#NCERT Class 10 Geography: जल संसाधन Notes In Hindi PDF

NCERT भूगोल के ‘जल संसाधन‘ अध्याय को इन सरल हिंदी नोट्स के साथ पूरी तरह समझें! जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, नदियाँ, और भारत के जल संसाधनों की गहन जानकारी पाएं। बेहतर तैयारी के लिए आज ही मुफ्त में डाउनलोड करें!

10 Class भूगोल Chapter 3 जल संसाधन Notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectGeography
ChapterChapter 3
Chapter Nameजल संसाधन
CategoryClass 10 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

सामाजिक विज्ञान (भूगोल) अध्याय-3: जल संसाधन

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

जल के कुछ रोचक तथ्य

Some interesting facts about water

मात्रा का अनुपात:

  • दुनिया में पानी की कुल मात्रा का 96.5 प्रतिशत समुद्र में है, जबकि केवल 2.5 प्रतिशत मीठे पानी के रूप में है।

भारतीय वर्षा और पानी की उपलब्धता:

  • भारत को वैश्विक वर्षा का लगभग 4 प्रतिशत प्राप्त होता है।
  • भारत में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष पानी की उपलब्धता के मामले में दुनिया में 133 वें स्थान पर है।

पानी की कमी की आशंका:

  • आंकड़ों के अनुसार, 2025 तक भारत के बड़े हिस्से में पानी की कमी की आशंका है, जिससे भारत कुछ पानी की कमी वाले देशों या क्षेत्रों में शामिल हो सकता है।

जल दुर्लभता / Water scarcity

जल दुर्लभता का अर्थ है पानी की कमी होना। यह एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है जिससे हमें सजीव और स्वस्थ जीवन के लिए चिंता करनी चाहिए।

जल दुर्लभता के कारण:

  • बड़ी आबादी: बढ़ती आबादी के कारण, पानी की मांग में वृद्धि हो रही है।
  • सिंचित क्षेत्रों का विस्तार: सिंचित क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए, जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।
  • शहरीकरण और औद्योगीकरण: बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के साथ, पानी की मांग में वृद्धि हो रही है।
  • असमान पहुंच: विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच पानी की असमान पहुंच एक और जल दुर्लभता का कारण है।
  • उद्योगों का अत्यधिक उपयोग: उद्योगों द्वारा पानी का अत्यधिक उपयोग भी इस समस्या को और अधिक बढ़ा रहा है।
  • शहरी क्षेत्रों में पानी का अधिक दोहन: शहरी क्षेत्रों में पानी का अधिक दोहन भी जल दुर्लभता के एक कारण है।

औद्योगीकरण तथा शहरीकरण किस प्रकार जलदुर्लभता के लिए उत्तरदायी है?

  • तेजी से औद्योगीकरण:
  • स्वतंत्रता के पश्चात्, भारत में तेजी से औद्योगीकरण की प्रक्रिया हुई।
  • इसके परिणामस्वरूप, उद्योगों की बढ़ती संख्या ने जल की अत्यधिक उपयोग को बढ़ा दिया है।
  • शहरीकरण तथा बढ़ती आबादी:
  • शहर की बढ़ती आबादी और शहरी जीवन शैली के कारण, जल ऊर्जा की आवश्यकता में तीव्र वृद्धि हुई है।
  • लोगों के जीवन में जल का अधिक उपयोग होने के कारण, जल की मांग में वृद्धि हो रही है।
  • जल संसाधनों का अतिशोषण:
  • शहरों तथा गाँवों में जल संसाधनों का अतिशोषण भी एक मुख्य कारण है।
  • अत्यधिक उपयोग के कारण, जल की कमी हो रही है और इससे जलदुर्लभता की समस्या और गंभीर हो रही है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ / Multinational Companies

परिचय:

  • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ वे कंपनियाँ होती हैं जो एक से अधिक देशों में अपने उद्योग संस्थान को स्थापित करती हैं।
  • इन कंपनियों की कार्यप्रणाली अनेक देशों के बाजारों में निवेश करने पर आधारित होती है।

कार्यक्षेत्र:

  • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विभिन्न देशों में अपने उद्योग संस्थान स्थापित करके विभिन्न क्षेत्रों में काम करती हैं।
  • इनमें वित्तीय सेवाएं, उत्पादन, मार्केटिंग, औद्योगिक निवेश, और तकनीकी सहायता जैसे क्षेत्र शामिल हो सकते हैं।

लाभ:

  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुख्य लक्ष्य विभिन्न देशों के बाजारों में अधिक लाभ कमाना होता है।
  • इन कंपनियों का अनेक देशों में निवेश करने से वे अपनी व्यापारिक विस्तार क्षमता को बढ़ाते हैं और अधिक लाभ प्राप्त करते हैं।

उदाहरण:

  • सेंसियो, टाटा, हिंदुस्तान यूनिलीवर, विप्रो, एक्सोन मोबिल, और वोल्वो जैसी कंपनियाँ उदाहरण हैं जो बहुराष्ट्रीय कारोबार में गतिविधियों को संचालित करती हैं।

जल विद्युत / Hydroelectricity

परिचय:

  • जल विद्युत एक प्रकार की ऊर्जा है जो ऊँचे स्थानों से नीचे गिरी जल धारा से उत्पन्न होती है।
  • यह ऊर्जा जल प्रवाह का उपयोग करके जल गिराने वाले प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त की जाती है।

कार्यप्रणाली:

  • जल विद्युत उत्पादन के लिए प्रमुखतः हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट्स में उपयोग की जाती है।
  • इसमें, जल को ऊँचे स्थान से नीचे गिराया जाता है, जिससे प्राकृतिक गर्भवाहिनी ऊर्जा उत्पन्न होती है जो फिर जल विद्युत के द्वारा बिजली उत्पन्न करती है।

लाभ:

  • जल विद्युत स्वच्छ और उपलब्ध स्थानीय ऊर्जा स्रोतों में से एक है।
  • यह पर्यावरण के प्रति सही संवेदनशीलता को बढ़ावा देती है क्योंकि इसमें अधिक नकारात्मक प्रभाव नहीं होते हैं।
  • जल विद्युत परियावरणीय द्वारा साफ़ किया जा सकता है और इसे नियमित जल स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है।

उदाहरण:

  • भारत में, भाखरा-नांगल हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट, टेहरी डैम, नागा-अरुण-3, और सागर लांग हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट जल विद्युत के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

एक नवीकरणीय संसाधन होते हुए भी जल के संरक्षण तथा प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है?

ताजा जल की कमी:

  • विश्व में केवल 2.5 प्रतिशत ही ताजा जल है, जो जल की कमी को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनाता है।

जल संसाधनों का अति दोहन:

  • जल संसाधनों का अति दोहन भी जल के संरक्षण की आवश्यकता को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।

बढ़ती जनसंख्या और मांग:

  • बढ़ती जनसंख्या, अधिक मांग, और असमान पहुँच जल संसाधनों को और अधिक दबाव में डालता है।

शहरीकरण:

  • शहरीकरण के साथ-साथ जल की मांग भी बढ़ती है और इससे जल के संरक्षण और प्रबंधन की चुनौतियाँ और बढ़ जाती हैं।

औद्योगीकरण:

  • औद्योगीकरण के कारण भी जल की अधिक उपयोगिता होती है, और इससे जल के संरक्षण की ज़रूरत और अधिक महत्वपूर्ण बनती है।

प्राचीन भारत में जलीय कृतियाँ

Aquatic works in ancient India

श्रिगंवेरा जल संग्रहण तंत्र:

  • इलाहाबाद के नजदीक श्रिगंवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था, जो ईसा से पहले एक शताब्दी पहले बनाया गया था।

मौर्य समय के जलीय कार्य:

  • चन्द्रगुप्त मौर्य के समय बृहत् स्तर पर बाँध, झील और सिंचाई तंत्रों का निर्माण करवाया गया।

उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र:

  • कलिंग (ओडिशा), नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश), बेन्नूर (कर्नाटक), और कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र होने के सबूत मिलते हैं।

भोपाल झील:

  • भोपाल झील, अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक है, और 11 वीं शताब्दी में बनाई गई थी।

हौज खास:

  • 14 वीं शताब्दी में इल्तुतमिश ने दिल्ली में सिरी फोर्ट क्षेत्र में जल की सप्लाई के लिए हौज खास (एक विशिष्ट तालाब) बनवाया।

बहुउद्देशीय परियोजनाएँ

Aquatic works in ancient India

नदियों पर बाँध बनाकर अनेक उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य होता है जल संचयन, जल विद्युत उत्पादन, सिंचाई, पानी की आपूर्ति, और जल संयंत्रों के विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय प्रभावों का प्रबंधन। इन परियोजनाओं में समाज, अर्थव्यवस्था, और पर्यावरण के प्रत्येक पहलु को ध्यान में रखा जाता है।

प्रमुख उद्देश्य:

  • जल संचयन: बाँधों के निर्माण से जल संचयन होता है, जो जल संग्रहण और जल संवहन के लिए महत्वपूर्ण होता है।
  • जल विद्युत उत्पादन: बाँधों पर जल से विद्युत उत्पादित किया जा सकता है, जो अन्य क्षेत्रों में ऊर्जा की आपूर्ति के लिए उपयोगी होती है।
  • सिंचाई: नदी के पानी का सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है, जो कृषि क्षेत्रों को पानी पहुंचाने में मदद करता है।
  • पानी की आपूर्ति: बाँधों के निर्माण से नदियों का पानी संग्रहित किया जा सकता है, जिससे जल संबलिता में सुधार होता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव का प्रबंधन: बाँधों के निर्माण से उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का प्रबंधन किया जाता है, जैसे कि जल संबलिता, जलवायु परिवर्तन, और जलवायु आकृति का बनाए रखना।

बाँध / Dam

बाँध एक प्रकार का अभियांत्रिक संरचना है जो जल के बहाव को नियंत्रित करने के लिए बनाई जाती है।

ये सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय मुद्दों को समाधान करने में मदद करते हैं।

बाँधों से होने वाले लाभ / Benefits of dams

सिंचाई: बाँधों द्वारा जल को संचित किया जाता है जो कृषि क्षेत्रों को सिंचाई के लिए उपयोगी होता है। यह कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देता है।

विद्युत उत्पादन: बाँधों पर हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्लांट्स स्थापित किए जाते हैं, जिससे जल से ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है।

जल आपूर्ति: बाँधों से प्राप्त जल का उपयोग घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए किया जा सकता है।

बाढ़ नियंत्रण: बाँधों द्वारा जल का संचय करने से बाढ़ों को नियंत्रित किया जा सकता है और कृषि क्षेत्रों को सुरक्षित रखा जा सकता है।

मनोरंजन और पर्यटन: कई बाँध पर बने झीलें और आवासीय इलाके पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनते हैं, जो पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

मत्स्य पालन: बाँधों में बने झीलों में मत्स्य पालन कार्यक्रमों को आयोजित किया जा सकता है, जो लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है और आपूर्ति भी सुनिश्चित करता है।

बांधों को अब बहुउद्देशीय परियोजना क्यों कहा जाता हैं?

/ Why are dams now called multipurpose projects?

एकत्र जल का उपयोग: बांधों द्वारा एकत्रित जल का उपयोग अनेक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जैसे कि सिंचाई, पीने का पानी, और और उद्योगों के लिए पानी प्रदान करना।

बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई: बांधों का निर्माण बाढ़ों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है और सिंचाई के लिए जल को उपलब्ध कराता है।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: बांधों का निर्माण जल, वनस्पति, और मृदा के संरक्षण के लिए किया जाता है, जो जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पर्यटन को बढ़ावा: बांधों के आसपास बने झीलें और परिसर पर्यटन के लिए आकर्षक होते हैं, जिससे पर्यटकों का आगमन बढ़ता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।

जवाहर लाल नेहरू ने ‘ बाँधों को आधुनिक भारत के मंदिर ‘ क्यों कहा है?

Why did Jawaharlal Nehru call dams the temples of modern India?

विकास में योगदान: नेहरू जी ने बांधों को आधुनिक भारत के मंदिर कहा था क्योंकि बांधों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है।

जल संसाधन का प्रबंधन: बांधों ने जल संसाधन का प्रबंधन किया है और जल के उपयोग को अनुकूलित किया है, जिससे जल संभावनाएं बढ़ी हैं।

ऊर्जा उत्पादन: बांधों से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से बिजली उत्पादित की जाती है, जो विभिन्न उद्योगों और गृहों की ऊर्जा संबलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जल संचार: बांधों ने जल संचार की सुविधा प्रदान की है, जिससे अनेक क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित होती है।

पर्यटन: बांधों के आसपास बने झीलों और पर्यटन स्थलों ने पर्यटन को बढ़ावा दिया है, जिससे आर्थिक और सांस्कृतिक विकास हुआ है।

भारत में बहुउद्देशीय परियोजनाओं

Multipurpose Projects in India

एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन: स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन की दिशा में कई परियोजनाएं शुरू की हैं। इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य है जल संसाधनों को प्रबंधित करके जल संकट से निपटना।

बांधों का महत्व: प्रमुख नेता जवाहरलाल नेहरू ने बांधों को आधुनिक भारत के मंदिर के रूप में स्वीकार किया। बांधों का निर्माण कृषि, जल संचार, औद्योगिकीकरण, ऊर्जा उत्पादन और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण है।

विकास के साथ एकीकरण: ये परियोजनाएं भारतीय अर्थव्यवस्था को ऊर्जावान और स्थिर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं। इनके माध्यम से, कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित किया जा रहा है और औद्योगिकीकरण और शहरी विकास को संवारा जा रहा है।

बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना

Multipurpose River Valley Project

नदी पर बाँध बनाकर इससे अनेक प्रकार के उद्देश्यों को पूरा करना, बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना कहलाता है।

बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना के उद्देश्य

Objectives of Multipurpose River Valley Project

जल विद्युत उत्पादन: ये परियोजनाएं जल विद्युत उत्पादन को बढ़ावा देती हैं। बांधों से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग करके बिजली उत्पादन किया जाता है।

सिंचाई: बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएं कृषि के लिए सिंचाई का संचार करती हैं। इससे खेतों में पानी की उपलब्धता में सुधार होता है और फसलों की उपज बढ़ती है।

घरेलू और औद्योगिक जल आपूर्ति: इन परियोजनाओं से घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए जल की आपूर्ति में सुधार होता है।

नौचालन और पर्यटन: ये परियोजनाएं नौचालन को सुविधाजनक बनाती हैं और पर्यटन को भी प्रोत्साहित करती हैं। बड़े बांधों के तालाबों में विकसित किए जाने वाले जलाशयों के आसपास विकसित पर्यटन संरचनाएं होती हैं।

बाढ़ नियंत्रण: इन परियोजनाओं के माध्यम से बाढ़ नियंत्रित किया जाता है, जिससे अनुगामी क्षेत्रों में होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

मछली पालन: बांधों के निर्माण से मछली पालन के लिए अधिक संभावनाएं उत्पन्न होती हैं। बांधों के तालाबों में मछलियों की खास बढ़ती है, जो स्थानीय आजीविका के साधन में मदद करती हैं।

बहु–उद्देशीय नदी परियोजनाओं के लाभ

Benefits of multi-purpose river projects

सिंचाई: बहु-उद्देशीय नदी परियोजनाएं कृषि के लिए सिंचाई का संचार करती हैं, जिससे खेतों में पानी की उपलब्धता में सुधार होता है और फसलों की उपज बढ़ती है।

विद्युत उत्पादन: बांधों से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग करके विद्युत उत्पादन किया जाता है, जो उत्पादन और जीवन आधारित सेवाओं को सहायक बनाता है।

बाढ़ नियंत्रण: बहु-उद्देशीय नदी परियोजनाएं बाढ़ नियंत्रण में मदद करती हैं, जो अनुगामी क्षेत्रों में होने वाले नुकसान को कम करती है।

मत्स्य प्रजनन: इन परियोजनाओं के माध्यम से मत्स्य पालन के लिए अधिक संभावनाएं उत्पन्न होती हैं, जो स्थानीय आजीविका के साधन में मदद करती हैं।

अंतदृष्टि नौवहन: ये परियोजनाएं अंतदृष्टि नौवहन को सुविधाजनक बनाती हैं, जिससे व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियों में सुधार होता है।

घरेलू और औद्योगिक उपयोग: बाँधों के निर्माण से घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए जल की आपूर्ति में सुधार होता है, जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

बहुउद्देशीय नदी परियोजना की आलोचना

Criticism of Multipurpose River Project

प्राकृतिक प्रवाह का प्रभाव: बहुउद्देशीय नदी परियोजनाएं नदी के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित करती हैं और नदी के प्रवाह में बदलाव पैदा करती हैं, जिससे नदी के पारिस्थितिकीय संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

जलीय जीवन का प्रभाव: बहुउद्देशीय नदी परियोजनाएं नदियों के जलीय जीवन को प्रभावित करती हैं, जिससे नदियों की जीवनधारा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

स्थानीय समुदाय का विस्थापन: बहुउद्देशीय नदी परियोजनाएं आमतौर पर बड़े पैमाने पर स्थानीय समुदायों को विस्थापित करती हैं, जो उनके परंपरागत आधारों, जीवनशैली और आजीविका को प्रभावित करता है।

जलाशय की पर्यावरणीय प्रभाव: बाढ़ के मैदान पर बनाए गए जलाशय मौजूद वनस्पति को डूबा देते हैं और एक समय के बाद मृदा का क्षरण कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

नर्मदा बचाओ आंदोलन

Narmada Bachao Andolan

आंदोलन का उद्देश्य: आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था सरदार सरोवर बाँध परियोजना के खिलाफ विरोध करना।

संचालन: आंदोलन गैर सरकारी संगठन (NGO) द्वारा संचालित था।

समर्थक: यह आंदोलन जनजातियों, किसानों, पर्यावरणविदों, और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीच लामबंद हुआ था।

मुद्दा: आंदोलन की शुरुआत में मुख्य ध्यान जंगलों के बाँध के पानी में डूबने के मुद्दे पर था।

लक्ष्य का परिवर्तन: बाद में, इस आंदोलन का मुख्य लक्ष्य विस्थापितों का पुनर्वास करना बन गया।

भूमिगत जल / Well water

भूमिगत जल एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है जो मृदा के नीचे स्थित होता है। यह जल मृदा के अंदर की रेतीली तथा खारी धारिता के शैल आस्तरणों और परतों में निहित होता है। यह भूमिगत जल मुख्य रूप से विभिन्न गहराईयों में पाया जा सकता है, जैसे कि नल या कुआं। यह जल वनस्पतियों, प्राणियों और मानव उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है।

भूमिगत जल की मुख्य विशेषताएँ और उपयोग:

  • आद्यात्मिक उपयोग: यह जल पौधों और वनस्पतियों के लिए आवश्यक होता है जो मृदा के अंदर अपने जीवन के लिए आवश्यक आहार और पानी प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग करते हैं।
  • पेयजल का स्रोत: कई स्थानों पर, भूमिगत जल को पीने के लिए उपयोग किया जाता है। यह स्थलीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण पेयजल का स्रोत हो सकता है।
  • कृषि और जल संवर्धन: भूमिगत जल का उपयोग कृषि के लिए भी होता है, खासकर सूखे के दौरान। इसे खेतों में सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है ताकि मृदा की नमी बनी रहे और फसलों का प्रदर्शन बेहतर हो।
  • वनस्पतियों के लिए जल स्रोत: यह जल वनस्पतियों के लिए आवश्यक है, जो अपनी पोषण की आवश्यकता को पूरा करने के लिए इसका उपयोग करते हैं।
  • जीव जंतुओं के लिए स्रोत: इस जल का उपयोग पेयजल के साथ-साथ जीव जंतुओं के लिए भी किया जाता है, जैसे कि वन्य जीव, पक्षी, और अन्य जीवनधारियों के लिए।

वर्षा जल संग्रहण / Rainwater harvesting

वर्षा जल संग्रहण एक महत्वपूर्ण तकनीक है जो जल संसाधन के संरक्षण और उपयोग को बढ़ावा देती है। यह कई तरीकों से किया जा सकता है, जैसे कि:

घरों और इमारतों में टैंक: वर्षा जल को छतों से इकट्ठा किया जाता है और फिर टैंकों में भरा जाता है। इस प्रकार, इस पानी का उपयोग बाद में किया जाता है, जैसे कि सिंचाई के लिए या घरेलू उपयोग के लिए।

नदियों के प्रवाह का रास्ता बदलना: पर्वतीय क्षेत्रों में, गुल और कुल वाहिकाएं बनाई जाती हैं ताकि नदी का प्रवाह रास्ता बदलकर खेतों को सिंचाई के लिए उपयोगी हो सके।

छत से जल इकट्ठा करना: राजस्थान जैसे सूखे प्रदेशों में, छतों से वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए छतों पर गड्ढे बनाए जाते हैं। इस प्रकार, पानी को इकट्ठा किया जाता है और फिर इसका उपयोग पीने के लिए किया जाता है।

वर्षा जल संचयन की विधियां / Methods of rain water harvesting

पर्वतीय क्षेत्रों में गुल और कुल: पर्वतीय क्षेत्रों में, गुल और कुल जैसी वाहिकाएं बनाई जाती हैं ताकि नदी का प्रवाह रास्ता बदलकर खेतों को सिंचाई के लिए उपयोगी हो सके। इससे वर्षा जल को संचित किया जाता है।

बांग्लादेश में बाढ़ जल वाहिकाएं: पश्चिम बंगाल में, बाढ़ के दौरान बाढ़ जल वाहिकाएं बनाई जाती हैं ताकि वर्षा जल को संचित किया जा सके और इसका उपयोग किसानों के लिए किया जा सके।

भारत में खेतों की सिंचाई के लिए भंडारण संरचनाएं: राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में, कृषि क्षेत्रों को बरसाती भंडारण संरचनाओं में परिवर्तित किया गया है जिससे वर्षा जल संचित किया जा सके।

गड्ढ़ों का निर्माण: शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में, गड्ढ़ों का निर्माण किया जाता है ताकि वर्षा जल को संचित किया जा सके।

छत पर वर्षा जल संचयन: छतों पर बनाए गए गड्ढ़ों में वर्षा जल को इकट्ठा किया जाता है और फिर इसका उपयोग किया जाता है।

भूमिगत टैंक या टाँका: राजस्थान के जैसे सूखे क्षेत्रों में, भूमिगत टैंक या टाँका बनाए जाते हैं जिसमें वर्षा जल को संचित किया जाता है।

ड्रिप सिंचाई प्रणाली: मेघालय में, बॉस की ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग किया जाता है जो कि जल संग्रहण के लिए बहुत ही प्रभावी है। इस प्रणाली में, पानी को सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है जिससे पौधों को अधिक जल प्राप्त होता है।

ताजे पानी के स्त्रोत / Sources of fresh water

सूत्रों का कहना है लगभग सभी ताजा पानी के मूल स्रोत है वर्षा से वातावरण के रूप में, धुंध , बारिश और बर्फ । धुंध, बारिश या बर्फ के रूप में गिरने वाले ताजे पानी में वातावरण से घुलने वाली सामग्री और समुद्र और भूमि से सामग्री होती है, जिस पर बारिश वाले बादलों ने यात्रा की है।

वर्षा से: सबसे मुख्य ताजा पानी का स्रोत वर्षा होती है। बादलों में निहित जल बारिश के रूप में पृथ्वी पर गिरता है और इसे वर्षा जल कहा जाता है।

सतह जल: नदियों, झीलों, तालाबों और अन्य सतह जल स्रोतों से भी ताजा पानी प्राप्त होता है। यहाँ से प्राप्त जल को संचित किया जा सकता है और उसका उपयोग किया जा सकता है।

भूजल: भूमि में संग्रहित जल भी ताजा पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह जल बारिश से रिचार्ज हो जाता है और उसे अंततः नदियों, झीलों आदि में जाता है।

बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली / Bamboo Drip Irrigation System

बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली एक प्रभावी और आर्थिक तरीका है जिसमें नदियों और झरनों के जल को सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में, बाँस या बांस के बने पाइपों का उपयोग किया जाता है। ये पाइप जल को संचित करते हैं और फिर उसे कृषि क्षेत्रों में सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।

विशेषताएं:

  • ऊर्जा संरक्षण: यह प्रणाली जल की ऊर्जा को संरक्षित करती है क्योंकि यह जल को सीधे कृषि क्षेत्रों तक पहुँचाती है, जिससे पानी का अधिकांश हानि नहीं होता है।
  • समर्थन: यह प्रणाली खेती के लिए समर्थन करती है, खासकर सूखे के क्षेत्रों में जहां सीमित जल संसाधन होता है।
  • सामर्थ्य: बाँस पाइपों का उपयोग करने से सिंचाई की क्षमता बढ़ जाती है और पानी की अधिक उपयोगीता होती है।
  • आर्थिक लाभ: इस प्रकार की सिंचाई प्रणाली कृषकों को बचत करने में मदद करती है क्योंकि यह जल का उपयोग बहुत ही सावधानीपूर्वक करती है।
  • पर्यावरणीय लाभ: यह प्रणाली पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाती है क्योंकि इसमें जल के उपयोग का बेहतर और सही तरीके से प्रबंधन किया जाता है।

प्राचीन भारत में जल संरक्षण / Water conservation in ancient India

इलाहाबाद में परिष्कृत जल संचयन प्रणाली: पहली शताब्दी ईसा पूर्व में, इलाहाबाद के पास श्रिगंवेरा में गंगा नदी के बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।

चंद्रगुप्त मौर्य के समय में जल संरक्षण: चंद्रगुप्त मौर्य के समय में, बृहत स्तर पर बाँध, झीलें और सिंचाई प्रणालियों का निर्माण किया गया था। यह प्रणालियाँ जल संचयन को बढ़ावा देने के साथ-साथ सिंचाई के उद्देश्य को भी पूरा करती थीं।

उत्कृष्ट सिंचाई कार्य: ओडिशा के कलिंग, नागार्जुनकोंडा में परिष्कृत सिंचाई कार्य पाए गए हैं। इसके अलावा, बेन्नूर (कर्नाटक) और कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में भी उत्कृष्ट सिंचाई प्रणालियाँ थीं।

कृत्रिम झील भोपाल: 11 वीं शताब्दी में भोपाल झील, भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक बनी थी। इसका उद्देश्य बाढ़ के नियंत्रण के साथ-साथ जल संचयन भी था।

हौज खास, दिल्ली: 14 वीं शताब्दी में, इल्तुतमिश ने दिल्ली में सिरी किला क्षेत्र में जल की सप्लाई के लिए हौज खास (एक विशिष्ट तालाब) बनवाया। इससे नहाने का पानी और पीने का पानी सप्लाई किया जाता था।

टाँका / Tanka

टाँका एक पारम्परिक तकनीक है जो थार रेगिस्तान (राजस्थान) में पानी को संग्रहित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक बड़ा गढ़ा होता है जिसमें पानी को इकट्ठा किया जाता है और फिर बाल्टी की मदद से बाहर निकाला जाता है। टाँका मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ही बनाया जाता है।

यहां कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं:

गोलाकार और चौकोर टाँके: टाँका सामान्यत: गोलाकार का होता है, लेकिन वर्तमान में चौकोर टाँके भी बनाए जाते हैं। गोलाकार टाँके आमतौर पर अधिक प्रचलित हैं।

वर्षा जल संचयन: टाँका में वर्षा जल को संग्रहित किया जा सकता है, जो अगली वर्षा ऋतु तक उपयोग के लिए रखा जा सकता है। इससे जल की कमी के समय में पीने का जल उपलब्ध कराया जा सकता है।

उपयोग: टाँका उन इलाकों में बनाया जाता है जहां पानी की कमी होती है, खासकर थार रेगिस्तान में। यह लोगों को सुलभता से पानी पहुंचाता है और जल संरचनाओं की कमी को पूरा करता है।

पालर पानी / Paler water

पालर पानी वह पानी है जो सीधे बरसात से हमें प्राप्त होता है और जो धरातल पर बहते हुए नदियों, तालाबों, और अन्य जल संरचनाओं के माध्यम से रोका जाता है। इस प्रकार के पानी को पालर पानी कहा जाता है।

महत्व:

वर्षा संचयन: पालर पानी का संचयन बारिश के समय निर्मित भूमिगत टैंकों में किया जाता है। यह जल संभावना को बढ़ाता है और जल संकट के समय में उपयोग के लिए उपलब्ध होता है।

पीने योग्य पानी: पालर पानी बारिश के समय जमा होने वाला पीने योग्य पानी होता है। इसे प्रदान करने से लोगों को साफ और सुरक्षित पानी की आपूर्ति होती है।

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: पालर पानी का संचयन प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करता है और जल संवर्धन में मदद करता है। इससे जल संकट को भी दूर किया जा सकता है।

सामाजिक और आर्थिक लाभ: पालर पानी का संचयन सामाजिक और आर्थिक लाभ प्रदान करता है, क्योंकि यह लोगों को पीने और कृषि के लिए जल प्रदान करता है, जिससे उनकी जीवनशैली में सुधार होता है।

राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में इसका महत्व / Its importance in dry areas of Rajasthan

पेयजल का मुख्य स्त्रोत: राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पालर पानी पेयजल का मुख्य स्त्रोत है, विशेष रूप से जब अन्य सभी स्त्रोत सूख जाते हैं। यहाँ रहने वाले लोग पालर पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं जब अन्य स्त्रोत सूख जाते हैं।

शुद्धतम पेयजल: इसे पेयजल का शुद्धतम स्त्रोत माना जाता है क्योंकि यह धरातल पर बहते हुए नदियों और तालाबों से संचित होता है, जो अधिकांश अवशोषित होता है और परिष्कृत होता है।

ठंडा और साफ रखना: राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में, गर्मियों में, पालर पानी भूमिगत कमरों और उनसे जुड़े कमरों को ठंडा, साफ रखता है। यह लोगों को प्राकृतिक स्रोत से स्वच्छ पानी की आपूर्ति करता है और उनके स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है।

भारत देश में जल का अभाव बढ़ने के कारण / Reasons for increasing water scarcity in India

मानसूनी जलवायु: भारत मानसूनी जलवायु का देश है, जिसका मुख्य स्रोत मानसूनी वर्षा होती है। अस्तित्व में बदलाव या अनुपस्थिति में, जल की कमी का असर प्रभावी रूप से महसूस होता है।

असफल मानसून: कई बार मानसून असफल होने से, जल की कमी का खतरा बढ़ जाता है, जिससे जल संसाधनों की स्थिति गंभीर होती है।

सिंचाई की मांग: खेती में और उद्योगों में सिंचाई की मांग बढ़ रही है, जो जल संसाधनों को ज्यादा दबाव में डालता है।

औद्योगिक क्रियाएं: औद्योगिक क्रियाओं और उपयोग के कारण, भूमिगत जल स्तर का गिरना हो रहा है, जो जल संसाधनों को और अधिक कमी में डाल रहा है।

शहरीकरण: शहरीकरण की गति में वृद्धि के साथ, जल संसाधनों के प्रति बढ़ता दबाव होता है। यह सार्वजनिक आपूर्ति को अधिक प्रभावित करता है।

बढ़ती जनसंख्या: बढ़ती जनसंख्या ने जल संसाधनों के लिए अधिक दबाव बढ़ा दिया है, जिससे उनका उपयोग और व्यवस्थित उपयोग हो रहा है।

अत्यधिक सिंचाई के नकारात्मक प्रभाव / Negative effects of excessive irrigation

मिट्टी के लवणीकरण: अत्यधिक सिंचाई से मिट्टी में लवणीकरण होता है, जिससे मिट्टी का पौधों के लिए उपयुक्त रहने वाला पोषणतत्त्व खत्म हो जाता है। यह पौधों के विकास को प्रतिभासित करता है।

मिट्टी की उर्वरता में कमी: अधिक सिंचाई से, मिट्टी की उर्वरता में कमी होती है, जिससे कृषि क्षेत्रों का उत्पादकता में गिरावट आती है।

पानी की कमी: अधिक सिंचाई से पानी की कमी हो जाती है, जो प्राकृतिक जल संसाधनों को प्रभावित करती है। इससे नदियों, झीलों और अन्य जल स्रोतों का संतुलन प्रभावित हो सकता है और पानी की उपलब्धता में कमी हो सकती है।

आशा करते है इस पोस्ट NCERT Class 10 Geography: जल संसाधन Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट 10 Class भूगोल Chapter 3 जल संसाधन Notes in hindi पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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