कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: क्षेत्रीय आकांक्षाये – NCERT नोट्स PDF

कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान के NCERT नोट्स ढूंढ रहे हैं? अध्याय 7 “क्षेत्रीय आकांक्षाएं” को बेहतर तरीके से समझें! इस अध्याय में क्षेत्रवाद, अलगाववाद और भारत में राज्य के पुनर्गठन जैसे महत्वपूर्ण विषयों की व्याख्या की गई है।

इस अध्याय में स्वायत्तता, विवादों (जैसे जम्मू-कश्मीर, पंजाब की समस्या, पूर्वोत्तर की चुनौतियां) और क्षेत्रीय विकास के प्रयासों पर प्रकाश डाला गया है।

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectPolitical Science
ChapterChapter 7
Chapter Nameक्षेत्रीय आकांक्षाये
CategoryClass 12 Political Science
MediumHindi
कक्षा 12 राजनीति विज्ञान क्षेत्रीय आकांक्षाये

Class 12 political science book 2 chapter 7 notes in hindi: क्षेत्रीय आकांक्षाएं Notes

राजनीति विज्ञान अध्याय-7: क्षेत्रीय आकांक्षाएं

स्वययत्ता का अर्थ / Meaning of autonomy

समय और स्थान का संदर्भ:

  • स्वायत्ता की भावना भारत में 1980 के दशक के रूप में प्रमुख हुई, जब विभिन्न क्षेत्रों में लोगों ने अपने विशेष अधिकारों की माँग की। इस युग की उभरती हुई स्वायत्ता की भावना ने समाज में बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया है।

स्वायत्ता का अर्थ:

  • स्वायत्ता का अर्थ है किसी राज्य या क्षेत्र के द्वारा विशेष अधिकारों की माँग करना। यह माँग अक्सर क्षेत्रीय भाषा, सांस्कृतिक विविधता, अर्थव्यवस्था या अन्य क्षेत्रों में हो सकती है। इसमें लोगों का स्वतंत्र एवं विशिष्ट पहचान का समर्थन होता है। स्वायत्ता की भावना में लोग अपने विशिष्ट भूमिका और पहचान को महत्वपूर्ण मानते हैं और उन्हें समृद्धि और विकास का सामर्थ्य अर्जित करने का हक महसूस करते हैं।

चुनौती और समर्थन:

  • चुनौती के क्षेत्रों में जैसे कि संकीर्ण स्वार्थ, विदेशी प्रोत्साहन, यह भावना राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को गहराई से प्रभावित कर सकती है। इसमें चुनौतियों के साथ-साथ समर्थन की भी बात है, क्योंकि एक समृद्धि और एकीकृत राष्ट्र को बनाए रखना एक समृद्धि की ओर एक प्रगतिशील राष्ट्र की दिशा में महत्वपूर्ण है।

क्षेत्रीय आकांक्षाये / Regional aspirations

क्षेत्रीय आकांक्षाएं विशेष क्षेत्र के लोगों द्वारा अपनी विशिष्टता के आधार पर की जाने वाली मांगों को दर्शाती हैं। इनमें भाषा, धर्म, संस्कृति, भौगोलिक विशिष्टताएं और अन्य तत्व शामिल हो सकते हैं जो किसी क्षेत्र को अनूठा और विशेष बनाते हैं। ये आकांक्षाएं विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न पहलुओं और विचारशीलताओं को दर्शाती हैं जो लोगों के बीच एक विशेष समृद्धि और पहचान का भाव बढ़ाते हैं।

क्षेत्रीयता के प्रमुख कारण:-

1. धार्मिक विभिन्नता:

  • धार्मिक विभिन्नता एक प्रमुख क्षेत्रीयता का कारण हो सकता है जो विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच अलग-अलग धर्मिक मूल्यों और रीति-रिवाजों को दर्शाता है।

2. सांस्कृतिक विभिन्नता:

  • सांस्कृतिक विभिन्नता भी एक महत्वपूर्ण कारण है जो किसी क्षेत्र की अद्वितीयता को बनाए रख सकता है। भाषा, साहित्य, कला, और शैली आदि में होने वाली विविधता इसका अभिन्न हिस्सा हो सकती है।

3. भौगोलिक विभिन्नता:

  • विभिन्न भौगोलिक स्थानों की विशेषता भी क्षेत्रीयता का कारण हो सकती है। यह जलवायु, जल, और भूमि के स्वरूप की विविधता पर आधारित हो सकता है।

4. राजनीतिक स्वार्थ:

  • क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का स्वार्थ भी एक प्रमुख क्षेत्रीयता का कारण हो सकता है जो उनकी खुद की राजनीतिक और आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होता है।

5. असंतुलित विकास:

  • कुछ क्षेत्रों में असंतुलित विकास एक कारण हो सकता है जो उन्हें और अधिक स्वतंत्रता और अधिकारों की माँग करने के लिए प्रेरित कर सकता है।

6. सामाजिक असमानता:

  • कुछ क्षेत्रों में सामाजिक असमानता भी क्षेत्रीयता का कारण हो सकती है जो लोगों को अधिकारों और सुविधाओं के प्रति अधिक माँग करने के लिए प्रेरित कर सकती है।

7. क्षेत्रीय राजनीतिक दल:

  • कुछ क्षेत्रों में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की उपस्थिति एक कारण हो सकती है जो अपने स्थानीय मुद्दों के लिए समर्थन माँग कर सकते हैं।

क्षेत्रवाद और पृथकतावाद में अंतर / Difference between regionalism and separatism

क्षेत्रवाद (Regionalism):

  • परिभाषा:- क्षेत्रवाद एक ऐसी भावना है जिसमें किसी निश्चित क्षेत्र की भिन्नता, भौगोलिक और सांस्कृतिक विशिष्टता को महत्वपूर्ण माना जाता है और उसके विकास की कोशिश की जाती है।
  • लक्षण:- इसमें स्थानीय भाषा, सांस्कृतिक विविधता, और स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया जाता है ताकि वहाँ के लोगों का आत्मविश्वास और समर्थन बढ़े।
  • उदाहरण:- भारत में, विभिन्न राज्यों के भीड़भाड़ में दिखने वाले क्षेत्रवाद के उदाहरण में उत्तर और दक्षिण भारत के बीच भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता शामिल हो सकती है।

पृथकतावाद (Separatism):

  • परिभाषा:- पृथकतावाद एक ऐसी भावना है जिसमें किसी स्थान या समूह की स्वतंत्रता और अद्वितीयता की मांग की जाती है, जिससे वहाँ के लोग अपने नियमों और संस्कृति की पहचान प्राप्त कर सकें।
  • लक्षण:- पृथकतावाद का उद्देश्य स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और अपनी विशेषता की पहचान को बढ़ावा देना होता है।
  • उदाहरण:- एक पृथकतावादी उदाहरण के रूप में, कश्मीर के चुनौतीपूर्ण संदर्भों में समृद्धि और स्वतंत्रता की मांगें उठाई जा रही हैं।

जम्मू एवं कश्मीर मुद्दा / Jammu and Kashmir issue

1. परिचय:

  • जम्मू और कश्मीर, भारत का एक प्रान्त है, जो भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से विशेष है। इस क्षेत्र में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और अन्य जातियों के लोग रहते हैं।

2. सामाजिक और धार्मिक विवाद:

  • जम्मू कश्मीर मुद्दा मुख्यतः धार्मिक और सामाजिक विवादों का केंद्र है। इसमें हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच विभिन्नताएं और विरोध शामिल हैं।

3. विभाजन:

  • 1947 में भारत का विभाजन के समय, जम्मू और कश्मीर ने महाराजा हरी सिंह के नेतृत्व में भारत से अलग रहने का फैसला किया।

4. धारा 370:

  • धारा 370 ने जम्मू और कश्मीर को अनौपचारिक रूप से एक विशेष स्थान प्रदान किया और इसने इस क्षेत्र को भारतीय संघ में अलग बनाए रखने का कारण बना।

5. राजनीतिक विद्रोह:

  • कश्मीर में राजनीतिक विद्रोहों और समस्याओं की वजह से इस क्षेत्र में सुरक्षा के लिए भारतीय सुरक्षा बलों की आवश्यकता है।

6. अंतरराष्ट्रीय चर्चा:

  • जम्मू और कश्मीर का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक महत्वपूर्ण चर्चा का केंद्र बना हुआ है, जिसमें भारत, पाकिस्तान, और चीन शामिल हैं।

7. अभिबादन:

  • मुद्दे का समाधान ढूंढने के लिए विभिन्न समझौतों की कोशिशें की गई हैं, लेकिन इसमें सफलता हासिल करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

कश्मीर मुद्दा की समस्या की जड़े / Roots of the problem of Kashmir issue

  1. ऐतिहासिक परिवर्तन:
  • इस मुद्दे की जड़ें इतिहासिक परिवर्तनों में हैं, जैसे कि मुघल और अफगान शासकों के आगमन, राजा हरी सिंह के समय का विभाजन, और भारत-पाक युद्धों की घटनाएं।
  1. धारा 370:

इस क्षेत्र की विशेषता और स्वायत्ता में धारा 370 का योगदान है, जोने इसे अपना संविधान, स्वशासन, और अन्य अधिकार प्रदान करने का अधिकार देता है।

  1. सामाजिक और धार्मिक विवाद:

हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच सामाजिक और धार्मिक विवादें इस क्षेत्र में दी जा रही जड़ों को मजबूत कर रही हैं, जो प्राचीन समय से चली आ रही हैं।

  1. आतंकवाद:

कश्मीर में आतंकवादी ग्रुप्स की सक्रियता और उनके समर्थनीय देशों के साथ रिश्ते इस मुद्दे को और भी जटिल बना रहे हैं।

  1. राजनीतिक विशेषता:

इस क्षेत्र को भारतीय संघ के बाहर रहने की राजनीतिक विशेषता ने इसे और भी संविदानिक रूप से विभाजित बनाया है।

  1. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:

कश्मीर मुद्दा का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव भी है, जिसमें पाकिस्तान और चीन की भूमिका शामिल है।

  1. समझौतों में असफलता:

कई समझौतों में असफलता ने इस मुद्दे को और भी जटिल बना दिया है, जिससे लोगों में आपसी विश्वास की कमी हो रही है।

  1. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कमी:

लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में कमी ने इस मुद्दे को और भी गहरा बना दिया है, जो अधिकांश लोगों को समर्थन प्रदान करने की प्रक्रिया में रुकावट डाल रही है।

यहाँ के अलगावादियों की तीन मुख्य धाराएँ है –

  1. स्वतंत्रता की मांग:

यहाँ के अलगावादी गुट भारत से अपनी स्वतंत्रता की मांग रखते हैं और इसे अपनी आज़ादी की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन्हें लगता है कि उन्हें अलग राजनीतिक स्थिति चाहिए जिसमें वे अपने नियंत्रण में हों।

  1. धार्मिक और सांस्कृतिक भूमि:

यहाँ के अलगावादी धार्मिक और सांस्कृतिक अद्यतितता को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। इन्हें अपनी विशेष भाषा, संस्कृति, और पहचान को सुरक्षित रखने का हक है, जिसे वे अपने अलगावादी मुद्दों के माध्यम से दर्शाना चाहते हैं।

  1. स्थानीय अर्थव्यवस्था की सुरक्षा:

यहाँ के अलगावादियों का मानना ​​है कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें अपने स्वतंत्र प्रणाली को चलाने का अधिकार होना चाहिए। उन्हें अपनी स्थानीय रोजगार, उत्पादों और विपणि की सुरक्षा के लिए जिम्मेदारी मिलनी चाहिए।

बाहरी और आंतरिक विवाद / External and internal disputes

बाहरी विवाद

1. सीमा विवाद:

दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच सीमा स्थिति के कारण उत्पन्न होने वाले विवाद। इसमें दोनों प्रतिभागियों के बीच सीमा निर्धारण के मसले हो सकते हैं।

2. आंतरराष्ट्रीय अवैध आक्रमण:

एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किया गया अवैध आक्रमण या दबाव। इसमें आतंकवाद, साइबर हमले और संघर्ष क्षेत्र में होने वाली संघर्ष समाहित हो सकते हैं।

3. व्यापारिक विवाद:

दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच व्यापार समझौतों में आपसी असहमति या विवाद का समाहित होना। उदाहरण के लिए, विपणी नीतियों, कर दरों और विदेशी निवेशों से संबंधित मुद्दे शामिल हो सकते हैं।

आंतरिक विवाद:

1. राजनीतिक विवाद:

एक राष्ट्र के अंदर होने वाले राजनीतिक मुद्दों, पार्टी या संगठनों के बीच समाहित विवाद को राजनीतिक विवाद कहा जाता है। इसमें विभिन्न राजनीतिक धाराओं के बीच असहमति, नीतियों और सरकारी नीतियों में बदलाव की मांग शामिल हो सकती है।

2. सामाजिक विवाद:

समाज के अंदर होने वाले समृद्धि, वर्ग, जाति या अन्य सामाजिक मुद्दों पर आधारित विवाद को सामाजिक विवाद कहा जाता है। इसमें समाज में न्याय, समानता और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दे शामिल हो सकते हैं।

3. आर्थिक विवाद:

एक राष्ट्र के अंदर होने वाले आर्थिक विवाद में विभिन्न वर्गों, उद्यमियों, और सरकारी नीतियों के बीच मतभेद होता है।

1948 के बाद राजनीति / Politics after 1948

1. भारतीय संघर्ष:

  • भारत में 1948 के बाद स्वतंत्रता के पश्चात संघर्षशील दशाएं आईं। कश्मीर विवाद, भू-बंदार, चीन युद्ध, इंडो-पाक युद्ध, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, आदि इनमें से कुछ मुख्य संघर्ष थे।

2. नेहरुविया राजनीति:

  • पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय राजनीति को नए दृष्टिकोण और विकासवाद की दिशा में प्रेरित किया। उनकी राजनीतिक दशा को ‘नेहरुविया कला’ कहा जाता है।

3. भूखंडीय विभाजन:

  • भूखंडीय विभाजन के दौरान, विभाजित पंजाब, हरियाणा, और हिमाचल प्रदेश की स्थापना हुई।

4. सुधार आंदोलन:

  • भारत में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की मांग को लेकर आंदोलने उत्पन्न हुए, जैसे कि मजदूर आंदोलन, किसान आंदोलन, महिला आंदोलन, और अनुसूचित जातियों की समस्याओं के लिए आंदोलन।

5. आर्थिक परिवर्तन:

  • पंजाबी और गुजराती उद्योगपतियों ने आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कई कदम उठाए। यह दौर आर्थिक परिवर्तन की दिशा में जरूरी बदलाव लाया।

6. प्राकृतिक संकट:

  • 1970 और 1980 के दशकों में भारत में अनैतिकता, भ्रष्टाचार, और प्राकृतिक संकट बढ़ गए। यह दौर देश को आर्थिक और सामाजिक संबंधों में चुनौती प्रदान करता है।

7. नौवीं और दसवीं राजनीतिक पीढ़ी:

  • भारत में नौवीं और दसवीं राजनीतिक पीढ़ी ने विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार और प्रतिबद्धता से सूचना प्रदान की है।

पंजाब संकट / Punjab crisis

  1. किसानों की मुद्दे:
  • 1980 के दशक में, पंजाब में किसानों के बीच आंदोलन शुरू हुआ। इसका मुख्य मुद्दा था कि किसानों को अपने खेतों की जमीन लौटाई जाए और उन्हें अधिकाधिक मूल्य मिले।
  1. भिंडरवाले और ब्लू स्टार ऑपरेशन:
  • 1984 में, भारत सरकार ने अमृतसर के हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के भिंडरवाले नेतृत्व में आंदोलनकारियों के खिलाफ ब्लू स्टार ऑपरेशन शुरू किया। इसका परिणाम स्वरूप स्वर्ण मंदिर में हुए दृष्टिकोण के संवाद का उल्लेखनीय विवाद उत्पन्न हुआ।
  1. कांग्रेस-अकाली टकराव:
  • पंजाब में कांग्रेस और अकाली दल के बीच राजनीतिक टकराव और समस्याएं बढ़ीं।
  1. क्षेत्रीय और धार्मिक विवाद:
  • पंजाब में क्षेत्रीय और धार्मिक विवादों के चलते राजनीतिक उठापटक बढ़ी।
  1. कम्युनलिज्म:
  • सिख और हिन्दू कम्युनिटी के बीच तनाव बढ़ा, जिसने पंजाब को समस्याएं और संकटों में डाल दिया।
  1. शांति समझौता:
  • 1985 में भारत सरकार ने पंजाब के लिए शांति समझौता को स्वीकृति दी, जिससे सिख समुदाय को कुछ सामाजिक और आर्थिक सुविधाएं मिलीं।
  1. राजनीतिक उठान:
  • पंजाब संकट ने राजनीतिक उठान को भी उत्पन्न किया, जिससे नए नेतृत्व और राजनीतिक सिद्धांतों का आरंभ हुआ।
  1. राज्य की स्थापना:
  • शांति समझौता के बाद, पंजाब को 1966 में हिमाचल प्रदेश के साथ मिलाकर दो अलग राज्यों में विभाजित किया गया।
  1. स्थिति स्थायी करना:
  • आंदोलन के परिणामस्वरूप स्थिति स्थायी की गई, लेकिन इसने पंजाब को विभाजित कर दिया और समाज में भिन्नता उत्पन्न की।

पंजाब समझौता / Punjab Agreement

1. समझौते का उत्पत्ति:

  • पंजाब समझौता, जो 1985 में सम्पन्न हुआ, भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ एक महत्वपूर्ण संधि था। इसे भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद खान ने हस्ताक्षर किया था।

2. उद्देश्य:

  • समझौते का मुख्य उद्देश्य था कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और सुरक्षा स्थिति स्थापित की जाए, खासकर बॉर्डर प्रान्तों के बीच तनाव को कम किया जाए।

3. सीमा सुरक्षा:

  • समझौता सीमा सुरक्षा के मुद्दों पर सहमति बनाने का प्रयास करता है और विभिन्न सैन्यी उपायों को स्थापित करता है जो बॉर्डर प्रान्तों के बीच सीमा सुरक्षा को मजबूती प्रदान करने के लिए विचार किये गए हैं।

4. मानविक संबंध:

  • समझौता मानविक संबंधों को बढ़ावा देता है और किसी भी देशी या विदेशी नागरिक को अपनी मौजूदगी या यात्रा करने का अधिकार प्रदान करता है।

5. निर्वाचन और साक्षरता:

  • समझौता चुनावों की व्यवस्था, साक्षरता और शिक्षा के क्षेत्र में भी सहमति जताता है, जिससे दोनों देशों के नागरिकों को और अच्छी जीवन स्तर की सुविधाएं मिल सकें।

6. व्यापार और सांविदानिक विनियमन:

  • समझौता व्यापार, औद्योगिकीकरण, और सांविदानिक विनियमन के क्षेत्र में बदलाव और सुधार की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ सके।

7. खूबसूरति और पर्यावरण:

  • समझौता यह भी निर्धारित करता है कि दोनों देशों को अपने क्षेत्रों की सुंदरता और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मिलकर काम करना चाहिए।

8. संविदानिक संबंध:

  • समझौता संविदानिक संबंधों की मजबूती और उनके पालन को बढ़ावा

पंजाब समझौते के प्रमुख प्रावधान / Major provisions of Punjab Agreement

  1. सीमा सुरक्षा:
  • समझौता सीमा सुरक्षा के प्रमुख प्रावधानों में से एक है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर बढ़ती तनाव को कम करने का उद्देश्य रखता है।
  1. बॉर्डर प्रान्तों का सम्बंध:
  • समझौता बॉर्डर प्रान्तों के बीच निरंतर आत्म-रगड़ और भौगोलिक समरसता की बढ़ती आवश्यकता को समझता है और उसके लिए उपायों को स्थापित करता है।
  1. मानविक संबंध:
  • समझौता मानविक संबंधों को बढ़ावा देता है और दोनों देशों के नागरिकों के लिए सीमा पार यात्रा और विनम्र व्यवहार की अनुमति देता है।
  1. विदेशी यात्रा और वित्तीय सहयोग:
  • समझौता विदेशी यात्रा और वित्तीय सहयोग के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देता है, जिससे बॉर्डर प्रान्तों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
  1. बॉर्डर प्रान्तों के निर्वाचन:
  • समझौता बॉर्डर प्रान्तों के निर्वाचन क्षेत्र में भी सहयोग करता है और उन्हें स्वतंत्रता का हक प्रदान करता है।
  1. साक्षरता और शिक्षा:
  • समझौता शिक्षा और साक्षरता के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देता है और शिक्षा की सुविधाएं और योजनाएं बढ़ाता है, जिससे लोगों को बेहतर जीवन यापन करने का अधिकार मिलता है।

पूर्वोत्तर भारत / North-East India

1. भूगोल:

  • पूर्वोत्तर भारत एक विविध और समृद्ध भूगोल से भरा हुआ क्षेत्र है, जिसमें हिमालय, ब्रह्मपुत्र, और गंगा नदी समाहित हैं।

2. राज्य:

  • पूर्वोत्तर भारत में अनेक राज्य हैं, जैसे कि असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, और सिक्किम।

3. जनसंख्या:

  • इस क्षेत्र की जनसंख्या विभिन्न जनजातियों, भाषाओं और सांस्कृतिक समृद्धियों का संगम है।

4. भाषा और सांस्कृतिक:

  • पूर्वोत्तर भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, जैसे कि असमीज़, मिजो, मैगा, नागामी, और बोड़ो आदि। सांस्कृतिक रूप से भी यहां विविधता है।

5. वन्यजन:

  • पूर्वोत्तर भारत में वन्यजन और वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र हैं। यहां अद्वितीय जनजीवों, पक्षियों, और पौधों का समृद्ध संसार है।

6. आर्थिक गतिविधियां:

  • पूर्वोत्तर भारत की आर्थिक गतिविधियां मुख्य रूप से कृषि और पर्यटन पर आधारित हैं। यहां चाय उत्पादन, हिरण संरक्षण, और पर्वतीय प्रदेशों में पर्यटन का महत्वपूर्ण योगदान है।

7. धार्मिक स्थल:

  • यहां कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं, जैसे कि कामाख्या मंदिर (असम), तवांग गोम्पा (अरुणाचल प्रदेश), और कोहिमा मेज़र (नागालैंड)।

8. असम का सौंदर्य:

  • असम को इतिहास, सांस्कृतिक धरोहर, और अपने सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध किया जाता है, जो ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है।

9. पर्यटन:

  • पूर्वोत्तर भारत पर्यटन के लिए एक आकर्षक स्थल है, जहां यात्री विविध सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्थलों का आनंद लेते हैं, जैसे कि माजुली द्वीप (असम), तवांग (अरुणाचल प्रदेश), और दारजीलिंग (सिक्किम)।

10. अनुसंधान और विकास:

  • – पूर्वोत्तर भारत में विज्ञान और अनुसंधान क्षेत्र में भी विकसित हो रहा है, जिससे इस क्षेत्र को तकनीकी और आर्थिक दृष्टि से आगे बढ़ना

स्वायत्तता की मांग / Demand for autonomy

ऐतिहासिक संबंध:

  • कई बार लोगों ने अपने ऐतिहासिक संबंध और ऐतिहासिक स्थलों के प्रति अपने अधिकार की मांग की हैं। यह एक विशेष स्थान, समर्पित स्थान, या ऐतिहासिक नगर के लिए हो सकता है।

भाषा और सांस्कृतिक स्वायत्ता:

  • भाषा और सांस्कृतिक स्वायत्ता भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है, जिसमें लोग अपनी भाषा, सांस्कृतिक पहचान, और स्वाभाविकता की सुरक्षा की मांग करते हैं।

स्थानीय राजनीति:

  • कई बार लोग अपने राज्य या क्षेत्र में स्वायत्तता की मांग करते हैं, ताकि वे अपने राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों को स्वतंत्रता से ले सकें।

आर्थिक स्वायत्तता:

  • कई समय लोग आर्थिक स्वायत्तता की मांग करते हैं, जिसमें वे अपनी आर्थिक नीतियों, कर निर्धारण, और अन्य आर्थिक मुद्दों पर स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते हैं।

नागरिक स्वायत्तता:

  • लोग अक्सर अपने नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मांगें करते हैं, ताकि उन्हें समान और न्यायपूर्ण व्यवहार मिले।

जल, जंगल, और जमीन की स्वायत्ता:

  • कई बार लोग अपने स्थानीय संसाधनों जैसे कि जल, जंगल, और जमीन की स्वायत्ता की मांग करते हैं, ताकि वे इन संसाधनों का सही रूप से प्रबंधन कर सकें और इनका उपयोग लोगों के हित में हो।

राजनीतिक स्वायत्तता:

  • राजनीतिक स्वायत्तता में लोग अपने क्षेत्रीय या स्थानीय स्तर पर राजनीतिक निर्णय लेने की मांग करते हैं, ताकि वे अपनी स्थानीय समस्याओं और आवश्यकताओं को समझ सकें।

सामरिक स्वायत्तता:

  • सामरिक स्वायत्तता की मांग भी हो सकती है, जिसमें लोग स्वतंत्रता से अपनी सेना और सुरक्षा की देखभाल करने का अधिकार मांगते हैं।

अलगाववादी आन्दोलन / Separatist Movement

  1. समर्थन की मांग:
  • अलगाववादी आंदोलन अक्सर किसी समृद्ध या प्रबल क्षेत्र के लोगों द्वारा किया जाता है, जो अपने स्थानीय आर्थिक या सांस्कृतिक हित की रक्षा के लिए उठते हैं। इसमें उनकी मुख्य मांग हो सकती है कि स्थानीय संसाधनों का सुरक्षित और सही तरीके से प्रबंधन किया जाए।
  1. न्यायपूर्ण और समान विवेक:
  • इस आंदोलन का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय को प्रमोट करना होता है, ताकि लोग समान विवेक और न्यायपूर्णता के साथ अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें।
  1. राजनीतिक स्वतंत्रता:
  • अलगाववादी आंदोलन में लोग सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग कर सकते हैं, ताकि वे अपने स्वयं के निर्णय और नीतियों को अनुसरण कर सकें।
  1. सामूहिक एकता:
  • यहां लोग अक्सर सामूहिक एकता और सजगता की भावना को प्रोत्साहित करने के लिए एकत्र होते हैं, ताकि वे एकमत से अपनी मांग को प्रभावी रूप से प्रस्तुत कर सकें।
  1. आर्थिक स्वतंत्रता:
  • कई बार इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि लोग स्वतंत्रता से अपने स्थानीय और आर्थिक विकास की दिशा में अग्रसर हो सकें।
  1. अपने संस्कृति और भाषा की सुरक्षा:
  • अलगाववादी आंदोलन अक्सर अपनी संस्कृति, भाषा, और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के लिए भी हो सकता है, ताकि यह विशिष्टता और सांस्कृतिक समृद्धि की दिशा में बढ़ सके।
  1. पर्यावरण की रक्षा:
  • आंदोलन में लोग अपने स्थानीय पर्यावरण और उसकी सुरक्षा के लिए भी उठ सकते हैं, ताकि वे यह सुनिश्चित कर सकें कि प्रदूषण, वन्यजन्य विनाश, और पर्यावरणीय संतुलन की रक्षा होती रहे।

नागालैण्ड / Nagaland

  1. स्थान और सीमाएँ:
  • नागालैण्ड उत्तर पूर्वी भारत में स्थित है और इसकी सीमाएं असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम, और बांग्लादेश के साथ मिलती हैं।
  1. राजधानी:
  • कोहिमा नागालैण्ड की राजधानी है।
  1. भौगोलिक स्थिति:
  • नागालैण्ड पहाड़ों और घाटियों से भरा हुआ है और यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का विशेष रूप से आनंद लिया जा सकता है।
  1. आदिवासी जनसंख्या:
  • नागालैण्ड की जनसंख्या में अधिकांश आदिवासी जनजातियों से है और वे अपनी विशेष सांस्कृतिक परंपराओं को महत्वपूर्ण मानते हैं।
  1. नागा आंदोलन:
  • नागालैण्ड के इतिहास में नागा आंदोलन महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो यहां के लोगों की आजादी और राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग को लेकर हुआ था।
  1. शिक्षा:
  • नागालैण्ड में शिक्षा के क्षेत्र में भी विकास हुआ है और यहां के विभिन्न शिक्षा संस्थानों ने विशेषज्ञता के क्षेत्र में नाम बनाया है।
  1. पर्यटन:
  • नागालैण्ड में पर्यटन का विकास हुआ है और यहां के लोगों की परंपरागत संस्कृति, नृत्य, संगीत, और पर्वों का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
  1. कला और सांस्कृतिक विरासत:
  • नागालैण्ड अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है और यहां के लोग अपनी परंपरागत गाने, नृत्य, और कला का आनंद लेते हैं।
  1. धरोहर और विभूतियां:
  • नागालैण्ड अपनी धरोहर और विभूतियों के लिए भी मशहूर है और वहां की भौतिक और सांस्कृतिक सुंदरता दर्शनीय है।

बाहरी लोगों का विरोध / Opposition from outsiders

  1. परिचय:
  • बाहरी लोगों का विरोध एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है जो एक समूह या समाज के लोगों द्वारा अन्य समूहों या व्यक्तियों के प्रति विभिन्न कारणों से किया जा सकता है।
  1. समृद्धि की चुनौती:
  • बाहरी लोगों का विरोध अक्सर आर्थिक, सांस्कृतिक, या भौगोलिक विषयों पर आधारित होता है, जिससे समृद्धि और समाज में समानता की चुनौती पैदा होती है।
  1. भाषा और सांस्कृतिक विभिन्नता:
  • बाहरी लोगों का विरोध अक्सर भाषा, सांस्कृतिक, और धार्मिक विभिन्नताओं पर आधारित है, जिससे भिन्नता और असमानता की भावना उत्पन्न होती है।
  1. सामाजिक असमानता:
  • बाहरी लोगों का विरोध समाज में असमानता की भावना को बढ़ा सकता है जिससे सामाजिक समरसता में कठिनाईयाँ उत्पन्न होती हैं।
  1. भौगोलिक आधार:
  • कई बार भौगोलिक कारणों से लोग अपने स्थानीयता को बचाने के लिए बाहरी लोगों का विरोध करते हैं, जो स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को खतरे में डाल सकता है।
  1. धर्म और तात्कालिकता:
  • धार्मिक और सामाजिक तात्कालिकताओं के कारण भी बाहरी लोगों का विरोध हो सकता है, जो समाज की परंपराओं और आदिकालिकता के साथ मेल नहीं खा सकते।
  1. समाज में एकता की बढ़ती चुनौती:
  • बाहरी लोगों का विरोध समाज में एकता और समरसता की बढ़ती चुनौती पैदा कर सकता है, जिससे एक सुसंगत और समृद्धिशील समाज बनाना कठिन हो सकता है

द्रविड आन्दोलन / Dravidian Movement

संक्षेप:

  • द्रविड़ आंदोलन भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में भाषा और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक समृद्धि या आंदोलन था। इसने दक्षिण भारतीय राज्यों में द्रविड़ भाषाओं को प्रमोट करने और संरक्षित करने के लिए संघर्ष किया। यह आंदोलन भाषा और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के प्रति लोगों के जागरूक होने के साथ-साथ दक्षिण भारतीय राज्यों में एक स्वाभाविक भाषा स्थापित करने का प्रयास करता था।

प्रमुख आंदोलन:

  1. अन्ध्र प्रदेश:
  • अन्ध्र प्रदेश में, एक अग्रणी द्रविड़ आंदोलन विदेशी भाषा तेलुगु की प्रमोशन और उसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।
  1. तमिलनाडु:
  • तमिलनाडु में, द्रविड़ आंदोलन ने तमिल भाषा और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। यह आंदोलन तमिलनाडु को एक अलग सांस्कृतिक और भाषाई पहचान प्रदान करने के लिए समर्थ बनाने में मदद करता है।
  1. कर्नाटक:
  • कर्नाटक में, द्रविड़ आंदोलन ने कन्नड़ भाषा और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए कई प्रमुख पहलुओं पर काम किया।
  1. मुख्य लाभ:
  • इस आंदोलन के माध्यम से दक्षिण भारतीय राज्यों ने अपनी भाषा, सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान को समर्थन दिया और अपनी सांस्कृतिक विशेषता को बनाए रखने का प्रयास किया।

सिक्किम का विलय / Merger of Sikkim

संक्षेप:

  • सिक्किम का विलय भारत में 1975 में हुआ था। इससे पहले, सिक्किम एक अलग रियासत थी जिसे छोटे राजा प्रम सिंह और उसके आगे के राजाओं ने शासित किया था। लेकिन बढ़ती भारतीय सांस्कृतिक और राजनीतिक दबाव के कारण, सिक्किम को भारत में शामिल कर लिया गया।

प्रमुख कारण:

  1. राजनीतिक दबाव:
  • सिक्किम में बढ़ते भारतीय राजनीतिक दबाव के चलते इसका विलय हुआ। इसमें सिक्किम के निवासियों के बीच में हुई सामरिक और राजनीतिक टकराव का भी एक कारण था।
  1. लोगों का समर्थन:
  • सिक्किम के बहुत बड़े हिस्से के लोग भारत में विलय का समर्थन कर रहे थे। इसमें राजा प्रम सिंह की समर्थन न करने का एक दृष्टिकोण भी शामिल था।

विलय के बाद:

  • सिक्किम का विलय भारत में होने के बाद, यह एक भारतीय राज्य बन गया है। यहां की संरचना, सांस्कृतिक और भौगोलिक विशेषताएं भारतीय संस्कृति में शामिल हैं। सिक्किम एक सुंदर और ऐतिहासिक स्थान है जो भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित है।

गोवा मुक्ति / Goa Liberation

संक्षेप:

  • गोवा मुक्ति अंधोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था जो 1961 में हुआ। इसमें पोर्चुगीज के शासन के खिलाफ गोवा के निवासियों की उत्कृष्ट योजना और अन्य तत्वों का समर्थन शामिल था।

प्रमुख कारण:

  1. पोर्चुगीज के शासन का विरोध:
  • गोवा में दीर्घकालिक पोर्चुगीज शासन के चलते वहां के निवासी उनके शासन से असंतुष्ट थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह विरोध और भी बढ़ गया।
  1. गोवा के निवासियों की उत्कृष्ट योजना:
  • गोवा के निवासियों ने भी अपने राज्य को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उत्कृष्ट योजना बनाई। इसमें भारत सरकार ने भी उनका समर्थन किया।
  1. अंतरराष्ट्रीय दबाव:
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी गोवा के बारे में चर्चा हुई और अनेक देशों ने पोर्चुगीज सरकार से गोवा को छोड़ने की अपील की।

गोवा मुक्ति के बाद:

  • 1961 में भारतीय सेना ने गोवा पर आक्रमण किया और इसे अपना लिया। इससे पहले गोवा पोर्चुगीज भारतीय सुरक्षा दलों की नजर में था। इसके बाद, गोवा एक भारतीय राज्य बन गया है और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल बना है।

आजादी के बाद से अब तक उभरी क्षेत्रीय आकांक्षाओं के सबक / Lessons from regional aspirations that have emerged since independence

  1. सांस्कृतिक और भाषाई आकांक्षाएं:
  • स्वतंत्रता के बाद भी विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक और भाषाई आकांक्षाएं उभरी हैं। इनमें समृद्धि, संरक्षण, और सम्मान की भावना शामिल है।
  1. राजनीतिक और राष्ट्रीय आकांक्षाएं:
  • राजनीतिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ क्षेत्रों में आकांक्षाएं उभरी हैं, जो अधिक स्वायत्तता या अधिक राजनीतिक सामरिकता की मांग करती हैं।
  1. अर्थव्यवस्था और सामाजिक आकांक्षाएं:
  • विभिन्न क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था और सामाजिक आकांक्षाएं बनी हैं जो अधिक समृद्धि, रोजगार, और सामाजिक समरसता की मांग करती हैं।
  1. विकास और असमानता की आकांक्षाएं:
  • कुछ क्षेत्रों में विकास और असमानता की मुद्दे उभरे हैं, जो एक समृद्धि से भरपूर और समरस समाज की दिशा में कदम उठाना चाहते हैं।
  1. पर्यावरण और स्वच्छता की आकांक्षाएं:
  • कुछ क्षेत्रों में पर्यावरण और स्वच्छता की महत्वपूर्ण आकांक्षाएं उभरी हैं, जो हरित क्रांति, प्रदूषण कमी, और साफ जीवन की मांग करती हैं।

इन आकांक्षाओं से जुड़े मुख्य प्रमुख उपाय:

  • सभी क्षेत्रों में सामंजस्य, सहयोग, और समरसता की भावना को मजबूती से बनाए रखना।
  • सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को समर्थन करना और विभिन्न समृद्धि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना।
  • राजनीतिक और राष्ट्रीय स्तर पर सही राजनीतिक नीतियों को अपनाना और सामाजिक समरसता की दिशा में काम करना।
  • अर्थव्यवस्था, सामाजिक न्याय, और अधिक समृद्धि के लिए उचित नीतियों की अपनाना।
  • पर्यावरण और स्वच्छता के मुद्दों पर ध्यान देकर समर्थन करना और उन्हें बढ़ावा देना।

आशा करते है इस पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान: क्षेत्रीय आकांक्षाये में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट कक्षा 12 राजनीति विज्ञान : क्षेत्रीय आकांक्षाये पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12

Leave a Comment

Free Notes PDF | Quiz | Join टेलीग्राम
20seconds

Please wait...