Class 10 अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in Hindi
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NCERT 10 Class अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in hindi
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | आर्थिक विकास की समझ Economics |
Chapter | Chapter 5 |
Chapter Name | उपभोक्ता अधिकार |
Category | Class 10 अर्थशास्त्र Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Class 10 Arthik Vikas ki samajh Notes Chapter 5. उपभोक्ता
अध्याय = 5
उपभोक्ता अधिकार
उपभोक्ता:- बाजार से अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ खरीदने वाले लोग।
उत्पादक:- दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं का निर्माण या उत्पादन करने वाले लोग।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम:– धोखाधड़ी, कालाबाज़ारी, मिलावट, कम तोल जैसी समस्याओं के समाधान के लिए उपभोक्ता संरक्ष्ण अधिनियम 9 दिसंबर 1986 को संसद में पास हो गया तथा 24 दिसंबर 1986 को राष्ट्रपति द्वारा इसे स्वीकृति दे दी गयी।
उपभोक्ताओं के अधिकार:-
उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए कानून द्वारा दिए गए अधिकार इस प्रकार है:-
- सुरक्षा का अधिकार:- जो उपभोक्ताओं के जीवन और सम्पति के लिए असुरक्षित है, यह अधिकार उन वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है।
- सूचना का अधिकार:- यह अधिकार वस्तुओं, सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता,और कीमत के बारे में सूचित करने का अधिकार है।
- चुनने का अधिकार:- कीमतों पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के अधिकार को चुनने का अधिकार कहते हैं।
- क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार:– अनुचित तरीके से व्यापारिक प्रथाओं, प्रतिबंधात्मक व्यापार एवं उपभोक्ताओं के शोषण के खिलाफ निवारण अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार निवारण का अधिकार कहलाता है।
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार:– वह अधिकार जो यह सुनिश्चित करता है कि देश में उपभोक्ताओं के पास सूचनात्मक कार्यक्रम हो तथा ऐसी सामग्रियाँ भी हो जो आसानी से उपलब्ध है और उन्हें क्रय निर्णय लेने में सक्षम बनाती है जो पहले से बेहतर है।
उपभोक्ताओं के शोषण के कारण:-
- सीमित सूचना:- उत्पाद के विभिन्न पहलुओं जैसे- मूल्य, गुणवत्ता, घटक, प्रयोग की परिस्थितियाँ आदि के बारे में जानकारी के आभाव में उपभोक्ता गलत वस्तुओं को खरीदने के उत्तरदायी होते हैं जिससे धन की हानि भी होती है।
- सीमित आपूर्ति:- औद्योगीकरण के कारण आपूर्ति की भारी मात्रा में कमी हो रही है, यह संचय को बढ़ाता है एवं मूल्य में कमी करता है।
- सीमित प्रतिस्पर्धा:– औद्योगीकरण के कारण बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा की कमी हुई है, जिससे उपभोक्ताओं के शोषण को बढ़ावा मिलता है।
- साक्षरता कम होना:- उपभोक्ताओं में साक्षरता की कमी होने के कारण यह आसानी से धोखे में आ जाते हैं।
उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य:-
- कोई भी माल खरीदते समय उपभोक्ताओं को सामान की गुणवत्ता अवश्य देखनी चाहिए। जहाँ भी संभव हो गारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए।
- खरीदे गए सामान व सेवा की रसीद अवश्यक लेनी चाहिए।
- अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्य करनी चाहिए।
- आई. एस. आई. तथा एगमार्क निशानों वाला सामान ही खरीदे।
- अपने अधिकारों की जानकारी अवश्यक होनी चाहिए।
- आवश्यकता पड़ने पर उन अधिकारों का प्रयोग भी करना चाहिए।
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ:-
- उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है।
- कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। यह मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते हैं।
- अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं, ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है ।
- बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती है।
- श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद खास तौर से असंगठित क्षेत्र में ये कमजोर है।
- इस प्रकार बाज़ारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता।
Class 10 अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार Notes in Hindi
Class 10 सामाजिक विज्ञान
नोट्स
उपभोक्ता अधिकार
उपभोक्ता सुरक्षा तथा आंदोलन
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 ( कोपरा):-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 9 दिसंबर 1986 को भारतीय संसद में पास हुआ। 24 दिसंबर 1986 को भारत के राष्ट्रपति ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पर अपनी स्वीकृति दे दी उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी, कालाबाजारी, मिलावट, कम नापतोल, आदि। समस्याओं के समाधान के लिए यह अधिनियम पारित किया गया।
इस अधिनियम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसमें संशोधन किये गए। जैसे- 1991 एवं 1993 में संशोधन किए गए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को अधिकाधिक कार्यरत और प्रयोजनपूर्ण बनाने के लिए दिसंबर 2002 में एक बड़ा संशोधन लाया गया जो 15 मार्च 2003 से लागू किया गया। 1987 में भी संशोधन किया गया जो 5 मार्च 2004 को लागू किया गया।
- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून।
- कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है।
- जिला स्तर पर 20 लाख राज्य स्तर पर 20 लाख से एक करोड़ तक तथा राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती है।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन:-
भारत में “सामाजिक बल” के रूप में उपभोक्ताओं के अनैतिक और अनुचित व्यावसायिक कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ।
- भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन आदि की परंपरा काफी पुरानी है। भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे। लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है।
- लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गए थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की सुध ली। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया।
कंज्यूमर फोरम:- उपभोक्ताओं से सम्बंधित संघर्षों, विवादों और शिकायतों का न्यायालय।
- भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर कई संस्थाओं का गठन हुआ है। इन संस्थाओं को कंज्यूमर फोरम या कंज्यूमर प्रोटेकशन काउंसिल कहते हैं। इन संस्थाओं का काम है किसी भी उपभोक्ता को कंज्यूमर कोर्ट में मुकदमा दायर करने में मार्गदर्शन करना। कई बार ऐसी संस्थाएँ कंज्यूमर कोर्ट में उपभोक्ता की तरफ से वकालत भी करती हैं। ऐसे संस्थानों को सरकार की तरफ से अनुदान भी दिया जाता है ताकि उपरोक्ता जागरूकता की दिशा में ठोस काम हो सके।
- आजकल कई रिहायशी इलाकों में रेजिडेंट वेलफेअर एसोसिएशन होते हैं। यदि ऐसे किसी एसोसिएशन के किसी भी सदस्य को किसी विक्रेता या सर्विस प्रोवाइडर द्वारा ठगा गया हो तो उस सदस्य के लिए मुकदमा भी लड़ते हैं।
कंज्यूमर कोर्ट:- कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत के लिए हमे कुछ डॉक्यूमेंट की आवश्यक्ता होती है। जैसे- सामान की रसीद, रिमाइंडर ऐप्लिकेशन आदि।
यह एक अर्ध-न्यायिक व्यवस्था है जिसमें तीन लेयर होते हैं। इन स्तरों के नाम हैं जिला स्तर के कोर्ट, राज्य स्तर के कोर्ट और राष्ट्रीय स्तर के कोर्ट। 20 लाख रुपए तक के क्लेम वाले केस जिला स्तर के कोर्ट में सुनवाई के लिए जाते हैं। 20 लाख से 1 करोड़ रुपए तक के केस राज्य स्तर के कोर्ट में जाते हैं। 1 करोड़ से अधिक के क्लेम वाले केस राष्ट्रीय स्तर के कंज्यूमर कोर्ट में जाते हैं। यदि कोई केस जिला स्तर के कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो उपभोक्ता को राज्य स्तर पर और उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर अपील करने का अधिकार होता है।
राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस:- यह दिवस उपभोक्ता आंदोलन को अवसर देता है तथा उसके महत्व को उजागर करता है। यह उपभोक्ता को अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करने की प्रेरणा देता है।
- 24 दिसंबर को राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था। भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिए अलग से कोर्ट हैं। हाल के समय में उपभोक्ता आंदोलन ने भारत में अच्छी पैठ बनाई है। ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत में 700 से अधिक कंज्यूमर ग्रुप हैं। उनमे से 20-25 अच्छी तरह से संगठित हैं और अपने काम के लिए जाने जाते हैं। भारत में यह दिवस पहली बार 2000 में मनाया गया।
- लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महँगी और लंबी होती जा रही है। वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है।
Class 10 Economics Chapter 5 questions and answers in Hindi
1. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर- उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 का दूसरा नाम COPRA है।
2. अन्तिम वस्तुएँ कौनसी होती हैं?
उत्तर- उपभोक्ता के रूप में लोगों द्वारा जिन वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, वे अन्तिम वस्तुएँ होती हैं।
3. उपभोक्ता कौन होता है?
4. कोपरा का पूरा नाम बताइए।
उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम।
5. सूचना का अधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- सूचना का अधिकार वह कानून है जिसके तहत देश के नागरिकों को सरकारों के निर्णयों व कार्यकलापों की सूचना पाने का अधिकार है।
6. आई.एस.आई. तथा एगमार्क क्या है?
उत्तर- आई.एस.आई. विद्युत उपकरणों एवं एगमार्क खाद्य वस्तुओं की विश्वसनीयता और गुणवत्ता को सुनिश्चित करते हैं
7. उपभोक्ता जो भी वस्तु या सेवा खरीदना चाहता है उसके सम्बन्ध में वह पूरी जानकारी प्राप्त कर सकता है। यह उपभोक्ता का कौनसा अधिकार है?
उत्तर- सूचना पाने का अधिकार।
8. भारत में सरकार ने सूचना पाने का अधिकार (RTI) कब लागू किया?
उत्तर- वर्ष 2005 में।
9. भारत में उपभोक्ता को जागरूक बनाने हेतु चलाए जा रहे एक कार्यक्रम का नाम बताइये।
उत्तर- जागो ग्राहक जागो।
10. उपभोक्ता के शोषण का कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर- उपभोक्ता को मिलावटी वस्तु देना।
11. RTI का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर- राइट टू इनफॉरमेशन।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न 1 बाज़ार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
उत्तर – बाजार में नागरिक की सुरक्षा के लिए नियम एवं नियंत्रण की आवश्यकता होती है क्योंकि जब उपभोक्ताओं का शोषण होता है तो उपभोक्ता प्राय: स्वयं को कमजोर स्थिति में पाते हैं। खरीदी गई वस्तु या सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है तो विक्रेता सारे उत्तरदायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है। विक्रेता कई तरीकों से उपभोक्ता का शोषण कर सकता है। ऐसी स्थिति से उपभोक्ता को बचाने के लिए उपभोक्ता आंदोलन चलाए गए जिससे बाजार में सुरक्षा मिले। बाज़ार में शोषण कई रूपों में होता है, जैसे- कभी-कभी व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं, कम तौलने लगते हैं। या मिलावटी वस्तुएँ बेचने लगते हैं। उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए समय-समय पर मीडिया और अन्य स्रोतों से गलत सूचना देते हैं। अतः उपभोक्ताओं की सुरक्षा निश्चित करने के लिए नियम और नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 2 भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।
उत्तर – भारत के व्यवसायियों में गलत काम करने की पुरानी परंपरा रही है। जैसे मिलावट करना, जमाखोरी और कम वजन तौलना। 1960 के दशक से ही कई उपभोक्ता संघों का जन्म हुआ। उन्होंने जागरूकता अभियान चलाया और ग्राहकों की सुरक्षा के लिये लड़ाई लड़ी। इस लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप 1986 में कोपरा को लागू किया गया।
प्रश्न 3 दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वर्णन करें।
उत्तर – उपभोक्ता जागरूकता की कई कारणों से आवश्यकता है-
- उपभोक्ता जागरूकता इसलिए आवश्यक है क्योंकि अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर दोनों-उत्पादक और व्यापारी कोई भी गलत काम कर सकते हैं। जैसे- वे खराब वस्तु दे सकते हैं, कम तौल सकते हैं, अपनी सेवाओं के अधिक मूल्य ले सकते हैं, आदि। धन के लालच के कारण ही समय-समय पर जरूरी वस्तुओं के दाम बहुत बढ़ जाते हैं।
- उपभोक्ता जागरूकता की इसलिए भी जरूरत है क्योंकि बेईमान व्यापारी अपने थोड़े से फायदे के लिए जनसाधारण के जीवन से खेलना शुरू कर देते हैं। जैसे विभिन्न खाद्य पदार्थों- दूध, घी, तेल, मक्खन, खोया और मसालों आदि में मिलावट करते हैं जिससे आम व्यक्ति के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कारण उपभोक्ता जागरूकता आवश्यक है जिससे व्यापारी हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ न कर सकें।
प्रश्न 4 कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
उत्तर – निम्नलिखित से उपभोक्ता का शोषण होता है-
- अशिक्षा एवं अज्ञानता (literacy and Ignorance)- हमारी जनसंख्या का अधिकतर भाग अशिक्षित है तथा उपभोक्ता अधिकार से अज्ञात है। काफी उपभोक्ता वस्तुओं की गुणवत्ता की पहचान भी नहीं कर पाते हैं। इन कमियों के कारण उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
- उपभोक्ता न समझ (Fatalism of Consumer)- बहुत से उपभोक्ता यह मानते हैं कि उन्हें जिन वस्तुओं की पूर्ति की जा रही है, वे बिल्कुल ठीक हैं अर्थात् उनमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं है।
- मासूम व्यक्तित्व (Compromising Attitude)- भारतीय उपभोक्ता अपनी प्रकृति से बहुत मासूम होते हैं। उन्हें विक्रेताओं के विरुद्ध शिकायत करने या लड़ने या झगड़ने की आदत नहीं होती है।
- गैर-लिखित विक्रय (Unrecorded Sales)- अधिकतर विक्रेता विक्रय का लेखा नहीं करते, इसलिए उन पर इस विक्रय के संबंध में कोई मुकदमा नहीं किया जा सकता है। इसी कारण हमारा शोषण होता है।
- लंबी वैधानिक प्रक्रिया (Lengthy Legal Process)- सभी शिक्षित एवं अशिक्षित उपभोक्ता मुकदमा दायर करने से घबराते हैं, क्योंकि इसकी वैधानिक प्रक्रिया बहुत लंबी होती है।
प्रश्न 5 उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर – बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लंबे समय तक उपभोक्ताओं का शोषण उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा किया जाता रहा। इस शोषण से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए सरकार पर उपभोक्ता आंदोलनों के द्वारा दबाव डाला गया। यह वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दबाव डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 कानून का बनना था, जो कोपरा (COPRA) के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 6 अपने क्षेत्र के बाजार में जाने पर उपभोक्ता के रूप में अपने कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर – किसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जाने से पहले मुझे वहाँ यह देखना चाहिए कि पार्किंग की सुविधा है या नहीं। मुझे वहाँ पर अग्निशामक यंत्रों की उपलब्धता के बारे में भी पता करना चाहिए। मुझे यह देखना चाहिए कि एक्सपायरी डेट के बाद वाला कोई उत्पाद शेल्फ पर तो नहीं रखा है। बिल अदा करने से पहले उसके सही होने की जाँच करनी चाहिए।
प्रश्न 7 मान लीजिए, आप शहद की एक बोतल और बिस्किट का एक पैकेट खरीदते हैं। खरीदते समय आप कौन-सा लोगो या शब्द चिह्न देखेंगे और क्यों?
उत्तर – खरीदते समय हम ISI, एगमार्क या हालमार्क देखेंगे, क्योंकि यह शब्द चिह्न वस्तुओं तथा सेवाओं की गुणवत्ता के बारे में उपभोक्ताओं को आश्वासन देते हैं।
प्रश्न 8 भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा किन कानूनी मापदंडों को लागू करना चाहिए?
उत्तर – भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार द्वारा कानूनी मापदंडों को लागू किया जाना चाहिए। 1986 के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम द्वारा उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए। राष्ट्रीय, राज्य तथा जिला स्तर पर तीन स्तरीय उपभोक्ता अदालतों का निर्माण किया गया। सरकार के लिए जरूरी है कि वह इन अदालतों में आए मुकदमों की शीघ्र सुनवाई करे और दोषी उत्पादक या व्यापारी के खिलाफ कार्रवाई करे। पीड़ित उपभोक्ता को उचित मुआवजा दिलवाया जाए। उपभोक्ताओं की शिकायतों का शीघ्र निपटारा करवाने के लिए इन कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना जरूरी है। सरकार कोशिश करे कि भारत में बननेवाली विभिन्न चीजों की गुणवत्ता की जाँच की जाए और उन्हें आई०एस०आई० या एगमार्क की मोहर लगाकर ही बाजार में बिकने के लिए भेजा जाए। सरकार बाजार में बिकनेवाली विभिन्न चीजों की जाँच करे कि वे सुरक्षा के मापदंड पूरे करती हैं या नहीं। ऐसी चीजों की बिक्री पर रोक लगा दी जाए जो सुरक्षा के मापदंड पूरे न करती हों। सरकार को कानून बनाकर जमाखोरी, कालाबाजारी आदि पर रोक लगाकर उपभोक्ताओं को शोषण से बचाना होगा। गरीब वर्ग के लोगों को कम कीमत पर आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इन विभिन्न कानूनी मापदंडों का प्रयोग करके सरकार उपभोक्ताओं को अधिकारों को प्राप्त कराने में समर्थ बना सकती है।
प्रश्न 9 उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
उत्तर – उपभोक्ता के कुछ अधिकार नीचे दिये गये हैं-
- सूचना पाने का अधिकार- एक उपभोक्ता को किसी उत्पाद के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार होता है। अब ऐसे कानून हैं जो किसी उत्पाद के पैक पर अवयवों और सुरक्षा के बारे में जानकारी देना अनिवार्य बनाते हैं।
- चयन का अधिकार- एक उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों में से चुनने का अधिकार होता है। इस अधिकार को मोनोपॉली ट्रेड के खिलाफ बने कानूनों के जरिये लागू किया जाता है।
- क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार- यदि किसी उपभोक्ता को उत्पादक के झूठे वादों या उत्पादन की त्रुटियों के कारण कोई भी क्षति होती है तो उसे क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार होता है।
प्रश्न 10 उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं?
उत्तर – उपभोक्ताओं को अपनी एकता को बनाने के लिए तथा उसका प्रदर्शन करने के लिए उपभोक्ताओं के संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया गया है जिन्हें सामान्यतः उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता सुरक्षा परिषद के नाम से जाना जाता है। ये संस्थाएँ उपभोक्ताओं को बताती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज किया जाए। बहुत से अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में उपभोक्ता का प्रतिनिधित्व भी करती हैं। ये संगठन जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त करते हैं। भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने संगठित समूहों की संख्या और कार्यविधि में तरक्की की है।
प्रश्न 11 भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति की समीक्षा करें।
उत्तर – विक्रेताओं द्वारा शोषण की परंपरा के खिलाफ लड़ने की इच्छा के कारण भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत हुई। पहले उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिये कोई कानून नहीं था। लगभग दो दशकों के संघर्ष के बाद ही सरकार ने उपभोक्ता अदालतों का गठन शुरु किया। अभी भी उपभोक्ता शिकायत के कई मामले लंबे समय तक लंबित रहते हैं। कोर्ट में किसी भी केस का फैसला आने में 20 से 30 वर्ष तक लग जाते हैं। अभी भी भारत में उपभोक्ता आंदोलन इतना शक्तिशाली नहीं हुआ है कि व्यवसायियों की ताकतवर लॉबी से मुकाबला कर सके। इसलिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।
प्रश्न 12 निम्नलिखित को सुमेलित करें-
क्रम. | ‘क‘ | क्रम. | ‘ख‘ |
1. | एक उत्पाद के घटकों का विवरण | (क) | सुरक्षा का अधिकार |
2. | एगमार्क | (ख) | उपभोक्ता मामलों में संबंध |
3. | स्कूटर में खराब इंजन के कारण हुई दुर्घटना | (ग) | अनाजों और खाद्य तेल का प्रमाण |
4. | जिला उपभोक्ता अदालत विकसित करने वाली एजेंसी | (घ) | उपभोक्ता कल्याण संगठनों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था |
5. | उपभोक्ता इंटरनेशनल | (ड) | सूचना का अधिकार |
6. | भारतीय मानक ब्यूरो | (च) | वस्तुओं और सेवाओं के लिये मानक |
उत्तर –
क्रम. | ‘क‘ | क्रम. | ‘ख‘ |
1. | एक उत्पाद के घटकों का विवरण | (ड) | सूचना का अधिकार |
2. | एगमार्क | (ग) | अनाजों और खाद्य तेल का प्रमाण |
3. | स्कूटर में खराब इंजन के कारण हुई दुर्घटना | (क) | सुरक्षा का अधिकार |
4. | जिला उपभोक्ता अदालत विकसित करने वाली एजेंसी | (ख) | उपभोक्ता मामलों में संबंध |
5. | उपभोक्ता इंटरनेशनल | (घ) | उपभोक्ता कल्याण संगठनों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था |
6. | भारतीय मानक ब्यूरो | (च) | वस्तुओं और सेवाओं के लिये मान |
प्रश्न 13 सही या गलत बताएँ।
- कोपरा केवल सामानों पर लागू होता है।
- भारत विश्व के उन देशों में से एक है, जिसके पास उपभोक्ताओं की समस्याओं के निवारण के लिए विशिष्ट अदालते हैं।
- जब उपभोक्ता को ऐसा लगे कि उसका शोषण हुआ है, तो उसे जिला उपभोक्ता अदालत में निश्चित रूप से मुकदमा दायर करना चाहिए।
- जब अधिक मूल्य का नुकसान हो, तभी उपभोक्ता अदालत में जाना लाभप्रद होता है।
- हॉलमार्क, आभूषणों की गुणवत्ता बनाए रखनेवाला प्रमाण-पत्र है।
- उपभोक्ता समस्याओं के निवारण की प्रक्रिया अत्यंत सरल और शीघ्र होती है।
- उपभोक्ता को मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है।
उत्तर –
- गलत
- सही
- सही
- गलत
- सही
- सही
- सही
NCERT Class 10 अर्थशास्त्र Chapter 5 उपभोक्ता अधिकार
NCERT Class 6 to 12 Notes in Hindi
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Author: NCERT
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