10 Class History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Notes in Hindi
NCERT Class 10 History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Notes in Hindi. जिसमे हम (ए) 1830 के दशक के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का विकास, फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार। (बी) ग्यूसेप मैज़िनी, आदि के विचार (सी) पोलैंड, हंगरी, इटली, जर्मनी और ग्रीस में आंदोलनों की सामान्य विशेषताएं आदि के बारे में पड़ेंगे ।
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय |
Category | Class 10 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 10 History Chapter 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Notes in Hindi
📚 अध्याय = 1 📚
💠 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय 💠
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
- 1848 में फ्रांसीसी कलाकार फ्रेडरिक सॉरयू ने चार चित्रों की एक श्रृंखला बनाई।
- जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों से मिलकर उसने एक सपनों का संसार रचा।
कल्पना आदर्श (युटोपिया) : एक ऐसे समाज की कल्पना जो इतना आदर्श है कि उसका साकार होना लगभग असंभव होता है।
निरंकुशवाद : ऐसी सरकार या शासन व्यवस्था जिसकी सत्ता पर किसी प्रकार का कोई निरंकुश नहीं होता। इतिहास में ऐसी राजशाही सरकारों को निरंकुश सरकार कहा जाता है जो अत्यंत केंद्रीकृत, सैन्य बल पर आधारित और दमनकारी सरकारें होती थीं।
♦ फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार :-
- 1789 में फ्रांस एक ऐसा राज्य था जिस के संपूर्ण भू-भाग पर एक निरंकुश राजा का आधिपत्य था।
- फ्रांसीसी क्रांति से जो राजनीतिक और संवैधानिक बदलाव हुए उनसे प्रभुसत्ता राजतंत्र से निकल कर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में हस्तांतरित हो गई।
फ्रांसीसी क्रांतिकारियों द्वारा सामुहिक पहचान की भावनाओं को उत्पन्न करने के लिए उठाए गए कदम :-
- पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया जिसे एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त थे।
- फ्रांस के राजध्वज की जगह नया फ्रांसीसी झंडा बनाया गया।
- एस्टेट जेनरल का नाम बदलकर नैशनल असेंबली कर दिया गया। जिसका चुनाव सक्रिय नागरिकों द्वारा किया जाता था।
- राष्ट्र के नाम पर नई स्तुति रची गई, शपथें ली गईं, शहीदों का गुणगान किया गया।
- एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई जिसमें सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाया गया।
- आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए।
- भार तथा नापने की एक समान व्यवस्था की गई।
- क्षैत्रीय बोलियों को महत्व कम देकर पेरिस में बोली जाने वाली फ्रेंच भाषा को राष्ट्र की भाषा मान लिया गया।
- क्रांतिकारियों ने घोषणा की कि उनका लक्ष्य है यूरोप के लोगों को निरंकुश राजाओं के शासन से मुक्त करेंगे।
- फ्रांस की घटनाओं से प्रेरणा पाकर यूरोप के शहरों में जेकोबिन क्लबों की स्थापना होने लगी।
1804 की नागरिक संहिता/नेपोलियन की संहिता :-
- नेपोलियन ने प्रजातंत्र को नष्ट कर राजतंत्र की स्थापना की तथा शासन व्यवस्था को कुशल व तर्कसंगत बनाने के लिए कुछ कानून बनाए जिन्हें नेपोलियन की संहिता कहा जाता है। जो निम्न थे :-
- जन्म से प्राप्त विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया।
- कानून के समक्ष बराबरी व संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित किया गया।
- सामंती व्यवस्था को समाप्त किया गया।
- किसानों को भू-दासत्व और जागीदारी शुल्कों से मुक्ति मिली।
- शहरों में कारीगरों के श्रेणी संघों (गील्ड) से नियंत्रण को हटा दिया गया।
- यातायात और संचार व्यवस्था में सुधार किया गया।
- भार तथा नापने की एक समान व्यवस्था की गई तथा एक राष्ट्रीय मुद्रा बनाई।
- नेपोलियन के जीते हुए क्षेत्रों में स्थानीय लोगों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी।
- प्रारंभ में लोगों ने फ्रांसीसी सेना को स्वतंत्रता का तोहफा देने वाली माना परंतु शीघ्र ही लोगों का उत्साह खत्म हुआ तथा उन्हें नई प्रशासनिक व्यवस्था राजनीतिक स्वतंत्रता के अनुरूप नहीं लगी।
- बढ़े हुए करों से, सेंसरशिप कानूनों से तथा यूरोप को जीतने के लिए जबरन सेना में भर्ती करने से होने वाले नुकसान से लोग नाराज नज़र आने लगे।
♦ यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण :-
- 18वीं शताब्दी में यूरोप में आज की तरह कोई राष्ट्रराज्य नहीं था।
- लोगों में सामूहिक पहचान की भावना नहीं थी। वे अलग-अलग भाषा, संस्कृति व जातीय समूहों के सदस्य थे।
कुलीन और नया मध्य वर्ग :-
- कुलीन वर्ग :- यह वर्ग सामाजिक और राजनीतिक रूप से मजबूत वर्ग था। ये लोग फ्रेंच भाषा बोलने वाले ग्रामीण इलाकों में जायदाद और शहर की हवेलियों के मालिक थे।
- निम्न वर्ग :- इन लोगों की संख्या अधिक थी। इनमें अधिकांश कृषक जमीन पर किरायेदार छोटे काश्तकार और भूदास थे।
- मध्यमवर्ग :- यह समूह औद्योगिक क्रांति के बाद शहरों में उद्योगपतियों, व्यापारियों और सेवा क्षेत्र के लोगों से बना था। इसमें शिक्षित वर्ग, वकील, शिक्षक, व्यापारी, उद्योगपति आदि शामिल थे।
♦ उदारवादी राष्ट्रवाद के क्या मायने थे :-
- उदारवाद शब्द (liberalism) लैटिन भाषा के लिबर (liber) शब्द से बना है। लिबर का अर्थ होता है आजाद या स्वतंत्र।
- मध्यवर्ग के लोगों ने उदारवाद का मतलब व्यक्ति के लिए आजादी कानून के समक्ष बराबरी था।
- इन्होंने जनतंत्र की स्थापना, निरंकुश शासक और पादरी वर्ग के विशेष अधिकारों की समाप्ति, संविधान और संसदीय सरकार की स्थापना का समर्थन किया।
• आर्थिक उदारवाद :- निजी संपत्ति का समर्थन, बाजार से नियंत्रण हटाने का समर्थन, वस्तुओं और पूंजी के आवागमन को सरल व नियंत्रण मुक्त करने के समर्थन में थे।
- नेपोलियन द्वारा 39 राज्यों को मिलाकर एक महासंघ बनाया गया। 1833 में हैम्बर्ग से न्यूरेम्बर्ग जाने पर 11 सीमा शुल्क देने पड़ते थे, जो वस्तु के मूल्य के पांच प्रतिशत थे।
- हर क्षेत्र की अपनी अलग नापतोल व्यवस्था थी जिससे हिसाब लगाने में समय लगता था।
ऐले (elle) :- कपड़े मापने का पैमाना जिसकी जगह के साथ लंबाई घटती बढ़ती थी।
• जॉलवेराइन संघ 1834 :- प्रशा के प्रयासों से शुल्क संघ बनाया गया जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य शामिल थे। इस संघ द्वारा निम्न सुधार करवाए गए।
1. शुल्क अवरोधों को समाप्त कर दिया गया।
2. मुद्राओं की संख्या घटाकर दो कर दी जो पहले तीस थी।
3. रेलवे मार्गों को बढ़ावा दिया गया।
• 1815 के बाद नया रूढ़िवाद :-
- 1815 में नेपोलियन के पराजय के बाद यूरोप की अधिकांश सरकारें रूढ़िवादी भावनाओं से प्रेरित थी।
- रूढ़िवादियों का मानना था कि राज्य और समाज के स्थापित पारम्परिक संस्थाएं जैसे :- राजतंत्र, चर्च, सामाजिक ऊँच-नीच संपत्ति और परिवार को बनाए रखना चाहिए।
- परंतु रूढ़िवादी लोग नेपोलियन द्वारा किए गए परिवर्तनों को हटाना नहीं चाहते थे।
• वियना की संधि 1815 :-
- ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों ने मिलकर नेपोलियन को हराया तथा वियना में ऑस्ट्रिया के चांसलर ड्यूक मैटरनिख की मेजबानी में नेपोलियन द्वारा युद्धों के दौरान किए गए बदलावों को समाप्त करने हेतु 1815 में एक संधि हुई जिसे वियना की संधि कहते हैं।
वियना की संधि के बाद निम्न परिवर्तन हुए :-
1. फ्रांस में पुन: बूर्बों राजवंश की स्थापना हुई।
2. फ्रांस की शक्ति को नियंत्रित करने हेतु उसके टुकड़े कर फ्रांस की सीमा पर कई नए राज्य स्थापित किए गए।
3. नेपोलियन द्वारा बर्खास्त किए गए राजवंशों को पुन: बहाल किया गया।
- 1815 के रूढ़िवादी शासन निरंकुश था जो आलोचना व असहमति को बर्दास्त नहीं करती था।
- सेंसरशिप कानून बनाकर अखबारों, किताबों, नाटकों और गीतों में फ्रांसीसी क्रांति से जुड़ी स्वतंत्रता और मुक्ति की विचारधारा को प्रतिबंधित कर दिया गया।
• क्रांन्तिकारी :-
- 1815 के बाद रूढीवादी सरकार के दमन के भय से उदारवादी- राष्ट्रवादियों को भूमिगत कर दिया गया।
- यूरोपीय राज्यों में क्रांन्तिकारियों को प्रशिक्षण देने और क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार-प्रसार करने हेतु कई गुप्त संगठन बनाए गए हैं।
ज्युसेपी मेत्सिनी :- यह इटली का कांतिकारी था।
- इसका जन्म 1807 में जेनोओ में हुआ।
- मेत्सिनी कार्बोनारी गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। चौबीस साल की आयु में लिगुरिया में क्रांति करने के कारण उसे बहिष्कृत कर दिया गया।
- मेत्सिनी द्वारा दो भूमिगत संगठनों की स्थापना की गयी।
1. मार्सेइ में यंग इटली
2. बर्न में यंग यूरोप
- मेत्सिनी का विश्वास था कि ईश्वर की मर्जी के अनुसार राष्ट्र ही मनुष्यो की प्राकृतिक इकाई थी। अत: इटली छोटे राज्यों और प्रदेशों में नहीं रहकर उसे जोड़कर एकीकृत गणतंत्र राष्ट्र बनाना चाहिए।
♦ क्रांतियों का युग 1830- 1848
- जैसे-जैसे रूढिवादी व्यवस्था मजबूत होने लगी वैसे ही यूरोप के अनेक क्षेत्रों में उदारवाद और राष्ट्रवाद को क्रांति से जोड़कर देखा जाने लगा। इन क्रांतियों का नेतृव्य उदारवादी राष्ट्रवादियों ने किया जो शिक्षित मध्यम वर्गी विशिष्ट लोग थे।
- प्रथम विद्रोह :- फ्रांस में जुलाई 1830 में हुआ। जिसमें बूर्बों राजवंश का अंत हुआ और इसकी जगह संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना की गयी। जिसका अध्यक्ष लुई फिलिप था।
- फ्रांस के विद्रोह का सम्पूर्ण यूरोप पर प्रभाव देखने को मिला।
- मैटरनिख ने एक बार टिप्पणी की कि “जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को जुकाम हो जाता है।”
- जुलाई क्रांति के बाद ब्रसेल्स में विद्रोह हुआ और ब्रसेल्स यूनाइटेड किंगडम आऊफ द नीदरलैंड से अलग हो गया
• यूनान का स्वतंत्रता संग्राम :-
- 15वीं सदी में यूनान ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था।
- 1821 में यूनान ने स्वयं को स्वतंत्र करने के लिए संघर्ष आरम्भ कर दिया।
- कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बताकर प्रशंसा की और मुस्लिम साम्राज्य के विरूद्ध यूनान के संघर्ष के लिए जनमत जुटाया।
- अंग्रेज कवि लार्ड बायरन ने धन इकट्ठा किया और बाद में युद्ध में लड़ने भी गये जहां 1824 में बुखार से उनकी मृत्यु हो गयी।
- 1832 में कुस्तुनतुनिया की संधि के बाद यूनान को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी गयी।
• रूमानी कल्पना और राष्ट्रीय भावना :-
- राष्ट्रवाद का विकास केवल युद्धों और क्षेत्रीय विस्तार से नहीं हुआ। राष्ट्रके विचार के निर्माण में संस्कृति ने एक अहम भूमिका निभाई।
- कला, काव्य, कहानियों-किस्सों और संगीत ने राष्ट्रवादी भावनाओं को गढ़ने और व्यक्त करने में सहयोग दिया।
• रूमानीवाद :- रूमानी कलाकारों और कवियों ने तर्क-वितर्क विज्ञान के महिमा मण्डल की आलोचना की और उसकी जगह भावनाओं, अंतर्दृष्टियों और रहस्यवादी भावनाओं पर जोर दिया।
- उनका प्रयास था कि एक साझा-सामूहिक विरासत की अनुभूति और एक साझा सांस्कृतिक अतीत को राष्ट्र का आधार बनाया जाए।
- जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड जैसे रूमानी चिंतको ने दावा किया कि सच्ची जर्मनी संस्कृति उसके आम लोगों में निहित थी।
- राष्ट्र की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन-काव्य और लोकनृत्यों से प्रकट होती थी। इसलिए लोक संस्कृति के इन स्वरूपों को एकत्र और अंकित करना राष्ट्र के निर्माण की परियोजना के लिए आवश्यक था।
- स्थानीय बोलियों पर बल और स्थानीय लोक-साहित्य को एकत्र करने का उद्देश्य केवल प्राचीन राष्ट्रीय भावनाको वापस लाना नहीं था बल्कि आधुनिक राष्ट्रीय संदेश को ज्यादा लोगों तक पहुंचाना था जिनमें से अधिकांश निरक्षर थे।
• पोलैण्ड :-
- पोलैण्ड का रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया जैसी शक्तियों ने विभाजन कर दिया था।
- पोलैण्ड स्वतंत्र भू क्षेत्र नहीं था फिर भी संगीत और भाषा के जरिए राष्ट्रीय भावना को जीवित रखे हुए था।
- कैरोल कुर्पिस्की ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा और संगीत से गुणगान किया।
- पोलेसेन और माजुरका जैसे लोक नृत्य को पोलैण्ड के राष्ट्र प्रतीकों में बदल दिया।
- रूसी कब्जे के बाद पोलिश भाषा को बल पूर्वक हटाकर रूसी भाषा को लागू किया गया।
- 1831 में रूस के विरोध सशस्त्र विद्रोह हुआ जिस कुचल दिया गया।
- इसके बाद पोलैण्ड के लोगों ने पोलिश भाषा को हथियार बनाया तथा चर्च के आयोजनों और संपूर्ण धार्मिक शिक्षा में पोलिश भाषा का इस्तेमाल किया गया।
• भूख, कठिनाइया और जन विद्रोह :-
- 1830 का दशक यूरोप में भारी कठिनाइयाँ का साल रहा।
- उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पूरे यूरोप में जबरदस्त जनसंख्या वृद्धि हुई, बेरोजगारी बढ़ी।
- ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी शहर जाकर भीड़ से भरी गरीब बस्तियों में रहने लगी।
- औद्योगिक क्रांति के बाद इंग्लैण्ड से आयातीत मशीनी कपड़े के कारण स्थानीय लोगों को कड़ा संघर्ष करना पड़ा।
- कृषि में कमी व फसल खराब होने के कारण अनाज की कीमतों में भारी वृद्धि हुई जिससे शहर और गांव में व्यापक गरीबी फैलने लगी।
- 1845 में सिलेसिया में बुनकरों ने उन ठेकेदारों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था जो उन्हें कच्चा माल देकर निर्मित कपड़ा लेते थे परन्तु दाम बहुत कम थे।
- 1848 में इन समस्या से परेशान होकर लोग पेरिस की सड़कों पर उतर आए तथा मजबूर होकर लुई फिलिप को भागना पड़ा।
- राष्ट्रीय सभा ने गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष की ऊपर सभी वयस्क पुरूषों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी। रोजगार उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय कारखाने स्थापित किए गए।
• 1848 उदारवादियों की क्रांति
- 1848 में जब अनेक यूरोपीय देशों में गरीबी, बेराजगारी और भुखमरी से ग्रस्त किसान-मजदूर विद्रोह कर रहे थे तब उसके समानांतर पढे-लिखे मध्यवर्गो की एक क्रांति भी हो रही थी।
- यूरोप के अन्य भागों में जहाँ अभी तक स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य अस्तित्व में नहीं आए थे जैसे- जर्मनी, इटली पोलैण्ड, ऑस्ट्रा-हंगेरियन साम्राज्य वहाँ के उदारवादी मध्यवर्गों के स्त्री-पुरूषों ने संविधानवाद की माँग को राष्ट्रीय एकीकरण की माँग से जोड दिया।
- यह राष्ट्र्-राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आजादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था।
- जर्मन में राजनीति संगठनों ने फ्रैंकफर्ट शहर में मिल कर एक सर्व-जर्मन नेशनल एसेंबली के पक्ष में मतदान करने का फैसला लिया।
- 18 मई 1848 को, 831, निर्वाचित प्रतिनिधियों ने एक सजे-धजे जुलूस में जा कर फ्रैंकफर्ट संसद में अपना स्थान ग्रहण किया।
- यह संसद सेंट पॉल चर्च में आयोजित हुई।
- इन्होंने जर्मन राष्ट्र के लिए संविधान का प्रारूप तैयार किया।
- राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपनी थी जो संसद के अधीन रहेगा।
- जब प्रतिनिधियों ने प्रशा के राजा फ्रेडरीख विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की पेशकश की तो उसने उसे अस्वीकार कर उन राजाओं का साथ दिया जो निर्वाचित सभा के विरोधी थे।
- संसद में मध्यम वर्ग का प्रभूत्व अधिक था इसलिए मजदूरों तथा कारीगरों की मांगों का विरोध करता था जिससे वे उसका समर्थन खो बैठे।
- अंत में सैनिकों को बुलाया गया और राष्ट्रीय सभा को भंग कर दिया गया।
- महिलाओं ने उदारवादी आंदोलनो में हिस्सा लिया, उन्होंने राजनैतिक संगठनों का निमार्ण किया, अखबार निकाले, राजनैतिक बैठकों में हिस्सा लिया और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया इसके बावजूद महिलाओं को मताधिकार से वंचित रखा गया।
- राजाओं ने क्रांति को शांत करने के लिए कुछ रियायतें देनी प्रारम्भ की क्योंकि उनके समझ में आ गया था कि रियायतों के माध्यम से इनके दमन के चक्र को समाप्त किया जा सकता है।
- हैब्सबर्ग और रूस ने भूदासत्व और बंधुआ मजदूरी समाप्त कर दी गयी।
♦ जर्मनी और इटली का एकीकरण
- जर्मनी- क्या सेना राष्ट्र की निर्माता हो सकती है।
- 1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और क्रांति से अलगाव होने लगा।
- राज्य की सत्ता को बढ़ाने और पूरे यूरोप पर राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के लिए रूढ़िवादियों ने अकसर राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया।
- इसी भावना से प्रेरित होकर जर्मनी इटली एकीकृत राष्ट्र राज्य बने।
- 1848 में मध्यम वर्गीय लोगों ने राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर जर्मन महासंघ के अलग-अलग इलाकों को जोडकर निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र राज्य बनाने का प्रयास किया।
- परन्तु राजतंत्र और सेना की ताकत ने इसे दबा दिया।
• जर्मनी का एकीकरण
- प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया जिसकी पूरी कमान प्रशा के प्रमुख मंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क के हाथों में थी।
- बिस्मार्क ने प्रशा के सेना और नौकरशाही के मदद से जर्मनी के एकीकरण का कार्य प्रारम्भ किया।
- सात वर्ष के दौरान डेनमार्क, ऑस्ट्रिया और फ्रांस के साथ तीन युद्ध में जीत हासिल कर जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया।
- जनवरी 1871 में वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
• इटली का एकीकरण
- 19 वी शताब्दी के मध्य ईटली सात राज्यों में बटा हुआ था। जहां अनेक वंशानुगत राजा तथा बहुराष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य का शासन था।
- केवल एक सार्डिया पीडमॉण्ड में इतालवी राजघराने का शासन था।
- उत्तर में हैब्सबर्ग (ऑस्ट्रिया), केन्द्र में (पोप), दक्षिण में (स्पेन के बूर्बों राजवंश) का शासन था।
- इटली की एकीकरण की प्रक्रिया में निम्न लोगों का योगदान रहा।
1. ज्युसेप मेत्सिनी
2. कावूर
3. ज्यूसेपे गैरीबॉल्डी
4. विक्टर इमेनुएल द्वितीय
• ज्युसेप मेत्सिनी :-
- ये रिपब्लिक पार्टी के प्रमुख थे।
- मेत्सिनी ने यंग इटली नामक संगठन की स्थापना की।
- 1831 और 1839 में असफल क्रांतिकारी विद्रोह किया।
- इस असफल विद्रोह के बाद इटली के एकीकरण की जिम्मेदारी सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के शासक विक्टर इमेनएल द्वितीय पर आ गयी।
• कावूर :-
- विक्टर इमेनएल द्वितीय के मंत्री कावूर जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया जो न तो एक क्रांतिकारी था और नहीं जनतंत्र में विश्वास रखने वाला।
- कावूर फ्रांस के साथ कूटनीतिक संधि की तथा फ्रांस से मिलकर 1859 में ऑस्ट्रिया को हराया।
• ज्यूसेपे गैरीबॉल्डी :-
- ज्यूसेपे गैरीबॉल्डी के नेतृत्व में भारी संख्या में सशस्त्र स्वयंसेवकों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया।
- 1860 में वे दक्षिण इटली और दो सिसिलियों के राज्य में प्रवेश कर गए और स्पेनी शासकों को हटाने के लिए स्थानीय किसानों का समर्थन पाने में सफल रहे।
- 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
- 1870 में पोप शासित रोम को इटली में शामिल कर दिया।
- इटली के अधिकांश लोग निरक्षर थे, वे उदारवादी-राष्ट्रवादी विचारधारा से अंजान थे।
- इन्होंने इटालिया के बारे में कभी सुना ही नहीं था। अधिकांश लोग मानते थे कि ला टालिया विक्टर इमेनुएल की पत्नी थी।
♦ ब्रिटेन की अजीब दास्तान :-
- ब्रिटेन में राष्ट्र राज्य का निर्माण अचानक हुई कोई उथल-पुथल या क्रांति का परिणाम नहीं था। ये लंबी चलने वाली प्रक्रिया का नतीजा था।
- 18वीं शताब्दी के पहले ब्रिटीश राज्य नहीं था।
- ब्रितानी द्वीपसमूह में रहने वाले लोगों – अंग्रेज, वेल्श, स्कॉट या आयरिश की मुख्य पहचान नृजातीय थी।
• नृजातीय :- एक साझा नस्ली, जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि जिसे केाई समुदाय अपनी पहचान मानता है।
- जैसे-जैसे ब्रिटेन धनदौलत, अहमियत और सत्ता में वृद्धि हुई वह द्वीपसमूह के अन्य राष्ट्रों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने में सफल हुआ।
- 1688 में एक लंबे टकराव और संघर्ष के बाद ब्रिटेन संसद ने राजतंत्र से सत्ता छीन ली।
- इसी संसद के माध्यम से एक राष्ट्र राज्य का निर्माण हुआ जिसके केंद्र में ब्रिटेन था।
- 1707 में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच ऐक्ट ऑफ यूनियन नामक समझौता हुआ जिससे यूनाइटेड किंग्डम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन कर गठन हुआ।
- ब्रिटेन के संसद में आंगल सदस्यों का दबदबा रहा । जिससे स्कॉटलैंड की खास संस्कृति और राजनैतिक संस्थाओं को योजनाबद्ध तरीके से चलाया गया।
- स्कॉटलैंड के हाइलैंड्स के लोगों को अपनी गेलिक भाषा बोलने व अपनी राष्ट्रीय पोशाक पहनने से वंचित कर दिया गया।
- कई सारे स्कॉटिश लोगों को वतन छोड़ने हेतु मजबूर किया गया।
• आयरलैंड की स्थिति :-
- आयरलैंड का भी स्कॉटलैंड जैसा हश्र हुआ।
- आयरलैंड में कैथोलिक बहुसंख्यक तथा प्रोटेस्टेट अल्पसंख्यक थे। परंतु अल्पसंख्यक प्रोटेस्टेट ब्रिटेन के सहयोग से बहुसंख्यक कैथोलिक लोगों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने लगे।
- 1798 में वोल्फ टोन और उसकी यूनाइटेड आयरिशमेन की अगुवाई में एक विद्रोह हुआ जिसे दबा दिया गया तथा 1801 में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंग्डम में शामिल कर दिया गया।
- नये ब्रिटेन राष्ट्र में आंगल संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया गया।
- नए ब्रिटेन के प्रतीक-चिह्नों, ब्रितानी झंडा (यूनियन जैक) और राष्ट्रीय गान (गॉड सेव अवर नोबल किंग) को खूब बढ़ावा दिया गया।
• राष्ट्र की दृश्य कल्पना :-
- 18वीं और 19वीं सदी में कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण करके इस प्रश्न को हल किया।
- दूसरे शब्दों में, उन्होंने एक देश को कुछ यूँ चित्रित किया जैसे वह कोई व्यक्ति हो।
- उस समय राष्ट्रों को नारी भेष में प्रस्तुत किया जाता था।
- राष्ट्र को व्यक्ति का जामा पहनाते हुए जिस नारी रूप को चुना गया वह असल जीवन में कोई खास महिला नहीं थी।
- यह तो राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप प्रदान करने का प्रयास था। यानी नारी की छवि राष्ट्र का रूपक बन गई।
• रूपक :- जब किसी अमूर्त विचार (जैसे लालच, ईर्ष्या, स्वतंत्रता, मुक्ति) को किसी व्यक्ति या किसी चीज के जरिए इंगित किया जाता है। एक रूपकात्मक कहानी के दो अर्थ होते हैं – एक शाब्दिक और एक प्रतीकात्मक।
- फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपक का प्रयोग किया।
- फ्रांस में स्वतंत्रता की देवी के रूप में कलाकारों द्वारा मारीआन की छवि गढ़ी गई। उसकी विशेषता लिबर्टी और गणराज्य से ली गई।
- मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक चौकों पर लगाई गईं ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोग उससे तादात्म्य स्थापित कर सकें। मारीआन की छवि सिक्कों और डाक टिकटों पर अंकित की गई।
- जर्मन राष्ट्र का रूपक जर्मेनिया थी।
- जर्मेनिया को बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहने दिखाया गया क्योंकि बलूत वीरता का प्रतीक था।
• प्रतीकों के अर्थ :-
प्रतीक | अर्थ |
टूटी हुई बेड़ियाँ | आज़ादी मिलना |
बाज-छाप कवच | जर्मन साम्राज्य की प्रतीक-शक्ति |
बलूत पत्तियों का मुकुट | बहादुरी |
तलवार | मुकाबले की तैयारी |
तलवार पर लिपटी जैतून की डाली | शांति की चाह |
काला, लाल और सुनहरा तिरंगा | 1848 में उदारवादी-राष्ट्रवादियों का झंडा, जिसे जर्मन राज्यों के ड्यूक्स ने प्रतिबंधित घोषित कर दिया |
उगते सूर्य की किरणें | एक नए युग का सूत्रपात |
♦ राष्ट्रवाद और साम्राज्य :-
- 19वीं सदी की अंतिम तक राष्ट्रवाद का वह आदर्शवादी उदारवादी-जनतांत्रिक स्वभाव नहीं रहा जो सदी के प्रथम भाग में था। अब राष्ट्रवाद सीमित लक्ष्यों वाला संकीर्ण सिद्धांत बन गया।
- इस बीच के दौर में राष्ट्रवादी समूह एक-दूसरे के प्रति अनुदार होते चले गए और लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
- साथ ही प्रमुख यूरोपीय शक्तियों ने भी अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधीन लोगों की राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया।
- 1871 के बाद यूरोप के बाल्कन क्षेत्र में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव था।
• बाल्कन क्षेत्र :- आधुनिक रोमानिया, बुल्गेरिया, अल्बेनिया यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मॉन्टिनिग्रो शामिल थे।
- बाल्कन क्षेत्र के निवासियों को स्लाव कहा जाता था।
- बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था।
- बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों को फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति काफी विस्फोटक हो गई।
- 19वीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आतंरिक सुधारों के जरिए मजबूत बनना चाहा था किंतु इसमें इसे बहुत कम सफलता मिली।
- एक के बाद एक उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके चंगुल से निकल कर स्वतंत्रता की घोषणा करने लगी।
- बाल्कन लोगों ने आजादी या राजनीतिक अधिकारों के अपने दावों को राष्ट्रीयता का आधार दिया।
- बाल्कन राष्ट्रों ने इतिहास का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया कि वे कभी स्वतंत्र थे किंतु तत्पश्चात विदेशी शक्तियों ने उन्हें अधीन कर लिया।
- अत: बाल्कन क्षेत्र के विद्रोही राष्ट्रीय समूहों ने अपने संघर्षों को लंबे समय से खोई आजादी को वापस पाने के प्रयासों के रूप में देखा।
- बाल्कन राज्य एक-दूसरे से भारी ईर्ष्या करते थे और हर एक राज्य अपने लिए ज्यादा से ज्यादा इलाका हथियाने की उम्मीद रखता था।
- परिस्थितियाँ और अधिक जटिल इसलिए हो गई क्योंकि बाल्कन क्षेत्र में बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा होने लगी।
- इस समय यूरोपीय शक्तियों के बीच व्यापार, और उपनिवेशों के साथ नौसैनिक और सैन्य ताकत के लिए गहरी प्रतिस्पर्धा थी।
- रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रो-हंगरी की हर ताकत बाल्कन पर अन्य शक्तियों की पकड़ को कमजोर करके क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थीं। इससे इस इलाके में कई युद्ध हुए और अंतत: प्रथम विश्व युद्ध हुआ।
- यूरोप के औपनिवेशिक राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का विरोध शुरू कर दिया।
- साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन राष्ट्रवादी थे और स्वतंत्र राष्ट्र राज्य निर्माण करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
- यह सभी सामूहिक राष्ट्रीय एकता से प्रेरित थे और प्रत्येक जगह लोगों ने अपना विशिष्ट राष्ट्रवाद विकसित किया।
- यह विचार कि समाजों को राष्ट्र-राज्य में गठित कया जाना चाहिए, अब स्वाभाविक और सार्वभौम मान लिया गया।
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