NCERT Class 10 राजनीति विज्ञान के नोट्स: जाति, धर्म और लैंगिक मसले को विस्तार से समझें! सरल हिंदी में लिखे इन नोट्स के साथ सामाजिक विभाजन, राजनीति में इनका प्रभाव, एवं संवैधानिक प्रावधानों के बारे में जानें। इस महत्वपूर्ण अध्याय में बेहतर अंक पाने के लिए PDF अभी डाउनलोड करें!
Table of Contents
10 Class लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 3 जाति धर्म और लैंगिक मसले Notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | Political science |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | जाति धर्म और लैंगिक मसले |
Category | Class 10 Political science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
सामाजिक विज्ञान (नागरिक शास्त्र) अध्याय-3: जाति धर्म और लैंगिक मसले
श्रम का लैंगिक विभाजन / Gender division of labor
परिभाषा: श्रम का लैंगिक विभाजन उस तरीके को दर्शाता है जिसमें काम के विभिन्न प्रकार को लिंग के आधार पर बांटा जाता है।
प्रभाव: इस विभाजन से नारी श्रमिकों को मुख्य रूप से घर के अंदर का काम अत्यधिक मिलता है, जोकि अधिकतर निर्धन परिवारों में होता है।
समाजिक परिणाम: इसके कारण समाज में लैंगिक समानता की कमी होती है और नारियों के समूह में स्थिति कमजोर होती है।
उदाहरण: उदाहरण के तौर पर, अधिकांश गरीब परिवारों में महिलाएं घर के काम, जैसे कि रसोई, बर्तन धोना, और बच्चों की देखभाल, करती हैं, जबकि पुरुषों को बाहर के काम में लगाया जाता है।
श्रम के लैंगिक विभाजन / Gender division of labor
परिभाषा: यह एक प्रणाली है जिसमें घर के अंदर के सभी काम परिवार की महिलाओं के द्वारा किया जाता है, जबकि पुरुषों से उम्मीद की जाती है कि वे पैसा कमाने के लिए घर से काम करें।
विभाजन की अवधारणा: यह अवधारणा जैविक बनावट पर नहीं, बल्कि सामाजिक अपेक्षाओं और रूढ़िवादों पर आधारित है।
प्रभाव: इस विभाजन से नारी श्रमिकों को मुख्य रूप से घर के अंदर का काम अत्यधिक मिलता है, जोकि उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से पीछे धकेलता है।
नारीवादी / Feminist
परिभाषा: नारीवादी एक आंदोलन है जो नारी और नर (महिला और पुरुष) के लिए समान अधिकारों की मांग करता है, और नारी सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करता है।
उद्देश्य: इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य है नारीवादी सोच और सामाजिक व्यवस्था में नारियों के अधिकारों को बढ़ाना।
कार्रवाई: नारीवादी संघर्ष में समान वेतन, विद्या, स्वास्थ्य, और अन्य क्षेत्रों में नारियों के अधिकारों की सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई करता है।
प्रमुख धारावाहिकता: नारीवादी के धारावाहिकता में समाज में समानता, न्याय, और सशक्तिकरण की मांग शामिल है। यह सोच नारियों के साथ समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए लड़ती है।
नारीवादी आंदोलन / Feminist movement
परिभाषा: नारीवादी आंदोलन महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने, और उनके व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन में बराबरी की माँग करते हैं।
कार्रवाई: नारीवादी आंदोलन महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और समानता के लिए काम करता है। इसमें महिलाओं के लिए न्याय, स्वतंत्रता, और समानता की मांग शामिल है।
मुख्य आदान-प्रदान: नारीवादी आंदोलन में महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक स्थिति में सुधार के लिए सामाजिक जागरूकता, आंदोलन, और अधिकारों की माँग की जाती है।
उदाहरण: महिला अधिकारों के लिए अंग्रेजी, अमेरिकी, और भारतीय नारी आंदोलन उदाहरण हैं। इन आंदोलनों ने महिलाओं के लिए शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग की है।
लैंगिक असमानता के कारण / Due to gender inequality
साक्षरता दर: महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में कम होने से, उन्हें उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसरों में पुरुषों की तुलना में कम मिलता है।
नौकरियां: उच्च पदों पर महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम होता है, जो कि उन्हें समाज में बराबरी के अवसरों से वंचित करता है।
मजदूरी: महिलाओं को कम वेतन दिया जाता है, जो कामकाजी में लैंगिक असमानता का प्रमुख कारण है।
लिंग अनुपात: लड़कों के प्रति हजार लड़कियों की कमी, जो कि जनसंख्या में लैंगिक असमानता को बढ़ाता है।
सामाजिक बुराई: महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थानों की कमी, छेड़खानी, दहेज, और यौन उत्पीड़न की समस्याएं, सामाजिक बुराई के कारण हैं।
प्रतिनिधित्व: निरंतर महिलाओं की प्रतिनिधित्व में कमी, जो कि संविधानिक और राजनीतिक स्तर पर उनकी समानता को प्रभावित करती है।
पितृ-प्रधान: इस व्यवस्था में पिता को अधिक महत्व दिया जाता है, जो लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देता है और महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करता है।
धर्म , सांप्रदायिक और राजनीति
Religion, Communalism and Politics
धर्मनिरपेक्ष शासन :-
राज्य राजनीति में धर्म का अस्तित्व नहीं: धर्म को राज्य राजनीति या गैर-धार्मिक मामलों से दूर रखा जाता है।
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता: भारतीय संविधान ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में नहीं माना है।
अन्य देशों का उदाहरण: श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम, और इंग्लैंड में ईसाई धर्म को राजकीय धर्म के रूप में माना जाता है।
संविधान की धर्मनिरपेक्षता: भारतीय संविधान ने किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं दिया है और सभी नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन और प्रचार करने की आजादी दी है।
धर्मनिरपेक्षता का महत्व: संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी भी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है और समाज में धार्मिक सहिष्णुता और समानता को बढ़ावा देता है।
नारीवादी आंदोलन की विशेषताएँ
Characteristics of Feminist Movement
महिलाओं के राजनैतिक अधिकारों की माँग: नारीवादी आंदोलन महिलाओं के राजनैतिक अधिकारों की पकड़ को मजबूत करता है और उनके लिए समान सत्ता की माँग करता है।
घर की चार-दीवारी के विरोध: इस आंदोलन में महिलाओं को घर के बाहर भी समाज में अपनी जगह बनाने का अधिकार मांगा जाता है और उनके लिए घर के कामों का बोझ डालने के खिलाफ विरोध किया जाता है।
मातृसत्तात्मक परिवार की माँग: यह आंदोलन पितृसत्तात्मक परिवार को मातृसत्तात्मक बनाने की दिशा में अग्रसर है, जिसमें महिलाओं को समाज में अधिक अधिकार और स्वतंत्रता मिलती है।
महिलाओं की शिक्षा और कर्मिक निर्वाह का समर्थन: इस आंदोलन में महिलाओं की शिक्षा और उनके कर्मिक निर्वाह को बढ़ाने का समर्थन किया जाता है, जिससे उनका समाज में समान भागीदारी हो सके।
शोषण के खिलाफ विरोध: नारीवादी आंदोलन महिलाओं के हर प्रकार के शोषण और अत्याचार के खिलाफ विरोध करता है और उन्हें समाज में समानता और आत्मनिर्भरता का अधिकार प्रदान करता है।
पितृ प्रधान समाज / Patriarchal society
पितृ प्रधान समाज एक प्रकार का सामाजिक व्यवस्था है जिसमें परिवार का मुखिया पिता होता है और उन्हें औरतों की तुलना में अधिक अधिकार होता है। इस समाज में पिता परिवार के सभी निर्णयों का अधिकारी होता है और उनकी समाज में ऊंची स्थिति होती है। महिलाओं को कम समाजिक, आर्थिक और राजनैतिक अधिकार होते हैं।
महिलाओं का दमन
Oppression of women
महिलाओं का दमन एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है जो उन्हें असमानता, उत्पीड़न और अधिकारों की आपातकालीन प्रतिबंधन में डालता है। यहाँ निम्नलिखित कुछ मुख्य कारक हैं जो महिलाओं का दमन को बढ़ावा देते हैं:
- साक्षरता की दर: महिलाओं की साक्षरता की दर पुरुषों की तुलना में कम होती है, जिससे उन्हें शिक्षा और ज्ञान की कमी का सामना करना पड़ता है।
- असमान वेतन और स्थिति: महिलाओं को ऊँचे पदों और वेतन के अधिकार में असमानता का सामना करना पड़ता है, जो उनके आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्थिति को प्रभावित करता है।
- लिंग अनुपात: भारत में अभी भी प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या कम है, जो लिंग अनुपात के रूप में दिखता है और इससे महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- घरेलू और सामाजिक उत्पीड़न: महिलाओं को घरेलू और सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जैसे कि उनकी स्वतंत्रता और सुरक्षा का अभाव।
- अधिकारों में कम भागीदारी: महिलाओं की जन प्रतिनिधि संस्थाओं में कम भागीदारी या प्रतिनिधित्व होता है, जिससे उन्हें न्याय और अधिकारों की आपातकालीन प्रतिबंधन मिलता है।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता में कमी: महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता पुरुषों की तुलना में कम होती है, जिससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता का पूरा लाभ नहीं मिलता।
महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व
Political representation of women
महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो उन्हें समाज में समानता और प्रतिष्ठा की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है। निम्नलिखित कुछ प्रमुख विशेषताएँ महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को संघटित और सुसंगत बनाती हैं:
- लोकसभा और विधान सभा में महिला प्रतिनिधित्व: भारत में महिला सांसदों का प्रतिनिधित्व अब बढ़ रहा है, लेकिन यह अभी भी प्रतिनिधित्व के लिए पूर्ण रूप से पर्याप्त नहीं है।
- राज्य सभाओं में महिला प्रतिनिधित्व: राज्य सभाओं में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है, जो राज्यों की विधान सभाओं में उनकी सामाजिक और राजनीतिक भागीदारी को प्रभावित करता है।
- असमानता का सामना: महिलाओं को राजनीतिक नेतृत्व की प्राप्ति में असमानता का सामना करना पड़ता है, जैसे कि उन्हें पुरुषों की तुलना में अधिक संघर्ष करना पड़ता है।
- उत्पीड़न और सामाजिक प्रतिबंधन: महिलाओं को राजनीतिक अभिनेताओं के रूप में उत्पीड़न और सामाजिक प्रतिबंधन का सामना करना पड़ सकता है, जो उनके राजनीतिक विकास को रोक सकता है।
- समाजिक परिवर्तन की आवश्यकता: महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के बढ़ते हुए अहम होने से समाज में समानता और उन्नति की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है।
विधायिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार के लिए क्या किया जा सकता है?
What can be done to improve women’s representation in the legislature?
सीटों का आरक्षण: महिलाओं के लिए विधायिका में सीटों का आरक्षण कानूनी रूप से बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे महिलाओं को प्रतिनिधित्व की संख्या में वृद्धि होगी।
प्रतिनिधित्व की शैक्षिक योग्यता: महिलाओं को प्रतिनिधित्व के लिए शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए, जिससे उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने का मार्ग सुगम हो।
संज्ञानशीलता बढ़ावा: महिलाओं को राजनीतिक नेतृत्व में प्रोत्साहित करने और उन्हें संज्ञानशील बनाने के लिए शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है।
नेतृत्व के लिए समर्थन: महिलाओं को नेतृत्व के लिए समर्थन प्रदान किया जा सकता है, जैसे कि नेतृत्व विकास के लिए आर्थिक सहायता, मार्गदर्शन और मेंटरिंग की सुविधा।
जागरूकता और शिक्षा: महिलाओं को राजनीतिक प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक करने और उन्हें राजनीतिक शिक्षा उपलब्ध कराने के माध्यम से उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है।
सामाजिक परिवर्तन की दिशा: महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने से समाज में समानता और उन्नति की दिशा में सामाजिक परिवर्तन किया जा सकता है।
भारत सरकार के द्वारा नारी असमानता को दूर करने के लिए उठाए गए कदम
Steps taken by the Government of India to eliminate women’s inequality
दहेज को अवैध घोषित करना: सरकार ने दहेज को अवैध घोषित करके इस प्रथा को रोकने के लिए कठोर कानूनी कार्रवाई की है।
पारिवारिक सम्पत्तियों में स्त्री पुरुष को बराबर हक: सम्पत्ति के विभाजन में स्त्री पुरुष को बराबर हिस्सा मिलने के लिए कई कानूनी सुधार किए गए हैं।
कन्या भ्रूण हत्या को कानूनन अपराध घोषित करना: सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या को एक अपराध के रूप में घोषित करके इसे रोकने के लिए कठोर कानूनी कार्रवाई की है।
समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक का प्रावधान: सरकार ने समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक का प्रावधान करके महिलाओं को उनके काम की मान्यता और सम्मान प्रदान किया है।
नारी शिक्षा पर विशेष जोर देना: सरकार ने नारी शिक्षा को प्राथमिकता देककर महिलाओं को शिक्षित बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की है।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं जैसी योजना: सरकार ने बेटियों के जीवन को बेहतर बनाने और उन्हें शिक्षित करने के लिए “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाओं की शुरुआत की है।
धर्म को राजनीति से कभी अलग नहीं किया जा सकता। महात्मा गाँधी ने ऐसा क्यों कहा?
Religion can never be separated from politics. Why did Mahatma Gandhi say this?
महात्मा गांधी ने कहा कि धर्म को राजनीति से कभी अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके अनुसार धर्म और राजनीति दोनों ही मानवीय जीवन के प्रमुख पहलु हैं।
उन्होंने धर्म को केवल हिंदू धर्म या इस्लाम जैसे विशेष धर्मों से सीमित नहीं किया, बल्कि उन्होंने उसे मानवीयता के अद्वितीय मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धांत माना।
उनके अनुसार, राजनीति को धर्म से लिए गए नैतिक मूल्यों द्वारा निर्देशित होना चाहिए, जिससे समाज में न्याय, समानता, और सहानुभूति की भावना उत्पन्न हो सके। इससे धर्म और राजनीति एक-दूसरे के लिए सहायक और पूरक बन सकते हैं, जिससे समाज का समृद्धि और समरस्थता हो सके।
पारिवारिक कानून / Family Law
पारिवारिक कानून उन कानूनों को संदर्भित करता है जो विवाह, तलाक, गोद लेना, उत्तराधिकार, और अन्य संबंधित पारिवारिक मसलों को व्यवस्थित करते हैं। ये कानून समाज में पारिवारिक संबंधों को सुनिश्चित करने और विवादों को हल करने के लिए होते हैं।
साम्प्रदायिकता / Communalism
धार्मिक या जातीय भेदभाव: साम्प्रदायिकता धार्मिक या जातीय पहचान के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव को बढ़ावा देती है। यह एक विभाजक तत्व होता है जो समाज को विभाजित कर सकता है।
संघर्ष और हिंसा: साम्प्रदायिकता लोगों के बीच संघर्ष और भयानकता को बढ़ा सकती है, जिससे सामाजिक असमानता और हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
समूहों की अलगाववादिता: साम्प्रदायिकता समाज में अलगाववाद को प्रोत्साहित कर सकती है, जो विभिन्न समूहों के बीच विभाजन और द्वेष को बढ़ा सकता है।
सामाजिक असमानता: यह विभाजन और अलगाववाद के लिए आम रूप से जिम्मेदार होती है, जिससे सामाजिक असमानता और अधिकारों की अभाववादिता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
सांप्रदायिक हिंसा: साम्प्रदायिकता कई बार हिंसात्मक परिणामों में सामाजिक और राजनीतिक हिंसा के रूप में परिणाम दे सकती है
सांप्रदायिक राजनीति / Communal politics
1. परिचय:
- साम्प्रदायिक राजनीति का अर्थ और महत्व समझाएं।
2. मुख्य विशेषताएँ:
- साम्प्रदायिकता की परिभाषा और इसके विभिन्न पहलुओं की विस्तार से व्याख्या करें।
- साम्प्रदायिकता के कारण, प्रकार, और प्रभावों पर ध्यान दें।
3. साम्प्रदायिकता के प्रकार:
- धार्मिक साम्प्रदायिकता और जातिगत साम्प्रदायिकता के बीच अंतर को स्पष्ट करें।
- इन दोनों के प्रमुख उदाहरणों पर चर्चा करें।
4. साम्प्रदायिकता का प्रभाव:
- साम्प्रदायिकता के प्रभावों पर विचार करें, जैसे कि सामाजिक और आर्थिक असमानता और संघर्ष।
- साम्प्रदायिक हिंसा के उदाहरणों को उजागर करें।
5. साम्प्रदायिक राजनीति के पक्ष:
- सकारात्मक पक्षों को उजागर करें, जैसे कि सामाजिक एवं आर्थिक विकास के प्रोत्साहन में सामुदायिक संगठनों का योगदान।
6. साम्प्रदायिक राजनीति के खतरे:
- साम्प्रदायिक राजनीति के नकारात्मक पक्षों को समझाएं, जैसे कि सामुदायिक बंधनों के विस्तार और अलगाव।
- इसके संप्रेषणों के प्रमुख उदाहरण प्रस्तुत करें।
7. समापन:
- साम्प्रदायिकता के प्रभावों के साथ निपटने के लिए उपायों पर चर्चा करें, जैसे कि समझौता और सामाजिक समरसता की बढ़ती महत्ता।
भारतीय संदर्भ में सांप्रदायिकता का विकास
Development of communalism in Indian context
1. अंग्रेजों का आगमन:
- अंग्रेजों के आगमन के साथ, उनका उपनिवेशवादी दृष्टिकोण भारतीय समाज में प्रभावी रूप से प्रवेश किया।
- उन्होंने धर्म, भाषा, और संस्कृति के आधार पर भेदभाव को प्रोत्साहित किया।
2. स्वतंत्रता के बाद का विभाजन:
- 1947 में भारत का विभाजन हुआ, जिससे हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ा।
- विभाजन के पीछे सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक कारण थे जो साम्प्रदायिक विभाजन को बढ़ावा दिया।
3. संघर्ष के कारण:
- साम्प्रदायिकता और सामाजिक संघर्ष ने भारतीय समाज को विभाजित किया।
- इसके परिणामस्वरूप, समुदायों के बीच विरोध और हिंसा बढ़ी।
4. समझौते की कोशिश:
- स्वतंत्रता के बाद, सरकार ने साम्प्रदायिक संघर्ष को सुलझाने के लिए कई प्रयास किए।
- इनमें समाज में सामंजस्य और समरसता को बढ़ावा देने के उपाय शामिल थे।
5. नागरिक समाज का उत्थान:
- नागरिक समाज के उत्थान के साथ, साम्प्रदायिक भेदभाव कम होता गया।
- लोगों के बीच समझौता और एकता के माध्यम से, समाज में सामंजस्य का अधिक उत्थान हुआ।
साम्प्रदायिक राजनीति के विभिन्न रूप
Various forms of communal politics
कट्टर पंथी विचारधारा वाले लोग:
- ये लोग अपने धार्मिक विचारों और अपने सामाजिक मान्यताओं के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
- वे अक्सर अपने धार्मिक मतों को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करते हैं।
धार्मिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण:
- राजनीतिक दल धार्मिक आधार पर अपने मतों को ध्रुवीकृत करते हैं ताकि वे अपने समर्थकों को जोड़ सकें।
धर्म के आधार पर लोगों को चुनाव में प्रत्याशी घोषित करना:
- राजनीतिक दल अक्सर धर्म के आधार पर चुनाव में प्रत्याशियों को चुनते हैं ताकि वे धार्मिक समुदायों का समर्थन प्राप्त करें।
साम्प्रदायिक हिंसा और खून खराबा:
- साम्प्रदायिक राजनीति के दौरान अक्सर सामूहिक हिंसा और खूनखराबा देखा जाता है, जिसमें अलग-अलग समुदायों के लोग आपस में भिड़ जाते हैं।
साम्प्रदायिक दिशा में राजनीति की गतिशीलता:
- साम्प्रदायिक राजनीति में दलों की गतिशीलता धर्म, जाति, और साम्प्रदायिक मुद्दों पर निर्भर करती है।
साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीतिक दलों का अलग-अलग खेमों में बँट जाना:
- कई देशों में साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीतिक दलों का अलग-अलग खेमों में बँट जाना देखा जाता है, जैसे आयरलैंड में नेशनलिस्ट और यूनियनिस्ट पार्टियां।
साम्प्रदायिकता को दूर करने की विधियाँ
Methods to remove communalism
शिक्षा द्वारा:
- समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, और इंटरनेट: सामाजिक संदेशों को प्रसारित करने के लिए सामाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, और इंटरनेट का सहारा लिया जा सकता है।
- शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा: शिक्षा के माध्यम से समाज को साम्प्रदायिकता के खिलाफ उत्साहित किया जा सकता है। स्कूल और कॉलेजों में धार्मिक सहिष्णुता की महत्ता को समझाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है।
प्रचार द्वारा:
- समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन: सामाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, और इंटरनेट के माध्यम से सामाजिक संदेशों को प्रसारित करने के लिए सामाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, और इंटरनेट का सहारा लिया जा सकता है।
- सामुदायिक सभाएं: समुदाय में आयोजित सभाएं और आयोजनों के माध्यम से साम्प्रदायिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- सामाजिक मीडिया: सामाजिक मीडिया के माध्यम से सामाजिक संदेशों को विस्तार से प्रसारित किया जा सकता है। लोगों को साम्प्रदायिक सहिष्णुता की महत्ता के बारे में जागरूक किया जा सकता है।
धर्मनिरपेक्षता / Secularism
धर्मनिरपेक्षता एक व्यवस्था है जिसमें राज्य धर्म से अभियुक्त नहीं होता। इस व्यवस्था में सभी धर्मों को समान महत्व दिया जाता है और नागरिकों को किसी भी धर्म को अपनाने की आजादी होती है।
विशेषताएँ:
- राज्य का धार्मिक निष्पक्षता: धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में, राज्य ने कोई आधिकारिक धर्म नहीं होता। यह सभी धर्मों को समान रूप से सम्मान और सहायता प्रदान करता है।
- नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता: धर्मनिरपेक्षता के अंतर्गत, नागरिकों को किसी भी धर्म को अपनाने या अपनाने से इनकार करने की आजादी होती है।
- समानता का सिद्धांत: इस व्यवस्था में, सभी धर्मों के प्रति समानता का सिद्धांत अपनाया जाता है, जिससे समाज में सामाजिक एवं धार्मिक सहिष्णुता की भावना को प्रोत्साहित किया जाता है।
- न्यायाधिकरण की स्वतंत्रता: धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में, न्यायाधिकरण को धर्म के आधार पर किसी भेदभाव की अनुमति नहीं होती। न्यायिक निर्णय धर्म से मुक्त होते हैं और केवल कानून के आधार पर किए जाते हैं।
धर्मनिरपेक्ष शासन / Secular governance
धर्मनिरपेक्ष शासन एक व्यवस्था है जिसमें राजनीतिक शक्ति किसी विशेष धर्म या धार्मिक सिद्धांत को अपनाने या प्रोत्साहित करने से बचती है। इस शासन व्यवस्था में, सभी धर्मों के प्रति समानता की भावना होती है और धार्मिक स्वतंत्रता का उत्तरदायित्व सरकार का होता है।
विशेषताएँ:
- संविधानिक धर्मनिरपेक्षता: भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को प्रोत्साहित करता है और किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
- धार्मिक स्वतंत्रता: इस व्यवस्था में, नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की पूरी आजादी होती है।
- धार्मिक भेदभाव के खिलाफ: संविधान धार्मिक भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है और समाज में धार्मिक समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
- न्यायिक अधिकार: इस व्यवस्था में, न्यायिक संस्थान को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार होता है और वे धर्म के आधार पर किसी भेदभाव को नहीं स्वीकार करते।
- जातिगत भेदभाव के खिलाफ: संविधान में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव का निषेध किया गया है और समाज में समानता की भावना को बढ़ावा दिया गया है।
भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य बनाने वाले विभिन्न प्रावधान
Various provisions making India a secular state
राजकीय धर्म की अभाव: भारतीय संविधान में किसी भी राजकीय धर्म को मान्यता नहीं दी गई है। सरकार को किसी धर्म को प्राथमिकता नहीं देनी होती है।
समान महत्व देना: भारतीय संविधान में सभी धर्मों को समान महत्व दिया गया है। कोई भी धर्म या सम्प्रदाय सरकार द्वारा प्रोत्साहित या विरोधित नहीं किया जाता है।
धार्मिक स्वतंत्रता: प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता होती है। किसी भी धर्म को अपनाने या छोड़ने का अधिकार संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है।
धार्मिक भेदभाव के खिलाफ: भारतीय संविधान धार्मिक भेदभाव को असंवैधानिक घोषित करता है। कोई भी व्यक्ति धार्मिक कारणों पर भेदभाव किया जाना या किसी धर्म के प्रति अन्याय किया जाना संविधान द्वारा मना है।
जातिवाद / Casteism
जातिवाद एक सामाजिक प्रथा है जिसमें लोगों को उनकी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है। यह व्यक्ति के अधिकार, सामाजिक स्थिति, और उनकी समाजिक या आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
वर्ण व्यवस्था / Varna system
जातिवाद का एक प्रमुख रूप वर्ण व्यवस्था है, जिसमें समाज को चार वर्णों में विभाजित किया जाता है: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। यह वर्ण व्यवस्था किसी व्यक्ति के कार्य और स्थिति को उसके जाति के आधार पर निर्धारित करती है।
आधुनिक भारत में जाति और वर्ण व्यवस्था के कारण हुए परिवर्तन
Changes caused by caste and varna system in modern India
आर्थिक विकास: भारतीय समाज में आर्थिक विकास के साथ, जाति और वर्ण व्यवस्था में भी परिवर्तन आया है। आर्थिक सुधार ने लोगों को नई व्यावसायिक और सामाजिक अवसरों का लाभ उठाने में मदद की है।
बड़े पैमाने पर शहरीकरण: शहरीकरण की प्रक्रिया ने जाति और वर्ण व्यवस्था को परिवर्तित किया है। शहरी क्षेत्रों में लोगों को धर्म, जाति, और वर्ण के आधार पर परिभाषित नहीं किया जाता, जिससे समाज में समानता बढ़ी है।
साक्षरता और शिक्षा का विकास: साक्षरता और शिक्षा के स्तर में वृद्धि ने जाति और वर्ण व्यवस्था को परिवर्तित किया है। शिक्षित लोग अपने अधिकारों को जानने और उन्हें प्रयोग करने में सक्षम होते हैं, जिससे समाज में असमानता कम होती है।
व्यावसायिक गतिशीलता: व्यावसायिक गतिशीलता के साथ, लोगों के बीच सामाजिक और आर्थिक संबंधों में बदलाव आया है। व्यवसायिक गतिशीलता ने सामाजिक वर्गों को आपस में जोड़ा और समानता को प्रोत्साहित किया है।
गांव में जमींदारों की स्थिति का कमजोर होना: गांवों में जमींदारों की स्थिति में कमजोरी आई है और किसानों की समृद्धि में वृद्धि हुई है। यह अन्याय के प्रति जागरूकता बढ़ाने और सामाजिक समानता को प्रोत्साहित करने में मदद करता है।
जाति के अंदर राजनीति / Politics within caste
जाति के आधार पर चुनाव स्ट्रैटेजी: देश के किसी भी चुनाव क्षेत्र में एक जाति के बहुमत को प्राप्त करने के लिए, पार्टियों को विभिन्न जातियों और समुदायों के साथ संवाद स्थापित करना पड़ता है।
जातिगत वोट बैंक: कई बार, किसी जाति या समुदाय के लोग किसी विशेष पार्टी को वोट करते हैं, जिससे उस पार्टी को उस जाति का ‘वोट बैंक’ मिलता है।
जातिगत उम्मीदवार: किसी चुनाव क्षेत्र में जाति के आधार पर प्रभुत्व को ध्यान में रखते हुए, पार्टियों को उम्मीदवार चुनने में समस्या होती है।
सत्तारूढ़ दलों की राजनीतिक चाल: सत्ताधारी दल अक्सर जातिगत समुदायों को साथ लेने की कोशिश करते हैं ताकि वे अपना पूर्ण चुनावी पैमाना हासिल कर सकें।
नए जातिगत गठबंधन: आधुनिक राजनीतिक मंच पर, आंगड़ा और पिछड़ा जाति जैसे नए जातिगत गठबंधन उत्पन्न हो रहे हैं, जो राजनीतिक प्रक्रिया में नए दिशानिर्देश प्रदान कर रहे हैं।
2011 के अनुसार भारत में धार्मिक समुदाय की आबादी
Religious community population in India as of 2011
- हिन्दू धर्म -79.8%
- इस्लाम धर्म -14.2%
- ईसाई धर्म – 2.3%
- सिख धर्म -1.7%
- बौद्ध धर्म -0.7%
- जैन धर्म – 0.4%
- अन्य धर्म – 0.7%
- कोई धर्म नही – 0.2%
राजनीति में जाति / Caste in politics
मतदाताओं की जातियों का हिसाब: राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में और अपनी रणनीति में मतदाताओं की जातियों का विशेष ध्यान देते हैं। यह उन्हें अपने समर्थकों को संग्रहित करने और चुनाव जीतने में सहायक होता है।
जातिगत भावनाओं को उकसाना: राजनीतिक दल अक्सर जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं ताकि वे अपनी अधिकारी पक्ष की बूटी का समर्थन प्राप्त कर सकें। इससे चुनावी प्रक्रिया में जातिगत बंधनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
बहुमत की दर का अहमियत: राजनीतिक दलों के लिए यह महत्वपूर्ण होता है कि उन्हें संगठित और समर्थ मतदान क्षेत्रों का पता चले, ताकि वे अपनी बहुमत को मजबूत कर सकें।
वोट की अकंलनीयता: किसी भी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट प्राप्त करना राजनीतिक दलों के लिए संग्रहणीय माना जाता है, लेकिन यह अक्सर अधीनता में पाया जाने वाला बिंदु है। वोट बैंक के रूप में जानी जाने वाली किसी जाति की ओर से मतदाताओं की अकंलनीयता एक महत्वपूर्ण राजनीतिक चुनौती होती है।
राजनीति में जाति:-
- अनुसूचित जाति 16.6%
- अनुसूचित जनजाति 8.6%
- अन्य पिछड़ा वर्ग 41.0%
- भारतीय मुसलमान 14.2%
ईसाई 2.3%अक्सर जातियों के रूप में कार्य करते हैं।
- जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों का नाम तय करती है तो चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं का जातियों का हिसाब ध्यान में रखती है ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाए।
- जब सरकार का गठन किया जाता है तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों और क़बीलों के लोगों को उचित जगह दी जाए
- राजनीतिक पार्टियाँ और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।
- सार्व भौम व्यस्क मताधिकार और एक-व्यक्ति वोट की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को विवश किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने वाले और लोगों को गोलबंद करने के लिए सक्रिय हो। इससे उन जातियों के लोगों में नयी चेतना पैदा हुई जिन्हें अभी तक छोटा और नीच माना जाता था।
- राजनीति में जाति पर जोर देने के कारण कई बार धारणा बन सकती है कि चुनाव जातियों का खेल है कुछ ।
जाति और राजनीति / Caste and politics
राजनीति में जातिवाद का मतलब है जाति के आधार पर विभाजन और जातियों के आपसी संघर्ष को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करना।
राजनीति जाति व्यवस्था और जाति की पहचान को कैसे प्रभावित करती है?
How does politics affect the caste system and caste identity?
जाति समूह के बड़ा बनने का प्रयास: विभिन्न जातियों या उप-जातियों के समूह राजनीतिक दलों द्वारा अपने भीतर समाहित करके बड़ा बनने का प्रयास करते हैं। इससे पहले ये समूह अकेले ही रहते थे, लेकिन अब वे समूहबद्धता में संगठित होते हैं और अपने हितों की रक्षा करने के लिए साथ मिलकर काम करते हैं।
जाति समूह के साथ गठबंधन: राजनीतिक दलों को अक्सर अन्य जातियों के साथ गठबंधन करने की आवश्यकता होती है। यह उन्हें विभिन्न जातियों और समूहों के समर्थन को प्राप्त करने में मदद करता है और उनके वोट बैंक को मजबूत करता है।
नए जाति समूहों के आगमन: राजनीतिक क्षेत्र में नए तरह के जातियों के समूह, जैसे पिछड़े और अग्रणी जातियों के समूह, आ गए हैं। ये समूह अपने हितों की प्राथमिकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं और राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं किये जा सकते (कारण)
Election results in India cannot be decided on the basis of caste (reasons)
मतदाताओं में जागरूकता: कई बार मतदाता जातीय भावना से ऊपर उठकर मतदान करते हैं। वे अपने विचारों और देश की बेहतरीन हित के लिए वोट करते हैं, और उनका निर्णय जाति के आधार पर नहीं होता।
मतदाताओं द्वारा अपने आर्थिक हितों और राजनीतिक दलों को प्राथमिकता: अधिकांश मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण है कि उनके आर्थिक हितों और राजनीतिक मूल्यों का समर्थन किया जाए, जो उनके जाति के अतिरिक्त किसी भी मुद्दे पर आधारित नहीं होते।
किसी एक संसदीय क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत न होना: विभिन्न जातियों और समूहों के लोगों का संख्यात्मक अनुपात एक ही नहीं होता, इसलिए किसी एक जाति का बहुमत हमेशा नहीं होता।
मतदाताओं द्वारा विभिन्न आधारों पर मतदान करना: मतदाताओं का निर्णय अक्सर विभिन्न आधारों पर किया जाता है, जैसे कार्यकारी क्षमता, उम्र, शिक्षा, और उनकी राजनीतिक धारणाओं पर। इससे जातियों का असर कम होता है।
जाति पर विशेष ध्यान देने से राजनीति में नकारात्मक परिणाम
Negative consequences of paying special attention to caste in politics
मतदाताओं में जागरूकता: कई बार मतदाता जातीय भावना से ऊपर उठकर मतदान करते हैं। वे अपने विचारों और देश की बेहतरीन हित के लिए वोट करते हैं, और उनका निर्णय जाति के आधार पर नहीं होता।
मतदाताओं द्वारा अपने आर्थिक हितों और राजनीतिक दलों को प्राथमिकता: अधिकांश मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण है कि उनके आर्थिक हितों और राजनीतिक मूल्यों का समर्थन किया जाए, जो उनके जाति के अतिरिक्त किसी भी मुद्दे पर आधारित नहीं होते।
किसी एक संसदीय क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत न होना: विभिन्न जातियों और समूहों के लोगों का संख्यात्मक अनुपात एक ही नहीं होता, इसलिए किसी एक जाति का बहुमत हमेशा नहीं होता।
मतदाताओं द्वारा विभिन्न आधारों पर मतदान करना: मतदाताओं का निर्णय अक्सर विभिन्न आधारों पर किया जाता है, जैसे कार्यकारी क्षमता, उम्र, शिक्षा, और उनकी राजनीतिक धारणाओं पर। इससे जातियों का असर कम होता है।
जातिगत असामनता / Caste inequality
आर्थिक विषमता: जाति के आधार पर आर्थिक असमानता अभी भी देखने को मिलती है। ऊंची जातियों में सामान्यतः संपन्नता होती है, परंतु पिछड़ी जातियों और दलितों में गरीबी बहुत अधिक होती है।
विभाजन का कारण: भारतीय समाज में जाति पर आधारित विभाजन देखने को मिलता है, जो लिंग और धर्म पर आधारित विभाजन के बिलकुल विपरीत है। यह विभाजन अतिवादी और स्थायी होता है।
परंपरागत भेदभाव: जातियों को पैसे, पद, और सामाजिक स्थिति के आधार पर विभाजित किया जाता है, जो परंपरागत वंशानुगत विभाजन और रीति-रिवाजों को मान्यता प्रदान करता है।
सामाजिक समुदाय: जातियों को एक अलग सामाजिक समुदाय के रूप में देखा जाता है, जिससे समाज में भेदभाव और असमानता बनी रहती है।
अनुसूचित जातियाँ / Scheduled castes
वर्णाश्रम विवास्था में अछूत जातियाँ: अनुसूचित जातियाँ हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में उच्च जातियों से अलग और अछूत मानी जाती हैं। यह जातियाँ वर्णाश्रम विवास्था के अंतर्गत नियमित जीवन नहीं जीती हैं।
अपेक्षित विकास की कमी: इन जातियों का अपेक्षित विकास नहीं हुआ है और उन्हें समाज की उन्नति और विकास के लाभों से वंचित किया गया है।
अनुसूचित जातियों का प्रतिशत: भारत में अनुसूचित जातियों का प्रतिशत 16.2 प्रतिशत है, जो समाज में आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक रूप से पिछड़ी हुई मानी जाती हैं।
अनुसूचित जनजातियाँ / Scheduled tribes
समुदाय का स्थान: अनुसूचित जनजातियाँ साधारणतया पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में निवास करती हैं, जहां उनका बाकी समाज से अधिक मेलजोल नहीं होता है।
विकास की कमी: इन जनजातियों का समाज में विकास नहीं हुआ है और उन्हें आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक रूप से पिछड़ा हुआ माना जाता है।
अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत: भारत में अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत 8.2 प्रतिशत है, जो सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक रूप से पिछड़ा हुआ समाज के अंतिम पायदान पर स्थित है।
भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी है
How caste inequalities still persist in India
अछूतों के बर्ताव: अभी भी कुछ जातियों के साथ अछूतों जैसा बर्ताव किया जाता है, जिससे समाज में जातिगत असमानता बनी रहती है।
जाति के आधार पर विवाह: अधिकतर लोग अपनी जाति या कबीले में ही विवाह करते हैं, जिससे जातिगत विभाजन बना रहता है और समाज में सामाजिक असमानता बढ़ती है।
जातियों के विकास में असमानता: कुछ जातियाँ अधिक उन्नत हो गई हैं, जबकि कुछ अत्यधिक पिछड़ी हुई हैं, जिससे विकास में असमानता बनी रहती है।
शोषण: कुछ जातियों का अभी भी शोषण हो रहा है, जिससे उनके साथ अन्याय हो रहा है और समाज में असमानता बढ़ रही है।
जातियों का ध्यान: चुनाव और मंत्रिमंडल के गठन में जातीय समीकरण को ध्यान में रखने से भी जातिगत असमानता बढ़ सकती है, क्योंकि इससे कुछ जातियाँ अधिक विशेष अधिकार प्राप्त करती हैं और कुछ कम।
समाज का काम के आधार विभाजन
Division of society based on work
ब्राह्मण: वेदों का अध्ययन-अध्यापन और यज्ञ करना।
क्षत्रिय: युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना।
वैश्य: कृषक, पशुपालक, और व्यापार करना।
शूद्र: तीनों वर्णों की सेवा करना।
वर्ण-व्यवस्था:
- गुण, कर्म अथवा व्यवसाय पर आधारित समाज का चार मुख्य वर्णों में विभाजन होता है।
- इस व्यवस्था में अन्य जाति समूहों से भेदभाव और उन्हें अपने से अलग मानने की धारणा होती है।
- जातियों के साथ छुआछूत का व्यवहार किया जाता है।
समाज सुधारक:
- ज्योतिबा फुले, डॉ. अंबेडकर, पेरियार रामास्वामी, जैसे राजनेताओं और समाज सुधारकों ने जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज व्यवस्था बनाने की बात की और उसके लिए काम किया।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या:
- अनुसूचित जाति: 16.6%
- अनुसूचित जनजाति: 8.6%
- संविधान पहली अनुसूची में 22 राज्यों में 744 जनजातियों को सूचीबद्ध करता है।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद से, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण का दर्जा दिया गया, राजनीतिक प्रतिनिधित्व की गारंटी दी गई।
आशा करते है इस पोस्ट NCERT Class 10 Political: जाति धर्म और लैंगिक मसले Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट जाति धर्म और लैंगिक मसले notes, Class 10 civics chapter 3 notes in hindi पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!
NCERT Notes
स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
URL: https://my-notes.in
Author: NCERT
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- Best NCERT Notes Class 6 to 12
NCERT Notes
स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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