#NCERT Class 10 Geography: विनिर्माण उद्योग Notes In Hindi PDF

NCERT भूगोल के ‘विनिर्माण उद्योग‘ अध्याय को इन सरल हिंदी नोट्स के साथ पूरी तरह से अध्यन करें। उद्योग की भूमिका, प्रकार, स्थान, और भारत के औद्योगिक विकास के बारे में गहन जानकारी प्राप्त करें! आज ही मुफ्त डाउनलोड करें और बेहतर अंक पाएं।

10 Class भूगोल Chapter 6 विनिर्माण उद्योग Notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectGeography
ChapterChapter 6
Chapter Nameविनिर्माण उद्योग
CategoryClass 10 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

सामाजिक विज्ञान (भूगोल) अध्याय-6: विनिर्माण उद्योग

विनिर्माण / Manufacturing

मशीनों द्वारा बड़ी मात्रा में कच्चे माल से अधिक मूल्यवान वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण कहते हैं।

विनिर्माण उद्योगों का महत्व

Importance of manufacturing industries

कृषि का आधुनिकीकरण: विनिर्माण उद्योग से आधुनिक मशीनरी का उत्पादन होता है, जिससे कृषि के कामों में सुधार होता है और किसानों को बेहतर उपकरण मिलते हैं।

नौकरियों का उपलब्धता: विनिर्माण से रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, जिससे प्राथमिक और द्वितीयक खंडों में नौकरियों की संख्या में वृद्धि होती है।

अर्थव्यवस्था का विकास: विनिर्माण से बेरोजगारी कम होती है और गरीबी का स्तर घटता है, जिससे राष्ट्रीय आर्थिक विकास होता है।

निर्यात का प्रोत्साहन: विनिर्माण उद्योग से निर्मित उत्पादों का निर्यात वाणिज्यिक व्यापार को बढ़ावा देता है, जिससे अन्य देशों के साथ व्यापार में वृद्धि होती है।

राष्ट्रीय विकास: विनिर्माण के उद्योगों के विकास से देश में संपन्नता और उत्थान का माहौल बनता है।

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान

Contribution of industries to the national economy

पिछले दो दशकों का योगदान:

  • सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण उद्योग का योगदान 27 प्रतिशत में से 17 प्रतिशत ही है।
  • 10 प्रतिशत भाग खनिज खनन, गैस, और विद्युत ऊर्जा का योगदान है।

अन्य देशों के संदर्भ में:

  • भारत की अपेक्षा अन्य पूर्वी एशियाई देशों में विनिर्माण का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 25 से 35 प्रतिशत है।
  • पिछले एक दशक में भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ोतरी हुई है।

भविष्य की दिशा:

  • बढ़ोतरी की यह दर अगले दशक में 12 प्रतिशत अपेक्षित है।
  • वर्ष 2003 से विनिर्माण क्षेत्र का विकास 9 से 10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से हुआ है।

विदेशी विनिमय / Foreign Exchange

परिभाषा:

  • एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदलने की प्रक्रिया को विदेशी विनिमय कहते हैं।

महत्व:

  • विदेशी विनिमय एक देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह देश की मुद्रा की मान्यता और विश्वास को बढ़ाता है।
  • विदेशी विनिमय से एक देश की विशेषता, प्रतिष्ठा और अर्थव्यवस्था को अन्य देशों के साथ जोड़ता है।

विदेशी मुद्रा / Foreign currency

परिभाषा:

  • विदेशी मुद्रा एक विशेष माध्यम है जिसका उपयोग सरकार या व्यक्ति द्वारा दूसरे देशों से वस्तुओं की खरीददारी या बिक्री के लिए किया जाता है।

महत्व:

  • विदेशी मुद्रा एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • यह विदेशी व्यापार को सुगम बनाती है और विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ाती है।

उद्योग / Industry

उद्योग वह व्यावसायिक गतिविधि है जिसमें काम शुरू करने के लिए विभिन्न प्रकार की सामग्री, मशीनरी, मनोवैज्ञानिक ज्ञान और मानव श्रम का उपयोग किया जाता है।

उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक

Factors affecting the location of the industry

  1. उद्योगों की अवस्थिति के भौतिक कारक:-
  • अनुकूल जलवायु: उद्योग की स्थापना में महत्वपूर्ण है कि क्षेत्र का जलवायु उद्योग के लिए उपयुक्त हो।
  • शक्ति के साधन: उद्योगों के लिए ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता, जैसे कि बिजली, पेट्रोल, गैस, इत्यादि, महत्वपूर्ण है।
  • कच्चे माल की उपलब्धता: उद्योगों के लिए आवश्यक सामग्री की उपलब्धता, जैसे कि खनिज धातु, खाद्य पदार्थ, इत्यादि, का होना आवश्यक है।
  1. उद्योगों की अवस्थिति के मानवीय कारक:-
  • श्रम: पर्याप्त और योग्य कार्यकर्ता की उपलब्धता उद्योग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • पूँजी: उद्योग की स्थापना और विकास के लिए पूँजी की उपलब्धता की आवश्यकता होती है।
  • बाज़ार: उत्पादों को बेचने और खरीदने के लिए एक सक्रिय बाजार का होना महत्वपूर्ण है।
  • परिवहन और संचार: उद्योग के लिए समान्य परिवहन और संचार की सुविधाएं, जैसे कि सड़क, रेल, हवाई, टेलीकॉम, बैंकिंग, इत्यादि, उपलब्ध होना चाहिए।
  • आधारिक संरचना: उद्योगों के लिए उपयुक्त आधारिक संरचना और सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं।
  • उद्यमी: उद्योग की स्थापना, प्रबंधन, और विकास के लिए उद्यमी की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
  • सरकारी नीतियाँ: सरकार की नीतियाँ, योजनाएं, और नियमों का उद्योगों पर असर होता है।

उद्योगों का वर्गीकरण

Classification of industries

उद्योगों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:

प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर:

  • कृषि आधारित उद्योग: सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, रेशम वस्त्र, रबर, चीनी, चाय, काफी उद्योग इत्यादि।
  • खनिज आधारित उद्योग: लोहा और इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीनरी, पेट्रोलियम उत्पादों के उद्योग।

प्रमुख भूमिका के आधार पर:

  • आधारभूत उद्योग: जिनका उत्पादन दूसरे उद्योगों पर निर्भर करता है, जैसे लोहा और इस्पात, तांबा और एल्यूमिनियम प्रसंस्करण उद्योग।
  • उपभोक्ता उद्योग: जो उत्पादों को उपभोक्ताओं के उपयोग के लिए बनाते हैं, जैसे चीनी, दंतमंजन, कागज, सिलाई मशीन उद्योग इत्यादि।

पूंजी निवेश के आधार पर:

  • लघु उद्योग: जहां उत्पादन के लिए कम पूंजी निवेश किया जाता है, जैसे कि स्वयं नियोक्ता, छोटे पैमाने पर स्थानिक वस्तुनिष्ठ उद्योग।
  • बड़े उद्योग: जहां उत्पादन के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, जैसे कि संगठित सेक्टर के उद्योग।

स्वामित्व के आधार पर:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग: सरकारी स्वामित्व और प्रत्यक्ष नियंत्रण वाले उद्योग, जैसे कि SAIL, BHEL, GAIL इत्यादि।
  • निजी क्षेत्र के उद्योग: जिनका स्वामित्व एक व्यक्ति या निजी संस्था के द्वारा होता है, जैसे कि टाटा, बिरला, अंबानी उद्योग इत्यादि।

कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर:

  • भारी उद्योग: जो अधिक भार और अधिक स्थान घेरने वाले कच्चे माल का उपयोग करते हैं, जैसे लोहा-इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग, चीनी उद्योग इत्यादि।
  • हल्के उद्योग: जो कम भार और कम स्थान घेरने वाले कच्चे माल का उपयोग करते हैं, जैसे कि विद्युतीय उद्योग।

कृषि आधारित उद्योग

Agro based industries

परिभाषा:

  • कृषि आधारित उद्योग वे उद्योग होते हैं जो कृषि उत्पादों को औद्योगिक उत्पादों में परिवर्तित करते हैं।

प्रमुख उद्योग:

  • सूती वस्त्र: कपास के धागे से बुने जाते हैं जो फैब्रिक बनाने के लिए उपयोग होते हैं।
  • पटसन: कपास के पट से बने वस्त्र जैसे साड़ी, दुपट्टा, सलवार कमीज़ आदि।
  • रेशम: सिल्क वस्त्र और कपड़े बुनने के उद्योग।
  • ऊनी वस्त्र: ऊनी कपड़ों का उत्पादन करने वाले उद्योग।
  • चीनी: गन्ने के रस का शुद्धीकरण करने वाले उद्योग।
  • वनस्पति तेल: वनस्पतियों से निकाले गए तेलों के उत्पादन करने वाले उद्योग।

महत्व:

  • कृषि आधारित उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल का उपयोग करते हैं, जिससे कृषि क्षेत्र को आधुनिकीकृत किया जा सकता है।
  • इन उद्योगों से निर्मित उत्पादों की मांग बाजार में होती है, जिससे उत्पादन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है।

वस्त्र उद्योग

Clothing industry

महत्व:

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में वस्त्र उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसका औद्योगिक उत्पादन देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है।
  • यह उद्योग कच्चे माल से उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक की श्रृंखला में परिपूर्ण है और देश को आत्मनिर्भर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उत्पादन प्रक्रिया:

  • वस्त्र उद्योग में कपास, रेशम, ऊन, रंग, और अन्य कच्चे माल का उपयोग किया जाता है जो फैब्रिक बनाने में उपयोग होते हैं।
  • इन फैब्रिक्स से साड़ी, कमीज़, शर्ट, पैंट, और अन्य वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है।

सूती कपड़ा उद्योग

Cotton textile industry

प्रारंभिक इतिहास:

  • पहला सूती वस्त्र उद्योग 1854 में मुम्बई में स्थापित किया गया था।
  • महात्मा गांधी ने चरखा काटने और खादी के पहनावे को बढ़ावा दिया जिससे बुनकरों को रोजगार मिल सके।

क्षेत्रीय स्थिति:

  • आरंभिक दौर में, सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र और गुजरात के कपास केंद्रों तक सीमित था।
  • कपास की उपलब्धता, बाजार, परिवहन, और पत्तनों की समीपता ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया।

कृषि के आधार पर उत्पादन:

  • सूती कपड़ा उद्योग में कपास का उपयोग किया जाता है जो बाजार में सूती धागों में परिवर्तित होता है।

कताई कार्य:

  • कताई कार्य महाराष्ट्र, गुजरात, और तमिलनाडु में केंद्रित है, लेकिन इसमें बुनाई के परंपरागत कौशल और डिजाइन की आवश्यकता होती है।

आधुनिकीकरण:

  • सूती कपड़ा उद्योग में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया आई है, जिससे उत्पादन प्रक्रिया में अधिक दक्षता और गुणवत्ता हासिल की जा सकती है।

भारत में सूती वस्त्र उद्योग के सामने समस्याएँ

Problems facing the cotton textile industry in India

पुरानी और परंपरागत तकनीक:

  • अधिकांश सूती उत्पादक इसमें पुरानी और परंपरागत तकनीक का उपयोग करते हैं, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता और प्रोफेशनलिज्म में कमी होती है।

कपास की पैदावार का कम होना:

  • लंबे रेशे वाली कपास की पैदावार में कमी होना एक बड़ी समस्या है, जो उत्पादन की बढ़ती मांग को संतुष्ट नहीं कर पा रहा है।

नई मशीनरी का अभाव:

  • उद्योग में नवीनतम मशीनरी का अभाव है, जो उत्पादन प्रक्रिया को अद्यतन और अधिक कुशल बनाने में मदद कर सकता है।

कृत्रिम वस्त्र उद्योग से प्रतिस्पर्धा:

  • कृत्रिम रूप से उत्पादित वस्त्रों की बढ़ती मांग ने सूती वस्त्र उद्योग के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ा दिया है।

अनियमित बिजली की आपूर्ति:

  • उद्योग को अनियमित बिजली की आपूर्ति की समस्या है, जिससे उत्पादन में विलम्ब होता है और उत्पादन की कुशलता प्रभावित होती है।

कपास उद्योग की प्रमुख समस्याएं

Major problems of cotton industry

अनियमित बिजली की आपूर्ति:

  • कपास उद्योग को अनियमित बिजली की आपूर्ति की समस्या है, जो उत्पादन को प्रभावित करती है और उत्पादकों को नुकसान पहुंचाती है।

मशीनरी को उन्नत करने की आवश्यकता:

  • उद्योग में मशीनरी को उन्नत करने की आवश्यकता है ताकि कपास की प्रोसेसिंग को और अधिक समय और श्रम से अद्यतन और तेज बनाया जा सके।

श्रम का कम निष्पादन:

  • कपास उद्योग में श्रम का कम निष्पादन होना एक बड़ी समस्या है, जो कार्यकर्ताओं की आधुनिक तकनीकों और प्रक्रियाओं का अभ्यास और शिक्षा के माध्यम से हल की जा सकती है।

सिंथेटिक फाइबर उद्योग के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा:

  • कपास उद्योग को सिंथेटिक फाइबर उद्योग के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उत्पादन की मांग में कमी हो रही है। इससे उत्पादकों को नए और उन्नत उत्पादों का विकास करने की आवश्यकता है।

पटसन (जूट) उद्योग / Jute Industry

भारत का पटसन उद्योग:

  • भारत पटसन उद्योग में एक महत्वपूर्ण उत्पादक है।
  • इस उद्योग में भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है।

उत्पादन केंद्र:

  • भारतीय पटसन उद्योग अधिकांशतः हुगली नदी के तट पर संकेंद्रित है।
  • अन्य क्षेत्रों में भी यह उद्योग सक्रिय है, जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, और त्रिपुरा।

निर्यात:

  • भारत पटसन के निर्माता होने के साथ-साथ बांग्लादेश का भी दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • यह उद्योग विदेशों में भी प्रसिद्ध है और भारत के लिए महत्वपूर्ण निर्यात आय प्रदान करता है।

अभियांत्रिकी विकास:

  • पटसन उद्योग में अभियांत्रिकी विकास के लिए नए तकनीकी उपाय और मशीनरी का उपयोग किया जा रहा है।
  • इससे उत्पादन में वृद्धि हो रही है और उत्पादकता में सुधार हो रहा है।

भारत में अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में क्यों स्थित हैं? / Why are most of the jute mills in India located in West Bengal?

जूट उत्पादन:

  • भारत में सबसे अधिक जूट के उत्पादन का केंद्र पश्चिम बंगाल में है।

पानी की आवश्यकता:

  • जूट उत्पादन के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है, जो हुगली नदी से पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है।

मजदूरों की उपलब्धता:

  • पश्चिम बंगाल, बिहार, और उड़ीसा से सस्ते मजदूर जूट उद्योग में काम करने के लिए प्राप्त होते हैं।

निर्यात इंफ्रास्ट्रक्चर:

  • कोलकाता के बंदरगाह से पटसन उत्पादों की निर्यात की जाती है।

परिवहन की सुविधा:

  • रेलवे, रोडवेज, और जल परिवहन के माध्यम से कच्चे माल की सुविधाजनक पहुंच है।

वित्तीय सुविधाएँ:

  • कोलकाता में बैंकिंग, बीमा, और अन्य वित्तीय संस्थान हैं, जो उद्योग को सहायक सेवाएं प्रदान करते हैं।

भारत के जूट उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ / Challenges facing the jute industry of India

कृत्रिम रेशों की चुनौती:

  • जूट उद्योग को कृत्रिम रेशों से बनाई गई चीजों से प्रतिस्पर्धा का सामना है।

बाजार में कीमत की चुनौती:

  • कृत्रिम रेशों से बनी चीजें सस्ती होती हैं, जिससे जूट उत्पादों को मार्केट में बेचने में चुनौती होती है।

खेती के व्यय में बढ़ोतरी:

  • जूट की खेती के लिए अधिक व्यय की आवश्यकता होती है, जो उत्पादन की लागत को बढ़ाता है।

विदेशी स्पर्धा:

  • विदेशी बाजारों में कृत्रिम रेशों से बनी चीजों की महाज उपलब्धता के कारण, भारतीय जूट उत्पादकों को विदेशी स्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

बांग्लादेश की प्रतिस्पर्धा:

  • बांग्लादेश के जूट उत्पादकों का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मजबूत होना, भारतीय उत्पादकों के लिए एक और महत्वपूर्ण चुनौती है।

चीनी उद्योग / Sugar Industry

भारत में चीनी उत्पादन:

  • भारत में चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है।
  • गुड़ और खांडसारी के उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है।

चीनी मिलें क्षेत्र:

  • चीनी मिलें भारत के विभिन्न राज्यों में फैली हुई हैं।
  • उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, और मध्य प्रदेश में चीनी मिलें स्थित हैं।

मिलों का विस्तार:

  • पिछले कुछ वर्षों में, चीनी मिलों की संख्या दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में विशेषकर महाराष्ट्र में बढ़ी है।

दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में चीनी की बढ़ी मिलों के कारण / Reasons for increased sugar mills in southern and western states

गन्ने में सूक्रोस की अधिक मात्रा:

  • दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में गन्ने की उत्पादन में सूक्रोस की अधिक मात्रा होती है।
  • इससे चीनी के उत्पादन की क्षमता बढ़ जाती है।

ठंडी जलवायु:

  • इन क्षेत्रों में ठंडी जलवायु होती है, जो चीनी की उत्पादन के लिए अनुकूल होती है।
  • ठंडे मौसम में गन्ने का अधिक उत्पादन होता है, जिससे चीनी की मिलों की कार्यक्षमता बढ़ती है।

सहकारी समितियाँ:

  • दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में सहकारी समितियाँ चीनी के उत्पादन में अधिक सफल होती हैं।
  • ये समितियाँ किसानों को तकनीकी सहायता, बीज, और अन्य सुविधाएँ प्रदान करके चीनी के उत्पादन को बढ़ावा देती हैं।

भारत में चीनी उद्योग के सम्मुख चुनौतियाँ / Challenges facing the sugar industry in India

मौसमी प्रकृति का होना:

  • चीनी उद्योग मौसमी प्रकृति का है और मौसम की अनियमितता इसे प्रभावित कर सकती है।
  • बारिश की कमी या अधिकता, अधिक ठंडी या गर्मी उत्पादन पर असर डाल सकती है।

कम उत्पादन प्रति हेक्टेयर:

  • भारत में गन्ने का उत्पादन प्रति हेक्टेयर कम है, जिससे उत्पादकता में चुनौती होती है।

पुरानी मशीनों का होना:

  • बहुत से कारखानों में पुरानी मशीनरी का इस्तेमाल होता है, जिससे उत्पादकता में कमी और विकास में अवरोध हो सकता है।

खोई का अधिकतम इस्तेमाल:

  • कुछ क्षेत्रों में खोई का अधिक इस्तेमाल होता है, जो मृदा स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और उत्पादन में कमी ला सकता है।

परिवहन के साधनों की कमी:

  • कुछ क्षेत्रों में परिवहन के साधनों की कमी होती है, जिससे गन्ने को समय पर कारखानों में पहुँचाने में दिक्कत हो सकती है।

खनिज आधारित उद्योग / Mineral based industries

खनिज आधारित उद्योग वे उद्योग होते हैं जो खनिज और धातुओं का उपयोग करते हैं और इन्हें कच्चे माल के रूप में प्रसंस्कृत करते हैं। ये उद्योग खनिज संपत्ति के विकास और उपयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खनिज आधारित उद्योग विभिन्न प्रकार की खनिज सामग्री का उपयोग करते हैं, जैसे कि लोहा, इस्पात, सोना, चांदी, तांबा, अल्यूमिनियम, रेत, पत्थर, जिरोन, और अन्य खनिज।

खनिज आधारित उद्योग के उदाहरण:

  • लोहा और इस्पात उद्योग: इस्पात और लोहे के उद्योग खनिज आधारित हैं जो लोहे और इस्पात को कच्चे माल के रूप में प्रसंस्कृत करते हैं।
  • सोना और चांदी उद्योग: सोना और चांदी के उद्योग खनिज सोने और चांदी को उत्पादन करते हैं, जो फिर गहनों, सिक्कों, और अन्य आभूषणों के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
  • कांस्य उद्योग: तांबे और कांसे के उद्योग तांबे और कांसे की प्रसंस्कृत खनिज सामग्री का उपयोग करते हैं, जो अलायन के लिए, धातुर्ग्रहण के लिए, और औद्योगिक उत्पादों के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
  • अल्यूमिनियम उद्योग: अल्यूमिनियम उद्योग अल्यूमिनियम की उत्पादन करते हैं, जो विभिन्न उद्योगों में उपयोगी होता है, जैसे कि विमानन, गाड़ियों, कंटेनर, आदि।
  • सीमेंट उद्योग: सीमेंट उद्योग सीमेंट की उत्पादन करते हैं, जो निर्माण के उद्देश्यों के लिए उपयोगी होता है।

लौह तथा इस्पात उद्योग / Iron and steel industry

आधारभूत उद्योग: लौह तथा इस्पात उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था के आधारभूत उद्योगों में से एक है। यह उद्योग भारी, हल्के, और मध्य उद्योगों के लिए आवश्यक मशीनरी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उपादानों का अनुपात: इस उद्योग के लिए लौह अयस्क, कोकिंग कोल, और चूना पत्थर का अनुपात लगभग 4:2:1 होता है। इन उपादानों का यह संयोजन उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण होता है।

भारत में उत्पादन: भारत ने वर्ष 2016 में 956 लाख टन इस्पात का उत्पादन किया, जिससे यह संसार में कच्चे इस्पात उत्पादकों में तीसरे स्थान पर था। भारतीय इस्पात उद्योग अधिकतर स्पंज लौह का उत्पादन करता है।

बिक्री और वितरण: लौह और इस्पात के उत्पादों की बिक्री सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग सभी उपक्रम द्वारा की जाती है, और इसके लिए स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एक महत्वपूर्ण वितरक है।

संकेन्द्रण क्षेत्र: भारत के छोटा नागपूर के पठारी क्षेत्र में लौह तथा इस्पात उद्योग का अधिकांश संकेन्द्रित है। यहां प्राकृतिक संशोधन और विकास शुरू करने के लिए सुविधाजनक अवसर हैं।

छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में लौह और इस्पात उद्योग की आधिकतम सांद्रता होने के कारण / Due to maximum concentration of iron and steel industry in Chhotanagpur plateau region

लौह अयस्क की कम लागत: छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में लौह अयस्क की कम लागत होने के कारण यहां उत्पादन को अधिक मुनाफावसूल बनाया जा सकता है।

नजदीक में उच्च श्रेणी के कच्चे माल की उपलब्धता: यह क्षेत्र उच्च गुणवत्ता और अनुकूल गुणवत्ता वाले लौह और इस्पात कच्चे माल की आपूर्ति के लिए प्रसिद्ध है।

सस्ते श्रम की उपलब्धता: इस क्षेत्र में सस्ते श्रम की उपलब्धता है, जिससे लागत कम होती है और उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ती है।

घरेलू बाजार में विशाल विकास क्षमता: छोटानागपुर पठारी क्षेत्र के पास घरेलू बाजारों में विशाल विकास क्षमता है, जिससे उत्पादों को बेचने में आसानी होती है और उद्योग का विकास होता है।

भारत में लौह तथा इस्पात उद्योग पूर्ण विकास न हो पाने के कारण / Reasons for the iron and steel industry not being fully developed in India

कोकिंग कोल की उच्च लागत और सीमित उपलब्धता: कोकिंग कोल की उच्च लागत और सीमित उपलब्धता के कारण, लौह और इस्पात उद्योग में उत्पादन को विस्तारित करने में कठिनाई होती है।

श्रम की कम उत्पादकता: भारत में लौह और इस्पात उद्योग में श्रम की कम उत्पादकता है, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति: ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति के कारण, लौह और इस्पात उद्योग में उत्पादन में अवरोध होता है और कार्यक्षमता प्रभावित होती है।

कमजोर बुनियादी ढांचा: भारत में लौह और इस्पात उद्योग के कमजोर बुनियादी ढांचा के कारण, तकनीकी उन्नति और उत्पादन की गुणवत्ता पर प्रतिबंध होता है।

लोहा और इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग कहे जाने के कारण / Reasons why iron and steel industry is called basic industry

अन्य उद्योगों के लिए आवश्यकता: लोहा और इस्पात उद्योग कई अन्य उद्योगों के लिए आवश्यक हैं, जैसे कि चीनी उद्योग, सीमेंट उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग आदि।

मशीनरी की प्रदान: लोहा और इस्पात उद्योग अन्य उद्योगों को मशीनरी प्रदान करते हैं, जिससे वे अपने उत्पादों का निर्माण कर सकते हैं और औद्योगिक प्रक्रियाओं को सुधार सकते हैं।

औद्योगिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण: लोहा और इस्पात उद्योग देश की औद्योगिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये उद्योग विभिन्न उत्पादों के निर्माण में उपयोग किए जाते हैं।

रोजगार की सम्भावना: लोहा और इस्पात उद्योग बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं, जिससे रोजगार की समस्या को समाधान किया जा सकता है।

लोहा और इस्पात उद्योग को भारी उद्योग कहे जाने के कारण / Reasons why iron and steel industry is called heavy industry

अन्य उद्योगों की आवश्यकता: कई अन्य उद्योग, जैसे कि चीनी उद्योग या सीमेंट उद्योग, लोहे और इस्पात उद्योग पर निर्भर हैं क्योंकि वे इस्पात और लोहे का उपयोग अपनी मशीनरी और उत्पादों के निर्माण में करते हैं।

औद्योगिक प्रगति की निर्माणकारी भूमिका: लोहा और इस्पात उद्योग देश की औद्योगिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये उद्योग बुनियादी और उन्नत उत्पादों की विनिर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

रोजगार की सम्भावना: लोहा और इस्पात उद्योग बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं, जिससे राष्ट्रीय आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है।

महत्वपूर्ण उत्पादों का निर्माण: इस्पात और लोहा उद्योग विभिन्न उत्पादों, जैसे कि स्टील, इन्जीनियरिंग औजार, निर्माण सामग्री, यांत्रिक उपकरण, आदि का निर्माण करते हैं जो अन्य उद्योगों में उपयोग होते हैं।

एल्यूमिनियम प्रगलन / Aluminum Smelting

एल्यूमिनियम प्रगलन का महत्व: भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। यह धातु बहुत से उपयोगी उत्पादों का निर्माण करने में उपयोगी होता है।

विशेषताएँ और उपयोग: एल्यूमिनियम हल्का, जंग अवरोधी, ऊष्मा का सूचालक, लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है। इसलिए यह उद्योग विभिन्न उत्पादों के निर्माण में उपयोगी है।

संयंत्रों का स्थान: भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं।

स्थापना की आवश्यकताएँ:

  • नियमित ऊर्जा की पूर्ति: एल्यूमिनियम प्रगलन के लिए नियमित ऊर्जा की पूर्ति की आवश्यकता होती है। यहाँ ऊर्जा की प्रभावी उपयोग के लिए साकारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए।
  • कम कीमत पर कच्चे माल की उपलब्धता: एल्यूमिनियम प्रगलन के लिए कम कीमत पर कच्चे माल की उपलब्धता की आवश्यकता होती है। उद्योग को उत्पादन प्रक्रिया को संचालित करने के लिए यह आवश्यक है।

रसायन उद्योग / Chemical industry

भारतीय घरेलू उत्पाद में भागीदारी: भारत में रसायन उद्योग की भागीदारी सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 3 प्रतिशत है। यह उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।

आकार की दृष्टि से स्थान: भारत में रसायन उद्योग एशिया में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है, और वैश्विक दरवाजे से देखें तो यह 12 वें स्थान पर है।

प्रकार और उत्पादन: भारत में कार्बनिक और अकार्बनिक रसायनों का उत्पादन होता है।

  • कार्बनिक रसायन: कार्बनिक रसायन उत्पादों में पेट्रोरसायन शामिल है जो कृत्रिम वस्त्र, रबर, प्लास्टिक, दवाईयाँ आदि के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
  • अकार्बनिक रसायन: अकार्बनिक रसायन में सल्फ्यूरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, क्षार आदि शामिल होते हैं। ये रसायन विभिन्न उद्योगों में उपयोग के लिए होते हैं।

उर्वरक उद्योग / Fertilizer Industry

मुख्य उर्वरक: उर्वरक उद्योग मुख्यतः नाइट्रोजनी उर्वरकों जैसे कि यूरिया, फास्फेटिक उर्वरक और अमोनिया फास्फेट के इर्द-गिर्द केंद्रित है। ये उर्वरक कृषि में पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा करते हैं।

पोटेशियम के भंडार: भारत में पोटेशियम यौगिकों के भंडार की कमी है। इसलिए, हम पोटाश का आयात करते हैं।

उद्योग का विस्तार: हरित क्रांति के बाद, उर्वरक उद्योग का विस्तार देश के कई भागों में हुआ है। यह उद्योग कृषि के स्तर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आवश्यकताएँ:

  • पोटेशियम के भंडार: पोटेशियम यौगिकों के भंडार की कमी को पूरा करने के लिए उर्वरक उद्योग को मदद की आवश्यकता है।
  • कृषि उत्पादन के लिए विस्तार: उर्वरक उद्योग का विस्तार कृषि उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

सीमेंट उद्योग / Cement Industry

कच्चे माल की आवश्यकता: सीमेंट उद्योग के लिए भारी और स्थूल कच्चे माल जैसे चूना पत्थर, सिलिका, और जिप्सम की आवश्यकता होती है।

ऊर्जा और परिवहन की आवश्यकता: सीमेंट उद्योग के लिए ऊर्जा और परिवहन की आवश्यकता होती है। ऊर्जा के लिए कोयला और विद्युत की आपूर्ति की जरूरत होती है।

निर्माण कार्यों में उपयोग: सीमेंट उद्योग का मुख्य उपयोग निर्माण कार्यों में होता है।

उद्योग की स्थापना: सीमेंट उद्योग की इकाइयाँ गुजरात में स्थापित की गई हैं क्योंकि यहां से खाड़ी के देशों में व्यापार की अधिक उपलब्धता है।

हमारे देश के लिए सीमेंट उद्योग का विकास अति महत्वपूर्ण है, क्यों? / Development of cement industry is very important for our country, why?

भवन और इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण: सीमेंट उद्योग का विकास भवन, फैक्टरियाँ, सड़कें, पुल, बाँध, और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उत्कृष्ट गुणवत्ता का उत्पादन: हमारा सीमेंट उद्योग उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले सीमेंट का उत्पादन करता है, जो निर्माण कार्यों में दुर्धर्ष और टिकाऊ संरचना गारंटी करता है।

अंतरराष्ट्रीय मार्केट में मांग: भारतीय सीमेंट उद्योग के उत्पादों की मांग अफ्रीकी देशों में भी बढ़ रही है, जिससे उद्योग का विकास और मानव संसाधनों की उपयोगिता में सुधार हो रहा है।

मोटरगाड़ी उद्योग / Automobile Industry

व्यक्तिगत और वाणिज्यिक यातायात के लिए आवश्यकता: मोटरगाड़ी उद्योग यात्रियों और सामान के तीव्र परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है। यह व्यक्तिगत और व्यापारिक यातायात के लिए महत्वपूर्ण साधन है।

नए और आधुनिक मॉडलों की मांग: उदारीकरण के परिणामस्वरूप, नए और आधुनिक मॉडलों की मांग मोटरगाड़ी उद्योग में बढ़ी है। लोग अधिक उन्नत और सुरक्षित वाहनों की तलाश में हैं।

उद्योग का स्थानीयकरण: मोटरगाड़ी उद्योग दिल्ली, गुड़गाँव, मुंबई, पुणे, चेन्नई जैसे बड़े शहरों के आस-पास स्थित है। यहां उद्योग का स्थानीयकरण होने से रोजगार और आर्थिक विकास में सहायक होता है।

भारत में उदारीकरण एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने मोटरगाड़ी उद्योग में अत्यधिक वृद्धि करने के कारण / Liberalization and foreign direct investment in India led to immense growth in the automotive industry

उदारीकरण के परिणाम: उदारीकरण के परिणामस्वरूप, नए और आधुनिक मॉडलों के वाहनों का बाजार बढ़ा है। व्यक्तिगत और व्यापारिक यातायात के लिए लोग अधिक उन्नत और सुरक्षित वाहनों की तलाश में हैं।

मांग में वृद्धि: वाहनों की मांग में बढ़ोतरी हुई है। यात्रा और व्यापार में वृद्धि के साथ, कार, स्कूटर, स्कूटी, बाइक, और ऑटोरिक्शा की मांग में वृद्धि हुई है।

प्रौद्योगिकी का उपयोग: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ, नई प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है, जिससे उद्योग विश्वस्तरीय विकास के स्तर पर आ गया है। यह नई तकनीकी और उत्कृष्ट डिज़ाइन के वाहनों का निर्माण करने में मदद करता है।

उत्पादकता की वृद्धि: भारत में अब 15 कार कंपनियाँ, 14 स्कूटर, मोटरसाइकिल और ऑटोरिक्शा की निर्माण करती हैं, जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई है।

सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलैक्ट्रोनिक उद्योग / Information Technology and Electronic Industry

उत्पादों की विविधता: इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में विभिन्न उत्पाद बनाए जाते हैं, जैसे कि ट्रांजिस्टर, टेलीविजन, टेलीफोन एक्सचेंज, रेडार, कंप्यूटर, और दूरसंचार उपकरण। ये उत्पाद सूचना और संचार क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।

बेंगलूरू के विकास: भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में, बेंगलूरू का विकास हुआ है। यहाँ पर सूचना और प्रौद्योगिकी उद्योग में बहुत अच्छा विकास हुआ है और यहाँ से हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के उत्पादों का निर्यात किया जाता है।

भारत के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का आर्थिक विकास में योगदान / Contribution of India’s information technology industry to economic development

रोज़गार के स्रोत: सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग बहुत सारे रोज़गार के अवसर प्रदान करता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में नौकरियों के रूप में प्राप्त होते हैं।

विदेशी मुद्रा का आयोजन: सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग विदेशी निवेश को आकर्षित करता है और विदेशी मुद्रा का आयोजन करके देश की अर्थव्यवस्था में योगदान करता है।

महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक विकास: सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में कार्यरत महिलाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक विकास हो रहा है।

हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का विकास: सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास हो रहा है, जो नई और विशेषज्ञता प्राप्त करने वाले रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।

सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क: सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा और उच्च आंकड़े संचार सुविधाओं के साथ प्रदान करते हैं, जो उन्हें अधिक उत्कृष्टता और उत्पादकता के साथ काम करने में मदद करता है।

प्रदूषण के प्रकार / Types of pollution

तापीय प्रदूषण:

  • कारखानों और तापीय संयंत्रों से गर्म जल का नदियों में निकलना।
  • परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों द्वारा भी तापीय प्रदूषण का उत्सर्जन होता है।

जल प्रदूषण:

  • औद्योगिक कचरे (कार्बनिक और अकार्बनिक) के उत्सर्जन से प्रदूषण।
  • पेपर, रासायनिक, वस्त्र उद्योग और अन्य उद्योगों के द्वारा जल प्रदूषण का उत्सर्जन होता है।

ध्वनि प्रदूषण:

  • सुनने की क्षमता पर असर डालता है।
  • हृदय गति और रक्तचाप में वृद्धि का कारण बनता है।

वायु प्रदूषण:

  • उद्योगों द्वारा सल्फर डाईऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड का उत्सर्जन।
  • धुआं निकलने के लिए रासायनिक, पेपर, ईंट भट्ठों और रिफाइनरी द्वारा वायु प्रदूषण होता है।

उद्योगों द्वारा पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपाय / Various measures taken by industries to reduce environmental pollution

प्रदूषित जल का प्रबंधन:

  • प्रदूषित जल को नदियों में न बहाने के लिए जल निगरानी और जल पुनरुत्पादन के उपाय अपनाए जा सकते हैं।

जल का साफ करना:

  • जल को साफ करके प्रवाहित करने से प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

जल विद्युत का प्रयोग:

  • जल विद्युत के उपयोग से प्रदूषण को कम किया जा सकता है और उपयोगिता भी बढ़ सकती है।

कम ध्वनि का उपयोग:

  • उद्योगों में कम ध्वनि उत्पन्न करने वाली मशीनरी का उपयोग करने से आसपास के पर्यावरण को संरक्षित किया जा सकता है।

भारत में पर्यटन के बढ़ते महत्त्व / Growing importance of tourism in India

तेजी से बढ़ता उद्योग:

  • पर्यटन उद्योग भारत में तेजी से बढ़ रहा है और यह तृतीयक क्षेत्र का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग है।

रोजगार का स्रोत:

  • पर्यटन उद्योग कुल 2500 लाख नौकरियाँ प्रदान करता है, जो कि अन्य क्षेत्रों से अधिक है।

राजस्व का बड़ा हिस्सा:

  • पर्यटन उद्योग कुल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत राजस्व प्रदान करता है, जिससे देश के आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

उद्योगों और व्यापार में वृद्धि का कारक:

  • पर्यटन के विकास से उद्योगों और व्यापार में वृद्धि होती है, जिससे अन्य उद्योगों को भी प्रोत्साहित किया जाता है।

आधारभूत ढांचे में सुधार:

  • पर्यटन के विकास से देश के आधारभूत ढांचे में सुधार होता है, जैसे कि सड़कों, हवाई अड्डों, और रेलवे स्टेशनों का विकास।

अंतरराष्ट्रीय बंधुता को बढ़ावा:

  • पर्यटन के माध्यम से विभिन्न देशों के लोगों के बीच अंतरराष्ट्रीय बंधुता को बढ़ावा मिलता है, जो विभिन्न सांस्कृतिक और आर्थिक लाभों का स्रोत बनता है।

नए रूपों का प्रचलन:

  • हाल के वर्षों में पर्यटन उद्योग में मेडिकल टूरिज्म जैसे नए रूपों का प्रचलन बढ़ा है, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया है।

आशा करते है इस पोस्ट NCERT Class 10 Geography: विनिर्माण उद्योग Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट 10 Class भूगोल Chapter 6 विनिर्माण उद्योग Notes पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12
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स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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