NCERT Class 10 Science Chapter 15 हमारा पर्यावरण Notes in Hindi

NCERT 10 Class Science Chapter 15 हमारा पर्यावरण notes in hindi

NCERT Class 10 Science Chapter 15 हमारा पर्यावरण notes in hindi जिसमे हम पारितंत्र , पर्यावरणीय समस्याएं , ओजोन , अपशिष्ट उत्पादन और उनके समाधान आदि के बारे में पढ़ेगे ।

TextbookNCERT
ClassClass 10
Subjectविज्ञान
ChapterChapter 15
Chapter Nameहमारा पर्यावरण
CategoryClass 10 Science Notes
MediumHindi
class 10 विज्ञान के सभी अध्याय पढ़ने के लिए – click here

NCERT Class 10 Science Chapter 15 हमारा पर्यावरण Notes in hindi

📚 Chapter = 15 📚
💠 हमारा पर्यावरण💠

हमारा पर्यावरण

जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रण :- इन चक्रों में अनिवार्य पोषक तत्व जैसे- नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दूसरे रूप में बदलते रहते हैं।

उदाहरण:-  नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रोजन वायुमंडल में विभिन्न रूपों में एक चक्र बनाता है।

कार्बन चक्र में कार्बन वायुमंडल के विभिन्न भागों से अपने एक रूप से दूसरे रूप में बदलता रहता है। इससे एक चक्र का निर्माण होता है।

पर्यावरण (परि + आवरण) – हमारे चारों के वातावरण को, जिसमें सभी जीव व निर्जीव सम्मिलित हो, पर्यावरण कहते है ।

अथवा

वे सभी चीजें जो हमें हमें घेरे रखती हैं जो हमारे आसपास रहते हैं । इसमें जैविक तथा अजैविक घटक शामिल हैं। इसलिए सभी जीवों के अतिरिक्त इसमें जल व वायु आदि शामिल हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस – 5 जून

पर्यावरणीय अपशिष्ट

पर्यावरणीय अपशिष्ट :- जीवों द्वारा उपयोग की जाने वाले पदार्थों में बहुत से अपशिष्ट होते हैं जिनका अपघटन जैव-प्रक्रमों के द्वारा नहीं होता है एवं ये पर्यावरण में बने रहते हैं।

यह दो प्रकार के होते है –


i. जैव निम्नीकरणीय पदार्थ (Biodegradable substance)

 वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते है, जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है । उदाहरण – शाक-सब्जी, फलों आदि के अवशेष तथा मल-मूत्र आदि।

जैव निम्नीकरणीय पदार्थों के गुण :-

  • i. ये पदार्थ सक्रिय होते हैं ।
  • ii. इनका जैव अपघटन होता है।
  • iii. ये बहुत कम ही समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं।
  • iv. ये पर्यावरण को अधिक हानि नहीं पहुँचाते हैं।

पर्यावरण को क्षति :-

  • 1. जैव निम्नीकरण पदार्थो के सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटन से मुक्त विषाक्त एवं दुर्गन्धमय गैसे वातावरण को प्रभावित करती हैं।
  • 2. कार्बनिक जैव निम्नीकरण पदार्थों की अधिकता से ऑक्सीजन की कमी हो जाने से सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं । इसके परिणामस्वरूप अपघटन किया प्रभावित होती हैं।

ii. अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ (Non-biodegradable substance)

 वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित नहीं होते है, अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है । ये पदार्थ सामान्यतः अक्रिय हैं तथा लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते है अथवा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते है । उदाहरण – डी.डी.टी. , मानव निर्मित बहुत से ऐसे पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों से अप्रभावित रहते है।

जैव अनिम्नीकरणीय पदार्थों के गुण:-

  • i. ये पदार्थ अक्रिय होते हैं।
  • ii. इनका जैव अपघटन नहीं होता है।
  • iii. ये लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं।
  • iv. ये पर्यावरण के अन्य पदार्थों को हानि पहुँचाते हैं।

अजैव निम्नीकरण पदार्थो से होने वाली हानियाँ :-

  • प्लास्टिक जैसे पदार्थो को निगल लेने से शाकाहारी जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।
  • नाले – नालियों में अवरोध उत्पन्न होता हैं।
  • मृदा प्रदूषण बढ़ता हैं।
  • जल एवं वायु प्रदुषण बढ़ता हैं।
  • भूमि की उत्पादकता कम होती हैं।
  • पर्यावरण अस्वच्छ होता हैं।

जैव निम्नीकरणीय व अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों में अन्तर


(Differences between Biodegradable and Non-biodegradable wastages) –

क्र.सं.

जैव निम्नीकरणीय पदार्थ

अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ

1.

वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते है, जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है।

ऐसे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित नहीं होते है ,अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है।

2.

इसकी उत्पत्ति जैविक होती है।

ये सामान्यतः मानव द्वारा निर्मित होते है।

3.

ये प्रकृति में इकट्ठे नहीं होते है।

इनका ढ़ेर लग जाता है एवं प्रकृति में इकट्ठे हो जाते है।

4.

ये जैव आवर्धन प्रदर्शित नहीं करते हैं।

घुलनशील अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं अर्थात् जैव आवर्धन प्रदर्शित करते है।

5.

उदाहरण – मल-मूत्र, कागज, शाक, फल आदि।

उदाहऱण – प्लास्टिक, D.D.T., ऐल्युमिनियम के डिब्बे आदि।

आप पढ़ रहे है – NCERT Class 10 Science Chapter 15 notes

पारितंत्र अथवा पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem)

  •  जीवधारियों पर पर्यावरण के प्रभावों के अध्ययन को पारितंत्र कहते हैं । इसका प्रयोग सर्वप्रथम रेटर ने किया था।
  • किसी क्षेत्र विशेष के पादप, जंतु एंव पर्यावरणीय कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र बनाते है । अतः एक पारितंत्र में सभी जैव व अजैविक घटक होते है । भौतिक कारक जैसे ताप, वर्षा, वायु, मृदा एंव खनिज इत्यादि अजैव घटक है ।
  • उदाहरण – वन, तालाब, झील आदि प्राकृतिक पारितंत्र है ।
  • बगीचा तथा खेत मानव निर्मित या कृत्रिम पारितंत्र है ।

उदाहरण के लिए बगीचा में हमें विभिन्न जैव घटक जैसे- घास, वृक्ष, विभिन्न फूल आदि मिलते हैं वही जीवों के रूप में मेंढक, कीट पक्षी जैसे जीव होते हैं और अजैव घटक वहाँ का वायु, मृदा, ताप आदि होते हैं। अत: बगीचा एक पारितंत्र है।

जैव घटक :- किसी भी पर्यावरण के सभी जीवधारी जैसे- पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तु जैव घटक कहलाते हैं।

अजैव घटक :- किसी परितंत्र के भौतिक कारक जैसे-ताप,वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक कहलाते हैं।

पारितंत्र दो प्रकार के होते हैं :-
i. प्राकृतिक परितंत्र :- वन, तालाब नदी एवं झील आदि प्राकृतिक पारितंत्र है।
ii. कृत्रिम पारितंत्र :- बगीचा, खेत आदि कृत्रिम अर्थात् मानव निर्मित पारितंत्र है।

जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों का वर्गीकरण:-

जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों को तीन भागों में विभाजित किया गया है-
1. उत्पादक (Producter)
2. उपभोक्ता (Consumer)
3. अपघटक (Decomposer)

पारितंत्र के मुख्य दो घटक हैं।

1. अजैविक घटक –

  • अकार्बनिक – इसमें जल (H2O), CO2, लवण, अमोनिया (NH3), फॉस्फोरस, पौटेशियम आदि।
  • कार्बनिक – इसमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि अणु सम्मिलित हैं।
  • भौतिक – इसमें वातावरणीय कारक जैसे वायु, जल, मृदा, ताप, प्रकाश आदि सम्मिलित हैं।

2. जैविक घटक- इसमें विभिन्न जीवधारी सम्मिलित किये जाते हैं।

i. उत्पादक या स्वपोषी (Producers or Autotrophs) – वे जीव जो सूर्य के प्रकाश में अकार्बनिक पदार्थों जैसे शर्करा व स्टार्च का प्रयोग कर अपना भोजन बनाते हैं, उत्पादक कहलाते हैं।
अर्थात् प्रकाश संश्लेषण करने वाले सभी रहे पौधे, नील-हरित शैवाल आदि उत्पादक कहलाते हैं।

ii. उपभोक्ता या विषमपोषी (Consumers or Heterotrophs) – वे जीव जो उत्पादकों द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर रहते है, उपभोक्ता कहलाते है ।

उपभोक्ताओं को मुख्यतः निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है-
1. शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता – ये अपने पोषण के लिए हरे पौधों अर्थात् उत्पादकों पर निर्भर रहते है। उदाहरण – बकरी, गाय, हिरण, खरगोश आदि।

2. छोटे माँसाहारी या द्वितीयक उपभोक्ता – ये शाकाहारी जंतुओं या प्राथमिक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में ग्रहण करते है। उदाहरण – मेढ़क, लोमड़ी, कुत्ता, बिल्ली आदि।

3. बड़े माँसाहारी या तृतीयक अपभोक्ता – कुछ माँसाहारी जीव जो दूसरे माँसाहारी जीवों या द्वितीयक उपभोक्ता को मारकर अपना भोजन प्राप्त करते है, तृतीय उपभोक्ता कहलाते है, इन्हें उच्च उपभोक्ता कहते है। उदाहरण – गिद्ध, बाज, शेर आदि।

4सर्वाहारी अथवा सर्वभक्षी – वे जीव जो सजीव व उनके द्वारा उत्सर्जित पदार्थों तथा मृत जीवों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते है, सर्वाहारी कहलाते है। उदाहरण – कॉकरोच।

5. परजीवी – वे जीव जो दूसरे जीवों को बिना मारे, उनके शरीर पर आश्रित होकर अपना पोषण प्राप्त करते हैं, परजीवी कहलाते है। उदाहरण – जूँ , मनुष्य की आंत में रहने वाले जीवाणु।

iii. अपघटक जीव या सूक्ष्म उपभोक्ता (Decomposers or microconsumers) – ये मृत जीवों अथवा सड़े-गले पदार्थों के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करते है । सरल कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थों को ये सूक्ष्म उपभोक्ता भोजन के रूप में अवशोषण करते है, इन्हें अपमार्जक भी कहते है । उदाहरण – अपघटक जीवाणु , कवक आदि।

उत्पादक

उपभोक्ता

उत्पादकों की श्रेणी में वनस्पतियों को रखा जाता हैं।

इसके अन्तर्गत उन जीवों को रखा जाता हैं जो भोजन के लिए उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं।

ये स्वपोषी (autotrophic) होते हैं।

ये परपोषी (heterotrophic) होते हैं।

सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण (photo-synthesis) की क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं

प्रकाश-संश्लेषण (photo-synthesis) की क्रिया नहीं होती हैं, अत: स्वयं भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं।

उत्पादक एक ही प्रकार के होते हैं।

ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
i. शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता ।
ii. द्वितीयक उपभोक्ता — जो शाकाहारियों को खाते हैं।
iii. तृतीयक या उच्च श्रेणी के उपभोक्ता — जो शाकाहारी एवं प्राथमिक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में खाते हैं।
ये उत्पादकों द्वारा उत्पन्न भोज्य पदार्थों का उपयोग करते हैं।

आहार श्रृंखला या खाद्य श्रृंखला (food chain)

 जीवों की एक ऐसी श्रृंखला जिसके अन्तर्गत खाने व खाए जाने की पुनरावृति द्वारा खाद्य ऊर्जा का प्रवाह होता है, उसे खाद्य श्रृंखला कहते है।

अथवा

पादप स्रोत से विभिन्न जीवों की श्रृंखला द्वारा खाद्य ऊर्जा का संचरण खाद्य श्रृंखला कहलाता है।

अथवा

जीवों की वह श्रृंखला जिसके प्रत्येक चरण में एक पोषी स्तर का निर्माण करते हैं जिसमें जीव एक-दूसरे का आहार करते हैं। इस प्रकार विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की इस श्रृंखला को आहार श्रृंखला कहते हैं।


उदाहरण :-
(a) हरे पौधे → हिरण → बाघ
(b) हरे पौधे → टिड्‌डा→ मेंढक → साँप → गिद्ध/चील
(c) हरे पौधे → बिच्छु → मछली→ बगूला

पोषण स्तर (trophic level) अथवा पोषी स्तर अथवा ऊर्जा स्तर – खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर अथवा कड़ी या जीव को पोषण स्तर कहते है।

स्वपोषी या उत्पादकों को प्राथमिक पोषी स्तर, शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता को द्वितीय पोषी स्तर , छोटे माँसाहारी या द्वितीय उपभोक्ताओं को तृतीय पोषी स्तर तथा उच्च उपभोक्ता को चतुर्थ पोषी स्तर कहते है ।

प्राथमिक पोषी स्तर (उत्पादक) सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करके उसे रासायनिक ऊर्जा में बदलकर संग्रहित कर लेते है ,यही ऊर्जा विभिन्न पोषी स्तरों को स्थानान्तरित होती रहती है जो उनके जैविक क्रियाकलापों को करने में सहायक होती है ।

खाद्य जाल (food web) – पारिस्थितिक तंत्र में एक से अधिक खाद्य श्रृंखलायें आपस में किसी न किसी खाद्य क्रम (पोषण स्तर) में जुड़कर एक जटिल जाल सा बना लेती है, जिसे खाद्य जाल कहते है।

खाद्य जाल में एक जीव एक से अधिक जीवों द्वारा खाया जाता है। इससे जीवों को भोजन प्राप्ति के एक अधिक विकल्प मिल जाते है । इससे पारितंत्र में जीवों के मध्य संतुलन बना रहता है । उदाहरण – जैसे चूहे को बिल्ली व सांप द्वारा खाया जाता है इससे चूहों की संख्या नियंत्रित रहती है । अन्यथा चूहों की संख्या बढ़ जाती और पारितंत्र में अव्यवस्था हो जाती है।

आहार श्रृंखला

आहार जाल

i. इसमें कई पोषी स्तर के जीव मिलकर एक श्रृंखला बनाते है।

i. इसमें कई आहार श्रृंखलाएँ एक दूसरे से जुड़ी होती है।

ii. इसमें ऊर्जा प्रवाह की दिशा रेखीय होती है।

ii. इसमें ऊर्जा प्रवाह शाखान्वित होती है।

iii. आहार श्रृंखला सामान्यत: तीन या चार चरण की होती है।

iii. यह यह एक जाल की तरह होता है जिसमें कई चरण होते हैं।

सूर्य से प्राप्त ऊर्जा :-  एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधे की पत्तियों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते है।

ऊर्जा स्थानान्तरण का दस प्रतिशत नियम:-

  इस नियम के अनुसार किसी भी आहार श्रृंखला में प्रत्येक पोषण स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा उससे पहले स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का 10% होती हैं ।

प्रत्येक श्रेणी के जीव एक पोषण स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा उससे पहले स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का 10% होती हैं। प्रत्येक श्रेणी के जीव एक पोषण स्तर बनाते हैं ।

प्रत्येक पोषण स्तर पर लगभग 90% तक ऊर्जा जैविक क्रियाओं तथा ऊष्मा के रूप में निकल जाती हैं तथा केवल 10% ऊर्जा संचित रहती हैं ।

यह ऊर्जा ही अगले पोषण स्तर के लिए उपलब्ध रहती हैं। इस प्रकार अन्तिम पोषण स्तर तक पहुँचते-पहुँचते बहुत कम ऊर्जा रह जाती हैं ।

इसे लिण्डेमान का ऊर्जा सम्बन्धी 10% ऊर्जा संचित रहती हैं। यह ऊर्जा ही अगले पोषण स्तर के लिए उपलब्ध रहती हैं। इस प्रकार अन्तिम पोषण स्तर तक पहुँचते – पहुँचते बहुत कम ऊर्जा रह जाती है। इसे “लिण्डेमान का ऊर्जा सम्बन्धी 10% का नियम” भी कहते हैं।
उदाहरण :- विभिन्न पोषी स्तर

उत्पादक → प्राथमिक उपभोक्ता → द्वितीयक उपभोक्ता → तृतीयक उपभोक्ता

माना यदि उत्पादकों में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जो 1% के रूप में 1000 J है तो ऊर्जा प्रवाह के 10% नियम के अनुसार –

ऊर्जा प्रवाह:-
उत्पादक में 1000 J है तो प्राथमिक उपभोक्ता में यह ऊर्जा केवल 100J जाएगा । जबकि उसके अगले पोषी स्तर यानि द्वितीय पोषी स्तर में यह 10% के हिसाब से 10 J ही जा पायेगा और तृतीय उपभोक्ता में केवल 1 जूल ही जा पाता है।

उत्पादक → प्राथमिक उपभोक्ता → द्वितीयक उपभोक्ता → तृतीयक उपभोक्ता

1000J → 1000 J का  10% 10 J → 10 J का 10% = 1 J

विभिन्न पोषी स्तरों पर ऊर्जा प्रवाह का अध्ययन –

 किसी पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह के अध्ययन को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते है –
1. एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधे की पत्तियों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1 % भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित होता है।

2. जब हरे पौधे प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते है तो उनसे प्राप्त होने वाली ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा उष्मा के रूप में ह्रासित हो जाती है और कुछ मात्रा का उपयोग पाचन ,विभिन्न जैविक कार्यों में, वृद्धि व जनन में होता है।

3. खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10 % ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है । अतः हम कह सकते हैं कि प्रत्येक स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है।

4. उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है अतः आहार श्रृंखला सामान्यतः तीन अथवा चार चरण की होती है। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चतुर्थ पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है।

5. निचले पोषी स्तर पर जीवों की संख्या अधिक होती है अतः उत्पादक स्तर पर ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है।

6. ऊर्जा प्रवाह के आरेखीय चित्र से ज्ञात होता है कि ऊर्जा का प्रवाह निचले पोषी स्तर से उच्च पोषी स्तर की ओर होता है अथवा ऊर्जा प्रवाह हमेशा एक दिशिक(एक ही दिशा में) होता है।

7. स्वपोषी जीवों द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा पुनः सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती तथा शाकाहारियों को स्थानांतरित की गई ऊर्जा पुनः स्वपोषी जीवों को उपलब्ध नहीं होती है। यह विभिन्न पोषी स्तरों पर क्रमिक स्थानांतरित होती है, अपने से पहले पोषी स्तर के लिए उपलब्ध नहीं होती है।

पारितंत्र में अपमार्जक की भूमिका – पारितंत्र में अपमार्जकों का विशिष्ट स्थना है। पारितंत्र में जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव अपमार्जकों का कार्य करते है।

ये पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं के मृत शरीरों पर आक्रमण कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों पदार्थों में बदल देते है।

इसी प्रकार कचरा जैसे सब्जियों एवं फलों के छिलके, जंतुओं के मल-मूत्र, पौधों के सड़े-गले भाग अपमार्जकों द्वारा विघटित किए जाते है। इस प्रकार पदार्थों के पुनः चक्रण में अपमार्जक सहायता करते है और वातावरण को स्वच्छ रखते है।

ओजोन – ओजोन (O3के अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से निर्मित होते है। ओजोन एक घातक विष है।

परन्तु वायुमण्डल के ऊपरी स्तर में ओजोन एक आवश्यक प्रकार्य सम्पादित करती है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है। ये पराबैंगनी विकिरणें (UV rays) जीवों के लिए हानिकारक होती है। ये मानव में त्वचा कैंसर उत्पन्न करती है।

ओजोन गैस निर्माण की प्रक्रिया – वायुमण्डल के उच्च स्तर पर पराबैंगनी विकिरण के प्रभाव से ऑक्सीजन (O2) के अणुओं से ओजोन बनती है ।

उच्च ऊर्जा वाले पराबैंगनी विकिरण ऑक्सीजन अणुओं (O2) विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन परमाणु (O) बनाते है। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु पराबैंगनी विकिरणों की उपस्थिति में ऑक्सीजन अणुओं से संयुक्त होकर ओजोन (O3) बनाते है।

ओजोन गैस का अपक्षय 

 1980 से वायुमण्डल में ओजोन की मात्रा में तीव्रता से गिरावट आने लगी। क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs) जैसे मानव संश्लेषित रसायनों को इसका मुख्य कारक माना गया है। इसका उपयोग रेफ्रिजरेटर (शीतलन) एवं अग्निशमन के लिए किया जाता है। ये CFCs ही ओजोन परत के अपक्षय के लिए मुख्य कारक है।

1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) में सर्वानुमति बनी की CFCs के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए।

कचरा प्रबंधन – किसी भी नगर एवं कस्बे में जाने पर चारों ओर कचरे के ढ़ेर दिखाई देते है। विभिन्न पर्यटन स्थलों पर बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थों की खाली थैलियाँ इधर-उधर पड़ी रहती है।

पैकेजिंग के तरीकों में बदलाव से अजैव निम्नीकरणीय कचरे की मात्रा में वृद्धि हुई। जिसका निपटान करना एक गंभीर समस्या बन गया है।

हम निम्न उपायों को अपनाकर कचरे के अपशिष्ट निपटान में मदद कर सकते है –

  • 1. जैव निम्नीकणीय व अजैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थों को अलग-अलग करके समाप्त करना।
  • 2. अजैव निम्नीकणीय अपशिष्ट पदार्थों को का पुनः चक्रण के बाद पुनः उपयोग करना चाहिए। जैसे- प्लास्टिक, धातुएँ आदि।
  • 3. जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थों जैसे रसोई की बेकार सामग्री, खाना बनाने के बाद बची सामग्री, पत्तियाँ आदि को जमीन में गड्ढ़ा खोदकर इन्हें दबाकर खाद तैयार किया जा सकता है, जिससे पौधों को उच्च कोटी की खाद उपलब्ध हो सके।
  • 4. कचरे को आग से जलाकर नष्ट किया जा सकता है एवं बायोगैस का उत्पादन कर कचरा निपटान की समस्या को कम किया जा सकता है।

जैव आवर्धन (Biological Magnification) :

 आहार श्रृंखला में जीव एक दूसरे का भक्षण करते हैं । इस प्रक्रम में कुछ हानिकारक रासायनिक पदार्थ आहार श्रृंखला के माध्यम से एक जीव से दूसरे जीव में स्थानांतरित हो जाते हैं इसे ही जैव आवर्धन कहते हैं।
अन्य शब्दों में आहार श्रृंखला में हानिकारक पदार्थों का एक जीव से दूसरे में स्थानान्तरण जैव आवर्धन कहलाता है।

जैव आवर्धन :- 

फसलों में अनेक रसायनों जैसे – कीटनाशी, पीड़कनाशी तथा उर्वरकों का प्रयोग किया जाता हैं ।

इनका कुछ भाग मृदा में मिल जाता हैं जो पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता हैं जबकि इनका कुछ भाग वर्षा जल के साथ घुलकर जलाशयों में चला जाता हैं । जलीय पौधे इन्हें अवशोषित करते हैं जिससे यह खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं । ये रसायन अजैव निम्नीकरणीय होते हैं । इस प्रकम को “जैव आवर्धन” कहते हैं।
उदाहरण :- डी.डी.टी. → शैवाल → मछली → पक्षी

People are searching online on Google

पाठ 15 हमारा पर्यावरण pdf
Class 10 Science Chapter 15 Notes
हमारा पर्यावरण कक्षा 10 NCERT PDF
Class 10 Science Chapter 15 Notes PDF
हमारा पर्यावरण क्लास १० नोट्स
Class 10 Science Chapter 15 PDF
Class 10 Science Chapter 15 notes in Hindi
Our Environment Class 10 Notes
हमारा पर्यावरण नोट्स
Our Environment Class 10 questions and answers PDF
हमारा पर्यावरण प्रश्न उत्तर Class 10

हमारा पर्यावरण कक्षा 10 नोट्स pdf

विज्ञान में 15 पाठ के प्रश्न उत्तर

 Class 10 Science notes 

Chapter 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण
Chapter 2 अम्ल क्षारक एवं लवण
Chapter 3 धातु एवं अधातु
Chapter 4 कार्बन एवं उसके यौगिक
Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण
Chapter 6 जैव प्रक्रम
Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय
Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं
Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास
Chapter 10 प्रकाश परावर्तन तथा अपवर्तन
Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार
Chapter 12 विद्युत
Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
Chapter 14 ऊर्जा के स्रोत
Chapter 15 हमारा पर्यावरण
Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

Leave a Comment

20seconds

Please wait...