागर | भव रूपी सागर |
चरण-कमल | कमल के समान चरण |
महात्मा | महान है जो आत्मा |
भला-मानुष | भला है जो मनुष्य |
कृष्णसर्प | कृष्ण (काला) है जो सर्प |
लालकुर्ती | लाल है जो कुर्ती |
परमानन्द | परम है जो आनन्द |
परमाणु | परम है जो अणु |
परमात्मा | परम है जो आत्मा |
खाद्यान्न | खाद्य है जो अन्न |
श्वेताम्बर | श्वेत है जो अंबर |
महाजन | महान है जो जन |
महाविद्यालय | महान है जो विद्यालय |
स्त्रीरत्न | स्त्री रूपी रत्न |
कमलनयन | कमल के समान नयन |
नरसिंह | नर रूपी सिंह |
सुयोग | अच्छा है जो योग |
क्रोधाग्नि | क्रोध रूपी अग्नि |
4. द्विगु समास–
• जिस समस्त पद का प्रथम पद संख्यावाचक हो और पूरा पद संख्या के समाहार (समूह) या योग का वर्णन करे; जैसे–
समास | समास-विग्रह |
त्रिफला | तीन फलों का समूह |
चतुर्वर्ग | चार वर्गों का समूह |
नवरत्न | नव रत्नों का समूह |
अष्टभुज | अष्ट (आठ) भुजाओं का समूह |
त्रिगुण | तीन गुणों का समूह |
चौराहा | चार राहों का समाहार |
शतांश | शत (सौवाँ) अंश |
पंचप्रमाण | पाँच प्रमाण |
दुधारी | दो धार वाली |
अठन्नी | आठ आनों का समूह |
षट्कोण | षट् (छह) कोणों का समूह |
त्रिदोष | त्रि (तीन) दोषों का समूह |
सप्तर्षि | सात ऋषियों का समाहार |
दशाब्दी | दस अब्दों (वर्षों) का समूह |
द्विवेदी | दो वेदों का ज्ञाता |
दुपहिया | दो पहियों (चक्के) वाला |
चौमासा | चार मासों का समाहार |
दुमंजिला | दो मंजिलों का समाहार |
चौपाया | चार पावों का समूह |
सतसई | सात सौ पदों का समूह |
चतुर्वेद | चार वेदों का समाहार |
द्विगु | दो गायों का समूह |
दुराहा | दो राहों का समाहार |
त्रिलोक | तीन लोकों का समाहार |
पंचतंत्र | पंच तंत्रों का समाहार |
सप्ताह | सात दिनों का समाहार |
शताब्दी | शत अब्दों का समाहार |
5. द्वन्द्व समास–
• जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। समास विग्रह करने पर ‘और’, ‘या’, ‘आदि-इत्यादि’ अव्यय नजर आते हैं; जैसे–
• द्वंद्व समास के भेद–
(i) इतरेतर द्वन्द्व समास (ii) समाहार द्वन्द्व समास (iii) वैकल्पिक द्वन्द्व समास
(i) इतरेतर द्वन्द्व समास– और
समास | समास-विग्रह |
दाल-रोटी | दाल और रोटी |
माँ-बेटी | माँ और बेटी |
कृष्णार्जुन | कृष्ण और अर्जुन |
राधेश्याम | राधा और श्याम |
सीताराम | सीता और राम |
हरि-हर | हरि (विष्णु) और हर (शिव) |
चिट्ठी-पाती | चिट्ठी और पाती |
गंगा-यमुना | गंगा और यमुना |
माता-पिता | माता और पिता |
भाई-बहन | भाई और बहन |
देश-विदेश | देश और विदेश |
राजा-रानी | राजा और रानी |
पच्चीस | पाँच और बीस |
इकत्तीस | एक और तीस |
पैंतीस | पाँच और तीस |
पचपन | पाँच और पचास |
तिरेषठ | तीन और साठ |
अडषठ | आठ और साठ |
• विशेष– एक से लेकर दस और दस से भाज्य संख्याओं को छोड़कर तथा ‘उन’ उपसर्ग वाली संख्याओं को छोड़कर बाकी सभी में ‘इतरेतर द्वंद्व’ होता है।
(ii) समाहार द्वन्द्व– आदि/इत्यादि
समास | समास-विग्रह |
कंकर-पत्थर | कंकर, पत्थर आदि |
मार-पीट | मारना, पीटना आदि |
धोती-कमीज | धोती, कमीज आदि |
कुर्ता-टोपी | कुर्ता, टोपी आदि |
कपड़े-लत्ते | कपड़े, लत्ते आदि |
दिया-बाती | दिया, बाती आदि |
फल-फूल | फल, फूल आदि |
फल-फूल-मेवा-मिष्टान्न | फल, फूल, मेवा और मिष्टान्न इत्यादि |
कूड़ा-कचरा | कूड़ा, कचरा आदि |
रोक-टोक | रोक, टोक आदि |
मेल-मिलाप | मेल, मिलाप आदि |
चाय-पानी | चाय, पानी आदि |
लाल-बाल-पाल | लाल, बाल और पाल इत्यादि |
चाय-वाय | चाय आदि |
रोटी-वोटी | रोटी आदि |
पानी-वानी | पानी आदि |
अड़ोसी-पड़ोसी | पड़ोसी आदि |
खाना-वाना | खाना आदि |
• विशेष– इस समास में दोनों पद मिलकर अपने साथ अन्य संज्ञाओं के उपयोग का भी बोध कराते हैं।
(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व समास– या/अथवा
इस समास में विपरीतार्थक/विलोम शब्द प्रयुक्त होते हैं और दोनों पदों के बीच प्रयुक्त ‘या/अथवा’ का लोप हो जाता है, इसलिए इसे वैकल्पिक द्वन्द्व समास कहते हैं; जैसे–
समास | समास-विग्रह |
यश-अपयश | यश या अपयश |
घटते-बढ़ते | घटते या बढ़ते |
राग-द्वेष | राग या द्वेष |
थोड़ा-बहुत | थोड़ा या बहुत |
आय-व्यय | आय या व्यय |
लाभालाभ | लाभ या अलाभ |
ठण्डा-गरम | ठण्डा या गरम |
सुख-दु:ख | सुख या दु:ख |
जीवन-मरण | जीवन या मरण |
यश-अपयश | यश या अपयश |
सत्यासत्य | सत्य या असत्य |
नतोन्नत | नत या उन्नत |
शुभाशुभ | शुभ या अशुभ |
शीतोष्ण | शीत या ऊष्ण |
चराचर | चर या अचर |
दस-बीस | दस या बीस |
दो-चार | दो या चार |
हजार-दो हजार | हजार या दो हजार |
• द्वन्द्व समास के अन्य उदाहरण–
समास | समास-विग्रह |
सेठ-साहूकार | सेठ और साहूकार |
राधा-कृष्ण | राधा और कृष्ण |
राजा-रानी | राजा और रानी |
दाल-भात | दाल और भात |
भाई-बहन | भाई और बहन |
नीचे-ऊपर | नीचे और ऊपर |
गौरीशंकर | गौरी और शंकर |
आना-जाना | आना और जाना |
बाप-दादा | बाप और दादा |
लोक-परलोक | लोक और परलोक |
जल-वायु | जल और वायु |
दाल-रोटी | दाल और रोटी |
धर्माधर्म | धर्म और अधर्म |
शिव-पार्वती | शिव और पार्वती |
हाथ-पाँव | हाथ, पाँव इत्यादि |
फल-फूल | फल, फूल इत्यादि |
देवासुर | देव और असुर |
आय-व्यय | आय या व्यय |
तन-मन | तन और मन |
हाथी-घोड़े | हाथी और घोड़े |
दिन-रात | दिन और रात |
लाभालाभ | लाभ या अलाभ |
सुख-दु:ख | सुख या दु:ख |
माँ-बाप | माँ और बाप |
जीवन-मरण | जीवन या मरण |
यश-अपयश | यश या अपयश |
घटते-बढ़ते | घटते या बढ़ते |
राग-द्वेष | राग या द्वेष |
राम-लक्ष्मण | राम और लक्ष्मण |
बाल-बच्चे | बाल, बच्चे इत्यादि |
अन्नजल | अन्न और जल |
आप पढ़ रहे है – समास Notes for CUET
6. बहुव्रीहि समास
• जहाँ पहला पद और दूसरा पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता हैं अर्थात् जिस समास में अन्य पद प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं; जैसे–
समास | समास-विग्रह |
चक्रधर | चक्र को किया है धारण जिसने (विष्णु) |
त्रिलोचन | तीन हैं लोचन जिसके वह (शिव) |
गजानन | गज के समान है आनन (मुख) जिसका (गणेश) |
चतुर्मुख | चार हैं मुख जिसके (ब्रह्मा) |
दशमुख | दस हैं मुख जिसके (रावण) |
गिरिधर | गिरि (पहाड़) को किया है धारण जिसने (कृष्ण) |
चतुर्भुज | चार हैं भुजाएँ जिसके (विष्णु) |
नीलकण्ठ | नीला है कण्ठ जिसका (शिव) |
त्रिनेत्र | तीन हैं नेत्र जिसके (शंकर) |
पंचानन | पाँच हैं मुख जिसके (शिव) |
षडानन | छः हैं मुख जिसके (कार्तिकेय) |
वीणापाणि | वीणा है पाणि में जिसके (सरस्वती) |
पतितपावन | पतितों को करते हैं पावन जो (ईश्वर) |
पवनपुत्र | पवन का हैं पुत्र जो (हनुमान) |
वीणापाणि | वीणा है हाथ में जिसके (सरस्वती) |
शूलपाणि | शूल है पाणि में जिसके (शिव) |
चन्द्रशेखर | चन्द्रमा है शिखर पर जिसके (शिव) |
दिनकर | दिन को है करता जो (सूर्य) |
हलधर | हल को किया है धारण जिसने (बलराम) |
देवराज | देवों का हैं राजा जो (इंद्र) |
चंद्रचूड़ | चन्द्र है चूड़ (सिर) पर जिसके (शिव) |
कपीश्वर | कपियों (वानर) का हैं ईश्वर जो (हनुमान) |
वक्रतुंड | तुंड (मुख) है वक्र (टेढ़ा) जिसका (गणेश) |
वारिज | वारि (जल) में लेता है जन्म जो (कमल) |
पद्मासना | पद्म (कमल) है आसन जिसका (लक्ष्मी) |
सूर्यपुत्र | सूर्य का है पुत्र जो (कर्णं) |
कुसुमशर | कुसुम के हैं शर (बाण) जिनके (कामदेव) |
अनंग | नहीं है अंग जिनका वह (कामदेव) |
अष्टाध्यायी | आठ हैं अध्याय जिसमें वह (संस्कृत व्याकरण पाणिनी कृत) |
वाग्देवी | वाक् भाषा की है देवी जो (सरस्वती) |
मोदकप्रिय | मोदक (लड्डू) हैं प्रिय जिनको (गणेश) |
मुरारी | मुर (राक्षस विशेष) का है अरि (शत्रु) जो (कृष्ण) |
शचीपति | शची का है पति जो (इन्द्र) |
मनोज | मन में लेता है जन्म जो (कामदेव) |
रेवतीरमण | रेवती के साथ करते हैं रमण जो (बलराम) |
महावीर | महान है वीर जो (हनुमान) |
चतुरानन | चार हैं आनन जिसके (ब्रह्मा) |
वज्रांग | वज्र के समान हैं अंग जिसके (हनुमान) |
महेश्वर | महान है ईश्वर जो (शिव) |
आशुतोष | आशु (शीघ्र) होते है तोष (प्रसन्न) जो (शिव) |
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