कक्षा 12 राजनीति विज्ञान के NCERT के ‘समकालीन दक्षिण एशिया’ अध्याय को अच्छे से समझना चाहते हैं? हमारी विशेषज्ञों द्वारा तैयार हिंदी नोट्स के साथ आसानी से सीखें।
इस नोट्स में दक्षिण एशिया का परिचय, क्षेत्रीय चुनौतियां, भारत की भूमिका, और सार्क जैसे संगठनों का गहन विश्लेषण शामिल है। स्पष्ट भाषा और परीक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ, इन CBSE-अनुरूप नोट्स के साथ इस महत्वपूर्ण अध्याय में सफलता प्राप्त करें। अभी डाउनलोड करें और अपनी तैयारी को अगले स्तर तक ले जाएं!
Table of Contents
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter 3 |
Chapter Name | समकालीन दक्षिण एशिया |
Category | Class 12 Political Science |
Medium | Hindi |
राजनीति विज्ञान Class 12- अध्याय-3: समकालीन दक्षिण एशिया
समकालीन दक्षिण एशिया / South Asia
दक्षिण एशिया, जिसे विश्व का महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है, विभिन्न सात देशों के समृद्धि और सांस्कृतिक विविधता का घर है। इस समृद्धि भरे क्षेत्र में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, और मालद्वीव शामिल हैं, जिन्हें हम दक्षिण एशिया कहते हैं।
हाल ही में, इस समृद्धि और आपसी सहयोग के क्षेत्र में अफगानिस्तान और म्यांमार भी शामिल हो गए हैं, जिससे यह समृद्धि का जीवंत और सकारात्मक चित्र प्रदर्शित करता है।
इस क्षेत्र में देशों के बीच साझा संबंध और आपसी सहयोग का आत्मबल बना हुआ है। सांस्कृतिक विरासत, भौगोलिक समृद्धि और ऐतिहासिक परंपराएं इस क्षेत्र को एक विशेष और आकर्षक स्थान बनाती हैं। यहाँ विविधता ही नहीं, बल्कि एकता भी है, जिससे इस क्षेत्र का सांघीकृत समृद्धि की ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है।
दक्षिण एशिया में सांघर्ष और विवादों की भी चर्चा होती है, लेकिन इसका समाधान सामंजस्य और सहयोग से होता है। सभी देशों के बीच आत्मविश्वास, विश्वास और आपसी समझ ने इस क्षेत्र को एक समृद्ध और सुरक्षित भूमि बनाया है।
चीन को इस क्षेत्र का हिस्सा नहीं माना जाता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उससे अदृश्य हैं। सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने का सिद्धांत इस क्षेत्र की सफलता का एक आदान-प्रदान है।
इस प्रकार, दक्षिण एशिया एक साजग और आकर्षक क्षेत्र है जो अपनी विविधता, समृद्धि, और सांघर्षों के बावजूद एक सामंजस्यपूर्ण एवं सुरक्षित भविष्य की दिशा में अग्रणी है।
समकालीन दक्षिण एशिया की भौगोलिक स्थिति / Geographical position of South Asia
दक्षिण एशिया, एक रमणीय और अद्वितीय भौगोलिक स्थिति के साथ सजीव है। इस क्षेत्र की उत्कृष्टता का सिरोबा है, जहां उत्तर में हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण में हिन्द महासागर, पश्चिम में अरब सागर, और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह इलाका एक प्राकृतिक क्षेत्र की अद्वितीयता से भरा हुआ है।
इस महाद्वीपीय क्षेत्र की भौगोलिक विशेषता ही इसके विविध भाषाई, सामाजिक और सांस्कृतिक रूपरेखा के लिए उत्तरदाता है। यहां का भूगोल न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक संगम स्थल भी है, जहां विविधता और एकता का मिलन होता है।
जब हम इस क्षेत्र की चर्चा करते हैं, तो हमें उसकी विशेषता का अहसास होता है, और इसमें हाल ही में अफगानिस्तान और म्यांमार को शामिल किया जाता है, जिससे इसकी भौगोलिक संपदा में और भी गहराई और रंग हो जाता है।
इस प्रकार, दक्षिण एशिया की भौगोलिक स्थिति न केवल उसकी सुंदरता को प्रकट करती है, बल्कि यह सार्वभौमिक सांस्कृतिक विविधता का एक नमूना भी है, जो इसे विश्व में अद्वितीय बनाता है।
समकालीन दक्षिण एशिया की राजनीति एवं शासन व्यवस्था / Politics and governance system of South Asia
दक्षिण एशिया, जो एक विविधता से भरा हुआ क्षेत्र है, इसमें राजनीतिक व्यवस्था में विभिन्नता का सामरिक दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है। इस क्षेत्र में अलग-अलग देशों में विभिन्न प्रकार की राजनीतिक प्रणालियाँ हैं।
1. भारत और श्रीलंका: लोकतंत्र का परिचय
- भारत और श्रीलंका ने ब्रिटेन से आज़ाद होने के बाद लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सफलतापूर्वक बनाए रखा है। यहां एक-सी राजनीतिक प्रणाली बनाए रखने ने इन दो देशों को स्थिरता और समृद्धि में मदद की है।
2. पाकिस्तान और बंगलादेश: सांघर्ष और संवैधानिक व्यवस्था
- पाकिस्तान और बंगलादेश में राजनीतिक और सैनिक दोनों तरह के नेताओं का शासन रहा है, जिससे इन दोनों देशों में सांघर्ष और संवैधानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
3. भूटान: राजतंत्र का अनुभव
- भूटान में राजतंत्र है, जो इसे एक विशेष राजनीतिक अनुभव का दर्शाता है।
4. नेपाल: संवैधानिक राजतन्त्र से लोकतंत्र की ओर
- नेपाल में 2006 तक संवैधानिक राजतंत्र था, और बाद में लोकतंत्र की बहाली हुई थी, जिससे यह एक सुरक्षित और सांघर्ष-मुक्त स्थिति में है।
5. मालद्वीप: सल्तनत से लोकतंत्र की ओर
- मालद्वीप ने सन 1968 तक सल्तनत होने के बाद, अब एक सशक्त लोकतंत्र का स्वागत किया है।
इस रूपरेखा में, दक्षिण एशिया के विभिन्न राजनीतिक दृष्टिकोणों ने इस क्षेत्र को एक सांघर्षिक और समृद्धि युक्त समाज के रूप में समर्थन किया है।
दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का अनुभव / Experience of democracy in South Asia
दक्षिण एशिया, जहां पाँच देशों ने अपने लोकतंत्रिक अनुभवों से एक नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है, यहां लोकतंत्र को व्यापक जन-समर्थन हासिल है।
1. जन-समर्थन की ऊँचाइयों पर:
- इन देशों में, सभी वर्ग और धर्म के नागरिक लोकतंत्र को समर्थन देते हैं, जिससे एक समृद्धि और समर्थनपूर्ण लोकतंत्र का निर्माण हुआ है।
2. सामाजिक समर्थन:
- इन देशों ने सामाजिक समर्थन के माध्यम से मिथक को तोड़ा है कि लोकतंत्र केवल धनी देशों में ही फल-फूल सकता है। यहां के लोकतंत्र के अनुभवों ने दिखाया है कि जनता की भागीदारी से लोकतंत्र सबके लिए संभव है।
3. वैश्विक कल्पना में योगदान:
- इन देशों ने लोकतंत्र से लोकतंत्र की वैश्विक कल्पना का दायरा बढ़ाया है। उनके अनुभवों ने यह सिद्ध किया है कि लोकतंत्र एक सुरक्षित और सहायक समाज की नींव हो सकती है, जिसमें सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार होता है।
इस प्रकार, दक्षिण एशिया ने लोकतंत्र की उच्चता को नहीं सिर्फ अपने देशों में बनाए रखा है, बल्कि इसने एक नए समाज की स्थापना की दिशा में भी अग्रणी भूमिका निभाई है।
दक्षिण एशिया में शामिल देशो की समस्याए / Problems of countries included in South Asia
दक्षिण एशिया, जो एक रोमांचक और सांघर्षिक क्षेत्र है, इसमें कई सामस्याएं हैं जो इस क्षेत्र के विकास और समृद्धि को चुनौती देती हैं।
1. संघर्षों का क्षेत्र:
- यहां के देशों में सामंजस्य और सहयोग की आवश्यकता होने के बावजूद, सामने आने वाले संघर्षों ने इस क्षेत्र को एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र बना दिया है।
2. सीमा विवाद:
- कई देशों के बीच सीमा विवाद की समस्याएं हैं, जिससे क्षेत्र की स्थिति में तनाव बना रहता है।
3. नदी जल विवाद:
- नदी जल विवाद इस क्षेत्र में एक और समस्या है, जिसमें देशों के बीच जल संसाधन के बंटवारे से संघर्ष उत्पन्न हो रहा है।
4. विद्रोह संघर्ष:
- विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक विद्रोहों के कारण क्षेत्र में संघर्ष बना रहता है, जो स्थानीय और राष्ट्रीय स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
5. जातीय संघर्ष:
- कुछ देशों में जातीय संघर्ष भी है, जिससे समाज में विभेद और समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
6. संवेदनशील इलाका:
- कुछ क्षेत्र संवेदनशील इलाके के रूप में जाने जाते हैं, जिनमें पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और समाजिक चुनौतियों का सामना करना होता है।
इस रूपरेखा में, दक्षिण एशिया को अपनी समस्याओं का सामना करने और सामंजस्य बनाए रखने की आवश्यकता है ताकि यह चुनौतीयों का सामना कर सके और एक समृद्ध और समर्थ भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सके।
दक्षिण एशिया के देशो स्तिथि / South asia countries situation
दक्षिण एशिया, जिसे अपनी सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर, और ऐतिहासिक महत्व के लिए पहचाना जाता है, इसमें कई रोमांटिक और दुर्लभ देशों का समृद्धि से भरा हुआ समुदाय है।
भारत: सभी रंगों का मेला
भारत, जिसे अपने विविधता और समृद्धि के लिए जाना जाता है, एक बड़े और उदार समाज का दानी है। यहां अपनी सांस्कृतिक धरोहर, रंगीन बाजार, और भूगोलीय विविधता से भरा हुआ है।
पाकिस्तान: सजग संधर्भों में गहरा सामंजस्य
पाकिस्तान, जो अपनी ऐतिहासिक नगरों, कला, और भूगोलीय सौंदर्य के लिए जाना जाता है, एक सजग संधर्भ में गहरा सामंजस्य और समृद्धि का प्रतीक है।
श्रीलंका: रमणीय सागरीय छाया
श्रीलंका, जिसे अपने सुंदर समुद्र तट और ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है, यहां की रमणीय सागरीय छाया और ऐतिहासिक मंदिरों ने इसे एक अद्वितीय गंगापुत्री बना दिया है।
थाईलैंड: बौद्धिकता की नगरी
थाईलैंड, जो अपनी बौद्धिक समृद्धि, रौंगीन बाजार, और आकर्षक राजमहलों के लिए मशहूर है, एक सामूहिक और उत्तेजना भरा समाज है।
मलेशिया: मॉडर्निटी का संगम
मलेशिया, जो अपनी आधुनिकता, तकनीकी उन्नति, और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है, यहां आप महकती चाय की खुशबू और तकनीकी अद्यतितता का आनंद ले सकते हैं।
इन देशों की सांस्कृतिक संपत्ति, इतिहास, और अद्वितीयता ने इन्हें दुनिया भर में एक विशिष्ट स्थान बना दिया है, और इस समृद्धि भरे क्षेत्र को विशेष बनाए रखने का दावा करता है।
पाकिस्तान (सेना और लोकतंत्र) / Pakistan (Army and Democracy)
पाकिस्तान, एक राजनीतिक दृष्टि के साथ एक सशक्त सेना के साथ जुड़ा हुआ देश है, जिसने अपनी राजनीतिक व्यवस्था में सैना को महत्वपूर्ण भूमिका दी है।
1. सेना और साम्राज्यिक संकट:
- पाकिस्तान की राजनीतिक इतिहास में सेना ने बार-बार अद्वितीय स्थान बनाया है, जिसके कारण यहां सैन्य शासन ने लोकतंत्र को कुचला है। इस तथ्य को दिखाने के लिए बांग्लादेश की उत्तारदाता है, जहां भी सैना ने राजनीतिक परिस्थितियों को प्रभावित किया।
2. सैनिक नेतृत्व:
- पाकिस्तान में सेना ने राजनीतिक परिस्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जब साम्राज्यिक संकट के दौरान बार-बार सैन्य ने राजनीतिक परिस्थितियों को नियंत्रित किया।
3. राजनीतिक उपराजनतंत्र:
- पहले भागड़ोर जनरल अयूब खान से लेकर, जनरल याहिया खान और जनरल परवेज मुशर्रफ तक, सैना ने पाकिस्तान में बार-बार सैन्य शासन स्थापित किया।
4. लोकतंत्र का संघर्ष:
- पाकिस्तान में समय-समय पर नेतृत्व की बदलती घड़ी में अवश्यकता थी और इसमें अधिकांश समय सेना ने नेतृत्व को संभाला है, जिससे लोकतंत्र का संघर्ष हमेशा बना रहा है।
5. इमरान खान का नेतृत्व:
- 2018 में हुए चुनाव में इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान में लोकतंत्रिक सरकार बनी। यह एक नया दौर था जिसने सेना और राजनीति के बीच संतुलन की दिशा में कदम बढ़ाया।
पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में सेना का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसने अक्सर राजनीतिक परिस्थितियों को प्रभावित किया है, लेकिन हाल के समय में लोकतंत्र के माध्यम से भी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई है।
पाकिस्तान में लोकतंत्रीकरण स्थाई न रह पाने के कारण
Reasons for democratization not being permanent in Pakistan
पाकिस्तान, जिसे अपने रूढ़िवादी सामाजिक संरचना और सैनिक दबदबे के लिए जाना जाता है, इस दौरान लोकतंत्र स्थायी रूप से स्थापित नहीं हो सका है। कई कारणों से पाकिस्तान में लोकतंत्रीकरण को बचाने में कठिनाइयाँ हैं:
सामाजिक दबदबा:
- पाकिस्तान में सेना, धर्मगुरु, और भू-स्वामी अभिजनों का सामाजिक दबदबा है, जिससे सैनिक शासन की बार-बार संभावना होती है। इसने कई बार निर्वाचित सरकारों को गिराकर सैनिक शासन को स्थापित किया है।
भारत के साथ तनातनी:
- पाकिस्तान ने हमेशा से भारत के साथ तनातनी बनाए रखी है, जिससे राजनीतिक तनाव बना रहता है और सेना नेतृत्व यहां पर अधिक दबदबा बनाए रखने में मदद करता है।
अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की कमी:
- पाकिस्तान में लोकतंत्र स्थायी रूप से स्थापित नहीं हो सका है, क्योंकि इसे अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की कमी है। पश्चिमी देशों ने अपने स्वार्थों के लिए सैनिक शासन को बढ़ावा दिया है, जिससे सेना को अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सहायता मिलती है।
संगठनों का समर्थन:
- अधिकांश संगठनों ने सैनिक शासन को जायज ठहराया है, जिससे यहां स्थानीय सरकारों को संघर्ष करना पड़ता है और लोकतंत्र का स्थानांतरण होना मुश्किल होता है।
पाकिस्तान में लोकतंत्र को स्थायी रूप से स्थापित करने में कठिनाइयाँ हैं, जिसमें सामाजिक दबदबा, तनातनी रिश्तों की स्थिति, और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की कमी शामिल हैं।
बांग्लादेश संकट (भारत एवं पाकिस्तान युद्ध)
Bangladesh Crisis (India and Pakistan War)
बांग्लादेश का उगम पूर्वी पाकिस्तान में हुआ था, जिसे बांगाल और असम के क्षेत्रों से बनाया गया था। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए यहाँ पर जबरन उर्दू भाषा को थोपा और स्थानीय संस्कृति को नष्ट किया।
जनता का प्रतिरोध:
- बांगाली जनता ने इस अत्याचार का विरोध किया, और पश्चिमी पाक के खिलाफ शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में जन सँघर्ष किया। शेख मुजीब की पार्टी आवामी लीग ने 1970 में सभी सीटों पर विजय प्राप्त की।
1971 का युद्ध:
- याहिया खान के शासनकाल में पाक सेना ने बंगाली जनता के आंदोलन को कुचलने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों लोगों की मौके पर मौत हो गई और लाखों लोग भारत में शरणार्थी बन गए। इस संकट को देखते हुए भारत ने पूर्वी पाक को समर्थन दिया और 1971 में भारत-पाक युद्ध हुआ।
बांग्लादेश का नामकरण:
- युद्ध के परिणामस्वरूप, पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश 16 दिसंबर 1971 को स्वतंत्र देश बना।
इस घड़ीबदी का नामकरण देश के उत्थान और स्वतंत्रता की कहानी में महत्वपूर्ण घटना बन गई है, जिसने बांग्लादेश को स्वतंत्रता और अपने स्वाभाविक स्थान की प्राप्ति में मदद की।
नेपाल में लोकतंत्र / Democracy in Nepal
नेपाल की राजनीति में राजा और लोकतंत्र समर्थकों के बीच दिन-रात की जद्दोजहद:
लम्बे समय तक, नेपाल में राजा और लोकतंत्र समर्थकों के बीच तीव्र विचारविमर्श चलता रहा है। इसके साथ ही, माओवादी भी नेपाल की राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं।
त्रिकोणीय संघर्ष की कहानी:
- नेपाल में राजा की सेना, लोकतंत्र समर्थकों, और माओवादियों के बीच लम्बे त्रिकोणीय संघर्ष ने देश को एक नए दिशा में ले जाने का संघर्ष किया। इस परिणामस्वरूप, नेपाल ने 2015 में अपने नए संविधान को अपनाया और खड्ग प्रसाद शर्मा ओली को नए प्रधानमंत्री के रूप में चुना।
सफल लोकतंत्र की कहानी:
- आजकल, नेपाल एक सशक्त लोकतंत्र की ऊंचाइयों पर खड़ा है, जहाँ राजा, लोकतंत्र समर्थक, और माओवादी साझा रूप से देश की विकास और सुरक्षा के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। नेपाल ने अपनी चुनौतीओं का सामना करके साबित किया है कि लोकतंत्र सिर्फ धनी देशों की प्राथमिकता नहीं है, बल्कि यह सभी वर्गों के लिए हो सकता है और इससे विकास की दिशा में एक सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।
श्रीलंका / Sri Lanka स्वतंत्रता का पथ:
1948 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, श्रीलंका ने एक सफल लोकतंत्र की ऊंचाइयों को छूने में सफलता प्राप्त की। देश ने सामाजिक, आर्थिक क्षेत्रों में अपने विकास की राह में कई कदम उठाए हैं, लेकिन इसके बावजूद यह दो बड़े समुदायों के बीच जातीय संघर्ष का सामना कर रहा है।
तमिल जो भारत से जाकर श्रीलंका जा बसे।
श्रीलंका में जातीय संघर्ष / Ethnic conflict in Sri Lanka
श्रीलंका का पुराना नाम सिलोन था:
- 1948 में स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, श्रीलंका ने सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक क्षेत्रों में अपनी स्थिति में सुधार किया। हालांकि, इस उपयुक्ति के बावजूद, सिंहली और तमिल समुदायों के बीच जातीय संघर्ष ने देश को चुनौती में डाला है।
तमिलों का आपसी संघर्ष:
- श्रीलंका में जातीय संघर्ष मुख्य रूप से तमिलों द्वारा उनके संसाधनों और अधिकारों की मांग के लिए था। इसके बावजूद, सिंहली समुदाय ने उनकी मांगों का विरोध किया और इस समस्या को लेकर उत्तराधिकारी नहीं बनने का विरोध किया।
गृह युद्ध और शानदार समाप्ति:
- 2009 में लंकाई सेना द्वारा लगातार चल रहे गृह युद्ध का शानदार समाप्ति हुई, जिसमें लीटे (LTTE) के प्रमुख प्रभाकरन की मौत हुई। यह घटना श्रीलंका के लिए एक नया अध्याय खोलती है और सामाजिक सांघर्षों में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाती है।
दक्षिण एशिया में संबंध:
- श्रीलंका, दक्षिण एशिया के एक महत्वपूर्ण देश के रूप में, भारत के साथ आपसी संबंधों की उच्चतम सीमा को छूने का गर्व महसूस करता है। हालांकि, कुछ मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद, इन देशों के बीच सहयोग के क्षेत्रों में भी एकजुटता है।
श्री लंका की आर्थिक स्थिति / Economic situation of Sri Lanka
श्री लंका का विकास:
- गृहयुद्ध के बावजूद, श्री लंका ने अपने आर्थिक विकास में बहुत तेजी से कदम बढ़ाया है। यह दक्षिण एशिया में सबसे उत्कृष्ट अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
जनसख्या नियंत्रण:
- श्री लंका ने जनसख्या नियंत्रण के क्षेत्र में अद्वितीय सफलता हासिल की है। उसने यहाँ गरीबी, बेरोजगारी, और असहिष्णुता की समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
आर्थिक उदारीकरण:
- दक्षिण एशिया के दूसरे देशों की तुलना में, श्री लंका ने सबसे पहले अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया। यह विदेशी निवेश और व्यापार को बढ़ावा देने में सक्षम रहा है।
साकारात्मक उत्पादन:
- श्री लंका का प्रति व्यक्ति सकल घरेलु उत्पाद दक्षिण एशिया में सर्वोत्तम है, जो देश की समृद्धि और साकारात्मक अर्थव्यवस्था की प्रमुख नींव है।
इस रूपरेखा में, श्री लंका ने अपने आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में प्राप्त की गई सफलता के बारे में हमें एक सुगम और सुसंगत ढंग से बताया गया है।
मालदीव / Maldives
1965: ब्रिटिश शासन से मुक्ति
मालदीव ने 1965 तक ब्रिटिश साम्राज्य के आधीन रहा, लेकिन इस साल में उसे ब्रिटिश शासन से मुक्ति मिली। इसके पश्चात, मालदीव ने राजा मुहम्मद फरीद दीदी के नेतृत्व में सल्तनत का दर्जा प्राप्त किया।
1968: गणतंत्र की स्थापना
1968 में राजशाही को समाप्त करके, मालदीव ने गणतंत्र की स्थापना की, जो आज भी कायम है। यह समय से अद्वितीय सागरीक समृद्धि और स्वतंत्रता की कहानी का हिस्सा बना है।
लेकिन हाल ही में भारत और मालदीव के बीच रिश्तों के बीच टकराव बड़ी है ।
भूटान: संविधानिक राजतन्त्र का प्रतीक / Bhutan: symbol of constitutional monarchy
2008: संविधानिक राजतन्त्र का आरम्भ
भूटान ने अपना संविधान 2008 में लागु किया, जिससे यह एक संविधानिक राजतन्त्र बन गया है। इस से पहले, भूटान ने राजा के नेतृत्व में राजतन्त्र का अनुभव किया था।
भारत और दक्षिण एशिया के देशों के संबंध: समृद्धि और सहयोग
दक्षिण एशिया के देशों के साथ भारत के संबंध समृद्धि और सहयोग की ओर बढ़ते जा रहे हैं। भारत ने अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ मित्रता और सामरिक एकता के लिए काम किया है, जिससे दक्षिण एशिया के समृद्धि का केन्द्र बना है।
भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष / Conflict between India and Pakistan
- कश्मीर समस्या: एक अटल विवाद
- विभाजन के तुरंत बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर पर विवाद शुरू हुआ।
- पाकिस्तान ने नाजायज दावे की भरमार की, जबकि भारत ने कश्मीर को अपने अधीन में लिया।
- युद्धों के बावजूद, कश्मीर समस्या आज तक बनी हुई है और इसमें आतंकवाद भी एक बड़ी समस्या है।
- बंगलादेश समस्या: सहायता और सामर्थ्य
- 1971 में बंगलादेश की आतंरिक समस्याएँ भारत को उसके समर्थन में हस्तक्षेप करने का मौका दी।
- भारत ने सैन्य सहायता प्रदान की और बंगलादेश के नेताओं का समर्थन किया।
- इससे भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा, लेकिन बंगलादेश को स्वतंत्रता मिली और दोनों देशों के बीच संघर्ष में समाधान हुआ।
- इन समस्याओं के बावजूद, भारत और पाकिस्तान के बीच समर्थन, सहयोग और विशेषत: व्यापार में समझौते का प्रयास जारी है।
भारत-पाकिस्तान संबंध: समझौते और विवाद
India–Pakistan relations: agreements and controversies
समझौते:
- सिंधु नदी जल समझौता 1960: भारत और पाकिस्तान ने इस समझौते के तहत सिंधु नदी के जल संवितरण को साझा करने का समझौता किया।
- ताशकंद समझौता 1966: यह समझौता दोनों देशों के बीच रक्षा सम्बंधों को स्थापित करता है।
विवाद:
- कश्मीर समस्या: विभाजन के बाद भी, कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद बना हुआ है, जिसमें आतंकवाद भी शामिल है।
- बंगलादेश समस्या: 1971 में बंगलादेश की स्थिति ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ाया, लेकिन इसके बावजूद दोनों देश सामर्थ्य और सहायता में सुधार कर रहे हैं।
भारत और बंगलादेश के बीच सम्बन्ध / Relations between India and Bangladesh
सकारात्मक (सहमति):
- मजबूत संबंध: दोनों देशों के बीच संबंध पिछले 10 वर्षों में मजबूत हो रहे हैं, जिसमें व्यापार बढ़ रहा है और आपदा प्रबंधन में सहयोग हो रहा है।
- अधिकृत नीति: बांग्लादेश भारत की पूर्वोत्तर नीति का समर्थन कर रहा है।
नकारात्मक (विवाद):
- मतभेद और आपदा प्रबंधन: गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के जल में हिस्सेदारी को लेकर मतभेद है।
- अवैध अप्रवास: भारत में अवैध अप्रवास ने दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को तनावपूर्ण बनाया है।
- सीमा विवाद: म्यांमार को बांग्लादेश से होकर भारत की प्राकृतिक गैस निर्यात करने में तकलीफ है।
पूर्व चलो नीति/ Walk East Policy
भारत की पूर्व चलो नीति:
- दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए भारत सरकार के प्रयासों का हिस्सा है।
- यह नीति साझा खतरों को पहचानने और आपसी सहयोग में सुधार करने का उद्देश्य रखती है।
संक्षेप:
- भारत-पाकिस्तान संबंधों में समझौते और विवादों के बावजूद, सकारात्मक संबंध बढ़ाने और विभिन्न विवादों का सही समाधान ढूंढने का प्रयास जारी है। भारत-बंगलादेश संबंधों में भी सहमति और नकारात्मक पहलुओं के बारे में सजगता बनी हुई है, जिसे सुधारने का कार्य जारी है।
भारत और नेपाल संबंध / India and Nepal relations
मधुर संबंध:
- भारत और नेपाल के बीच सजगता और एकद्रष्टि संबंध हैं, जिन्होंने समझौते के माध्यम से नागरिकों को दोनों देशों में आसानी से यात्रा और काम करने का मौका दिया है। यह संबंध व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, और साझा प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र में भी बढ़ रहे हैं।
नेपाल का दूसरे देशों के साथ रिश्ता:
- नेपाल ने चीन के साथ दोस्ती को बढ़ावा देने का प्रयास किया है, जिसके कारण भारत सरकार कई बार अपनी असंतुष्टि जाहिर करती है। यद्यपि इसे लेकर किसी बड़े टकराव का सामना नहीं हुआ है, लेकिन यह संकेत देता है कि राजनीतिक चुनौतियाँ हमेशा मौजूद हैं।
मजबूत संबंध:
- फिर भी, भारत और नेपाल के संबंध एकदम मजबूत और शांतिपूर्ण हैं। विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहायता के क्षेत्र में सहयोग के कई माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे दोनों देश आपसी लाभ का हिस्सा बन रहे हैं।
भारत-भूटान संबंध / India-Bhutan relations
मजबूत संबंध:
- भारत और भूटान के बीच संबंध भी मजबूत हैं। भारत ने भूटान को उसके सुरक्षा और विकास के क्षेत्र में सहायता प्रदान की है और दोनों देशों के बीच साझा रोजगार, प्राकृतिक संसाधनों का सबसे बड़ा उपयोग और आपसी साहचर्य की कई परियोजनाएं हैं।
सुधार और समृद्धि की दिशा:
- यह भारत-भूटान संबंध भी उग्रवाद और गुरिल्ला के खिलाफ भूटान के सकारात्मक कदम से उत्थान प्राप्त कर रहे हैं। ये संबंध आपसी विकास और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और हिमालयी देश के विकास में भी बड़ी मदद कर रहे हैं।
संक्षेप:
- भारत-नेपाल और भारत-भूटान संबंध व्यापारिक सहयोग, विज्ञानिक अनुबंध, और साझा विकास की दिशा में साजग हैं। ये संबंध एक उदाहरण हैं कि कैसे भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे और सहयोगी रिश्तों का निर्माण कर रहा है।
SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation)
सारांश:
- दक्षेस, या सार्क (South Asian Association for Regional Cooperation), एक महत्वपूर्ण साउथ एशियाई संगठन है, जिसने सन् 1985 में दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग के लिए अपने पहले कदम को रखा।
सदस्य देश:
- इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्री लंका, और मालदीव शामिल हैं, जो 2007 में अफगानिस्तान को भी सम्मिलित किया गया।
इतिहास:
- दक्षेस की स्थापना से लेकर आज तक के समय तक, इसने विभिन्न देशों के बीच समझौते और सहयोग के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। सदस्य देशों के बीच आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, और आपदा प्रबंधन की बहुमुखी समस्याओं पर समझौतों का हस्ताक्षर हुआ है।
शिखर सम्मेलन:
- शिखर सम्मेलनों के माध्यम से दक्षेस ने आपसी शांति और समृद्धि की दिशा में कई पहलुओं पर चर्चा की है। 2014 में काठमांडू में हुआ 18वाँ शिखर सम्मेलन शांति और समृद्धि के लिए प्रतिबद्धता का एक उदाहरण था।
आंतकवाद के प्रति कदम:
- 2016 में इस्लामाबाद में हुए 19वें सम्मेलन के बहिष्कार के बाद, सभी सदस्य देशों ने सार्क के सहयोगी स्वरूप में आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का प्रतिबद्धता दिखाई।
निष्कर्ष:
- दक्षेस, एक साउथ एशियाई संगठन, ने संबंधों में साथीपना और सहयोग की ऊँचाई को साबित किया है, जो इस क्षेत्र के उन्नति और समृद्धि में सहायक है।
दक्षेस (SAARC) के उद्देश्य / Objectives of SAARC
जीवन स्तर में वृद्धि:
- सपना: सुखद और समृद्धिशील जीवन की ऊँचाइयों को छूना।
- उपाय: दक्षेस का उद्देश्य है दक्षिण एशिया के लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि करना, उन्हें अधिक सुखद और उन्नत जीवन का मौका देना।
आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति:
- सपना: आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, और सांस्कृतिक उन्नति के साथ एक सशक्त दक्षिण एशिया का निर्माण।
- उपाय: सार्क ने आपसी सहयोग के माध्यम से दक्षिण एशिया में आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने का संकल्प किया है।
सामूहिक आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता:
- सपना: दक्षिण एशिया में सामूहिक आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की ऊँचाइयों तक पहुंचना।
- उपाय: सार्क के माध्यम से विभिन्न देशों को साथ मिलकर अपनी सामूहिक साख को बढ़ाने का और आत्मनिर्भर बनने का संकल्प है।
आपसी समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान:
- सपना: दक्षेस के सभी सदस्य देशों के बीच आपसी समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान।
- उपाय: सार्क ने आपसी समस्याओं के समाधान के लिए सहमति बनाने का कार्य किया है, जिससे क्षेत्र में समृद्धि और शांति का माहौल बना रहे।
- निष्कर्ष: दक्षेस एक सपने का पूरा होते जा रहे कदम है, जो दक्षिण एशिया के सभी लोगों को एक उज्ज्वल और समृद्धिशील भविष्य की ओर बढ़ने के लिए साथ मिलाता है।
SAFTA (दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र)
1. सार्क क्षेत्र में नया दिन:
- SAFTA: यानी दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र, एक नया दिन लाने का संकल्प।
- लागु होना: 2006 में सार्क देशों के बीच दक्षिणी एशियाई मुक्त व्यापार सौदा को हकीकत में बदलने का कदम।
2. ऐतिहासिक मोमेंट:
- ऐतिहासिक दक्षिणी एशियाई मुक्त व्यापार सौदा (SAFTA): एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक क्षण जब सार्क देशों ने 2004 में 12वें शिखर सम्मेलन में SAFTA समझौते पर हस्ताक्षर किए।
3. समझौते का प्रभाव:
- प्रभावी होना: समझौते का प्रभाव 1 जनवरी 2006 से हुआ, जिससे सार्क क्षेत्र में नए आर्थिक अवसर खुले।
- निष्कर्ष: SAFTA ने सार्क देशों के बीच व्यापार को मजबूती और सहजता से बढ़ाने का संकल्प किया है, जिससे क्षेत्र में साथी देशों के बीच सामूहिक विकास की पथ में एक नई राह खुली है।
इस समझौते के दो मुख्य उद्देश्य है।
उद्देश्यों का परिचय:
- बाधाओं को दूर करना: SAFTA का प्रमुख उद्देश्य है दक्षिण एशियाई क्षेत्र में व्यापार संबंधों में आने वाली बाधाओं को समाप्त करना।
- व्यापार एवं प्रशुल्क प्रतिबंधों को समाप्त करना: इस समझौते का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य है व्यापार और प्रशुल्क प्रतिबंधों को समाप्त करने का प्रयास करना।
प्राथमिकताएँ और सहयोग:
- साथी देशों के साथ मधुर संबंध: भारत ने इस समझौते के साथी देशों के साथ मधुर संबंध बनाए हुए हैं, जो पाकिस्तान को छोड़कर बाकी देशों के साथ समर्थन और सहयोग की दिशा में हैं।
- निष्कर्ष: SAFTA भारत के साथी देशों के बीच साथ मिलकर दक्षिण एशियाई क्षेत्र को एक मजबूत, संबंधित, और आत्मनिर्भर व्यापार समृद्धि की दिशा में बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
सार्क की उपलब्धियाँ / Achievements of SAARC
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध:
- तनावपूर्ण संबंधों में समझ और सहयोग: भारत और पाकिस्तान के बीच चुनौतीपूर्ण संबंधों के बावजूद, सार्क ने इन दोनों देशों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ावा देने में मदद की है।
सार्क और साफ्टा:
- व्यापार की दिशा में कदम उठाना: सार्क ने साफ्टा और साफ्टा की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में व्यापार की दिशा में सुधार हो सके।
पर्यावरण, आर्थिक विकास और ऊर्जा:
- बीम्सटेक से सहयोग: भारत ने BIMSTEC को बनाकर दक्षिणी एशियाई क्षेत्र में पर्यावरण, आर्थिक विकास, और ऊर्जा आदि क्षेत्रों में सहयोग की बात की है।
भारत का बिम्सटेक पर बल:
- अधिक बल देना: वर्तमान में, भारत बीम्सटेक पर अधिक बल दे रहा है और इसमें विभिन्न क्षेत्रों में चर्चा और सहयोग की बढ़ती ऊर्जा है।
- निष्कर्ष: सार्क के माध्यम से और अन्य सांबंधिक संगठनों के साथ सहयोग, दक्षिण एशियाई क्षेत्र में व्यापार, संबंध, और विकास में मिलीभगत को बढ़ावा देने का एक सुदृढ़ उदाहरण है।
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