9 class Science Chapter 6 ऊत्तक Notes In Hindi PDF
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9th Class Science Chapter 6 TISSUES Notes in Hindi | कक्षा 9 विज्ञान नोट्स हिंदी में उपलब्ध करा रहे हैं |Class 9 Vigyan Chapter 6 Uttak Notes PDF Hindi me Notes PDF 2023-24 New Syllabus ke anusar.
Class 9 Science Notes In Hindi || 9 class Science Notes Download
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Biology | विज्ञान |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | ऊत्तक |
Category | Class 9 Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
आप पढ़ रहे है – 9th Science Chapter 6 Notes PDF Download in Hindi
💠 Class 09 विज्ञान 💠
📚 अध्याय = 6 📚
💠ऊत्तक💠
💠TTISSUES 💠
ऊतक
बहुकोशिकीय जीवों में सभी महत्वपूर्ण कार्य कोशिकाओं के विभिन्न समूहों द्वारा की जाती है।
परिभाषा :- कोशिकाओं का विशेष समूह जो सरंचनात्मक कार्यात्मक व उत्पति में समान होते है, ऊतक कहलाते हैं।
पादप व जन्तु ऊत्तक में अन्तर
पादप ऊत्तक | जन्तु ऊत्तक |
स्थिर | गतिमान |
वृद्धि सीमित भाग में | वृद्धि सभी भागों में |
वृद्धि जीवन पर्यन्त | वृद्धि निश्चित अवधि तक |
विशिष्ट अंग अनुपश्चित | विशिष्ट अंग उपस्थित |
पादप ऊत्तक के प्रकार
विभज्योत्तक :-
आप पढ़ रहे है – ऊतक 9 वीं कक्षा नोट्स PDF
पौधों में वृद्धि कुछ निश्चित क्षेत्रों में ही होती है। ऐसा विभाजित ऊत्तकों के उन भागों में पाए जाने के कारण होता है। ऐसे ऊत्तकों को विभज्योत्तक भी कहा जाता है। तने व जड़ो के शीर्ष और कैम्बियम स्थिति के आधार पर®
विभज्योत्तक
↓
विभाज्य → Cells Livide
→ कोशिका भित्ति पतली → प्लाज्मा सघन
→ रिक्तिका का अभाव → अन्तर कोशिकीय स्थल
1. शीर्षस्थ विभज्योत्तक → शीर्षस्थ विभेद तने व जड़ के शीर्ष पर स्थित होता है । उनकी लम्बाई में वृद्धि करता है।
2. पार्श्वीय विभज्योत्तक → तने व जड़ की परिधि में स्थित होता है और उनकी मोटाई में वृद्धि करता है।
3. अंतर्विष्ट विभज्योत्तक → पत्तियों के आधार या टहनियों के पर्व के दोनों और स्थित होता है । यह भागों की वृद्धि करता है।
विभज्योत्तक ऊत्तक की विशेषताएँ →
1. सेलुलोज की बनी कोशिका भित्ति होती है ।
2. कोशिकाओं के बीच में स्थान अनुपस्थित, सटकर जुड़ी कोशिकाएँ होती है।
3. कोशिकाएँ गोल, अंडाकार या आयताकार होती है।
4. कोशिका द्रव्य सघन, काफी मात्रा में होता है।
5. नाभिक एक व बडा होता है।
6. संचित भोजन अनुपस्थित होता है।
आप पढ़ रहे है – Notes of Class 9th: Ch 6 ऊतक विज्ञान
स्थायी ऊतक →
ये उन विभज्योतकी ऊतक से उत्पन्न होते है जो कि लगातार विभाजित होकर विभाजन की क्षमता खो देते हैं।
इस प्रकार एक विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायी रूप और आकार लेने की क्रिया को विभेदीकरण कहते है।
इनका आकार, आकृति व मोटाई निश्चित होती है । ये जीवित या मृत दोनों हो सकते हैं। स्थायी ऊतक की कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में रिक्तिकाएँ होती है।
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एपीडर्मिस → पौधे के सभी भाग जैसे पत्तियाँ, फूल, जड़ व तने की सबसे बाहरी पतर एपिडर्मिस कहलाती है। जो क्यूटिकल से ढकी होती है।
क्यूटिकल एक जल सह मोम के समान पदार्थ होता है, जो कि एपिडर्मिस कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित किया जाता है। अधिकत्तर पौधों में एपीडर्मिस के साथ-साथ सूक्ष्म छिद्र स्टोमेटा पाए जाते हैं।
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कार्य →
1. पौधों को सुरक्षा प्रदान करना
2. वाष्पोत्सर्जन को रोकती है जिससे पौधा झूलसने से बच जाता है।
3. स्टोमेटा द्वारा गैसों के आदान–प्रदान में सहायता व वाष्पोत्सर्जन ।
संभरण ऊत्तक
ये तीन प्रकार के होते हैं: –
1. पैरेन्काइमा
2. कोलेन्काइमा
3. स्कलेरेन्काइमा
पैरेनकाइमा (मृदुत्तक) → कोशिकाओं की कुछ परतें ऊत्तक की आधारीय पैकिंग का निर्माण करती है। इन्हें पैरेन्काइमा ऊत्तक कहते हैं।
- यह पत्तली कोशिका भित्ति वाली सरल कोशिकाओं का बना होता है।
- यह एक प्रकार का स्थायी ऊत्तक है।
- ये कोशिकाँए जीवित और प्राय बन्धन मुक्त होती है।
- इस प्रकार के ऊत्तक की कोशिकाओं के मध्य अधिक रिक्त स्थान होता है।
- यह ऊत्तक पौधे को यांत्रिक सहायता प्रदान करता है। और भोजन का भण्डारण करता है।
- कुछ पैरेन्काइमा ऊत्तकों में क्लोरोफिल पाया जाता है। जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। इन ऊत्तकों को क्लोरेन्काइमा (हरित लवक) कहते है।
- जलीय पौधों में पैरेन्काइमा की कोशिकाओं के मध्य बड़ी वायु गुहिकाएँ होती है। इसलिए इस पैरेन्काइमा को ऐरेन्काइमा कहते है।
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कॉलेन्काइमा (स्थूल कोणोत्तक)→
- पौधों में लचीलापन होता है।
- पोधों की पत्तियों व तनों में पाया जाता है।
- यह पौधों को यान्त्रिक सहारा प्रदान करती है।
- इस ऊत्तक की कोशिकाएँ जीवित, लम्बी और अनियमित ढंग से कौनों पर मोटी होती है।
स्कलेरेन्काइमा (दृढोत्तक) →
- यह पौधों को कठोर एवं मजबूत बनाना है।
- इस ऊत्तक की कोशिकाएँ मृत होती है।
- ये लम्बी और पत्तली होती है।
- इस ऊत्तक की भित्ति लिग्निन के कारण मोटी होती है।
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लिग्निन→
- लिग्निन कोशिकाओं को दृढ़ बनाता है यह ऊत्तक तने में संवहन बंडल के समीप, पत्तियों की शिराओं में तथा बीजों और फलों के कठोर छिलके में उपस्थित होता है तथा पौधों के भागों को मजबूती प्रदान करता है।
पैरेन्काइमा | कोलेन्काइमा | स्कलेरेन्काइमा | |
→ → → | पत्तली कोशिका भित्ति अन्त कोशिकीय स्थान उप.अन्त: कोशिकीय स्थान अनु. भोजन एवं जल का संग्रहण | कोणों पर मोटी अनु. लचीलापन प्रदान करती है ↓ [ क्लोरोफिल के कारण शर्करा व स्टार्च का निर्माण ] | पूरी मोटी अनु. अन्त: कोशिकीय स्थान अनु. यात्रिका सहारा ↓ [ कठोर एवं मजबूत बनाता ] |
जटिल ऊतक
वह ऊत्तक जो दो या दो से अधिक कोशिकाओं के समूह से मिलकर बना होता है। ये सभी एक साथ मिलकर एक इकाई की तरह कार्य करते है।
संरचना → जटिल
जाइलम तथा फ्लोएम को संवहन ऊत्तक भी कहते है। ये मिलकर संवहन बण्डल का निर्माण करते है।
जायलम →
a. वाहिनिका → काष्ठीय कोशिका भित्ति व एकल कोशिका लम्बी नली के रूप में , मृत्त
b. वाहिका → एक – दूसरे से जुड़ी लम्बी नलिका, जल व खनिज लवण का संवहन
c. जायलम पैरेन्काइमा→ पार्श्वीय संवहन में सहायता, भोजन को संचित करना ।
d. जायलम फाइबर → दृढता प्रदान ।
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फ्लोएम→
a. चालनी कोशिकाएँ → नलिकाकार, छिद्र भित्ति अन्य चालनी नलिकाओं के संपर्क में ।
b. सहचरी कोशिकाएँ → सघन, जीवद्रव्य, केन्द्रक, विशेष प्रकार का पैरेन्काइमा संरचना
c. फ्लोएम पैरेन्काइमा → भोजन का संवहन, धीमी गति से
d. फ्लोएम फाइबर (रेशा) → दृढता
जन्तु ऊत्तक
साँस लेते समय हम ऑक्सीजन लेते हें । यह फेफड़ों के द्वारा अवशोषित की जाती है तथा रक्त के साथ शरीर की सभी कोशिकाओं की जाती है तथा रक्त के साथ शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँच जाती है। रक्त् और पेशियाँ दोनों ही हमारे शरीर में पाये जाने वाले ऊत्तकों के उदाहरण है। रक्त अपने साथ विभिन्न पदार्थों (जैसे :- भोजन और ऑक्सीजन) को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है तथा शरीर के सभी भागों से अवशिष्ट पदार्थों को एकत्र कर यकृत तथा वृक्क तक उत्सर्जन के लिए पहुँचाता है।
कार्य के आधार पर जन्तु ऊत्तक निम्न प्रकार के होते हैं- (i) एपीथीलियमी ऊत्तक (ii) संयोजी ऊत्तक (iii) पेशीय ऊत्तक (iv) तन्त्रिका ऊत्तक ।
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एपीथीलियमी ऊत्तक :-
एपीथीलियमी ऊत्तक जन्तु के शरीर को ढकने या बाहरी रक्षा प्रदान करने का कार्य करते हैं। एपीथीलियमी ऊत्तक शरीर के अन्दर स्थिर बहुत से अंगों और गुहिकाओं को ढके रहते हैं।
त्वचा, मुँह, आाहारनली, रक्त वाहिनी नली का अस्तर, फेफड़ों की कूपिका, वृक्कीय नली आदि सभी एपीथीलियमी ऊत्तक से बने होते हैं। ये कोशिकाएँ एक -दूसरे से सटी होती है और ये एक अनवरत परत का निर्माण करती है तथा शरीर के मुख्य अंगों को सहारा देती है। एपीथीलियमी संरचनाएँ कार्य के आधार पर विभिन्न प्रकार की होती है।
सरल शल्की एपीथलियम-
1. इसकी कोशिकाएँ महीन एवं चपटी होती हैं।
2. शरीर का रक्षात्मक कवच (त्वचा) इन्हीं शल्की एपीथीलियम से बनी होती हैं।
3. आहारनली तथा मुँह का अस्तर शल्की एपीथीलियम से ढका होता है । त्वचा की एपीथीलियमी कोशिकाएँ इसको कटने तथा फटने से बचाने के लिए कई स्तरों में व्यवस्थित रहती हैं, इसलिए इस एपीथीलियम को स्तरित शल्की एपीथीलियम कहते है।
स्तंभाकार एपीथीलियम- यह आँत के भीतरी अस्तर में पायी जाती है, जहाँ अवशोषण और स्राव का कार्य होता है। यह अवरोध को पार करने में सहायता प्रदान करती है।
पक्ष्माभी स्तंभाकार एपीथीलियम– श्वास नली में स्तंभाकार एपीथीलियमी ऊतक में पक्ष्माभ पाये जाते हैं। ये पक्ष्माभ गति करते हैं जिससे श्लेष्मा (म्यूकस) को आगे स्थानान्तरित करके साफ करने में सहायता मिलती है।
घनाकार एपीथीलियम – इसकी कोशिकाएँ घन के आकार की होती है। यह वृक्कीय नली तथा लारग्रन्थियों की नली के अस्तर का निर्माण करती है तथा उसे यान्त्रिक सहारा प्रदान करती है।, कभी-कभी एपीथीलियमी ऊत्तक का कुछ भाग अन्दर की और मुड़कर बहुकोशिक ग्रन्थि का निर्माण करता है, तब यह ग्रन्थिल एपीथीलियम कहलाता है।
संयोजी ऊत्तक :- इस ऊत्तक की कोशिकाएँ आपस में कम जुड़ी होती हैं और अंतरकोशिकीय आधात्री में धँसी रहती है । यह आधात्री जैली की तरह तरल, सघन या कठोर हो सकती है। आधात्री की प्रकृति विशिष्ट संयोजी ऊत्तक के कार्य के अनुसार बदलती है।
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रक्त :-
- रक्त एक तरल संयोजी ऊत्तक है।
- रक्त के तरल आधात्री भाग को प्लाज्मा कहते है।
- प्लाज्मा में लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC), श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC) तथा प्लेटलेट्स निलम्बित होते हैं। इसमें प्रोटीन, नमक व हार्मोन भी होते है।
- रक्त गैसों , शरीर के पचे हुए भोजन, हॉर्मोन और उत्सर्जी पदार्थों का शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में संवहन करता है।
अस्थि:-
- यह कंकाल संयोजी ऊत्तक है।
- यह पंजर का निर्माण कर शरीर को निश्चित आकार प्रदान करता है।
- माँसपेशियों को सहारा देता है और शरीर के मुख्य अंगों को सहारा देता है।
- यह ऊत्तक कठोर और मजबूत होता है ।
- अस्थि कोशिकाएँ कठोर आधात्री में धँसी होती है जो कैल्सियम तथा फॉस्फोरस से बनी होती है।
दो अस्थियाँ परस्पर एक अन्य संयोजी ऊत्तक :- स्नायु से जुड़ी होती है। यह ऊत्तक बहुत लचीला एवं मजबूत होता है। स्नायु में बहुत कम आधात्री होती है।
एक अन्य प्रकार का संयोजी ऊत्तक कन्डरा है। जो माँसपेशियों को अस्थियों से जोड़ता है। यह मजबूत तथा सीमित लचीलेपन वाले रेशेदार ऊत्तक होते है।
उपास्थि :-
- यह एक कंकाल संयोजी ऊत्तक है।
- इसमें कोशिकाओं के बीच पर्यापत स्थान होता है।
- इसकी ठोस आधानी प्रोटीन और शर्करा की बनी होती है।
- यह अस्थियों के जोड़ों को चिकना बनाती है।
- यह नाक, काँच कंठ और श्वास नली में भी उपस्थित होती है।
ऐरियोलर (Aerolar) :-
- संयोजी ऊत्तक त्वचा और माँसपेशियों के बीच रक्त नलिका के चारों और तथा नसों ओर अस्थि मज्जा में पाया जाता है।
- यह अंगों के भीतर की खाली जगह को भरता है।
- आन्तरिक अंगों को सहारा देता है और ऊत्तकों की मरम्मत में सहायता करता है।
वसामय ऊत्तक :-
- त्वचा के नीचे आन्तरिक अंगों के बीच पाया जाता है और वसा के संग्रह का कार्य करता है।
- इस ऊत्तक की कोशिकाएँ वसा की गोलिकाओं से भरी होती है।
- यह वसा संग्रहित होने के कारण ऊष्मीय कुचालक का कार्य भी करता है।
पेशीय ऊत्तक :-
- पेशीय ऊत्तक लम्बी कोशिकाओं का बना होता है जिसे पेशीय रेशा भी कहते हैं।
- यह शरीर को गति प्रदान करने में सहायक होता है।
- पेशियों में संकुचनशील प्रोटीन होती है।
- इसके संकुचन एवं प्रसार के कारण अंगों में गति होती है।
ये तीन प्रकार की होती हैं-
1. रैखित या ऐच्छिक पेशी :-
- ये हमारी इच्छानुसार कार्य करती है इन्हें ऐच्छिक पेशी तथा कंकाल पेशी भी कहते हैं।
- ये हडि्डयों से जुड़ी रहती है तथा शारीरिक गति में सहायक होती है ये पेशियाँ हल्के तथा गहरे रंगों में एक के बाद एक रेखाओं की तरह प्रतीत होती है इसलिए इन्हें रेखित पेशी भी कहते हैं।
- इसकी कोशिकाएँ लम्बी, बेलनाकार, शाखारहित और बहुकेन्द्रकीय होती हैं।
2. अरैखित या अनैच्छिक पेशी :-
- इनकी गतिकी को हम इच्छानुसार प्रारम्भ या बन्द नहीं कर सकते हैं।
- ये खोखले अंगों में पायी जाती है।
- आहारनली में भोजन का प्रवाह या रक्त नलिका का प्रसार या संकुचन अनैच्छिक पेशियों द्वारा होता है। चिकनी पेशियाँ या अनैच्छिक पेशियाँ इनकी गति को नियन्त्रित करती हैं।
- ये आँख की पलक, मूत्रवाहिनी और फेफड़ों की श्वसनी में भी पायी जाती है।
- ये कोशिकाएँ लम्बी और दोनों सिरों पर नुकीली (तर्कुरूपी) होती है।
- ये एक केन्द्रकीय होती है।
- इन्हें अरैखित पेशी भी कहा जाता है।
3. कार्डियक (हृदयक) पेशी :-
- काडिर्यक (हृदयक) पेशियाँ जीवन भर लयबद्ध होकर प्रसार एवं संकुचन करती हैं।
- हृदय की पेशी कोशिकाएँ बेलनाकार शाखाओं वाली और एक केन्द्रकीय होती है।
लक्षण | रैखित या ऐच्छिक पेशी | अरैखित या अनैच्छिक या चिकनी पेशी | काडिर्यक या हृदयक पेशी |
आकार | बेलनाकार, अशाखित | लंबी और शंक्वाकार | बेलनाकार व शाखित |
केंद्रकों की संख्या | बहुनाभिकीय | एक | एक |
केंद्रकों की स्थिति | हाथ, पैर में अस्थितयों से जुड़ी हुई | आहार नली, आँख की नलक, मूत्रवाहिनी, फेफड़ों की श्वसनी रक्त-वाहिनियाँ | हृदय की भित्ति |
तन्त्रिका ऊत्तक :-
- तन्त्रिका ऊत्तक की कोशिकाएँ बहुत शीघ्र उत्तेजित होती हैं और इस उत्तेजना को बहुत शीघ्र ही पूरे शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती हैं।
- मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा तन्त्रिकाएँ सभी तन्त्रिका ऊत्तक की बनी होती हैं।
- तन्त्रिका ऊत्तक की कोशिकाओं को तन्त्रिका कोशिका या न्यूरॉन (Neuron) कहते हैं।
- न्यूरॉन में केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य होते हैं।
- इससे लम्बे पतले बालों जैसी शाखाएँ निकली होती है। प्राय: प्रत्येक न्यूरॉन में एक लम्बा प्रवर्ध होता है, जिसे एक्सॉन कहते हैं तथा बहुत सारे छोटी शाखा वाले प्रवर्ध – डेड्राइट्स होते है।
- एक तन्त्रिका कोशिका एक मीटर तक लम्बी हो सकती है। बहुत सारे तन्त्रिका रेशे संयोजी ऊत्तक के द्वारा एक साथ मिलकर एक तन्त्रिका का निर्माण करते हैं।
तन्त्रिका ऊत्तक के कार्य :-
- तन्त्रिका का स्पंदन हमें इच्छानुसार अपनी पेशियाँ की गति करने में सहायता करता है।
- तन्त्रिका तथा पेशीय ऊत्तकों का कार्यात्मक संयोजन उत्तेजना के अनुसार जन्तुओं को तेज गति प्रदान करता है।
NCERT Class 9 Science Notes in Hindi
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