#NCERT Class 10 Geography: खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Notes In Hindi PDF

इन सरल हिंदी नोट्स के साथ ‘खनिज तथा ऊर्जा संसाधन‘ अध्याय को आसानी से समझें! खनिजों के प्रकार, वितरण, ऊर्जा के स्रोत, और संरक्षण रणनीतियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करें। मुफ्त में डाउनलोड करें और अच्छे अंक हासिल करें!

10 Class भूगोल Chapter 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectGeography
ChapterChapter 5
Chapter Nameखनिज तथा ऊर्जा संसाधन
CategoryClass 10 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

सामाजिक विज्ञान (भूगोल) अध्याय-5: खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

खनिज़ / Mineral

परिभाषा: खनिज धातु, अविधातु, और अन्य खनिज पदार्थ हैं जो पृथ्वी के भूमि के अंदर पाए जाते हैं। ये विभिन्न उपयोगिता और गुणों के आधार पर वर्गीकृत किए जा सकते हैं।

उपयोग: खनिज संसाधनों का उपयोग विभिन्न उद्योगों, उत्पादों, और उपकरणों के निर्माण में होता है। ये धातु, खनिज तेल, खनिज गैस, और अन्य संयंत्रीय खनिजों को समाहित करते हैं।

प्रकार: खनिजों को कई प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि धातुओं, अविधातुओं, खनिज तेल, गैस, और उपयोगिता के आधार पर।

भारत में: भारत में खनिज संसाधन विशाल हैं और इसका उपयोग भविष्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत में सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, अयस्क, लिग्नाइट, बॉक्साइट, और कोयला जैसे खनिज मिलते हैं।

प्रबंधन: खनिज संसाधनों का ठीक से प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है ताकि ये संसाधन समुद्री, वायुमंडलीय, और पारिस्थितिकीय प्रभावों को प्रभावित न करें।

उदाहरण: खनिजों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, ज्वेलरी, कंस्ट्रक्शन, उपकरण, और ऊर्जा उत्पादन आदि में होता है।

अयस्क / Ore

परिभाषा: अयस्क एक प्राकृतिक धातुयुक्त पदार्थ है जिसमें विभिन्न धातुओं या खनिजों के अवशिष्ट या अंश मिश्रित होते हैं। ये धातुओं के अवशिष्ट, समुच्चय, या धातुयुक्त खनिज होते हैं जो औद्योगिक उपयोग के लिए प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं।

प्रकार: अयस्क में अधिकांशतः धातुओं के अवशिष्ट होते हैं, जैसे कि लोहा, सोना, चांदी, कॉपर, निकेल, जस्टा, तांबा, आदि।

प्राप्ति: अयस्क पृथ्वी की ऊपरी परत में मिलते हैं और खनन के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं।

उपयोग: अयस्क उद्योग में उपयोगी धातुओं के उत्पादन में इस्तेमाल होते हैं। इन्हें उद्योगों में शुद्ध किया जाता है और उन्हें विभिन्न उपयोगों के लिए बनाया जाता है, जैसे कि मेटलर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक उपकरण, आदि।

भारत में: भारत में अनेक प्रकार के अयस्क प्राप्त होते हैं, जैसे कि लोहा, कॉपर, बॉक्साइट, तांबा, आदि। इन्हें खनन और प्रसंस्करण के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।

खनिजों का हमारे लिए महत्व / Importance of minerals for us

रसायनिक उपयोग: खनिज रसायनिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि धातुओं का उपयोग विभिन्न उद्योगों में, जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण, औद्योगिक उपकरण, आदि में होता है।

निर्माण कार्यों में: खनिजों का उपयोग इमारतों, सड़कों, पुलों, और अन्य निर्माण कार्यों में होता है। ये अवस्थित और बनाए गए सामग्री के रूप में उपयोग किए जाते हैं।

खाद्य संसाधन: कुछ खनिज जैसे कि नमक, जीरा, मिर्च, आदि खाद्य में उपयोग होते हैं, जो खाद्य के स्वाद और संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उद्योगिक उपकरण: कई उद्योगों में उपयोग होने वाले मशीनों और उपकरणों के निर्माण के लिए खनिजों का उपयोग किया जाता है।

परिवहन: खनिजों के उपयोग से परिवहन के साधनों का निर्माण किया जाता है, जैसे कि गाड़ियां, जहाज़, और रेलवे इंजन।

खनिजों के प्राप्ति स्थल / Places where minerals are obtained

आग्नेय तथा कायांतरित से: ये खनिज आग्नेय कार्यों और कायांतरित कार्यों के दौरान प्राप्त किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, जस्ता, तांबा, जिंक, और सीसा इन श्रेणियों में आते हैं।

अवसादी चट्टानों की परतों में: कुछ खनिज अवसादी चट्टानों की परतों में पाए जाते हैं। इसमें कोयला, पोटाश, और सोडियम नमक शामिल हैं।

धरातलीय चट्टानों से अपघटन से: यहां खनिजों को धरातलीय चट्टानों के अपघटन के द्वारा प्राप्त किया जाता है।

जलोढ़ जमाव या प्लेसर निक्षेप के रूप में: कुछ खनिज समुद्री जल के जलोढ़ में जमे होते हैं या समुद्र में प्लेसर निक्षेप के द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। इसमें सोना, चांदी, टिन, और प्लैटिनम शामिल हैं।

महासागरीय जल: कुछ खनिज महासागरीय जल में पाए जाते हैं। इसमें नमक, मैग्नीशियम, और ब्रोमाइन शामिल हैं।

आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण

Formation of minerals in igneous and metamorphic rocks

खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं: आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिज विभिन्न प्रकार की दरारों, जोड़ों, भ्रंशों, और विदरों में मिलते हैं। ये छोटे जमाव शिराओं के रूप में तथा बड़े जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं।

धकेलने के बाद जमना: जब ये तरल या गैसीय अवस्था में दरारों के सहारों से भू – पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं, तब ऊपर आते हुए ये ठंडे होकर जम जाते हैं।

मुख्य धात्विक खनिज: मुख्य धात्विक खनिज जैसे जस्ता, तांबा, जिंक, और सीसा आदि इसके उदाहरण हैं। इन खनिजों के निर्माण में आग्नेय और कायांतरित चट्टानों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

भूगर्भशास्त्री / Geologist

भूगर्भशास्त्री वे वैज्ञानिक होते हैं जो चट्टानों, पत्थरों, और पृथ्वी की विभिन्न परतों का अध्ययन करते हैं।

इन्हें धातु, खनिज, पाथर, और उपयुक्त गैसों के खोजन और उनके गुणवत्ता, संरचना, और रचना का अध्ययन करने का काम किया जाता है।

उनका काम खनिज और खनिज संपदाओं के प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन, अनुसंधान, और विकास में सहायक होता है।

भूगर्भशास्त्री आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके पृथ्वी के नीचे के संरचना और खनिज संपदाओं का अध्ययन करते हैं, जिससे उन्हें पृथ्वी के उपयोगी संसाधनों के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त होती है।

खनन / Mining

खनन विज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो पृथ्वी के भीतर से धातु, खनिज, और अन्य उपयोगी संसाधनों को प्राप्त करने की प्रक्रिया को समझता है।

यह प्रक्रिया धातु, खनिज, पत्थर, और अन्य संसाधनों को पृथ्वी के भीतर से निकालकर उनका उपयोग करने के लिए किया जाता है।

खनिज संसाधनों का खनन उद्योगी और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन्हें विभिन्न उद्योगों और उत्पादों के निर्माण में उपयोग किया जाता है।

खनिजों का खनन बाहरी तथा अंतरिक्ष उपग्रहों, मशीनों, वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, और अन्य कई उत्पादों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

खनिजों के खनन में उत्पन्न होने वाली धुएं और प्रदूषण की समस्याओं को संभालने के लिए पर्यावरणीय समझ और नैतिकता की आवश्यकता होती है।

खनिजो के वर्गीकरण का आधार

Basis of classification of minerals

रंग: खनिजों का रंग उनके रासायनिक संरचना और धातुओं की समृद्धि के आधार पर निर्भर करता है। कुछ खनिज विभिन्न रंगों में पाए जाते हैं, जैसे कि काला, लाल, पीला, हरा, नीला, और सफेद।

चमक: खनिजों की चमक उनके पृष्ठ, अवधि, और पारदर्शिता के आधार पर मापी जाती है। कुछ खनिज अत्यधिक चमकदार होते हैं, जबकि कुछ मध्यम या कम चमकदार होते हैं।

कठोरता: खनिजों की कठोरता उनके संरचना, रोचकता, और मोहस्त्रता के आधार पर निर्धारित की जाती है। कुछ खनिज बहुत कठोर होते हैं, जबकि कुछ कम कठोर होते हैं।

घनत्व: खनिजों का घनत्व उनके भार और आयाम के आधार पर मापा जाता है। यह उनके प्राकृतिक संरचना और संघटन का परिणाम होता है।

क्रिस्टल: कुछ खनिजों में क्रिस्टलाइजेशन देखा जा सकता है, जो उनके आकार और संरचना को प्रकट करता है। क्रिस्टलों के प्रकार और आकार विभिन्न खनिजों के लिए विशेष और पहचानकर्ता होते हैं।

खनिज के प्रकार

Types of minerals

खनिज 3 प्रकार के होते हैं।

  1. धात्विक
  2. अधात्विक
  3. ऊर्जा खनिज

धात्विक खनिज / Metallic Minerals

धात्विक खनिज उन खनिजों को कहा जाता है जिनमें धातु का अधिक अंश होता है। ये खनिज मानव समाज के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और उनका उपयोग विभिन्न उद्योगों, उत्पादों, और अन्य क्षेत्रों में होता है। धात्विक खनिजों को निम्नलिखित तीन प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है:

लौह: लौहीय खनिज में लोहे का अंश होता है। ये खनिज विभिन्न उद्योगों में उपयोग होते हैं, जैसे कि लौह अयस्क (जो लोहे को निकालने के लिए प्रमुख धात्विक खनिज है), मैग्नीज, निकल, कोबाल्ट, आदि। ये खनिज धातुरहित खनिजों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।

अलौह: अलौहीय खनिज में लोहे का अंश नहीं होता। ये खनिज तांबा, सीसा, जस्ता, बाक्साइट, आदि शामिल होते हैं। इन खनिजों का उपयोग विभिन्न उद्योगों में जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, और निर्माण में होता है।

बहुमूल्य खनिज: बहुमूल्य खनिज में सोना, चाँदी, प्लैटिनम, आदि शामिल होते हैं। इन खनिजों का उपयोग आभूषण, आर्थिक उत्पादों, और अन्य उद्योगों में होता है, और इन्हें समर्थन के मूल्यवान खनिज के रूप में जाना जाता है।

लौह खनिज / Iron Mineral

लौह खनिज वे खनिज होते हैं जिनमें लौह अंश (अधिकतम प्रमुख धातु) पाया जाता है। ये खनिज उद्योगिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और धातु के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लौह अयस्क भी इसी श्रेणी में आते हैं।

लौह अयस्क / Iron ore

लौह अयस्क एक महत्वपूर्ण आधारभूत खनिज है जो औद्योगिक विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इन खनिजों का प्रमुख उपयोग लोहे के उत्पादन में होता है, जो विभिन्न उद्योगों में उपयोगी धातु के रूप में जाना जाता है। भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन हैं और यहाँ पर्याप्त मात्रा में लौह अयस्क उपलब्ध है। भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है।

मैग्नेटाइट / Magnetite

मैग्नेटाइट एक उच्च कोटि का लौह अयस्क है जिसमें लगभग 70 प्रतिशत लौह अंश होता है। यह एक प्रमुख चुंबकीय खनिज है और इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विभिन्न विद्युत उद्योगों में उपयोगी हैं।

हेमेटाइट / Hematite

हेमेटाइट एक और प्रमुख लौह अयस्क है जिसमें 50-60 प्रतिशत लौह अंश होता है। यह उद्योगों में प्रयोग होने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण लोहा है।

भारत में लौह अयस्क की पेटिया / Iron ore belts in India

  • उड़ीसा: झारखंड पेटी
  • महाराष्ट्र: गोवा पेटी
  • कर्नाटक: बेलगाम, बेलारी, चित्रदुर्ग, बगलकोट, तुमकुर पेटी
  • छत्तीसगढ़: दुर्ग, बस्तर-चंद्रपुर पेटी

मैंगनीज़ / Manganese

इस्पात उद्योग: मैंगनीज़ का इस्पात उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह इस्पात की कठोरता और सामग्री के गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है।

ब्लीचिंग पाउडर: मैंगनीज़ का ब्लीचिंग पाउडर तैयार करने में उपयोग किया जाता है, जो विभिन्न उद्योगों में रंगों को हटाने और सफाई करने के लिए उपयोग किया जाता है।

कीटनाशक दवाएँ: मैंगनीज़ का उपयोग कीटनाशक दवाओं के रूप में किया जाता है, जो किसानों द्वारा अपने फसलों की सुरक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है।

पेंट: मैंगनीज़ आधुनिक पेंट के रूप में उपयोग किया जाता है, जो विभिन्न सतहों को सजाने और सुरक्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

अलौह खनिज / Non-ferrous minerals

अलौह खनिज उन खनिजों को कहा जाता है जिनमें लोहा शामिल नहीं होता है, लेकिन वे धातुओं के अन्य अंशों को शामिल कर सकते हैं। ये खनिज भूमिका में महत्वपूर्ण होते हैं और उन्हें निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है:

  • तांबा (Copper): तांबा एक महत्वपूर्ण धातु है जो विद्युतीय उपकरणों, तांबे के वायर, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
  • बॉक्साइट (Bauxite): बॉक्साइट से अल्युमीनियम का उत्पादन किया जाता है, जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, विमानों, और कारों के निर्माण में उपयोगी होता है।
  • सीसा (Lead): सीसा का उपयोग बैटरी, रेडिएशन शील्डिंग, और विद्युतीय उपकरणों में किया जाता है।
  • सोना (Gold): सोने का उपयोग आभूषण, सिक्के, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है।

लौह और अलौह खनिज में अन्तर / Difference between ferrous and non-ferrous minerals

लौह खनिज

अलौह खनिज

जिनमें लोहे का अंश होता है। 

जिनमें लोहे का अंश नहीं होता है। 

लौह अयस्क, मैंगनीज, निकल और कोबाल्ट आदि।

तांबा, सीसा, जस्ता और बॉक्साइट।

ताँबा / Copper

ताँबा एक महत्वपूर्ण धातु है जो विभिन्न उद्योगों में उपयोग के लिए प्रयोग किया जाता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है:

उपयोग: ताँबा एक अच्छा घातवर्धक धातु होता है जो बिजली के तारों के निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, और रसायन उद्योगों में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, ताँबा आभूषणों, बर्तनों, और तकनीकी उत्पादों में भी प्रयोग होता है।

ताँबा उत्पादन: भारत में मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश के लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं। इसके अलावा, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, और जम्मू और कश्मीर भी ताँबा उत्पादन करते हैं।

बॉक्साइट / Bauxite

बॉक्साइट एक महत्वपूर्ण खनिज है जो एल्यूमिनियम उत्पादन में उपयोगी होता है। यहाँ इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है:

निर्माण: बॉक्साइट निक्षेपों से एल्यूमिनियम सीलिकेटों की रचना होती है, जो अत्यंत समृद्ध भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है। इससे एल्यूमिनियम का उत्पादन किया जाता है।

एल्यूमिनियम: एल्यूमिनियम एक महत्वपूर्ण धातु है जो लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का और सुचालक भी होता है। इसके अलावा, बॉक्साइट में अत्यधिक घातवर्ध्यता (malleability) भी पाई जाती है।

निक्षेप स्थल: भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यत: अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों, और बिलासपुर कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।

अधात्विक खनिज / Non-metallic minerals

अधात्विक खनिज वे खनिज होते हैं जिनमें कोई धातु का अंश नहीं होता है। यहाँ इन खनिजों के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है:

  • अभ्रक: अभ्रक एक अद्भुत खनिज है जो पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है और इसे आयुर्वेदिक चिकित्सा में “शिलाजीत” के रूप में भी जाना जाता है।
  • नमक: नमक खाद्य में एक महत्वपूर्ण सामग्री है और इसका उपयोग भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है।
  • पोटाश: पोटाश खाद्य में उपयोग किया जाता है और यह पौधों के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व होता है।
  • चूना पत्थर: चूना पत्थर निर्माण में उपयोग किया जाता है और यह सीमेंट और निर्माण सामग्री के रूप में जाना जाता है।
  • संगमरमर: संगमरमर एक उम्दा और रमणीय संरचनात्मक खनिज है जो मूर्तिकला, आर्किटेक्चर और नक्काशी में उपयोग किया जाता है।
  • बलुआ पत्थर: बलुआ पत्थर निर्माण में उपयोग किया जाता है और यह इमारतों के लिए उत्कृष्ट रूप में उपयोगी होता है।

अभ्रक / Mica

अभ्रक एक महत्वपूर्ण अधात्विक खनिज है जो प्लेटों या परतों के रूप में पाया जाता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण जानकारी है इस खनिज के बारे में:

निक्षेप क्षेत्र: अभ्रक के प्रमुख निक्षेप क्षेत्र छोटा नागपुर पठार के उत्तरी किनारे, बिहार और झारखंड की कोडरमा गया हजारीबाग पेटी, राजस्थान के अजमेर के पास, और आंध्र प्रदेश की नेल्लोर पेटी में हैं।

उपयोग: अभ्रक विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में उपयोग किया जाता है। यह खनिज विभिन्न उद्योगों में उपयोगी होता है और विद्युत उत्पादन में एक महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में कार्य करता है।

चूना पत्थर / Limestone

रचना: चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैग्नीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है। यह अधिकांशतः अवसादी चट्टानों में पाया जाता है।

उपयोग: चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है। इसका उपयोग सीमेंट की निर्माण प्रक्रिया में किया जाता है, जिससे सीमेंट बनता है जो इमारतों की निर्माण में उपयोग होता है। इसके अलावा, चूना पत्थर लौह-प्रगलन की भट्टियों के लिए भी आवश्यक है।

खनन उद्योग को घातक उद्योग क्यों कहा जाता है? / Why is mining industry called a dangerous industry?

पर्यावरण पर असर: खनन उद्योग से धूल और हानिकारक धुएँ उत्पन्न होते हैं, जो श्रमिकों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

श्रमिकों के स्वास्थ्य पर प्रभाव: खनन के कारण श्रमिकों को फेफड़ों से संबंधित बीमारियाँ होती हैं, जो उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।

जीवन की खतरे: खदानों में अक्सीजन की कमी, खदानों में पानी भर जाना या आग लग जाने की संभावना से श्रमिकों के जीवन को खतरा होता है।

अपशिष्ट उत्पादन: खनन से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादन के कारण नदियों का जल प्रदूषित होता है और भूमि और मिट्टी का अपक्षय होता है।

जीवन सुरक्षा: कई बार खदानों की छत के गिर जाने से श्रमिकों को जोखिम में डाल दिया जाता है, जिससे उन्हें अपनी जान को खतरे में डालने का खतरा होता है।

खनिज संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ? / Why is conservation of mineral resources necessary?

उद्योग और कृषि के आधार: खनिज संसाधन हमारे उद्योग और कृषि के आधार हैं, जिनके बिना उन्हें अविकसित करना मुश्किल होगा।

नवीकरण योग्य नहीं: खनिज संसाधन नवीकरण योग्य नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें संरक्षित किया जाना आवश्यक है।

कम मात्रा में निक्षेप: खनिज संसाधनों की कुल मात्रा बहुत ही कम है, इसलिए उनके संरक्षण की जरूरत है ताकि वे भविष्य में उपलब्ध रहें।

लाखों वर्षों की निर्माण प्रक्रिया: खनिज संसाधनों के निर्माण में लाखों वर्ष लगते हैं, इसलिए उनके संरक्षण और संचयन की आवश्यकता है।

तेजी से उपयोग: हम बहुत तेजी से खनिजों का उपयोग कर रहे हैं, इसलिए इनका संरक्षण आवश्यक है ताकि हम सम्भवतः उन्हें उपयोग कर सकें।

आने वाली पीढ़ी के लिए सम्भाल: खनिज संसाधनों को आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित रखना आवश्यक है ताकि उन्हें भी उपयोग करने का अवसर मिले।

खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय / Measures to conserve mineral resources

बर्बादी को कम करें: खनन और परिष्करण के दौरान खनिज संसाधनों की बर्बादी को कम करने के लिए प्रयास करें।

प्राकृतिक सामग्री का प्रयोग: सम्भव हो तो प्लास्टिक और लकड़ी जैसी प्राकृतिक सामग्रियों का प्रयोग करें, जो खनिज संसाधनों की बचत में मदद कर सकती है।

अपव्यय कम करें: खनन और खनिज सुधार प्रक्रिया में धातु के अपव्यय को कम करने के उपाय अपनाएं।

पुराने माल का पुनः प्रयोग: रद्दी और पुराने माल का पुनः प्रयोग करके संसाधनों की बर्बादी को कम करें।

पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग: खनिज संसाधनों का पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग करके उनकी बर्बादी को कम करें।

नियोजित और सतत उपयोग: संसाधनों का नियोजित और सतत उपयोग करके उनकी संभाल करें।

पर्यावरण की देखभाल: पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए, खनिज संसाधनों के अन्य विकल्पों की खोज करें, जैसे सीएनजी (सजीव नगरीय निकाय)।

ऊर्जा संसाधन / Energy resources

ऊर्जा की आवश्यकता: ऊर्जा की महत्ता हर क्षेत्र में होती है, जैसे खाना पकाने, रोशनी, ताप, वाहनों और उद्योगों में मशीनों के संचालन के लिए।

ऊर्जा के उत्पादन के स्रोत: ऊर्जा के उत्पादन के लिए विभिन्न स्रोत होते हैं, जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, और विद्युत।

परंपरागत और गैर-परंपरागत स्रोत: ऊर्जा स्रोतों को परंपरागत और गैर-परंपरागत में वर्गीकृत किया जा सकता है।

परंपरागत स्रोत: लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, और विद्युत (जल विद्युत और ताप विद्युत) इन्हें शामिल किया जा सकता है।

गैर-परंपरागत स्रोत: सौर, पवन, जल, भू-ताप, बायोगैस, और परमाणु ऊर्जा।

परंपरागत ऊर्जा के स्रोत / Traditional energy sources

कोयला:-

  1. भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू ज़रूरतों के लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
  2. भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है। संपीड़न की मात्रा, गहराई और समय के अनुसार कोयले के तीन प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित हैं:-
  • लिग्नाइट:- लिग्नाइट एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है। लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं।
  • बिटुमिनस कोयला:- गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है। वाणिज्यिक प्रयोग में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। धातुशोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्त्व है।
  • एंथ्रासाइट कोयला:- एंथ्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।

भारत मे कोयला:-

भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है और दूसरा टरशियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं।

  1. गोंडवाना कोयले:- जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी ( पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड ), झरिया, रानीगंज, बोकारो में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।
  2. टरशियरी कोयला क्षेत्र:- उत्तर पूर्वी राज्यों मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।

पेट्रोलियम:-

  1. भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है।
  2. तेल शोधन शालाएँ संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं।
  3. भारत का 63% पेट्रोलियम मुम्बई हाई से निकलता है। 18% गुजरात से और 13% असम से आता है।

प्राकृतिक गैस:-

  1. इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रासायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  2. कार्बनडाई ऑक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण अनुकूल माना जाता है। इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन है।
  3. कृष्णा- गोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गए हैं। अंडमान – निकोबार द्वीप समूह भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं।

विद्युत:-

  1. विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है

(क) प्रवाही जल से जो हाइड्रो – टरबाइन चलाकर जल विद्युत उत्पन्न करता है।

(ख) अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है।

  1. बहु तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है।
  2. भारत में अनेक बहु – उद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं ; जैसे – भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कारपोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि। \

ताप विद्युत:-

ताप विद्युत कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृह अनवीकरण योग्य जीवश्मी ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं।

तापीय और जल विद्युत ऊर्जा में अन्तर / Difference between thermal and hydroelectric energy

तापीय विद्युत

जल विद्युत ऊर्जा

यह विद्युत कोयले , पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के प्रयोग से पैदा की जाती है।

जल विद्युत ऊर्जा गिरते हुए जल की शक्ति का प्रयोग करके टरबाइन को चलाने से होता है। 

यह प्रदूषण युक्त है।

यह प्रदूषण रहित है।

स्थायी स्रोत नहीं है।

स्थायी स्रोत है। 

अनवीकरणीय स्रोतों पर आधारित है। 

जल जैसे नवीकरणीय स्रोतों पर आधारित है। 

भारत में 310 से अधिक ताप विद्युत के केन्द्र हैं। 

भारत में अनेक बहुउद्धेश्यीय परियोजनायें हैं। 

जैसे :- तलचेर, पांकी, नामरूप, उरन, नवेली आदि।

जैसे :- भाखड़ा नॉगल दामोदर घाटी कोपली आदि।

गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन / Non-conventional energy sources

परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा:-

  • परिभाषा और प्राप्ति: यह ऊर्जा अणुओं की संरचना को बदलकर प्राप्त की जाती है। इस प्रक्रिया में, अणुओं की आणविक विक्रेता की जाती है, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है।
  • ऊर्जा उत्पादन: ऊष्मा के रूप में प्राप्त की गई ऊर्जा का उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जाता है। यह उत्पादन प्रक्रिया विभिन्न प्रकार के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में होता है।
  • महत्वपूर्ण स्रोत: झारखंड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में यूरेनियम और थोरियम के संश्लेषण किए जाते हैं, जो परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में उपयोग होते हैं।
  • अत्यंत महत्वपूर्ण स्रोत: बहुतायत में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है, जो केरल में प्राप्त होती है।

आणविक शक्ति:-

  • आणविक शक्ति अणु के विखंडन से प्राप्त ऊर्जा को संदर्भित करती है।

आणविक खनिज:-

  • इन खनिजों में से कुछ ऐसे होते हैं जो परमाणु ऊर्जा को धारण करते हैं। इसमें शामिल हैं यूरेनियम, थोरियम, और बैरिलियम।

भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है, क्यों?

  • उष्ण कटिबंधीय देश: भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है, जिसका मतलब है कि यह सूर्य की उर्जा का बेहद महत्वपूर्ण स्रोत है। सौर ऊर्जा का उपयोग इसे विशेष रूप से उपयुक्त बनाता है।
  • प्रदूषण रहित ऊर्जा संसाधन: सौर ऊर्जा प्रदूषण मुक्त होती है, जिससे वायु प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है। इससे अन्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय हानि को भी कम किया जा सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: सौर ऊर्जा एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है जिसमें सूर्य की ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। यह ऊर्जा स्रोत अनगिनत है और लगातार निरंतर उत्पन्न होता रहता है।
  • निम्नवर्ग के लोगों का लाभ: सौर ऊर्जा के उपयोग से निम्नवर्ग के लोगों को ऊर्जा के साथ संबंधित सुविधा प्राप्त करने का अवसर मिलता है। यह लोगों को ऊर्जा की कठिनाइयों से बाहर निकालकर उनकी जीवनशैली को सुधार सकता है।

पवन ऊर्जा:-

पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी: भारत में पवन ऊर्जा के लिए विशालतम पेटी तमिलनाडु में स्थित है, जो नागरकोइल से मदुरई तक फैली हुई है। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, और लक्षद्वीप में भी महत्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं।

पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग: भारत में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए नागरकोइल और जैसलमेर क्षेत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। यहां पर प्रदर्शन किए गए पवन ऊर्जा परियोजनाओं का संचालन किया जाता है जो भारी विकास का उदाहरण हैं।

बॉयो गैस:-

ऊर्जा स्रोत: बायो गैस वह ऊर्जा है जो घास, कृषि कचरा, जानवर, और मानव-अपशिष्ट पदार्थों से प्राप्त की जाती है। यह एक प्राकृतिक और पुनर्चक्रणीय ऊर्जा स्रोत है जो वायुमंडलीय गैसों के रूप में उत्पन्न होती है।

बायो गैस प्रौद्योगिकी: बायो गैस प्रौद्योगिकी में, घास, कृषि कचरा, जानवर, और मानव-अपशिष्ट पदार्थों को उचित प्रक्रिया के माध्यम से बियोमास कनवर्ट किया जाता है। इसके बाद, इस बायोमास को उचित विशेषित धातु में अनायास होने के लिए परिघातन किया जाता है जिससे बायो गैस उत्पन्न होती है।

बायो गैस का उपयोग: बायो गैस को उपयोग किया जा सकता है ऊर्जा की आपूर्ति के लिए और उसे गैस संयंत्रों में जलाकर विद्युत उत्पादन के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसका उपयोग गैस संयंत्रों, उद्योग, और गृहों के लिए भी किया जा सकता है।

ज्वारीय ऊर्जा:-

परिचय: ज्वारीय ऊर्जा वह ऊर्जा है जो महासागरीय तरंगों का प्रयोग करके विद्युत उत्पादन के लिए उत्पन्न की जाती है। यह एक स्वाभाविक और अक्षय ऊर्जा स्रोत है जो समुद्र तटों के किनारे स्थित बाँधों का उपयोग करते हुए उत्पन्न होती है।

ऊर्जा उत्पन्न की प्रक्रिया:

  • समुद्र तटों के किनारे बाँध बनाए जाते हैं जिन्हें सँकरी खाड़ी कहा जाता है।
  • उच्च ज्वार में, सँकरी खाड़ी के बंद द्वार से पानी भर जाता है।
  • बाँध के बाहर ज्वार उतरता है, और इस पानी को पाइप द्वारा समुद्र में बहाया जाता है।
  • इस पानी की गति से बायोगैस प्रौद्योगिकी उद्योगों में इस्तेमाल होती है, जो विद्युत उत्पादन के लिए उपयोगी होती है।

भारत में ज्वारीय ऊर्जा की आदर्श दशाएँ:

  • भारत में कई स्थानों पर ज्वारीय ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।
  • उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, और केरल में कुछ प्रमुख स्थानों पर ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।
  • इन्हीं स्थानों पर बाँध निर्माण, प्रौद्योगिकी उत्पादन, और प्रयोग के लिए आवश्यक अधिकारिक और तकनीकी विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

भू – तापीय ऊर्जा:-

परिचय: भू – तापीय ऊर्जा वह ऊर्जा है जो पृथ्वी के आंतरिक भागों से उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा पृथ्वी के भीतरी गर्मी का उपयोग करके उत्पन्न की जाती है।

ऊर्जा का संरक्षण:

  • बिजली का संरक्षण: जरूरत न होने पर बिजली का उपयोग कम किया जाना चाहिए और बिजली बंद कर दी जानी चाहिए।
  • सार्वजनिक वाहनों का उपयोग: सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करना ऊर्जा संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
  • परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग: परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग सीमित होता है, इसलिए इनका संयमपूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए।
  • नवीकरणीय साधनों का प्रयोग: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग करना ऊर्जा संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान करता है।
  • विद्युत बचत करने वाले उपकरणों का प्रयोग: विद्युत बचत करने वाले उपकरणों का प्रयोग करना ऊर्जा की बचत में मदद करता है।
  • कार – पूलिंग: लोगों को कार-पूलिंग का उपयोग करके ऊर्जा संरक्षण में सहायता करनी चाहिए, जिससे ईंधन की बचत हो सके।

आशा करते है इस पोस्ट NCERT Class 10 Geography: खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट 10 Class भूगोल Chapter 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Notes पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12
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स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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