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Class 10 अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in Hindi
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NCERT 10 Class अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | आर्थिक विकास की समझ Economics |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | उपभोक्ता अधिकार |
Category | Class 10 अर्थशास्त्र Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 10 Arthik Vikas ki samajh Notes Chapter 5. उपभोक्ता
अध्याय = 5
उपभोक्ता अधिकार
उपभोक्ता:- बाजार से अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ खरीदने वाले लोग।
उत्पादक:- दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं का निर्माण या उत्पादन करने वाले लोग।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम:– धोखाधड़ी, कालाबाज़ारी, मिलावट, कम तोल जैसी समस्याओं के समाधान के लिए उपभोक्ता संरक्ष्ण अधिनियम 9 दिसंबर 1986 को संसद में पास हो गया तथा 24 दिसंबर 1986 को राष्ट्रपति द्वारा इसे स्वीकृति दे दी गयी।
उपभोक्ताओं के अधिकार:-
उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए कानून द्वारा दिए गए अधिकार इस प्रकार है:-
- सुरक्षा का अधिकार:- जो उपभोक्ताओं के जीवन और सम्पति के लिए असुरक्षित है, यह अधिकार उन वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है।
- सूचना का अधिकार:- यह अधिकार वस्तुओं, सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता,और कीमत के बारे में सूचित करने का अधिकार है।
- चुनने का अधिकार:- कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के अधिकार को चुनने का अधिकार कहते हैं।
- क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार:– अनुचित तरीके से व्यापारिक प्रथाओं, प्रतिबंधात्मक व्यापार एवं उपभोक्ताओं के शोषण के खिलाफ निवारण अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार निवारण का अधिकार कहलाता है।
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार:– वह अधिकार जो यह सुनिश्चित करता है कि देश में उपभोक्ताओं के पास सूचनात्मक कार्यक्रम हो तथा ऐसी सामग्रियाँ भी हो जो आसानी से उपलब्ध है और उन्हें क्रय निर्णय लेने में सक्षम बनाती है जो पहले से बेहतर है।
उपभोक्ताओं के शोषण के कारण:-
- सीमित सूचना:- उत्पाद के विभिन्न पहलुओं जैसे- मूल्य, गुणवत्ता, घटक, प्रयोग की परिस्थितियाँ आदि के बारे में जानकारी के आभाव में उपभोक्ता गलत वस्तुओं को खरीदने के उत्तरदायी होते हैं जिससे धन की हानि भी होती है।
- सीमित आपूर्ति:- औद्योगीकरण के कारण आपूर्ति की भारी मात्रा में कमी हो रही है, यह संचय को बढ़ाता है एवं मूल्य में कमी करता है।
- सीमित प्रतिस्पर्धा:– औद्योगीकरण के कारण बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा की कमी हुई है, जिससे उपभोक्ताओं के शोषण को बढ़ावा मिलता है।
- साक्षरता कम होना:- उपभोक्ताओं में साक्षरता की कमी होने के कारण यह आसानी से धोखे में आ जाते हैं।
उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य:-
- कोई भी माल खरीदते समय उपभोक्ताओं को सामान की गुणवत्ता अवश्य देखनी चाहिए। जहाँ भी संभव हो गारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए।
- खरीदे गए सामान व सेवा की रसीद अवश्यक लेनी चाहिए।
- अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्य करनी चाहिए।
- आई. एस. आई. तथा एगमार्क निशानों वाला सामान ही खरीदे।
- अपने अधिकारों की जानकारी अवश्यक होनी चाहिए।
- आवश्यकता पड़ने पर उन अधिकारों का प्रयोग भी करना चाहिए।
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ:-
- उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है।
- कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। यह मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते हैं।
- अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं, ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है ।
- बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती है।
- श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद खास तौर से असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर है।
- इस प्रकार बाज़ारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता।
Class 10 अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in Hindi
Class 10 सामाजिक विज्ञान
नोट्स
उपभोक्ता अधिकार
उपभोक्ता सुरक्षा तथा आंदोलन
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 ( कोपरा):-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 9 दिसंबर 1986 को भारतीय संसद में पास हुआ। 24 दिसंबर 1986 को भारत के राष्ट्रपति ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पर अपनी स्वीकृति दे दी उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी, कालाबाजारी, मिलावट, कम नापतोल, आदि। समस्याओं के समाधान के लिए यह अधिनियम पारित किया गया।
इस अधिनियम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसमें संशोधन किये गए। जैसे- 1991 एवं 1993 में संशोधन किए गए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को अधिकाधिक कार्यरत और प्रयोजनपूर्ण बनाने के लिए दिसंबर 2002 में एक बड़ा संशोधन लाया गया जो 15 मार्च 2003 से लागू किया गया। 1987 में भी संशोधन किया गया जो 5 मार्च 2004 को लागू किया गया।
- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून।
- कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है।
- जिला स्तर पर 20 लाख राज्य स्तर पर 20 लाख से एक करोड़ तक तथा राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती है।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन:-
भारत में “सामाजिक बल” के रूप में उपभोक्ताओं के अनैतिक और अनुचित व्यावसायिक कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ।
- भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की परंपरा काफी पुरानी है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे। लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है।
- लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गए थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की सुध ली। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया।
कंज्यूमर फोरम:- उपभोक्ताओं से सम्बंधित संघर्षों, विवादों और शिकायतों का न्यायालय।
- भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर कई संस्थाओं का गठन हुआ है। इन संस्थाओं को कंज्यूमर फोरम या कंज्यूमर प्रोटेकशन काउंसिल कहते हैं। इन संस्थाओं का काम है किसी भी उपभोक्ता को कंज्यूमर कोर्ट में मुकदमा दायर करने में मार्गदर्शन करना। कई बार ऐसी संस्थाएँ कंज्यूमर कोर्ट में उपभोक्ता की तरफ से वकालत भी करती हैं। ऐसे संस्थानों को सरकार की तरफ से अनुदान भी दिया जाता है ताकि उपरोक्ता जागरूकता की दिशा में ठोस काम हो सके।
- आजकल कई रिहायशी इलाकों में रेजिडेंट वेलफेअर एसोसिएशन होते हैं। यदि ऐसे किसी एसोसिएशन के किसी भी सदस्य को किसी विक्रेता या सर्विस प्रोवाइडर द्वारा ठगा गया हो तो उस सदस्य के लिए मुकदमा भी लड़ते हैं।
कंज्यूमर कोर्ट:- कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत के लिए हमे कुछ डॉक्यूमेंट की आवश्यक्ता होती है। जैसे- सामान की रसीद, रिमाइंडर ऐप्लिकेशन आदि।
यह एक अर्ध-न्यायिक व्यवस्था है जिसमें तीन लेयर होते हैं। इन स्तरों के नाम हैं जिला स्तर के कोर्ट, राज्य स्तर के कोर्ट और राष्ट्रीय स्तर के कोर्ट। 20 लाख रुपए तक के क्लेम वाले केस जिला स्तर के कोर्ट में सुनवाई के लिए जाते हैं। 20 लाख से 1 करोड़ रुपए तक के केस राज्य स्तर के कोर्ट में जाते हैं। 1 करोड़ से अधिक के क्लेम वाले केस राष्ट्रीय स्तर के कंज्यूमर कोर्ट में जाते हैं। यदि कोई केस जिला स्तर के कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो उपभोक्ता को राज्य स्तर पर और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर अपील करने का अधिकार होता है।
राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस:- यह दिवस उपभोक्ता आंदोलन को अवसर देता है तथा उसके महत्व को उजागर करता है। यह उपभोक्ता को अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करने की प्रेरणा देता है।
- 24 दिसंबर को राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था। भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिए अलग से कोर्ट हैं। हाल के समय में उपभोक्ता आंदोलन ने भारत में अच्छी पैठ बनाई है। ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत में 700 से अधिक कंज्यूमर ग्रुप हैं। उनमे से 20-25 अच्छी तरह से संगठित हैं और अपने काम के लिए जाने जाते हैं। भारत में यह दिवस पहली बार 2000 में मनाया गया।
- लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महँगी और लंबी होती जा रही है। वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है।
Class 10 Economics Chapter 5 questions and answers in Hindi
1. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर- उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का दूसरा नाम COPRA है।
2. अन्तिम वस्तुएँ कौनसी होती हैं?
उत्तर- उपभोक्ता के रूप में लोगों द्वारा जिन वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, वे अन्तिम वस्तुएँ होती हैं।
3. उपभोक्ता कौन होता है?
उत्तर- वह व्यक्ति जो किसी वस्तु या पदार्थ का बाजार से क्रय करता है और उसका उपभोग करता है, उपभोक्ता कहलाता है।
4. कोपरा का पूरा नाम बताइए।
उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम।
5. सूचना का अधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- सूचना का अधिकार वह कानून है जिसके तहत देश के नागरिकों को सरकारों के निर्णयों व कार्यकलापों की सूचना पाने का अधिकार है।
6. आई.एस.आई. तथा एगमार्क क्या है?
उत्तर- आई.एस.आई. विद्युत उपकरणों एवं एगमार्क खाद्य वस्तुओं की विश्वसनीयता और गुणवत्ता को सुनिश्चित करते हैं
7. उपभोक्ता जो भी वस्तु या सेवा खरीदना चाहता है उसके सम्बन्ध में वह पूरी जानकारी प्राप्त कर सकता है। यह उपभोक्ता का कौनसा अधिकार है?
उत्तर- सूचना पाने का अधिकार।
8. भारत में सरकार ने सूचना पाने का अधिकार (RTI) कब लागू किया?
उत्तर- वर्ष 2005 में।
9. भारत में उपभोक्ता को जागरूक बनाने हेतु चलाए जा रहे एक कार्यक्रम का नाम बताइये।
उत्तर- जागो ग्राहक जागो।
10. उपभोक्ता के शोषण का कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर- उपभोक्ता को मिलावटी वस्तु देना।
11. RTI का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर- राइट टू इनफॉरमेशन।
Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार
NCERT Class 6 to 12 Notes in Hindi
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Author: NCERT
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