राजा, किसान और नगर|NCERT Class 12 History Notes In Hindi

बोर्ड परीक्षा के लिए तैयार हों! कक्षा 12 इतिहास नोट्स का हमारा विशेष अध्याय 2 ‘राजा, किसान और नगर’ हिंदी में प्राप्त करें। मौर्य साम्राज्य और भारतीय समाज के गहन अध्ययन के लिए अभी डाउनलोड करें!

12 Class History Notes In Hindi Chapter 2 राजा , किसान और नगर Kings Farmers and Towns

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
ChapterChapter 2
Chapter Nameराजा, किसान और नगर
CategoryClass 12 History
MediumHindi

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

इतिहास अध्याय-2: राजा; किसान और नगर, आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

वैदिक सभ्यता / Vedic Civilization

परिचय: हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद वैदिक सभ्यता उभरी। यह आर्यों द्वारा स्थापित की गई थी।

वैदिक समय ग्रामीण जीवनशैली का प्रतीक है।

काल: 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक चली वैदिक सभ्यता।

महत्वपूर्ण कारण: वैदिक काल में चार वेदों की रचना हुई।

चार वेद:

ऋग्वेद:

  • ऋग्वेद, सबसे पुराना और प्राचीन वेद है, जिसमें मन्त्रों का संग्रह है।
  • इसमें विभिन्न देवताओं की प्रशंसा, प्राकृतिक तत्वों की महिमा, और धार्मिक उपदेशों का संग्रह है।

यजुर्वेद:

  • यजुर्वेद में यज्ञों के लिए मन्त्र हैं, जो प्रार्थनाएं और अनुष्ठानों के लिए प्रयोग में लाए जाते थे।
  • यह वेद अनुष्ठान के मार्गदर्शक माना जाता है और समाज की आदिम व्यवस्था को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सामवेद:

  • सामवेद, गानों का संग्रह है, जिन्हें संगीत के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  • इसमें वेदों के मन्त्रों को संगीत के रूप में गाया जाता है, जो ध्यान और ध्यान की अवस्था में लगाने के लिए उपयोग किया जाता है।

अर्थववेद:

  • अर्थववेद अर्थशास्त्र का अध्ययन करता है और धन, वाणिज्य, और समाज के आर्थिक पहलुओं पर ज्ञान प्रदान करता है।
  • इसमें धन का प्रबंधन, व्यापार, और समाज की अधिकारिक वित्तीय नीतियों को समझाने का प्रयास किया जाता है।

विकास: वैदिक सभ्यता के बाद महाजनपद काल आया, जिसमें नए नगरों का विकास हुआ।

छठी शताब्दी ईसा पूर्व एक परिवर्तनकारी काल :-

अहम बदलाव:

  • छठी शताब्दी ईसा पूर्व प्रारंभिक भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलावकारी काल माना जाता है।
  • इस काल में राज्यों और नगरों का विकास हुआ, लोहे का प्रयोग बढ़ा, और सिक्कों का प्रचलन हुआ।

दार्शनिक विचारधाराएं:

  • छठी शताब्दी में बौद्ध और जैन धर्म के साथ-साथ भिन्न-भिन्न दार्शनिक विचारधाराएं विकसित हुईं।
  • इस काल में बौद्ध और जैन धर्म के प्रारंभिक ग्रंथों में महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।

कृषि का परिवर्तन:

  • छठी शताब्दी ईसा पूर्व को कृषि के लिए परिवर्तनकारी काल माना जाता है।
  • इस काल में लोहे के हल का प्रयोग हुआ, जिससे कठोर जमीन को जोतना आसान हुआ।
  • धान के पौधों का रोपण शुरू हुआ, जिससे फसलों की उपज में वृद्धि हुई।

जनपद और महाजनपद / Janapada and Mahajanapada

  • प्राचीन भारतीय इतिहास में उत्तरवैदिक युग में राज्यों को ‘जनपद’ कहा जाता था, जबकि ऋग्वेदिक युग में उन्हें ‘जन’ कहा जाता था।
  • 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ‘महाजनपद’ की संज्ञा आई, जिसमें अनेक राज्यों का समूह शामिल था।
  • बौद्ध और जैन धर्म के प्रारंभिक ग्रंथों में 16 महाजनपदों का उल्लेख है। इनमें मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार, और अवन्ति सबसे महत्वपूर्ण थे।
  • अधिकांश महाजनपदों में राजा की शासन प्रणाली थी, लेकिन कुछ में गण और संघ भी था।
  • प्रत्येक जनपद की राजधानी एक किले से घेरी जाती थी, जिसमें राजा और सेना की सुरक्षा होती थी।
  • इन राजधानियों के रख-रखाव के लिए अधिक धन की आवश्यकता थी, जिसे किसानों और व्यापारियों से कर वसूला जाता था।
  • कुछ राज्यों में लूट कर धन इकट्ठा किया जाता था, जबकि धीरे-धीरे कुछ राज्य स्थायी सेना और नौकरशाही विकसित करने लगे।

गण एव संघ : प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलु / Gana and Sangha: An important aspect of ancient Indian governance system

गण:

  • गण शब्द का अर्थ होता है किसी समूह का समावेश, जिसमें कई सदस्य होते हैं।
  • प्राचीन काल में गण का संगठन एक सामाजिक या राजनीतिक समूह के रूप में था।

संघ:

  • संघ शब्द का अर्थ होता है किसी संगठन या सभा का समूह।
  • इसका उदाहरण प्राचीन भारतीय समाज में देखा जा सकता है, जहां संघों के माध्यम से विभिन्न निर्णय लिए जाते थे।

गण और संघ का संबंध:

  • गण या संघ में कई शासक होते थे और निर्णय लेने के लिए सभाओं का सहयोग लिया जाता था।
  • इन सभाओं में वाद-विवाद के माध्यम से निर्णय किया जाता था। हालांकि, स्त्रियों, दलितों, और कम्पकारों की भागीदारी नहीं होती थी।

धार्मिक संदर्भ:

  • भगवान बुद्ध और भगवान महावीर दोनों इन गणों से सम्बंधित थे।
  • कुछ राज्यों में, विशेषतः वज्जी संघ के अंतर्गत, राजा गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे।

मगध महाजनपद : ऐतिहासिक महत्व और समृद्धि का केंद्र / Magadha Mahajanapada: Center of historical importance and prosperity

प्रारंभिक राजधानी:

  • मगध महाजनपद की आधुनिक राजधानी वाराणसी राज्य में स्थित है, लेकिन प्राचीनकाल में मगध की राजधानी राजगृह थी।
  • यह शहर एक किलेबंद नगर था, जिसे पहाड़ों के बीच स्थित किया गया था।
  • बाद में, चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र को नई राजधानी घोषित किया गया।

विकास के कारण:

  • मगध महाजनपद छठी से चौथी शताब्दी ई. पू. में सबसे शक्तिशाली बन गया था।
  • यहाँ की प्राकृतिक सुरक्षा, उपजाऊ भूमि, जनसंख्या की बढ़त, और हाथी की उपलब्धता इसे समृद्धि प्रदान करते थे।

महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:

  • गंगा और सोन नदी के पानी से सिंचाई होती थी, जिससे यहाँ की फसलें अच्छी उत्पादित होती थीं।
  • इसके राजा योग्य और महत्वकांक्षी थे, जो अपनी सेना और धनुषधारी क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे।
  • मगध में लोहे की खदानें भी थीं, जो शस्त्रों के निर्माण में महत्वपूर्ण थीं।

ऐतिहासिक महत्व:

  • मगध के राजा बिम्बिसार और अशोक ने इसे विशेष महत्व दिया।
  • यहाँ की नीतियों ने इसे सबसे शक्तिशाली महाजनपद बनाया।
  • मगध महाजनपद के समृद्धि और विकास के कारणों को ध्यान में रखते हुए, इसे भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में माना जाता है।

एक आरंभिक सम्राज्य (मौर्य साम्राज्य) 321-185 BC :-

सम्राज्य का उदय:

  • मौर्य साम्राज्य ने मगध के विकास के साथ-साथ अपना उदय किया।
  • इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 321 ईसा पूर्व में की थी।

सम्राज्य का क्षेत्रफल:

  • मौर्य साम्राज्य अपने शीर्षकाल में पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला हुआ था।

चन्द्रगुप्त मौर्य :-

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

  • चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसवी पूर्व में भारत के पटना जिले में हुआ था।
  • वे भारत के प्रथम हिन्दू सम्राट थे और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

गुरु का महत्व:

  • चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु के रूप में विष्णुगुप्त, कौटिल्य (चाणक्य) थे।
  • इनका संबंध चंद्रगुप्त के शैली और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण था।

मौर्य वंश के बारे में जानकारी के स्रोत :-

  • मूर्तिकला: मौर्तिकला या स्थापत्यकला भी मौर्य वंश के बारे में महत्वपूर्ण स्रोत है। मूर्तिकला के माध्यम से हमें उनकी शैली, कला और सांस्कृतिक प्रभाव की जानकारी मिलती है।
  • समकालीन रचनाएँ मेगस्थनीज द्वारा लिखित इंडिका पुस्तक: यह पुस्तक मौर्य साम्राज्य के दरबार में आए यूनानी राजदूतों और मंत्रियों द्वारा लिखी गई थी। इससे हमें उनकी राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवनशैली की अच्छी जानकारी मिलती है।
  • अर्थशास्त्र पुस्तक (चाणक्य द्वारा लिखित): चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र पुस्तक मौर्य शासकों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।
  • जैन, बौद्ध, पौराणिक ग्रंथों से: जैन और बौद्ध ग्रंथों के साथ-साथ पौराणिक ग्रंथों से भी मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
  • अशोक के स्तम्भों से: अशोक द्वारा लिखवाए गए स्तम्भों से भी हमें मौर्य साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इन स्तम्भों पर लिखे शिलालेखों से हमें उनकी शासनकाल, नीतियां और कार्यक्षेत्र की जानकारी मिलती है।

मौर्य साम्राज्य में प्रशासन / Administration in Maurya Empire

प्रमुख राजनीतिक केंद्र:

  • मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे।
  • इनमें से एक थी राजधानी पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र थे, जैसे कि तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि, और सुवर्णगिरी।

प्रशासनिक व्यवस्था का विवरण:

  • अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि साम्राज्य में हर क्षेत्र में एक समान प्रशासनिक व्यवस्था नहीं थी।
  • भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रशासनिक व्यवस्थाएं थीं।

भूमि और नदियों का महत्व:

  • साम्राज्य के संचालन में भूमि और नदियों दोनों मार्गों से आवागमन बहुत महत्वपूर्ण था।
  • राजधानी से प्रांतों तक की दूरी को यातायात के लिए योजना बनाना जरूरी था।

व्यापार मार्ग:

  • तक्षशिला और उज्जयिनी लंबी दूरी पर स्थित थे और ये दोनों ही महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग थे।
  • सुवर्णगिरी (सोने का पहाड़) कर्नाटक में सोने की खाने थीं, जो व्यापार के लिए महत्वपूर्ण थीं।

मौर्य साम्राज्य में सेना व्यवस्था:

संचालन संगठन: मेगास्थनीज़ के अनुसार, मौर्य साम्राज्य में सेना के संचालन के लिए एक समिति और छः उपसमितियाँ थीं।

प्रमुख कार्यक्षेत्र: प्रमुख कार्यक्षेत्रों के अनुसार, इन समितियों और उपसमितियों ने सेना के विभिन्न क्षेत्रों का प्रबंधन किया।

संघटना:

  • उपसमितियों के द्वारा सेना का प्रबंधन विभाजित किया गया था।
  • ये उपसमितियाँ विभिन्न क्षेत्रों में जिम्मेदारियों का विवरण करती थीं।

कार्य विभाजन:

  • समिति और उपसमितियाँ विभिन्न क्षेत्रों के लिए विभिन्न कार्यों का प्रबंधन करती थीं।
  • इनमें नौसेना, यातायात, पैदल सैनिकों, अश्वरोही, रथारोही, और हथियारों के प्रबंधन शामिल था।

प्रभावी संचालन:

  • इस संचालन संगठन ने सेना को प्रभावी तरीके से संचालित किया और युद्धक्षेत्र में प्रभुता प्राप्त करने में मदद की।

अन्य उपसमितियां / Other subcommittees

उपकरण और भोजन की व्यवस्था:

  • दूसरी उपसमिति का मुख्य कार्य था युद्ध के लिए आवश्यक उपकरणों की व्यवस्था करना।
  • इसके अलावा, सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था भी इस उपसमिति के दायित्व में थी।

जानवरों के लिए व्यवस्था:

  • इस उपसमिति का ध्यान जानवरों की देखभाल के लिए था।
  • यहाँ पर चारे की व्यवस्था और जानवरों के सही देखभाल की जिम्मेदारी थी।

सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति:

  • इस उपसमिति का काम सेना के सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना था।
  • इन व्यक्तियों की मुख्य जिम्मेदारी सेना के आवश्यकताओं को पूरा करना और सेना को समर्थ बनाने में मदद करना था।

मेगस्थनीज : यूनानी राजदूत और इतिहासकार / Megasthenes: Greek ambassador and historian

  • परिचय: मेगस्थनीज एक प्रमुख यूनानी राजदूत और प्रसिद्ध इतिहासकार थे।
  • लेखन कार्य: उन्होंने ‘इंडिका’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें मौर्य साम्राज्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।
  • योगदान: मेगस्थनीज की ‘इंडिका’ से हमें मौर्य साम्राज्य के सेना के संचालन और प्रशासन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
  • सेना के संचालन: उन्होंने बताया कि मौर्य साम्राज्य में सेना के संचालन के लिए एक समिति और छः उपसमितियाँ होती थीं।

सम्राट अशोक : भारतीय इतिहास का महान व्यक्तित्व / Emperor Ashoka: Great Personality of Indian History

प्रारंभिक पहचान:

  • अशोक, भारतीय इतिहास के सर्वाधिक रोचक व्यक्तियों में से एक हैं।
  • उनकी पहचान 1830 ई. के दशक में हुई, जब यूनानी और अरामाइक भाषाओं में उनके अभिलेखों का अर्थ निकाला गया।

भाषाएँ और लिपियाँ: उनके अभिलेख प्राकृत में हैं, जो ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में लिखे गए थे।

अफगानिस्तान में मिले अभिलेखों में अरामाइक और यूनानी भाषा का प्रयोग हुआ।

नाम की पहचान: अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर “प्रियदस्सी” या “मनोहर मुखाकृति वाले राजा” का नाम लिखा है, जो अशोक को दर्शाता है।

धर्म और युद्ध: अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद युद्ध का परित्याग किया और धर्म विजय की नीति को अपनाया, जिसे उन्होंने अभिलेखों पर खुदवाया।

ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि का अर्थ : पुरातात्विक खोज / Meaning of Brahmi and Kharosthi script: archaeological discovery

  • खोज का प्रारंभ: 1830 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स प्रिन्सेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला।
  • लिपियों का प्रयोग: इन लिपियों का प्रयोग सबसे प्राचीन अभिलेखों और सिक्कों पर किया जाता था।
  • अर्थ की खोज: जेम्स प्रिन्सेप को यह बात पता चली कि अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर “पियदस्सी” राजा का नाम लिखा था।

पियदस्सी: राजा का सुंदर मुखाकृति

  • “पियदस्सी” शब्द का अर्थ होता है “मनोहर मुखाकृति वाला राजा”। इस शब्द का उपयोग प्राचीन अभिलेखों और सिक्कों पर राजाओं के लिए हुआ।
  • खरोष्ठी और ब्राह्मी लिपि का पढ़ाई में महत्व

खरोष्ठी लिपि:

  • खरोष्ठी लिपि को पश्चिमोत्तर से प्राप्त अभिलेखों और सिक्कों पर देखा जा सकता है।
  • यूनानी और हिन्दू राजाओं के सिक्कों में खरोष्ठी लिपि में नाम लिखे गए थे।
  • यूरोपीय विद्वानों ने यूनानी भाषा को पढ़ते हुए इन अक्षरों को समझा।

ब्राह्मी लिपि:

  • ब्राह्मी लिपि हमारी प्राचीन और प्रमुख लिपि है।
  • 18वीं सदी में यूरोपीय विद्वानों ने भारत के पंडितों की सहायता से बंगाली और देवनागरी लिपि को पढ़ना शुरू किया।
  • इस प्रयास का परिणाम स्थानीय अक्षरों को प्राचीन ब्राह्मी लिपि से जोड़कर विद्यमान लिपि को पढ़ा जा सका।
  • 1838 में जेम्स प्रिन्सेप ने अशोक के समय की ब्राह्मी लिपि का अर्थ निकाला।

सिक्के के प्रकार और उपयोग / Types and Uses of Coins

  • व्यापार का साधन: सिक्के व्यापार के लिए महत्वपूर्ण साधन थे और इनका प्रयोग व्यापारिक संदेश और मुद्राओं के रूप में किया जाता था।
  • प्रारंभिक सिक्के: 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, चांदी और तांबे के सिक्के सबसे पहले उपयोग किए गए। ये सिक्के खुदाई के दौरान प्राप्त हुए थे।
  • राजा या व्यापारिक उत्पाद: सिक्कों को राजा द्वारा जारी किया गया हो सकता था, लेकिन कुछ अमीर व्यापारियों भी सिक्कों को जारी कर सकते थे।
  • प्रथम सिक्के: शासकों के नाम और चित्र के साथ सबसे पहले सिक्के हिन्दू यूनानी शासकों ने जारी किए थे।
  • सोने के सिक्के: सोने के सिक्के सबसे पहले कुषाण राजाओं ने जारी किए थे, जिनका वजन और आकार उस समय के रोमन सिक्कों के समान था।
  • तांबे के सिक्के: पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में यौधेय शासकों ने तांबे के सिक्के जारी किए थे, जो हजारों की संख्या में पाए गए हैं।
  • गुप्त शासकों के सिक्के: सोने के सबसे उत्कृष्ट सिक्के गुप्त शासकों ने जारी किए थे, जो उनके शासनकाल की महत्वपूर्ण धाराओं के साथ मिलते थे।

कलिंग का युद्ध / War of Kalinga

  • समय और परिस्थितियाँ: अशोक के राज्यारोहण के 8 बर्ष बाद, यानी 261 ई० पू० में, अशोक ने कलिंग के साथ युद्ध किया। यह युद्ध अशोक के राज्याभिषेक के बाद का घटना था।
  • सेना की शक्ति: कलिंग की सेना में 60,000 पैदल सैनिक, 1000 घुड़सवार और 700 हाथी थे, जबकि अशोक की सेना अधिक शक्तिशाली थी।
  • युद्ध का परिणाम: कलिंग के शासक ने वीरता से अशोक का सामना किया, लेकिन लंबे युद्ध के बाद उन्हें पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में 1,50,000 सैनिक युद्ध में बंदी बनाए गए और कई लाख लोगों की मृत्यु हो गई।
  • अशोक का परिवर्तन: यह युद्ध अशोक के जीवन में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया। डॉ. हेमचंद रॉय चौधरी के अनुसार, इसे अशोक का प्रथम और अंतिम युद्ध माना जाता है। इस युद्ध ने उसके विचार और नीति में अभूतपूर्व परिवर्तन लाया, और उसने शस्त्र के प्रयोग की जगह शास्त्र के अनुसार प्रशासन चलाने का संकल्प किया।

अशोक का राजत्व सिद्धांत / Ashoka’s kingship theory

  • प्रेरणा का संदेश: कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने शांति और मैत्री की नीति को अपनाया। इससे प्रेरित होकर, वह दो आदेश जारी करते हैं, जो धौली और जोगढ़ नामक स्थानों को सुरक्षित करते हैं।
  • प्रजा के साथ सहयोग: इन आदेशों में उन्होंने सम्राट अशोक के नाम से निर्गत किया कि प्रजा के साथ पुत्रवत व्यवहार किया जाना चाहिए।
  • न्याय और दया: अशोक का सिद्धांत यह भी था कि अकारण लोगों को कारावास या यातना नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने न्याय की भावना को महत्व दिया और दया और करुणा का उदाहरण प्रदान किया।

धम्म से अभिप्राय / Meaning of Dhamma

  • नैतिकता की नियमावली: अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से ‘धम्म’ का प्रचार किया, जो एक नैतिक नियमावली को संदर्भित करता है।
  • बड़ों के प्रति आदर: इस नीति में बड़ों के प्रति आदर और सम्मान को महत्व दिया गया है।
  • उदारता का संदेश: साधु-संतों और ब्राह्मणों के प्रति उदार व्यवहार को प्रोत्साहित किया गया है।
  • सेवा और सहयोग: सेवकों और दासों के साथ उदार और सहानुभूति पूर्वक व्यवहार का आदर्श स्थापित किया गया है।
  • सम्प्रदाय का महत्व: दूसरों के धर्मों और परंपराओं का आदर और सम्मान को बढ़ावा दिया गया है।

अशोक का धम्म / Dhamma of Ashoka

धम्म के सिद्धांत:

  • साधारण और सार्वभौमिक: अशोक के धम्म के सिद्धांत साधारण और समाज के लिए सार्वभौमिक थे।
  • जीवन में सुधार: धम्म के माध्यम से अशोक ने लोगों के जीवन में सुधार की बात कही, जो इस जीवन में और उसके बाद के जीवन में अच्छा रहेगा।
  • व्यक्तिगत धर्म: अशोक का व्यक्तिगत धर्म बौद्ध धर्म था, लेकिन उसने इसे किसी अन्य धर्म को थोपने का प्रयास नहीं किया।

अशोक के धम्म का प्रचार:

  • अशोक ने ‘धम्म महामात्य’ नामक विशेष अधिकारी वर्ग नियुक्त किया और उन्हें धम्म का प्रचार करने का काम सौंपा।
  • धम्म महामात्यों को सभी धर्मों और संप्रदायों की देखभाल का काम था, जो उनके समृद्ध विकास और सम्मान के साथ सम्पर्क में थे।
  • धम्म महामात्यों को सम्मान और वेतन दिया जाता था, और उनका काम सभी समाज के विभिन्न वर्गों की सांसारिक और आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करना था।

अशोक के धम्म की मुख्य विशेषताएं:

  • नैतिकता: अशोक के धम्म में नैतिकता की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जो सामान्य और सदाचारिक जीवन का प्रतिनिधित्व करती थी।
  • वासनाओं का नियंत्रण: उसका धम्म बाहरी आडंबर और व्यक्तिगत वासनाओं के नियंत्रण पर जोर देता था।
  • सहिष्णुता: अशोक के धम्म में सहिष्णुता और दूसरों के धर्म के प्रति सम्मान की बात कही गई थी।
  • दयालुता: उसका धम्म सभी के प्रति दयालुता की भावना को प्रोत्साहित करता था, चाहे वे कितने ही छोटे या बड़े क्यों न हों।

मौर्य साम्राज्य की सामाजिक, आर्थिक एवं संस्कृति स्थितियाँ / Social, economic and cultural conditions of the Maurya Empire

  • सामाजिक जीवन: सामाजिक वर्ग एवं जाति प्रथा: मौर्य काल में, कौटिल्य के अर्थशास्त्र और मेगस्थनीज की यात्रा विवरण से प्रकाशित होता है कि समाज में क्षत्रियों और वैश्यों को प्रतिष्ठित माना जाता था, जबकि लोग ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धाभाव रखते थे। मेगस्थनीज की ‘इण्डिका’ में 7 जातियों का उल्लेख है: दार्शनिक, किसान, अहीर, कारीगर, सैनिक, निरीक्षक, सभासद।
  • स्त्रियों की दशा: महिलाएं स्वतंत्रता और समानता का अनुभव करती थीं, और उन्हें पुनर्विवाह और तलाक की अनुमति थी। वे सावधानी से सार्वजनिक कार्यों में भाग लेती थीं और धार्मिक कार्यों में भी सक्रिय रहती थीं।
  • रहन – सहन एवं वेषभूषा: मकान और भवन विलासितापूर्ण थे, और लोग सूती वस्त्र पहनते थे जो भड़कीले और लबादेदार होते थे। तड़क-भड़क हीरे-जवाहरात का उपयोग सामान्य था।
  • भोजन: भोजन में दूध, दही, घी, जौ, चावल का सेवन होता था, और कुछ लोग मास और शराब का भी आनंद लेते थे। धर्म के प्रभाव से मास के सेवन में कमी आई थी।
  • मनोरंजन: लोग नृत्य, संगीत, गायन, नटक, घुड़दौड़, नोकायान, जुआ और धनुर्विद्या का आनंद लेते थे।
  • आर्थिक जीवन: मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और वाणिज्य पर आधारित थी। यहां अर्थव्यवस्था समृद्ध थी और लोग सूक्ष्म वस्त्रों, गहनों, और भोजन में धन लगाते थे।

मौर्य साम्राज्य का पतन के कारण / Reasons for the decline of the Maurya Empire

  • निर्बल एवं अयोग्य उत्तराधिकारी: मौर्य साम्राज्य के अंतिम उत्तराधिकारी धनानंद के निर्बल और अयोग्य प्रबंधन ने साम्राज्य को कमजोर बनाया।
  • केन्द्रीय शासन की निर्बलता: साम्राज्य के केंद्रीय शासन की निर्बलता ने स्थानीय शासकों को सत्ता में अधिकता प्राप्त करने का मौका दिया।
  • साम्राज्य का प्रशासन: धनानंद के प्रशासन में कुशलता की कमी थी, जिसने साम्राज्य की सुरक्षा और समृद्धि को प्रभावित किया।
  • प्रान्तीय शासकों का अत्याचार: साम्राज्य के कुछ प्रान्तीय शासकों का अत्याचार और अनियमितता ने साम्राज्य की स्थिति को कमजोर किया।
  • अत्याचारी शासक: कुछ अत्याचारी शासकों की निर्ममता और अन्याय ने साम्राज्य के आत्मविश्वास को ध्वस्त किया।
  • दरबार के षड्यंत्र: धनानंद के दरबार में उत्पन्न षड्यंत्रों ने उसके प्रशासन को कमजोर किया और साम्राज्य को विघटित किया।
  • आर्थिक कारण: साम्राज्य के अंतिम दिनों में आर्थिक संकटों ने उसकी स्थिति को और भी कठिन बना दिया।

इन कारणों ने मिलकर मौर्य साम्राज्य का अस्तित्व को खत्म कर दिया और उसे पतन की ओर ले जाया।

क्या मौर्य साम्राज्य महत्वपूर्ण है :-

  • भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान: मौर्य साम्राज्य को भारतीय इतिहास का मुख्य काल माना जाता है, जब भारत गुलाम था और स्वतंत्रता की आशा थी।
  • अद्भुत कला का साक्ष्य: मौर्य साम्राज्य ने अद्भुत कला के साक्ष्य छोड़े हैं, जैसे कि अशोक के साथ कई उन्नत शैली के स्तूप और स्मारक।
  • मूर्तियाँ (सम्राज्य की पहचान): मौर्य साम्राज्य की मूर्तियाँ साम्राज्य की पहचान हैं और उसकी सांस्कृतिक विरासत को प्रतिष्ठित करती हैं।
  • अभिलेख (दूसरो से अलग): मौर्य साम्राज्य के अभिलेख अन्य साम्राज्यों से अलग हैं और उसकी विशिष्टता को दिखाते हैं।
  • अशोक एक महान शासक था: अशोक एक प्रसिद्ध और महान शासक था, जिन्होंने शांति और धर्म की नीतियों को प्रचारित किया।
  • साम्राज्य की अवधि: मौर्य साम्राज्य ने भारतीय इतिहास में लगभग 150 वर्षों तक शासन किया, जो उसकी महत्वपूर्ण और लंबी अवधि को दर्शाता है।

दक्षिण के राजा और सरदार / Kings and chieftains of the south

सरदार और सरदारी:

  • सरदार एक ताकतवर व्यक्ति होता है, जिसका पद वंशानुगत या अनुसंधानिक भी हो सकता है।
  • उनके समर्थक उसके खानदान के लोग होते हैं और उनके कार्यों में अनुष्ठान का संचालन, युद्ध के समय नेतृत्व, और विवादों के समाधान में मध्यस्थता की भूमिका होती है।
  • सरदार के कार्य में अपने अधीन लोगों से भेंट लेना, उन्हें समर्थन प्रदान करना, और उन भेंट को बांटना शामिल है।
  • सरदारी में स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते हैं।

सरदार के कार्य:

  • अनुष्ठान का संचालन, युद्ध का नेतृत्व, और विवादों के समाधान में मध्यस्थता करना सरदार के मुख्य कार्य होते हैं।
  • उनका श्रेष्ठ गुण है कि वे अपने अनुयायियों के साथ संबंध बनाए रखते हैं और उनकी जरूरतों को समझते हैं।
  • कई सरदार व्यापार से भी राजस्व इकट्ठा करते थे, जो उन्हें आर्थिक सुशक्ति प्रदान करता था।

दैविक राजा / Divine King

पौराणिक प्रतिष्ठा:

  • देवी-देवताओं की पूजा से राजा अपनी सत्ता को उच्च स्थिति में स्थापित करते थे।
  • इस प्रकार की दैविक प्रतिष्ठा का उदाहरण कुषाण शासकों से मिलता है।

मूर्तिपूजा का महत्व:

  • उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास, कुषाण शासकों ने विशाल काय मूर्तियों की स्थापना की।
  • अफगानिस्तान में भी ऐसी मूर्तियों की स्थापना की गई, जो राजाओं को देवतुल्य दर्शाती थीं।

राजा की देवतुल्यता:

  • इन मूर्तियों के माध्यम से, राजा अपने आप को देवतुल्य मानने का संकेत देते थे।
  • दैविक प्रतिष्ठा राजा की शक्ति और स्थायित्व को बढ़ाती थी और लोगों में उनके प्रति सम्मान बढ़ाती थी।

गुप्तकाल : भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग / Gupta period: the golden age of Indian history

सम्मानित काल:

  • गुप्तकाल को भारतीय इतिहास में स्वर्णयुग कहा जाता है।
  • इस काल में अनैक मेधावी और शक्तिशाली राजाओं ने उत्तर भारत को एक छत्र के नीचे संगठित किया और शासन के सुव्यवस्थित तथा सुरक्षित माध्यम से देश में समृद्धि और शांति की स्थापना की।

राजनेता और राज्यकार:

  • गुप्त सम्राटों ने 200 वर्ष तक उत्तर भारत और उत्तर पश्चिम के प्रदेशों को राजनीतिक एकता के अंतर्गत संघटित किया।
  • वे विदेशी सत्ता से भारत को मुक्त कराने में सफल रहे।

गुप्त सम्राटों की सूची:

गुप्तकाल के प्रमुख शासक थे:

  • श्रीगुप्त
  • घटोत्कच
  • चंद्रगुप्त प्रथम
  • समुद्रगुप्त
  • रामगुप्त
  • चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य)
  • कुमारगुप्त
  • स्कन्दगुप्त

गुप्तकाल ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग के रूप में स्थान बनाया, जिसने देश को विदेशी आक्रमणों से मुक्त किया और समृद्धि के पथ पर ले जाया।

गुप्तकालीन इतिहास की जानकारी के स्रोत / Sources of information about Gupta period history

साहित्य:

  • गुप्तकाल के इतिहास को साहित्य से भी प्राप्त किया जा सकता है। काव्य और पुराणों में इस युग के घटनाक्रमों का वर्णन मिलता है।
  • विष्णु पुराण, वायु पुराण, ब्राह्मण पुराण, रघुवंश, अभिज्ञानशाकुन्तलम, देवीचंद्रगुप्तम, अभिलेख व अभिलेख.

अभिलेख:

  • गुप्तकाल के अभिलेखों में उस समय की साक्ष्यता मिलती है। शिलालेख, ताम्रपत्र और अन्य प्राचीन दस्तावेजों पर आधारित रिकॉर्ड हैं।
  • इनमें समुद्रगुप्त के प्रयाग और ऐरण अभिलेख, चंद्रगुप्त द्वितीय के महारौली और कुमारगुप्त के मिलसद अभिलेख उल्लेखनीय हैं।

स्मारक:

  • गुप्तकालीन स्मारक और मंदिर भी इस युग के इतिहास की अवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं।
  • तिगवा का विष्णु मंदिर, भूमरा का शिव मंदिर, नचनकुठार का शिव मंदिर, देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भीतर गाँव का ईटो का मंदिर, स्कन्दगुप्त का भीतरी स्तम्भ और चंद्रगुप्त द्वितीय का महरौली लौह स्तम्भ इसका उदाहरण हैं।

गुप्तकाल तथा प्रशासन / Gupta period and administration

प्रशिस्त वेदिक समुद्रगुप्त: कवि हरिषेण ने इलाहाबाद के अशोक स्तम्भ पर संस्कृत में गुप्त राजा समुद्रगुप्त की प्रशंसा की। उन्हें एक योद्धा, राजा, कवि, और विद्वान के रूप में चित्रित किया गया।

समुद्रगुप्त की नीतियाँ:

  • राज्य का विस्तार: उत्तर भारत के 9 राज्यों को अपने साम्राज्य में शामिल किया गया।
  • विरोधी शासकों का अधिकार: 12 दक्षिणी राज्यों के शासकों को हराकर उनका राज्य वापस लौटाया।
  • विदेशी राजाओं का समर्थन: कुषाण, शक, और श्रीलंका के शासकों ने समुद्रगुप्त की अधिनता स्वीकार की।
  • समर्थकों के उपहार: असम, तटीय बंगाल, नेपाल, और उत्तर-पश्चिमी गणों ने समुद्रगुप्त को उपहार प्रदान किए।

समुद्रगुप्त और प्रशासन:

  • समुद्रगुप्त के पिता चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त शासक थे जो महाराजाधिराज की उपाधि प्राप्त कर चुके थे।
  • चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के दरवार में कालिदास और आर्यभट थे। उन्होंने पश्चिम भारत के शासकों को परास्त किया।
  • गुप्तकाल में समुद्रगुप्त के अनेक पद वंशानुगत थे, जैसे महादण्डनायक, कुमारामात्य, और संघि विग्राहक।
  • स्थानीय प्रशासन में भी विविधता थी, जैसे नगर श्रेष्ठि, मुख्य बैंकर, सार्थवाह, और कसयस्थ लिपिक।

भूमिदान तथा नए सभ्रांत ग्रामीण / Land donation and new elite villagers

भूमिदान का इतिहास:

  • आरंभिक शताब्दियों से: भूमिदान के प्रमाण ई.पू. की आरंभिक शताब्दियों से ही मिलते हैं, जिनमें कई अभिलेखों में उल्लेख है।
  • प्रमाण के स्रोत: अधिकांश भूमिदान के अभिलेख ताम्रपत्रों पर खुदे गए थे, जो संभवतः उन लोगों के प्रमाण रूप में दिए जाते थे जो भूमिदान लेते थे।
  • प्रमाण के प्रकार: भूमिदान के प्रमाण साधारणतः धार्मिक संस्थाओं या ब्राह्मणों को दिए जाते थे, और इनमें से कुछ अभिलेख संस्कृत में भी थे।

प्रभावतीगुप्त और भूमिदान:

  • भूमिदान का प्रमाण: प्रभावतीगुप्त, गुप्तकाल के महत्वपूर्ण शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी, जिसका विवाह दक्कन के वाकाटक राजवंश से हुआ था।
  • महिलाओं का अधिकार: धर्मशास्त्रों के अनुसार, महिलाओं को भूमि जैसी संपत्ति पर स्वतंत्र अधिकार नहीं था, लेकिन प्रभावती भूमि की स्वामित्वधारिणी थी और उसने दान भी किया था।

भूमिदान का प्रभाव:

  • वाद-विवाद का विषय: भूमिदान का प्रभाव इतिहासकारों के बीच एक महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है, जिसमें भूमिदान के प्रमाण की महत्वपूर्ण भूमिका है।

जनता के बीच राजा की छवी कैसी थी ?

  • राजा की छवी के बारे में साक्ष्य बहुत कम हैं।
  • इतिहासकारों ने जातक कथाओं के माध्यम से इसे पता करने का प्रयास किया है।
  • ये कहानियाँ मौखिक रूप से प्रचलित थीं, और बाद में इन्हें पालि भाषा में लिखा गया।
  • उदाहरण के तौर पर, गंदतिन्दु जातक कहानी में प्रजा के दुख के बारे में बताया गया है।

छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से उपज बढ़ाने के तरीके

  • इस काल में उपज बढ़ाने के लिए कई तरीके अपनाए गए।
  • हल का प्रयोग उपज बढ़ाने में किया गया।
  • लोहे की फाल का प्रयोग भी महत्वपूर्ण था, जो उपज बढ़ाने में मदद करता था।
  • कृषक समुदाय ने मिलकर सिंचाई के नए साधन बनाए।
  • फसल की उपज बढ़ाने के लिए तलाब, कुआँ और नहर जैसे सिंचाई साधन बनाए ग

सिक्के और राजा / Coins and Kings

सिक्के के प्रारंभिक उपयोग से व्यापार की सुविधा में सुधार हुआ। चौड़ी और तांबे के सिक्के अब उपयोग में लाए जा रहे थे, जो खुदाई के दौरान प्राप्त हुए थे। ये सिक्के आहत मिले और उन पर प्रतीक चिह्न भी थे। सिक्के राजाओं द्वारा जारी किए गए थे। यूनानी शासकों ने अपनी प्रतिमा और नाम के साथ पहले सिक्के जारी किए थे। सोने के सिक्के को सबसे पहले कुषाण राजाओं ने जारी किया था। मूल्यांकन वस्तु के विनिमय में सोने के सिक्के का उपयोग किया जाता था। दक्षिण भारत में, रोमन सिक्कों की बड़ी मात्रा मिली जाती थी। सबसे आकर्षक सोने के सिक्के गुप्त शासकों ने जारी किए थे।

अभिलेखों की साक्ष्य सीमा / Evidence limit of records

  • हल्के ढंग से उत्कीर्ण अक्षर: कुछ अभिलेखों में अक्षर हल्के ढंग से उत्तीर्ण किए जाते हैं, जिनसे उन्हें पढ़ना बहुत मुश्किल होता है।
  • कुछ अभिलेखों के अक्षर लुप्त: कुछ अभिलेख नष्ट हो गए हैं और कुछ अभिलेखों के अक्षर लुप्त हो चुके हैं, जिनकी वजह से उन्हें पढ़ पाना बहुत मुश्किल होता है।
  • वास्तविक अर्थ समझने में कठिनाई: कुछ अभिलेखों में शब्दों के वास्तविक अर्थ को समझ पाना पूर्ण रूप से संभव नहीं होता, जिससे कठिनाई उत्पन्न होती है।
  • अभिलेखों में दैनिक जीवन के कार्य लिखे हुए नहीं होते हैं: अभिलेखों में केवल राजा महाराजा की और मुख्य बातें लिखी होती हैं, जिनसे हमें दैनिक जीवन में आम लोगों के बारे में जानकारी नहीं मिलती।
  • अभिलेख बनवाने वाले के विचार: अभिलेख को देखकर यह पता चलता है कि जिसने अभिलेख बनवाया है, उसका विचार किस प्रकार से है, इसके बारे में हमें जानकारी प्राप्त होती है।

आशा करते है इस पोस्ट राजा, किसान और नगर|NCERT Class 12 History Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट राजा, किसान और नगर|NCERT Class 12 History Notes पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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Author: NCERT

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