NCERT के कक्षा 12 इतिहास के अध्याय 6 ‘भक्ति सूफी परंपराएँ‘ में आप इस अनूठी सामाजिक-धार्मिक घटना में गहराई से जा सकते हैं।
इस अध्याय में कबीर, नानक, मीराबाई जैसे संतों की शिक्षाओं, एवं हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक एकीकरण पर पड़ने वाले इन आंदोलनों के प्रभाव का अध्ययन करें । भक्ति और सूफी आंदोलन के उदय और समाज पर उनके प्रभाव को विस्तार से जानने के लिए हमारे हिंदी नोट्स डाउनलोड करें!
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Table of Contents
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | भक्ति-सूफ़ी परंपराएँ |
Category | Class 12 History |
Medium | Hindi |
12 Class History Notes In Hindi Chapter 6 भक्ति सूफी पंरपराएँ
भारत मे भक्ति व सूफी आंदोलन / Bhakti and Sufi movement in India
- सल्तनत काल में हिन्दू-मुस्लिम सांस्कृतिक संघर्ष का जवाब
- हिन्दू धर्म में सुधार और मुस्लिम समुदाय में धार्मिक प्रेम का प्रसार
आंदोलन:
- भक्ति आंदोलन: हिन्दू धर्म में एकीकरण और बुराइयों को दूर करना
- सूफी आंदोलन: धार्मिक सहयोग, मानवता, प्रेम और सामाजिक सद्भाव पर बल
प्रभाव:
- धार्मिक सांस्कृतिक एकता
- भारतीय समाज में सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धाराओं का समन्वय
- समृद्ध विरासत का हिस्सा
भक्ति और सूफी आंदोलन ने भारत को आध्यात्मिकता, प्रेम और सद्भाव का संदेश दिया।
भारत मे भक्ति आंदोलन / Bhakti movement in India
उत्पत्ति:
- उत्तर भारत में, 7वीं-8वीं शताब्दी में आल्वार और नायनार संतों ने भक्ति आंदोलन की शुरुआत की।
- उन्होंने भगवान विष्णु और शिव की भक्ति पर बल दिया, सामाजिक बुराइयों का विरोध किया, और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़े।
- स्त्रियों को भी महत्व दिया गया।
- चोल, पल्लव, चालुक्य राजवंशों ने इन पंथों का समर्थन किया।
कर्नाटक में:
- वीरशैव या लिंगायत संप्रदाय का उदय, बासवन्ना द्वारा प्रेरित।
- सामाजिक सुधारों और समानता पर बल दिया।
प्रभाव:
- सामाजिक और धार्मिक सुधार
- भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा
भक्ति आंदोलन के कारण / Reasons for Bhakti movement
- मुस्लिम आक्रमणकारियों के अत्याचार: इस आंदोलन का मुख्य कारण मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिन्दू समाज पर किए गए अत्याचार थे, जो लोगों को अपने धर्मिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की ओर प्रेरित किया।
- धर्म और जाति की समाप्ति का भय: भक्ति आंदोलन का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण धर्म और जाति संबंधी समाप्ति के भय का था, जो समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा करता था।
- इस्लाम का प्रभाव: मुस्लिम आक्रमण के बाद, इस्लाम का प्रभाव भी भक्ति आंदोलन का महत्वपूर्ण कारक बना, जो लोगों को अपने धर्मिक पहचान और संस्कृति की संरक्षण की आवश्यकता को समझाता था।
- राजनीतिक संगठन: भक्ति आंदोलन में राजनीतिक संगठन का महत्वपूर्ण योगदान था, जो समाज को संगठित करता और उसे सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर आवाज उठाने में मदद करता।
- रूढ़िवादिता: भक्ति आंदोलन का एक और कारण रूढ़िवादिता था, जो लोगों को पारंपरिक धार्मिक मतों के प्रति आलोचना करने के लिए प्रेरित करता था।
- पारंपरिक मतभेद: अनेक मतभेद और सांस्कृतिक विवाद भी भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण कारण थे, जो समाज में असन्तोष और अस्थिरता का कारण बनते थे।
- हिन्दुओं को निराशा: अंत में, भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण कारण हिन्दुओं की निराशा थी, जो उन्हें उनके धर्म और संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास पुनः प्राप्त करने की ओर प्रेरित करती थी।
भक्ति आंदोलन की विशेषता / Characteristics of Bhakti movement
- एकेश्वरवाद में विश्वास: यह आंदोलन एकेश्वरवाद में विश्वास को प्रमुखता देता था, जिसमें भगवान के एकत्व को माना जाता था।
- बाहरी आंधविश्वास का विरोध: भक्ति आंदोलन ने बाहरी आंधविश्वासों के विरुद्ध उत्साह दिया और लोगों को धार्मिक सत्य की ओर मोड़ने की प्रेरणा दी।
- सन्यासी का विरोध: यह आंदोलन समाज में सन्यासी जीवन के विरुद्ध था और उसे सामाजिक कार्यों में योगदान करने की प्रेरणा दिया।
- मानव सेवा पर बल: भक्ति आंदोलन में मानव सेवा को महत्व दिया गया और लोगों को सेवा की भावना में जीने की प्रेरणा दी।
- वर्ण व्यवस्था का विरोध: यह आंदोलन वर्ण व्यवस्था के खिलाफ था और समाज में समानता की मांग की।
- हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल: भक्ति आंदोलन ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया और सामाजिक एकता की प्रेरणा दी।
- स्थानीय भाषाओं में उपदेश: इस आंदोलन ने स्थानीय भाषाओं में उपदेश दिया और लोगों को धार्मिक शिक्षा देने की प्रेरणा दी।
- गुरु के महत्व में बृद्धि: भक्ति आंदोलन ने गुरु के महत्व को बढ़ावा दिया और उन्हें समाज के मार्गदर्शक माना।
- समन्यवादी प्रकृति: इस आंदोलन की समन्यवादी प्रकृति ने सामाजिक और धार्मिक समानता को प्रोत्साहित किया।
- समर्पण की भावना: यह आंदोलन समर्पण की भावना को महत्वपूर्ण मानता था और लोगों को निष्ठा और सेवा में समर्पित रहने की प्रेरणा दी।
इस प्रकार, भक्ति आंदोलन की विशेषताएँ समाज को सामाजिक, धार्मिक, और मानविक दृष्टिकोण से समृद्धि की दिशा में प्रेरित करती थीं।
भक्ति आंदोलन के उद्देश्य / Objectives of Bhakti Movement
- हिन्दू धर्म और समाज में सुधार लाना: भक्ति आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था हिन्दू धर्म और समाज में सुधार लाना, जिसमें धार्मिक और सामाजिक दुर्भावनाओं का समाप्ति किया जाता और सामाजिक न्याय और समानता को प्रोत्साहित किया जाता।
- धर्म में समन्वय इस्लाम और हिन्दू: भक्ति आंदोलन ने धर्म में समन्वय को प्रमुखता दी, विशेष रूप से इस्लाम और हिन्दू धर्म के बीच समझौते की प्रेरणा दी और सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया।
भारत मे सूफीवाद/ सूफी संप्रदाय का विकास (सूफी आंदोलन) / Development of Sufism/Sufi sect in India (Sufi movement)
- उदारवादी विचारों का प्रभाव: सूफीवाद ने रहस्यवादी और उदारवादी विचारों के प्रभाव के तहत इस्लाम धर्म में एक नया संप्रदाय उत्पन्न किया।
- सूफी का अर्थ: शब्द ‘सूफी’ उर्दू शब्द ‘सूफ’ से आया है, जिसका अर्थ होता है “बिना रंगा हुआ ऊन” या “सन्यासी चटाई”।
- 19वीं शताब्दी में मुद्रित शब्द: इस शब्द का पहला मुद्रण 19वीं शताब्दी में हुआ, जबकि इस्लाम धर्म में ‘तसव्वुर्फ’ के रूप में इसका प्रयोग किया गया।
- सूफीवाद का पूर्ण विकास: सूफीवाद एक पूर्ण विकसित आंदोलन बना जिसका साहित्य सूफी ओर कुरान से जुड़ा था, और इसने 11वीं शताब्दी तक विकास किया।
- संगठनित समुदाय की स्थापना: सूफी विचारधारा ने एक संगठित समुदाय की स्थापना की, जिसमें खानकाह या आश्रम नामक स्थानों पर सूफी योगियों की आवास होती थी।
- संगठन में नेतृत्व: सूफी संगठनों में गुरु, पीर, मुर्शिद या चेला का नेतृत्व होता था, जो मुरीदों को भर्ती करते और उन्हें मार्गदर्शन करते थे।
इस रूपरेखा में, सूफीवाद ने इस्लामी समाज में एक नया संगठन और धारावाहिक धारणा प्रदान की, जिसने धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों को विकसित किया।
एकेश्वरवादी / Monotheist
- ‘ईश्वर एक है’ का सिद्धान्त: एकेश्वरवाद वह सिद्धान्त है जो ‘ईश्वर एक है’ या ‘एक ईश्वर है’ को सर्वप्रमुख रूप में मानता है।
- भौतिक जीवन का त्याग: इस सिद्धान्त में भौतिक जीवन का त्याग करके आत्मानुषासन और आत्मसंयम की महत्वपूर्णता है।
- शांति और अहिंसा: एकेश्वरवाद में शांति और अहिंसा को महत्व दिया जाता है, और समाज में सहानुभूति और समरसता का समर्थन किया जाता है।
- सहिष्णुता: सभी धर्मों का सम्मान करने और सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने की मानवीयता को प्रोत्साहित किया जाता है।
- प्रेम का महत्व: प्रेम, सहानुभूति और सेवा के माध्यम से जीवन को उत्तम बनाने की महत्वपूर्णता को समझाया जाता है।
- ईश्वर की भक्ति: मुक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदर्शों के पालन पर बल दिया जाता है।
- गुरु और शिष्य का महत्व: गुरु और शिष्य के संबंध को महत्व दिया जाता है, और शिक्षा के माध्यम से आत्मज्ञान की प्राप्ति को प्रोत्साहित किया जाता है।
- धार्मिक यात्रा: इस सिद्धान्त में धार्मिक यात्रा, पवित्र जीवन के महत्व, और आत्मशुद्धि के लिए प्रेरणा दी जाती है।
- कुरान की व्याख्या: यहाँ, कुरान की व्याख्या व्यक्तिगत दृष्टि से की जाती है, और व्याख्यान को अपने निजी अनुभवों और धारावाहिकता के साथ समझाया जाता है।
एकेश्वरवादी सिद्धान्त में धार्मिक समरसता, अहिंसा, और ईश्वर के प्रति प्रेम की महत्वपूर्णता को संजीवित किया गया है।
इस्लाम / Islam
- एक एकेश्वरवादी धर्म: इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो अल्लाह की तरफ से अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा इंसानों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय किताब (कुरआन) की शिक्षा पर स्थापित है।
- स्थापना: इस्लाम की स्थापना 7वीं शताब्दी में पैगंबर मुहम्मद द्वारा अजाबिया में की गई थी। मुहम्मद को इस्लाम के पहले और पूर्वी नबी के रूप में माना जाता है।
इस्लाम के स्तंभ / Pillars of Islam
- शहादा: इस्लाम के प्रमुख स्तंभ में पहला है ‘शहादा’ जो एक विशेष संज्ञान का प्रतीक है, जिसमें शहादत देना और अल्लाह के अलावा किसी अन्य देवता का अस्वीकार करना शामिल है।
- सलात या नमाज़: दूसरा स्तंभ है ‘सलात’ या ‘नमाज़’ जो प्रतिदिन पंज मर्तबा आदमी की सबसे बड़ी ज़रूरतों में से एक है।
- सौम या रोज़ा: तीसरा स्तंभ है ‘सौम’ या ‘रोज़ा’, जो माह-ए-रमज़ान में रोज़ाना उपासना है, जिसमें भोजन और पीने की सीमा और समय की प्रतिबंधित होती है।
- ज़कात: चौथा स्तंभ ‘ज़कात’ है, जो धन की नियमित दान के रूप में होता है और इस्लाम में सामाजिक न्याय और समरसता को साधने में मदद करता है।
- हज: अंतिम स्तंभ है ‘हज’, जो मुस्लिमों को मक्का की यात्रा करने के लिए प्रेरित करता है, जहां प्रत्येक साल लाखों मुस्लिम यात्रा करते हैं।
कुरान शरीफ:
- पवित्र पुस्तक: इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ है, जो अरबी में लिखा गया है और इसमें 114 अध्याय हैं।
- संदेश का संकलन: मुस्लिम परंपरा के अनुसार, कुरान उन संदेशों का संकलन है जो भगवान (अल्लाह) ने अपने दूत अर्ख ल जिब्रीस के माध्यम से मुहम्मद को भेजने के लिए 610-632 के बीच मक्का और मदीना में भेजा था।
इस्लाम की महत्वपूर्ण सिलसिलें / Important events of Islam
- चिश्ती सिलसिला: यह सिलसिला चिश्ती सूफ़ी आड़े के उसके संस्थापक मोईनुद्दीन चिश्ती से जुड़ा है। इस सिलसिले में भक्ति, प्रेम और सेवा के माध्यम से अल्लाह के पास जाने की शिक्षा दी जाती है।
- सुहरावर्दी सिलसिला: यह सिलसिला जलालुद्दीन रूमी के शिष्य बहाउद्दीन नक्शबन्दी से जुड़ा है। इसका मुख्य उद्देश्य चित्त की शुद्धि और अल्लाह के साथ एकीभाव को प्राप्त करना है।
- कादिरी सिलसिला: इस सिलसिले का संस्थापक अब्दुल कादिर जीलानी हैं। यह सिलसिला खानकाह की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और अल्लाह के प्रति आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
- नक़शबन्दी सिलसिला: इस सिलसिले के संस्थापक ख़वाजा बाहूद्दीन नक़शबन्द हैं। यह सिलसिला सुफ़ियों के बीच गुरु-शिष्य के रिश्ते को महत्वपूर्ण मानता है और अल्लाह के नाम की जिद्दी अनुसंधान का परिणाम है।
सिलसिला :-
सिलसिला शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘जंजीर’ होता है, जो शेख और मुरीद के बीच निरंतर रिश्ते का भोतक है। इस रिश्ते की पहली अटूट कड़ी पैगम्बर मोहम्मद से जुड़ी है, जिसमें शिष्य अपने शेख के मार्गदर्शन में आगे बढ़ता है। सिलसिला एक सूफी आड़े की बुनियाद होती है, जो आत्मा के प्रकाश को प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक अनुगामी को एक गुरु के निरंतर मार्गदर्शन द्वारा आत्मा के उन्नति की ओर ले जाता है।
सूफी और राज्य के साथ उनके संबंध / Sufis and their relations with the state
- सूफी जीवन की सादगी और सामाजिक न्याय: चिश्ती सम्प्रदाय के सूफी संतों का जीवन सरलता और सादगी में निहित था। वे सम्पत्ति की मांग से दूर रहते और समाज के अधिकारी वर्ग से कोई अनुदान नहीं मांगते थे।
- साम्राज्यिक समर्थन: सुल्तान द्वारा प्रदत्त अनुदान को सूफी संतों ने अस्वीकार किया। उन्होंने खानकाहों को मुक्त भूमि और अनुदान नहीं लेने की ओर प्रोत्साहित किया।
- समृद्धि का उपयोग: सूफी संत ने समृद्धि का उपयोग धर्मिक और सामाजिक कार्यों में किया, जैसे कपड़े, खाने की व्यवस्था, और अनुष्ठानों की महफ़िलें। इससे आम लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ी।
- समर्थन मिलने की इच्छा: शासक भी सूफी संतों का समर्थन प्राप्त करना चाहते थे, क्योंकि उनकी आध्यात्मिक शक्ति और धर्म निष्ठा को मानते थे।
- धार्मिक संघर्ष में सहायक: कई सूफी शेखों ने राज्य के अधिकारी वर्ग के साथ निरंतर रूप से संबंध बनाए और धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों के लिए उनका समर्थन प्राप्त किया।
- समृद्धि के उपयोग में संतुष्टि: चिश्ती सम्प्रदाय के सूफी संत धन का उपयोग धर्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए करते थे, न कि व्यक्तिगत समृद्धि के लिए। उन्होंने अपनी विधवा, कपड़े, और खाने की व्यवस्था में अपने आसपास के लोगों को सम्मिलित किया।
सूफी भाषा और संपर्क / Sufi Language and Contact
- स्थानीय भाषा में संवाद: सूफी संतों ने समा से निकलकर स्थानीय भाषा को अपनाया। उन्होंने अपने संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए स्थानीय भाषा में बातचीत की।
- भाषाई अद्यात्म: बाबा फरीद जैसे सूफी संतों ने भी क्षत्रिय भाषा में काव्य सृजन किया। उनकी कविताएं गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं और उन्होंने ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय रूप में दर्शाया।
- सूफी कविता का प्रसार: सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में बीजापुर, कर्नाटक और आस-पास के क्षेत्रों में बसने वाले सूफी संतों ने लिखी गई कविताएं सामान्यतः औरतों द्वारा घर के काम के दौरान गाई जाती थीं। इनमें ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय रूप में प्रकट किया गया।
शारिया / Sharia
- परिभाषा: शारिया मुस्लिम समुदाय को निर्देशित करने वाले कानून हैं। यह सरीफ कुरान और हदीश पर आधारित होते हैं।
- महत्व: शारिया नियामक कानून के रूप में काम करता है, जो मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सामाजिक जीवन को नियंत्रित करता है।
- हदीश का महत्व: हदीश, पैगम्बर मुहम्मद से संबंधित परंपराओं का संग्रह है। शारिया के नियमों को स्थापित करने में हदीश का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
भक्ति / Devotion
- परिभाषा: भक्ति, मोक्ष प्राप्ति के अंतिम उद्देश्य के साथ भगवान की आराधना को संकेत करता है। शब्द “भक्ति” का मूल अर्थ है “आराधना” या “पूजा”।
- भक्तों का परिचय: भक्ति के संदेश के प्रसारक भक्त जो अवतार और मूर्ति पूजा के विरोधी थे, संत के रूप में प्रसिद्ध होते हैं। कबीर, गुरु नानक देव जी, और उनके उत्तराधिकारी प्रमुख भक्ति संत महान हैं।
- भक्ति आंदोलन: भारतीय समाज पर भक्ति आंदोलन का प्रभाव महत्वपूर्ण और दूरगामी रहा है। इस आंदोलन ने जाति और मूर्ति पूजा के खिलाफ सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहित किया।
हिंदू धर्म के मतभेदों या परंपराओं के बीच अंतर और संघर्ष / Differences and conflicts between sects or traditions of Hinduism
- तांत्रिक साधनापुराणिक और वैदिक परंपराएं: तांत्रिक साधनापुराणिक परंपराओं में लगे लोगों ने अक्सर वेदों के अधिकार को नजरअंदाज किया। यहां उपमहाद्वीप के कई हिस्सों में तांत्रिक प्रथाएं व्यापक थीं, जो महिलाओं और पुरुषों के लिए खुली थीं।
- वैदिक परंपराएं और प्रमुख देवता: वैदिक परंपराओं में प्रमुख देवता अग्नि, इंद्र और सोम होते हैं। भक्ति रचनाओं का गायन और जप इस तरह की साधना का एक हिस्सा बनता था, विशेष रूप से वैष्णव और शैव वर्गों के लिए।
- मतभेद और संघर्ष: वैदिक परंपरा को महत्व देने वालों ने अक्सर दूसरों की प्रथाओं की निंदा की और उन्होंने बलिदानों का पालन किया। इसके अलावा, वैदिक प्रथाएं केवल पुरुषों और ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों के लिए थीं, जबकि उन्होंने लंबे वैदिक भजन और विस्तृत बलिदान देकर वैदिक परंपरा का अभ्यास किया।
इस प्रकार, भिन्न मतभेदों और परंपराओं के बीच संघर्ष ने हिंदू धर्म के विभिन्न पहलुओं को प्रकट किया।
विभिन्न धार्मिक विश्वास और प्रथाएं / Various religious beliefs and practices
- देवी और देवताओं की एक विस्तृत श्रृंखला: भारतीय संस्कृति में देवी और देवताओं की अद्वितीय शृंखला एक विशेषता है। इसका संबंध मूर्तिकला के साथ-साथ ग्रंथों में भी होता है। पुराणों की रचना और संकलन सरल संस्कृत भाषा में किया जाता था, ताकि यह महिलाओं और शूद्रों के लिए भी समझ में आ सके। यह पुराणिक परंपराओं को आधार बनाते हुए स्थानीय परंपराओं के साथ एक मेल बनाता है।
- स्थानीय देवताओं का महत्व: स्थानीय देवताओं को अक्सर पुरातन ढांचे में शामिल किया जाता था, उन्हें प्रमुख देवताओं की पत्नी के रूप में पहचाना जाता था। उप-महाद्वीप के कई हिस्सों में तांत्रिक साधनाएँ व्यापक थीं, जो शैव और बौद्ध धर्म को भी प्रभावित किया।
- वेदों के प्रति अलगाव: वैदिक अग्नि, इंद्र और सोम के अतिरिक्त अन्य धार्मिक मान्यताओं ने वेदों के प्रति अलगाव दिखाया। भक्ति रचना का गायन और जप विशेष रूप से वैष्णव और शैव संप्रदायों में पूजा का एक महत्वपूर्ण तरीका बन गया।
इन तत्वों के मिलन से, भारतीय समाज में विभिन्न धार्मिक विश्वास और प्रथाएं एक समृद्ध, सामाजिक और सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक हैं।
प्रारंभिक भक्ति परंपरा / Early Bhakti tradition
- भक्ति की व्यापक श्रेणियाँ: इतिहासकारों ने भक्ति परंपराओं को दो विभाजनों में वर्गीकृत किया है – निर्गुण और सगुण। निर्गुण भक्ति में भगवान की विशेषताओं की बात नहीं की जाती, जबकि सगुण भक्ति में विशेषताओं के साथ भगवान की पूजा की जाती है।
- आदिवासी और नयनार: छठी शताब्दी में, भक्ति आंदोलनों का नेतृत्व अल्वार (विष्णु के भक्त) और नयनार (शिव के भक्त) ने किया। उन्होंने तमिल भक्ति गीतों का प्रसार किया और यात्रा की, जिसमें धार्मिक स्थलों की पहचान की और बाद में उन्होंने उन्हें मंदिरों में बदला।
- जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन: इतिहासकारों के अनुसार, अल्वार और नयनारों ने जातिवाद के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। अल्वार द्वारा रचित नलयिरा दिव्यप्रबंधम तमिल वेद के रूप में विवरण किया गया था, जो जातिवाद के खिलाफ एक प्रभावी प्रतिक्रिया थी।
इन सभी कार्यों ने भारतीय भक्ति परंपरा को गहराई से प्रभावित किया और समाज को धार्मिक संवेदना में एकता और समर्थन प्रदान किया।
स्त्री भक्त / Female devotee
- स्त्रियों का समर्थन: भक्ति परंपरा में, स्त्रियों को भी महत्वपूर्ण स्थान था। अंडाल, कराइकाल अम्मारियार जैसी महिला भक्तों ने भक्ति संगीत की रचना की, जो पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देते थे।
- अंडाल का प्रेम: अंडाल, जिन्होंने अपने आप को भगवान विष्णु की प्रेयसी मानकर प्रेम भावना छन्दों में व्यक्त की। उनके भक्ति गीत भगवान के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक होते थे।
- कराइकाल अम्मइयार का तप: शिवभक्त स्त्री कराइकाल अम्मइयार ने अपने जीवन में घोर तपस्या के मार्ग को अपनाया। उन्होंने अपनी भक्ति के माध्यम से अपने आत्मा को परिशुद्ध किया और शिव की आराधना की।
- नयनार परंपरा: इन महिला भक्तों की रचनाओं को नयनार परंपरा में सुरक्षित रखा गया, जिससे उनकी भक्ति और धार्मिकता का सम्मान किया जा सके।
इन स्त्रियों ने अपने उद्दीपनात्मक और धार्मिक संदेशों के माध्यम से समाज को प्रेरित किया और उन्हें धार्मिक साधना में अग्रणी भूमिका दी।
कर्नाटक में वीरशैव परंपरा / Veerashaiva tradition in Karnataka
- आरंभिक आंदोलन: बसवन्ना नामक एक ब्राह्मण ने 12 वीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नया आंदोलन आरंभ किया। उनके अनुयायियों को “वीरशैव” या “लिंगायत” के रूप में जाना जाता था।
- शिव की पूजा: वीरशैव या लिंगायत समुदाय का मूल मंत्र था कि भक्त, मृत्यु के बाद शिव में लीन हो जाता है और फिर इस संसार में नहीं लौटता। उन्होंने पुनर्जन्म का सिद्धांत अस्वीकार किया और जातिवाद के खिलाफ खड़े होकर समाज में समानता की लड़ाई लड़ी।
- सामाजिक परिवर्तन: लिंगायत समुदाय ने जाति, प्रदूषण, और विधवाओं के पुनर्विवाह के विचार को चुनौती दी। उन्होंने वयस्क विवाह और विधवा पुनर्विवाह को समर्थन दिया, जिससे समाज में समानता और समृद्धि की ओर कदम बढ़ा।
- समृद्धि का आधार: कन्नड़ भाषा में बसा वीरशैव परंपरा उस समय के आंदोलन में शामिल हुई महिलाओं और पुरुषों द्वारा बनाई गई। इस आंदोलन ने समाज में समृद्धि और सामाजिक न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग प्रशस्त किया।
उत्तरी भारत में धार्मिक उफान / Religious upsurge in Northern India
- मंदिरों की उपासना: इस काल में उत्तरी भारत में भगवान शिव और विष्णु की उपासना मंदिरों में की जाती थी। ये मंदिर शासकों की सहायता से बनाए गए थे।
- राजपूत राज्यों का उदभव: उत्तरी भारत में इस काल में राजपूत राज्यों का उदभव हुआ, जिनमें ब्राह्मणों का वर्चस्व था। ब्राह्मण अनुष्ठानिक कार्यों का निर्वहन करते थे।
- धार्मिक नेता की उपस्थिति: इस समय में कुछ धार्मिक नेता भी उत्तरी भारत में सामने आए जो रूढ़िवादी ब्रह्मनीय परंपरा से अलग थे, जैसे कि नाथ और जोगी सिद्ध।
- वेदों का विरोध: अनेक धार्मिक नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी और अपने विचारों को आम लोगों की भाषा में प्रस्तुत किया।
- तुर्क आगमन: इसके बाद तुर्क लोगों का भारत में आगमन हुआ, जिसका असर हिन्दू धर्म और संस्कृति पर पड़ा।
इस्लामी परम्पराएँ / Islamic traditions
- अरब व्यापारिक समुद्र मार्ग: प्रथम सहस्राब्दी ईसवी में, अरब व्यापारी समुंद्र के रास्ते से पश्चिमी भारत के बंदरगाहों तक आए।
- आक्रमण के साथ आगमन: इसी समय मध्य एशिया से लोग देश के उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में आकर बस गए, जिसने इस्लामी संस्कृति का आगमन किया।
- इस्लाम का उदभव: सातवीं शताब्दी में इस्लाम के उद्भव के बाद, यह क्षेत्र इस्लामी विश्व कहलाया और इस्लामी संस्कृति ने धारावाहिक रूप से प्रभाव डाला।
शासको और शासितों के धार्मिक विश्वास / Religious beliefs of rulers and ruled
- मुहम्मद बिन कासिम का सिंध विजय: 711 ईसवी में, मुहम्मद बिन कासिम नाम के एक अरब सेनापति ने सिंध को जीत लिया और उसे खलीफा के क्षेत्र में शामिल कर लिया।
- तुर्कों और अफगानों का आक्रमण: 13 वीं शताब्दी में, तुर्क और अफगानों ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।
- मुगल सल्तनत की स्थापना: 16वीं शताब्दी में मुगल सल्तनत की स्थापना हुई, जिसमें सैद्धांतिक रूप से, मुस्लिम शासकों को उलमा द्वारा निर्देशित किया जाता था और शरीयत के नियमों का पालन करना था।
- धर्मिक संघर्ष: लेकिन ऐसा कर पाना मुश्किल था, क्योंकि एक बड़ी जनसंख्या इस्लाम को मानने वाली नहीं थी और धार्मिक संघर्ष हमेशा रहा।
जिम्मी: धर्म और संरक्षा / Jimmy: religion and security
- गैर-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व: जिम्मी, जो गैर-मुस्लिम थे जैसे हिन्दू, ईसाई, और यहूदी, मुस्लिम शासकों के अधीन रहने के लिए जजिया का भुगतान करना पड़ता था।
- संरक्षा का हक: इन जिम्मी व्यक्तियों को मुस्लिम शासकों द्वारा संरक्षित होने का अधिकार प्राप्त होता था।
- मुगल शासकों की नैतिकता: अकबर और औरंगज़ेब सहित कई मुगल शासकों ने धर्मिक सहिष्णुता का प्रदर्शन किया और भूमि की बंदोबस्ती करते समय हिंदू, जैन, पारसी, ईसाई और यहूदी धार्मिक संस्थानों को कर में छूट दी।
- समृद्धि की बदलती दृष्टिकोण: इसके अलावा, बहुत से शासकों ने जिम्मी व्यक्तियों को भूमि का अनुदान और कर में छूट भी दी, जिससे समाज का सामाजिक और आर्थिक विकास हुआ।
लोक प्रचलन में इस्लाम :- एक परिवर्तनकारी दौर / Islam in popular practice:- a transformational period
- समाजिक परिवर्तन: इस्लाम के आगमन के बाद, समाज में बड़े परिवर्तन देखने को मिले। किसान, शिल्पकार, योद्धा, व्यापारी – सभी में बदलाव दिखा।
- प्रवासी समुदायों का परिचय: लोग कभी-कभी अपने प्रारंभिक क्षेत्र के संदर्भ में पहचाने जाते थे। प्रवासी समुदायों को अक्सर ‘म्लेच्छ’ के रूप में जाना जाता था, जिससे उन्हें उनकी भाषा और संस्कृति के साथ नए समाजिक मानदंडों का सामना करना पड़ता था।
- धार्मिक स्वीकृति: इन प्रवासी समुदायों ने इस्लाम का स्वागत किया और इसे अपनाया।
- विश्वास के पांच स्तंभ: इस्लाम अपनाने वाले सभी लोगों ने धर्म के पांच स्तंभों को स्वीकार किया, जो उनके धार्मिक अनुष्ठान का आधार था।
इस्लाम धर्म की पाँच बाते (धार्मिक सिद्धांतों का संक्षिप्त अध्ययन) / Five points of Islam (brief study of religious principles)
- एक ईश्वर और दूत: इस्लाम में, अल्लाह को एक मात्र ईश्वर माना जाता है, और पैगंबर मुहम्मद को उनके दूत या मैसेंजर के रूप में स्वीकार किया जाता है।
- नमाज़ का अदान: मुसलमान धर्मीय अद्धभुत समयगामी ध्यान की प्रक्रिया है, जिसे नमाज़ या सलात कहा जाता है। रोज़ाना पाँच बार नमाज़ अदा करना इस्लाम के महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है।
- भिक्षा का दान (ज़कात): ज़कात, या भिक्षा का दान, इस्लामी सामाजिक न्याय का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह अधिकतम धन का निर्धारित हिस्सा होता है जो गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है।
- माह-ए-रमज़ान और उपवास (सवाम): माह-ए-रमज़ान, इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने में होता है और इसे उपवास या सवाम के रूप में मनाया जाता है। इस महीने में रोज़ा रखकर और दिन भर के उपवास से भक्त अपने धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का प्रयास करते हैं।
- मक्का की तीर्थयात्रा (हज): हज, इस्लाम का पाँचवां स्तंभ है और मुसलमानों के लिए यह धार्मिक यात्रा का सर्वोच्च रूप है। हज, मक्का में स्थित काबा की तीर्थयात्रा को आदर्श मानी जाती है और इसे एक बार जीवन में करना धर्मिक दायित्व माना जाता है।
सूफीवाद का विकास (आत्मचिंतन की अनूठी पथ) / Development of Sufism (unique path of introspection)
- आरम्भिक चरण: इस्लाम के प्रारंभिक शताब्दियों में, कुछ धार्मिक विचारकों ने बढ़ते भौतिकवाद के खिलाफ तप और रहस्यवाद को अपनाया। इन्हें ‘सूफी’ कहा जाता है।
- ध्यान और आत्मचिंतन: सूफियों ने कुरान की पाठ-प्रवचन की हठधर्मी परिभाषाओं के विरुद्ध ध्यान और आत्मचिंतन को उपेक्षित किया। उन्होंने विद्वानों के तरीकों की आलोचना की और अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कुरान की व्याख्या की।
- ध्यान की शक्ति: सूफीवादियों का मुख्य उद्देश्य अपने ईश्वर के साथ एकीभाव में मिलना था। वे ध्यान, मेधाशक्ति, और आत्मचिंतन के माध्यम से अपने आत्मा को ईश्वर के साथ मिलाते थे।
- भावनात्मक धारा: सूफी धारा अपने संगीत, कविता, और नृत्य के माध्यम से भावनात्मक अनुभव को व्यक्त करती थी। इसका उद्देश्य आत्मा के ऊपरी स्थिति का अनुभव करना था।
- विविधता और संधर्भ: सूफीवाद विविधता को समर्थित करता था और उसे अलग-अलग समाजों और संस्कृतियों में समाहित किया गया। इसने धर्म और संस्कृति के बीच समरसता और समाजिक एकता को बढ़ावा दिया।
खानकाह (सूफी संतों का आध्यात्मिक आवास) / Khanqah (spiritual residence of Sufi saints)
- सूफी संतों का निवास स्थल: खानकाह, या सूफी संतों का आध्यात्मिक आवास, उनका निवास स्थल होता था। यहाँ पर वे ध्यान, साधना और शिक्षा प्राप्त करते थे।
- आंदोलन का विकास: सूफीवाद एक अच्छी तरह से विकसित आंदोलन में 11 वीं शताब्दी तक विकसित हुआ। खानकाह इस आंदोलन के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक था।
- आत्मीय शिक्षा केंद्र: सूफी संतों ने शेख, पीर या मुर्शिद के नाम से एक शिक्षण गुरु के रूप में खानकाह के आसपास समुदायों को संगठित किया। यहाँ पर उन्होंने शिष्यों को नामांकित किया और एक उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
सूफी सिलसिला (आध्यात्मिक वंशावली का एक संगीतमय पथ) / Sufi Silsila (a musical path of spiritual lineage)
- अर्थपूर्ण श्रृंखला: सूफी सिलसिला एक श्रृंखला का अर्थ है जो गुरु और शिष्य के बीच एक निरंतर कड़ी को दर्शाता है। यह पैगंबर मुहम्मद के लिए एक अखंड आध्यात्मिक वंशावली के रूप में फैला है।
- मकबरा और दरगाह: जब शेख की मृत्यु हो जाती है, तो उनका मकबरा – दरगाह (दरगाह) उनके अनुयायियों की भक्ति का केंद्र बन जाता है। यहाँ पर उनकी कब्र पर तीर्थयात्रा या ज़ियारत की प्रथा, विशेषकर पुण्यतिथि की शुरुआत होती है।
चिश्ती सिलसिला (सूफी आध्यात्मिकता का अद्वितीय उत्सव) / Chishti Silsila (Unique Celebration of Sufi Spirituality)
- संघ की स्थापना: भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय सम्प्रदायों में से एक, चिश्ती सम्प्रदाय, ख्वाजा अब्दुल चिश्ती द्वारा 10वीं शताब्दी में स्थापित किया गया।
- महान संत: सम्प्रदाय को प्रसिद्ध करने में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का अद्वितीय योगदान रहा।
- सिलसिला का नामकरण: ज्यादातर सूफी सम्प्रदायों का नाम उनके संस्थापकों के नाम पर पड़ा। जैसे, कादरी सिलसिला शेख अब्दुल कादिर जिलानी के नाम पर पड़ा।
कुछ सिलसिलों का नाम उनके जन्म स्थान के आधार पर रखा गया है, जैसे चिश्ती सम्प्रदाय का नाम मध्य अफगानिस्तान के चिश्ती शहर से लिया गया है।
- प्रभावशाली वृद्धि: 12वीं शताब्दी के अंत में, चिश्ती सम्प्रदाय भारतीय सूफी समुदायों में सबसे प्रभावशाली था। उन्होंने अपने आपको स्थानीय परिवेश में अच्छी तरह से ढाला और भक्ति परम्परा में विशेषताओं को भी अपनाया।
चिश्ती खानकाह में जीवन (एक सामाजिक संगठन) / Life in Chishti Khanqah (a social organization)
- सामाजिक केंद्र: खानकाह एक सामाजिक जीवन का केंद्र था, जो सूफी संतों की आध्यात्मिक गुणवत्ता और धार्मिक शिक्षा को संजोकर रखता था।
- खानकाह के प्रसिद्ध संत: चौदहवीं शताब्दी में, यमुना नदी के तट पर घियासपुर में शेख निज़ामुद्दीन की धर्मशाला बहुत प्रसिद्ध थी।
यहाँ संत शेख और उनके अनुयायियों को सुबह और शाम मिलने का संदेश दिया जाता था।
- खुली रसोई और लंगर: खानकाह में एक खुली रसोई (लंगर) थी, जहाँ हर क्षेत्र के लोग आते थे और समृद्धि के साथ भोजन करते थे।
- प्रमुख आगंतुक: खानकाह में आने वाले अमीर हसन सिज्जी, अमीर खुसरु और जियाउद्दीन बरनी जैसे प्रमुख आगंतुक थे।
- आध्यात्मिक कृपा का केंद्र: खानकाह में संतों की कब्रों के लिए तीर्थयात्रा (ज़ियारत) का अभ्यास था, जो उनकी आध्यात्मिक कृपा (बरकत) मांगने का एक माध्यम था।
चिश्ती उपासना जियारत ओर कव्वाली / Chishti Upasana Ziarat and Qawwali
- ज़ियारत: ज़ियारत का अर्थ है सूफी संतों की कब्रों की तीर्थयात्रा करना, जिसमें सूफी से आध्यात्मिक अनुग्रह प्राप्त करने का उद्देश्य होता है।
संगीत और नृत्य ज़ियारत का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, क्योंकि सूफी समुदाय को यह मान्यता थी कि संगीत और नृत्य मानव हृदय में दिव्य परमानंद पैदा करते हैं।
इसे साम के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें संगीत और ध्यान का संगम होता है।
- कव्वाली: कव्वाली एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ‘कहना’। यह गाने का प्रकार है जो कव्वालों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
इसे अक्सर सूफी समागमों और समारोहों में गाया जाता है, जहाँ ध्यान और भक्ति के साथ संगीत का आनंद लिया जाता है।
- बेशारिया और बाशारिया: सूफी समाज में शारिया की अवहेलना करने के कारण, कुछ सूफी संतों को ‘बेशारिया’ कहा जाता था।
वहीं, शारिया का पालन करने वाले सूफी संतों को ‘बाशारिया’ कहा जाता था, जो सूफी संघ से अलग माने जाते थे।
उत्तरी भारत में नए भक्ति मार्ग / New Bhakti Paths in Northern India
कबीर :- उत्तरी भारत के नए भक्ति मार्ग का प्रणेता
- कवि-संत कबीर का जीवन: कबीर 14 वीं – 15 वीं शताब्दी के कवि – संत थे, जो उत्तरी भारत में अपने अद्भुत ग्रंथों और दोहों के माध्यम से मानवता के प्रति अपनी संदेशप्रसार की।
- अनूठी विचारधारा: कबीर ने अपनी विचारधारा में विविधता को महत्व दिया और सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं को समाहित किया।
उन्होंने अल्लाह, खुदा, हज़रत, पीर के रूप में परम वास्तविकता को बताया, साथ ही वैदिक और योगिक परंपराओं के भी शब्दों का प्रयोग किया।
- प्रमुख संग्रहालय: कबीर की धार्मिक विचारधारा को संकलित करने के लिए उनके छंदों को तीन अलग-अलग परंपराओं में संकलित किया गया।
उनकी ग्रंथावली राजस्थान के दादूपंथ से जुड़ी है, जबकि कबीरपंथ उत्तर प्रदेश में उनके छंदों को संरक्षित करता है।
- आध्यात्मिक संदेश: कबीर के विचारों ने संभवतः संवाद और बहस के माध्यम से अपनी अद्भुतता दिखाई, जिससे वे एक समृद्ध और आध्यात्मिक उपासना के मार्गप्रदर्शक बने।
गुरु नानक :- उत्तरी भारत के नए भक्ति मार्ग का प्रणेता
- भजन और उपदेश: गुरु नानक के संदेश को उनके भजन और उपदेशों में पिरोया गया है, जहां उन्होंने निर्गुण भक्ति के एक नये रूप की वकालत की।
- दिव्यता का सन्देश: गुरु नानक के अनुसार, पूर्ण या ‘रब’ का कोई लिंग या रूप नहीं था। उन्होंने अपने विचारों को पंजाबी में ‘शबद’ नामक भजनों के माध्यम से व्यक्त किया।
- धरोहर की संरक्षा: गुरु अर्जुन ने आदि ग्रंथ साहिब में बाबा फरीद, रविदास और कबीर के भजनों के साथ गुरु नानक के भजनों को संकलित किया।
गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को शामिल किया और इस शास्त्र को गुरु ग्रंथ साहिब ‘के नाम से जाना गया।
मीराबाई :- उत्तरी भारत के भक्ति मार्ग की आधारशिला
- भक्ति परंपरा की महिला-कवि: मीराबाई एक प्रसिद्ध महिला-कवि थीं, जिन्होंने भक्ति परंपरा को उजागर किया।
- भावनाओं की अभिव्यक्ति: उनकी रचनाएँ भावनाओं की तीव्र अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं, जो गरीब और निम्न जाति के लोगों को प्रेरित करती थीं।
- भक्ति के संदेशक: मीराबाई के गीतों ने उत्तरी भारत में भक्ति और प्रेम के संदेश को बहुतायत से लोगों तक पहुंचाया।
- सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा: उनकी रचनाएँ सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा देने के साथ-साथ, आत्मनिर्भरता और भक्ति के माध्यम से स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण संदेश भी देती थीं।
- साहित्यिक योगदान: उनकी रचनाओं ने साहित्यिक धारा में एक नया मोड़ लाया और उत्तरी भारतीय साहित्य में भक्ति के महत्वपूर्ण स्तम्भ का निर्माण किया।
आशा करते है इस पोस्ट भक्ति सूफी परंपरा notes, Class 12 history chapter 6 notes in hindi में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट भक्ति सूफी परंपरा notes, Class 12 history chapter 6 notes in hindi पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!
NCERT Notes
स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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Author: NCERT
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Pros
- Best NCERT Notes Class 6 to 12
NCERT Notes
स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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