NCERT Class 10 Science Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव Notes in hindi

NCERT 10 Class Science Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव notes in hindi

NCERT Class 10 Science Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव notes in hindi. जिसमे हम चुंबकीय क्षेत्र , क्षेत्र रेखाएं , सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र ,

दक्षिण ( दायाँ ) हस्त अंगुष्ठ नियम , विधुत धारावाही वृताकार पाश के कारण चुम्बकीय क्षेत्र , परिनालिका , फ्लेमिंग का दायां हाथ नियम, दिष्ट धारा , प्रत्यावर्ती धारा , घरेलू विद्युत परिपथ। आदि के बारे में पढ़ेगे ।

TextbookNCERT
ClassClass 10
Subjectविज्ञान
ChapterChapter 13
Chapter Nameविद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
CategoryClass 10 Science Notes
MediumHindi
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NCERT Class 10 Science Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव Notes in Hindi


📚 Chapter = 13 📚
💠 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव💠

चुम्बक का परिचय

चुम्बक :-
चुम्बक वह पदार्थ है जो लौह तथा लौह युक्त चीजों को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं।

चुम्बक के गुण:-


1. प्रत्येक चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं- उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव ।
2. समान ध्रुव एक – दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
3. असमान ध्रुव एक- दूसरे को आकर्षित करते हैं।
4. स्वतंत्र रूप से लटकाई हुई चुम्बक लगभग उत्तर-दक्षिण दिशा में रुकती हैं, उत्तरी ध्रुव उत्तर दिशा की और संकेत करते हुए । 

चुम्बक के ध्रुव (The Poles of Magnet) :
यदि किसी चुम्बक को स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर वह दो दिशाओं में ठहरती है।
1. उत्तरोमुखी ध्रुव →  उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव कहते हैं।

2. दक्षिणोमुखी ध्रुव  दूसरा सिरा जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है उसे दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव कहते हैं।

ऑस्टेड का कथन
धातु से निर्मित चालक तार XY में बैटरी से धारा प्रवाहित करने पर XY तार के पास दिक्सूचक सुई में विक्षेप उत्पन्न होने लगता है।

दिकसूचक सुई → एक ऐसा यंत्र जो चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित होता है अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र में सुई में विक्षेप उत्पन्न होने लगता है।

निष्कर्ष:- धातु से निर्मित तार में धारा प्रवाहित करने पर उसके समीप रखी दिक्सूचक में विक्षेप उत्पन्न होने लगता है, अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हुआ।

चुम्बकीय बल रेखाएँ

  • चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) : चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें चुम्बक के बल का संसूचन किया जाता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। वह रेखाऍ जिनके अनुदिश लौह चूर्ण स्वयं संरेखित होता है चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं का निरूपण करती है।
  • ✩ चुम्बकीय क्षेत्र में परिमाण व राशि दोनों होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र को दिक्सूचक की सहायता से समझाया जा सकता है।
  • ✩ दिक्सूचक की सुई स्वतंत्र लटकी हुई एक छड़ चुम्बक होती हैं।

SI मात्रक:- टेसला (Tesla) M.K.S पद्धति में
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक – ऑर्स्टेड

चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ (Magnetic Field Lines) : चुम्बक के चारों  ओर बहुत सी रेखाएँ बनती है, जो चुम्बक के उत्तारी ध्रुव से निकल कर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती प्रतीत होती है, इन रेखाओं को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कहते है।

  • चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की विशेषताएँ (Features of Magnetic Field Lines) :
  •  चुम्बकीय बल रेखाएँ बन्द वक्र के रूप में होती हैं।
  •  चुम्बकीय बल रेखाएँ चुम्बक के बाहर उत्तर दिशा से दक्षिण  दिशा की ओर गमन करती है तथा चुम्बक के भीतर दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर गमन करती है।
  •  दो समान ध्रुवों में प्रतिकर्षण व असमान ध्रुवों में आकर्षण होता है।
  •  चुम्बक से निर्गत चुम्बकीय बल रेखाएँ एक- दुसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती यदि ऐसा संभव होता है तो वह उसकी दिशाएँ होगी ।
  •  चुम्बकीय बल रेखाएँ चुम्बक के निकट होती है तो आकर्षण बल प्रबल अधिक होगा ।
  •  मात्रक → टेसला [Tesla] → T [M.K.S. पद्धति में ]
  •  यह एक सदिश राशि है।
  • [दिशा एवं परिमाण दोनों का बोध होता है।]
  •  इसको (‘B’) या (‘M’) से प्रदर्शित करते हैं।

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धारावाही चालक के चारो और चुम्बकीय क्षेत्र :-

  • (Megnetic Fields around the current carrying conductor) :
  • (i) एक धातु चालक से होकर गुजरने वाली विद्युत धारा इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र बनाता है।
  • (ii) जब एक धारावाही चालक को दिक्सूचक सुई के पास और उसके सुई के समांतर ले जाते हैं तेा विद्युत धारा की बहाव की दिशा दिकसुचक के विचन की दिशा को उत्क्रमित कर देता है जो कि विपरीत दिशा में होता है।
  • (iii) यदि धारा में वृद्धि की जाती है तो दिक्सूचक के विचलन में भी वृद्धि होती है।
  • (iv) जैसे जैसे चालन में धारा की वृद्धि होती है वैसे दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण भी बढ़ता है।
  • (v) तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि हो जाती है।
  • (vi) तार में प्रवाहित विद्युत धारा के परिमाण में वृद्धि होती है तो किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण में भी वृद्धि हो जाती है।
  • (vii) किसी चालक से प्रवाहित की गई विद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र चालक से दूर जाने पर घटता है।
  • (viii) जैसे – जैसे विद्युत धारावाही सीधे चालक तार से दूर हटते जाते हैं, उसके चारों और उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ बड़ा हो जाता है।

किसी विद्युत धारावाही चालक के कारण चुंबकीय क्षेत्र



a. यदि किसी चालक तार में धारा की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर ऊपर की ओर प्रवाहित होती है तो चालक तार के समीप दिक्सूचक की सुई में विक्षेप पश्चिम दिशा की ओर होता है।
b. जब किसी चालक तार में धारा उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा में नीचे की ओर गमन करती है। चालक तार के समीप चुम्बकीय सुई का विेक्षेप पूर्व दिशा की ओर होने लगता है।

सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र


सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र जब किसी सीधे चालक से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करता है।
चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता चालक के निकट अधिक होती है, जो चालक से दूर जाने पर उत्तरोत्तर घटती जाती है। सीधे धारावाही चालक तार में धारा प्रवाहित करने पर शीट पर उपस्थित लोह चुर्ण चुंबकीय प्रभाव के कारण संकेन्द्रीय वलय के रुप में नजर आते हैं।

दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम (Right hand thumb Rule):

  • दक्षिण हस्त अंगुष्ठ नियम के अनुसार अपने दाहिने हाथ में विद्युत धारावाही चालक को इस प्रकार पकड़े हुए हैं कि आपका अँगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता हैं, तो आपकी अँगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी । इस नियम दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम कहते हैं। इस नियम को मैक्सवेल का कॉर्कस्क्रू नियम भी कहते हैं।

विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र :-


(Magnetic Field Due to a Current through a Circular Loop) :

किसी विद्युत धरावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र उससे दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है। इसी प्रकार किसी विद्युत धारावाही पाश के प्रत्येक बिंदु पर उसके चारों और उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र को निरूपित करने वाले संकेंद्री वृत्तों का साइज़ तार से दूर जाने पर निरंतर बड़ा होता जाता है।

विद्युत धारावाही वृत्ताकार पाश के कारण चुंबकीय क्षेत्र का गुण :-

  • Properites of Magnetic field line of a current through a circular loop :
  • (i) वृत्ताकार पाश के केंद्र पर इन वृहत् वृत्तों के चाप सरल रेखाओं जैसे प्रतीत होने लगते हैं।
  • (ii) विद्युत धारावाही तार के प्रत्येक बिंदु से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ पाश के केंद्र पर सरल रेखा जैसी प्रतीत होने लगती हैं।
  • (iii) पाश के भीतर सभी चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक ही दिशा में होती है।
  • • किसी विद्युत धारावाही तार के कारण किसी दिए गए बिंदु उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र प्रवाहित विद्युत धारा पर अनुलोमत: निर्भर करता है।
  • • यदि हमारे पास n फेरों की कोई कुंडली हो तो उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र परिमाण में एकल फेरों द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में n गुना अधिक प्रबल होगा। इसका कारण यह है कि प्रत्येक फेरों में विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा समान है, अत: व्यष्टिगत फेरों के चुंबकीय क्षेत्र संयोजित हो जाते हैं।

परिनालिका

परिनालिका (Solenoid) :- पास – पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों  वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।

परिनालिका में प्रवाहित विद्युत धारा के कारण चुम्बकीय क्षेत्र:-

  • Megnetic Field due to a Current in a Solenoid :
  • जब विद्युत धारा किसी परिनालिका से होकर गुजरती है। तो इसका एक सिरा चुम्बक के उत्तरी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है जबकि दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव की तरह व्यवहार करता है।
  • परिनालिका के भीतर और उसके चारों और चुम्बकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओें का गुण:-
  • Properties of the field lines inside the solenoid:
  •  परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भांति होती है।
  •  यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिंदुओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है। अर्थात् परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र होता है।
  •  परिनालिका के भीतर एकसमान चुंबकीय क्षेत्र हेाता है।
  • ​​​​​​​✯ परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। परिनालिका के चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के इस गुण का उपयोग विद्युत चुम्बक बनाने में किया जाता है।
  • ​​​​​​​✯ परिनालिका के भीतर एक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

विद्युत चुम्बक (Electromagnet) : परिनालिका के भीतर उत्पन्न प्रबल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किसी चुंबकीय पदार्थ, जैसे नर्म लोहे, को परिनालिका के भीतर रखकर चुंबक बनाने में किया जाता है। इस प्रकार  बने चुंबक को विद्युत चुंबक कहते हैं।

  • विद्युत चुंबक का गुण (Some Properties of Electromagnet) :
  • 1. सामान्यत: इसके द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होता है।
  • 2. चुम्बकीय क्षेत्र की शक्ति को परिनालिका में फेरों की संख्या और विद्युत धारा जैसे नियंत्रण करने वाली विभिन्न कारकों के द्वारा नियंत्रित की जा सकती है।
  • 3. परिनालिका से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र या ध्रुवत्व प्रवाहित विद्युत की दिशा में परिवर्तन कर उत्क्रमित किया जा सकता है।

विद्युत चुंबक और स्थायी चुंबक में अंतर :-


Differences Between electromagnet and Parmanent magnet :

विद्युत चुंबक

स्थायी चुंबक

विद्युत चुंबक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र सामान्यत: अधिक प्रबल होता है।

सामान्यत: इसके द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र कम प्रबल होता है।

चुम्बकीय क्षेत्र की ताकत को परिनालिका में फेरों की संख्या और विद्युत धारा जैसे नियंत्रण करने वाली विभिन्न कारकों के द्वारा नियंत्रित की जा सकती है।

स्थायी चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र की ताकत स्थायी होता है, परन्तु तापमान में परिवर्तन कर इसे कम किया जा सकता है।

इसकी ध्रुवता धारा में परिवर्तन कर उत्क्रमित किया जा सकता है।

इसकी ध्रुव में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

विद्युत चुबंक बनाने के लिए सामान्यत: मृदु लोहे का उपयोग किया जाता है।

इसे उद्देश्य लिए कोबाल्ट या स्टील का प्रयोग किया जाता है।

किसी चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल:-

  • (Force on A current- carrying conductor in A magnetic field) :
  • एक प्रबल नाल चुंबक इस प्रकार से व्यवस्थित कीजिए की छड़ नाल चुंबक के दो ध्रुवों के बीच में हो तथा चुंबकीय क्षेत्रों की दिशा उपरिमुखी हो । ऐसा करने के लिए नाल चुंबक का उत्तर ध्रुव ऐलुमिनियम की छड़ के ऊर्ध्वाधरत: नीचे हो एवं दक्षिण ध्रुव ऊर्ध्वाधरत: ऊपर हो।
    जब विद्युत धारा एल्युमीनियम छड़ के सिरा B से सिरा A तक होकर गुजरता है तो  ऐसा देखा जाता है कि छह विस्थापित होता है। ऐसा भी देखा जाता है। कि जब धारा की दिशा को परिवर्तित किया जाता है तो छड़ की विस्थापन की दिशा भी बदल (उत्क्रमित हो) जाती है।
  • निष्कर्ष (Conclusion) :
  • i. उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र इस चालक के निकट रखे किसी चुंबक पर कोई बल आरोपित करता है।
  • ii. चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर ऐलुमिनियम की विद्युत धारावाही छड़ पर एक बल आरोपित होता है।
  • iii. चालक से प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा  उत्क्रमित करने पर बल की दिशा भी उत्क्रमित हो जाती है।
  • iv. विद्युत धारावाही छड़ पर आरोपित बल की दिशा उत्क्रमित हो जाती है। इससे यह प्रदर्शित होता है।
  • v. चालक पर आरोपित बल की दिशा विद्यु़त धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दोनों पर निर्भर करती है।

चालक पर बल (The force on the Conductor):


चालक पर लगने वाला बल निम्नलिखित दो बातों पर निर्भर करता है :-
(i) धारा की दिशा और
(ii) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पर ।

फ्लेमिंग का वामहस्त नियम:-


इस नियम के अनुसार, अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों।

यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा ।

इसी नियम को फ्लेमिंग का वामहस्त नियम कहते हैं।

इसी नियम के आधार पर विद्युत मोटर कार्य करता है।
• विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र, ध्वनि विस्तारक यंत्र, माइक्रोफोन तथा विद्युत मापक यंत्र कुछ ऐसी युक्तियाँ हैं जिनमें विद्युत धारावाही चालक तथा चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग होता है।

MRI- इसका पूरा नाम चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिम्बन (Magnetic Resonance Imaging) है। यह एक विशेष तकनीक है जिससे शरीर के भीतर चुंबकीय क्षेत्र, शरीर के विभिन्न भागों के प्रतिबिंब प्राप्त करने का आधार बनता है। इन प्रतिबिंबों का विश्लेषण पर बीमारियों का निदान (diagnosis) किया जाता है।

मानव शरीर के दो भाग जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होते हैं :-
(i) मानव मस्तिष्क
(i) मानव ह्दय

विद्युत मोटर (Electic Motor):


विद्युत मोटर एक घूर्णन युक्ति है जिसमें विद्युत ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इस युक्ति का उपयोग विद्युत पंखे, रेफ्रीजरेटरो, विद्युत मिक्सी, वाशिंग मशीन, कंप्यूटर, MP3 प्लेयर आदि में किया जाता है।

विद्युत मोटर का सिद्धात :


विद्युत मोटर का कार्य करने का सिद्धांत विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव पर आधारित है। चुंबकीय क्षेत्र में लोह-क्रोड़ पर लिपटी कुंडली से जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह एक बल का अनुभव करती है।

जिससे मोटर का आर्मेचर चुंबकीय क्षेत्र में घूमने लगता है। कुंडली के घूमने की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार होता है। यही विद्युत मोटर का सिद्धांत हैं।

विद्युत मोटर मे विभक्त वलय की भूमिका


विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्-परिवर्तक का कार्य करता है। दिक्-परिवर्तक एक युक्ति है जो परिपथ में विद्युत-धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देता है।

दिक्परिवर्तक (Commutator): वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है, उसे दिकपरिवर्तक कहते हैं।

संरचना :-
1. आर्मेचर :- विद्युत मोटर में एक विद्युत रोधी तार की एक आयतकार कुंडली ABCD जो कि एक नर्म लोहे के कोड पर लपेटी जाती है उसे आर्मेचर कहते हैं।

2. प्रबल चुम्बक :- यह कुंडली किसी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी जाती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लबंवत रहें।

3. विभक्त वलय या दिक परिवर्त्तक :- कुंडली के दो सिरे धातु की बनी विभक्त वलय को दो अर्ध भागों P तथा Q से संयोजित रहते हैं । इस युक्ति द्वारा कुंडली में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा को बदला या उत्क्रमित किया जा सकता है।

4. ब्रुश:- दो स्थिर चालक (कार्बन की बनी) ब्रुश X तथा Y विभक्त वलय P तथा Q से हमेशा स्पर्श में रहती है। ब्रुश हमेशा विभक्त वलय तथा बैटरी की जोड़ कर रखती है।

मोटर की कार्यविधि :-

  • 1. जब कुंडली ABCD में विद्युत धारा प्रवाहित होती हैं, तो कुंडली के दो भुजा AB तथा CD पर चुम्बकीय बल आरोपित होता है।
  • 2. फ्लेमिंग वामहस्त नियम के अनुसार कुंडली की AB भुजा पर आरोपित बल उसे अधोमुखी धकेलता है तथा CD भुजा पर आरोपित बल उपरिमुखी धकेलता है।
  • 3. दोनों भुजाओं पर आरोपित बल बराबर तथा विपरित दिशाओं में लगते हैं । जिससे कुंडली अक्ष पर वामावर्त घूर्णन करती है।
  • 4. आधे घूर्णन में Q का सम्पर्क ब्रुश X से होता है तथा P का सम्पर्क ब्रुश Y से होता है। अंत कुंडली में विद्युत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती हैं।
  • 5. प्रत्येक आधे घूर्णन क पश्चात विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराता  रहता है जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धूरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है।

व्यावसायिक मोटरों के गुण:-

  •  व्यावसायिक मोटर एक शक्तिशाली मोटर होता है। इसके निम्न गुणों के कारण यह शक्तिशाली होता है।
  • i. स्थायी चुंबकों के स्थान पर विद्युत चुंबक प्रयोग किए जाते हैं।
  • ii. विद्युत धारावाही कुंडली में फेरों की संख्या अत्यधिक होती है तथा
  • iii. कुंडली नर्म लौह-क्रोड पर लपेटी जाती है। वह नर्म लौह-क्रोड जिस पर कुंडली को लपेटा जाता है तथा कुंडली दोनों मिलकर आर्मेचर कहलाते हैं । इसमें मोटर की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।

वैद्युतचुंबकीय प्रेरण (Electro Magnetic Induction)


वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र के कारण अन्य चालक में विद्युत धारा प्रेरित होती है, वैद्युतचुंबकीय प्रेरण कहलाता है।वैद्युतचुंबकीय प्रेरण की खोज 1831 में माइकल फैराडे ने की ।
फैराडे की इस खोज ने कि “किसी गतिशील चुंबक का उपयोग किस प्रकार विद्युत धारा उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है”।

चुंबक को कुंडली की ओर ले जाने पर कुंडली के परिपथ में विद्युत धारा उत्पन्न होती है, जिसे गैल्वेनोमीटर की सुई के विक्षेप द्वारा इंगित किया जाता है। कुंडली के सापेक्ष चुंबक की गति एक प्रेरित विभवांतर उत्पन्न करती है, जिसके कारण परिपथ में प्ररित विद्युत धारा प्रवाहित होती है।


प्राथमिक कुंडली

द्वितीयक कुंडली

1. स्विच ऑन किया जाता है।
2. स्थायी विद्युत धारा
3. सिवच ऑफ किया जाता है।


गेल्वेनोमीटर में क्षणिक विक्षेप
कोई विक्षेप नहीं।
गेल्वेनोमीटर मे क्षणिक विक्षेप परन्तु पहले के विपरीत दिशा में।

गैल्वेनोमीटर (Galvanometer) : गैल्वेनोमीटर एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थित संसूचित करता है।

यदि इससे प्रवाहित विद्युत धारा शून्य है तो इसका संकेतक शून्य पर रहता है। यह अपने शून्य चिन्ह के या तो बाई और अथवा दाईं ओर विक्षेपित हो सकता है, यह विक्षेप धारा की दिशा पर निर्भर करता है।

किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के दो तरीके हैं:-
i. कुन्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति कराकर ।
ii. कुन्डली के चारों ओर के चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन कराकर ।

कुन्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गति कराकर प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना अधिक सुविधाजनक हैं।

 फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम (Flamming’s Right Hand Law) :



इस नियम के अनुसार, अपने दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती हैं तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा इसी नियम को फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम कहते हैं।

यह नियम:- (1) जनित्र (जनरेटर) की कार्य प्रणाली का सिद्धांत हैं।
(2) प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के काम आता है।

विद्युत जनित्र (Electric Generator) :

विद्युत जनित्र :- विद्युत जनित्र द्वारा विद्युत ऊर्जा या विद्युत धारा निर्माण किया जाता है विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता  है।

विद्युत जनित्र का सिंद्धांत :


विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुम्बकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है। जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती  है।

विद्युत जनित्र वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। एक आयताकार कुंडली ABCD को स्थायी के लम्बवत होती हैं तब कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। विद्युत जनित्र फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम पर आधारित हैं।

संरचना :-
1. स्थायी चुम्बक :- कुंडली को स्थायी प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच रखा जाता है।

2. आर्मेचर :- विद्युतरोधी तार के अधिक फेरों वाली आयताकार कुंडली ABCD जो एक नर्म व होले के क्रोड पर लपेटी जाती है उसे आर्मेच्र कहते हैं।

3. विलय :- कुंडली के दो सिरे दो Brass वलय R1and R2 से समायोजित होते हैं जब कुंडली धूर्णन गति करती हैं तो वलय R1 और R2 भी गति करते हैं।

4. ब्रुश – दो स्थिर चालक ग्रेफाइट ब्रुश B1 और B2 पृथक-पृथक रूप से क्रमश: वलय R1 और R2 को दबाकर रख्ती है। दोनों ब्रुश B1 और B2 कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा को बाहरी परिपथ में भेजने का कार्य करती है।

5. धुरी – दोनों वलय R1 और R2 धूरी से इस प्रकार जुड़ी रहती है कि बिना बाहरी परिपथ को हिलाय वलय स्वतंत्रतापूर्वक घूर्णन गति करती हैं।

6. गैलवोनोमीटर :- प्रेरित विद्युत धारा को मापने के लिए ब्रुशों के बाहरी सिरों को गैलवोनोमीटर के दोनों टर्मिनलों से जोड़ा जाता है।

कार्यविधि:-

  • 1. एक आयताकार कुंडली ABCD जिसे स्थायी चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच क्षैतिज रखा जाता है।
  • 2. कुंडली को दक्षिणावर्त घुमाया जाता है।
  • 3. कुंडली की भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे की ओर गति करती है।
  • 4. कुंडली चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं को काटती है।
  • 5. फ्लेमिंग दक्षिण हस्त नियमानुसार प्रेरित विद्युत धारा AB भूजा में A से B तथा CD भुजा में C से D की ओर बहता है।
  • 6. प्रेरित विद्युत धारा बाह्य विद्युत परिपथ में B2 से B1 की दिशा में प्रवाहित होती है।
  • 7. अर्धघूर्णन के पश्चात भुजा CD ऊपर की ओर तथा भुजा AB नीचे की ओर जाने लगती है। फलस्वरूप इन दोनों भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और DCBA के अनुदिश प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। बाह्य परिपथ में विद्युत धारा की दिशा B1 से B2 होती है।
  • 8. प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात बाह्य परिपथ में विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित होती हैं। ऐसी विद्युत धारा जो समान समय अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं।
  • 9. विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत जनित्र (AC जनित्र) कहते हैं।

प्रत्यावर्ती धारा (Alternate Curent ) : 

ऐसी विद्युत धारा जो समान काल – अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा में परिवर्तन कर लेती है, उसे प्रत्यावर्ती धारा (A.C) कहते हैं। विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र कहते हैं।

दिष्ट धारा (Direct Current) :- ऐसी विद्युत धारा जिसका प्रवाह एक ही दिशा में होती है दिष्ट धारा (D.C.) कहते हैं।

प्रत्यावर्ती धारा और दिष्टधारा में अंतर

प्रत्यावर्ती धारा (a.c):

  • i. यह एक निश्चित समय के अंतराल पर अपनी दिशा बदलती रहती है।
  • ii. इसे विद्युत जनित्र द्वारा उत्पन्न किया जाता है।

दिष्टधारा (d.c.)- सेल या बैटरी से उत्पन्न होता है ।

प्रत्यावर्ती धारा (a.c) विद्युत जनित्र


प्रत्यावर्ती धारा का लाभ:- प्रत्यवर्ती धारा का लाभ यह है कि विद्युत शक्ति को सुदूर स्थानों तक बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेक्षित किया जा सकता है।

भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति :-
(i) भारत में  प्रत्यावर्ती धारा की आवृति 50 हटर्ज है।
(ii) भारत में उत्पादित प्रत्यावर्ती विद्युत धारा 1/100 s पश्चात् अपनी दिशा उत्क्रमित करती है।

प्रत्यावर्ती धारा :-

 जो विद्युत धारा समान समय अंतरालों के पश्चात अपनी दिशा परिवर्तित कर लेती है।


भारत में विद्युत धारा हर 1/100 सेकंड के बाद अपनी दिशा उत्क्रमित कर लेती हैं।
समय अंतराल  = 1/100+1/100=1/50 सेकंड
आवृत्ति = 1/समय अंतराल  = 1/1/50 = 50 Hz

लाभ:- प्रत्यावर्ती धारा को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है।

हानि :– प्रत्यावर्ती धारा को संचित नहीं किया जा सकता है।

दिष्ट धारा


✯ जो विद्युत धारा अपनी दिशा परिवर्तित नहीं करती, दिष्ट धारा कहलाती है।
✯ दिष्ट धारा को संचित कर सकते हैं।
✯ सुदूर स्थानों पर प्रेषित करने में ऊर्जा का क्षय ज्यादा होता है।
​​​​​​​✯ स्रोत:- सेल, बैटरी, संग्रहक सेल ।

घरेलू विद्युत परिपथ:- तीन प्रकार की तारें प्रयोग में लाई जाती हैं।
1. विद्युन्मय तार (धनात्मक) – लाल विद्युत रोधी आवरण
2. उदासीन तार (ऋणात्मक) – काला विद्युत रोधी आवरण
3. भूसंपर्क तार- हरा विद्युत रोधी आवरण

​​​​​​​✯ भारत में विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार के बीच 220V का विभवांतर होता है।
​​​​​​​✯ खंभा → मूख्य आपूर्ति → फ्यूज → विद्युतमापी मीटर → वितरण वक्स → पृथक परिपथ

भूसम्पर्क तार:- 

यदि साधित्र के धात्विक आवरण से विद्युत धारा का क्षरण होता है तो यह हमें विद्युत आघात से बचाता है। यह धारा के क्षरण के समय अल्प प्रतिरोध पथ प्रदान करता है।

घरेलु परिपथ में भू-संपर्क तार लगाने के फायदे:-


भूसंपर्क तार एक सुरक्षा उपाय है जो यह सुनिश्चित करता है कि कोई उपकरण के धात्विक आवरण में विद्युत धारा आ जाती है तो उसका उपयोग करने वाला व्यक्ति को गंभीर झटका न लगे।
इस तार को घरेलु परिपथ के अलावा इसका एक और छोर भूमि में गहराई में दबी धातु की प्लेंट से संयोजित किया जाता है।

लघुपथन:- (शॉर्ट सर्किट):

 जब अकस्मात् विद्युन्मय तार व उदासीन तार दोनों सीधे संपर्क में आते हैं तो :
​​​​​​​✯ परिपथ में प्रतिरोध कम हो जाता है ।
​​​​​​​✯ अतिभारण हो सकता है।

अतिभारण:-

 जब विद्युत तार की क्षमता से ज्यादा विद्युत धारा खींची जाती है तो यह अतिभारण पैदा करता है।

कारण:-
1. आपूर्ति वोल्टता में दुर्घटनावश होने वाली वृद्धि
2. एक ही सॉकेट में बहुत से विद्युत साधित्रों को संयोजित करना ।

सुरक्षा युक्तियाँ:-


1. विद्युत फ्यूज
2. भूसंपर्क तार
3. मिनिएचर सर्किट ब्रेकर (M.C.B.)

पाठगत प्रश्नोत्तर

पृष्ठ संख्या 250

प्रश्न:- 1. चुंबक के निकट लाने पर द्विकसूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती हैं?
उत्तर:- दिकसूचक की सूई एक छोटा छड़ चुंबक होती है जिसके दोनों सिरे उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करते हैं। जब एक छड़ चुम्बक दिकसूचक के समीप लाया जाता है तो दिकसूचक सुई विक्षेपित होती है। चुम्बक का चुंबकीय क्षेत्र दिकसूचक के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों पर बराबर व विपरीत बल लगता है। इसलिए दिकसूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है।

पृष्ठ संख्या 255 :

प्रश्न:- 1. किसी छड़ चुंबक के चारो ओर चुंबकीय रेखाएँ खींचिए ?
उत्तर:-

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Chapter 2 अम्ल क्षारक एवं लवण
Chapter 3 धातु एवं अधातु
Chapter 4 कार्बन एवं उसके यौगिक
Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण
Chapter 6 जैव प्रक्रम
Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय
Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं
Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास
Chapter 10 प्रकाश परावर्तन तथा अपवर्तन
Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार
Chapter 12 विद्युत
Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
Chapter 14 ऊर्जा के स्रोत
Chapter 15 हमारा पर्यावरण
Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

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