कक्षा 12 के इतिहास की NCERT पाठ्यपुस्तक का तीसरा अध्याय, “बंधुत्व, जाति तथा वर्ग” प्राचीन भारत में सामाजिक संरचनाओं के विकास पर प्रकाश डालता है।
इन नोट्स के साथ ‘वर्ण’ व्यवस्था के मूल सिद्धांतों, सामाजिक स्तरीकरण में उसकी भूमिका, तथा समाज पर इसके बढ़ते प्रभाव का अध्ययन करें। प्राचीन भारत में सामाजिक गतिशीलता और परिवर्तन की बारीकियों को और बेहतर ढंग से समझने के लिए, कक्षा 12 NCERT इतिहास अध्याय 3 के विस्तृत हिन्दी नोट्स डाउनलोड करें!
Table of Contents
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | बंधुत्व, जाति तथा वर्ग |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
इतिहास अध्याय-3: बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज
महाभारत / Mahabharata
- हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ
- स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है
- भारतीय सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा
- हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख ग्रंथों में गिना जाता है
विशेषताएं:
- विश्व का सबसे लंबा काव्य ग्रंथ
- भारतीय संस्कृति, धर्म, और दर्शन का विवेचन
- भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों के माध्यम से नैतिक मूल्यों का विवरण
- महाभारतीय युद्ध का विस्तृत वर्णन – धर्म और न्याय के लिए युद्ध
- महानायक अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद (गीता) – जीवन के सवालों का समाधान
महत्व:
- धर्म, कर्तव्य, सत्य, और परमार्थ के सिद्धांतों का संग्रह
- जीवन के मार्गदर्शन में सहायक
महाभारत न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन, नीति, और कर्म के बारे में अनमोल शिक्षाओं का खजाना भी है।
महाभारत की रचना / Composition of Mahabharata
रचना:
- विशाल और अद्वितीय काव्य
- लेखक: वेद व्यास (विवादित)
- आरंभिक श्लोक: 8800
- वर्तमान श्लोक: 1 लाख
- महत्वपूर्ण संस्करण: 1919 (वीएस सुथंकर)
इतिहास:
- प्राचीन नाम: जय संहिता
- रचना काल: 1000 वर्ष
महत्व:
- समाज और सामाजिक नियमों का चित्रण
- भारतीय संस्कृति के मौलिक तत्वों की जानकारी
- धर्म, कर्तव्य और परमार्थ के सिद्धांतों का अध्ययन
महाभारत केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों का अद्भुत संग्रह है।
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण
कार्यप्रणाली:
- अनेक विद्वानों का समूह
- सभी पांडुलिपियों में पाए गए श्लोकों की तुलना
परिणाम:
- 13000 पन्नों में अनेक ग्रन्थ खंड
- परियोजना पूर्ण होने में 47 साल लगे
महत्व:
- महाभारत अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण संसाधन
- पाठ की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है
- महाकाव्य के विभिन्न संस्करणों की तुलनात्मक अध्ययन में सहायक
महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण, भारतीय साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
इस प्रक्रिया में, कुछ विशेष बातें उभरकर आईं:
- समानता के प्रकार: विद्वानों ने पाया कि महाभारत के कई पाठों में समानता थी, जो सूचित करती है कि यह महाकाव्य समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक रूप से प्रसारित हुआ था।
- क्षत्रिय प्रभेद: कुछ शताब्दियों के दौरान हुए महाभारत के प्रेषण में अनेक क्षत्रिय प्रभेद उभरकर सामने आए।
- बंधुता और विवाह: महाभारत में बंधुता और विवाह के विभिन्न पहलुओं का विस्तार समालोचनात्मक रूप से किया गया।
इस परियोजना ने महाभारत के विभिन्न आयामों को एकत्रित किया और इस महाकाव्य के महत्वपूर्ण संस्करण का निर्माण किया।
परिवार / Family
परिवार, समाज की एक महत्वपूर्ण संस्था, हमारे समृद्ध और समान संवासना का केंद्र होता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं जो परिवार को समृद्ध और संवासनात्मक बनाती हैं:
- भोजन का बांटना: एक ही परिवार के लोग भोजन को मिल बांटकर करते हैं, जिससे संबंधों में सामंजस्य और साजगर्भा का वातावरण बना रहता है।
- संसाधनों का संयुक्त प्रयोग: परिवार के सदस्य संसाधनों को मिलकर प्रयोग करते हैं, जिससे समृद्धि और समानता की भावना बनी रहती है।
- साथ में रहना: परिवार के सदस्य एक साथ रहते हैं, जो साथीपन और साझेदारी की भावना को बढ़ावा देता है।
- पूजा पाठ का समान समर्थन: परिवार के सदस्य समूह में मिलकर पूजा और पाठ करते हैं, जिससे धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण बना रहता है।
- रिश्तों की महत्वपूर्णता: कुछ समाजों में चचेरे और मौसेरे भाई बहनों को भी खून का रिश्ता माना जाता है, जो सामाजिक और परंपरागत बंधनों की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है।
ये सभी विशेषताएँ एक साथ मिलकर परिवार को एक सुखद और समृद्ध संगठन बनाती हैं, जो समाज की नींव को मजबूत बनाए रखता है।
पितृवन्शिकता : संयुक्त परिवारी परंपरा
Patrilinealism: joint family tradition
- पितृवंशिकता में, पिता की मृत्यु के बाद पुत्र को संपत्ति और विरासत का अधिकार मिलता है।
- यह व्यवस्था परिवार में पुरुषों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है।
राजनीति:
- राजा का सिंहासन पुत्र को हस्तांतरित किया जाता है, जिसके कारण राजनीतिक स्थिरता बनी रहती है।
विरासती दायित्व:
- पुत्र के अभाव में, निकटतम पुरुष रिश्तेदार को उत्तराधिकारी बनाया जाता है।
- यह विरासत के दायित्वों को सुनिश्चित करता है और सामाजिक संरचना को मजबूत बनाता है।
पितृवंशिकता संयुक्त परिवार परंपरा का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में योगदान देता है।
विवाह के नियम : समाज की आधारशिला
- आचारसंहिता का योगदान: ब्राह्मण समाज ने समाज के लिए एक व्यापक आचारसंहिता तैयार की, जिसमें विवाह के नियमों को स्थापित किया गया।
- धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र: विवाह के नियमों का संकलन धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र जैसे संस्कृत ग्रंथों में किया गया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मनुस्मृति थी, जिसका संकलन 200 ईसा पूर्व से 200 ईसवी के बीच किया गया।
- विवाह के प्रकार: धर्मसूत्र और धर्मशास्त्र विवाह के 8 प्रकारों को स्वीकार करते हैं, जिनमें पहले चार उत्तम माने जाते हैं और बाकी को निंदित किया गया है।
- विवाह पद्धतियाँ: दो प्रमुख विवाह पद्धतियाँ हैं – अंतविवाह पद्धति और बहिर्विवाह पद्धति। अंतविवाह पद्धति में विवाह गोत्र के अंदर कुल जाति में होता है, जबकि बहिर्विवाह पद्धति में विवाह गोत्र के बाहर की जाति में होता है।
- पुत्री का महत्व: पितृवंशिय समाज में पुत्र का बहुत महत्व था। पुत्री का विवाह अक्सर गोत्र से बाहर किया जाता था, और कन्यादान को पिता का महत्वपूर्ण कर्तव्य माना जाता था।
गोत्र : एक पुरानी परंपरा
- वैदिक पद्धति: गोत्र एक पुरानी ब्राह्मण पद्धति है जो लगभग 1000 ईसा पूर्व के बाद प्रचलित हुई। इसके अनुसार, हर गोत्र एक वैदिक ऋषि के नाम पर आधारित होता था, और उस ऋषि के वंशजों को गोत्र में सम्मिलित किया जाता था।
- सामाजिक परिवर्तन: नए नगरों के उदय के साथ, सामाजिक नियमों में बदलाव आने लगे। लोग अब क्रय-विक्रय के लिए नगरों में आने लगे और विचारों का आदान-प्रदान होने लगा। इस प्रकार, प्रारंभिक विश्वासों और व्यवहारों पर प्रश्नचिह्न उठने लगे।
- आचार संहिता: इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, ब्राह्मण समाज ने आचार संहिता को तैयार किया। इसके अनुसार, सभी को इसका पालन करना था, जो समाज की स्थिरता और संगठन को सुनिश्चित करता था।
गोत्र एक प्राचीन परंपरा है जो समाज की आधारशिला के रूप में कार्य करती रही है, और समाज के संरचनात्मक विकास को समर्थन करती है।
स्त्री का गोत्र : एक पुरानी परंपरा / Woman’s Gotra: An Old Tradition
- गोत्र पद्धति का आविष्कार: गोत्र पद्धति लगभग 1000 ईसा पूर्व प्रचलित हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य ब्राह्मण समाज को गोत्र के आधार पर वर्गीकृत करना था।
- गोत्र के नियम:
- पहला नियम: शादी के बाद, स्त्रियों को पति का गोत्र अपनाना पड़ता था, जो पति की जगह पिता के रूप में कार्य करता था।
- दूसरा नियम: एक ही गोत्र के सदस्य आपस में शादी नहीं कर सकते थे।
- विपरीत प्रथा: सातवाहन राजाओं का अद्भुत उल्लेख: सातवाहन राजाओं में गोत्र प्रथा का विपरीत नियम था। यहां स्त्रियों को विवाह के बाद भी अपने पिता का गोत्र अपनाना पड़ता था, और सातवाहन राजाओं ने बहुपत्नी प्रथा को भी माना।
गोत्र पद्धति एक पुरानी और महत्वपूर्ण सामाजिक परंपरा है, जो समाज की संरचना और आदर्शों का प्रतिबिम्ब है।
बहुपत्नी और बहुपति प्रथा / Polygamy and polyandry
बहुपत्नी प्रथा: इस प्रथा में एक पुरुष अधिक से अधिक स्त्रियों से शादी करता है। यह सातवाहन राजाओं में विशेष रूप से प्रचलित थी, जहां एक राजा एक से अधिक रानियों को धारण करता था।
बहुपति प्रथा: इस प्रथा में एक स्त्री अधिक से अधिक पुरुषों से शादी करती है। उदाहरण के रूप में, द्रोपदी जैसी महाभारत की प्रसिद्ध पात्रा एक से अधिक पतियों की पत्नी थी।
यह प्रथाएं सामाजिक संरचना में विवाद और उत्तेजना उत्पन्न करती हैं, जिसमें समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ व्यक्तिगत और सामाजिक स्वतंत्रता का मुद्दा होता है।
माताओं को महत्व: प्राचीन समाज में / Importance of Mothers: In Ancient Society
- समाज में माताओं का महत्व: प्राचीन समय में, माताओं को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता था। वे न केवल घर की धार्मिक और सामाजिक प्रमुख थीं, बल्कि उन्हें पुरुषों के समान सम्मान भी मिलता था।
- इतिहास में मातृप्रेम के किस्से: इतिहास में कई किस्से हैं जो दर्शाते हैं कि 600 ईसा पूर्व से 600 ईसा के शुरुआती समाज में माताओं को महत्वपूर्ण माना जाता था।
- सातवाहन राजाओं का उल्लेख: सातवाहन राजाओं के राज्य में, राजा अपने नाम से पहले अपनी माता का नाम लगाते थे। यह उनके मातृप्रेम और माताओं के प्रति आदर का प्रमाण है।
प्राचीन समाज में माताओं को महत्वपूर्ण स्थान देने से, समाज में स्त्रियों के सामाजिक और धार्मिक उत्थान का संकेत मिलता है।
सामाजिक विषमताँए वर्ण व्यवस्था / Social inequalities, caste system
क्षत्रिय :-
- यह समय पड़ने पर युद्ध करते थे।
- यह राजाओं को सुरक्षा प्रदान करते थे।
- वेदों को पढ़ना और यज्ञ कराने का कार्य करते थे।
- यह जनता के बीच न्याय कराने का कार्य करते थे।
ब्राह्मण :-
- यह पुस्तकों का अध्ययन करते थे ग्रंथों का अध्ययन करते थे।
- वेदों से शिक्षा प्राप्त करते थे।
- यज्ञ करवाना और यज्ञ करना इनका कार्य था।
- यह दान दक्षिणा लेते थे वह देते थे।
वैश्य :-
- यह व्यापार करते थे।
- पशुपालन करते थे।
- कृषि करना इनका का मुख्य कार्य था।
- दान दक्षिणा देना इनके मुख्य कारणों में से एक है।
शुद्र :-
यह तीनों वर्गों की सेवा करने का कार्य करते थे इनका मुख्य कार्य इन तीनों की सेवा करने का था।
इन नियमो का पालन करवाने के लिए व्राह्मण ने दो – तीन नीतियां अपनाई थी।
- वर्ण व्यवस्था ईश्वरीय देन है।
- शासको को प्रेरित करना कि वर्ण व्यवस्था लागू कराएँ।
- जनता को यकीन दिलाना कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है।
क्या हमेशा क्षत्रिय राजा हो सकते हैं ? / Can there always be Kshatriya kings?
नहीं, यह असत्य है: इतिहास में कई ऐसे राजा रहे हैं जो क्षत्रिय नहीं थे।
- उदाहरण 1 – चंद्रगुप्त मौर्य: मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य एक विशाल साम्राज्य पर राज किया था। बौद्ध ग्रंथों में उन्हें क्षत्रिय माना जाता है, लेकिन ब्राह्मण शास्त्रों में उन्हें निम्न कुल के माना गया है।
- उदाहरण 2 – सुंग और कण्व: सुंग और कण्व मौर्य के उत्तराधिकारी थे और इन्हें ब्राह्मण कुल से माना जाता है।
- अनुसंधान: इन उदाहरणों से प्रकट होता है कि राजा कोई भी बन सकता था, इसके लिए यह आवश्यक नहीं था कि वह क्षत्रिय कुल में पैदा हो। बल, ताकत, और समर्थन राजा बनने के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था।
जाति / Caste
- वर्ण और जातियाँ: जहाँ वर्ण केवल 4 थे, वहाँ जातियाँ बहुत सारी थी।
- वर्ण से बाहर: जिन्हें वर्ण में समाहित नहीं किया गया, उन्हें जातियों में डाल दिया गया, जैसे निषाद, सुवर्णकार।
- कर्म के अनुसार बनती जातियाँ: जातियाँ कर्म के अनुसार बनती गई थीं। कुछ लोग अपने जीविका के अनुसार जाति में आते थे।
चार वर्गो के परे : अधीनता ओर सँघर्ष :-
- अस्पृश्य वर्ग: ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था से कुछ लोगों को बाहर रखा गया, जिन्हें “अस्पृश्य” घोषित किया गया। ब्राह्मण अनुष्ठान को पवित्र कार्य मानते थे और इसलिए अस्पृश्यों से भोजन स्वीकार नहीं करते थे।
- चांडाल: कुछ कार्य दूषित माने जाते थे, जैसे शव का अंतिम संस्कार करना और मृत जानवरों को छूना। चांडालों को छूना और देखना भी पाप माना जाता था।
- मनुस्मृति के अनुसार चांडालों की स्थिति: समाज में चांडालों को सबसे नीच समझा जाता था। उनका मुख्य काम शवों और मृत पशुओं को दफनाना था।
- नीच समझा जाना: चांडालों को गाँव से बाहर रहना पड़ता था और उन्हें कई प्रतिबंधित कार्य करने की मनाही थी, जैसे फेके बर्तन का प्रयोग करना, मृत लोगों के कपड़े और आभूषण पहनना, और रात में गाँव और नगरों में चलने की मनाही। उन्हें आम लोगों से अलग किया जाता था, ताकि दूसरे उन्हें न देखें।
संसाधन और प्रतिष्ठा: स्त्री और पुरुष के भिन्न अधिकार / Resources and prestige: different rights of men and women
सम्पत्ति पर स्त्री और पुरुष के अधिकार:
- आर्थिक संबंधों के आधार पर, समाज में व्यक्ति का स्थान उसके संपत्ति और सामाजिक प्रतिष्ठा पर निर्भर करता था।
- मनु स्मृति के अनुसार, पिता की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पुत्रों में बाँटी जाती थी, जहां ज्येष्ट पुत्र को विशेष हिस्सा दिया जाता था।
- स्त्रियों के लिए विवाह के दौरान मिले उपहार और विरासत के माध्यम से संपत्ति का अर्जन होता था।
- पुरुषों के लिए संपत्ति अर्जित करने के सात तरीके थे, जैसे विरासत, खरीद, विजय करके, निवेश करके, खोज करके, कार्य द्वारा, और सज्जनों से भेंट करके।
- स्त्रियों के लिए संपत्ति अर्जन के छह तरीके थे, जैसे वैवाहिक अग्नि के सामने, वधुगमन के समय मिली भेंट, स्नेह के प्रतीक के रूप में, और उपहारों के माध्यम से।
प्रवत्ति काल में अधिक अर्जिति:
- इसके अतिरिक्त, प्रवत्ति काल में भी स्त्री को भेट तथा अपने अनुरागी पति से प्राप्त हुए सब कुछ का अधिकार था।
वर्ण एवं संपति के अधिकार: एक अध्ययन / Varna and property rights: a study
शुद्र के अधिकार:
- शुद्रों के लिए केवल एक जीविका थी, यानी सेवा करना।
- उन्हें आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की कमी थी।
उच्च वर्गों में पुरुषों के अधिकार:
- उच्च वर्गों में, विशेष रूप से ब्राह्मण और क्षत्रिय पुरुषों के लिए अधिक संभावनाएं थीं।
- इन वर्गों के पुरुष धनी थे और आर्थिक संपत्ति का उनके पास अधिकार था।
बौध्द दृष्टिकोण:
- बौध्द धर्म ने ब्राह्मणीय वर्ण व्यवस्था की आलोचना की, जहां समाज में जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को स्वीकार नहीं किया गया।
- बौध्द दार्शनिकों ने इसे विचार दिया कि व्यक्ति की प्रतिष्ठा और अधिकार उसके कर्मों और गुणों पर निर्भर करना चाहिए, न कि उसके जन्म पर।
साहित्यक, स्रोतों का इस्तेमाल: एक विश्लेषण / Use of literary sources: an analysis
- भाषा: इतिहासकार ग्रन्थों की भाषा का महत्वपूर्ण ध्यान रखते हैं। यह शामिल करता है साधारण भाषा या विशेष भाषा का उपयोग।
- ग्रंथ का प्रकार: इतिहासकार ग्रंथ के प्रकार को भी महत्वपूर्ण मानते हैं, जैसे मंत्र या कथा, क्योंकि इससे समाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं का अध्ययन होता है।
- लेखक के दृष्टिकोण: लेखक के विषय में दृष्टिकोण और उनकी दृष्टि को भी अध्ययन किया जाता है।
- श्रोताओं का निरीक्षण: इतिहासकारों द्वारा ग्रन्थ के श्रोताओं का निरीक्षण किया जाता है, जो उसकी प्रामाणिकता और परिप्रेक्ष्य को समझने में मदद करता है।
- ग्रंथ का रचना काल: ग्रंथ के रचना काल का भी महत्वपूर्ण अध्ययन किया जाता है, जो उसके सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ को समझने में सहायक होता है।
- भाषा एवं विषयवस्तु: आख्यान और कहानियों की भाषा और विषयवस्तु का विश्लेषण किया जाता है, जो समाज की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को प्रकट करता है।
- ग्रंथ विषयवस्तु: ग्रंथों की विषयवस्तु का विश्लेषण करके सामाजिक आचार-विचार और मानदंडों का मूल्यांकन किया जाता है। इससे समाज के विकास और प्रगति की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलती है।
सदृशता की खोज में बी. बी. लाल के प्रयास / In search of similarity B. B. Lal’s efforts
- प्रस्तावना: 1951–52 में प्रसिद्ध पुरातात्विक और इतिहासकार बी . बी . लाल ने मेरठ जिले (उत्तरप्रदेश) के हस्तिनापुर नाम के गांव में खुदाई का काम किया।
- खोज: लेकिन उनकी खोज से पता चला कि हस्तिनापुर वहां की बहुत बड़ी महाभारत की कथा के साथ सही नहीं था।
खोज के दौरान वहां से केवल मिट्टी की बनी दीवारों और कच्ची ईंटों के अलावा कुछ नहीं मिला।
- नतीजा: इससे साफ होता है कि जैसा महाभारत में हस्तिनापुर का वर्णन किया गया है, वहां के खुदाई से मिले अवशेष इसे समर्थन नहीं देते।
इससे बी . बी . लाल के प्रयास ने समझाया कि महाभारत की कथाओं और इतिहास की सच्चाई को समझने के लिए साहित्यक और स्मृतियों के अतिरिक्त अन्य स्रोतों का भी महत्व है।
महाभारत: एक गतिशील ग्रंथ / Mahabharata: a dynamic text
लगातार परिवर्तित:
- महाभारत हजारों सालों तक लिखा गया है और इसमें लगातार परिवर्तन हुए हैं।
- अनुवादों के माध्यम से इसे कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है, जिससे यह एक अंतर्राष्ट्रीय महाकाव्य बन गया है।
समाजिक प्रभाव:
- महाभारत का विकास हर युग में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा किया गया। इससे समाज में समय और परिस्थितियों के साथ संवाद और विचारों में परिवर्तन हुआ।
भाषा और पाठ:
- सदियों से इस महाकाव्य के अनेक पाठान्तर भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखे गए हैं, जिससे यह समृद्ध और गतिशील है।
- इसमें अनेक श्लोक हैं जो विभिन्न युगों के संदेशों को समाहित करते हैं।
महाकाव्य की गतिशीलता:
- महाभारत में अनेक पुनर्व्याख्याएँ और कथाएँ हैं, जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों और लोगों के बीच प्रसारित हुईं। इससे इसकी गतिशीलता और समकालीनता बनी रही है।
सामाजिक और धार्मिक आदर्श:
- महाभारत सामाजिक, पारिवारिक, और सांस्कृतिक द्वन्द्वों के समाधान का मार्ग दिखाता है।
- इसकी मुख्य कथाओं और उपदेशों से हमारे सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण होता रहा है।
प्रेरणा का स्रोत:
- महाभारत हमें जीवन के उच्चतम आदर्शों को समझाता है और हमारे सांस्कृतिक जीवन को प्रेरित करता है।
- इसमें वर्णित विचार और उच्च आदर्श हमारे जीवन में निरंतर प्रभाव डालते रहते हैं।
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