#NCERT Class 10 Geography: कृषि Notes In Hindi PDF

NCERT भूगोल के ‘कृषि‘ अध्याय के विशेषज्ञ बनें! इस PDF के सरल हिंदी नोट्स के साथ खेती के प्रकार, फसलें, तकनीकी बदलावों और भारत में कृषि के महत्व की स्पष्ट समझ पाएं। परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए अभी मुफ्त में डाउनलोड करें!

10 Class भूगोल Chapter 4 कृषि Notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectGeography
ChapterChapter 4
Chapter Nameकृषि
CategoryClass 10 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

सामाजिक विज्ञान (भूगोल) अध्याय-4: कृषि

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

कृषि / Agriculture

परिचय: कृषि एक प्राथमिक क्रिया है जो खाद्यान्न का उत्पादन करती है, जो हमारे लिए आवश्यक है।

खाद्यान्नों का उत्पादन: कृषि विभिन्न प्रकार के फसलों, जैविक उत्पादों, और पशुपालन के माध्यम से खाद्यान्न का उत्पादन करती है।

कच्चा माल का उत्पादन: कृषि उत्पादों के अतिरिक्त, कृषि क्षेत्र विभिन्न उद्योगों के लिए भी कच्चा माल उत्पादित करता है, जैसे कि कपास, जूट, खनिज खाद्यान्न, आदि।

निर्यात: कुछ कृषि उत्पादों का निर्यात किया जाता है, जैसे कि चाय, कॉफी, मसाले, फल, और सब्जियाँ, जो विभिन्न देशों में बाजार में प्रस्तुत किए जाते हैं।

आधुनिकीकरण: कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण और तकनीकी उन्नति के प्रयासों के फलस्वरूप उत्पादनतंत्रों में सुधार होता है, जो उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार करता है।

समस्याएं: कृषि क्षेत्र को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि भूमि की असमान नियंत्रण, जल संकट, और उत्पादन में वायुमंडलीय परिवर्तन।

कृषि प्रक्रिया / Agricultural Process

जुताई: इस प्रक्रिया में खेत की जमीन को खोलकर बीजों को बोया जाता है। इससे मिट्टी में बीजों को उचित तापमान, ऑक्सीजन, और पोषक तत्व मिलते हैं।

बुवाई: इस प्रक्रिया में बुआई की गई बीजों को मिट्टी में गहराई में जाते हुए बोया जाता है।

निराई: जब फसल पूरी तरह से पलती होती है, तो इस प्रक्रिया में फसल को बाहर निकाला जाता है।

सिंचाई: फसलों को पोषण के लिए पानी देने की प्रक्रिया को सिंचाई कहा जाता है।

खाद डालना: मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए खाद या उर्वरक डाला जाता है।

कीटनाशक: कीटनाशकों का उपयोग कीटों और कीड़ों के प्रकोप को रोकने के लिए किया जाता है।

कटाई: जब फसल पकने के बाद तैयार होती है, तो उसे काटकर निकाला जाता है।

दलाई/ गहराई: बालियों में से बीज अलग करने की प्रक्रिया को दलाई या गहराई कहा जाता है। इससे बीजों को सुरक्षित रखा जाता है और उन्हें बालियों से अलग किया जाता है।

कृषि प्रणाली / Agricultural System

निर्वाह कृषि: इस प्रकार की कृषि में जमीन का उपयोग पशुपालन के लिए किया जाता है। पशुओं को पालने के लिए खाद्य, चारा, और फसलों की खेती की जाती है।

गहन कृषि: इस प्रकार की कृषि में खेती की जाती है जो खासतौर पर गेहूं, चावल, मक्का, और बाजरा जैसी अनाजों की होती है। यह खेती खाद्य उत्पादन के लिए मुख्य रूप से की जाती है।

वाणिज्यिक कृषि: वाणिज्यिक कृषि में किसान बड़ी स्थापनाओं में फसलों की खेती करते हैं और इन्हें बाजार में बेचते हैं। इसमें मुख्य ध्यान व्यापारिक उत्पादन और बाजार वितरण पर रहता है।

रोपण कृषि: इस प्रकार की कृषि में खेती की जाती है जो मुख्य रूप से फल और सब्जियों की होती है। यह फलों और सब्जियों के उत्पादन के लिए मुख्य रूप से की जाती है और बाजार में बेचा जाता है।

प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि / Primary subsistence agriculture

खेती का विस्तार: यह तरीका छोटे टुकड़ों पर खेती को संदर्भित करता है। यह खेती प्रायः परिवारिक उपज को पूरा करने के लिए की जाती है।

आदिम औजार और श्रम: इस तरह की खेती में आदिम औजार और परिवार या समुदाय के श्रम का इस्तेमाल किया जाता है। किसान स्वयं ही खेती के लिए ज़मीन को जोतता है और उस पर काम करता है।

मौसम और जलवायु का प्रभाव: इस तरह की खेती मुख्य रूप से मानसून पर और जमीन की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है। खेती करने का समय और उपजों का चयन मौसम और जलवायु के आधार पर किया जाता है।

स्थानीय उत्पादन: यह खेती मुख्य रूप से स्थानीय उपजों के लिए की जाती है जो परिवार की जीविका आधार के रूप में उपयोग होती हैं।

जलवायु के आधार पर फसल का चयन: किसी विशेष स्थान की जलवायु को देखते हुए ही किसी फसल का चयन किया जाता है। मानसूनी बारिश की विविधता के आधार पर उपजों का चयन किया जाता है।

कर्तन दहन प्रणाली/ स्थानांतरित कृषि

Slash burning system/shift farming

विधि का विवरण: कर्तन दहन प्रणाली, जिसे स्थानांतरित कृषि भी कहा जाता है, एक प्राचीन खेती की विधि है जिसमें किसान जंगल की भूमि के टुकड़े को साफ करके (कर्तन) अर्थात् पेड़ों को काटकर उन्हें जलाते हैं।

खेती का प्रयोजन: इस तरह की खेती करने का प्रमुख प्रयोजन परिवार के जीविका निर्वाह के लिए होता है। जंगल की भूमि को साफ करके खेती की जाती है जिससे किसानों को आवश्यक फसलें उत्पन्न करने का अवसर मिलता है।

जमीन की उर्वरता की कमी: हालांकि, इस विधि का उपयोग किया जाने से जंगल की भूमि की उर्वरता में कमी होती है, जिससे जलवायु और भूमि की स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

भविष्य की सुरक्षा: यह खेती का एक प्राचीन तरीका है, लेकिन इसका उपयोग आजकल कम होता जा रहा है क्योंकि यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

अन्य विकल्प: आजकल, अधिक उन्नत खेती तकनीकियों का उपयोग किया जा रहा है जो जलवायु और भूमि को अधिक सही तरीके से उपयोग करती हैं और जीविका निर्वाह के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित करती हैं।

गहन निर्वाह कृषि

Intensive subsistence agriculture

परिभाषा: गहन निर्वाह कृषि एक विधि है जिसमें किसान छोटे भूखंड पर साधारण औज़ारों और अधिक श्रम से खेती करता है।

खेती का संगठन: इस प्रकार की खेती में, किसान एक ही खेत में एक से अधिक फसलें उगा सकता है। यह खेती मुख्य रूप से धूपयुक्त और उर्वर मृदा वाले खेतों में की जाती है।

फसलें: इस तरह की खेती में चावल मुख्य फसल होती है, जो अधिकतर धूप वाले दिनों में अच्छे रूप से उगाई जा सकती है। इसके अलावा, गेहूँ, मक्का, दलहन और तिलहन भी उपजात हो सकती हैं।

प्रमुख प्रयोजन: गहन निर्वाह कृषि का मुख्य प्रयोजन होता है किसान को अपने परिवार की जीविका निर्वाह के लिए पर्याप्त फसलें उत्पन्न करना।

विकल्प: आजकल, तकनीकी और वैज्ञानिक उन्नतियों के साथ, कृषि के क्षेत्र में और भी उन्नत तकनीकियों का उपयोग किया जा रहा है जो फसलों की उत्पादनता को बढ़ाने में मदद करती हैं।

वाणिज्यिक कृषि / Commercial Agriculture

परिभाषा: वाणिज्यिक कृषि एक प्रकार की खेती है जिसमें आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर अधिक पैदावार प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। इसमें उच्च प्रोटीन बीज, रसायनिक उर्वरक, और कीटनाशकों का उपयोग होता है।

विशेषताएं:

  • वाणिज्यिक कृषि में उच्च पैदावार के लिए नवीनतम तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
  • यह कृषि प्रणाली अधिक लाभकारी और प्रभावी होती है जो उत्पादकता में वृद्धि करती है।

क्षेत्रीय विविधता:

  • वाणिज्यिक कृषि का स्तर विभिन्न प्रदेशों में भिन्न होता है।
  • उदाहरण के लिए, हरियाणा और पंजाब में चावल वाणिज्य की एक मुख्य फसल है, परंतु ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।

लाभ:

  • वाणिज्यिक कृषि से उच्च प्रोटीन संवृद्ध बीज, जोवार, और धान जैसी मुख्य फसलों की उत्पादनता में वृद्धि होती है।
  • इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उनकी जीविका गुणवत्ता में सुधार होता है।

रोपण कृषि / Plantation Agriculture

परिभाषा: रोपण कृषि एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि है जिसमें विस्तृत क्षेत्र में एकल फसल बोई जाती है। इसमें अधिक पूंजी निवेश और श्रम का प्रयोग होता है।

मुख्य फसलें:

  • चाय: भारत में चाय रोपण कृषि की एक मुख्य फसल है जो विभिन्न भागों में उत्पादित की जाती है।
  • कॉफ़ी: कोलंबिया, ब्राजील, इंडोनेशिया, व इंडिया मुख्य कॉफ़ी उत्पादक देश हैं।
  • रबड़: रबड़ भारत के उत्तरी इलाकों में प्रमुखतः उत्पादित किया जाता है।
  • गन्ना: भारत में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, और कर्नाटक में गन्ना की खेती की जाती है।
  • केला: भारत में केरल, कर्नाटक, और महाराष्ट्र मुख्यतः केले की खेती की जाती है।

लाभ:

  • रोपण कृषि से अधिक मात्रा में उत्पादन होता है जो अधिक आय का स्रोत बनता है।
  • इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उनकी जीविका स्तर में सुधार होता है।

गहन निर्वाह खेती और वाणिज्यिक खेती के बीच अंतर / Difference between intensive subsistence farming and commercial farming

प्रारम्भिक जीविका निर्वाह कृषि

वाणिज्यिक कृषि

छोटी भूमि जोत और सीमित भूमि ।

बड़ी भूमि जोत ।

पारंपरिक तकनीक और उपकरण उदाहरण:- कुदाल, डाओ, खुदाई करने वाली छड़ी।

आधुनिक तकनीक और उपकरण।

स्थानीय बाजार के लिए उत्पादन।

निर्यात के लिए उत्पादन।

एक वर्ष में दो या तीन फसलें।

एक ही फसल पर ध्यान।

मुख्य रूप से आजीविका और खाद्य फसलों का उत्पादन, उदाहरण:- धान , गेहूं

मुख्य रूप से व्यापार के लिए चिंता। उदाहरण:- गन्ना चाय, कॉफी

कृषि ऋतुएं / Agricultural seasons

भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं, जो इस प्रकार हैं:-

  • रबी
  • खरीफ
  • जायद

रबी फसलें / Rabi crops

परिभाषा: रबी फसलें शीतऋतु में बोई जाती हैं और ग्रीष्म ऋतु में काट ली जाती हैं। इन फसलों की बोई अक्टूबर से दिसंबर के मध्य में होती है और काटाई अप्रैल से जून के बीच की जाती है।

मुख्य रबी फसलें:

  • गेहूँ: यह भारत में सबसे महत्वपूर्ण रबी फसल है और उत्तर भारत में अधिकतर खेती की जाती है।
  • जौ: जौ का उत्पादन भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में होता है।
  • मटर: मटर की खेती भारत के उत्तरी राज्यों में प्रमुखतः की जाती है।
  • चना: यह भारत के मध्य और पश्चिमी भागों में उत्पादित किया जाता है।
  • सरसों: यह भारत के उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में प्रमुखतः खेती की जाती है।

उत्पादन और उपयोग:

  • रबी फसलें खाद्य, चारा, तेल, तिलहन, और अन्य उत्पादों के लिए मुख्यतः उत्पादित की जाती हैं।
  • इन फसलों का उत्पादन बाजार में अधिक होता है जो किसानों को अधिक आय प्रदान करता है।

उत्पादन क्षमता:

  • रबी फसलों की खेती शीतकालीन जल आपूर्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो खासकर इन फसलों के लिए आवश्यक होती है।
  • इन फसलों के उत्पादन से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोजगार की स्थिति में सुधार होता है।

खरीफ फसलें / Kharif crops

परिभाषा: खरीफ फसलें भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के आगमन के साथ जून-जुलाई में बोई जाती हैं और सितंबर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं।

मुख्य खरीफ फसलें:

  • चावल: भारत में चावल खरीफ फसलों में से सबसे महत्वपूर्ण है। इसे भारत का ‘मुख्य अनाज’ भी कहा जाता है।
  • मक्का: मक्का खरीफ फसलों की अहम फसलों में से एक है, और इसका उत्पादन भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में होता है।
  • ज्वार: यह खरीफ फसल मुख्य रूप से सूखे प्रदेशों में उत्पादित की जाती है, जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, और गुजरात।
  • बाजरा: बाजरा की खेती उत्तर भारत के सूखे प्रदेशों में प्रमुखतः की जाती है, जैसे कि राजस्थान, हरियाणा, और पंजाब।
  • अरहर: यह खरीफ फसल उत्तर भारत में खेती की जाती है और दाल के रूप में उपयोग की जाती है।

उत्पादन और उपयोग:

  • खरीफ फसलें भारतीय जनसंख्या के लिए मुख्य आहार स्रोत हैं और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • इन फसलों का उत्पादन बाजार में अधिक होता है जो किसानों को अधिक आय प्रदान करता है।

उत्पादन क्षमता:

  • खरीफ फसलों की उत्पादन क्षमता भारत के कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो अधिकतर क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है।

जायद / Zaid

परिभाषा: जायद ऋतु, भारत की ग्रीष्म ऋतु के बीच की छोटी ऋतु होती है जो अप्रैल से जून तक चलती है। इस ऋतु में बोई जाने वाली फसलों को जायद कहा जाता है।

मुख्य फसलें:

  • तरबूज और खरबूजे: ये फल जायद ऋतु में प्रमुखतः उत्तर भारत में उगाए जाते हैं और उनका उत्पादन उत्तरी प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, और हिमाचल प्रदेश में होता है।
  • खीरे: खीरे की खेती जायद ऋतु में भी होती है और यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादित की जाती है।
  • सब्जियां: जायद ऋतु में भिन्न प्रकार की सब्जियां उगाई जाती हैं, जैसे कि गोभी, बैंगन, शिमला मिर्च, टमाटर, और मूली।
  • चारा फसलें: ग्वार, बाजरा, जौ और ज्वार जैसी चारा फसलें भी जायद ऋतु में उत्पादित की जाती हैं।

उत्पादन और उपयोग:

  • जायद फसलें ग्रीष्म के मौसम में उत्पादित होती हैं और इन्हें अपने गर्मियों में स्वादिष्ट और प्रचुर मात्रा में पानी युक्त होता है।
  • इन फसलों का उत्पादन अधिक होता है जो बाजार में अधिक विक्रय होता है और किसानों को अधिक आय प्रदान करता है।

उत्पादन क्षमता:

  • जायद फसलों की उत्पादन क्षमता भारतीय कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और उत्पादन और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कृषि की मुख्य फसलें / Main crops of agriculture

खाद्य फसलें:

  • गेहूं: गेहूं भारत की प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है और इसका उत्पादन देश के अधिकांश क्षेत्रों में होता है। यह भारतीय लोगों के मुख्य आहार का स्रोत है।
  • चावल: चावल भारत में एक अन्य महत्वपूर्ण खाद्य फसल है और इसका उत्पादन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होता है। यह भारतीय जनता के अधिकांश भाग का मुख्य भोजन है।
  • मक्का: मक्का भारत में अहम खाद्य फसलों में से एक है और इसका उत्पादन विभिन्न भागों में किया जाता है, विशेष रूप से मध्य और पश्चिमी भारत में।
  • दलहन: दलहन भारत में प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है और यह प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादित किया जाता है।
  • तिलहन: तिलहन भारतीय खाद्य फसलों में से एक है और इसका उत्पादन विभिन्न भागों में होता है, जैसे कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत।

नकदी फसलें:

  • चाय: भारत एक प्रमुख चाय उत्पादक देश है और चाय का उत्पादन भारत के विभिन्न राज्यों में होता है, जैसे कि आसाम, दर्जीलिंग, तमिलनाडु आदि।
  • कॉफी: कॉफी उत्पादन भारत के कुछ राज्यों में होता है, जैसे कि कर्नाटक, केरला और तमिलनाडु।
  • रबड़: रबड़ का उत्पादन मुख्य रूप से केरला, कर्नाटक, और तमिलनाडु में होता है।
  • जूट: जूट का उत्पादन विभिन्न भागों में होता है, लेकिन प्रमुखतः बंगाल, बिहार, और उत्तर प्रदेश में होता है।
  • कपास: कपास का उत्पादन भारत के उत्तरी और मध्य भागों में होता है, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, और महाराष्ट्र।

बागवानी फसलें:

  • फल: भारत में विभिन्न प्रकार के फल उत्पादित किए जाते हैं, जैसे कि आम, सेब, केला, संतरा, अंगूर, आदि।
  • फूल: फूलों की खेती भी भारत में होती है और कई प्रकार के फूल उत्पादित किए जाते हैं, जैसे कि गुलाब, जस्मीन, लिली, चमेली, आदि।
  • सब्जियां: सब्जियां भारतीय रसोई में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और भारत में अनेक प्रकार की सब्जियां उत्पादित की जाती हैं, जैसे कि टमाटर, प्याज, आलू, गोभी, गाजर, आदि।

भारत में मुख्य फसलें / Main crops in India

भारत में मुख्य रूप से चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें (दलहन), चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, कपास, जूट इत्यादि फसलें उगाई जाती हैं।

मुख्य फसलें:

  1. चावल:- चावल भारत के अधिकांश लोगों की मुख्य फसल है। हमारा देश दुनिया में चीन के बाद चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • जलवायु:- धान एक उष्णकटिबंधीय फसल है और गीले मानसून में अच्छी तरह से बढ़ता है।
  • तापमान:- तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर, भारी आर्द्रता अपेक्षित।
  • वर्षा:- 100 सेमी . से ऊपर। इसे गर्मियों में भारी वर्षा और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • खेती के क्षेत्र:- उत्तर और उत्तर पूर्वी भारत के मैदान, तटीय क्षेत्र और डेल्टा क्षेत्र। सिंचाई की मदद से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्से।
  1. गेहूं:- गेहूं दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। यह उत्तर में और देश के उत्तर पश्चिमी भाग में मुख्य खाद्य फसल हैं।
  • मृदा प्रकार:- जलोढ़ मिट्टी और काली मिट्टी।
  • तापमान:- वृद्धि के समय ठंडा मौसम तथा कटाई के समय तेज धूप।
  • वर्षा:- 50 से 75 से.मी. वार्षिक वर्षा
  • खेती के क्षेत्र:- दक्कन के उत्तर पश्चिम और काली मिट्टी के क्षेत्र में गंगा सतलुज का मैदान।
  • गेंहू उत्पादक राज्य:- पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान हैं।
  1. मोटे अनाज:-
  • ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले महत्वपूर्ण मोटे अनाज हैं। हालांकि, इनको अनाज के रूप में जाना जाता हैं। किन्तु इनमें पोषक तत्वों की मात्रा बहुत अधिक है।
  • ज्वार, क्षेत्र और उत्पादन के संबंध में तीसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है।
  1. बाजरा:-
  • मृदा प्रकार:- यह बलुआ और उथली काली मिट्टी पर उगाया जाता है।
  • बाजरा उत्पादक राज्य:- राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
  1. रागी:-
  • मृदा प्रकार:- रागी शुष्क प्रदेशों की फसल है और यह लाल, काली, बलुआ, दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह उगायी जाती है।
  • रागी उत्पादक राज्य:- रागी के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश हैं।
  • मक्का:- मक्का एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग भोजन ओर चारे दोनों के रूप में किया जाता है। यह एक खरीफ फसल है।
  • तापमान:- जो 21° सेल्सियस से 27° सेल्सियस तापमान में उगाई जाती है।
  • मृदा प्रकार:- पुरानी जलोढ़ मिट्टी पर अच्छी प्रकार से उगायी जाती है।
  • खेती के क्षेत्र:- बिहार जैसे कुछ राज्यों में मक्का रबी की ऋतु में भी उगाई जाती है।
  • मक्का उत्पादक राज्य:- कर्नाटक, मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मक्का के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
  • आधुनिक प्रौद्योगिक निवेशों जैसे उच्च पैदावार देने वाले बीजों, उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग से मक्का का उत्पादन बढ़ा है।
  1. दालें:-
  • भारत विश्व में दाल का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ साथ सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
  • शाकाहारी खाने में दालें सबसे अधिक प्रोटीन दायक होती हैं। तुर (अरहर), उड़द, मूँग, मसूर, मटर और चना भारत की मुख्य दलहनी फसले हैं।
  • दालों को कम नमी की आवश्यकता होती है और इन्हें शुष्क परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। फलीदार फसलें होने के नाते अरहर को छोड़कर अन्य सभी दालें वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाए रखती हैं। अतः इन फसलों को आमतौर पर अन्य फसलों के आवर्तन (rotating) में बोया जाता है।

दाल उत्पादक राज्य:- भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और कर्नाटक दाल के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

  1. गन्ना:- ब्राजील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • जलवायु:- यह गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है।
  • मृदा प्रकार:- यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी पर अच्छी तरह से उगाया जा सकता है।
  • तापमान:- तापमान की आवश्यकता 21°C से 27°C होती हैं।
  • वर्षा:- 75 सेमी और 100 सेमी के बीच वार्षिक वर्षा।
  • प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य:- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु हैं।
  1. तिलहन:-
  • भारत तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है। मूंगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला, अलसी और सूरजमुखी भारत के मुख्य तिलहन हैं।
  • दुनिया में मूंगफली का उत्पादन चीन (प्रथम), भारत (दूसरा) और रेपसीड उत्पादन में कनाडा, प्रथम, चीन, दूसरा और भारत दुनिया में तीसरा।
  1. चाय:- दुनिया में चाय उत्पादन में 2020 में चीन प्रथम और भारत दूसरा।
  • जलवायु:- उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय (गर्म और आर्द्र) जलवायु में अच्छी तरह से विकसित होती हैं।
  • मृदा प्रकार:- गहरी उपजाऊ अच्छी तरह से सूखी मिट्टी जो ह्ययूमस और कार्बनिक पदार्थों में समृद्ध हैं।
  • वर्षा:- 150 से 300 सेमी वार्षिक। उच्च आर्द्रता और लगाकर वर्षा पूरे वर्ष समान रूप से वितरित हो।
  • प्रमुख चाय उत्पादक राज्य:- असम और पश्चिम बंगाल।
  1. कॉफी:-
  • चाय की तरह कॉफी को भी बागानों में उगाया जाता है। भारत में सबसे पहले यमन से अरेबिका किस्म की कॉफी को उगाया गया था। शुरुआत में कॉफी को बाबा बूदन पहाड़ियों में उगाया गया था।

बागवानी फसलें / Horticulture crops

भारत का विश्व में स्थान:

  • सन् 2017 में, भारत फलों और सब्जियों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर था।
  • भारत उष्ण और शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों प्रकार के फलों का महत्वपूर्ण उत्पादक है।

प्रमुख फसलें:

  • मटर: भारत मटर के उत्पादन में प्रमुख स्थान रखता है। मटर का उत्पादन भारत के विभिन्न भागों में किया जाता है और यह भारतीय रसोई में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • फूलगोभी: फूलगोभी भी भारतीय खाद्य फसलों में से एक है और इसका उत्पादन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।
  • प्याज: प्याज भारत में अहम खाद्य फसलों में से एक है और इसका उत्पादन भारत के विभिन्न राज्यों में होता है।
  • बंदगोभी: बंदगोभी भी भारतीय खाद्य फसलों में से एक है और इसका उत्पादन विभिन्न भागों में होता है।
  • टमाटर: टमाटर भारत में एक प्रमुख सब्जी फसल है और इसका उत्पादन भारत के विभिन्न राज्यों में होता है।
  • बैंगन: बैंगन भारतीय रसोई में महत्वपूर्ण फसल है और इसका उत्पादन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।
  • आलू: भारत में आलू का उत्पादन विभिन्न राज्यों में होता है और यह एक महत्वपूर्ण फसल है जो भारतीय रसोई में उपयोग किया जाता है।

अखाद्य फसलें / Inedible crops

  1. रबड़:-

रबड़ भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है परंतु विशेष परिस्थितियों में उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। रबड़ एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है जो उद्योगों में प्रयुक्त होता है।

  • वर्षा:- इसको 200 सेमी. से अधिक वर्षा और 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • रबड़ उत्पादक राज्य:- इसे मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और मेघालय में गारो पहाड़ियों में उगाया जाता है।
  1. कपास:-

भारत को कपास के पौधे का मूल स्थान माना जाता है। सूती कपड़ा उद्योग में कपास एक मुख्य कच्चा माल है। कपास उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है (2017)।

  • मृदा प्रकार:- दक्कन पठार के शुष्कतर भागों में काली मिट्टी कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
  • तापमान:- इस फसल को उगाने के लिए उच्च तापमान, हल्की वर्षा या सिंचाई, 210 पाला रहित दिन और खिली धूप की आवश्यकता होती है।
  • गेंहू उत्पादक राज्य:- महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश कपास के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

यह खरीफ की फसल है और इसे पककर तैयार होने में 6 से 8 महीने लगते हैं।

जूट / Jute

उत्पादन क्षेत्र:

  • भारत में जूट का उत्पादन विभिन्न राज्यों में होता है।
  • मुख्य जूट उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा, और मेघालय शामिल हैं।

उपयोग:

  • जूट का उपयोग रस्सों, कपड़ों, रेशों, बोरियों, और अन्य उत्पादों के निर्माण में होता है।
  • इसके धागों का उपयोग बुनाई, डोरी, और अन्य उत्पादों में होता है।
  • जूट की फाइबर की मजबूतता के कारण, इसका उपयोग भारतीय बुनाई उद्योग में भी होता है।

उत्पादन प्रक्रिया:

  • जूट की उत्पादन प्रक्रिया में, पहले जूट के पौधों को काटकर उनकी तंतु को अलग किया जाता है।
  • फिर, इसे सिकुड़वाकर रस्से बनाए जाते हैं, जिन्हें उपयुक्त आकार और संरचना में बुना जाता है।
  • अंततः, इन रस्सों से जूट की विभिन्न उत्पादों का निर्माण किया जाता है।

महत्व:

  • जूट भारतीय रसोई में एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसका उपयोग रस्सों, तारों, और अन्य उत्पादों में होता है।
  • इसका उत्पादन विभिन्न राज्यों में रोजगार की संभावनाएं प्रदान करता है, खासकर उन इलाकों में जहां अन्य विकास के अवसर सीमित होते हैं।

शस्यावर्तन / Crop rotation

परिभाषा: शस्यावर्तन का मतलब है भूमि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की फसलों को एक स्थान पर बदल-बदल कर बोए जाना।

लाभ:

  • शस्यावर्तन से भूमि की उर्वरता बढ़ती है और विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा भी संतुलित रहती है।
  • यह फसलों के बीमारियों और कीटों की आशंका को कम करता है।
  • इससे भूमि की आयु बढ़ती है और साथ ही भूमि की उत्पादकता में भी सुधार होता है।

चकबंदी / Consolidation

परिभाषा: चकबंदी का मतलब है बिखरी हुई कृषि जोतों अथवा खेतों को एक साथ मिलाकर आर्थिक रूप से लाभ प्रद बनाना।

लाभ:

  • चकबंदी के माध्यम से, छोटे-छोटे खेतों या जोतों को एक साथ मिलाकर एक महाजोत बनाया जाता है जिससे उनका प्रबंधन और उपयोग सरल होता है।
  • यह किसानों को अधिक उत्पादक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है, क्योंकि बड़े जमीनों पर उत्पादित फसलें उन्हें अधिक मूल्य प्रदान कर सकती हैं।
  • इससे बीमारियों और कीटों का प्रबंधन भी सुगम होता है, क्योंकि बड़े खेतों में प्रबंधन करना आसान होता है।

हरित क्रांति / Green Revolution

परिभाषा: हरित क्रांति का अर्थ है कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन जिसमें अधिक उत्पादक बीजों का प्रयोग, आधुनिक तकनीक, और उत्तम खाद/उर्वरकों का प्रयोग करके किसानों को उत्पादकता में वृद्धि करने का प्रयास है।

हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएं:

  • उपज वाले बीजों का प्रयोग: उच्च उत्पादन वाले बीजों का प्रयोग किया जाता है जो अधिक मात्रा में उत्पादन देते हैं।
  • आधुनिक तकनीक: नवीनतम और आधुनिक खेती के तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जैसे की सिंचाई, उचित बुवाई तकनीक, उचित खाद प्रबंधन, और जैविक खेती।
  • अच्छी खाद/उर्वरकों का प्रयोग: उर्वरकों और खादों का सही मात्रा में और सही समय पर प्रयोग किया जाता है ताकि फसलों को अधिक उत्पादक बनाया जा सके।

हरित क्रांति की हानियाँ / Disadvantages of Green Revolution

अत्यधिक रसायनों के कारण भूमि का निम्नीकरण: अधिक रसायनों का प्रयोग नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और भूमि की उर्वरता को कम कर सकता है।

सिंचाई की अधिकता से जल स्तर नीचा: अत्यधिक सिंचाई भूमि के नीचे जल स्तर को कम कर सकती है, जिससे अनुपातित सिंचाई की समस्या हो सकती है।

जैव विविधता समाप्त हो रही है: जैव विविधता के कम होने से वनस्पतिक समृद्धि में कमी हो सकती है, जो पर्यावरण को हानि पहुंचा सकती है।

अमीर और गरीब किसानों के मध्य अंतर बढ़ गया है: हरित क्रांति के परिणामस्वरूप, अमीर किसानों के पास अधिक संसाधन होते हैं, जो गरीब किसानों को पीछे छोड़ सकता है।

श्वेत क्रांति / White Revolution

परिभाषा: श्वेत क्रांति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दूध के उत्पादन में वृद्धि के लिए पशुओं की नस्लों को सुधारने के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।

श्वेत क्रांति की मुख्य विशेषताएं:

  • नस्ल सुधार: इसमें पशुओं की नस्लों को चयनित गुणों के साथ सुधारा जाता है ताकि उनका उत्पादन बढ़ाया जा सके।
  • आधुनिक तकनीक: श्वेत क्रांति में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जैसे की जेनेटिक इंजीनियरिंग, प्रजनन तकनीक, और पोषण की देखभाल।
  • उत्पादन में वृद्धि: इसके प्रयोग से दूध के उत्पादन में वृद्धि होती है जो उत्पादकों को अधिक आय प्रदान करती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व / Importance of agriculture in Indian economy

कृषि के प्रमुख देश: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसमें लगभग 60% आबादी कृषि पर निर्भर है।

आजीविका का स्रोत: लगभग दो-तिहाई भारतीय आबादी कृषि से अपनी आजीविका कमाती है, इससे लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त होता है।

अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग: कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य अंग है, जो देश की आधारभूत जीविका प्रणाली को समर्थन करता है।

घरेलू उत्पादन का हिस्सा: कृषि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 26% है, जो अन्न, अन्नद्रव्य, और अन्य कृषि उत्पादों को शामिल करता है।

खाद्य सुरक्षा: कृषि भारत के लिए खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, जिससे लोगों को पोषण सामग्री की उपलब्धता होती है।

उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन: कृषि उत्पादों का उत्पादन उद्योगों के लिए कई कच्चे माल की आपूर्ति करता है, जैसे कि रबर, कपास, जूट आदि।

भारतीय कृषि की विशेषताएं / Features of Indian agriculture

छोटे खेतों का सिस्टम: भारतीय किसानों के पास आमतौर पर छोटे-मोटे खेत होते हैं, जिन्हें वे अपने स्वयं के उपभोग के लिए फसलें उगाते हैं। यह छोटे खेतों का सिस्टम उन्हें अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाने की संभावना देता है।

पशुओं का महत्व: भारतीय कृषि में पशुओं की खेती और पालन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पशुओं से दूध, दही, मांस, चमड़ा, और गोबर की आवश्यकता होती है, जो खाद्य उत्पादन के साथ-साथ अन्य उत्पादों के लिए भी उपयोग किया जाता है।

मानसून की बारिश पर निर्भरता: भारतीय कृषि मुख्य रूप से मानसून की बारिश पर निर्भर करती है। किसानों के लिए मानसूनी वर्षा की उचित मात्रा और समय पर सामान्य होना महत्वपूर्ण है ताकि उन्हें अच्छी उपज मिल सके।

भारतीय कृषि पर भूमंडलीय के प्रभाव / Effects of global warming on Indian agriculture

मजबूर कीमतों का प्रभाव: भारतीय किसानों को अस्थिर कीमतों के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिसमें साल दर साल बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव आते हैं। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति पर प्रत्याशित असर होता है।

व्यापार उदारीकरण का प्रभाव: अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर कृषि उत्पादों की कीमतों पर व्यापार उदारीकरण का प्रभाव उस बात पर निर्भर करता है कि अन्य देश किन नीतियों का पालन करते हैं। यह व्यापार नीतियों को भारतीय किसानों के लिए स्थिरता और प्रदर्शन का अनिश्चितता उत्पन्न कर सकता है।

निर्यात को उदार बनाना: प्रमुख कृषि उत्पादों के निर्यात को उदार बनाया गया है, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रवेश कर सकें और अधिक उत्पादों का विपणन कर सकें।

विकास में उल्लेखनीय परिवर्तन: भारतीय कृषि में विभिन्न प्रकार की ढांचों में निवेश, क्रेडिट, विपणन, और प्रसंस्करण सुविधाओं के विस्तार से आधुनिकीकरण का उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है। इससे कृषि उत्पादन की बढ़ती मांग को पूरा करने की क्षमता में वृद्धि हुई है।

भारत में घटते खाद्य उत्पादन के लिए उत्तरदायी कारण / Reasons responsible for decreasing food production in India

गैर कृषि उपयोग के साथ प्रतिस्पर्धा: बढ़ती जनसंख्या और आर्थिक विकास के साथ, भूमि का गैर कृषि उपयोग जैसे क्षेत्रों में उत्पादन कम हो रहा है, जिससे खाद्य उत्पादन में कमी हो रही है।

रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अधिक उपयोग: अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो रही है, जिससे खाद्य उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

असक्षम और अनुचित जल प्रबंधन: असक्षम और अनुचित जल प्रबंधन ने जलावाद की समस्या को बढ़ावा दिया है, जिससे खाद्य उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

अत्यधिक भू-जल दोहन: अत्यधिक भू-जल दोहन के कारण भौम जल स्तर गिर गया है, जिससे खाद्य उत्पादन की लागत में वृद्धि हो रही है।

अपर्याप्त भंडारण क्षमता और बाज़ार का अभाव: अपर्याप्त भंडारण क्षमता और बाज़ार का अभाव भी खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि यह खाद्य उत्पादों की सही समय पर उपलब्धता को प्रभावित करता है।

भारत में किसानों के सामने चुनोतियाँ / Challenges faced by farmers in India

मानसून की अनिश्चितता: किसानों के लिए मानसून की अनियमितता और अस्तित्व की अनिश्चितता एक महत्वपूर्ण चुनौती है। अच्छी मानसूनी वर्षा के अभाव में, फसलों का प्रभाव पड़ता है और किसानों की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है।

गरीबी और ऋण का दुश्चक्र: अधिकांश किसान गरीबी की समस्या से जूझते हैं, और ऋण का दुश्चक्र उनके लिए आर्थिक संकट पैदा कर सकता है।

शहरों की ओर पलायन: ऐसे किसान जो अपने जमीन की अद्वितीयता या आधुनिक कृषि तकनीकों के अभाव में असमंजस में हैं, वे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र की कमजोरी हो रही है।

सरकारी सुविधाओं तक पहुँच में कठिनाई और बिचौलिए: किसानों को सरकारी सुविधाओं तक पहुँच में कठिनाई और बिचौलिए का सामना करना पड़ता है। यह उन्हें तकनीकी ज्ञान, क्रेडिट, और अन्य सरकारी योजनाओं तक पहुँच में रोकता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा: भारतीय किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे वे अन्य विदेशी उत्पादकों के साथ उत्पादों की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा की चुनौती से गुजरना होता है।

भारत में कृषिगत सुधारों के उपाय / Measures for agricultural reforms in India

अच्छी सिंचाई व्यवस्था, जैविक खाद, आधुनिक कृषि यंत्रों आदि का उपयोग: कृषि में तकनीकी उन्नति, सिंचाई की व्यवस्था का सुधार, जैविक खादों का प्रयोग, और आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करता है।

किसानों की प्रत्यक्ष सहायता, बैंक खाते में सहायता रकम का सीधा पहुंचना: सरकार को किसानों को सीधी आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए कई योजनाएं चलानी चाहिए जैसे कि प्रत्यक्ष नकद सहायता, बैंक खाते में सहायता राशि का सीधा पहुंचना।

सरकारी सहायता, सस्ते ऋण: सरकारी ऋण योजनाएं जैसे कि किसान कर्ज माफी योजना और सस्ते किसान ऋण योजनाएं किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान कर सकती हैं।

बिजली पानी की सुलभता: बिजली और पानी की सुविधा के सुधार के माध्यम से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे किसानों की आय और जीवनाधार में सुधार होता है।

बाजारों तक सुगमता: किसानों को उनकी उत्पादों को बेहतर मूल्य पर बेचने के लिए बाजारों तक पहुंचने में सुधार करना चाहिए।

फसल बीमा: बाढ़, सूखे, चक्रवात, आग, कीटों आदि से होने वाले नुकसान के लिए फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए।

न्यूनतम समर्थन मूल्य, ग्रामीण बैंक, किसान कार्ड: किसानों को उनकी उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान किया जाना चाहिए, और उन्हें ग्रामीण बैंकों और किसान कार्ड की सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए।

कृषि संबंधी शिक्षा, मौसम संबंधी जानकारी: किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों की जानकारी और मौसम संबंधी जानकारी का पहुंचाव बढ़ाना चाहिए।

राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय कृषि सेमिनारों का आयोजन और आम किसान की पहुंच उन तक होना: कृषि सेमिनारों और कार्यशालाओं का आयोजन करके किसानों को नई तकनीकों और सुधारों के बारे में जानकारी प्रदान करनी चाहिए।

कृषि विद्यालय, विश्वविद्यालय और अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना और उपयोग: कृषि विद्यालय, विश्वविद्यालय और अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना और संचालन करने से किसानों को नई तकनीकों, विज्ञान, और अनुसंधान से लाभ मिलता है।

सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार / Institutional reforms done by the government in the interest of farmers

फसलों की बीमा सुविधा देना: सरकार द्वारा किसानों को फसल बीमा की सुविधा प्रदान करके वे अनुपातित हानियों से सुरक्षित रह सकते हैं।

सहकारी बैंकों का विकास कर किसानों को ऋण सुविधा उपलब्ध कराना: सरकार द्वारा सहकारी बैंकों का विकास करने से किसानों को ऋण सुविधा प्राप्त करने में मदद मिलती है जिससे उन्हें कृषि उपकरण खरीदने और कृषि उत्पादन में सुधार करने का मौका मिलता है।

फसलों के समर्थन मूल्य का उचित निर्धारण कर प्रोत्साहित करना: सरकार द्वारा फसलों के समर्थन मूल्य का निर्धारण करके किसानों को उचित मूल्य मिलने की सुनिश्चिता की जाती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

मौसम संबंधी सूचनाओं को समय – समय पर प्रसारित करना: सरकार द्वारा मौसम संबंधी सूचनाओं को समय पर प्रसारित करने से किसानों को अपनी कृषि गतिविधियों को समय पर आयोजित करने में मदद मिलती है।

कृषि संबंधी नवीन तकनीक, औजारों, उर्वरकों आदि से संबंधित कार्यक्रम रेडियो तथा दूरदर्शन पर प्रसारित करना: सरकार द्वारा नवीनतम कृषि तकनीक, औजार, उर्वरक आदि के बारे में कार्यक्रमों को रेडियो और दूरदर्शन पर प्रसारित करने से किसानों को नई जानकारी प्राप्त होती है और उनका कृषि उत्पादन सुधारता है।

आशा करते है इस पोस्ट NCERT Class 10 Geography: कृषि Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट 10 Class भूगोल Chapter 4 कृषि Notes In Hindi पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12
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स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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