मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया|NCERT Class 10 History Notes In Hindi

Class 10 History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes in hindi जिसमे हम शुरुआती छपी किताबें , यूरोप में मुद्रण का आना , मुद्रण क्रांति और उसका असर , भारत का मुद्रण संसार , धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें , प्रकाशन के नए रुप , प्रिंट और प्रतिबंधो आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 10 इतिहास में मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया के NCERT हिंदी नोट्स के साथ आसानी से परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करें।

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHistory
ChapterChapter 5
Chapter Nameमुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
CategoryClass 10 History
MediumHindi

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

Class 10 History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes in hindi

सामाजिक विज्ञान (इतिहास) अध्याय-5: मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

शुरुआती छपी किताबें / Early printed books

प्रिंट टेक्नॉलोजी का विकास:

  • प्रिंट टेक्नॉलोजी का प्रारंभिक विकास सबसे पहले चीन, जापान और कोरिया में हुआ।
  • चीन में 594 इसवी के बाद से ही लकड़ी के ब्लॉक पर स्याही लगाकर उससे कागज पर प्रिंटिंग की जाती थी।

प्रिंटिंग प्रक्रिया:

  • उस समय कागज पतले और झिरीदार होते थे, जिससे दोनों तरफ से छपाई करना संभव नहीं था।
  • कागज के दोनों सिरों को टाँके लगाकर फिर बाकी कागज को मोड़कर एकॉर्डियन बुक बनाई जाती थी।

उस जमाने मे किस तरह की किताबें छापी जाती थी और उन्हें को पढ़ता था?

What kind of books were printed in those times and who read them?

चीन के राजतंत्र में छपे हुए सामान का उत्पादन:

  • चीन के राजतंत्र में लंबे समय तक सामान का सबसे बड़ा उत्पादक था।
  • चीन के प्रशासनिक तंत्र में सिविल सर्विस परीक्षा द्वारा लोगों की बहाली की जाती थी।

पाठ्यपुस्तकों की छपाई:

  • सिविल सर्विस परीक्षा के लिए चीन के राजतंत्र ने बड़े पैमाने पर पाठ्यपुस्तकें छपवाई थीं।
  • सोलहवीं सदी में इस परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या बहुत बढ़ गई और इसलिए किताबों की छपाई की रफ्तार भी तेज हो गई।

तो क्या केवल विद्यार्थीयो के लिए छपाई होती थी

So was printing done only for students?

शहरी परिवेश के विकास से छपाई का उपयोग:

  • सत्रहवीं सदी तक चीन में शहरी परिवेश के विकास के कारण छपाई का इस्तेमाल कई कामों में होने लगा।
  • छपाई केवल बुद्धिजीवियों या अधिकारियों तक ही सीमित नहीं रही।

व्यापारिक उपयोग:

  • अब व्यापारियों ने भी छपाई का उपयोग करना शुरू किया ताकि व्यापार से जुड़े हुए आँकड़े रखना आसान हो।

साहित्यिक और सामाजिक उपयोग:

  • कहानियाँ, कविताएँ, जीवनी, आत्मकथा, नाटक आदि छपकर आने लगे, जिससे पढ़ने के शौकीन लोगों को अधिक विकल्प मिलने लगे।
  • खाली समय में पढ़ना एक फैशन जैसा बन गया था और रईस महिलाओं में भी पढ़ने का शौक बढ़ने लगा।
  • छपाई के माध्यम से कई महिलाएं अपनी कविताएँ और कहानियाँ भी छपवाने लगीं।

जापान में छापाई कैसे आया

How did printing come to Japan?

प्राचीन काल में प्रारंभ:

  • प्रिंट टेक्नॉलोजी को बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने 768 से 770 इसवी के आस पास जापान लाया।
  • बौद्ध धर्म की किताब “डायमंड सूत्र” जो 868 इसवी में छपी थी, को जापानी भाषा की सबसे पुरानी किताब माना जाता है।

हाथ से छपी किताबें:

  • उस समय पुस्तकालयों और किताब की दुकानों में हाथ से छपी किताबें और अन्य सामग्रियाँ भरी होती थीं।

विषयों पर किताबें:

  • किताबें कई विषयों पर उपलब्ध थीं, जैसे महिलाओं, संगीत के साज़ों, हिसाब-किताब, चाय अनुष्ठान, फूलसाज़ी, शिष्टाचार और रसोई पर लिखी, आदि।

यूरोप में मुद्रण का आना

Arrival of printing in europe

सिल्क रूट के माध्यम से:

ग्याहरवीं शताब्दी में, सिल्क रूट के माध्यम से चीनी कागज़ यूरोप पहुँचा।

मार्को पोलो और मुद्रण का ज्ञान:

1925 में मार्को पोलो चीन से मुद्रण का ज्ञान लेकर इटली गया।

पुस्तक विक्रेताओं की माँग:

किताबों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए अब पुस्तक विक्रेता सुलेखक या कातिब को रोजगार देने लगे।

हस्तलिखित पांडुलिपियों की माँग:

हस्तलिखित पांडुलिपियों के माध्यम से पुस्तकों की भारी माँग को पूर्ण कर पाना असंभव था।

गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस

Gutenberg’s Printing Press

जोहान गुटेनबर्ग का बचपन:

  • गुटेनबर्ग के पिता एक व्यापारी थे और वह बड़े होकर खेती के बड़े रियासत में पले।
  • उन्होंने बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीनों को देखा।

अनुभव से नए अविष्कार:

  • गुटेनबर्ग ने पत्थर की पोलिश करने की कला सीखी, फिर सुनारी और अंत में उन्होंने शीशे की आकृतियों में गढ़ने में माहिरत हासिल की।
  • उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव का इस्तेमाल करके नए अविष्कार में काम किया।

प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार:

  • गुटेनबर्ग ने जैतून प्रेस का उपयोग करके प्रिंटिंग प्रेस का आदर्श बनाया।
  • साँचे का उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को गढ़ने के लिए किया गया।

प्रथम छपी किताब:

  • गुटेनबर्ग ने 1448 तक अपना प्रिंटिंग प्रेस मुकम्मल कर लिया और सबसे पहली छपी पुस्तक थी बाइबिल।

छपाई की राह:

  • शुरू में छपी किताबें हस्तलिखित जैसी ही थीं, लेकिन यह प्रक्रिया समय के साथ सुधारती गई।
  • 1440 -1550 के मध्य यूरोप के अधिकांश देशों में छापेखाने लग गए थे।

प्लाटेन / Plantain

प्लाटेन का उपयोग:

  • लेटरप्रेस छपाई में प्लाटेन एक बोर्ड होता है, जिसे कागज़ के पीछे दबाकर टाइप की छाप ली जाती थी।

मैटेरियल का परिवर्तन:

  • पहले यह बोर्ड काठ का होता था, जिसमें आक्षांशिक छाप किया जाता था।
  • बाद में इस्पात का प्लाटेन बनने लगा, जिससे बेहतर और धारणात्मक छाप किया जा सकता था।

मुद्रण क्रांति और उसका असर

Printing revolution and its impact

नया पाठक वर्ग:

  • छापेखाने के आने से एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ, जिसे पढ़ने की सुविधा प्राप्त हुई।

लागत और श्रम की कमी:

  • छपाई में लगने वाली लागत व श्रम कम हो गया, जिससे किताबों की उत्पादन में बचत हुई।

कीमत में गिरावट:

  • छपाई से किताबों की कीमत गिरी, जिससे वे सामान्य जनता तक पहुँच सकी।

बजार में परिवर्तन:

  • बाजार में किताबों की प्रचुरता से पाठक वर्ग भी बृहत्तर होता गया।

पाठक में परिवर्तन:

  • मुद्रण क्रांति के कारण पहले जो जनता श्रोता थी वह अब पाठक में बदल गई, जिससे भारी जनता तक प्रकाशित कागज़ों की पहुँच हुई।

समाजिक परिणाम:

  • अब किताबें समाज के व्यापक तबकों तक पहुँच चुकी थी, जिससे विद्या और ज्ञान का अधिक प्रसार हुआ।

धार्मिक विवाद एवं प्रिंट का डर

Religious controversy and fear of print

विद्रोही एवं अधार्मिक विचार का भय:

  • अधिकांश लोगों को यह भय था कि अगर मुद्रण पर नियंत्रण नहीं किया गया तो विद्रोही एवं अधार्मिक विचार पनपने लगेंगें।

मार्टिन लूथर और धर्म सुधार:

  • धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने अपने लेखों के माध्यम से कैथोलिक चर्च की कुरीतियों का वर्णन किया।

धर्मसुधार की शुरूआत:

  • लूथर के टेस्टामेंट के तर्जुमें के कारण चर्च का विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेंट धर्मसुधार की शुरूआत हुई।

इंकविजिशन:

  • धर्म-विरोधियों को सुधारने हेतु रोमन चर्च ने इंकविजिशन आरंभ किया, जिससे धर्मिक विवाद बढ़ा।

प्रतिबंधित किताबों की सूची:

  • 1558 में रोमन चर्च ने प्रतिबंधित किताबों की सूची प्रकाशित की, जिससे धार्मिक साहित्य पर प्रतिबंध लगाया गया।

पढ़ने का जुनून

Passion for reading

साक्षरता के स्तर में सुधार:

  • सत्रहवीं और अठारहवीं सदी में यूरोप में साक्षरता के स्तर में काफी सुधार हुआ।
  • यूरोप के कुछ भागों में साक्षरता का स्तर अठारहवीं सदी के अंत तक 60 से 80 प्रतिशत तक पहुंच चुका था।

प्रमुख बिकने वाली किताबें:

  • पत्रिकाएँ, उपन्यास, पंचांग, आदि सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें थीं।

विचारों का प्रसार:

  • छपाई के कारण वैज्ञानिकों और तर्कशास्त्रियों के नये विचार और नई खोज सामान्य लोगों तक आसानी से पहुँच पाते थे।
  • अब नए आइडिया को अधिक से अधिक लोगों के साथ बाँटा जा सकता था और उसपर बेहतर बहस भी हो सकती थी।

मुद्रण संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति

Printing culture and the French Revolution

विचारों का प्रसार:

  • प्रिंट संस्कृति के चलते विचारों का प्रसार हुआ, और उनके लेखन ने परंपरा, अविश्वास और निरकुंशवाद की आलोचना की।

रीति-रिवाजों की आलोचना:

  • रीति-रिवाजों की जगह विवेक के शासन पर बल दिया गया, जिसने सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित किया।

चर्च और राज्य पर हमला:

  • छपाई ने चर्च की धार्मिक और राज्य की निरकुंश सत्ता पर हमला किया, जिसने नागरिकों में आंदोलन की भावना को उत्तेजित किया।

नई संस्कृति का जन्म:

  • छपाई ने वाद-विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया, जो सामाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक विचारों के बीच एक नया बहसी स्थान स्थापित करने में मदद की।

उन्नीसवीं सदी

Nineteenth century

साक्षरता का उछाल:

  • उन्नीसवीं सदी में यूरोप में साक्षरता में जबरदस्त उछाल आया, जिससे एक नया पाठक वर्ग उभरा।

बच्चों की किताबें:

  • बच्चों की कच्ची उम्र और अपरिपक्व दिमाग को ध्यान में रखते हुए, उनके लिए अलग-अलग किताबें लिखी गईं।
  • कई लोककथाओं को सरल भाषा में लिखा गया ताकि बच्चे उन्हें आसानी से समझ सकें।

महिलाओं का योगदान:

  • कई महिलाएं पाठिका के साथ साथ लेखिका भी बन गईं, जिससे उनका महत्व और बढ़ गया।

पुस्तकालयों का प्रचलन:

  • किराये पर किताब देने वाले पुस्तकालय सत्रहवीं सदी में ही प्रचलन में आ गये थे।
  • अब उन तरह के पुस्तकालयों में व्हाइट कॉलर मजदूर, दस्तकार और निम्न वर्ग के लोग भी अड्डा जमाने लगे।

प्रिंट तकनीक में अन्य सुधार

Other improvements in print technology

रिचर्ड एम . हो द्वारा बनाई गई प्रेस:

  • न्यू यॉर्क के रिचर्ड एम . हो ने उन्नीसवीं सदी के मध्य तक शक्ति से चलने वाला बेलनाकार प्रेस बना लिया था।
  • इस प्रेस से एक घंटे में 8,000 पेज छापे जा सकते थे।

ऑफसेट प्रिंटिंग:

  • उन्नीसवीं सदी के अंत में ऑफसेट प्रिंटिंग विकसित हो चुका था।
  • ऑफसेट प्रिंटिंग से एक ही बार में छ: रंगों में छपाई की जा सकी थी।

बिजली से चलने वाले प्रेस:

  • बीसवीं सदी के आते ही बिजली से चलने वाले प्रेस भी इस्तेमाल में आने लगे।
  • इससे छपाई के काम में तेजी आ गई।

किताबें बेचने के नये तरीके

New ways to sell books

धारावाहिक उपन्यास:

  • उन्नीसवीं सदी में कई पत्रिकाओं में उपन्यासों को धारावाहिक की शक्ल में छापा जाता था।
  • इससे पाठकों को उस पत्रिका का अगला अंक खरीदने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता था।

शिलिंग सीरीज:

  • 1920 के दशक में इंग्लैंड में लोकप्रिय साहित्य को शिलिंग सीरीज के नाम से सस्ते दर पर बेचा जाता था।

जिल्द का प्रचलन:

  • किताब के ऊपर लगने वाली जिल्द का प्रचलन बीसवीं सदी में शुरु हुआ।

पेपरबैक संस्करण:

  • 1930 के दशक की महा मंदी के प्रभाव से पार पाने के लिए पेपरबैक संस्करण निकाला गया जो कि सस्ता हुआ करता था।

भारत का मुद्रण संसार / Printing world of india

पांडुलिपियों की परंपरा:

  • भारत में संस्कृत, अरबी, फारसी और विभिन्न श्रेत्रीय भाषाओं में हस्त लिखित पांडुलिपियों की पुरानी और समृद्ध परंपरा थी।
  • पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थी और उन्हें जिल्द या तख्तियों में बाँध दिया जाता था।

शैक्षिक प्रणाली:

  • पूर्व औपनिवेशक काल में बंगाल में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालाओं का बड़ा जाल था, लेकिन विद्यार्थी आमतौर पर किताबें नहीं पढ़ते थे।
  • गुरु अपनी याद्दाश्त से किताबें सुनाते थे, और विद्यार्थी उन्हें लिख लेते थे। इस तरह कई लोग बिना किताब पढ़े साक्षर बन जाते थे।

पाण्डुलिपियाँ / Manuscripts

हाथों से लिखी पुस्तकों को पांडुलिपियाँ कहते हैं।

पाण्डुलिपि - राजस्थान संस्कृत अकादमी - Rajasthan Sanskrit Academy

इनके प्रयोग की सीमाएँ / Limitations of their use

माँग की बढ़ती समस्या:

  • किताबों की बढ़ती माँग के कारण पाण्डुलिपियों से पूरी नहीं होने वाली थी।

उतार-चढ़ाव की समस्या:

  • नकल उतारना बेहद खर्चीला और समय अधिक लगता था।

नाजुकता और रख-रखाव की मुश्किलता:

  • पाण्डुलिपियाँ बहुत नाजुक होती थीं और उनका रख-रखाव करना मुश्किल था।
  • उन्हें लाने और ले जाने में भी मुश्किलाएँ आती थीं।

आदान-प्रदान की मुश्किलता:

  • उपरोक्त समस्याओं की वजह से उनका आदान-प्रदान करना भी मुश्किल था।

मुद्रण संस्कृति का भारत आना / Printing culture coming to India

प्रिटिंग प्रेस का प्रवेश:

  • सोलहवीं सदी में, प्रिटिंग प्रेस की पहली जानकारी भारत में गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारक के साथ आई।

पुस्तकों की छपाई:

  • 1674 ई. तक कोकणी और कन्नड़ भाषाओं में लगभग 50 पुस्तकें छापी जा चुकी थीं।

तमिल और मलयालम में प्रकाशन:

  • 1579 में कोचीन में पहली तमिल किताब छापी गई और 1713 में पहली मलयालम पुस्तक छापी गई, जिन्हें कैथोलिक पुजारियों ने प्रकाशित किया।

पत्रिकाओं का संपादन:

  • 1780 से जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने बंगाल गज़ट नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया।
  • गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल गजट का प्रकाशन किया, जो पहला भारतीय अखबार था।

धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहसें / Religious reform and public debates

प्रिंट संस्कृति का प्रभाव:

  • प्रिंट संस्कृति के आगमन से भारत में धार्मिक, सामाजिक, और राजनैतिक मुद्दों पर सार्वजनिक बहसें शुरू हुईं।
  • लोगों ने कई धार्मिक रिवाजों के प्रति आलोचना की।

राममोहन राय और संबाद कौमुदी:

  • 1821 में राममोहन राय ने संबाद कौमुदी पत्रिका की स्थापना की।
  • इस पत्रिका में हिंदू धर्म के रूढ़िवादी विचारों की आलोचना होती थी।

आम बोलचाल में धार्मिक ग्रंथों का छापाव:

  • 1810 में कलकत्ता में तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस का छापाव हुआ।
  • 1880 के दशक से लखनऊ और बम्बई में आम बोलचाल की भाषाओं में धार्मिक ग्रंथों का छापाव हुआ।

समाचार की पहुंच:

  • प्रिंट के कारण, धार्मिक ग्रंथों की पहुँच आम लोगों तक पहुँचने लगी।
  • इससे नई राजनैतिक बहसें उत्पन्न हुईं और लोग एक-दूसरे के करीब आने लगे।

मुस्लिमों ने मुद्रण संस्कृति को कैसे लिया / How did Muslims adopt printing culture?

फारसी और गुजराती अखबारों की शुरुआत:

  • 1822 में फारसी में दो अखबार, “जाम-ए-जहाँ-नामा” और “शम्सुल अखबार,” की शुरुआत हुई।
  • उसी साल एक गुजराती अखबार, “बम्बई समाचार,” भी शुरु हुआ।

उर्दू और फारसी धर्मग्रंथों के छापना:

  • उत्तरी भारत के उलेमाओं ने सस्ते लिथोग्राफी प्रेस का इस्तेमाल करते हुए धर्मग्रंथों के उर्दू और फारसी अनुवाद छापने शुरु किए।
  • उन्होंने धार्मिक अखबार और गुटके भी निकाले।

देवबंद सेमिनरी:

  • 1867 में देवबंद सेमिनरी की स्थापना हुई।
  • इस सेमिनरी ने मुसलमानों के जीवन में सही आचार-विचार को लेकर हजारों हजार फतवे छापने की शुरुआत की।

प्रकाशन के नये रूप / New forms of publishing

यूरोपीय उपन्यासों की प्रचलितता:

  • प्रारंभ में, भारतीय लोगों को यूरोप के लेखकों के उपन्यास ही पढ़ने को मिलते थे, जो यूरोप के परिवेश में लिखे गए होते थे।

भारतीय लेखकों का उदय:

  • बाद में, भारतीय परिवेश पर लिखने वाले लेखक उदित हुए।
  • उनके उपन्यासों के चरित्र और भाव से पाठक अपने आप को जोड़ सकते थे।

नई लेखन विधाएँ:

  • नई विधाएँ जैसे कि गीत, लघु कहानियाँ, निबंध राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों पर, आदि भी सामने आने लगीं।

दृश्य संस्कृति का उदय:

  • उन्नीसवीं सदी के अंत तक, एक नई दृश्य संस्कृति भी रूप ले रही थी।
  • चित्रों की नकलें भारी संख्या में छापने लगीं, जैसे कि राजा रवि वर्मा की कलाकृतियाँ।

कार्टून की प्रचलितता:

  • 1870 के आसपास, पत्रिकाओं और अखबारों में कार्टून की छपाई शुरु हुई।
  • ये कार्टून समाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर कटाक्ष करते थे।

प्रिंट और महिलाएँ / Prints and Women

नई नारी की परिभाषा:

  • जेन ऑस्टिन, ब्राण्ट बहनें, जार्ज इलियट आदि के लेखन से नयी नारी की परिभाषा उभरी।
  • उनका व्यक्तित्व सुदृढ़ था, जिसमें गहरी सुझ बुझ और अपना दिमाग था।

महिलाओं की जिंदगी की साफगोई:

  • महिलाओं की जिंदगी और उनकी भावनाएँ बड़ी साफगोई और गहनता से लिखी जाने लगी।

महिलाओं की आवाज़:

  • 1876 में रशसुन्दरी देवी की आत्मकथा “आमार जीबन” प्रकाशित हुई, जो महिलाओं की जीवनी को दर्शाती है।
  • 1880 में ताराबाई शिंदे और पंडित रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों की हालत पर रोष जाहिर किया।

महिलाओं के अधिकार पर चिंतन:

  • राम चड्ढा ने औरतों को आज्ञाकारी बीवियाँ बनने की सीख देने से उद्देश्य से अपनी पुस्तक “स्त्री धर्म विचार” लिखी।
  • 1871 में ज्योतिबा फुले ने अपनी पुस्तक “गुलामगिरी” में जाति प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।

प्रिंट और गरीब जनता / Print and the poor people

गरीबों के लिए सस्ती किताबें:

  • मद्रास के शहरों में उन्नीसवीं सदी में सस्ती और छोटी किताबें आ चुकी थीं।
  • ये किताबें चौराहों पर बेची जाती थीं ताकि गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकें।

सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना:

  • बीसवीं सदी के शुरुआत से सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना शुरु हुई।
  • इन पुस्तकालयों के कारण लोगों तक किताबों की पहुँच बढ़ने लगी।

अमीरों द्वारा पुस्तकालयों की स्थापना:

  • कई अमीर लोग पुस्तकालय बनाने लगे ताकि उनके क्षेत्र में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ सके।

कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा:

  • 1938 में कानपुर के मिल मजदूर काशीबाबा ने “छोटे और बड़े का सवाल” नामक पुस्तक लिखी।
  • इस पुस्तक में उन्होंने जातियों और वर्गों के बीच का रिश्ता समझाने की कोशिश की।

प्रिंट और प्रतिबंध / Prints and restrictions

सेंसर का प्रयोग:

  • 1798 के पहले, उपनिवेशी शासक सेंसर को लेकर बहुत गंभीर नहीं थे।
  • प्रेस के नियंत्रण में केवल उन अंग्रेजों पर लगते थे जो कम्पनी के शासन की आलोचना करते थे।

स्वतंत्रता की प्रतिबंध:

  • 1857 के विद्रोह के बाद, अंग्रेजी हुकूमत ने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति नए रवैये अपनाए।
  • 1878 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को पारित किया गया, जिसने सरकार को वर्नाकुलर प्रेस के संपादकीय और समाचार पर सेंसर लगाने की अधिकारी शक्ति प्रदान की।

प्रतिबंधों की धमकी:

  • राजद्रोही रिपोर्ट छपने पर अखबार को चेतावनी दी जाती थी।
  • यदि चेतावनी का प्रभाव नहीं पड़ता था, तो प्रेस को बंद कर दिया जाता और प्रिंटिंग मशीनों को जब्त किया जाता।

आशा करते है इस पोस्ट Class 10 History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट Class 10 History Chapter 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Notes पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12
NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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