कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: भारतीय राजनीति में नए बदलाव – NCERT नोट्स PDF

भारतीय राजनीति में नए बदलाव’ के NCERT के हिंदी नोट्स खोज रहे हैं? इस महत्वपूर्ण अध्याय को कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान के लिए हमारी विस्तृत नोट्स के साथ अध्ययन करें।

कांग्रेस के पतन से लेकर गठबंधन युग तक, 1990 के दशक के प्रमुख राजनीतिक घटनाओं, सामाजिक परिवर्तनों और नीतिगत बदलावों को समझें। भारत की आधुनिक राजनीतिक यात्रा को आसानी से जानने के लिए सर्वश्रेष्ठ नोट्स आज ही प्राप्त करें और बोर्ड परीक्षा के लिए तैयार हों!

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TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science
ChapterChapter 8
Chapter Nameभारतीय राजनीति में नए बदलाव
CategoryClass 12 Political Science
MediumHindi

Class 12 political science book 2 chapter 8 notes in hindi: भारतीय राजनीति में नए बदलाव notes

राजनीति विज्ञान अध्याय-8: भारतीय राजनीति में नए बदलाव

1990 का दशक / 1990s

1990 का दशक विश्वभर में कई महत्वपूर्ण घटनाओं और परिवर्तनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण था। यहां कुछ मुख्य घटनाएं हैं जो 1990 के दशक में हुई थीं:

  1. बर्लिन की दीवार का गिरना (1989): 1990 का दशक बर्लिन की दीवार के गिरने के परिणामस्वरूप शुरू हुआ था, जिससे उत्तरी और दक्षिणी जर्मनी का हो समर्थन होकर 1990 में जर्मन एकीकरण हो गया।
  2. खलिज युद्ध (1990-1991): इराक ने कुवैत को अधिग्रहण करने का प्रयास किया, जिस पर संयुक्त राज्य अमेरिका और उनके साथी देशों ने खलिज युद्ध की शुरुआत की। इस युद्ध के परिणामस्वरूप इराक ने कुवैत से वापस हटना पड़ा।
  3. आधुनिक रूप से रूस में परिवर्तन (1991): 1991 में सोवियत संघ विघटन हो गया और इसकी जगह रूस की नई संघ की स्थापना हुई। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जो दुनिया में बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का स्रोत बनी।
  4. एम.टीवी.एस. (MTV) का उभार: 1990 के दशक में टेलीविजन में म्यूजिक वीडियो की दुनिया को प्रभावित करने वाला मीडिया चैनल MTV बहुत लोकप्रिय हो गया।
  5. इंटरनेट की शुरुआत

1990 के दशक में इंटरनेट का व्यापारिक रूप से उपयोग बढ़ने लगा और यह व्यक्तिगत और व्यापारिक संचार को सुगम बनाने का कारण बन गया।

  1. नेल्सन मंडेला की रिहाई (1990): दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला को 27 वर्षों के कैद के बाद रिहा किया गया, जो उसके प्रधानमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
  2. सोवियत संघ की विघटन (1991): सोवियत संघ का विघटन 1991 में हुआ और इसके परिणामस्वरूप 15 नवंबर 1991 को रूस एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बन गया।
  3. विश्व व्यापी आर्थिक सुस्ती (1990-1992): 1990 के दशक में विश्व अर्थव्यवस्था में सुस्ती थी, जिसे एक विश्वव्यापी मंदी के रूप में देखा जा सकता है।

ये कुछ मुख्य घटनाएं थीं जो 1990 के दशक में हुईं।

1990 के बाद प्रमुख बदलाव / Major changes after 1990

1990 के बाद विश्व में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, जो समाज, राजनीति, और आर्थिक क्षेत्रों में गहरा प्रभाव डाले हैं। यहां कुछ प्रमुख बदलाव हैं:

  1. वैश्विकीकरण (Globalization): 1990 के बाद, वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। विभिन्न देशों के बीच व्यापार, वित्त, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि हो रही है।
  2. तकनीकी प्रगति (Technological Advancements): इंटरनेट, मोबाइल तकनीक, और इंटरनेट ऑफ थिंग्स की तकनीकी प्रगति ने समृद्धि की नई ऊंचाइयों को छूने में मदद की है।
  3. आर्थिक बदलाव (Economic Changes): बड़े आर्थिक परिवर्तनों में से एक है चीन और भारत की आर्थिक उच्चता में वृद्धि। ये दोनों देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  4. सामाजिक बदलाव (Social Changes): सामाजिक माध्यमों का उपयोग और सोशल मीडिया के आगमन ने सामाजिक संबंधों में बदलाव किया है।
  5. पर्यावरणीय चुनौतियां: जलवायु परिवर्तन, वन्यजीव संरक्षण, और सामुदायिक स्थितियों के लिए सुस्त विकास के प्रति बढ़ती चिंताओं के साथ पर्यावरणीय मुद्दे बढ़ रहे हैं।
  6. राजनीतिक बदलाव: विभिन्न क्षेत्रों में राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव हो रहा है, जैसे कि युद्ध, आतंकवाद, और सामाजिक न्याय की मांगें।

ये बदलाव सिर्फ विश्व भर में ही नहीं, बल्कि भारत में भी देखे गए हैं, जहां आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति, और सामाजिक परिवर्तन के कई पहलुओं में बदलाव हुआ है।

नई आर्थिक नीति / New economic policy

“नई आर्थिक नीति” शब्द कई संदर्भों में प्रयुक्त हो सकता है, और इसने विभिन्न समयों और देशों में विभिन्न अर्थ प्राप्त किए हैं। मैं यहां कुछ सामान्य संदर्भों में “नई आर्थिक नीति” की चर्चा कर रहा हूँ:

  1. भारतीय आर्थिक नीति (India’s Economic Policy): भारत में, “नई आर्थिक नीति” का संबंध आमतौर पर 1991 में हुए आर्थिक उत्कृष्टि और लैबर रिफॉर्म्स के साथ किया जाता है। इसमें विशेषकर विदेशी निवेश, और उद्यमिता की प्रोत्साहन शामिल था।
  2. नई और विकेन्द्रीकृत आर्थिक नीति (New and Decentralized Economic Policies): कई देशों ने विकेन्द्रीकृत आर्थिक नीतियों को प्रमोट करने के लिए कदम उठाए हैं, जिसमें सरकारों ने नई और नई उद्यमों को समर्थन देने के लिए नीतियों में परिवर्तन किया है।
  3. सुस्त विकास नीति (Sustainable Development Policy): कई देश ने आर्थिक विकास को सुस्त बनाए रखने के लिए सुस्त विकास नीतियाँ बनाई हैं, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से प्रबंधन और उपयोग शामिल हैं।
  4. वैश्विक आर्थिक संरचना की नीति (Global Economic Governance Policy): वैश्विक स्तर पर, कई देश और आंतर्राष्ट्रीय संगठनें नई आर्थिक नीतियों का उद्दीपन कर रही हैं जिसमें आंतरदेशीय व्यापार, वित्तीय संबंध, और समृद्धि के क्षेत्र में नए प्रस्तावों का समर्थन किया जा रहा है।

यह सभी समाचार और आर्थिक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में हैं और नई आर्थिक नीति का मतलब विशिष्ट संदर्भों में बदल सकता है।

कांग्रेस के प्रभुत्व की समाप्ति / End of dominance of Congress

कांग्रेस के प्रभुत्व की समाप्ति” का संदर्भ विभिन्न संदर्भों में हो सकता है, लेकिन यदि आप भारतीय राजनीति के संदर्भ में बात कर रहे हैं, तो आपका सवाल 2014 भारतीय लोकसभा चुनावों से संबंधित हो सकता है।

2014 में भारतीय लोकसभा चुनावों में भारतीय नेतृत्व कांग्रेस पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव का समय था। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) ने बड़ी बहुमत से जीत हासिल की और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना गया। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस के प्रभुत्व में एक समाप्ति का काल शुरू हुआ और एक नए नेतृत्व की आधारशिला रखी गई।

चुनाव में कांग्रेस को केवल कुछ सीटें मिलीं और वह संघर्ष करने लगी जिससे कि उसके प्रभुत्व में कमी हुई और वह विपक्षी पार्टी के रूप में स्थित है। इस घड़ी में कई कारगर नेताओं ने पार्टी छोड़ी और कांग्रेस ने अपने आलोचकों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया।

कुल मिलाकर, यह घटना भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की निश्चित रूप से सूची जाती है जो कांग्रेस पार्टी के दशकों तक जारी रहे प्रभुत्व को खत्म कर दिया।

गठबंधन का युग / Era of alliance

“गठबंधन का युग” विभिन्न राजनीतिक संदर्भों में हो सकता है और विभिन्न समयांतर में हुआ है। यह एक युग हो सकता है जिसमें राजनीतिक दल अलग-अलग विचारधारा रखने वाले एक समूह में सम्मिलित होते हैं ताकि सरकार बना सके और विभिन्न राजनीतिक दलों का सामंजस्य बना रह सके।

इस विचार से, भारत में गठबंधन का युग 1990 के दशक से शुरू हुआ था, जब बहुमत से चुनी गई सरकारें नहीं बना पा रही थीं और छोटे दल अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत थे। इस कारण से, विभिन्न राजनीतिक दल एक-दूसरे के साथ गठबंधन बनाने लगे ताकि सरकार बना सके और संघर्ष को कम किया जा सके।

यह युग भारतीय राजनीति में समृद्धि, परिवर्तन, और उत्कृष्टि का युग भी था, क्योंकि इसमें अलग-अलग क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन हुआ। यही समय था जब नई राजनीतिक दल उभर रहे थे और उनका योगदान बढ़ रहा था।

गठबंधन के युग में, गठबंधन बनाने वाले दलों के बीच विभिन्न मुद्दे थे और इससे राजनीतिक दृष्टिकोण का समृद्धि से उपयोग हुआ। यह युग भारतीय राजनीति को संघर्ष और सहमति की दोनों दिशाओं में बदल दिया।

गठबंधन सरकारों के उदय के कारण / Reasons for the rise of coalition governments

गठबंधन सरकारें यानी कि ऐसी सरकारें जिनमें दो या दो से अधिक राजनीतिक दलों के बीच समझौता होता है, कई कारणों से उत्पन्न हो सकती हैं और उनका उदय हो सकता है:

  1. महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएं: कई बार ऐसा होता है कि एक ही पार्टी को बहुमत नहीं मिलता और उसे सरकार बनाने के लिए अन्य छोटे राजनीतिक दलों की सहायता की आवश्यकता होती है। इससे गठबंधन की सम्भावना बढ़ती है।
  2. मुद्दों पर सहमति नहीं होने की स्थिति: कभी-कभी विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मुद्दों पर सहमति नहीं हो पाती, लेकिन सरकार बनाने की इच्छा रहती है। इस स्थिति में ये दल एक दूसरे के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं।
  3. विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठान: विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने क्षेत्रों में प्रतिष्ठान बनाए रखना चाहते हैं और इसके लिए वह गठबंधन बना सकते हैं।
  4. जनमत समीक्षा: कई बार चुनाव में एक राजनीतिक दल बहुमत नहीं प्राप्त कर पाता है, लेकिन यह जनमत समीक्षा में मजबूत होता है। इससे उसे अन्य दलों के साथ समझौता करना पड़ता है।
  5. राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन: राजनीतिक स्थितियों में परिवर्तन के समय में, विभिन्न दल एक-दूसरे से समझौता करके स्थिति को बनाए रखने का प्रयास करते हैं। इसमें गठबंधन एक उपाय हो सकता है।

गठबंधन सरकारें बनने के बावजूद, इनमें चुनौतियों और समझौतों की भरपूरता होती है, क्योंकि विभिन्न दलों के बीच विचारधारा और इच्छाशक्ति का अंतर हो सकता है।

अन्य पिछड़ा वर्ग का राजनीतिक उदय / Political rise of Other Backward Classes

अन्य पिछड़ा वर्ग का राजनीतिक उदय एक सामाजिक और राजनीतिक प्रक्रिया है जिसमें उपनिवेशीय और पिछड़ा वर्ग से सम्बंधित व्यक्तियों को राजनीतिक बाजार में अधिक सक्रिय भूमिका मिलती है। इससे वे समाज में अधिक से अधिक प्रतिष्ठान और सुरक्षा हासिल कर सकते हैं। इसमें कई कारणों का समावेश हो सकता है:

  1. सामाजिक समरसता: राजनीतिक विचारधारा और समरसता की भावना ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को सक्रिय रूप से राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है।
  2. सामाजिक अधिकार आंदोलन: अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों ने सामाजिक अधिकारों की मांग के लिए सक्रिय रूप से आंदोलन किए हैं और इससे उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का मौका मिला है।
  3. राजनीतिक आरक्षण और नीतियां: कई स्थानों पर अनुसूचित जातियों और पिछड़ा वर्ग के लोगों को राजनीतिक आरक्षण की सुविधा मिलती है, जिससे उन्हें अधिक रूप से राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने का अधिकार होता है।
  4. सामाजिक परिवर्तन: सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तनों ने भी अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को अधिक से अधिक रूप से राजनीतिक स्थान में पहुंचने का अवसर प्रदान किया है।
  5. शिक्षा का महत्व: शिक्षा का पहुंचना और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की जागरूकता ने उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी के लिए उत्साहित किया है।

इन कारणों से अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग अब अधिक से अधिक रूप से राजनीतिक समीक्षा, पार्टी सदस्यता, और चुनाव में भागीदारी में शामिल हो रहे हैं। इससे उन्हें अपने हक की रक्षा करने का अधिकार हो रहा है और राजनीतिक प्रक्रिया में उनका सक्रिय योगदान हो रहा है।

मंडल मुद्दा / Divisional issue

“मंडल मुद्दा” का संदर्भ विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक संदर्भों में हो सकता है, लेकिन आपका सवाल स्पष्टीकरण के बिना है। कृपया बताएं कि आप किस क्षेत्र में “मंडल मुद्दा” के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, जैसे कि राजनीतिक, सामाजिक, या आर्थिक मंदल मुद्दा?

एक सामान्य संदर्भ के तौर पर, “मंडल मुद्दा” का उपयोग भारत में राजनीतिक स्थानांतरण, आर्थिक उपाय, और सामाजिक न्याय के संदर्भ में हुआ है। 1990 के दशक में, भारत सरकार ने आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की नीतियों को लेकर “मंडल आयोग” की स्थापना की थी। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न आरक्षण कोटों के माध्यम से विभिन्न सामाजिक वर्गों को संरक्षित करना था।

मंडल आयोग की मुख्य सिफारिशें / Main recommendations of Mandal Commission

मंडल आयोग (Mandal Commission) ने अपनी रिपोर्ट में कई मुख्य सिफारिशें की थीं, जो भारत में आरक्षण की नीतियों में परिवर्तन का प्रस्ताव था। इसकी रिपोर्ट ने सामाजिक और आर्थिक सृजन में असमानता को कम करने के लिए विभिन्न समूहों के लिए आरक्षण को बढ़ावा देने का प्रस्तावित किया। यहां कुछ मुख्य सिफारिशें हैं:

  1. 27% आरक्षण देने की सिफारिश: मंडल आयोग ने पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण देने की सिफारिश की थी, जिसमें अनुसूचित जातियों (15%), अनुसूचित जनजातियों (7.5%), और अनुसूचित वर्गों (27%) को शामिल किया गया।
  2. ओबीसी और एचडीएसी को आरक्षण में शामिल करने की सिफारिश: आयोग ने ओबीसी (अनुसूचित वर्ग की अनुसूचित जनजातियां) और एचडीएसी (अनुसूचित वर्ग की अनुसूचित जनजातियों की अनुसूचित जनजातियां) को भी आरक्षण में शामिल करने का सुझाव दिया था।
  3. क्रीमी लेयर का निर्माण: आयोग ने एक “क्रीमी लेयर” की अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए उपयुक्त अधिकारीगण को छोड़कर उनके आरक्षण को हटाने की सिफारिश दी।
  4. नई अर्थव्यवस्था की ओर सरकारी पदों में सुधार: आयोग ने सरकारी पदों में सुधार करने के लिए नई अर्थव्यवस्था की ओर सुझाव दिया और उसे समर्थन भी किया।
  5. न्यायिक तंत्र की सुधार: आयोग ने न्यायिक तंत्र में भी सुधार करने के लिए सुझाव दिया, जिससे विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोगों को न्यायपूर्ण विरोध करने का अधिकार मिलता।

ये सिफारिशें भारतीय राजनीतिक प्रणाली में बहुजनों के हित में सुधार करने के लिए कदम उठाने की कोशिश करती हैं। यह आरक्षण की नीतियों को बदलकर सामाजिक और आर्थिक समानता की स्थापना करने का प्रयास कर रही थी।

क्रियान्वयन का परिणाम / Result of implementation

  1. हिंसक प्रदर्शन:

आरक्षण के विरोध में उत्तर भारत के शहरों में व्यापक हिंसक प्रदर्शन हुए। इसमें छात्रों ने हड़ताल, धरना, प्रदर्शन, और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे उपायों का सहारा लिया।

  1. आत्मदाह और आत्महत्या:

इस विरोध का सबसे अहम पहलू बेरोजगार युवाओं और छात्रों के द्वारा आत्मदाह और आत्महत्या जैसी घटनाएं बढ़ीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने सरकार के फैसले के खिलाफ सर्वप्रथम आत्मदाह का प्रयास किया।

  1. तर्क विरोध:

विरोधियों का तर्क था कि जातिगत आधार पर आरक्षण समानता के अधिकार के खिलाफ है। यह समाज में गहरी बातचीत और विचार-विमर्श की आवश्यकता को उजागर करता है।

  1. प्रधानमंत्री के फैसले:

तमाम विरोधों के बावजूद, 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी . पी . सिंह द्वारा ये सिफारिशें लागू कर दी गईं। यह एक कदम था जो आरक्षण प्रणाली को सुधारने की दिशा में हुआ, परन्तु इसने विवादों को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया।

समाप्तिकरण:

इस योजना ने समाज में आरक्षण के प्रति भावनाओं को उजागर किया और एक गहरी सामाजिक चरण में परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाया। हालांकि विरोध और उत्तराधिकारिता भावना बनी रही है, इस प्रक्रिया ने समाज में समानता और न्याय की दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ाया।

अयोध्या विवाद / Ayodhya dispute

  1. पृष्ठभूमि का मुद्दा:

अयोध्या विवाद का मुद्दा प्राचीन समय से ही चला आ रहा है, जिसमें राम जन्मभूमि के रूप में माने जाने वाले स्थान पर एक मस्जिद, बाबरी मस्जिद, का निर्माण हुआ था।

  1. बाबरी मस्जिद:

1528 में, मुग़ल साम्राज्य के सुलतान बाबर ने अयोध्या में राम मंदिर को तोड़कर उसी स्थान पर बाबरी मस्जिद की नींव रखी। इसके बाद, यह स्थान एक सामाजिक और राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया।

  1. राम मंदिर – बाबरी मस्जिद विवाद:

1992 में, बाबरी मस्जिद को तोड़ने का प्रयास किया गया, जिससे भारत में विभाजन और हिंदू-मुस्लिम सम्बन्धों में भारी उतार-चढ़ाव उत्पन्न हुआ।

  1. अदालती निर्णय:

समय के साथ, मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा और 2019 में न्यायिक निर्णय हुआ। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने के निर्णय के साथ ही, एक अलग स्थान पर मुस्लिमों के लिए मस्जिद का निर्माण करने का भी निर्णय लिया गया।

  1. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:

अयोध्या विवाद ने भारतीय समाज को सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर बहुत अधिक प्रभावित किया है, और यह समझाने में मदद करता है कि समरसता और समझदारी की आवश्यकता कैसे है।

  1. सुलह और एकता की दिशा:

विवाद के बावजूद, अब भारत समेत विश्व ने इसे शांति, समरसता और सांस्कृतिक एकता की दिशा में सुलझाने का प्रयास किया है।

अयोध्या विवाद ने भारतीय समाज को एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन की दिशा में प्रेरित किया है, जिससे सभी समुदायों को सांस्कृतिक एकता की महत्ता को समझने में मदद हो सकती है।

गोधरा कांड / Godhra incident

  1. परिचय: गोधरा कांड भारत के गुजरात राज्य के गोधरा नामक स्थान पर 2002 में हुआ एक दुखद घटना है। इसमें हिंदू कारगरों में हुई आगजनी और उसके पश्चात्ताप के दौरान मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के साथ हुई हिंसा का सच्चा दर्द छुपा हुआ है।
  2. कारगरों में आगजनी: 27 फरवरी 2002 को, कारगरों में एक ट्रेन में आगजनी हो गई, जिसमें कई कर सेवक शहीद हो गए। इसके पश्चात, हिंदू समुदाय के कुछ ताकती समूहों ने इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काने का आरोप लगाया।
  3. उत्तेजना और हिंसा: इसके पश्चात, गोधरा और इस परिसर में हिंसा और उत्तेजना फैल गई, जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को नाराज लोगों की तरफ से हमला किया गया।
  4. आपातकालीन चर्चा और न्यायिक प्रक्रिया: इस घटना के बाद, गुजरात में आपातकालीन चर्चा लागू हुई और न्यायिक प्रक्रिया में अनेक लोगों को दोषी पाया गया।
  5. उच्चतम न्यायालय के आदेश:गोधरा कांड के बाद, उच्चतम न्यायालय ने कई आदेश जारी किए और न्यायिक प्रक्रिया को गति दिया, जिससे कई आरोपियों को सजा हुई।
  6. सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव: गोधरा कांड ने भारतीय समाज को समरसता और आपसी समर्थन की महत्ता को समझाया है। यह घटना समाज के बीच विभाजन और विरोध की भावना को बढ़ाने वाली थी, जिसे सुलझाने में समय लगा है।
  7. सुधार की दिशा: इस दुखद घटना के बावजूद, गोधरा कांड ने समाज में आपसी समरसता, समझदारी और शांति की महत्ता को समझाने का एक मौका भी प्रदान किया है। इससे सिखने और सुधारने का मार्ग प्रशस्त होता है।

शाहबानों प्रकरण / Godhra incident

परिचय:

शाहबानों प्रकरण एक महत्वपूर्ण न्यायिक मुद्दा था, जिसमें मुस्लिम महिला शाहबानों को उसके तलाक के बाद पति द्वारा गुजारा भत्ता नहीं देने की आपत्ति थी। इस मुद्दे ने भारतीय समाज में तालाक और महिला के अधिकारों के सवालों पर ध्यान केंद्रित किया।

न्यायिक निर्णय:

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में अनुच्छेद 44 (समान नागरिक संहिता) के तहत शाहबानों को पति के गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया। यह निर्णय ने समाज में सामाजिक समानता और महिला के अधिकारों की सुरक्षा के प्रति एक सकारात्मक कदम उठाया।

सहमति के मुद्दे:

  1. नई आर्थिक नीति पर सहमति: लोग नई आर्थिक नीति को समर्थन कर रहे हैं, जो समाज को समृद्धि और सामाजिक समानता की दिशा में बढ़ने में मदद करेगी।
  2. पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावों की स्वीकृति: लोग समरसता और समाज में समानता की दिशा में पिछड़ी जातियों के अधिकारों को समर्थन कर रहे हैं।
  3. क्षेत्रीय दलों की भूमिका एवं साझेदारी को स्वीकृति: विभिन्न क्षेत्रीय दलों के सहमति से साझेदारी और सहयोग मिल रहा है जो राजनीतिक प्रक्रिया में बेहतरीन नतीजे प्राप्त करने में सहायक हो रहा है।
  4. विचारधारा की जगह कार्यसिद्धि पर जोर: लोग विचारधारा के स्थान पर कार्यसिद्धि पर जोर दे रहे हैं जिससे विचारों को अमल में लाने में सुधार हो रहा है।

यह सहमति के मुद्दे समाज की सुधार और समृद्धि की दिशा में एक प्रगतिशील दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

लोकसभा चुनाव 2004 / Lok Sabha Elections 2004

परिचय:

लोकसभा चुनाव 2004 भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसमें लोग देश के नेतृत्व के लिए वोट देने के लिए उत्सुक थे। इस चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दल एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।

मुख्य घटनाएँ:

  1. कैसे हुई चुनावों की घटना: लोकसभा चुनाव 2004 में विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशियों को प्रस्तुत किया और देशवासियों को अपने विचारों के लिए प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा की।
  2. कुछ प्रमुख प्रतिष्ठानें: चुनावी युद्धभूमि में कुछ प्रमुख प्रतिष्ठानें शामिल थीं, जैसे कि कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), और अन्य कुछ छोटे दल।
  3. राजनीतिक मुद्दे और चरणों की बहस: चुनावी युद्धभूमि पर विभिन्न राजनीतिक मुद्दे और चरणों की बहस हुई, जिसमें समाज के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित था।

नतीजे:

  1. चुनाव परिणाम: चुनाव के परिणाम ने कांग्रेस पार्टी को बहुमत दिया और उन्हें सरकार बनाने के लिए आवश्यक सीटें प्राप्त हुईं।
  2. सोनिया गांधी की भूमिका: सोनिया गांधी ने चुनावी युद्धभूमि पर अपनी भूमिका बनाई और चुनावी जीत के बाद प्रधानमंत्री पद का इंकार किया।
  3. संघर्ष और सहमति: चुनावों में हुई संघर्ष के बावजूद, एक बार फिर से सोनिया गांधी की नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बनाई।

सारांश:

लोकसभा चुनाव 2004 ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया और विभिन्न राजनीतिक दलों को सार्वजनिक समर्थन प्राप्त करने का एक मौका दिया।

‘एनडीए [ NDA ] III और IV’

  1. नए दौर का आरंभ:
  • मई 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया, जिससे लगभग 30 वर्षों के बाद केंद्र में मजबूत सरकार बनी।
  1. एनडीए III का विशेषता:
  • एनडीए III कहा जाता है कि इसमें भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन अपने पूर्ववर्ती गठबंधनों से अलग था। इसमें भाजपा का पूर्ण बहुमत दिखता है और इसे ‘अधिशेष बहुमत वाला गठबंधन’ कहा गया।
  1. गठबंधन राजनीति में परिवर्तन:
  • एनडीए III गठबंधन ने गठबंधन राजनीति में बड़ा परिवर्तन लाया, जहां पहले गठबंधनों का नेतृत्व एक पार्टी के द्वारा किया जाता था, वहीं इस बार भाजपा ने स्वयं नेतृत्व किया।
  1. एनडीए IV का उदय:
  • 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 543 सीटों में से 350 से अधिक सीटें जीतीं और एनडीए IV को सत्ता के केंद्र में ला दिया।
  1. भाजपा प्रणाली की सफलता:
  • 2019 में भाजपा की उथल-पुथल की सफलता ने समकालीन पार्टी प्रणाली को ‘भाजपा प्रणाली’ के रूप में परिभाषित किया, जिससे एक पार्टी के प्रभुत्व वाले गठबंधन की राजनीति में बदलाव आया।
  1. नए युग का आरम्भ:
  • इससे सामग्री युग का आरम्भ हुआ है, जिसमें राष्ट्रीय दलों के बजाय एक दलीय प्रभुत्व का युग दिख रहा है, जो भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में एक नए परिवर्तन की शुरुआत है।

‘विकास और शासन के मुद्दे’ / Issues of development and governance

  1. समृद्धि की दिशा में:
  • विकास और शासन के मुद्दे आज हमारे समाज के सर्वोत्तम समृद्धि की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
  1. नेतृत्व का महत्व:
  • सही दिशा में विकास के लिए उच्च स्तर का नेतृत्व अत्यंत आवश्यक है, जो समृद्धि के मार्ग पर सभी वर्गों को साथ लेकर चल सके।
  1. शिक्षा का महत्व:
  • एक विकसीत समाज की नींव शिक्षा में रखी जाती है, और शासन इसे सबसे अच्छे तरीके से सुनिश्चित करने के लिए उत्साही होना चाहिए।
  1. जनसहभागिता:
  • एक विकसीत राजनीति में, जनसहभागिता को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है, ताकि हर व्यक्ति को शासन के प्रक्रियाओं में सामिल होने का अधिकार हो।
  1. इंफ्रास्ट्रक्चर विकास:
  • सुगम संबंध, सड़कों का निर्माण, ऊर्जा संग्रहण, और तकनीकी सुधार विकास की महत्वपूर्ण घटक हैं जो राज्यों को समृद्धि की ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं।
  1. सामाजिक न्याय:
  • शासन को सामाजिक न्याय की प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि दरिद्रता, शिक्षा, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबको समान अवसर मिले।
  1. भ्रष्टाचार का निर्मूलन:
  • एक सकारात्मक राजनीतिक दृष्टिकोण से, भ्रष्टाचार का कठोर निर्मूलन एक अत्यंत आवश्यक मुद्दा है, जिससे समाज को विकास की सच्ची पथ प्रदर्शित हो।
  1. पारिस्थितिकी संरक्षण:
  • शासन को पारिस्थितिकी संरक्षण की दृष्टि से काम करना चाहिए, जिससे समुद्र स्तर की बढ़ती हुई चुनौतियों, जलवायु परिवर्तन, और वन्यजनों की संरक्षण में सकारात्मक परिणाम हों।
  1. साक्षरता और स्वास्थ्य:
  • शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि समाज का हर व्यक्ति समृद्धि के साथ आगे बढ़ सके।

10. ग्लोबल सहयोग:

  • विकास के प्रयासों में वैश्विक सहयोग और भी महत्वपूर्ण है, जिससे विभिन्न देशों के बीच ज्ञान और संसाधनों का साझा हो सके।

समापन:

  • विकास और शासन के मुद्दे समृद्धि और सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ने का माध्यम हैं। एक सशक्त और समृद्धिशील भविष्य के लिए इन मुद्दों पर ध्यान देना हम सभी की जिम्मेदारी है।

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NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12
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स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

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