#NCERT Class 10 Geography: वन एवं वन्य जीव संसाधन Notes In Hindi PDF

भारत के वन और वन्यजीवों को गहराई से समझें! इस विस्तृत हिंदी PDF के साथ NCERT भूगोल के ‘वन एवं वन्य जीव संसाधन‘ पाठ को आसानी से सीखें। वन प्रकार, संरक्षण के तरीके, जैव विविधता आदि की जानकारी पाएं। अभी निःशुल्क डाउनलोड करें!

10 Class भूगोल Chapter 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन Notes in hindi

TextbookNCERT
ClassClass 10
SubjectGeography
ChapterChapter 2
Chapter Nameवन एवं वन्य जीव संसाधन
CategoryClass 10 Geography Notes in Hindi
MediumHindi

सामाजिक विज्ञान (भूगोल) अध्याय-2: वन एवं वन्य जीव संसाधन

यह अध्याय CBSE,RBSE,UP Board(UPMSP),MP Board, Bihar Board(BSEB),Haryana Board(BSEH), UK Board(UBSE),बोर्ड परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और यह उन छात्रों के लिए भी उपयोगी है जो प्रतियोगी परीक्षाओं(UPSC) की तैयारी कर रहे हैं।

जैव विविधता / Biodiversity

जैव विविधता एक बहुत महत्वपूर्ण अवधारणा है जो आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए तथा परस्पर निर्भर पादपों और जंतुओं के विविध प्रकार को व्यक्त करती है। इसमें प्राणी, पौधों, और अन्य जीवों के संगठन, जीवन प्रकार, और जीवों के बीच विभिन्न संघर्षों और संयोगों की विविधता शामिल है।

जैव विविधता का महत्व:

  • प्राकृतिक संतुलन: जैव विविधता प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है और परिस्थितिकी सेवाओं को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • औद्योगिक योग्यता: विविधता अनेक प्रकार के जीवों के उपयोग के लिए अद्वितीय औद्योगिक संसाधनों का स्रोत है।
  • चिकित्सा और विज्ञान: जैव विविधता से विभिन्न चिकित्सा, उपचार, और विज्ञानीय अनुसंधानों के लिए महत्वपूर्ण जीवाणु, पौधे और अन्य संसाधन प्राप्त होते हैं।
  • आर्थिक लाभ: जैव विविधता से संबंधित विविध उत्पादों की आपूर्ति में वृद्धि करने से विभिन्न उद्योगों को आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।

प्राकृतिक वनस्पति / Natural vegetation

प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ है ऐसे पादप समूह जो स्वयं उगते हैं और प्राकृतिक रूप से पनपते हैं। ये वन, घास, भूमि आदि में पाए जाते हैं। इन्हें अक्षत वनस्पति के रूप में भी जाना जाता है।

प्राकृतिक वनस्पति के प्रमुख प्रकार:

  • वन (वृक्षारोहणी): ये उच्च और घने पेड़-पौधे होते हैं जो एक साथ लगे होते हैं और एक विशेष क्षेत्र में स्थित होते हैं। वन जीवों के लिए आवास और भोजन का स्रोत होते हैं।
  • घास (क्षेत्रीय वनस्पति): ये निचले वन के अंतर्गत आते हैं और प्रदेश के उपभोग के लिए आवश्यक होते हैं। घास की प्रमुख विशेषता यह होती है कि इसे बारिश के दिन भी पानी की कमी में सहनशील बनाए रखते हैं।
  • अक्षत वनस्पति (अक्षत वनस्पति): इनमें जमीन पर उगे हुए पौधे, जैसे कि घास, फूल, लकड़ी, अदरक, गेंदे, और धान शामिल होते हैं। इन्हें भारतीय कृषि में महत्वपूर्ण रूप से उपयोग किया जाता है।

स्वदेशी वनस्पति प्रजातियां

Indigenous plant species

स्वदेशी वनस्पति प्रजातियां वे प्राकृतिक वनस्पतियाँ हैं जो भारत के स्थानीय पारिस्थितिकीय तथा जलवायु शर्तों में प्राकृतिक रूप से विकसित होती हैं। इन्हें “स्वदेशी” वनस्पति प्रजातियाँ कहा जाता है क्योंकि ये भारतीय प्राकृतिक वनस्पतियों की प्रमुख प्रजातियाँ हैं।

कुछ प्रमुख स्वदेशी वनस्पति प्रजातियाँ निम्नलिखित हैं:

  • नीम (Azadirachta indica): नीम एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जो भारत में पाया जाता है। इसके पत्ते, फल और बीज औषधीय उपयोग में आते हैं।
  • हरी मिर्च (Capsicum annuum): हरी मिर्च भारत में विभिन्न प्रकारों में पायी जाती है और खाद्य वस्त्रों को स्वादिष्ट बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।
  • हल्दी (Curcuma longa): हल्दी एक औषधीय पौधा है जो भारतीय रसोई में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके रस में कुछ शांतिप्रिय गुण होते हैं जो विभिन्न रोगों के इलाज में प्रयोग किया जाता है।
  • ब्राह्मी (Bacopa monnieri): ब्राह्मी एक औषधीय पौधा है जिसका उपयोग मेमोरी बढ़ाने, तंत्रिका संतुलन में सुधार करने, और मानसिक समय ताकत को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

पारितंत्र (पारिस्थितिकी तंत्र) / Ecosystem

पारितंत्र एक शब्द है जो पर्यावरण विज्ञान में प्रयुक्त होता है और यह दर्शाता है कि जीवों और उनके आसपास के वातावरण के बीच कैसे एक संतुलित संबंध होता है। इसे ‘पारिस्थितिकी तंत्र’ भी कहा जाता है।

पारितंत्र के महत्वपूर्ण तत्व निम्नलिखित हैं:

  • जीवों की संख्या और प्रकार: विभिन्न प्रकार के जीवों की संख्या और प्रकार पर्यावरणीय संतुलन को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, एक क्षेत्र में वन्यजीवन की अधिकता होने से वहाँ की पारिस्थितिकी संतुलन को अच्छा बनाए रखा जा सकता है।
  • पोषण संबंधित तंत्र: पोषण संबंधित तंत्र में पौधों और जानवरों के बीच का संबंध शामिल है। उदाहरण के लिए, प्राणियों की खाद्य श्रृंखला पर पौधों का प्रभाव होता है और इसी तरह पौधों की वृद्धि पर प्राणियों का प्रभाव होता है।
  • मानव का योगदान: मानव भी पारितंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी गतिविधियों, उत्पादन प्रक्रियाओं, और उपयोग की वजह से प्राकृतिक परिस्थितियों पर प्रभाव पड़ता है।
पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) की परिभाषा -

वन्यजीवन / The wildlife

वन्यजीवन एक महत्वपूर्ण शब्द है जो प्राकृतिक पर्यावरण में रहने वाले जीवों को संदर्भित करता है। ये वनों, जंगलों, घास के मैदानों, और अन्य प्राकृतिक स्थलों में जीने वाले प्राणियों को सम्मिलित करता है। ये जीवन रूपी संगठन वन्य या जंगली के रूप में भी जाना जाता है।

वन्यजीवन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये जीवन अंतरिक्ष की समाप्ति को रोकने और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। ये प्राकृतिक वनस्पतियों और प्राणियों का संपूर्ण संगठन जीवन के लिए आवश्यक होता है और उनकी संरक्षा के लिए अधिक सावधानी बरती जानी चाहिए।

वन्यजीवन की संरक्षा के लिए कई प्रकार के कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना, क्षेत्रों की संरक्षण, और अवैध शिकार और वनों की अतिक्रमण के खिलाफ कानूनी कार्रवाई।

फ्लोरा और फौना / Flora and Fauna

फ्लोरा (पादपसंग्रह):

  • एक विशिष्ट क्षेत्र या काल में पाए जाने वाले सभी पादप समूहों को फ्लोरा कहा जाता है।
  • यह शब्द प्राकृतिक वनस्पतियों को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है, जिनमें पेड़, घास, झाड़ीदार वृक्ष, फूल, गाड़ी, कवक, लाइचेंस, और अन्य पौधे शामिल होते हैं।
  • फ्लोरा का अध्ययन उन सभी पादपों को समाहित करता है जो एक विशेष क्षेत्र में उपलब्ध होते हैं, और इससे वनस्पतिकी संरक्षण और प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

फौना (जीवसंग्रह):

  • एक निश्चित क्षेत्र या काल में पाए जाने वाले सभी जंतु समूहों को फौना कहा जाता है।
  • फौना शब्द जन्तुओं के विभिन्न प्रजातियों को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है, जिसमें स्तनधारी, अंड़धारी, पंखधारी, रेखाधारी, अमोबा, जीवाणु, कीट, मछली, कीड़े, जड़ीबूटियाँ, और अन्य जीवों के समूह शामिल होते हैं।
  • फौना के अध्ययन से विभिन्न जंतुओं की प्रकृति, संरचना, और उनके संग्रहण स्थल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, जिससे जंतुओं के संरक्षण और प्रबंधन में मदद मिलती है।

भारत में वनस्पतिजात और प्राणिजात / Flora and fauna in India

वनस्पतिजात (फ्लोरा):

  • भारत अपने वनस्पति जात (फ्लोरा) में अत्यधिक समृद्ध है।
  • यहां लगभग 47,000 पादप प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो कि स्थानिक (स्वदेशी) हैं।
  • इसके साथ ही, लगभग 15,000 पुष्प प्रजातियाँ भी भारतीय भूमि पर पाई जाती हैं।
  • भारत के वनस्पतिजात का अध्ययन वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान करता है।

प्राणिजात (फौना):

  • भारत में प्राणिजात (फौना) भी बहुत अधिक समृद्ध है।
  • यहां लगभग 81,000 से अधिक प्राणियों या जंतु प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • भारत में पक्षियों की संख्या 1200 से अधिक है, जो इसे विभिन्न प्रकार के अंकगणित और बहुरंगीता के लिए जाना जाता है।
  • साथ ही, मछलियों की संख्या भी 2500 से अधिक है, जो कि भारत के जलीय प्राणी संयंत्रों की विविधता को दर्शाता है।
  • भारत में लगभग 60,000 कीट-पतंग प्रजातियाँ भी हैं, जो वन्यजीवन और प्राकृतिक परिस्थितियों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

भारत मे लुप्तप्राय प्रजातियाँ जो नाजुक अवस्था में हैं

Endangered species in India which are in critical condition

चीता (Leopard):

  • चीता भारत में लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है।
  • इसकी संख्या में कमी के कारण, यह अब धीमी गति से गायब हो रहा है।

गुलाबी सिर वाली बत्तख (Pink-headed Duck):

  • यह एक और लुप्तप्राय प्रजाति है जो भारत में पाई जाती थी।
  • इसकी बहुत कम संख्या में पाई जाती थी, और अब यह समूचा नष्ट हो गया है।

पहाड़ी कोयल (Mountain Quail):

  • यह एक और लुप्तप्राय प्रजाति है जो कि पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती थी।
  • इसकी संख्या में गिरावट के कारण, यह अब बहुत ही कम संख्या में है और खतरे में है।

जंगली चित्तीदार उल्लू (Forest Owlet):

  • यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक और लुप्तप्राय प्रजाति है।
  • इसकी संख्या में गिरावट के कारण, यह अब अत्यंत खतरे में है।

मधुका इनसिगनिस (Mahua ki Jungle Species):

  • यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक और लुप्तप्राय प्रजाति है।
  • इसकी संख्या में तेजी से गिरावट के कारण, यह अब लुप्तप्राय हो गया है।

हुबरड़िया हेप्टान्यूरोन (Hubbardia Heptaneuron):

  • यह भी भारत में लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है, जो कि घास की प्रजाति है।
  • इसकी संख्या में गिरावट के कारण, यह अब अत्यंत नजदीकी समाप्ति के खतरे में है।

लुप्त होने का खतरा झेल रही प्रजातियाँ / Species facing danger of extinction

स्तनधारी प्राणियों की जातियाँ (Mammals):

  • 79 जातियाँ

पक्षियों की जातियाँ (Birds):

  • 44 जातियाँ

सरीसृपों की जातियाँ (Reptiles):

  • 15 जातियाँ

जलस्थलचर प्राणियों की जातियाँ (Aquatic Species):

  • 3 जातियाँ

पादप जातियाँ (Plant Species):

  • लगभग 1500 जातियाँ

ये सभी प्राणियाँ और पादप जातियाँ अपने प्राकृतिक आवास की हानि, अपरिहार्य परिस्थितियों का सामना, और मानव की सांसद गतिविधियों के परिणामस्वरूप लुप्त होने का खतरा झेल रही हैं। इसके संबंध में जागरूकता और संरक्षण की आवश्यकता है।

प्रजातियों का वर्गीकरण / Classification of species

अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार इनको निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:-

  1. सामान्य जातियाँ:- ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है, जैसे:- पशु, साल, चीड़ और कृन्तक (रोडेंट्स) इत्यादि।
  1. लुप्त जातियाँ:- ये वे जातियाँ हैं जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गई है। जैसे:– एशियाई चीता, गुलाबी सिरवाली।
  1. सुभेध जातियाँ:- ये वे जातियाँ हैं, जिनकी संख्या घनी रही है। जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या यदि इनकी संख्या पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परिस्थितियों नहीं बदली जाती और इनकी संख्या घटती रहती है तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में शामिल हो जाएगी। जैसे:- नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा नदी आदि।
  1. संकटग्रस्त जातियाँ:- ये वे जातियाँ है जिनके लुप्त होने का खतरा है। जिन विषम परिस्थितियों के कारण इनकी संख्या कम हुई है, यदि वे जारी रहती हैं तो इन जातियों का जीवित रहना कठिन है। जैसे:- काला हिरण, मगरमच्छ, संगाई आदि।
  1. दुर्लभ जातियाँ:- इन जातियों की संख्या बहुत कम या सुभेद्य हैं और यदि इनको प्रभावित करने वाली विषम परिस्थितियाँ नहीं परिवर्तित होती तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ सकती हैं।
  2. स्थानिक जातियाँ:- प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियाँ , निकोबारी कबूतर, अंडमानी जंगली सुअर और अरुणाचल के मिथुन इन जातियों के के उदाहरण हैं।

वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारण / Reasons for decline of flora and fauna

कृषि में विस्तार:

  • 1951 से 1980 के बीच, भारत में 262,00 वर्ग किमी से अधिक के वन क्षेत्र को कृषि भूमि में बदल दिया गया है।
  • जनजातीय क्षेत्रों में, विशेषकर पूर्वोत्तर और मध्य भारत में, स्थानांतरी (झूम) खेती और ‘स्लैश और बर्न’ खेती के कारण वनों की कटाई या निम्नीकरण हुआ है।

संवर्धन वृक्षारोपण:

  • भारत में कई भागों में संवर्धन वृक्षारोपण किया गया है, ताकि कुछ चुनिंदा प्रजातियों को बढ़ावा दिया जा सके।
  • इससे अन्य प्रजातियों का उन्मूलन हो गया है।

विकास परियोजनाएँ:

  • आजादी के बाद से बड़े पैमाने पर कई विकास परियोजनाओं को मूर्तरूप दिया गया है।
  • नदी घाटी परियोजनाओं के कारण, 5,000 वर्ग किमी से अधिक वनों का सफाया हो चुका है।

खनन:

  • खनन से कई क्षेत्रों में जैविक विविधता को भारी नुकसान पहुँचा है।
  • उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट का खनन।

संसाधनों का असमान बँटवारा:

  • अमीर और गरीबों के बीच संसाधनों का असमान बँटवारा होता है।
  • इससे अमीर लोग संसाधनों का दोहन करते हैं और पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।

हिमालयन यव / Himalayan Yava

हिमालयन यव, जिसे चीड़ की प्रकार के रूप में भी जाना जाता है, एक औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता है।

उपयोग:-

  • पेड़ की छाल, पत्तियों, टहनियों और जड़ों से टकसोल नामक औषधि निकाली जाती है।
  • कैंसर रोगों के उपचार के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

नुकसान:-

  • हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में यव के हजारों पेड़ सूख गए हैं।

कम होते संसाधनों के सामाजिक प्रभाव / Social effects of decreasing resources

महिलाओं पर बोझ:

  • संसाधनों की कमी से, ईंधन, चारा, पेयजल और अन्य मूलभूत सामग्रियों को इकट्ठा करने का बोझ महिलाओं पर अधिक पड़ता है।
  • इससे, महिलाएं अधिक काम करने के लिए प्रेरित होती हैं और उनकी स्वास्थ्य और अध्ययन में संकट होता है।

जीवन की कठिनाइयाँ:

  • कई गाँवों में, पीने का पानी लाने के लिए महिलाओं को लम्बी दूरी तक जाना पड़ता है, जिससे उनका समय और शारीरिक प्रयास जाते हैं।

प्राकृतिक विपदाएँ:

  • वनों के अनियंत्रित उन्मूलन से बाढ़, सूखा और अन्य प्राकृतिक विपदाएँ बढ़ जाती हैं।
  • ये प्राकृतिक आपदाएं गरीब और वंचित लोगों को और भी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, जो उनकी जीवनशैली और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है।

भारतीय वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972 / Indian Wildlife (Protection) Act 1972

1960 और 1970 के दशकों में पर्यावरण संरक्षकों ने वन्यजीवन की संरक्षा के लिए नए कानून की मांग की थी।

इसके प्रेरणादायक उदाहरणों के संदर्भ में, सरकार ने भारतीय वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972 को लागू किया।

उद्देश्य:-

  • प्रजातियों की सूची:

अधिनियम के अन्तर्गत संरक्षित प्रजातियों की एक राष्ट्रीय सूची तैयार की गई।

  • प्रतिबंध और संरक्षा:

अधिनियम ने बची हुई संकटग्रस्त प्रजातियों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दी।

वन्यजीवन के व्यापार पर नियंत्रण और रोक लगाया गया।

  • कानूनी सुरक्षा:

अधिनियम ने वन्यजीवन के आवास को कानूनी सुरक्षा प्रदान की।

  • उद्यान और पशुविहार:

कई केंद्रीय और राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव पशुविहार स्थापित किए।

  • प्रोजेक्ट टाइगर:

अधिनियम ने कुछ खास जानवरों की सुरक्षा के लिए प्रोजेक्ट टाइगर जैसे प्रोजेक्ट शुरू किए।

संरक्षण के लाभ / Benefits of conservation

पारिस्थितिकी विविधता का संरक्षण:

  • संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता को बचाया जा सकता है।
  • वन्यजीवन और जैव अभिवृद्धि के लिए संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मूलभूत संसाधनों का संरक्षण:

  • संरक्षण से हमारे जीवन के लिए जरूरी मूलभूत चीजों जैसे जल, हवा, मिट्टी, वन्यजीवन, और जैविक संसाधनों का संरक्षण होता है।

प्राकृतिक आपदा का सामना:

  • संरक्षण से वनों और प्राकृतिक परिस्थितियों का संरक्षण किया जा सकता है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने की क्षमता बढ़ती है।

वायु और जल प्रदूषण का कमी:

  • संरक्षण से वन्यजीवन और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जाता है, जिससे वायु और जल प्रदूषण की मात्रा कम होती है।

बाढ़ और सूखा के खिलाफ संरक्षण:

  • संरक्षण से वनों का संरक्षण किया जाता है, जिससे बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने की क्षमता बढ़ती है।

वन विभाग द्वारा वनों का वर्गीकरण / Classification of forests by Forest Department

  1. आरक्षित वन:- देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन घोषित किए गए हैं। जहाँ तक वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण की बात है, आरक्षित वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है।
  1. रक्षित वन:- वन विभाग के अनुसार देश के कुल वन क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा रक्षित है। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है।
  1. अवर्गीकृत वन:- अन्य सभी प्रकार के वन और बंजरभूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहे जाते हैं।

वन्य जीवन को होने वाले अविवेकी ह्यस पर नियंत्रण के उपाय / Measures to control unreasonable destruction of wild life

प्रभावी वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम:

  • सरकार द्वारा प्रभावी वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम का प्रावधान किया गया है। इसके तहत अविवेकी ह्यस की नियंत्रण की दिशा में कठोर कानूनी कदम उठाए जाते हैं।

जैव संरक्षण स्थल:

  • भारत सरकार ने लगभग चौदह जैव निचय (जैव संरक्षण स्थल) प्राणि – जात व पादप – जात हेतु बनाए हैं। इन स्थलों का उद्देश्य वन्य जीवन की संरक्षण और प्रदूषण को रोकना है।

वन्य जीवन संरक्षण परियोजनाएं:

  • भारत सरकार ने 1992 से वन्य जीवन के संरक्षण के लिए कई परियोजनाएं शुरू की हैं। इन परियोजनाओं के अंतर्गत वन्य जीवन की संरक्षण, संग्रहण, और उनके प्राकृतिक आवास के बचाव के उपाय अपनाए जाते हैं।

राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशुविहार:

  • भारत में 89 राष्ट्रीय उद्यान, 490 वन्य जीव अभयारण्य, और प्राणी उद्यान बनाए गए हैं। ये परियोजनाएं वन्य जीवन की संरक्षण और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

जनता की शिक्षा और सचेतता:

  • संरक्षण के लिए जनता को शिक्षित किया जाता है और उन्हें वन्य जीवन की महत्ता के प्रति सचेत किया जाता है। जनता को संरक्षण के लिए साझेदारी और सहयोग का माध्यम बनाया जाता है।

चिपको आन्दोलन / Chipko Movement

स्थान: चिपको आन्दोलन भारत के उत्तराखण्ड राज्य में चमोली जिले में सन 1970 में प्रारम्भ हुआ।

क्रम: यह आन्दोलन किसानों द्वारा वृक्षों की कटाई के खिलाफ आयोजित किया गया था।

प्रेरणा: आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीवन की रक्षा थी।

मुख्य बिंदुओं:

  • कटाई का विरोध: आन्दोलन के मुख्य बिंदु में से एक था वृक्षों की कटाई का विरोध करना।
  • पर्यावरण संरक्षण: यह आन्दोलन पर्यावरण संरक्षण के महत्व को उजागर करने का माध्यम बना।
  • अभियान: चिपको आन्दोलन ने पेड़ों को लगाने और उनकी रक्षा के लिए एक व्यापक अभियान चलाया।
  • संजीवनी योजना: इस आन्दोलन के तहत कई जगहों पर पेड़ों की रक्षा के लिए संजीवनी योजना कार्यान्वित की गई।

प्रभाव:

  • चिपको आन्दोलन ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व को सामाजिक मुद्दा बनाया।
  • इसने लोगों को अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक किया और उन्हें संवेदनशीलता की दिशा में प्रेरित किया।।

प्रोजेक्ट टाइगर / Project tiger

परिचय:

  • प्रोजेक्ट टाइगर 1973 में भारत सरकार द्वारा बाघों की संरक्षण के लिए शुरू किया गया था।

उद्देश्य:

  • इसका मुख्य उद्देश्य बाघों को विलुप्त होने से बचाना और उनकी संख्या में वृद्धि करना था।

कार्यक्रम:

  • प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघों के संरक्षण, उनके आवास की सुरक्षा, उनकी जगह की संरक्षा, उनके संगठन की संरक्षा, ताकि वे अपनी संख्या में वृद्धि कर सकें।

प्रभाव:

  • प्रोजेक्ट टाइगर ने बाघों की संख्या में सुधार किया और उनकी विलुप्त होने से बचाया।
  • यह कार्यक्रम बाघों के संरक्षण के लिए सामुदायिक सहयोग को भी बढ़ावा दिया।

आंकड़े:

  • बीसवीं सदी की शुरुआत में बाघों की कुल आबादी 55,000 थी, जो 1973 में घटकर 1,827 हो गई।

बाघ की आबादी के लिए खतरे / Threats to tiger population

व्यापार के लिए शिकार:

  • बाघों को अप्राकृतिक ढंग से शिकार किया जाता है ताकि उनके अंगों, चमड़े, दांतों और अन्य अंगों को व्यापार में इस्तेमाल किया जा सके।

सिमटता आवास:

  • बाघों के लिए सिमटता आवास एक महत्वपूर्ण समस्या है जो उनकी आबादी को कम करती है।
  • वन्यजीवन क्षेत्रों में वास करने वाले लोगों के विकास के लिए भूमि का अत्यधिक उपयोग और बदलाव भी इस समस्या को और भी गंभीर बनाता है।

भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की घटती संख्या:

  • जंगली उपजातियों की कटाई और उनके लिए हटाने का प्रयास बाघों के लिए भोजन के स्रोतों को कम करता है।
  • यह उन्हें आवश्यक भोजन की कमी का सामना कराता है और उनकी आबादी को प्रभावित करता है।

महत्वपूर्ण टाइगर रिजर्व / Important Tiger Reserves

कॉरबेट राष्ट्रीय उद्यान (उत्तराखण्ड):

  • कॉरबेट राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखण्ड में स्थित है और यह भारत का पहला टाइगर रिजर्व है।

सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (पश्चिम बंगाल):

  • सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान पश्चिम बंगाल में स्थित है और एक महत्वपूर्ण बाघ संरक्षण क्षेत्र है जो बांग्लादेश की सीमा के पास है।

बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश):

  • बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश में स्थित है और बाघ के संरक्षण के लिए प्रमुख केंद्र है।

सरिस्का वन्य जीव पशुविहार (राजस्थान):

  • सरिस्का वन्य जीव पशुविहार राजस्थान में स्थित है और बाघ के लिए महत्वपूर्ण है।

मानस बाघ रिज़र्व (असम):

  • मानस बाघ रिज़र्व असम में स्थित है और यह एक महत्वपूर्ण टाइगर रिज़र्व है जो मानस नदी के उपकूल में स्थित है।

पेरियार बाघ रिज़र्व (केरल):

  • पेरियार बाघ रिज़र्व केरल में स्थित है और यह बाघ के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

आशा करते है इस पोस्ट NCERT Class 10 Geography: वन एवं वन्य जीव संसाधन Notes में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी । आप हमें नीचे Comment करके जरुर बताये और अपने दोस्तों को जरुर साझा करे। यह पोस्ट 10 Class भूगोल Chapter 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन Notes पढ़ने के लिए धन्यवाद ! आपका समय शुभ रहे !!

NCERT Notes

स्वतंत्र भारत में, कांग्रेस पार्टी ने 1952 से 1967 तक लगातार तीन आम चुनावों में जीत हासिल करके एक प्रभुत्व स्थापित किया था। इस अवधि को 'कांग्रेस प्रणाली' के रूप में जाना जाता है। 1967 के चुनावों में, कांग्रेस को कुछ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 'कांग्रेस प्रणाली' को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

URL: https://my-notes.in

Author: NCERT

Editor's Rating:
5

Pros

  • Best NCERT Notes Class 6 to 12

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