विचारक, विश्वास और इमारतें|NCERT Class 12 History Notes In Hindi

विचारक विश्वास और इमारतें notes हमें प्राचीन भारत में समाज, धर्म और वास्तुकला के परस्पर संबंधों को समझने में मदद करता है।

  • इस अध्याय में 600 ई.पू. से 600 ईस्वी के बीच के बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म जैसे नए धार्मिक विचारों के उदय की खोज की गई है।
  • सामाजिक असमानताओं और जाति व्यवस्था के विकास पर प्रकाश डाला गया है।

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
ChapterChapter 4
Chapter Nameविचारक, विश्वास और इमारतें
CategoryClass 12 History
MediumHindi

12 Class History Notes In Hindi Chapter 4 विचारक , विश्वास और इमारतें 

ईसा पूर्व प्रथम सहस्त्राब्दी: विचारों का स्वर्ण युग

महत्व:

  • विचारों और दर्शन का स्वर्ण युग
  • बुद्ध, महावीर, प्लेटो, अरस्तु, सुकरात, और खुन्ग्त्सी जैसे महान विचारकों का उदय

योगदान:

  • जीवन के रहस्यों की गहन समझ
  • मानव समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका
  • धार्मिक, नैतिक, राजनीतिक, और सामाजिक सिद्धांतों का विकास

प्रमुख विचारधाराएं:

  • बौद्ध धर्म: धर्मिक और मौलिक सत्य
  • जैन धर्म: अहिंसा और शांति
  • प्लेटो: राष्ट्रीयता, न्याय, शिक्षा
  • अरस्तु और सुकरात: नैतिकता, ज्ञान
  • खुन्ग्त्सी: चीनी संस्कृति, ताओ तेज़ी
  • ईसा पूर्व प्रथम सहस्त्राब्दी में विचारों और दर्शन का विकास मानव सभ्यता के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • आज भी, इन विचारकों के सिद्धांत और शिक्षाएं हमारे जीवन को प्रेरित करते हैं।

जैन धर्म : एक अमूल्य धरोहर

Jainism: an invaluable heritage

संस्थापक:

  • जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव हैं।

प्रमुख सिद्धान्त:

  • जैन धर्म का प्रमुख सिद्धान्त है नियतिवाद, जिसका अर्थ है सब कुछ भाग्य और नियति के अधीन होता है।

जैन शब्द:

  • जैन धर्म का नाम ‘जिन’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘विजेता’।
  • जैन धर्म के ग्रंथों का संकलन अंतिम रूप से 500 ईसा पूर्व के आसपास गुजरात के वल्लभी में हुआ।

प्राचीन धर्म:

  • जैन धर्म भारत के प्राचीन धर्मों में से एक है।
  • इसकी शिक्षाएं 6वीं सदी ईसा पूर्व से पहले ही भारत में प्रचलित थीं।

तीर्थंकर:

  • जैन परंपरा के अनुसार, महावीर से पहले 23 शिक्षक हो चुके थे, जिन्हें ‘तीर्थंकर’ कहा जाता है।
  • महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे।
  • जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभ देव थे और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी थे।
  • जैन धर्म की यह अद्वितीय धारा हमें सत्य, ध्यान, और नैतिकता की ओर अग्रसर करती है। इसके सिद्धान्तों और तत्त्वों का अध्ययन हमें जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने की प्रेरणा देता है।

तीर्थंकर : धर्म के निर्माता

Tirthankara: Creator of Dharma

तीर्थंकर का शाब्दिक अर्थ है ‘संसार से पार होने वाला’ या ‘तीर्थ का निर्माण करने वाला’।

प्रथम तीर्थंकर: ऋषभ देव:

  • ऋषभ देव को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है।
  • उनके रूप में एक वर्षभ के चिन्ह का उल्लेख हिंदू पुराणों में भी है।

दूसरा तीर्थंकर: अजीतनाथ:

अजीतनाथ का उल्लेख यजुर्वेद में मिलता है।

19 वें तीर्थंकर: मल्लीनाथ (नेमिनाथ):

मल्लीनाथ वासुदेव कृष्ण के समकालीन थे।

23 वें तीर्थंकर: पार्श्वनाथ:

  • पार्श्वनाथ को प्रथम ऐतिहासिक तीर्थंकर माना जाता है।
  • उनका जन्म काशी राज्य में हुआ था।
  • उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामा था।
  • उनका प्रतीक चिन्ह सर्प था और उन्हें निर्गध (बधन रहित) का उपाधि दिया गया था।
  • ये तीर्थंकर हमें धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों और नैतिकता की महत्वाकांक्षा की ओर प्रेरित करते हैं। उनके जीवन की कहानी और उनके सिद्धांत हमें सम्पूर्णता और आध्यात्मिकता की ओर दिशा देते हैं।

महावीर स्वामी :- जैन धर्म के अद्वितीय सिद्धार्थ / Mahavir Swami :- Unique Siddhartha of Jainism

जन्म: महावीर स्वामी, जिन्हें जैन धर्म का अंतिम तीर्थंकर माना जाता है, का जन्म कुंडग्राम, वैशाली गणराज्य में 599/540 ईसा पूर्व को हुआ था।

परिवार: उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था।

उनका परिवार ज्ञातृ कुल में आता था।

ज्ञान प्राप्ति: महावीर ने बाद वैशाख के शुक्ल दशमी को ‘साल वृक्ष’ के नीचे भगवान की कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति की।

उपदेश: उनका प्रथम उपदेश विपुलाचल पहाड़ी राजगृह के मेधपुर में दिया गया था।

उनकी भाषा प्राकृत थी।

आयुष्य: महावीर स्वामी की 72 वर्ष की आयु में पावा (विहार) हो गई।

प्रतीक चिन्ह: उनका प्रतीक चिन्ह सिंह था।

अन्य नाम: महावीर के अन्य नाम वीर, अतिवीर, सन्मति आदि थे।

अनुयायी शासक: उनके शिष्य और अनुयायी शासक में बिम्बिसार, आजातशत्रु, उदायिन, चंद्रगुप्त मौर्य, अमोधवंश, गंगवंश, राष्ट्रकुट वंश, कदववंश, चालुक्य वंश आदि थे।

जन्म का रहस्य: जैन धर्म के उत्तरधान सूत्र के अनुसार, महावीर का जन्म अपने पिता सिद्धार्थ की पत्नी देवनन्दा के गर्भ से हुआ था, लेकिन इसे देवताओं ने स्वीकार नहीं किया, इसलिए उनका गर्भ स्थानांतरित कर दिया गया।

जैन धर्म की शाखाएं : समृद्धता का परिचय / Branches of Jainism: Introduction to Prosperity

श्वेताम्बर:

  • इस शाखा के अनुयायी व्यक्ति श्वेत (सफेद) वस्त्र धारण करते हैं, जो कि उनकी पहचान है।
  • इन्हें श्वेताम्बरी जैन कहा जाता है।

दिगम्बर:

  • दिगम्बर शाखा के अनुयायी व्यक्ति वस्त्र नहीं पहनते और नग्न रहते हैं।
  • उन्हें दिगम्बरी जैन कहा जाता है।

जैन धर्म की ये दो शाखाएं समृद्धता के परिप्रेक्ष्य में विभिन्नताओं को प्रस्तुत करती हैं। ये विभिन्न संप्रदाय अपनी विशेषताओं और संस्कृति के माध्यम से जैन धर्म के सिद्धांतों को प्रदर्शित करते हैं।

जैन साधु और साध्वी के 5 व्रत / 5 fasts of Jain Sadhu and Sadhvi

  • अहिंसा (Non-violence): यह व्रत हत्या न करने का संकल्प लेता है।
  • सत्य (Truthfulness): इस व्रत में झूठ नहीं बोलने का प्रतिज्ञान होता है।
  • अस्तेय (Non-stealing): इस व्रत में चोरी नहीं करने का संकल्प होता है।
  • अपरिग्रह (Non-possession): इस व्रत में धन को इकट्ठा नहीं करने का संकल्प होता है।
  • ब्रह्मचर्य (Celibacy): इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है।

जैन साधुओं और साध्वियों के इन पाँच व्रतों का पालन उनके आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग को साफ़ करता है।

प्रसिद्ध जैन तीर्थ / Famous Jain pilgrimages

जैन धर्म के इन पवित्र स्थलों पर लोग आध्यात्मिक साधना करते हैं:

  • सम्मेदशिखर (झारखंड)
  • शत्रुजय (गुजरात)
  • गिरनार (गुजरात)

प्रमुख जैन गुफाएं / Major Jain Caves

जैन समुदाय के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं:

  • उदयगिरि और खंडगिरि (उड़ीसा)
  • एलोरा (महाराष्ट्र)

प्रमुख जैन मंदिर / Major Jain temples

इन मंदिरों में जैन साधु-संत और भक्तजन अपनी आराधना करते हैं:

  • श्रवलबेलगोला (कर्नाटक)
  • पालीताणा (गुजरात)
  • रणकपुर (राजस्थान)
  • देलवाड़ा (राजस्थान)
  • पावा (बिहार)
  • महावीर का जैन मंदिर (राजस्थान)

जैन दर्शन की अवधारणा / Concept of Jain Philosophy

  • जैन दर्शन में अहिंसा का सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो हर जीव की रक्षा करता है।
  • जैन दर्शन में कर्म का महत्व है, और इसके द्वारा मुक्ति की प्राप्ति के लिए त्याग और तपस्या की जाती है।
  • यह संसार के त्याग के माध्यम से मुक्ति की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

बौद्ध धर्म : एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक महासागर

  • उत्पत्ति: बौद्ध धर्म एक प्राचीन और महान धर्म है, जो भारत से निकला।

महात्मा बुद्ध ने इसकी स्थापना की, जिसने मानवता को उच्चतम आदर्शों की ओर प्रेरित किया।

  • स्थापना: बौद्ध धर्म की स्थापना लगभग 6वीं शताब्दी ई0 प० में हुई।
  • महत्व: इसाई और इस्लाम धर्म के बाद, बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है।

इस धर्म को मानने वाले लोग चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत से हैं।

महात्मा बुद्ध : ध्यान के सम्राट / Mahatma Buddha: Emperor of Meditation

जन्म और बचपन:

  • बुद्ध, जिन्हें संसार के महान संत और ध्यान के सम्राट के रूप में जाना जाता है, का जन्म लुम्बिनी नामक स्थान पर नेपाल में हुआ था।
  • उनके पिता का नाम शुद्धोधन था और माता का नाम माया था।

तपस्या और प्रबुद्धता:

  • बुद्ध ने समृद्ध और सुखमय जीवन का त्याग कर, अत्यंत तपस्या और आत्मविचार में विशेषज्ञता प्राप्त की।
  • उनकी प्रवासी जीवनशैली और ध्यान में अगाध गहराई से सम्मिलित थी।

बोधिचित्त:

  • उनका बोधिचित्त, जिसे बुद्धत्व के सम्मिलित होने का अनुभव कहा जाता है, बोधगया के तीर्थस्थल में हुआ था।
  • उन्होंने अविद्या को दूर करने के माध्यम से अंततः मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया।

धर्म प्रचार:

  • बुद्ध ने अपना ज्ञान साझा करने के लिए धर्म प्रचार की शुरुआत की।
  • उन्होंने अनेक लोगों को अपने विचारों से प्रेरित किया और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

विरासत:

  • बुद्ध की धर्म विरासत ने संसार को उच्चतम मानवता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
  • उनके विचारों ने अनेक लोगों के जीवन में शांति, समृद्धि, और सांस्कृतिक उन्नति की बाधाएं हटाई हैं।
  • महात्मा बुद्ध का जीवन और उनके विचार आज भी सत्य, साधना और समर्पण के उत्तम उदाहरण के रूप में आदर्श हैं। उनकी धार्मिक विरासत ने लाखों लोगों को मार्गदर्शन दिया है और ध्यान के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति की ओर प्रेरित किया है।

महात्मा बुद्ध: धर्म के प्रवर्तक / Mahatma Buddha: Founder of Dharma

शाक्य वंश का उत्पत्ति:

  • महात्मा बुद्ध को शाक्यमुनि के रूप में जाना जाता है क्योंकि उनका जन्म शाक्य वंश में हुआ था।
  • उनके गोत्र के होने के कारण उन्हें गौतम बुद्ध भी कहा जाता है।

प्रमुख उपदेश:

  • उनका प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया गया था, जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया जाता है।
  • उन्होंने अपने उपदेश की भाषा को पाली में रखा था।
  • उपदेश के प्रमुख अनुयायी:
  • उपालि, आनंद, और प्रधान शिष्य उनके उपदेश के प्रमुख अनुयायी थे।

धर्म प्रचार:

  • बुद्ध ने अपना ज्ञान साझा करने के लिए धर्म प्रचार किया और लोगों को धर्म के मार्ग पर प्रेरित किया।
  • उनके उपदेशों ने अनेक लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन का मार्ग प्रशस्त किया।

महापरिनिर्वाण:

  • उनकी मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा जाता है, और उन्हें महात्मा बुद्ध के रूप में समर्पित किया जाता है।

बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण स्थान:

  • बुद्ध के जीवन के कई महत्वपूर्ण स्थानों की यात्रा उनकी धर्म और उपदेशों के साथ जुड़े हैं, जैसे सारनाथ, बोधगया, और कुशीनगर।

बौद्ध त्रिरत्न और दर्शन:

  • उनकी धर्म की मुख्य आधारशिला तीन रत्नों – बुद्ध, धम्म, और संघ पर आधारित है।
  • उनका दर्शन अनीश्वरवादी है और पुनर्जन्म में विश्वास को स्वीकार करता है।
  • महात्मा बुद्ध के जीवन और उपदेशों का महत्व आज भी अद्वितीय है। उनके उपदेशों ने समाज को धर्मिकता, सम्मान, और आत्मनिर्भरता की शिक्षा दी है। उनका जीवन और उपदेश लोगों को सत्य, प्रेम, और शांति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

निर्वाण : आत्मिक मुक्ति की प्राप्ति / Nirvana: Attainment of spiritual liberation

शाब्दिक अर्थ:

  • निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना, जिसका मतलब है चित्त की मलिनता और दुःख का अंत।

बुद्ध के द्वारा देखे गए दृश्य:

  • बुद्ध ने चार दृश्य देखे जिनमें बूढ़ा व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, एक लाश, और एक संन्यासी शामिल थे।

बुद्ध की शिक्षाएं:

  • उनकी शिक्षाएं त्रिपिटक में संकलित हैं, जो तीन टोकरियों के रूप में जानी जाती हैं।
  • त्रिपिटक में सुत्त, विनय, और अभिधम्म पिटक शामिल हैं।

बुद्ध की शिक्षाओं का सार:

  • उनकी शिक्षाओं का मुख्य सार है कि धार्मिक और आध्यात्मिक संदेहों का समाप्ति और सत्य की खोज में जीवन का महत्व है।
  • उन्होंने बताया कि धार्मिकता का मार्ग दुःख को समाप्त करने के लिए उचित है।

बुद्ध की दृष्टि:

  • बुद्ध की दृष्टि में समाज का निर्माण लोगों द्वारा हुआ है, और इंसानों को स्वयं अपनी मुक्ति के लिए काम करना चाहिए।
  • उन्होंने बताया कि इंसान को अपने लिए खुद ही ज्योति बनना चाहिए और धार्मिकता की खोज करनी चाहिए।

अनित्यता का सिद्धांत:

  • उनकी शिक्षा में अनित्यता का सिद्धांत है, जिसमें उन्होंने बताया कि इस संसार में सब कुछ अनित्य है और दुःख का कारण इच्छा और लालच है।
  • बुद्ध की शिक्षाएं हमें आत्मिक समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करती हैं और हमें समाज में शांति और समरसता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।

बोद्ध धर्म (तेजी से फैलाव के कारण) / Buddhism (due to rapid spread)

  • सरलता और सामान्यता: बौद्ध धर्म बहुत ही साधारण था, जिसका मतलब है कि कोई भी इसे आसानी से समझ और अपना सकता था।
  • जाति प्रथा का अभाव: इसमें जाति प्रथा का कोई स्थान नहीं था, जिससे लोगों के बीच भेदभाव कम होता था।
  • समान व्यवहार: सबके साथ समान व्यवहार किया जाता था, जिससे ऊंच-नीच का भेदभाव कम होता था।
  • वर्ण व्यवस्था पर आक्रमण: ब्राह्मणीय नियमों का विरोध करके, बौद्ध धर्म ने वर्ण व्यवस्था को भी समाज से हटाने का प्रयास किया।
  • महिलाओं का समावेश: महिलाओं को संघ में शामिल किया गया और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए गए।
  • आध्यात्मिकता की मान्यता: बौद्ध धर्म में ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को नहीं माना जाता था, जो इसे आत्मनिर्भर और लोकतांत्रिक बनाता था।
  • कठोरता के विरोध में मध्यम मार्ग: बौद्ध संघ के नियम और उनकी शिक्षाएं कठोर नहीं थीं, बल्कि उन्होंने कठोर तप का विरोध करके मध्यम मार्ग का प्रचार किया।

हीनयान व महायान में अंतर : एक तुलनात्मक अध्ययन / Difference between Hinayana and Mahayana: A comparative study

  • आदर्शों का अंतर: हीनयान में अर्हत के आदर्शों को माना जाता है, जबकि महायान में बोधिसत्व का आदर्श प्रमुख होता है।
  • व्यक्तित्व की मान्यता: हीनयान में बुद्ध को महान व्यक्ति के रूप में माना जाता है, जबकि महायान में उन्हें बोधिसत्व के रूप में माना जाता है।
  • उद्दीपनात्मक सेवा: बोधिसत्वों की प्रमुख गुणा यह है कि वे अपने आत्मोपकार के लिए प्रयत्नशील रहते हैं और दूसरों को मार्ग दिखाते हैं।
  • गुणों की परिकष्टा: महायान में बोधिसत्वों के दस उच्चतम गुणों की परिक्ष्टा होती है, जिन्हें ‘परामिता’ कहा जाता है।
  • धार्मिक परंपरा: हीनयान धर्म परंपरागत होता है, जबकि महायान धर्म में उसका परिवर्तित रूप देखा जाता है।

बौद्ध धर्म व जैन धर्म में समानताए : एक तुलनात्मक अध्ययन / Similarities between Buddhism and Jainism: A comparative study

  • निवृत्ति मार्ग और त्याग का महत्व: दोनों धर्मों में निवृत्ति मार्ग और त्याग को महत्व दिया जाता है, जिससे संसारिक बाधाओं से मुक्ति प्राप्ति होती है।
  • वेदों की प्रमाणिकता के खंडन: दोनों धर्मों ने वेदों की प्रमाणिकता के खंडन किया और इसके कारण उन्हें नास्तिक परंपरा में शामिल किया गया।
  • ईश्वर के अस्तित्व का अस्वीकार: बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ने ईश्वर को सृष्टि के रचयिता के रूप में अस्वीकार किया है।
  • कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत: दोनों धर्मों में कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत मान्य है, जो जीवों के चित्त के शुद्धि और मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
  • आचरण के सिद्धांत: बौद्ध और जैन धर्म दोनों में आचरण के सिद्धांतों को महत्व दिया गया है, जिसमें नैतिकता और समाज सेवा का प्रमुख स्थान है।
  • सामाजिक समानता का आदर्श: दोनों धर्मों में सामाजिक समानता का आदर्श है, जिसमें जाति, लिंग, वर्ण या सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं है।
  • जन्म के स्थान पर कर्म का आधार: बौद्ध और जैन धर्म दोनों में जन्म के स्थान पर कर्म का आधार रहता है, जो व्यक्ति के उच्चाधिकारित्व और उसकी आध्यात्मिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

बौद्ध धर्म व जैन धर्म में अंतर :- विभिन्नताएँ / Difference between Buddhism and Jainism:- Differences

  • त्याग का प्रधानता और मध्यम मार्ग: जैन धर्म में कठोर त्याग को प्रधानता दी गई है, जबकि बौद्ध धर्म में मध्यम मार्ग को अधिक महत्व दिया गया है।
  • आत्मा और अनात्मवाद: जैन धर्म में शाश्वत एवं नित्य आत्मा में विश्वास किया जाता है, जबकि बौद्ध धर्म अनात्मवाद को अपनाता है।
  • निर्वाण का लक्ष्य: जैन धर्म में निर्वाण के लक्ष्य की प्राप्ति देह समाप्ति के बाद ही संभव है, जबकि बौद्ध धर्म में ज्ञान की प्राप्ति के साथ ही वह लक्ष्य सम्भव है।
  • हिंसा के प्रति अनुग्रह: जैन धर्म में बौद्ध धर्म की अपेक्षा हिंसा को अधिक महत्व दिया गया है, जिसे अहिंसा के प्रति अनुग्रह का प्रतीक माना जाता है।

स्तूप : एक धार्मिक और सांस्कृतिक आधार / Stupa: a religious and cultural foundation

स्तूप, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘किसी वस्तु का ढेर’, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का प्रतीक है। इसका विकास मृत्यु के बाद जीवन से जुड़े संदेशों को समझाने के उद्देश्य से किया जाता था।

साँची का स्तूप: एक ऐतिहासिक अद्वितीयता

साँची भोपाल में स्थित एक प्रमुख स्थल है, जहां एक प्राचीन स्तूप अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।

अशोक द्वारा निर्मित: यह स्तूप महान सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था, जिसका निर्माणकार्य तीसरी शताब्दी ई० पू० से शुरू हुआ।

प्राचीनता की भव्यता: इस स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी ई० पू० में हुआ था, जो इसकी प्राचीनता और महत्ता को दर्शाता है।

साँची का स्तूप भारतीय इतिहास और संस्कृति का महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो धर्मिक और सांस्कृतिक संदेशों को आज भी अद्वितीयता से संजोकर रखता है।

साँची स्तूप का संरक्षण: साक्षात्कार एवं प्रेम / Conservation of Sanchi Stupa: Interview and Love

यूरोपीयों की मोहकता:

  • 19वीं सदी में, साँची के स्तूप ने यूरोपीयों का ध्यान आकर्षित किया। इसकी उपासना और महत्ता को देखते हुए, यह स्तूप बेहद प्रशंसनीय था।

संरक्षण की प्रयासबद्धता:

  • फ्रांस और अंग्रेज लोगों ने साँची के स्तूप को अपने संग्रहालयों में प्रदर्शित करने की कोशिश की। इसके लिए वे तोरणद्वार को ले जाने की मांग की, लेकिन भोपाल की बेगमों ने सावधानीपूर्वक कॉपी बनाने का सुझाव दिया।

बेगमों का योगदान:

  • भोपाल की बेगमों, शाहजहाँ बेगम और सुल्तान जहां बेगम, ने स्तूप के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • धन और संरक्षण के लिए कई कार्य किए और संग्रहालय बनाने में भी सहायता की।

शिक्षा और संवर्धन:

  • बेगमों ने प्रकाशन के लिए पुस्तकों के लेखकों को धन दिया और संरक्षण की शिक्षा को प्रोत्साहित किया।
  • इस प्रकार, साँची स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है, जिसने इस महान धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखा।

यज्ञ और विवाद: संगीत संघर्ष का प्राचीन नाट्य / Yagya and discord: the ancient drama of musical conflict

यज्ञ:

  • ऋग्वेद से प्रेरणा: वैदिक परंपरा की ज्ञानकांड ऋग्वेद से हमें मिलती है, जिसमें अग्नि, इंद्र, सोम आदि देवताओं की पूजा की जाती है।
  • समृद्धि के लिए प्रार्थना: यज्ञ के समय लोग मवेशी, बेटे, स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • सामूहिकता से व्यक्तिगत: प्रारंभ में यज्ञ सामूहिक रूप से किए जाते थे, लेकिन बाद में घर के मालिक खुद यज्ञ करवाने लगे।
  • राजसूय और अश्वमेध: ये यज्ञ राजा या सरदार द्वारा करवाए जाते थे, जो राजा की शक्ति और सम्मान को प्रकट करते थे।

वाद: चर्चा और चिंतन:

  • यज्ञों पर सवाल: महावीर और बुद्ध ने यज्ञों पर सवाल उठाए, और यह चर्चाएँ ज्ञान और विवेक के प्रकटीकरण के रूप में रही।
  • शिक्षक का कार्य: शिक्षक सामान्य लोगों के बीच तर्क-वितर्क करते थे, और उनकी चर्चाएं उपवनों और झोपड़ियों में होती थीं।
  • समर्थ शिक्षक: उनके उपबनों में घूमक्कड़ मनीषियों के संग, ये शिक्षक अनुयायियों को बनाते चले गए, और उनके चरणों में उन्नति की राह दिखाई।

स्तूप: शांति का प्रतीक / Stupa: Symbol of peace

संरचना:

  • स्तूप का अर्थ: संस्कृत शब्द “स्तूप” या “टीला” का अर्थ है ‘किसी वस्तु का ढेर’, और इसका जन्म एक गोलार्ध मिट्टी के टीले से हुआ।
  • बनावट का विकास: प्रारंभ में, स्तूप एक अंड जैसा था, लेकिन धीरे-धीरे इसकी बनावट में बदलाव होने लगा।
  • अंड और हर्मिका: इसके ऊपर एक हर्मिका (छज्जे जैसा ढांचा) होता था, जो देवताओं के घर के रूप में समझा जाता था। यहां से एक मस्तूल निकलता था, जिसे यष्टि कहते थे।
  • वेदिका और तोरणद्वार: स्तूप के चारों ओर एक वेदिका होती थी, और तोरणद्वार स्तूपों की सुंदरता को बढ़ाते थे।
  • उपासकों की परिक्रमा: उपासक तोरणद्वार से प्रवेश करके स्तूप की परिक्रमा करते थे।

स्तूप कैसे बनाए गए?

  • दान का महत्व: स्तूपों की वेदिकाओं और स्तंभों पर मिले अभिलेखों से यह पता चलता है कि इन्हें बनाने और सजाने के लिए दान किया गया।
  • राजा और शिल्पकारों का योगदान: कुछ दान राजाओं द्वारा दिए गए थे, जैसे कि सातवाहन वंश के राजा, और कुछ दान शिल्पकारों और व्यापारियों द्वारा दिए गए थे।
  • महिलाओं का योगदान: इन इमारतों को बनाने में भिक्षुओं और भिक्षुणियों ने भी दान किया, और कई महिलाएं और पुरुष भी इसमें अपना योगदान दिया।
  • आदिवासी संस्कृति का साक्षात्कार: स्तूप का निर्माण और उसकी संरचना हमें अपनी आदिवासी संस्कृति की दिशा में एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करता है।

अमरावती का स्तूप : विश्व के भंडारणगर / Amravati Stupa: Storehouse of the World

अमरावती के स्तूप में अवशेषों के रूप में मूर्तियाँ थीं, जो बाद में अलग-अलग जगहों पर ले जाई गईं। इन मूर्तियों का सफर विविध शहरों तक हुआ।

  • बंगाल: अमरावती के स्तूप की मूर्तियाँ बंगाल में भी पाई गईं।
  • मद्रास: इन मूर्तियों का एक हिस्सा मद्रास (अब चेन्नई) में भी चला गया।
  • लंदन: कुछ मूर्तियाँ लंदन, यूनाइटेड किंगडम में भी आज देखी जा सकती हैं।
  • अंग्रेज अफसरों के बागों में: अमरावती की मूर्तियाँ अंग्रेज अफसरों के बागों में भी पाई गई हैं, जो उनके प्रेम के विषय में गवाह हैं।

इस प्रकार, अमरावती के स्तूप की मूर्तियों का सफर उनकी महिमा को विश्व में बोध कराता है।

अमरावती का स्तूप: एक खोया हुआ धरोहर / Amaravati Stupa: A Lost Heritage

अमरावती का स्तूप, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग था। परन्तु इसकी विपणनीय खोज में हम इसे खो चुके हैं। इसका नाश एक दुखद और अज्ञात कहानी है।

  • 1854 में आंध्रप्रदेश के कमिशनर द्वारा किया गया आविष्कार: अमरावती का स्तूप, 1854 में आंध्रप्रदेश के कमिशनर द्वारा खोजा गया था। वहां उन्होंने बहुत से पत्थर और मूर्तियाँ खोजीं और उन्हें मद्रास ले गए।
  • महत्वपूर्ण धरोहर का नाश: अमरावती का स्तूप बोध्ध संप्रदाय के लिए महत्वपूर्ण धरोहर था, परंतु इसके पत्थरों का आधा भाग अलग-अलग जगहों पर ले जाया गया।
  • पत्थरों का वितरण: कुछ पत्थर कलकत्ता, मद्रास, और लंदन जैसे शहरों में पहुँचे। कई मूर्तियों को अंग्रेजी अफसरों ने अपने बागों में लगवाया।
  • अधिकारियों का लुभाव: हर नए अधिकारी अमरावती से मूर्तियों को उठा कर ले जाता था, और दावा करता था कि उनसे पहले भी ऐसा हो चुका है।

इस प्रकार, अमरावती के स्तूप का नाश एक अद्भुत धरोहर की अपवित्रता की कहानी को उजागर करता है।

एक अलग सोच के व्यक्ति – एच. एच कॉल: पुरातत्व के सचेतक / A man with a different mindset – H.H. Call: Archeology’s whip

एच. एच कॉल एक ऐसे व्यक्ति थे जो पुरातत्व की दुनिया में अपनी अलग सोच के लिए प्रसिद्ध थे। उनका विचार था कि भारत की प्राचीन कलाकृतियों को लूटने की नीति एक प्रकार का आत्महत्या है।

  • आत्मघाती नीति का खंडन: कॉल को यह अनुभव हुआ कि प्राचीन कलाकृतियों को संग्रहालयों में संवर्धित करने की बजाय उन्हें बाहरी दुनिया से सुरक्षित रखना चाहिए।
  • खोज का महत्व: उनकी मांग थी कि प्राचीन कलाकृतियों की असली कृतियों का पता लगाकर उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए।
  • अमरावती और साँची का तुलनात्मक विश्लेषण: अमरावती के मामले में कॉल ने अधिकारियों को अपनी बात स्वीकार नहीं कराई, लेकिन साँची के मामले में उनकी सोच को माना गया।

इस रूपरेखा में, एच. एच कॉल का सोचने का तरीका पुरातत्व की नई दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में प्रस्तुत होता है।

पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय : एक प्राचीन धारणा / Rise of Puranic Hinduism: An Ancient Concept

  • प्राचीनतम धर्म: हिन्दू धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है, जिसमें विभिन्न देवताओं और परंपराओं का विशेष महत्त्व है।
  • विभिन्न परम्पराएं: हिन्दू धर्म में वैष्णव और शैव परम्पराएं शामिल हैं, जिनमें विष्णु और शिव को मुख्य देवता माना जाता है।
  • अवतार की मान्यता: वैष्णव परम्परा में अवतारवाद का विशेष महत्त्व है, जिसमें भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों को प्रासंगिकता दी जाती है।
  • संसार की रक्षा: पौराणिक धारणा के अनुसार, जब संसार में पाप बढ़ता है, तो भगवान अलग-अलग अवतारों में आकर संसार की रक्षा करते हैं।
  • दस अवतार: हिन्दू धर्म में दस महान अवतारों की कल्पना की गई है, जिनमें विष्णु के विभिन्न रूप और आवतार शामिल हैं।
  • मूर्तिपूजा: हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा की जाती है, जिसमें भगवानों की मूर्तियों को पूजा जाता है।
  • शिवलिंग: शैव परंपरा में शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में पूजा जाता है, जो उनकी शक्ति और पराक्रम को प्रतिनिधित करता है।

मंदिरों का निर्माण : एक प्राचीन शैली से आधुनिकता की ओर / Construction of temples: from an ancient style to modernity

  • प्राचीन आरंभ: मंदिर के प्रारंभिक निर्माण में यह एक चौकोर कमरे की तरह होते थे, जिसे गर्भगृह कहा जाता था। यहाँ पूजा की जाती थी और मूर्ति की विधिवत पूजा होती थी।
  • विकास का समय: समय के साथ, गर्भगृह के ऊपर शिखर बनाने लगे, जिससे मंदिर का ऊंचा स्वरूप प्राप्त हुआ। इसके साथ ही मंदिर की दीवारों पर चित्र उत्कीर्ण किए जाने लगे।
  • मूल्यांकन की ऊंचाई: धीरे-धीरे, मंदिरों को और विशाल सभास्थल और ऊंची दीवारें बनाई गईं। यह एक प्राचीन शैली के साथ-साथ आधुनिकता का प्रतीक भी था।
  • नए आयाम: कुछ मंदिरों को पहाड़ों को काटकर गुफा की तरह बनाया गया, जो उनके विशेष और अद्वितीय रूप को दर्शाता है।

इस रूपरेखा में, मंदिरों का निर्माण उनकी प्राचीनता से लेकर आधुनिक युग की ऊर्जा को दर्शाता है, जिसमें समय के साथ उनका स्वरूप और महत्त्व बदलता गया है।

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