Class 10 History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद Notes PDF in Hindi

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Class 10 History Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद Notes in Hindi

Class 10 Social Science [ History ] Itihas Chapter 2 Nationalism in India Notes In Hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectHistory
ChapterChapter 2
Chapter Nameभारत में राष्ट्रवाद
CategoryClass 10 History Notes in Hindi
MediumHindi

अध्याय = 2
भारत में राष्ट्रवाद

Class 10 सामाजिक विज्ञान
पुनरावृति नोट्स
भारत में राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद का अर्थ

राष्ट्रवाद का अर्थः– अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना एकता की भावना तथा एक समान चेतना राष्ट्रवाद कहलाती है। यह लोग समान ऐतिहासिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक विरासत साझा करते है।

कई बार लोग विभिन्न भाषाई समूह के हो सकते है (जैसे भारत) लेकिन राष्ट्र के प्रति प्रेम उन्हें एक सूत्र में बांधे रखता है। 19वीं शताब्दी में भारतीयों में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना का विकास बहुत तेजी से हुआ। भारतीय राष्ट्रवाद काफी हद तक उपनिवेशवादी नीतियों के परिणामस्वरूप ही उभरा था। पाश्चात्य शिक्षा का विस्तार, मध्यवर्ग का उदय, रेलवे का विस्तार और सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों ने राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


दूसरे उपनिवेशों की तरह भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई थी। औपनिवेशिक शासकों के ख़िलाफ संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे।

उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था। लेकिन हर वर्ग और समूह पर उपनिवेशवाद का असर एक जैसा नहीं था। उनके अनुभव भी अलग थे और स्वतंत्रता के मायने भी भिन्न थे। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इन समूहों को इकट्ठा करके एक विशाल आंदोलन खड़ा किया। परंतु इस एकता में टकराव के बिंदु भी निहित थे।

राष्ट्रवाद को जन्म देने वाले कारक भारत में राष्ट्रवाद का उदय अनेक कारणों एवं परिस्थितियों का परिणाम था, जों इस प्रकार है:-

  1. यूरोप में राष्ट्र राज्यों के उदय से जुड़ा हुआ है।
  2. भारत, वियतनाम जैसे उपनिवेशों में उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ा है।
  3. औपनिवेशिक प्रशासन:- अंग्रेजों ने भारतीय ग्रामीण उद्योग और कृषि को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बदलकर रख दिया था। जिससे लोगो में ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश उत्पन्न हो गया। रेलवे के विस्तार और डाक व्यवस्था के कारण लोगो के मध्य संपर्क स्थापित हो गया जिससे राष्ट्रवाद की भावना को बल मिला।
  4. भारतीय पुनर्जागरण:- ने भी राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया, उसने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, अनैतिकताओं और रूढ़ियों को मुक्ति का मार्ग दिखाया।

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भारत में राष्ट्रवाद

प्रथम विश्व युद्ध, खिलाफत तथा असहयोग

प्रथम विश्व युद्ध, खिलाफत तथा असहयोग: प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में सन 1919 से 1922 तक दो आंदोलन चलाये गए खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन अंग्रेजों द्वारा मुसलमानों के नेता खलीफा को पद से हटाने पर मुसलमान नाराज हो गए

तथा 1919 में मोहम्मद अली, शौकत अली, मौलाना आज़ाद, हकीम अजमल खान एवं हसरत मोहानी के नेतृत्व में खिलाफत कमेटी का गठन किया गया। रॉलेट सत्याग्रह की सफलता से खुश होकर गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। जिससे असहयोग और खिलाफत मिलकर दो धार्मिक समुदाय अंग्रेजी सरकार का अंत कर देंगे।


प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव तथा युद्ध पश्चात परिस्थितयाँ:-

 प्रथम विश्व युद्ध के (1914-1918) कारण भारत की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव आया। इस युद्ध में अंग्रेजों ने भारतीयों की अनुमति के बिना भारत को युद्ध में अपना सहयोगी घोषित किया। जिससे भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न हुआ।
युद्ध के निम्नलिखित कारण इस प्रकार है-

  • एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का जन्म
  • रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी जिसकी भरपाई कर्जा लेकर व करो में वृद्धि करके
  • सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया तथा आयकर शुरू किया गया।
  • ब्रिटिश सेना के लिए सिपाहियों की जबरन भर्ती।
  • फसल नष्ट हो जाने की वजह से खाद्यान्न की भारी कमी।
  • फ्लू की महामारी तथा अकाल की वजह से लाखों लोगों की मृत्यु।

सत्याग्रह का विचार:-


अर्थः– यह सत्य तथा अहिंसा पर आधारित एक नए तरह का जन आंदोलन करने का रास्ता था।
सत्याग्रह के मुख्य बिंदु:-

  • अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से लड़ने के लिए किसी शारिरिक बल की आवश्यकता नहीं है।
  • सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे बिना किसी प्रतिशोध की भावना या आक्रमकता का सहारा लिए बिना भी सफल हो सकता है।
  • उत्पीड़क की चेतना को झिझोड़कर उसे सच्चाई को स्वीकार करने तथा दमन का अंत करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

महात्मा गाँधी द्वारा भारत में किए गए सत्याग्रह के आरंभिक प्रयोग:-

  • चंपारण (बिहार) 1917 में दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ नील की खेती करने वाले किसानों को प्रेरित किया।
  • 1917 में खेड़ा (गुजरात किसानों को कर में छूट दिलवाने के लिए उनके संघर्ष में समर्थन दिया। फसल खराब हो जाने व प्लेग महामारी के कारण किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे)
  • अहमदाबाद (गुजरात) 1918 में कपड़ा कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के समर्थन में सत्याग्रह आंदोलन।

रॉलेट एक्ट:- रौलट एक्ट को काला कानून भी कहते है। इस कानून को अंग्रेजों ने भारत के लोगो को कुचलने के लिए बनाया था इस कानून के अंदर अंग्रेजों को यह अधिकार दिया गया कि किसी भी भारतीय पर मुकदमा चलाये बिना उसे जेल में बंद कर सकते थे।

रॉलेट एक्ट के मुख्य प्रावधान:-

 राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमा चलाए दो साल तक जेल में बंद रखने का प्रावधान।

रॉलेट एक्ट अन्यायपूर्ण क्यो:-

  • भारतीयों की नागरिक आजादी पर प्रहार।
  • भारतीय सदस्यों की सहमति के बगैर पास किया गया।

रॉलेट एक्ट के उद्देश्य:-

 भारत में राजनीतिक गतिविधियों का दमन करने के लिए।

रॉलेट एक्ट के परिणाम:-

  • 6 अप्रैल को महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक अखिल भारतीय हड़ताल का आयोजन
  • विभिन्न शहरों में रैली, जूलूस
  • रेलवे वर्कशॉप्स में कामगारों का हड़ताल
  • दुकाने बंद हो गई
  • स्थानीय नेताओं को हिरासत में ले लिया गया
  • बैंकों, डाकखानों और रेलवे स्टेशन पर हमले

जलियाँवाला बाग हत्याकांड:-

  • मुख्य घटनाएँ:- 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में घटित हुआ। सैफुद्दीन और डॉ० सत्यपाल किचलू की गिरफ़्तारी का रॉलेट एक्ट कानून विरोध प्रकट करने के लिए एकत्रित हुए थे।
  • शहर से बाहर के होने के कारण वहाँ जुटे लोगों को ये पता नहीं था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू किया जा चुका था।
  • जनरल डायर वहाँ पहुँचा, मैदान से बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद कर दिये तथा भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दी।
  • सैकड़ो लोग मारे गए।

खिलाफत का मुद्दा:-

 खिलाफत शब्द ‘खलीफा’ से निकला हुआ है जो ऑटोमन तुर्की का सम्राट होने के साथ-साथ इस्लामिक विश्व का आध्यात्मिक नेता भी था। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार हुई थी यह अफवाह फैल गई थी कि तुर्की पर एक अपमानजनक संधि थोपी जाएगी।

इसलिए खलीफा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में अली बंधुओं मोहम्मद अली, शौकत अली, मौलाना आज़ाद, हाकिम अजमल खान, और हसरत मोहनी द्वारा बम्बई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया।

महात्मा गांधी ने क्यों खिलाफत का मुद्दा उठाया:-

 रॉलेट सत्याग्रह की असफलता के बाद से ही महात्मा गांधी पूरे भारत में और भी ज्यादा जनाधार वाला आंदोलन खड़ा करना चाहते थे। महात्मा गाँधी का पहला और व्यापक राजनीतिक अभियान खिलाफत आंदोलन में भाग लेना था।


उन्हें विश्वास था कि बिना हिंदू और मुस्लिम को एक दूसरे के समीप लाए ऐसा कोई अखिल भारतीय आंदोलन खड़ा नही किया जा सकता इसलिए उन्होने खिलाफत का मुद्दा उठाया। ताकि भारत को जल्द ही स्वतन्त्रता मिल जाए।

असहयोग आंदोलन (जनवरी 1921- फरवरी 1922):-

  1. असहयोग क्यों:-
    भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना भारतीयों के सहयोग से हुई थी।
    यदि भारतीय अपना सहयोग वापस ले ले तो ब्रिटिश शासन रह जाएगा।
  2. असहयोग आंदोलन के चरण:
    सरकार द्वारा दी गई पदवियाँ लौटाना सरकारी नौकरी, सेना पुलिस, विद्याथियों द्वारा स्कूल, कॉलेज न जाना, वकीलों का इस्तीफ़ा देना अदालत तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन।
  3. असहयोग आंदोल से संबंधित कांग्रेसी अधिवेशन:-
    सितंबर 1920- असहयोग पर स्वीकृति अन्य नेताओं द्वारा।
    दिसंबर 1920- स्वीकृति पर मोहर तथा इसकी शुरूआत पर सहमति।
  4. विभिन्न सामाजिक समूह जिन्होने भाग लिया शहरों में- मध्यवर्ग- विद्यार्थी, शिक्षक, वकील
    ग्रामीण इलाकों में- किसान व आदिवासी
    बागानों में- मजदूर
  5. आंदोलन के दोहरे लक्ष्य:-
    स्वराज की प्राप्ति
    खिलाफत के मुद्दे को समर्थन ताकि हिंदु मुस्लिम एकता लाइ जा सके।
  6. आंदोलन की समाप्ति- फरवरी 1922 में महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया क्योंकि चौरी चौरा में हिंसक घटना हो गई थी।

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आंदोलन के भीतर अलग-अलग धाराएँ

शहरों में आंदोलन:- असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 में औपचारिक रूप से शुरू हुआ था और बाद में इस आंदोलन को प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितम्बर 1920 को प्रस्ताव पारित हुआ जिसके बाद कांग्रेस ने इसे औपचारिक आंदोलन स्वीकार किया। गांधीजी द्वारा चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था।

शहरी क्षेत्रों में मध्यम वर्ग का इस आंदोलन को समर्थन प्राप्त हुआ। पंजाब में विशेषतः इस आंदोलन का बहुत विरोध हुआ, जहाँ 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में खूब-खराबा हुआ जनरल डॉयर ने राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने को हुक्म दिया। जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के नाम से जाने गए इस हत्याकांड में 1,200 लोग मारे गए एवं 1600-1700 लोग घायल हुए। असहयोग आंदोलन की निम्न मांगे इस प्रकार थी- खिलाफत मुद्दा, रॉलट एक्ट, पंजाब में जलियांवाला बाग़ और उसके बाद उत्पीड़न के विरुद्ध न्याय की मांग, स्वराज की प्राप्ति।

  • आंदोलन की शुरुआत शहरी मध्यवर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई।
  • हज़ारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिए। हेडमास्टरों और शिक्षकों ने इस्तीफ़े सौंप दिए।
  • वकीलों ने मुक़दमे लड़ना बंद कर दिया।
  • मद्रास के अलावा ज़्यादातर प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया।
  • मद्रास में गैर-ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई जस्टिस पार्टी का मानना था कि काउंसिल में प्रवेश के ज़रिए उन्हें वे अधिकार मिल सकते हैं जो सामान्य रूप से केवल ब्राह्मणों को मिल पाते हैं इसलिए इस पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार नहीं किया।
  • आर्थिक मोर्चे पर असहयोग का असर और भी ज़्यादा नाटकीय रहा। विदेशी सामानों का बहिष्कार किया गया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गई और विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी जिसके कारण 1921 और 1922 में विदेशी कपड़ों को आयात घटकर आधा रह गया।
  • उसकी कीमत 102 करोड़ से घटकर 57 करोड़ रह गई। बहुत सारे स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इनकार कर दिया।
  • जब बहिष्कार आंदोलन फैला और लोग आयातित कपड़ें को छोड़कर केवल भारतीय कपड़ें पहनने लगे तो भारतीय कपड़ा मिलों और हथकरघों का उत्पादन भी बढ़ने लगा। जिससे लघु व कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिला तथा रोजगार में भी वृद्धि हुई।

ग्रामीण इलाकों में विद्रोह: असहयोग आंदोलन का ग्रामीण इलाकों में किसानों, आदिवासियों तथा श्रमिक वर्गों को समर्थन प्राप्त था शहरों से बढ़कर असहयोग आंदोलन देहात में भी फैल गया था। युद्ध के बाद देश के विभिन्न भागों में चले किसानों व आदिवासियों के संघर्ष भी इस आंदोलन में समा गए।

  • अवध में संन्यासी बाबा रामचंद्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे। बाबा रामचंद्र इससे पहले फिजी में गिरमिटिया मजदूर के तौर पर काम कर चुके थे। किसानों को बेगार करनी पड़ती थी। पट्टेदार के तौर पर उनके पट्टे निश्चित नहीं होते थे।
  • किसानों की माँग थी कि लगान कम किया जाए, बेगार खत्म हो और दमनकारी जमींदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए।
  • बहुत सारे स्थानों पर जमींदारों को नाई-धोबी की सुविधाओं से भी वंचित करने के लिए पंचायतों ने नाई-धोबी बंद का फैसला लिया।
  • 1921 में गाँधीजी ने जमीन गरीबों में बांट दी।
  • आंध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में 1920 के दशक की शुरूआत में एक उग्र गुरिल्ला आंदोलन फैल गया। अंग्रेजी सरकार ने बड़े-बड़े जंगलों में लोगों के दाखिल होने पर पाबंदी लगा दी थी। लोग इन जंगलों में न तो मवेशियों को चरा सकते थे न ही जलावन के लिए लकड़ी और फल बीन सकते थे। इससे पहाड़ों के लोग परेशान और गुस्सा थे क्योंकि न केवल उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ रहा था बल्कि उन्हें लगता था कि उनके परम्परागत अधिकार भी छीने जा रहे हैं। जब सरकार ने उन्हें सड़कों के निर्माण के लिए बेगार करने पर मजबूर किया तो लोगों ने बगावत कर दी। गूडेम विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमले किए, ब्रिटिश अधिकारियों को मारने की कोशिश की। 1924 में राजू को फाँसी दे दी गई राजू अपने लोगों के बीच लोकनायक बन चुके थे।

बागानों में स्वराज:- असहयोग आंदोलन से प्रभावित होने के कारण कई मजदूरों व श्रमिकों ने अधिकारियों की बात मानने से मना कर दिया तथा गांधीजी का गुणगान करने लगे और आंदोलन में सहयोग दिया।


महात्मा गांधी के विचारों और स्वराज की अवधारणा के बारे में मज़दूरों की अपनी समझ थी। असम के बागानी मज़दूरों के लिए आज़ादी का मतलब यह था कि वे उन चारदीवारियों से जब चाहे आ-जा सकते हैं जिनमें उनको बंद करके रखा गया था।

उनके लिए आज़ादी का मतलब था कि वे अपने गाँवों से संपर्क रख पाएँगे। 1859 के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मज़दूरों को बिना इजाज़त बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाज़त उन्हें विरले ही कभी मिलती थी। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हज़ारों मज़दूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे।

उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए। उनको लगता था कि अब गांधी राज आ रहा है इसलिए अब तो हरेक को गाँव में ज़मीन मिल जाएगी। लेकिन वे अपनी मंज़िल पर नहीं पहुँच पाए। रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रास्ते में ही फँसे रह गए। उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई हुई।

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सविनय अवज्ञा की ओर

असहयोग आंदोलन की समाप्ति से लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन के शुरू होने तक की मुख्य घटनाएँ:- 

असहयोग आंदोलन अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहा, लेकिन यह आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने में काफी हद तक सफल रहा।

आठ साल के बाद 1930 कांग्रेस द्वारा एक जन-आंदोलन का आवाहन किया गया, जिसे सविनय अवज्ञा आंदोलन के नाम से जाना जाता है। असहयोग आंदोलन को वापिस लेने के बाद भारतीय परिस्थितियों में बदलाव और समस्याओं के प्रति सरकार के न बदलने के कारण सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया।

  • फरवरी 1922 गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लेना।
  • प्रांतीय परिषद चुनाव में हिस्सा लेने को लेकर कांग्रेस के नेताओं मे आपसी मतभेद।
  • सी. आर. दास तथा मोती लाल नेहरू द्वारा ‘स्वराज पार्टी’ (जनवरी 1923) का गठन ताकि प्रांतीय परिषद के चुनाव में हिस्सा ले सकें।
  • विश्वव्यापी आर्थिक मंदी की वजह से कृषि उत्पाद की कीमतों में भारी गिरावट।
  • ग्रामीण इलाकों में भारी उथल-पुथल।
  • 1927 में ब्रिटेन में साइमन कमीशन का गठन ताकि भारत में सवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन किया जा सके।
  • 1928 साइमन कमीशन का भारत आना पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन।
  • 1929 लॉर्ड इरविन द्वारा ‘डोमिनियन स्टेटस’ का ऐलान।
  • कांग्रेस के भीतर जवाहर लाल नेहरू तथा सुभाष चंद्र बोस जैसे तेज तर्रार व आक्रामक तेवर वाले नेताओं का उदय।
  • 1929 लाहौर अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ की माँग।

गोलमेज सम्मेलन:-

 नमक यात्रा से अंग्रेजों को यह अहसास हो गया कि वह अब भारत में ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकते अर्थात भारतीयों को भी प्रशासन में हिस्सा देना पड़ेगा। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर अंग्रेजी सरकार के द्वारा लन्दन में गोलमेज सम्मलेन का आयोजन किया गया। यह सम्मलेन मई 1930 में साइमन आयोग के द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट के आधार पर आयोजित किये गए थे। भारतीयों और ब्रिटिश सरकार के वैचारिक मतों का समाधान इन सम्मेलनों में न हो सका।
ये तीन सम्मेलन लंदन में आयोजित किए गए थे ताकि भारत के भावी संविधान पर चर्चा की जा सके।

  1. प्रथम (नवंबर 1930 – जनवरी 1931)
  2. द्वितीय (सितंबर 1931 – दिसंबर 1931)
  3. तृतीय (नवंबर – दिसंबर 1932)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा सिर्फ द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया गया।
नमक यात्रा और असहयोग आंदोलन (1930)

पृष्ठभूमि:- औपनिवेशिक स्वराज की माँग पर ध्यान न देना, पूर्ण स्वराज की माँग, देश की आंतरिक स्थिति खराब होना, गाँधी जी की 11 शर्तों पर लार्ड इरविन का ध्यान न देना आदि। ये सभी सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत के कारण बने।

  • जनवरी 1930 में महात्मा गांधी ने लार्ड इरविन के समक्ष अपनी 11 माँगे रखी।
  • ये माँगे उद्योगपतियो से लेकर किसान तक विभिन्न तबके से जुड़ी हुई थी।
  • इनमें सबसे महत्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने की थी।
  • लार्ड इरविन इनमें से किसी भी माँग को मानने के लिए तैयार नही थे।
  • 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा नमक यात्रा की शुरूआत।
  • 6 अप्रैल 1930 को नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन।
  • यह घटना सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत थी।

सविनय अवज्ञा आंदोलन:-


6 अप्रैल 1930 – मार्च-1931 (गांधी इरविन समझौते की वजह से स्थगित)
1932 दुबारा शुरूआत
1934 स्वतः समाप्त

मुख्य घटनाएँ:-

  • देश के विभिन्न हिस्से में नमक कानून का उल्लंघन
  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
  • शराब की दुकानों की पिकेटिंग
  • वन कानूनों का उल्लंघन

ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया:-

  • कांग्रेस नेताओं का हिरासत में लिया गया
  • निर्मम दमन
  • शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर आक्रमण
  • महिलाओं व बच्चों की पिटाई
  • लगभग 1,00,000 गिरफ्तार

आंदोलन में भाग लेने वाले:-

  • अमीर किसान- ऊँचे लगान के विरोध में
  • गरीब किसान- ऊँचा भाड़ा तथा ऊँचा लगान
  • व्यव्सायी वर्ग- औपनिवेशिक सरकार की व्यवसायिक नीतियों के खिलाफ
  • महिलाएँ- महात्मा गांधी से प्रेरित होकर
  • कुछ स्थानों पर मजदूर

यह कैसे असहयोग आंदोलन से अलग था:-

  • असहयोग आंदोलन में लक्ष्य ‘स्वराज’ इस बार ‘पूर्ण स्वराज’
  • असहयोग में कानून का उल्लंघन शामिल नही था जबकि इस आंदोलन में कानून तोड़ना शामिल था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की सीमाएँ:-

  • अनुसुचित की भागीदारी नहीं थी क्योंकि लंबे समय से कांग्रेस इनके हितों की अनदेखी कर रही थी।
  • मुस्लिम संगठनो द्वारा सविनय अवज्ञा के प्रति कोई खास उत्साह नही था क्योंकि 1920 के दशक के मध्य से कांग्रेस ‘हिंदू महासभा’ जैसे हिंदु धार्मिक संगठनों के करीब आने लगी थी।
  • दोनो समुदायो के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था।

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सामूहिक अपनेपन का भाव

वे कारक जिन्होंने भारतीय लोगों में सामूहिक अपनेपन की भावना को जगाया तथा सभी भारतीय लोगों को एक किया।

  1. चित्र व प्रतीक: भारत माता की प्रथम छवि बंकिम चन्द्र द्वारा बनाई गई। इस छवि के माध्यम से राष्ट्र को पहचानने में मदद मिली वस्तुओं, चित्रों, लिखित शब्दों, ध्वनियों या विशिष्ट चिन्हों को प्रतीक कहते है। जो सम्बन्ध, परम्परा, और संस्कृति को दर्शाते है। जैसे “रुकिए” स्टॉप का प्रतीक है। नक़्शों पर दर्शायी गयी रेखाएँ जिससे अलग-अलग राज्यों की मृदा के बारे में पता चलता है।
  2. लोक कथाएँ: राष्ट्रवादी घूम-घूम कर इन लोक कथाओं का संकलन करने लगे ये कथाएँ परंपरागत संस्कृति की सही तस्वीर पेश करती थी तथा अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूँढ़ने तथा अतीत में गौरव का भाव पैदा करती थी। लोककथाओं में पशु-पक्षियों, सुर-असुर, देव-परियों, मानवीकरण, चमत्कार आदि होने के बावजूद मनुष्यों के सुख-दुःख तथा अभिलाषाओ की तृप्ति निहित रहती है।
  3. चिन्ह:- चिन्ह एक वस्तु, गुणवत्ता, घटना,या इकाई है। जिसकी उपस्थिति किसी अन्य चीज की उपस्थिति को दर्शाती है। उदाहरण- झंडा बंगाल में 1905 में स्वदेशी आंदोलन के दौरान सर्वप्रथम एक तिरंगा (हरा, पीला, लाल) जिसमें 8 कमल थे। 1921 तक आते आते महात्मा गांधी ने भी सफेद, हरा और लाल रंग का तिरंगा तैयार कर लिया था।
  4. तिहास की पुर्नव्याख्या:- बहुत से भारतीय महसूस करने लगे थे कि राष्ट्र के प्रति गर्व का भाव जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाना चाहिए ताकि भारतीय गर्व का अनुभव कर सकें और इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल कर सकें।
  5. गीत जैसे वंदे मातरम: 1870 के दशक में बंकिम चन्द्र ने यह गीत लिखा मातृभूमि की स्तूति के रूप में यह गीत बंगाल के स्वदेशी आंदोलन में खूब गाया गया।

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स्मरणीय तथ्य

  • 1857 का प्रथम स्वतंत्रत संग्राम। मुख्य केंद्र बरहमपुर, मेरठ, अम्बाला, बरकपुर, लखनऊ, पेशावर, कनपुर, दिल्ली, झाँसी, झेलम, गुरदासपुर।
  • 1870 बंकिमचंद्र द्वारा वंदेमातरम की रचना।
  • 1885 में कांग्रेस की स्थापना ए.ओ. ह्यूम द्वारा बम्बई (मुम्बई) में हुई। व्योमेश चंद्र बनर्जी कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष बने।
  • लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव किया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • दिल्ली दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द किया गया।
  • दिल्ली दरबार में राजधानी कोलकता से दिल्ली स्थानांतरित की गई।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की स्वशासन की माँग को ठुकरा दिया।
  • ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर 1919 में रॉलट एक्ट जैसा काला कानून दिया।
  • 13 अप्रैल 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ, लंदन में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल द्वारा अधिनियम पास।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरूआत की।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 9 अगस्त 1925 को काकोरी में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी खजाना ले जा रही ट्रेन को लूट लिया, इलाहाबाद में स्वराज पार्टी का गठन।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली पर बम फेंका, नेहरू रिपोर्ट में भारत के नए डोमिनियन संविधान का प्रस्ताव।
  • 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने साबरमती से दाण्ड़ी यात्रा आरम्भ की।
  • 6 अप्रैल 1930 को दाण्डी पहुँच कर महात्मा गाँधी नमक कानून तोड़ा व सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की।
  • 1930- में डॉ. अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया, चिटगाँव शस्त्रागार पर छापा, साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार हेतु पहली गोलमेज सम्मलेन का आयोजन।
  • 23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव एवं राजगुरू को फाँसी दे दी गई।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1931- में महात्मा गाँधी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, परंतु उन्हे वहाँ अपेक्षित सफलता हाथ नहीं लगी।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 1905 में अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का चित्र बनाया।
  • 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ।

प्रश्न 1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई?

उत्तर- 1885

प्रश्न 2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष कौन थे?

उत्तर- व्योमेश चन्द्र बैनर्जी

प्रश्न 3. 1922 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन क्यों वापस लिया?

उत्तर-  चौरा-चौरी में हिसांत्मक घटना के कारण

प्रश्न 4. ‘हिंद स्वराज’ नामक पुस्तक की रचना किसके द्वारा की गयी?

उत्तर- महात्मा गाँधी

प्रश्न 5. मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई?

उत्तर-  1906 ई॰ में

NCERT Class 6 to 12 Notes in Hindi
Class 10 History Chapter 2

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