#NCERT Class 10 Political: संघवाद Notes In Hindi PDF

NCERT Class 10 राजनीति विज्ञान: संघवाद के आसान नोट्स हिंदी में प्राप्त करें! इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को समावेशी नोट्स के साथ समझें। संघवाद के प्रकार, भारतीय संदर्भ में विशेषताएं, और अन्य देशों के उदाहरणों के बारे में विस्तृत जानकारी पाएं।

उच्च गुणवत्ता वाली PDF अभी डाउनलोड करें और अपनी परीक्षा की तैयारी को बेहतर बनाएं!

10 Class लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद Notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectPolitical science
ChapterChapter 2
Chapter Nameसंघवाद
CategoryClass 10 Political science Notes in Hindi
MediumHindi

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

सामाजिक विज्ञान (नागरिक शास्त्र) अध्याय-2: संघवाद

संघवाद का अर्थ / Meaning of federalism

संधिवाद के साधारण अर्थ:

  • संधिवाद का शाब्दिक अर्थ है “संगठन” (संघ) और “विचार” (वाद)।
  • इसे साधारण शब्दों में कहें तो संघवाद का अर्थ होता है “संगठित रहने का विचार”।

संघवाद का विवरण:

  • संघवाद एक ऐसी संस्थागत प्रणाली है जिसमें दो स्तर की राजनीतिक व्यवस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है।
  • इस प्रणाली में एक संघीय (केन्द्रीय) स्तर की सरकार और दूसरी प्रांतीय (राज्यीय) स्तर की सरकारें होती हैं।
  • यह विधानसभा में राज्यीय प्रतिनिधित्व के साथ केंद्रीय सरकार को भी शामिल करता है।

संघीय शासन व्यवस्था / Federal government system

संघीय शासन व्यवस्था में सत्ता का वितरण दो या दो से अधिक स्तरों पर किया जाता है।

इस व्यवस्था में, सर्वोच्च सत्ता केंद्रीय सरकार और उसके विभिन्न छोटे इकाइयों के मध्य बांटी जाती है।

आमतौर पर, एक सरकार पूरे देश के लिए होती है जो राष्ट्रीय महत्व के विषयों का प्रबंधन करती है।

इसके बाद, राज्य या प्रांतों के स्तर पर सरकारें होती हैं जो दैनिक कार्य का प्रबंधन करती हैं।

ये दो स्तरों की सरकारें अपने-अपने स्तर पर स्वतंत्रता से काम करती हैं।

संघीय शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ

Main features of federal government system

सत्ता के बंटवारे: संघीय व्यवस्था में सत्ता केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों में बंटी होती है।

विधान के अधीनता: केंद्र सरकार राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर कानून बनाती है, जबकि राज्य सरकारें राज्य से संबंधित विषयों पर।

स्वतंत्रता: दोनों स्तर की सरकारें अपने-अपने स्तर पर स्वतंत्रता से काम करती हैं।

दो स्तर की सरकारें: संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर की सरकारें होती हैं।

एक समूह पर शासन: अलग-अलग स्तरों की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं।

संविधानिक अधिकार: सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होता है।

संविधान में परिवर्तन: मौलिक प्रावधानों में बदलाव का अधिकार दोनों स्तरों की सरकारों की सहमति से ही संभव होता है।

अदालतों का कार्य: अदालतों को संविधान और सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार होता है।

वित्तीय स्वायत्तता: राजस्व के विभिन्न स्त्रोतों को निर्धारित करने के लिए वित्तीय स्वायत्तता होती है।

एकता की सुरक्षा: मूल उद्देश्य क्षेत्रीय विविधताओं का सम्मान करते हुए देश की एकता की सुरक्षा और उसे बढ़ावा देना।

संघवाद की बुराइयाँ / Evils of federalism

केन्द्रीय सरकार का अधिक शक्तिशाली होना: संघीय व्यवस्था में केन्द्र सरकार को अधिक शक्ति और अधिकार होते हुए देखा गया है, जिससे राज्य सरकारों के पास कम नियंत्रण रहता है।

संविधान संशोधन का अधिकार केवल केन्द्र को ही प्राप्त होना: संविधान संशोधन का अधिकार केंद्र सरकार को ही होता है, जिससे राज्य सरकारों को अपने विचार का पूरा समर्थन नहीं मिलता।

संसद को अधिक अधिकार होना: संसद को अधिक अधिकार होना चाहिए ताकि वह समान रूप से सरकार की गतिविधियों पर नजर रख सके और जवाबदेही सुनिश्चित कर सके।

धन संबंधी अधिकारों का केन्द्र के पास अधिक होना: केंद्रीय सरकार को धन संबंधी अधिकारों का अधिक नियंत्रण होता है, जो राज्य सरकारों के विकास को रोकता है।

केन्द्र सरकार का राज्य सरकारों के मामले में अनावश्यक हस्तक्षेप: कई बार, केन्द्र सरकार अनावश्यक रूप से राज्य सरकारों के मामलों में हस्तक्षेप करती है, जिससे राज्य स्वतंत्रता को कम होता है।

संघवाद के प्रकार / Types of federalism

साथ आकर संघ बनाना:

  • विवरण: इस प्रकार में, दो या अधिक स्वतंत्र इकाइयों को साथ लेकर एक बड़ी इकाई का गठन किया जाता है।
  • विशेषताएँ:

सभी स्वतंत्र राज्यों की सत्ता एक समान होती है।

प्रत्येक राज्य को बड़ी स्वतंत्रता और अधिकार होता है।

  • उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)

साथ लेकर संघ बनाना:

  • विवरण: इस प्रकार में, एक बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन किया जाता है।
  • विशेषताएँ:

केन्द्र सरकार अधिक शक्तिशाली होता है।

राज्यों को केंद्र से अधिक नियंत्रित किया जाता है।

  • उदाहरण: भारत, जापान

एकात्मक और संघात्मक सरकारों के बीच अंतर

Difference between unitary and federal governments

एकात्मक शासन व्यवस्था :-

  • शक्तिशाली केंद्र सरकार: एकात्मक शासन व्यवस्था में, केंद्र सरकार शक्तिशाली होती है और अधिकारों का मुख्य धारक होती है।
  • संविधान संशोधन की क्षमता: इस व्यवस्था के अंतर्गत, संविधान की संशोधन की शक्ति केंद्र सरकार को होती है।
  • एक ही नागरिकता: सभी नागरिकों की एक ही नागरिकता होती है और उन्हें एक ही संविधान के अंतर्गत अधिकार और कर्तव्य होते हैं।
  • केंद्र सरकार की अधिकता: केंद्र सरकार राज्यों से अधिक शक्तियाँ ले सकती है, जिससे उसकी प्रभावकारिता बढ़ती है।

संघात्मक शासन व्यवस्था

  • कमजोर केंद्रीय सरकार: संघात्मक व्यवस्था में, केंद्रीय सरकार अपेक्षाकृत कमजोर होती है और राज्यों की स्वायत्तता अधिक होती है।
  • संविधान संशोधन की कम क्षमता: केंद्र सरकार को अकेले संविधान संशोधन की क्षमता नहीं होती, इसमें राज्य सरकारों की भूमिका होती है।
  • अधिक स्तरों पर शक्तियों का वितरण: शक्तियाँ कई स्तरों पर विभाजित होती हैं, जिससे नागरिकों को स्थानीय स्तर पर अधिक स्वायत्तता मिलती है।
  • दोहरी नागरिकता: कई संघीय व्यवस्था वाले देशों में दोहरी नागरिकता होती है, जिसमें नागरिकता के अधिकार और कर्तव्य दोनों स्थानीय और केंद्रीय सरकारों के अंतर्गत आते हैं।
  • स्वतंत्रता की अधिकता: दोनों स्तर की सरकारें अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं और अपने क्षेत्र में निर्णय लेने की पूरी क्षमता रखती हैं।

भारत की संघीय व्यवस्था में बेल्जियम से मिलती जुलती एक विशेषता और उससे अलग एक विशेषता

India’s federal system has a feature similar to that of Belgium and a feature different from it.

बेल्जियम से मिलती जुलती एक विशेषता:

संघ सरकार का गठन: भारत और बेल्जियम दोनों में एक संघ सरकार का गठन है, जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार और राज्य सरकारें होती हैं।

बेल्जियम से मिलती जुलती अलग विशेषता:

केन्द्र सरकार की शक्तियों का वितरण: बेल्जियम में, केन्द्र सरकार की अनेक शक्तियाँ देश के क्षेत्रीय सरकारों को सुपुर्द कर दी गई हैं, जबकि भारत में केंद्र सरकार अनेक मामलों में राज्य सरकार पर नियंत्रण रखती है।

भारत में संघीय व्यवस्था / Federal system in india

आजादी के बाद का विभाजन: भारत ने अपनी आजादी के बाद विभाजन का सामना किया, जो एक दुखद और रक्तरंजित प्रक्रिया थी। इसके पश्चात्, कई स्वतंत्र राजवंशों का भारत में विलय हुआ। इस विभाजन के बाद, संघ शब्द का प्रयोग नहीं हुआ, लेकिन भारतीय संघ का गठन संघीय शासन व्यवस्था के सिद्धांत पर हुआ।

संविधान का प्रावधान: भारतीय संविधान ने मौलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया। इसमें संघ सरकार (केंद्र सरकार) और राज्य सरकारें शामिल हैं। संघ सरकार को पूरे भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करना था। इसके अलावा, बाद में पंचायत और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया।

भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा

Division of powers between the Center and the States in the Indian Constitution

संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों को तीन हिस्से में बाँटा गया है। ये तीन सूचियाँ इस प्रकार हैं :-

संघ सूची :-

  • संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैस राष्ट्रीय महत्व के विषय है।
  • पूरे देश के लिए इन मामलों एक तरह की नीतियों की जरूरत है।
  • इसी कारण इन विषयों को संघ सूची में डाला गया है।
  • संघ सूची में वर्णित विषयों के बारे में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को है।
  • पहले इसमें 97 विषय थे परन्तु वर्तमान में इसमे 100 विषय हैं।

राज्य सूची :-

  • राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई जैसे प्रांतीय और स्थानीय महत्व के विषय है।
  • राज्य सूची में वर्णित विषयों के बारे में सिर्फ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है।
  • पहले इसमें 66 विषय थे। परन्तु वर्तमान में इसमें 61 विषय है।

समवर्ती सूची :-

  • समवर्ती सूची में शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे वे विषय हैं जो केन्द्र के साथ राज्य सरकारों की साझी दिलचस्पी में आते हैं।
  • इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार, दोनों को ही है।
  • लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केन्द्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है।
  • पहले इसमें 47 विषय थे परंतु वर्तमान में इसमें 52 विषय हैं।

अवशिष्ट शक्तियाँ / Residual powers

विदेशी मामले: केंद्र सरकार को विदेशी मामलों पर कानून बनाने और प्रबंध करने का अधिकार होता है। इसमें विदेशी संबंध, विदेशी व्यापार, विदेशी यातायात, और अन्य संबंधित मुद्दे शामिल होते हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा: केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले पर कानून बनाने और प्रबंध करने का अधिकार होता है। इसमें राष्ट्रीय रक्षा, सीमा सुरक्षा, और आतंकवाद के विरुद्ध नेतृत्व शामिल होते हैं।

संघीय संस्थाओं का प्रबंधन: केंद्र सरकार को संघीय संस्थाओं जैसे कि भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय अनुसंधान प्रशासन, भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन, आदि का प्रबंधन करने का अधिकार होता है।

संघीय व्यवस्था कैसे चलती है?

How does the federal system work?

भाषायी राज्य :-

  • भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन हमारे देश की पहली और एक कठिन परीक्षा थी।
  • नए राज्यों को बनाने के लिए कई पुराने राज्यों की सीमाओं को बदला गया।
  • जब एक भाषा के आधार पर राज्यों के निर्माण की मांग उठी तो राष्ट्रीय नेताओं को डर था कि इससे देश टूट जाएगा।
  • केंद्र सरकार ने कुछ समय के लिए राज्यों के पुर्नगठन को टाला परंतु हमारा अनुभव बताता है कि देश ज्यादातर मजबूत और एकीकृत हुआ।
  • प्रशासन भी पहले की अपेक्षा सुविधाजनक हुआ है।
  • कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर ही नहीं बल्कि संस्कृति, भूगोल व नृजातीयता की विविधता को रेखांकित एवं महत्त्व देने के लिए किया गया।

भारत की भाषा नीति :-

  • भारत के संघीय ढाँचे की दूसरी परीक्षा भाषा नीति को लेकर हुई।
  • भारत में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा न देकर हिंदी और अन्य 21 भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है।
  • अंग्रेजी को राजकीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई है, विशेषकर गैर हिन्दी भाषी प्रदेशों को देखते हुए।
  • सभी राज्यों की मुख्य भाषा का विशेष ख्याल रखा गया है।
  • हिंदी को राजभाषा माना गया पर हिंदी सिर्फ 40 फीसदी (लगभग) भारतीयों की मातृभाषा है इसलिए अन्य भाषाओं के संरक्षण के अनेक दूसरे उपाय किए गए।
  • केंद्र सरकार के किसी पद का उम्मीदवार इनमें से किसी भी भाषा में परीक्षा दे सकता है बशर्ते उम्मीदवार इसको विकल्प के रूप में चुने।

केंद्र – राज्य संबंध :-

  • सत्ता की साझेदारी की संवैधानिक व्यवस्था वास्तविकता में कैसा रूप लेगी यह ज्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि शासक दल और नेता किस तरह इस व्यवस्था का अनुसरण करते हैं।
  • काफी समय तक हमारे यहाँ एक ही पार्टी का केंद्र और अधिकांश राज्यों में शासन रहा। इसका व्यावहारिक मतलब यह हुआ कि राज्य सरकारों ने स्वायत्त संघीय इकाई के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं किया।
  • जब केंद्र और राज्य में अलग – अलग दलों की सरकारें रहीं तो केंद्र सरकार ने राज्यों के अधिकारों की अनदेखी करने की कोशिश की। उन दिनों केंद्र सरकार अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी।
  • यह संघवाद की भावना के प्रतिकूल काम था। 1990 के बाद से यह स्थिति काफी बदल गई। इस अवधि में देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। यही दौर केंद्र में गठबंधन सरकार की शुरुआत का भी था। चूँकि किसी एक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ी।
  • इससे सत्ता में साझेदारी और सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी।
  • इस प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले से भी बल मिला। इस फैसले के कारण राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना केंद्र सरकार के लिए मुश्किल हो गया। इस प्रकार आज संघीय व्यवस्था के तहत सत्ता की साझेदारी संविधान लागू होने के तत्काल बाद वाले दौर की तुलना में ज्यादा प्रभावी है।

गठबंधन सरकार / Coalition government

गठबंधन सरकार एक ऐसी सरकार होती है जो एक से अधिक राजनीतिक दलों के साथ मिलकर बनती है।

यह राजनीतिक दल आमतौर पर विभिन्न विचारधाराओं और आर्थिक या सामाजिक अंतर्दृष्टियों के कारण मिलकर सरकार बनाते हैं।

गठबंधन सरकार के अंतर्गत, प्रत्येक राजनीतिक दल को निर्दिष्ट क्षेत्रों में कार्य करने की जिम्मेदारी होती है, जिससे सरकार के कामकाज में समन्वय बना रहता है।

गठबंधन सरकारें आमतौर पर निरंतर चुनावी बातचीतों और समझौतों पर आधारित होती हैं।

इन सरकारों में निरंतर गतिविधियों और नीतियों पर सहमति बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है ताकि सरकार स्थिरता और सशक्तिकरण के मार्ग पर चल सके।

अनुसूचित भाषाएँ / Scheduled languages

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ शामिल हैं जो अनुसूचित भाषाएँ कहलाती हैं।

ये भाषाएँ विभिन्न भारतीय राज्यों और क्षेत्रों में बोली जाती हैं और इनका महत्व उन जनसंख्या वर्गों के लिए है जो अपनी मातृभाषा में अधिक संवेदनशील और सकारात्मक महसूस करते हैं।

इन भाषाओं को संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है और उनका सम्मान और प्रोत्साहन किया जाता है ताकि भारतीय समाज की भौगोलिक, सांस्कृतिक, और भाषाई विविधता को बनाए रखने में सहायता मिल सके।

भाषाई राज्य क्यों / Why linguistic state

राज्यों की भाषाएँ: राज्यों की अपनी राजभाषाएँ होती हैं और अधिकांश काम उनकी राजभाषा में ही किया जाता है।

संविधान के प्रावधान: संविधान के अनुसार, सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग 1965 में बंद हो जाना चाहिए था, पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों ने अंग्रेजी के प्रयोग की मांग की।

तमिलनाडु का उग्र प्रतिरोध: तमिलनाडु में इस मांग का उग्र प्रतिरोध देखा गया था, जिससे केंद्र सरकार को इसे सुलझाना पड़ा।

अंग्रेजी के प्रयोग का विवाद: इस समाधान से अंग्रेजी भाषी लोगों को लाभ होने की उम्मीद थी, पर बढ़ावा देने का मतलब यह नहीं था कि हिंदी को अन्य भाषाओं पर थोपा जाए।

भारतीय राजनीतिक दृष्टिकोण: भारतीय राजनेताओं ने हिंदी को बढ़ावा देने की नीति बनाई है, पर यह मतलब नहीं है कि वे हिंदी को राज्यों में थोप सकते हैं जहां अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं।

श्रीलंका की स्थिति का उल्लेख: इस विवाद को हल करने के लिए भारतीय राजनीतिक दलों ने लचीला रुख अपनाया ताकि भारत श्रीलंका की स्थिति में न आए।

भारत में भाषायी विविधता / Linguistic diversity in india

जनगणना के आंकड़े: 1991 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 1500 अलग-अलग भाषाएँ हैं।

मुख्य भाषाएँ के समूह: कुछ मुख्य भाषाओं को समूहों में रखा गया है। उदाहरण के लिए, भोजपुरी, मगधी, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, भीली और कई अन्य भाषाएँ हिंदी के समूह में आती हैं।

मुख्य भाषाएँ: भारत में इन समूहों के बावजूद भी 114 मुख्य भाषाएँ हैं।

अनुसूचित भाषाएँ: संविधान के आठवें अनुच्छेद में 22 भाषाएँ अनुसूचित भाषाओं की सूची में हैं। अन्य भाषाएँ गैर-अनुसूचित भाषाएँ हैं।

विविधता का महत्व: भारत दुनिया का सबसे भाषायी और विविध देश है, जिसमें विभिन्न भाषाएँ, भाषा समूह और भाषाओं का संगठन है।

भारत में विकेंद्रीकरण / Decentralization in india

देश की विशालता: भारत एक विशाल देश है, जिसमें दो स्तरों की सरकार होने के कारण काम करना बहुत मुश्किल होता है। कुछ राज्य यूरोपीय देशों से भी बड़े हैं और जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश रूस से भी बड़ा है।

स्थानीय मुद्दे: कई स्थानीय मुद्दे हैं जिनका समाधान स्थानीय स्तर पर ही संभव है। इसलिए, स्थानीय सरकार के माध्यम से सरकारी तंत्र में लोगों की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होती है।

तृतीय स्तर की आवश्यकता: इन संदर्भों में, भारत में सरकार के तृतीय स्तर की आवश्यकता की मांग है। यह स्तर स्थानीय और केंद्रीय सरकारों के बीच की गांठ को सुलझाने और सरकारी कामकाज को सुचारू बनाने में मदद करेगा।

पंचायती राज / Panchayati Raj

स्थानीय शासन का स्तर: पंचायती राज गांव के स्तर पर स्थानीय शासन को संबोधित करता है। इसमें गांव के निवासियों को स्वयं की समस्याओं का समाधान करने का अधिकार होता है।

संविधानिक प्रावधान: दिसम्बर 1992 में भारतीय संसद ने संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधनों को मंजूरी दी। इसके अंतर्गत, स्थानीय स्वशासन निकायों को संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई और पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाया गया।

1992 के पंचायती राज व्यवस्था के प्रमुख प्रावधान

Major provisions of Panchayati Raj system of 1992

नियमित चुनाव: स्थानीय स्वशासन निकायों के चुनाव अब नियमित रूप से कराए जाते हैं और यह संवैधानिक बाध्यता बन गई है।

सीटों की आरक्षण: निर्वाचित स्थानीय स्वशासी निकायों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए सीटों का आरक्षण किया गया है।

महिलाओं की आरक्षण: कम से कम एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित है। इससे महिलाओं को स्थानीय स्तर पर शासन के प्रति भागीदारी में सहायता मिलती है।

राज्य चुनाव आयोग: हर राज्य में पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया है। यह स्वतंत्र संस्था चुनाव के निष्पादन का काम करती है।

राजस्व और अधिकारों का स्थानीय स्तर पर वितरण: राज्य सरकारें अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा स्थानीय स्वशासी निकायों को देना अनिवार्य है। इससे स्थानीय स्तर पर शासन को स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्राप्त होता है।

ग्राम पंचायत / Village Panchayat

परिचय: प्रत्येक गांव या ग्राम समूह की एक पंचायत होती है जो स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक कार्यों को संचालित करती है।

सदस्यों की संरचना: ग्राम पंचायत में कई सदस्य होते हैं, जो गांव की जनता द्वारा चुने जाते हैं।

प्रधानअध्यक्ष: ग्राम पंचायत का अध्यक्ष या प्रमुख सदस्य “सरपंच” कहलाता है। वह पंचायत की कार्यपालिका का मुखिया होता है और पंचायत के कामों को संचालित करता है।

कार्यक्षेत्र: ग्राम पंचायत की प्रमुख कार्यों में गांव की सामाजिक, आर्थिक, और अन्य विकास से संबंधित मुद्दों का समाधान शामिल है। यह बात किसानों, ग्रामीण विकास, सामुदायिक सेवाएं, और स्वच्छता सहित कई क्षेत्रों पर फोकस करती है।

संविधानिक दर्जा: ग्राम पंचायत को संविधान द्वारा अपना संवैधानिक दर्जा प्राप्त है, जिससे यह स्वतंत्रता और स्वायत्तता के साथ काम करती है।

समुदायिक भागीदारी: ग्राम पंचायत का महत्वपूर्ण पहलु समुदायिक भागीदारी है, जिसमें गांव की जनता को सभी निर्णयों में शामिल किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय विकास के निर्णय उनकी आवाज को समाहित करते हैं।

पंचायत समिति / Panchayat committee

परिचय: कई ग्राम पंचायतों का समूह एकत्र होकर एक उच्चतर स्तर की पंचायत समिति या मंडल समिति का गठन करता है। यह समिति ग्राम स्तर के विकास को समन्वित और संचालित करती है।

सदस्यों का चयन: पंचायत समिति के सदस्यों का चयन उस इलाके के सभी पंचायत सदस्यों द्वारा किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्राम स्तर की प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना होता है।

कार्यक्षेत्र: पंचायत समिति का कार्यक्षेत्र ग्राम स्तर के विकास से लेकर सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय मुद्दों तक का होता है। यह समिति विकास की योजनाओं का निर्माण करती है और उनके कार्यान्वयन का प्रबंधन करती है।

समुदायिक सहभागिता: पंचायत समिति ग्रामीण समुदाय के साथ सहभागिता को प्रोत्साहित करती है ताकि स्थानीय स्तर पर निर्णयों में सभी लोगों की भागीदारी हो। यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय समूह की आवाज को प्रतिष्ठित करते हैं।

साक्षरता और शिक्षा: पंचायत समिति शिक्षा और साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए पहल करती है। यह शिक्षा और साक्षरता कार्यक्रमों को संचालित करती है और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की उपलब्धता को सुनिश्चित करती है।

पंचायतों की मुख्य परेशानियाँ

Main problems of Panchayats

जागरूकता का अभाव: अक्सर पंचायतों में जनता की जागरूकता कम होती है, जिसके कारण लोगों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जानकारी नहीं होती।

धन का अभाव: कई बार पंचायतों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें विकास कार्यों को संचालित करने के लिए पर्याप्त धन का अभाव होता है।

अधिकारियों की मनमानी: कुछ समयों में, पंचायत के अधिकारी अपनी सत्ता का दुरुपयोग करते हैं और निर्णयों में मनमानी करते हैं, जिससे विकास कार्यों में देरी होती है।

जन सहभागिता में कमी: कई बार, पंचायत की निर्णय लेने में जनता को सहभागिता का मौका नहीं मिलता, जिससे स्थानीय लोगों की आवाज को सुना नहीं जाता।

केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा सहायता का अभाव: कई बार, केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा पंचायतों को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करने में विलम्ब होता है, जिससे विकास कार्यों को पूरा करने में मुश्किलें आती हैं।

चुनाव नियमित रूप से नहीं होते: कुछ स्थानों पर, पंचायत चुनाव नियमित रूप से नहीं होते, जिससे पंचायत के नेताओं का चयन सही तरीके से नहीं होता और लोगों की प्रतिनिधित्व में कमी आती है।

जिला परिषद / District Council

गठन: जिला परिषद का गठन किसी जिले में स्थित सभी पंचायत समितियों को मिलाकर होता है।

सदस्यों का चुनाव: जिला परिषद के अधिकांश सदस्यों का चुनाव होता है।

सदस्यों की श्रेणियाँ: जिला परिषद में सांसद और विधायकों के साथ-साथ जिले स्तर की संस्थाओं के कुछ अधिकारी भी सदस्य के रूप में शामिल होते हैं।

प्रमुख: जिला परिषद का प्रमुख इस परिषद का राजनीतिक प्रधान होता है।

कार्यक्षेत्र: जिला परिषद का मुख्य कार्यक्षेत्र जिले के विकास और प्रशासनिक कार्यों का निर्देशन करना होता है।

निर्णय: यह परिषद जिले में परियोजनाओं की मंजूरी और निर्णय लेती है, जो स्थानीय विकास को प्रोत्साहित करती हैं।

सांसदों और विधायकों का सहयोग: जिला परिषद स्थानीय सांसदों और विधायकों को भी सहायता प्रदान करती है ताकि वे जनता के हित में काम कर सकें।

समस्याओं का समाधान: यह परिषद जिले की समस्याओं का समाधान करने के लिए काम करती है और लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रयास करती है।

नगर निगम / Municipal council

गठन: नगर निगम शहरों में काम करने वाली स्थानीय शासन संस्था होती है। बड़े शहरों में नगर निगम का गठन होता है।

कार्यक्षेत्र: नगर निगम शहर के विकास और प्रशासनिक कार्यों का निर्देशन करता है।

सम्प्रेषण: यह संस्था नगर में प्रदान की जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं को प्रबंधित करती है।

निर्णय: नगर निगम में नगर की प्रमुख समस्याओं का समाधान और नगर के विकास की योजनाओं का निर्णय लिया जाता है।

प्रमुख: नगर निगम का प्रमुख मेयर होता है, जो कि शहर के राजनीतिक प्रधान होता है।

उपाध्यक्ष: नगर निगम का उपाध्यक्ष वार्ड के प्रमुख होता है और मेयर की सहायकता करता है।

सदस्यों का चुनाव: नगर निगम के सदस्यों का चुनाव स्थानीय निकायों के सदस्यों द्वारा होता है।

कार्य: इस संस्था का कार्य शहर में स्वच्छता, सार्वजनिक सुविधाओं का प्रबंधन, जलसंचार, बिजली, और सड़कों का निर्माण और अन्य शहरी विकास कार्यों को संचालित करना होता है।

आशा करते है इस पोस्ट NCERT Class 10 Political: संघवाद Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट संघवाद notes, Class 10 civics chapter 2 notes in hindi पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12
NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12

Leave a Comment

20seconds

Please wait...