CUET Hindi Varnamala | हिंदी वर्णमाला |स्वर-व्यंजन उच्चारण स्थान PDF

CUET Hindi Varnamala हिंदी वर्णमाला PDF Notes

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वर्णमाला | CUET Hindi Free Notes PDF download

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वर्णमाला

वर्ण– भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण है।
परिभाषा– भाषा की वह छोटी से छोटी इकाई, जिसके और अधिक टुकड़े न किए जा सके, वह वर्ण कहलाते हैं।
❖ किसी भाषा के सभी वर्णों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध समूह को उसकी वर्णमाला कहते है।

स्वर– जिन वर्णों के उच्चारण में अवरोध या बाधा/विध्न नहीं होता हैं; वे ‘स्वर’ कहलाते हैं, अर्थात् स्वरों के उच्चारण में फेफड़ो से निकली वायु बिना किसी अवयव से टकराए मुँह और नाक से बाहर निकल जाए।
जैसे:– अ, इ, उ इत्यादि।

स्वर वर्ण

मात्राएँ

T

ि

उच्चारण स्थान-

  • कण्ठ – अ, आ, अ:, क, ख, ग, घ, ह
  • तालु- इ, ई, च, छ, ज, झ, य, श
  • मूर्धा- ऋ, ट, ठ, ड, ढ, र, ष
  • दंत- त, थ, द, ध, ल, स
  • ओष्ठ- उ, ऊ, प फ, ब, भ
  • कण्ठोष्ठ- ओ, औ
  • कण्ठतालु- ए, ऐ
  • नासिक्य – अं, ङ्, ञ्, ण्, न्, म्
  • दंतोष्ठ – व

स्वरों का वर्गीकरण

1. उच्चारण अवधि के आधार पर           (i) हृस्व स्वर (ii) दीर्घ स्वर
2. ओष्ठाकृति के आधार पर                   (i) वृत्ताकार स्वर (ii) अवृत्ताकार स्वर
3. जिह्वा के आधार पर                          (i) अग्र स्वर (ii) मध्य स्वर (iii) पश्च स्वर
4. मुखाकृति के आधार पर                    (i) संवृत्त स्वर (ii) अर्द्ध संवृत्त स्वर (iii) विवृत्त स्वर (iv) अर्द्ध विवृत्त स्वर
5. नासिका के आधार पर                      (i) अनुनासिक स्वर (ii) निनुनासिक स्वर

1. उच्चारण अवधि के आधार पर

❖ उच्चारण में लगने वाले समय के अनुसार स्वर दो प्रकार के होते है।
1. हृस्व स्वर
2. दीर्घ स्वर

हृस्व स्वर–

 जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता हैं, वह हृस्व स्वर कहलाते हैं। इन्हें मूल स्वर व मात्रिक स्वर तथा लघु स्वर भी कहते हैं।
जैसे:– अ, इ, उ, ॠ इत्यादि।

दीर्घ स्वर–

 जिन स्वरों के उच्चारण में हृस्व स्वर से भी दुगुना समय लगे, वह दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ इत्यादि।

2. ओष्ठाकृति के आधार पर

1. वृत्ताकार स्वर –

 वे स्वर जिनके उच्चारण में होंठों की आकृति वृत्त के समान गोल हो जाती है, वे वृत्ताकार स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– उ, ऊ, ओ, औ इत्यादि।

2. अवृत्ताकार स्वर –

 वे स्वर जिनके उच्चारण में होंठों की आकृति वृत्त के समान गोल न होकर, फैले रहती है, वे अवृत्ताकार स्वर कहलाते है।
जैसे:– अ, आ, इ, ई, ऋ, ए, ऐ

3. जिह्वा के आधार पर

1. अग्र स्वर– 

वे स्वर जिनके उच्चारण में जिह्वा का अग्र (अगला) भाग क्रियाशील रहता है, वे अग्र स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– इ, ई, ऋ, ए, ऐ

2. मध्य स्वर – 

वे स्वर जिनके उच्चारण में जिह्वा का मध्य–भाग क्रियाशील रहता है, वे मध्य स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– ‘अ’।

3. पश्च स्वर– 

वे स्वर जिनके उच्चारण में जिह्वा का पश्च (पिछला) भाग क्रियाशील रहता हैं, वे पश्च स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– आ, उ, ऊ, ओ, औ।

4. मुखाकृति के आधार पर


1. संवृत्त स्वर–

 वे स्वर जिनके उच्चारण में मुख वृत्त के समान बंद–सा रहता है, अर्थात् सबसे कम खुलता है, वे संवृत्त स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– इ, ई, उ, ऊ, ऋ

2. अर्द्ध संवृत्त स्वर–

 वे स्वर जिनके उच्चारण में मुख संवृत्त स्वरों की तुलना में आधार बंद–सा रहता है, वे अर्द्ध संवृत्त स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– ए, ओ

3. विवृत्त स्वर– 

विवृत्त का अर्थ होता है– खुला हुआ।
वे स्वर जिनके उच्चारण में मुख वृत्त के समान पूरा खुला हुआ रहता हैं, अर्थात् सबसे ज्यादा खुलता है, वे विवृत्त स्वर कहलाते हैं।
जैसे:– ‘आ’।

4. अर्द्ध विवृत्त स्वर–

 वे स्वर जिनके उच्चारण में मुख विवृत्त स्वरों की तुलना में आधा और अर्द्ध संवृत्त स्वरों की तुलना ज्यादा खुला रहता है, वे अर्द्ध विवृत्त स्वर कहलाते हैं। जैसे:– अ, ऐ, औ

5. नासिका के आधार पर

1. निरनुनासिक स्वर–

 वे स्वर जिनके उच्चारण में नासिका का प्रयोग नहीं किया जाता है अर्थात् मुख से उच्चारित ध्वनियाँ, निरनुनासिक कहलाती हैं।
जैसे:– सभी स्वर

2. अनुनासिक स्वर– 

वे स्वर जिनके उच्चारण में नासिका का प्रयोग भी किया जाता है, अर्थात् मुख के साथ–साथ नासिका से भी उच्चारित ध्वनियाँ अनुनासिक/सानुनासिक कहलाती हैं।
जैसे:– अँ, आँ, इँ, ईं, उँ, ऊँ, ऋँ, एँ, ऐं, ओं, औं

व्यंजन |व्यंजन की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण – Hindi Vyakaran

परिभाषा:– जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है, वे व्यंजन कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में– वे वर्ण जिनका उच्चारण में अन्य किसी वर्ण के सहयोग की आवश्यकता होती है, अर्थात् स्वरों के सहयोग से उच्चारित होने वाली ध्वनियाँ, व्यंजन कहलाती हैं।

  • व्यंजनों की संख्या – 33 होती है।

व्यंजन– हिन्दी वर्णमाला में 5 वर्ग होते है।

क वर्ग

च वर्ग

ट वर्ग

त वर्ग

प वर्ग

  • इन 25 वर्णों को वर्गीय व्यंजन कहते हैं।
  • क से म तक प्रयुक्त होने वाले वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं।
  • वर्णमाला में स्पर्शी वर्णों की संख्या 16 है।
  • च, छ, ज, झ- स्पर्श संघर्षी व्यंजन
  • ङ, ञ, ण, न, म – नासिक्य व्यंजन
  • 1. क से म तक – 25 स्पर्श व्यंजन
  • 2. य, र, ल, व – 4 अन्त:स्थ व्यंजन

अंतस्थ वर्ण तीन प्रकार के होते है-

1. अर्द्ध स्वर – य, व (संघर्षहीन वर्ण)
2. प्रकम्पित/लुण्ठित वर्ण – र
3. पार्श्विक वर्ण – ल
3. श, ष, स, ह – 4 उष्म वर्ण व्यंजन

हिन्दी वर्णमाला में वर्णों की संख्या– 44
स्वर– 11
व्यंजन– 33

Hindi Varnamala | हिंदी वर्णमाला
Hindi Varnamala | हिंदी वर्णमाला

उच्चारण प्रयत्न के आधार

1. जिह्वा/अन्य अवयवों द्वारा के अवरोध के आधार पर

(i) स्पर्शी– क वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग और प वर्ग के प्रारम्भ के चारों वर्ण = 16 वर्ण
(ii) संघर्षी – श, ष, स, ह
(iii) स्पर्श संघर्षी– च, छ, ज, झ
(iv) नासिक्य – ङ, ञ, ण, न, म
(v) उत्क्षिप्त – ड़, ढ़
(vi) प्रकम्पित – र
(vii)  पार्श्विक – ल
(viii) संघर्षहीन – य, व

(i) स्पर्शी–

 वे व्यंजन जिनके उच्चारण में विभिन्न अवयवों का स्पर्श किया जाता हैं, स्पर्शी व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ = 16 वर्ण

(ii) संघर्षी–

 वे व्यंजन जिनके उच्चारण में दो उच्चारण अवयव इतनी निकटता पर आ जाते हैं कि इनके बीच का मार्ग छोटा हो जाता है और वायु घर्षण/संघर्ष के साथ बाहर निकलती है, वे संघर्षी व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– श, ष, स, ह
विशेष– इन्हें ऊष्म वर्ण कहते हैं।

(iii) स्पर्श संघर्षी–

 वे व्यंजन जिनके उच्चारण में समय अपेक्षाकृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग संघर्षी हो जाता हैं, वे स्पर्श संघर्षी व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– च, छ, ज, झ

(iv) नासिक्य– 

वे व्यंजन जिनके उच्चारण में हवा का प्रमुख वेग नासिका से निकलता है, वे नासिक्य व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– ङ, ञ, ण, न, म

विशेष:– प्रत्येक वर्ग का पाँचर्वा वर्ण होने के कारण इन्हें ‘पंचम वर्ण’ कहते हैं।

(v) उत्क्षिप्त 

 उत्क्षिप्त का अर्थ – फेंका हुआ।
वे व्यंजन जिनके उच्चारण में जिह्वा ऐसा महसूस कराती है जैसे इन्हें फेंक रही हो, वे उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– ड़, ढ़
विशेष:– इन्हें ताडनजात, द्विगुण एवं द्विपृष्ठ वर्ण भी कहते हैं।

(vi) प्रकम्पित वर्ण:–

 वे व्यंजन जिनके उच्चारण में जिह्वा दो, तीन बार कम्पन्न करती है अर्थात् उच्चारण से पूर्व जिह्वा में कम्पन्न होता है, वे प्रकम्पित व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– ‘र’
विशेष:– इन्हें लुंठित वर्ण भी कहते हैं।

(vii) पार्श्विक वर्ण:– 

वे व्यंजन जिनके उच्चारण में जिह्वा मसूड़ों को छूती है और हवा का प्रमुख वेग जिह्वा के आस–पास या अगल–बगल से निकल जाता हैं, वे पार्श्विक वर्ण कहलाते हैं।
जैसे:– ‘ल’
विशेष:– पार्श्व का अर्थ ‘पास’ होता हैं।

(viii) संघर्षहीन वर्ण

 वे व्यंजन जिनके उच्चारण में जिह्वा को कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता है अर्थात् स्वरों के समान मिलता–जुलता होता हैं, वे संघर्षहीन व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– य, व।

हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन | Hindi Varnamala Alphabets

स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर

(i) अघोष–

 घोष का अर्थ है– गूँज/नाद/कम्पन्न
वे व्यंजन जिनके उच्चारण में गूँज, नाद, कम्पन्न नहीं होता है, वे अघोष व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– प्रत्येक वर्ग का पहला, दूसरा वर्ण (क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ) श, ष, स = 13

(ii) सघोष– 

वे व्यंजन जिनके उच्चारण में गूँज, नाद, कम्पन्न अधिक होता है, वे सघोष व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण (ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म,) य, र, ल, व सभी स्वर

प्राण वायु के आधार पर

(i) अल्पप्राण –

 वे व्यंजन जिनके उच्चारण में वायु मुख विवर से कम निकलती है, वे अल्पप्राण व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवाँ वर्ण (क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म)

(ii) महाप्राण– 

वे व्यंजन जिनके उच्चारण में वायु मुख विवर से अधिक मात्रा में निकलती हैं, वे महाप्राण व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे:– प्रत्येक वर्ग का दूसरा, चौथा वर्ण– (ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ)

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