Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद Notes PDF in Hindi

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Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद Notes PDF in Hindi

Class 10 Social Science [ Class 10 Social Science Civics (Political Science): Democratic Politics-II ] Loktantrik Rajniti Chapter 2 Sanghavaad Notes In Hindi

10 Class लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद Notes in Hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
Subjectलोकतांत्रिक राजनीति Political Science
ChapterChapter 2
Chapter Nameसंघवाद Federalism
CategoryClass 10 राजनीति Notes in Hindi
MediumHindi

अध्याय 2, संघवाद (Federalism) class 10 SST | sanghwad in hindi

अध्याय = 2 संघवाद

Class 10 सामाजिक विज्ञान
नोट्स
संघवाद

Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद
10 Class लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद

संघवाद के प्रकार

संघवाद की परिभाषा:-
जिसमे देश की अवयव इकाइयों और केंद्रीय शक्ति के बीच सत्ता की साझेदारी हो, उसे संघवाद कहते है। संघवाद में शक्तियों का विभाजन आंशिक रूप से केंद्र सरकार, राज्य सरकार,और स्थानीय सारकारों के बीच होता है। भारत क्षेत्र और जनसँख्या की दृष्टि से अत्यधिक विस्तृत और विविधताओं से परिपूर्ण है, ऐसे में भारत के लिए संघात्मक शासन व्यवस्था को ही अपनाना स्वाभाविक था संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि “भारत, राज्यों का एक संघ होगा”।

संघात्मक शासन के लक्षण:- संविधान की सर्वोच्चता, केंद्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारों में शक्तियों का विभाजन, लिखित एवं कठोर संविधान, स्वतंत्र उच्चतम न्यायालय।

संघवाद के प्रकार:

  • साथ आकर संघ बनाना (coming Together Federation)- दो या अधिक स्वतंत्र इकाइयों को साथ लेकर एक बड़ी इकाई का गठन। सभी स्वतंत्र राज्यों की सत्ता एक समान होती है। जैसे- ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • साथ लेकर संघ बनाना (Holding together federation)- एक बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन। केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है। जैसे- भारत, जापान।

भारत के संविधान में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है न कि संघवादी राज्य। भारतीय संविधान में तीन आधारों पर शक्तियों का बंटवारा किया गया है- विधायी संबंध, प्रशासनिक संबंध और वित्तीय संबंध

  1. एक बहुत ही दुखद और रक्तरंजित विभाजन के बाद भारत आजाद हुआ। आजादी के कुछ समय बाद ही अनेक स्वतंत्र रजवाड़ों का भारत में विलय हुआ। संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी अधिकारों को तीन हिस्से में बाँटा गया है। भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में इन तीनों सूचियों का वर्णन किया गया जो इस प्रकार है-
    1. संघ सूची- संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैंकिंग, संचार और मुद्रा जैस राष्ट्रीय महत्व के विषय है। पूरे देश के लिए इन मामलों एक तरह की नीतियों की जरूरत है। इसी कारण इन विषयों को संघ सूची में डाला गया है। संघ सूची में वर्णित विषयों के बारे में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। पहले इसमें 97 विषय थे परन्तु वर्तमान में इसमे 100 विषय हैं।
    2. राज्य सूची राज्य सूची में पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि और सिंचाई जैसे प्रांतीय और स्थानीय महत्व के विषय है। राज्य सूची में वर्णित विषयों के बारे में सिर्फ राज्य सरकार ही कानून बना सकती है। पहले इसमें 66 विषय थे परन्तु वर्तमान में इसमें 61 विषय है।
    3. समवर्ती सूची- समवर्ती सूची में शिक्षा, वन मजदूर-संघ, विवाह, गोद लेना और उत्तराधिकारों जैसे वह विषय हैं जो केंद्र के साथ राज्य सरकारों की साझी दिलचस्पी में आते हैं। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों, दोनों को ही है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है। पहले इसमें 47 विषय थें परंतु वर्तमान में इसमें 52 विषय हैं।
  2. यहाँ एक सवाल यह उठता है कि जो विषय इनमें से किसी सूची में नहीं आते उनका क्या होता है? फिर कंप्यूटर साफ्टवेयर जैसे विषय किसके अधिकार-क्षेत्र में रहें क्योंकि ये संविधान बनने के बाद आए है? हमारे संविधान के अनुसार ‘बाकी बचे’ विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में चले जाते है।
  3. केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता का यह बँटवारा हमारे संविधान की बुनियादी बात है। अधिकारों के इस बँटवारे में बदलाव करना आसान नहीं है। अकेले संसद इस व्यवस्था में बदलाव नहीं कर सकती है। ऐसे किसी भी बदलाव को पहले संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना होता है । फिर कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से उसे मंजूर करवाना होता है।
  4. शक्तियों के बँटवारे के संबंध में कोई विवाद होने की हालत में फैसला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में ही होता है। सरकार चलाने और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के लिए जरूरी राजस्व की उगाही के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों को कर लगाने और संसाधन जमा करने के अधिकार हैं।

Class 10 Social Science (Political Science) Chapter 2 in Hindi

Class 10 सामाजिक विज्ञान
नोट्स
संघवाद

भाषायी राज्य

भाषायी राज्य:- भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन भारत में भाषा के आधार पर गठित पहला राज्य आंध्र प्रदेश था। जिसका अक्टूबर 1953 में गठन किया गया।

  1. भाषा के आधार पर प्रांतों का गठन हमारे देश की पहली और एक कठिन परीक्षा थी।
  2. नए राज्यों को बनाने के लिए कई पुराने राज्यों की सीमाओं को बदला गया।
  3. जब एक भाषा के आधार पर राज्यों के निर्माण की माँग उठी तो राष्ट्रीय नेताओं को डर था कि इससे देश टूट जाएगा।
  4. केंद्र सरकार ने कुछ समय के लिए राज्यों के पुर्नगठन को टाला परंतु हमारा अनुभव बताता है कि देश ज्यादातर मजबूत और एकीकृत हुआ।
  5. प्रशासन भी पहले की अपेक्षा सुविधाजनक हुआ है।
  6. कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर ही नहीं बल्कि संस्कृति, भूगोल व नृजातीयता (Ethnicity) की विविधता को रेखांकित एवं महत्त्व देने के लिए किया गया।
  7. राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना- आज़ादी के पश्चात भारत सरकार ने राज्यों को भाषा के आधार पर पुनर्गठित करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग कि स्थापना 22 दिसंबर 1953 में की। 1950 में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश में राज्यों के बंटवारे का आधार भाषाई था।

भाषा नीति:-

 किसी विशेष भाषा तथा भाषाओं के प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिए बनाई गई नीति भाषा नीति कहलाती है।

  1. भारत के संघीय ढाँचे की दूसरी परीक्षा भाषा-नीति को लेकर हुई।
  2. हमारे संविधान में किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया। हिंदी को राजभाषा माना गया पर हिंदी सिर्फ 40 फीसदी (लगभग) भारतीयों की मातृभाषा है इसलिए अन्य भाषाओं के संरक्षण के अनेक दूसरे उपाय किए गए।
  3. भारत में संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को संविधानिक दर्जा दिया गया है। जैसे- हिंदी, बंगाली, असमिया, बोडो, गुजराती, डोंगरी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, सिंधी, संथाली, संस्कृत, पंजाबी, ओरिया, नेपाली, मराठी, मणिपुरी, मलयालम, मिथिली, कश्मीरी, कनाडा, कोंकणी।
  4. केंद्र सरकार के किसी पद का उम्मीदवार इनमें से किसी भी भाषा में परीक्षा दे सकता है बशर्ते उम्मीदवार इसको विकल्प के रूप में चुने।
  5. राज्यों की भी अपनी राजभाषाएँ हैं। राज्यों का अपना अधिकांश काम अपनी राजभाषा में ही होता है।
  6. संविधान के अनुसार सरकारी कामकाज की भाषा के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग 1965 में बंद हो जाना चाहिए था पर अनेक गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों ने माँग की कि अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाए।
  7. तमिलनाडु में तो इस माँग ने उग्र रूप भी ले लिया था। केंद्र सरकार ने हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को राजकीय कामों में प्रयोग की अनुमति देकर इस विवाद को सुलझाया।
  8. अनेक लोगों का मानना था कि इस समाधान से अंग्रेजी-भाषी अभिजन को लाभ पहुँचेगा।
  9. राजभाषा के रूप में हिंदी को बढ़ावा देने की भारत सरकार की नीति बनी हुई है पर बढ़ावा देने का मतलब यह नहीं कि केंद्र सरकार उन राज्यों पर भी हिंदी को थोप सकती है जहाँ लोग कोई और भाषा बोलते हैं।
  10. भारतीय राजनेताओं ने इस मामले में जो लचीला रुख अपनाया उसी से हम श्रीलंका जैसी स्थिति में पहुँचने से बच गए।

Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद

एनसीईआरटी कक्षा 10 राजनीति विज्ञान अध्याय 2: संघवाद

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Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद
10 Class लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद

केंद्र-राज्य

केंद्र-राज्य संबंध:-

 केंद्र-राज्य संबंधों से तात्पर्य किसी लोकतान्त्रिक राष्ट्र-राज्य में संघवादी केंद्र एवं उसकी इकाइयों के बीच आपसी संबंधों से होता है। स्वतंत्रता के बाद तो यह संबंध अधिक संवेदनशील रहे है। फिर विषय चाहे भाषाओं की पहचान, आसमान विकास और राज्यों के गठन का हो। ये सभी केंद्र-राज्यों की संबंधों की सीमा में आते हैं।

  1. सत्ता की साझेदारी की संवैधानिक व्यवस्था वास्तविकता में कैसा रूप लेगी यह ज्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि शासक दल और नेता किस तरह इस व्यवस्था का अनुसरण करते हैं।
  2. काफी समय तक हमारे यहाँ एक ही पार्टी का केंद्र और अधिकांश राज्यों में शासन रहा। इसका व्यावहारिक मतलब यह हुआ कि राज्य सरकारों ने स्वायत्त संघीय इकाई के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं किया।
  3. जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें रहीं तो केंद्र सरकार ने राज्यों के अधिकारों की अनदेखी करने की कोशिश की। उन दिनों केंद्र सरकार अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को भंग कर देती थी।
  4. यह संघवाद की भावना के प्रतिकूल काम था। 1990 के बाद से यह स्थिति काफी बदल गई। इस अवधि में देश के अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। यही दौर केंद्र में गठबंधन सरकार की शुरुआत का भी था। चूँकि किसी एक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला इसलिए प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों को क्षेत्रीय दलों समेत अनेक पार्टियों का गठबंधन बनाकर सरकार बनानी पड़ी।
  5. इससे सत्ता में साझेदारी और राज्य सरकारों की स्वायत्तता का आदर करने की नई संस्कृति पनपी।
  6. इस प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े फैसले से भी बल मिला। इस फैसले के कारण राज्य सरकार को मनमाने ढंग से भंग करना केंद्र सरकार के लिए मुश्किल हो गया। इस प्रकार आज संघीय व्यवस्था के तहत सत्ता की साझेदारी संविधान लागू होने के तत्काल बाद वाले दौर की तुलना में ज्यादा प्रभावी है।

दिसम्बर 1992 में भारतीय संसद ने संविधान के 73वें एवं 74वें संशोधनों को मंजूरी प्रदान की। इसके तहत भारत में स्थानीय स्वशासन निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया एवं भारत में पंचायती राज व्यवस्था मजबूत बनाया गया।

ग्राम योजना के उद्देश्य:-

 सभी नागरिकों को यह अवसर प्रदान करना कि वह अपने हितों से जुड़े सामाजिक, आर्थिक विषयों पर खुद विचार करे एवं गाँव के विकास के लिए योजनाएँ बनाए।

ग्राम पंचायत:-


1992 के पंचायती राज व्यवस्था के प्रमुख प्रावधान– पंचायती राज व्यवस्था त्रिस्तरीय होगी। जिसमे ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद शामिल होंगे। त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था में पाँच साल की अवधि पर चुनाव कराये जाते हैं तथा पंचायत भंग होने पर छः महीने की अवधि के अंतर्गत चुनाव कराये जाते हैं।

  1. अब स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक बाध्यता है।
  2. निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के अनुसूचित जनजातियों एवं महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित है।
  3. कम से कम एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
  4. हर राज्य में पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।
  5. राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ हिस्सा इन स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है।
Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद
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सीबीएसई नोट्स कक्षा 10 राजनीति विज्ञान अध्याय 2 – संघवाद – Byju’s

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क्षैतिज वितरण

क्षैतिज वितरण:

  1. विधायिका (कानून का निर्माण)- विधायिका देश के लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उसके अनुसार कानून बनाती है। (लोकसभा, राज्य सभा, राष्ट्रपति)
  2. कार्यपालिका (कानून का क्रियान्वयन)- सरकार के द्वारा बनाई गई नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने का कार्य करती है। (प्रधान मंत्री एवं मंत्रिपरिषद तथा नौकरशाह)
  3. न्यायपालिका (कानून की व्याख्या)- कानूनों की व्याख्या और न्याय देने का कार्य करती है। (सर्वोच्च न्यायालय, मुख्य न्यायालय तथा अन्य जिला व सत्र न्यायालय)

ऊर्ध्वाधर वितरण:-

  1. केंद्रीय सरकार– केंद्र सरकार राष्ट्र-राज्य की सरकार होती है यह एकात्मक राज्य की विशेषता है। केंद्र सरकार की संरचना देश के अनुसार बदलती रहती है।
  2. राज्य/प्रांतीय सरकार– संघीय सरकार के रूप में किसी देश या प्रान्त की स्थानीय सरकार होती है, जो राष्ट्रीय सरकार के साथ अपनी शक्तियों को साँझा करती है।
  3. स्थानीय स्वशासन- स्थानीय स्वशासन से तात्पर्य है कि स्थानीय क्षेत्रों का प्रशासन वहाँ के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाये। (ग्राम पंचायत, ब्लॉक समिति, ज़िला परिषद)
  • गाँवों के स्तर पर मौजूद स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायती राज के नाम से जाना जाता है। इसका गठन संविधान के 74 वे संशोधन 11वीं अनुसूची में किया गया है, जिसमे 18 विषय हैं।
  • ग्राम पंचायत प्रत्येक गाँव में और कुछ राज्यों में ग्राम-समूह की एक ग्राम पंचायत होती है।
  • यह एक तरह की परिषद् है जिसमें कई सदस्य और एक अध्यक्ष होती है। सदस्य वार्डों से चुने जाते हैं और उन्हें सामान्यतः पंच कहा जाता है।
  • अध्यक्ष को प्रधान या सरपंच कहा जाता है। इनका चुनाव गाँव अथवा वार्ड में रहने वाले सभी वयस्क लोग मतदान के जरिए करते हैं।
  • यह पूरे पंचायत के लिए फैसला लेने वाली संस्था है। पंचायतों का काम ग्राम-सभा की देखरेख में चलता है। गाँव के सभी मतदाता इसके सदस्य होते हैं। इसे ग्राम-पंचायत का बजट पास करने और इसके कामकाज की समीक्षा के लिए साल में कम से कम दो या तीन बार बैठक करनी होती है।

पंचायत समिति:-

 स्थानीय शासन का ढाँचा जिला स्तर तक का है। कई ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है। इसे मंडल या प्रखंड स्तरीय पंचायत भी कह सकते हैं।

Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद
10 Class लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद

जिला परिषद:

 किसी जिले की सभी पंचायत समितियों को मिलाकर जिला परिषद का गठन होता है। जिला परिषद के अधिकांश सदस्यों का चुनाव होता है। जिला परिषद में उसे जिले से लोकसभा और विधानसभा के लिए चुने गए सांसद और विधायक तथा जिला स्तर की संस्थाओं के कुछ अधिकारी भी सदस्य के रूप में होते हैं। जिला परिषद् का प्रमुख इस परिषद का राजनीतिक प्रधान होता है।

नगर निगम:

इस प्रकार स्थानीय शासन वाली संस्थाएँ शहरों में भी काम करती है। छोटे शहरों में नगर पालिका होती है। बड़े शहरों में नगरनिगम का गठन होता है। नगरपालिका और नगरनिगम दोनों का कामकाज निर्वाचित प्रतिनिधि करते है। नगरपालिका प्रमुख नगरपालिका के राजनीतिक प्रधान होते है। नगरनिगम के ऐसे पदाधिकारी को मेयर कहते हैं।

संघवाद कक्षा 10 के नोट्स सीबीएसई राजनीति विज्ञान अध्याय 2

प्रश्न1. सत्ता का विकेन्द्रीकरण किसे कहते हैं?

उत्तर – केन्द्र और राज्य से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को देना।

प्रश्न2. नगर पालिकाओं ओर ग्राम पंचायतों के लिए लगभग कितने लोगों का चुनाव होता है।

उत्तर – 36 लाख

प्रश्न4. स्थानीय शासन वाली कौन-कौन सी संस्थाएँ शहरों में काम करती है?

उत्तर – नगरपालिका और नगर निगम

प्रश्न5. एकत्मक शासन व्यवस्था किसे कहते है?

उत्तर – ऐसी व्यवस्था जिसमें शासन का एक ही स्तर होता है।

प्रश्न6. बेल्जियम में किस प्रकार की सरकार है?

उत्तर – संघीय सरकार

प्रश्न 7. पंचायत समिति का गठन कैसे होता है?

उत्तर – कई पंचों को मिलाकर पंचायत समिति का गठन होता है।

प्रश्न8. नगर निगम के प्रमुख को क्या कहते है?

उत्तर – मेयर

प्रश्न9. समवर्ती सूची के विषयों पर कानून कौन बनाता है?

उत्तर – केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार।

प्रश्न10. भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा किस प्रकार किया गया है?

उत्तर – संघ सूची – प्रतिरक्षा, विदेश, बैंकिंग, संचार, मुद्रा आदि – राष्ट्रीय महत्व के विषय।
राजय सूची – पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, सिंचाई – प्रान्तीय महत्व के विषय ।
समवर्ती सूची – शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह, गोद लेना।
अवशिष्ट शक्तियाँ – वे विषय जो ऊपर के तीन सूचियों में नही हैँ तथा जिन पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार को है।

NCERT Class 10 Political Science MCQs Chapter – 2 संघवाद

NCERT Class 6 to 12 Notes in Hindi
Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 2 संघवाद

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Author: NCERT

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